Thursday, March 26, 2020

विश्वमानव और पं0 जवाहर लाल नेहरु (14 नवम्बर, 1889 - 27 मई, 1964)

पं0 जवाहर लाल नेहरु (14 नवम्बर, 1889 - 27 मई, 1964)

परिचय - 
गाँधी युगीन स्वतन्त्रता संग्राम के महान प्रहरी, नवीन भारत के निर्माता और देश के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद (प्रयाग) में मोतीलाल जी के घर 14 नवम्बर, 1889 को हुआ था। नेहरू ने बी.ए. आनर्स एवं कानून की पढ़ाई इंग्लैण्ड में की। 1912 ई. में नेहरू वापस भारत आये और इसी वर्ष बांकीपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया। 1921 ई. में उन्हें कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। 1929, 1936, 1937 एवं 1951-56 ई. तक वे कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे। 1921 ई. में एक किसान आन्दोलन में भाग लेने के कारण नेहरू को लखनऊ में अपने जीवन की प्रथम जेल यात्रा करनी पड़ी, तत्पश्चात् देश के आजाद होने तक उन्हें कुल 9 बार जेल जाना पड़ा, जहाँ उन्होंने कुल 9 वर्ष का समय बिताया। 1930 ई. के नमक सत्याग्रह एवं 30 अक्टुबर, 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में नेहरू ने हिस्सा लिया। 1946 ई. में बनी अन्तरिम सरकार में वे प्रधानमन्त्री बनें। भारत के आजाद होने पर भी स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बनने का सौभाग्य जवाहरलाल नेहरू को ही मिला और इस पद पर वे मृत्यु पर्यन्त अर्थात 27 मई, 1964 ई. तक बने रहे। नेहरू के बारे में गाँधी जी ने कहा है कि- ”वे नितान्त उज्जवल हैं और उनकी सच्चाई सन्देह से परे है, राष्ट्र उनके हाथों में सुरक्षित है।“ नेहरू में पूर्ण विश्वास करते हुए गाँधी जी ने यहाँ तक कहा कि नेहरू उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं।
गाँधी जी के विचारों के प्रतिकूल नेहरू ने देश में औद्योगिकरण को महत्व देते हुए भारी उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया। विज्ञान के विकास के लिए 1947 ई. में नेहरू ने ”भारतीय विज्ञान कांग्रेस“ की स्थापना की। उन्होंने कई बार भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष पद से भाषण दिया। भारत के विभिन्न भागों में स्थापित वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के अनेक केन्द्र इस क्षेत्र में उनकी दूरदर्शिता के स्पष्ट प्रतीक हैं। खेलों में नेहरू की व्यक्तिगत रूचि थी। उन्होंने खेलों को शारीरिक व मानसिक विकास के लिए आवश्यक बताया। वे एक देश से दूसरे देश से मधुर सम्बन्ध कायम करने के लिए 1951 ई. में दिल्ली में प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन करवाया। समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेहरू ने भारत में लोकतान्त्रिक समाजवाद की स्थापना का लक्ष्य रखा। उन्होंने आर्थिक योजना की आवश्यकता पर बल दिया। वे 1938 ई. में कांग्रेस द्वारा नियोजित ”राष्ट्रीय योजना समिति“ के अध्यक्ष भी थे। स्वतन्त्रता पश्चात् वे राष्ट्रीय योजना आयोग के प्रधान बनें। नेहरू ने साम्प्रदायिकता का विरोध करते हुए धर्मनिरपेक्षता पर बल दिया। उनके व्यक्तिगत प्रयास से ही भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया।
जवाहरलाल नेहरू ने भारत को तत्कालीन विश्व की दो महान शक्तियों का पिछलग्गू न बनाकर तटस्थता की नीति का पालन किया। नेहरू ने निर्गुटता एवं पंचशील जैसे सिद्धान्तों का पालन कर विश्व-बन्धुत्व एवं विश्व शान्ति को प्रोत्साहन दिया। नेहरू ने पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, जातिवाद एवं उपनिवेशवाद के खिलाफ जीवनपर्यन्त संघर्ष किया। अपने कैदी जीवन में नेहरू ने ”डिस्कवरी आॅफ इण्डिया“, ”ग्लिम्पसेज आॅफ वल्र्ड हिस्ट्री“ एवं ”मेरी कहानी“ नामक पुस्तकों की रचना की।
”यदि हम संसार का मार्ग ग्रहण करेंगे और संसार को और अधिक विभाजित करेंगे तो शान्ति, सहिष्णुता और स्वतन्त्रता के अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकते। यदि हम इस युद्ध- विक्षिप्त दुनियाँ को शान्ति और सत्य का प्रकाश दिखाएं तो सम्भव है कि हम संसार में कोई अच्छा परिवर्तन कर सकें। लोकतन्त्र से मेरा मतलब समस्याओं को शान्तिपूर्वक हल करने से है। अगर हम समस्याओं को शान्तिपूर्वक हल नहीं कर पाते तो इसका मतलब है कि लोकतन्त्र को अपनाने में हम असफल रहें हैं।“ - पं0 जवाहर लाल नेहरु
”हम अपनी योजनाओं को सक्रिय रुप से क्रियान्वित करंे, इसके लिए मानकों का होना अत्यन्त आवश्यक है तथा यह जरुरी है कि मानकों के निर्धारण व पालन हेतु प्रयत्नशील रहें।“       - पं0 जवाहर लाल नेहरु
(भारतीय मानक ब्यूरो त्रैमासिकी- ”मानक दूत“, वर्ष-19, अंक-1, 1999 से साभार)
इनके नाम को बेचने वालों के समक्ष इनकी दिशा से शेष कार्य यह है कि दुनिया को शान्ति और सत्य का प्रकाश दिखाने के लिए सत्य का प्रसार करें तथा समस्याओं को शान्तिपूर्वक हल करना सीखें।

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण

वर्तमान समय के भारत तथा विश्व की इच्छा शान्ति का बहुआयामी विचार-अन्तरिक्ष, पाताल, पृथ्वी और सारे चराचर जगत में एकात्म भाव उत्पन्न कर अभय का साम्राज्य पैदा करना और समस्याओं के हल में इसकी मूल उपयोगिता है। साथ ही विश्व में एक धर्म- विश्वधर्म-सार्वभौम धर्म, एक शिक्षा-विश्व शिक्षा, एक न्याय व्यवस्था, एक अर्थव्यवस्था, एक संविधान, एक शास्त्र स्थापित करने में है। भारत के लिए यह अधिक लाभकारी है क्योंकि यहाँ सांस्कृतिक विविधता है। जिससे सभी धर्म-संस्कृति को सम्मान देते हुए एक सूत्र में बाँधने के लिए सर्वमान्य धर्म उपलब्ध हो जायेगा। साथ ही संविधान, शिक्षा व शिक्षा प्रणाली व विषय आधारित विवाद को उसके सत्य-सैद्धान्तिक स्वरूप से हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है। साथ ही पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी से संकीर्ण मानसिकता से व्यक्ति को उठाकर व्यापक मानसिकता युक्त व्यक्ति में स्थापित किये जाने में आविष्कार की उपयोगिता है। जिससे विध्वंसक मानव का उत्पादन दर कम हो सके। ऐसा न होने पर नकारात्मक मानसिकता के मानवो का विकास तेजी से बढ़ता जायेगा और मनुष्यता की शक्ति उन्हीं को रोकने में खर्च हो जायेगी। यह आविष्कार सार्वभौम लोक या गण या या जन या स्व का निराकार रूप है इसलिए इसकी उपयोगिता स्वस्थ समाज, स्वस्थ लोकतन्त्र, स्वस्थ उद्योग तथा व्यवस्था के सत्यीकरण और स्वराज की प्राप्ति में है अर्थात मानव संसाधन की गुणवत्ता का विश्वमानक की प्राप्ति और ब्रह्माण्ड की सटीक व्याख्या में है। मनुष्य किसी भी पेशे में हो लेकिन उसके मन का भूमण्डलीयकरण, एकीकरण, सत्यीकरण, ब्रह्माण्डीयकरण करने में इसकी उपयोगिता है जिससे मानव शक्ति सहित संस्थागत और शासन शक्ति को एक कर्मज्ञान से युक्त कर ब्रह्माण्डीय विकास में एकमुखी किया जा सके।
व्यक्ति आधारित समाज व शासन से उठकर मानक आधारित समाज व शासन का निर्माण होगा। अर्थात जिस प्रकार हम सभी व्यक्ति आधारित राजतन्त्र में राजा से उठकर व्यक्ति आधारित लोकतन्त्र में आये, फिर संविधान आधारित लोकतन्त्र में आ गये उसी प्रकार पूर्ण लोकतन्त्र के लिए मानक व संविधान आधारित लोकतन्त्र में हम सभी को पहुँचना है।

दो या दो से अधिक माध्यमों से उत्पादित एक ही उत्पाद के गुणता के मापांकन के लिए मानक ही एक मात्र उपाय है। सतत् विकास के क्रम में मानकों का निर्धारण अति आवश्यक कार्य है। उत्पादों के मानक के अलावा सबसे जरुरी यह है कि मानव संसाधन की गुणता का मानक निर्धारित हो क्योंकि राष्ट्र के आधुनिकीकरण के लिए प्रत्येक व्यक्ति के मन को भी आधुनिक अर्थात् वैश्विक-ब्रह्माण्डीय करना पड़ेगा। तभी मनुष्यता के पूर्ण उपयोग के साथ मनुष्य द्वारा मनुष्य के सही उपयोग का मार्ग प्रशस्त होगा। उत्कृष्ट उत्पादों के लक्ष्य के साथ हमारा लक्ष्य उत्कृष्ट मनुष्य के उत्पादन से भी होना चाहिए जिससे हम लगातार विकास के विरुद्ध नकारात्मक मनुष्योें की संख्या कम कर सकें। भूमण्डलीकरण सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में कर देने से समस्या हल नहीं होती क्योंकि यदि मनुष्य के मन का भूमण्डलीकरण हम नहीं करते तो इसके लाभों को हम नहीं समझ सकते। आर्थिक संसाधनों में सबसे बड़ा संसाधन मनुष्य ही है। मनुष्य का भूमण्डलीकरण तभी हो सकता है जब मन के विश्व मानक का निर्धारण हो। ऐसा होने पर हम सभी को मनुष्यों की गुणता के मापांकन का पैमाना प्राप्त कर लेगें, साथ ही स्वयं व्यक्ति भी अपना मापांकन भी कर सकेगा। जो विश्व मानव समाज के लिए सर्वाधिक महत्व का विषय होगा। विश्व मानक शून्य श्रृंखला मन का विश्व मानक है जिसका निर्धारण व प्रकाशन हो चुका है जो यह निश्चित करता है कि समाज इस स्तर का हो चुका है या इस स्तर का होना चाहिए। यदि यह सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित होगा तो निश्चित ही अन्तिम मानक होगा।


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