भारतीय विपणन प्रणाली
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
कुल मिलाकर उपभोक्ता जो कहीं किसी और माध्यम से धन अर्जित करता है उसके उस धन को लेने के लिए किये गये सारे प्रपंच विपणन के अन्तर्गत आते हैं। यदि उपभोक्ता के पास धन नहीं तो ये सारे प्रपंच बेकार सिद्ध हो जाते हैं उसके लिए फाइनेन्स (आसान किस्तों में धन चुकाने की व्यवस्था), खरीदे और दूसरे को खरीद करायें वाली प्रणाली भी विपणन के प्रपंच में से ही है।
विश्व में शायद किसी भी देश में सरकार द्वारा निश्चित की गई विपणन प्रणाली लागू नहीं हैं। सरकार को केवल विभिन्न प्रकार के करों (Taxes) से मतलब होता है। निर्माता अपने उत्पाद को चाहे जिस विधि/प्रणाली से बेचे। बस मल्टीलेवेल मार्केटिंग के लिए कुछ दिशा निर्देश भारत में समय-समय पर निर्धारित होते रहते हैं।
चेस्टस्टन ने कहा था, ”ब्रह्माण्डीय दर्शन मनुष्य के अनुरूप बैठने के लिए नहीं, बल्कि ब्रह्माण्ड के अनुरूप बैठने के लिए रचा गया है। मनुष्य के पास ठीक उसी तरह अपना एक नीजी धर्म नहीं हो सकता, जिस तरह उसके पास एक निजी सूर्य और एक चंद्रमा नहीं हो सकता।“ अर्थात मनुष्य, मनुष्य के साथ व्यापार करने के लिए अनेक प्रकार की प्रणाली का विकास तो कर सकता है परन्तु वह एक मानक प्रणाली नहीं हो सकती। मानक प्रणाली वही हो सकती है जो ब्रह्माण्डीय दर्शन अर्थात सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के अनुरूप होगा। वह प्रणाली कल्याणकारी- लाभकारी और सरल होगी। ब्रह्माण्ड एक व्यापार क्षेत्र अर्थात व्यापार केन्द्र है। सर्वव्यापी सार्वभौम आत्मा (ईश्वर-सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) की उपस्थिति में सर्वत्र व्यापार चल रहा है। जहाँ भी, कुछ भी आदान-प्रदान हो रहा हो, वह सब व्यापार के ही अधीन है। किसी विचार पर आधारित होकर आदान-प्रदान का नेतृत्वकर्ता व्यापारी और आदान-प्रदान में शामिल होने वाला ग्राहक होता है। प्रत्येक व्यक्ति ही व्यापारी है और वही दूसरे के लिए ग्राहक भी है। यदि व्यक्ति आपस में आदान-प्रदान कर व्यापार कर रहें हैं तो इस संसार-ब्रह्माण्ड में ईश्वर का व्यापार चल रहा है और सभी वस्तुएँ उनके उत्पाद है। उन सब वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा है जिसके व्यापारी स्वयं ईश्वर हंै। ये सनातन सिद्धान्त है। जिस प्रकार मानव नियंत्रित व्यापार का मालिक मानव (कम्पनी, फर्म इत्यादि) होता है उसी प्रकार ईश्वर नियंत्रित व्यापार का मालिक ईश्वर स्वयं हैं। दोनों ही स्थितियों के अपने-अपने नियम द्वारा व्यापार संचालित हैं।
ईश्वर संचालित व्यापार की प्रणाली की विशेषताओं को जानने से ही एक मानक प्रणाली बन सकती है जो कल्याणकारी-लाभकारी और सरल हो।
”कल्कि“ अवतार के सम्बन्ध में कहा गया है कि उसका कोई गुरू नहीं होगा, वह स्वयं से प्रकाशित स्वयंभू होगा जिसके बारे में अथर्ववेद, काण्ड 20, सूक्त 115, मंत्र 1 में कहा गया है कि ”ऋषि-वत्स, देवता इन्द्र, छन्द गायत्री। अहमिद्धि पितुष्परि मेधा मृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजिनि।।“ अर्थात ”मैं परम पिता परमात्मा से सत्य ज्ञान की विधि को धारण करता हूँ और मैं तेजस्वी सूर्य के समान प्रकट हुआ हूँ।“ जबकि सबसे प्राचीन वंश स्वायंभुव मनु के पुत्र उत्तानपाद शाखा में ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में से मन से मरीचि व पत्नी कला के पुत्र कश्यप व पत्नी अदिति के पुत्र आदित्य (सूर्य) की चैथी पत्नी छाया से दो पुत्रों में से एक 8वें मनु - सांवर्णि मनु होगें जिनसे ही वर्तमान मनवन्तर 7वें वैवस्वत मनु की समाप्ति होगी। ध्यान रहे कि 8वें मनु - सांवर्णि मनु, सूर्य पुत्र हैं। अर्थात कल्कि अवतार और 8वें मनु - सांवर्णि मनु दोनों, दो नहीं बल्कि एक ही हैं और सूर्य पुत्र हैं। इसलिए सूर्य सिद्धान्त पर ही भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन आधारित स्वदेशी विपणन प्रणाली का नामकरण 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) रखा गया है। अर्थात ऐसा सिद्धान्त जिसके नीचे ईंधन (Fuel) हो बीच में अग्नि (Fuel) हो फिर उसके उपर ईंधन (Fuel) हो, तो वो आग कब बुझेगी? ईंधन के कारण आग जल रहा है, आग के कारण ईंधन मिल रहा हो तो वो आग कब बुझेगी? जलने से ही ईंधन बन रहा हो तो वो आग कब बुझेगी?
3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणाली, चूँकि भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन आधारित स्वदेशी विपणन प्रणाली और एक सत्य मानक विपणन प्रणाली है इसलिए भारत के जो भी नेतृत्वकर्ता ये चाहते हों कि भारत को सोने की चिड़िया बनायेंगे और आध्यात्मिक और दार्शनिक विरासत के आधार पर एक भारत - श्रेष्ठ भारत का निर्माण करेंगे, उन्हें उत्पाद के ऐसे क्षेत्र में जो मनुष्य के लिए उपयोग करना मजबूरी हो, उस क्षेत्र के विपणन कम्पनी/संगठन को इस प्रणाली का संचालन अनिवार्य कर देना चाहिए और अन्य क्षेत्र में विपणन स्वैच्छिक रूप से चलते रहने देना चाहिए। अनिवार्य करने के क्षेत्र ये हो सकते हैं जैसे - शिक्षा क्षेत्र, दैनिक उपभोग के वस्तु क्षेत्र।
3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणाली से दैनिक उपभोग के वस्तु क्षेत्र के विपणन कम्पनी के विपणन खर्च में बहुत अधिक कमी आ जायेगी, साथ ही उपभोक्ता स्वयं ही उत्पाद को खरीदने के लिए स्वयं आने लगेंगे। उन्हें उत्पाद बेचने के अनेक प्रकार के प्रपंच से मुक्ति मिल जायेगी। क्योंकि अभी तक उपभोक्ता धन लाभ कहीं और से अर्जित करता था और उत्पाद कहीं और से खरीदता था लेकिन 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणाली से उसे उत्पाद खरीदने से भी धन लाभ होने लगेगा। परिणामस्वरूप उपभोक्ता की क्रय शक्ति बढ़ जायेगी और यह सभी के लिए लाभदायक होगा और तब एक नया ज्ञान सूत्र जन्म लेगा ”खर्च के लिए धन नहीं, अब धन लाभ के लिए खर्च“
3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणाली से शिक्षा क्षेत्र के विपणन कम्पनी और सरकार के खर्च में बहुत अधिक कमी आ जायेगी, साथ ही शिक्षार्थी स्वयं आने लगेंगे। उन्हें अनेक प्रकार के अनुदान/छात्रवृत्ति देने से मुक्ति मिल जायेगी। क्योंकि अभी तक शिक्षार्थी के अभिभावक धन लाभ कहीं और से अर्जित करते थे और मँहगी होती शिक्षा के लिए भुगतान कहीं और करते थे, लेकिन 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणाली से उन्हें शिक्षा से भी धन लाभ होने लगेगा। परिणामस्वरूप शिक्षा से रूचि बढ़ जायेगी और यह सभी के लिए लाभदायक होगा और तब एक नया ज्ञान सूत्र जन्म लेगा ”शिक्षा के लिए धन नहीं, अब धन लाभ के लिए शिक्षा“
3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणाली के लागू किये बिना भारत को सोने की चिड़िया बनाना और आध्यात्मिक और दार्शनिक विरासत के आधार पर एक भारत - श्रेष्ठ भारत का निर्माण एक सपना है जो कहने से नहीं बल्कि उस प्रणाली को अपनाने से पूरा हो सकता है।
3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणाली का विस्तृत विवरण अध्याय-4 में उपलब्ध है।
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