श्री यदुनाथ सिंह (6 जुलाई, 1945 - )
परिचय -
सत्यकाशी क्षेत्र के चुनार क्षेत्र (जिला मीरजापुर, उत्तर प्रदेश) के ग्राम-नियामतपुर कलाँ में 6 जुलाई, 1945 को जन्में श्री यदुनाथ सिंह, एक क्रान्तिकारी, चिन्तक, जन समर्थक और जनप्रिय नेता के रूप में जाने जाते हैं। इनके पिता का नाम श्री सहदेव सिंह व माता का नाम श्रीमती दुलेसरा देवी था।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कमच्छा स्थित सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल से उस समय संचालित प्री यूनिवर्सिर्टी कोर्स (पी.यू.सी) करने के उपरान्त आप विश्वविद्यालय में केमिकल इंजिनियरिंग में प्रवेश लिए। छात्र राजनीति व जन समस्याओं से द्रवित होकर आप राजनीति में प्रवेश लिये जिसका प्रभाव आपके शिक्षा पर भी पड़ा और आप इंजिनियरिंग की डिग्री पूर्ण नहीं कर पाये। आप उत्तर प्रदेश के चुनार विधान सभा क्षेत्र से चार बार 1980, 1985, 1989, 1991 में विधायक चुने गये। आप राजनीति के दौरान कभी भी राज्य समर्थक नहीं रहे बल्कि सदैव जन समर्थक ही रहें और जन समस्याओं को सदैव प्राथमिकता में रखते हुए राज्य को विवश करते रहे। आपका दुर्भाग्य था कि आप जब भी विधायक रहे, आपकी पार्टी की सरकार नहीं रही और आप ऐसे दौर में विधायक रहे जब विधायक निधि जैसी कोई योजना लागू नहीं थी फलस्वरूप आप सरकारी सहायता के द्वारा क्षेत्र के भौतिक विकास में योगदान विवशतापूर्वक नहीं दे पाये।
आप चुनार क्षेत्र में चुनाव के दौरान जनता के अतिलोकप्रिय नेता के रूप में अपने समय में स्थापित थे। इसका प्रत्यक्ष दर्शन जनता ने स्वयं उस रैली को देखकर अनुभव किया जो 10 किलोमीटर से भी लम्बी भीड़ भरी थी। क्षेत्र के व्यक्ति, समाज और क्षेत्र का सूक्ष्म अध्ययन आपके पास गहराई से था जिसके कारण ही आपने ”तू जमाना बदल“ और क्षेत्र को सत्यकाशी क्षेत्र के रूप में स्थापित करने का वक्तव्य दिया।
”तू जमाना बदल“ - यदुनाथ सिंह, पूर्व विधायक, चुनार क्षेत्र
”रामनगर (वाराणसी) से विन्ध्याचल (मीरजापुर) तक का क्षेत्र पुराणों में वर्णित सत्यकाशी का क्षेत्र है।“
- यदुनाथ सिंह, पूर्व विधायक, चुनार क्षेत्र
साभार - राष्ट्रीय सहारा, लखनऊ, दि0 17 जून, 1998)
”वर्तमान समय में देश स्तर पर व्यवस्था परिवर्तन की चर्चा बहुत अधिक हो रही है। इसमें मेरे विचार से सर्वप्रथम आरक्षण के मापदण्ड पर पुनः विचार करने का समय आ गया है। देश के स्वतन्त्रता के समय जातिगत आरक्षण की आवश्यकता थी और वह सीमित समय के लिए ही लागू किया गया था परन्तु राजनीतिक लाभ के कारणों से वह वर्तमान तक लागू है। हम समाज से मनुवादी व्यवस्था को समाप्त करने की बात करते हैं परन्तु एक तरफ आज समाज इससे धीरे-धीरे मुक्त हो रहा है और दूसरी तरफ संविधान ही इसका समर्थक बनता जा रहा है। ऐसी स्थिति में आरक्षण व्यवस्था का मापदण्ड जाति आधारित से शारीरिक, आर्थिक और मानसिक आधारित कर देनी चाहिए जो धर्मनिरपेक्ष और सर्वधर्मसमभाव भी है और लोकतन्त्र का धर्म भी धर्मनिरपेक्ष और सर्वधर्मसमभाव है
मेरे विचार में व्यवस्था परिवर्तन का दूसरा आधार युवाओं को अधिकतम अधिकार से युक्त करने पर विचार करने का समय आ गया है। देश में 18 वर्ष के उम्र पर वोट देने का अधिकार तथा विवाह का उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष तथा लड़कियों के लिए 18 वर्ष तो कर दिया गया है परन्तु उन्हें पैतृक सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार अभी तक नहीं दिया गया है। इसलिए उत्तराधिकार सम्बन्धी अधिनियम की भी आवश्यकता आ गयी है। जिसमें यह प्राविधान हो कि 25 वर्ष की अवस्था में उसे पैतृक सम्पत्ति अर्थात दादा की सम्पत्ति जिसमें पिता की अर्जित सम्पत्ति शामिल न रहें, उसके अधिकार में हो जाये।
किसी भी विचार पर किया गया आदान-प्रदान ही व्यापार होता है और यह जितनी गति से होता है उतनी ही गति से व्यापार, विकास और विनाश होता है। देश के विकास के लिए धन के आदान-प्रदान को तेज करना पड़ेगा और ऐसे सभी बिन्दुओं का पहचान करना होगा जो धन के आदान-प्रदान में बाधा डालती है। इसलिए कालेधन का मुद्दा अहम मुद्दा है। ऐसे प्राविधान की आवश्यकता है कि जिससे यह धन देश के विकास में लगे।
विभिन्न प्रकार के अनेकों साहित्यों से भरे इस संसार में यह भी एक समस्या है कि हम किस साहित्य को पढ़े जिससे हमें ज्ञान की दृष्टि शीघ्रता से प्राप्त हो जाये। विश्वशास्त्र इस समस्या को हल करते हुए एक ही संगठित पुस्तक के रूप में उपलब्ध हो चुका है। यह इस सत्यकाशी क्षेत्र की एक महान और ऐतिहासिक उपलब्धि है जिसके कारण यह क्षेत्र सदैव याद किया जायेगा।
- यदुनाथ सिंह, पूर्व विधायक, चुनार क्षेत्र
लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
विधायक जी, जब शब्द वायुमण्डल में व्यक्त हो जाते हैं तो वह बीज के रूप में पड़े रहते हैं और योग्य वातावरण पाते ही वह उग आते हैं। आपका ”तू जमाना बदल“ और ”सत्यकाशी“ के सत्य विचार को पूर्ण करने के लिए ”विश्वशास्त्र“ व्यक्त कर दिया गया है। जिस प्रकार आपके द्वारा कहा गया शब्द योग्य वातावरण पाकर जन्म लिया उसी प्रकार इस जमाने को बदलने और सत्यकाशी के विश्वव्यापी स्थापना के लिए ”विश्वशास्त्र“ के द्वारा व्यक्त विचार भी योग्य वातावरण पाकर अवश्य जन्म लेगा क्योंकि विचार कभी मरता नहीं, शरीर मरता है शास्त्र नहीं। हम आप शरीर धारी हैं, शरीर छूट जायेगा परन्तु यह शास्त्र अन्य पुस्तक व शास्त्रों की भाँति धरती पर उस समय तक रहेगा जब तक मनुष्य नाम का जीव रहेगा। इसलिए संतुष्ट हो जाइये। आपके ही गाँव से यह कार्य सम्पन्न हो गया है और अब यह गाँव इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया है जिसके आकाश में सितारे के रूप में आप और मैं सदा चमकते रहेंगे। रही प्रसार की बात तो इस युग में इलेक्ट्रानिक डिजीटल मीडिया भी सशक्त हो गयी है। घर बैठे ही बैठे सभी मीडिया व संसार के इस प्रकार के कार्य करने वालों तक पहुँच जायेगा।
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