श्री कौफी अन्नान (8 अप्रैल, 1938 - )
परिचय -
कोफी अन्नान, एक घाना निवासी राजनयिक जो 7वें संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के रूप में 1 जनवरी 1997 से 31 दिसम्बर 2006 तक सेवा किये हैं। अन्नान और संयुक्त राष्ट्र संघ को 2001 में संयुक्त रूप से शान्ति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। यह पुरस्कार उन्हें ग्लोबल एड्स और मानव स्वास्थ्य के लिए फण्ड बनाने के कार्य के लिए दिया गया था।
कोफी अन्नान का जन्म 8 अप्रैल, 1938 को कुमासी, गोल्ड कोस्ट, घाना के ईसाई धर्म में पैदा हुये थे। वे एक बहन के साथ जुड़वा पैदा हुये थे। घानानियन परम्परा में बच्चों के नाम जिस दिन वे पैदा होते है, के अनुसार रखे जाते हैं। कोफी का नाम शुक्रवार से सम्बन्ध रखता है। 1870 के दशक में स्थापित म्फैन्ट्सीपीम मेथोडिस्ट बोर्डिंग स्कूल, केप कोस्ट में 1954 से 1957 में शिक्षा ग्रहण किये। 1957 में उन्होंने इस स्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1958 में घाना ने ब्रिटेन से स्वतन्त्रता प्राप्त की। अन्नान ने कुमासी कालेज से अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। उन्होंने 1961 में फोर्ड फाउण्डेशन का अनुदान प्राप्त कर सेंट पाल, मिनेसोटा, संयुक्त राज्य अमेरिका के मैनक्लेस्टर कालेज में प्रवेश लिया। सन् 1961-62 में वे अन्तर्राष्ट्रीय और विकास अध्ययन संस्थान, जिनेवा, स्विटजरलैण्ड से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध में डिग्री प्राप्त की। कुछ समय कार्य अनुभव के पश्चात् वे स्लोअन फैलो प्रोगा्रम द्वारा एम.आई.टी. प्रबन्धन स्कूल, स्लोअन से मास्टर आॅफ साइंस की डिग्री प्राप्त की। अन्नान धारा प्रवाह अंग्रेजी, फ्रेंच, क्रु और अन्य अफ्रीकी भाषा बोलते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव पद पर नियुक्त होने के पूर्व वे घाना और संयुक्त राष्ट्र के अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। अन्नान अनेक अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्करों से सम्मानित हो चुके हैं।
‘भारत, संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन में अपना योगदान दें।
- कौफी अन्नान, मार्च ‘97 में
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
”भारत, संयुक्त राष्ट्र संघ के पुर्नगठन और उसके उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अन्तिम रूप से यह सलाह देता है कि विश्व-राष्ट्रीय-जन ऐजेण्डा-साहित्य-2012$ को विश्व ऐजेण्डा-2012$ के रूप में मान्यता दिलाने के लिए सदस्य देशों के समक्ष प्रस्तुत करें तथा पूर्ण सहमति के लिए प्रयत्न करें। अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आई0 एस0 ओ0) को विश्व मानकीकरण संगठन (डब्ल्यू0 एस0 ओ0) के रूप में परिवर्तित कर अपने एक अभिकरण के रूप में स्वीकार करें जिस प्रकार विश्व व्यापार संगठन, यूनीसेफ, यूनेस्को, इत्यादि अभिकरण हैं। विश्वमानक शून्य श्रृखंला को डब्ल्यू. एस. ओ. शून्य श्रृंखला के रूप में स्थापना के लिए प्रत्येक देशो के लिए अनिवार्य करें। विश्व स्तर का मानव संसाधन निर्माण के लिए विश्व शिक्षा-प्रणाली बनाकर सभी देशों के लिए अनिवार्य करें। ये सभी रास्ते वैधानिक और लोकतान्त्रिक मार्ग से है तथा विश्व शान्ति, एकता स्थिरता, विकास और सुरक्षा के लिए अन्तिम मार्ग है। सम्पूर्ण मानव समाज अपने अस्तित्व के अन्तिम क्षणों तक चाहे क्यों न प्रयत्न कर ले, विश्वमानक - शून्य श्रृंखलाः मन की गुणवत्ता का विश्वमानक का विश्वव्यापी स्थापना ही विश्व शान्ति, एकता, स्थिरता, विकास और रक्षा का प्रथम एवम् अन्तिम मार्ग है। जिसे प्रस्तुत करना भारत का दायित्व तथा विश्वव्यापी स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ का कत्र्तव्य है। तभी भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ अपने अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है। जिसके लिए एक अधुरा है तो दूसरा भूखा है। जिसके सम्बन्ध में ही आपको तथा भारत में स्थित दूतावास के द्वारा सभी देशों को दिनांक 12-06-2000 को पत्र प्रेषित किया गया था।“
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”.......... लेकिन भूमण्डलीय क्रिया का प्रारम्भ कहीं निर्मित हो चुका है और यदि संयुक्त राष्ट्र संघ में नहीं तो कहाँ? ......... मैं जानता हूँ स्वयं की एक घोषणा कम महत्व रखती है। परन्तु दृढ़ प्रतिज्ञा युक्त एक घोषणा और यथार्थ लक्ष्य, सभी राष्ट्रों के नेताओं द्वारा निश्चित रुप से स्वीकारने योग्य, अपने सत्ताधारी की कुशलता का निर्णय के लिए एक पैमाने के रुप में विश्व के व्यक्तियों के लिए अति महत्व का हो सकता है। ........... और मैं आशा करता हूँ कि यह कैसे हुआ? देखने के लिए सम्पूर्ण विश्व पीछे होगा।“-श्री कोफी अन्नान
(लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा 6 जून, 2000 को पंजीकृत डाक द्वारा श्री कोफी अन्नान को प्रेषित पत्र पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए 5-7 सितम्बर, 2000 को आयोजित विश्व शान्ति सहस्त्राब्दि सम्मेलन, न्यूयार्क के वक्तव्य का अंश, जो ”द टाइम्स आफ इण्डिया“, नई दिल्ली, 7 सितम्बर’ 2000 को प्रकाशित हुआ था।)
लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
प्रकाशित खुशमय तीसरी सहस्त्राब्दि के साथ यह एक सर्वोच्च समाचार है कि नयी सहस्त्राब्दि केवल बीते सहस्त्राब्दियों की तरह एक सहस्त्राब्दि नहीं है। यह प्रकाशित और विश्व के लिए नये अध्याय के प्रारम्भ का सहस्त्राब्र्दि है। केवल वक्तव्यों द्वारा लक्ष्य निर्धारण का नहीं बल्कि स्वर्गीकरण के लिए असिमीत भूमण्डलीय मनुष्य और सर्वोच्च अभिभावक संयुक्त राष्ट्र संघ सहित सभी स्तर के अभिभावक के कर्तव्य के साथ कार्य योजना पर आधारित। क्योंकि दूसरी सहस्त्राब्दि के अन्त तक विश्व की आवश्यकता, जो किसी के द्वारा प्रतिनिधित्व नहीं हुई उसे विवादमुक्त और सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया जा चुका है। जबकि विभिन्न विषयों जैसे- विज्ञान, धर्म, आध्यात्म, समाज, राज्य, राजनिति, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, परिवार, व्यक्ति, विभिन्न संगठनों के क्रियाकलाप, प्राकृतिक, ब्रह्माण्डीय, देश, संयुक्त राष्ट्र संघ इत्यादि की स्थिति और परिणाम सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य रुप में थे।
विज्ञान के सर्वोच्च आविष्कार के आधार पर अब यह विवाद मुक्त हो चुका है कि मन केवल व्यक्ति, समाज, और राज्य को ही नहीं प्रभावित करता बल्कि यह प्रकृति और ब्रह्माण्ड को भी प्रभावित करता है। केन्द्रीयकृत और ध्यानीकृत मन विभिन्न शारीरिक सामाजिक और राज्य के असमान्यताओं के उपचार का अन्तिम मार्ग है। स्थायी स्थिरता, विकास, शान्ति, एकता, समर्पण और सुरक्षा के लिए प्रत्येक राज्य के शासन प्रणाली के लिए आवश्यक है कि राज्य अपने उद्देश्य के लिए नागरिकों का निर्माण करें। और यह निर्धारित हो चुका है कि क्रमबद्ध स्वस्थ मानव पीढ़ी के लिए विश्व की सुरक्षा आवश्यक है। इसलिए विश्व मानव के निर्माण की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा नहीं है और विभिन्न अनियन्त्रित समस्या जैसे- जनसंख्या, रोग, प्रदूषण, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, विकेन्द्रीकृत मानव शक्ति एवं कर्म इत्यादि लगातार बढ़ रहे है। जबकि अन्तरिक्ष और ब्रह्माण्ड के क्षेत्र में मानव का व्यापक विकास अभी शेष है। दूसरी तरफ लाभकारी भूमण्डलीकरण विशेषीकृत मन के निर्माण के कारण विरोध और नासमझी से संघर्ष कर रहा है। और यह असम्भव है कि विभिन्न विषयों के प्रति जागरण समस्याओं का हल उपलब्ध करायेगा।
मानक के विकास के इतिहास में उत्पादों के मानकीकरण के बाद वर्तमान में मानव, प्रक्रिया और पर्यावरण का मानकीकरण तथा स्थापना आई0 एस0 ओ0-9000 एवं आई0 एस0 ओ0-14000 श्रृंखला के द्वारा मानकीकरण के क्षेत्र में बढ़ रहा है। लेकिन इस बढ़ते हुए श्रृंखला में मनुष्य की आवश्यकता (जो मानव और मानवता के लिए आवश्यक है) का आधार ‘‘मानव संसाधन का मानकीकरण’’ है क्योंकि मनुष्य सभी (जीव और नीर्जीव) निर्माण और उसका नियन्त्रण कर्ता है। मानव संसाधन के मानकीकरण के बाद सभी विषय आसानी से लक्ष्य अर्थात् विश्व स्तरीय गुणवत्ता की ओर बढ़ जायेगी क्यांेकि मानव संसाधन के मानक में सभी तन्त्रों के मूल सिद्धान्त का समावेश होगा।
वर्तमान समय में शब्द -‘‘निर्माण’’ भूमण्डलीय रुप से परिचित हो चुका है इसलिए हमें अपना लक्ष्य मनुष्य के निर्माण के लिए निर्धारित करना चाहिए। और दूसरी तरफ विवादमुक्त, दृश्य, प्रकाशित तथा वर्तमान सरकारी प्रक्रिया के अनुसार मानक प्रक्रिया उपलब्ध है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मानक हमेशा सत्य का सार्वजनिक प्रमाणित विषय होता है न कि विचारों का व्यक्तिगत प्रमाणित विषय। अर्थात् प्रस्तुत मानक विभिन्न विषयों जैसे- आध्यात्म, विज्ञान, तकनीकी, समाजिक, नीतिक, सैद्धान्तिक, राजनीतिक इत्यादि के व्यापक समर्थन के साथ होगा। ‘‘उपयोग के लिए तैयार’’ तथा ‘‘प्रक्रिया के लिए तैयार’’ के आधार पर प्रस्तुत मानव के विश्व स्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए मानव निर्माण तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class Manufactuing–Total Life Maintenance- Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation.Conceousness) प्रणाली आविष्कृत है जिसमें सम्पूर्ण तन्त्र सहंभागिता (Total System Involvement-TSI) है औरं विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला (WS-0 : World Standard of Mind Series) समाहित है। जो और कुछ नहीं, यह विश्व मानव निर्माण प्रक्रिया की तकनीकी और मानव संसाधन की गुणवत्ता का विश्व मानक है। जैसे- औद्योगिक क्षेत्र में इन्स्टीच्यूट आॅफ प्लान्ट मेन्टीनेन्स, जापान द्वारा उत्पादों के विश्वस्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए उत्पाद निर्माण तकनीकी डब्ल्यू0 सी0 एम0-टी0 पी0 एम0-5 एस(WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing-Total Productive Maintenance-Siri (छँटाई), Seton (सुव्यवस्थित), Sesso (स्वच्छता), Siketsu (अच्छास्तर), Shituke (अनुशासन) प्रणाली संचालित है। जिसमें सम्पूर्ण कर्मचारी सहभागिता (Total Employees Involvement) है। का प्रयोग उद्योगों में विश्व स्तरीय निर्माण प्रक्रिया के लिए होता है। और आई.एस.ओ.-9000 (ISO-9000) तथा आई.एस.ओ.-14000 (ISO-14000) है।
युग के अनुसार सत्यीकरण का मार्ग उपलब्ध कराना ईश्वर का कर्तव्य है आश्रितों पर सत्यीकरण का मार्ग प्रभावित करना अभिभावक का कर्तव्य हैै। और सत्यीकरण के मार्ग के अनुसार जीना आश्रितों का कर्तव्य है जैसा कि हम सभी जानते है कि अभिभावक, आश्रितों के समझने और समर्थन की प्रतिक्षा नहीं करते। अभिभावक यदि किसी विषय को आवश्यक समझते हैं तब केवल शक्ति और शीघ्रता से प्रभावी बनाना अन्तिम मार्ग होता है। विश्व के बच्चों के लिए यह अधिकार है कि पूर्ण ज्ञान के द्वारा पूर्ण मानव अर्थात् विश्वमानव के रुप में बनना। हम सभी विश्व के नागरिक सभी स्तर के अभिभावक जैसे- महासचिव संयुक्त राष्ट्र संघ, राष्ट्रों के राष्ट्रपति- प्रधानमंत्री, धर्म, समाज, राजनीति, उद्योग, शिक्षा, प्रबन्ध, पत्रकारिता इत्यादि द्वारा अन्य समानान्तर आवश्यक लक्ष्य के साथ इसे जीवन का मुख्य और मूल लक्ष्य निर्धारित कर प्रभावी बनाने की आशा करते हैं। क्योंकि लक्ष्य निर्धारण वक्तव्य का सूर्य नये सहस्त्राब्दि के साथ डूब चुका है। और कार्य योजना का सूर्य उग चुका है। इसलिए धरती को स्वर्ग बनाने का अन्तिम मार्ग सिर्फ कर्तव्य है। और रहने वाले सिर्फ सत्य-सिद्धान्त से युक्त संयुक्तमन आधारित मानव है, न कि संयुक्तमन या व्यक्तिगतमन के युक्तमानव।
दो या दो से अधिक माध्यमों से उत्पादित एक ही उत्पाद के गुणता के मापांकन के लिए मानक ही एक मात्र उपाय है। सतत् विकास के क्रम में मानकों का निर्धारण अति आवश्यक कार्य है। उत्पादों के मानक के अलावा सबसे जरुरी यह है कि मानव संसाधन की गुणता का मानक निर्धारित हो क्योंकि राष्ट्र के आधुनिकीकरण के लिए प्रत्येक व्यक्ति के मन को भी आधुनिक अर्थात् वैश्विक-ब्रह्माण्डीय करना पड़ेगा। तभी मनुष्यता के पूर्ण उपयोग के साथ मनुष्य द्वारा मनुष्य के सही उपयोग का मार्ग प्रशस्त होगा। उत्कृष्ट उत्पादों के लक्ष्य के साथ हमारा लक्ष्य उत्कृष्ट मनुष्य के उत्पादन से भी होना चाहिए जिससे हम लगातार विकास के विरुद्ध नकारात्मक मनुष्योें की संख्या कम कर सकें। भूमण्डलीकरण सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में कर देने से समस्या हल नहीं होती क्योंकि यदि मनुष्य के मन का भूमण्डलीकरण हम नहीं करते तो इसके लाभों को हम नहीं समझ सकते। आर्थिक संसाधनों में सबसे बड़ा संसाधन मनुष्य ही है। मनुष्य का भूमण्डलीकरण तभी हो सकता है जब मन के विश्वमानक का निर्धारण हो। ऐसा होने पर हम सभी को मनुष्यों की गुणता के मापांकन का पैमाना प्राप्त कर लेगें, साथ ही स्वयं व्यक्ति भी अपना मापांकन भी कर सकेगा। जो विश्व मानव समाज के लिए सर्वाधिक महत्व का विषय होगा। विश्वमानक शून्य श्रृंखला मन का विश्व मानक है जिसका निर्धारण व प्रकाशन हो चुका है जो यह निश्चित करता है कि समाज इस स्तर का हो चुका है या इस स्तर का होना चाहिए। यदि यह सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित होगा तो निश्चित ही अन्तिम मानक होगा।
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