श्रीमती शीला दीक्षित (31 मार्च, 1938 - )
परिचय -
श्रीमती शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च, 1938 को हुआ था। इन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली के कान्वेंट आॅफ जीसस एण्ड मैरी स्कूल से ली। बाद में स्नातक और कला स्नातकोत्तर की शिक्षा मिराण्डा हाउस कालेज से ली। इनका विवाह प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी तथा पूर्व राज्यपाल व केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में रहे, श्री उमा शंकर दीक्षित के परिवार में हुआ। इनके पति स्व0 श्री विनोद दीक्षित भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य थे। इनकी दो सन्ताने- एक पुत्र व एक पुत्री हैं। इन्हें राजनीति में प्रशासन व संसदीय कार्यो का अच्छा अनुभव है। इन्होंने केन्द्रीय सरकार में 1986 से 1989 तक मंत्री पद भी ग्रहण किया था। पहले ये, संसदीय कार्यो की राज्य मंत्री रही, तथा बाद में, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री रहीं। 1984-1989 में इन्होंने कन्नौज, उत्तर प्रदेश लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया था। संसद सदस्य के कार्यकाल में, इन्होंने लोकसभा की एस्टीमेट समिति के साथ कार्य किया। इन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता की 40वीं वर्षगाँठ की कार्यान्वयन समिति की अध्यक्षता भी की थी। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति की अध्यक्ष के पद पर 1998 में कांग्रेस को दिल्ली में अभूतपूर्व विजय दिलायीं। इन्होंने महिला उत्थान के लिए अथक प्रयास किये हैं। इनका महिलाओं को समाज में बराबरी का स्तर दिलाने के अभियानों में अच्छा नेतृत्व रहा है। इन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की महिला स्तर समिति में भारत का प्रतिनिधित्व भी पाँच वर्षो 1984-1989 तक किया। इन्होंने उत्तर प्रदेश में अपने 82 साथियों के साथ अगस्त 1990 में 23 दिनों की जेल यात्रा की थी, जब वे महिलाओं पर समाज के अत्याचारों के विरोध में उठ खड़ी हुईं थी व प्रदर्शन किये थे। इससे भड़के हुए लाखों राज्य के नागरिक इस अभियान से जुड़े व जेलें भरीं। 1970 में वे यंग विमन्स एशोसिएसन की अध्यक्षा भी रहीं, जिसके दौरान, इन्हीेंने दिल्ली में दो बड़े महिला छात्रावास खुलवाये। आप इन्दिरा गाँधी ट्रस्ट की सचिव भी हैं। यही ट्रस्ट अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शान्ति, निशस्त्रीकरण एवं विकास के लिए इन्दिरा गाँधी पुरस्कार देता है व विश्वव्यापी विषयों पर सम्मेलन आयोजित करता है। इनके संरक्षण में ही इस ट्रस्ट ने एक पर्यावरण केन्द्र भी खोला है। श्रीमती शीला दीक्षित, हस्तकला व ग्रामीण कलाकारों व कारीगरों के उत्थान में विशेष रूचि लेतीं है। ग्रामीण रंगशाला च नाट्यशालाओं का विकास, इनका विशेष कार्य रहा है। 1978 से 1984 के बीच, कपड़ा निर्यातक संघ के कार्यपालक सचिव पद पर, इन्होंने तैयार कपड़ा निर्यात को एक ऊँचे स्तर पर पहुँचाया है। ये धर्म-निरपेक्षता पर सदा अडिग रहीं हैं। सदा ही साम्प्रदायिक ताकतों का प्रत्येक स्तर से विरोध किया है। इनका मानना है कि भारत में यदि जनतन्त्र को जीवित रखना है तो सही व्यवहार व सत्यता के मानदण्डों का पालन करना जीवन का एक अभिन्न अंग होना चाहिए। श्रीमती शीला दीक्षित, भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य की मुख्यमंत्री हैं। इनको 17 दिसम्बर, 2008 में लगातार तीसरी बार दिल्ली विधान सभा के लिए चुना गया था। यह दिल्ली की दूसरी महिला मुख्यमंत्री है।
”विश्व का कोई भी धर्म तभी आगे बढ़ता है जब वह अपने आप में नवीनता लाता है। सनातन धर्म नया बातों को अपने आप में पचाने की क्षमता रखता है“
-श्रीमती शीला दीक्षित
साभार - सन्मार्ग, वाराणसी, दि0 11 अगस्त 2002
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
कोई भी उत्पाद तभी तक बाजार में टिका रह सकता है और लोगों द्वारा उपयोग में लाया जाता रह सकता है जब उसमें सदैव अच्छा जोड़ने का उसके निर्माता द्वारा प्रयत्न किया जाता रहे। यह जितना किसी उत्पाद जैसे कार, बाइक, मोबाइल, साइकिल, कम्प्यूटर इत्यादि के सम्बन्ध में सत्य है ठीक उतना ही धर्म के सम्बन्ध में भी है। सनातन धर्म सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त पर आधारित है। इसकी अनुभूति करते हुये सदैव इसमें नवीनता लाने का प्रयत्न किया जाता रहा है। इसलिए यह अन्तिम रूप में ”विश्वधर्म“ के रूप में व्यक्त हुआ है। जो धर्म या निर्माता अपने धर्म या उत्पाद में नवीनता नहीं लाता वह इतिहास बन जाता है या म्यूजियम में रखा जाने वाली वस्तु बन जाती है।
वर्तमान समय में धर्म में फिर नवीनता आ गई है जिसके सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था -
मेरी नीति है- प्राचीन आचार्यों के उपदेशों का अनुसरण करना। मैंने उनके कार्य का अध्ययन किया है, और जिस प्रणाली से उन्होंने कार्य किया, उसके आविष्कार करने का मुझे सौभाग्य मिला। वे सब महान समाज संस्थापक थे। बल पवित्रता और जीवन शक्ति के वे अद्भुत आधार थे। उन्होंने सब से अद्भुत कार्य किया-समाज में बल, पवित्रता और जीवन शक्ति संचारित की। हमें भी सबसे अद्भुत कार्य करना है। आज अवस्था कुछ बदल गयी है, इसलिए कार्य-प्रणाली में कुछ थोड़ा-सा परिवर्तन करना होगा; बस इतना ही, इससे अधिक कुछ नहीं। (मेरी समर नीति-पृ0-27) - स्वामी विवेकानन्द
हमें देखना है कि किस प्रकार यह वेदान्त हमारे दैनिक जीवन में, नागरिक जीवन में, ग्राम्य जीवन में, राष्ट्रीय जीवन में और प्रत्येक राष्ट्र के घरेलू जीवन में परिणत किया जा सकता है। कारण, यदि धर्म मनुष्य को जहाॅ भी और जिस स्थिति में भी है, सहायता नहीं दे सकता, तो उसकी उपयोगिता अधिक नहीं - तब वह केवल कुछ विशिष्ट व्यक्तियों के लिए कोरा सिद्धान्त हो कर रह जायेगा। (व्यावहारीक जीवन में वेदान्त, पृष्ठ-11) - स्वामी विवेकानन्द
सभी कालों में प्राचीन रितियों को नये ढंग में परिवर्तित करने से ही उन्नति हुई है। भारत में प्रचीन युग में भी धर्म प्रचारकों ने इसी प्रकार काम किया था। केवल बुद्ध देव के धर्म ने ही प्राचीन रिति और नीतियों का विध्वंस किया था भारत से उसके निर्मूल हो जाने का यहीं कारण है। (संग में, पृष्ठ-19)
- स्वामी विवेकानन्द
यह सनातन धर्म का देश है। देश गिर अवश्य गया है, परन्तु निश्चय फिर उठेगा। और ऐसा उठेगा कि दुनिया देखकर दंग रह जायेगी। (विवेकानन्दजी के संग में, पृष्ठ-159)
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