Thursday, March 26, 2020

विश्वमानव और चन्द्रशेखर (1 जुलाई, 1927 - 8 जुलाई, 2007)

चन्द्रशेखर (1 जुलाई, 1927 - 8 जुलाई, 2007)

परिचय -
चन्द्रशेखर सिह का जन्म 1 जुलाई, 1927 ई को पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिम पट्टी के एक कृषक परिवार में हुआ था। उन्होंने एम.ए. डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। उन्हें छात्र राजनीति में एक ”फायर ब्राण्ड“ के नाम से जाना जाता था। विद्यार्थी जीवन के पश्चात् वे समाजवादी राजनीति में सक्रिय हुए। 1962 से 1967 ई. तक वह भारत के ऊपरी सदन राज्य सभा के सदस्य थे। उन्होंने 1984 में भारत की पदयात्रा की, जिससे उन्होंने भारत को अच्छी तरह से समझने की कोशिश की। इस पदयात्रा से इन्दिरा गाँधी को थोड़ी घबराहट हुई। आप ने पहले के नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह के राजीनामा के बाद जनता दल के कुछ नेता लेकर ”समाजवादी जनता पार्टी“ की स्थापना की। कांग्रेस के समर्थन से वे सन् 1990 ई. में वे कुछ माह के लिए प्रधानमंत्री भी बने। चन्द्रशेखर जी संसदीय वार्तालाप के लिए बहुत चर्चित थे। उन्हें 1995 ई. में ”आउटस्टैण्डिग पार्लियामेण्ट्री अवार्ड“ भी मिला था। सन् 1977 ई. से वे लोकसभा का बलिया, उत्तर प्रदेश संसदीय क्षेत्र का चुनाव 8 बार जीते थे। वे 1984 ई. में इन्दिरा गाँधी की बड़ी सहानुभूतिक समर्थन के समय केवल एक बार ही चुनाव हारे थे। चन्द्रशेखर जी को मल्टिपल मायलोमा, एक प्रकार का प्लाज्मा कोश कैन्सर हो गया था। 3 मई, 2007 को उनको गम्भीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ वे अन्त में 8 जुलाई, 2007 को नई दिल्ली के एक अस्पताल में उनका देहावसान हो गया।

- लोकनायक जयप्रकाश के सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा साकार नहीं हुआ, वे लोक साहित्य को जिवित रखने का प्रयास कर रहे थे।    (लोकनायक जयप्रकाश नारायण जन्म शताब्दी समारोह, जय प्रकाश नगर, बलिया (उ0 प्र0), 11 अक्टूबर’2001)
-चन्द्रशेखर (पूर्व प्रधानमन्त्री, भारत)

लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
”महोदय आपकी सत्य दृष्टि ने ठीक पहचाना है। सम्पूर्ण क्रान्ति का अर्थ है- सभी विषयों के नये और अन्तिम अर्थों की स्थापना। और यह मनुष्य जाति के जीवन में सिर्फ एक बार और अन्तिम बार ही घटित होती है। क्योंकि अलग-अलग विषयों का नया अर्थ बार-बार परिष्कृत हो सकता हेै परन्तु एक ही सार्वजनिक प्रमाणित सिद्धान्त से सभी विषयों का सर्वोच्च अन्तिम सत्य अर्थ सिर्फ एक ही बार और अन्तिम बार ही सम्भव है। क्योंकि उसके बाद उसकी परिभाषा परिष्कृत नहीं की जा सकती। लोक साहित्य उसे कहते हैं जो सर्व व्यापी-सार्वभौम हो और प्रत्येक व्यक्ति चाहे जिस जाति-धर्म-देश का हो, से जुड़ा हो। और उसके लिए आवश्यक हो। यह साहित्य ही लोकतन्त्र में से गायब लोक का साकार रुप होगा। जो शुद्धात्माओं के अन्तः में स्थित रहता है। और जो अब विश्वमानक शून्य: मन (मानव संसाधन) की गुणवत्ता का विश्वमानक के विश्व व्यापी स्थानार्थ आधुनिक नाम से व्यक्त हो चुका है।“


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