Thursday, March 26, 2020

विश्वमानव और लोकनायक जय प्रकाश नारायण (11 अक्टुबर, 1902 - 8 अक्टुबर, 1979)

लोकनायक जय प्रकाश नारायण 
(11 अक्टुबर, 1902 - 8 अक्टुबर, 1979)

परिचय - 
जय प्रकाश नारायण ”जे.पी.“ का जन्म 11 अक्टुबर, 1902 को ग्राम सिताबदियारा, बलिया, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका विवाह बिहार के मशहूर गाँधीवादी बृज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ अक्टुबर, 1920 में हुआ। प्रभावती विवाह के उपरान्त कस्तुरबा गाँधी के साथ गाँधी आश्रम में रहीं। वे भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी और राजनेता थे। उनहें 1970 में इन्दिरा गाँधी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व के लिए जाना जाता है। वे समाज-सेवक थे, जिन्हें ”लोकनायक“ के नाम से भी जाना जाता है। पटना में अपने विद्यार्थी जीवन में जय प्रकाश नारायण ने स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लिया। प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गाँधीवादी डाॅ0 अनुग्रह नारायण सिन्हा, जो गाँधी के एक निकट सहयोगी रहे द्वारा स्थापित ”बिहार विद्यापीठ“ में जय प्रकाश नारायण शामिल हो गए। 1922 में वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गये, जहाँ उन्होंने 1922-1929 के बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बरकली, विसकांसन विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र का अध्ययन किया। पढ़ाई के महंगे खर्चे को वहन करने के लिए उन्होंने खेतों, कम्पनियों, रेस्टोरेन्टों में काम किया। वे माक्र्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। उन्होंने एम.ए. की डिग्री हासिल की। उनकी माताजी की तबियत ठीक न होने की वजह से वे भारत वापस आ गए और पीएच.डी. पूरी न कर सके।
1929 में जब वे अमेरिका से लौटे, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम तेजी पर था। उनका सम्पर्क गाँधी जी के साथ काम कर रहे जवाहरलाल नेहरू से हुआ। वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का हिस्सा बने। 1932 में गाँधी, नेहरू और अन्य महत्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं के जेल जाने के बाद, उन्होंने भारत के अलग-अलग हिस्सों में संग्राम का नेतृत्व किया। अन्ततः उन्हें भी मद्रास में सितम्बर, 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया और नासिक के जेल में भेज दिया गया। यहाँ उनकी मुलाकात एम.आर.मासानी, अच्युत पटवर्धन, एन.सी.गोरे, अशोक मेहता, एम.एच,दांतवाला, चाल्र्स मास्कारेन्हास औा सी.के.नारायणशास्त्री जैसे उत्साही कांग्रेसी नेताओं से हुई। जेल में इनके द्वारा की गई चर्चाओं ने कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी (सी.एस.पी.) को जन्म दिया। सी.एस.पी. समाजवाद में विश्वास रखती थी। जब कांग्रेस ने 1934 में हिस्सा लेने का फैसला किया तो जेपी और सी.एस.पी. ने इसका विरोध किया। 
1939 में उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोक आन्दोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने सरकार को किराया और राजस्व रोकने के अभियान चलाए। टाटा स्टील कम्पनी में हड़ताल कराकर यह प्रयास किया कि अंग्रेजों को इस्पात न पहुँचे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 9 महिने की कैद की सजा सुनाई गई। जेल से छूटने के बाद उन्होंने गाँधी और सुभाष चन्द्र बोस के बीच सुलह का प्रयास किया। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान वे आर्थर जेल से फरार हो गये। उन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान हथियारों के उपयोग को सही समझा। उन्होंने नेपाल जाकर आजाद दस्ते को गठन किया और उसे प्रशिक्षण दिया। उन्हें एक बार फिर पंजाब में चलती ट्रेन में सितम्बर 1943 को गिरफ्तार कर लिया गया। 16 माह बाद जनवरी 1945 में उन्हें आगरा जेल में स्थानान्तरित कर दिया गया। इसके उपरान्त गाँधी जी ने साफ कर दिया था कि डाॅ0 लोहिया और जेपी की रिहाई के बिना अंग्रेज सरकार से कोई समझौता नामुमकिन है। दोनों को अप्रैल 1946 को आजाद कर दिया गया। 1948 में उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया, और बाद में गाँधीवादी दल के साथ मिलकर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। 19 अप्रैल, 1954 में गया, बिहार में उन्होंने विनोबा भावे के सर्वोदय आन्दोलन के लिए जीवन समर्पित करने की घोषणा की। 1957 में उन्होंने लोकनिति के पक्ष में राजनीति छोड़ने का निर्णय लिया। 1960 के दशक के अन्तिम भाग में वे राजनीति में पुनः सक्रिय रहे। 1974 में किसानों के बिहार आन्दोलन में उन्होंने तत्कालीन राज्य सरकार से इस्तीफे की मांग की। वे इन्दिरा गाँधी की प्रशासनिक नीतियों के विरूद्ध थे। गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने बिहार में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन किया। उनके नेतृत्व में पीपुल फ्रंट ने गुजरात राज्य का चुनाव जीता। 1975 में इन्दिरा गाँधी ने आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा की जिसके अन्तर्गत जेपी सहित 600 से भी अधिक विरोधी नेताओं को बंदी बनाया गया और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। जेल में जेपी की तबीयत और खराब हुई। 7 महीने बाद उनको मुक्त कर दिया गया। 1977 जेपी के प्रयासों से एकजुट विराध्ेा पक्ष ने इन्दिरा गाँधी को चुनाव हरा दिया। जेपी का निधन उनके निवास स्थान पटना में 8 अक्टुबर, 1979 को हृदय की बीमारी और मधुमेह के कारण हुआ। उनके सम्मान में तत्कालीन प्रधानमंत्री चरण सिंह ने 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की। उनके सम्मान में कई हजार लोग उनकी शव यात्रा में शामिल हुए।

जेपी का ”सम्पूर्ण क्रान्ति“
पटना के गाँधी मैदान पर लगभग 5 लाख लोगों के अतिउत्साही भीड़ भरी सभा में देश की गिरती हालत, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, महंगाई, अनुपयोगी शिक्षा पद्धति और प्रधानमंत्री द्वारा अपने ऊपर लगाये गए आरोपों का सविस्तार उत्तर देते हुए 5 जून, 1975 की विशाल सभा में जे.पी. ने घोषणा की- ”भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती, क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती है जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए। और, सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए क्रान्ति-सम्पूर्ण क्रान्ति आवश्यक है। यह क्रान्ति है मित्रों और सम्पूर्ण क्रान्ति है। विधान सभा का विघटन मात्र इसका उद्देश्य नहीं है। यह तो महज मील का पत्थर है। हमारी मंजिंल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है। केवल मन्त्रिमण्डल का त्याग पत्र या विधानसभा का विघटन काफी नहीं है, आवश्यकता एक बेहतर राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने की है। छात्रों की सीमित मांगें जैसे भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी का निराकरण, शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन आदि बिना सम्पूर्ण क्रान्ति के पूरी नहीं की जा सकती। इस व्यवस्था ने जो संकट पैदा किया है वह सम्पूर्ण और बहुमुखी (टोटल एण्ड मल्टीडायमेन्सनल) है, इसलिए इसका समाधान सम्पूर्ण और बहुमुखी ही होगा। व्यक्ति का अपना जीवन बदले, समाज की रचना बदले, राज्य की व्यवस्था बदले, तब कहीं बदलाव पूरा होगा, और मनुष्य सुख और शान्ति का मुक्त जीवन जी सकेगा। हमें सम्पूर्ण क्रान्ति चाहिए, इससे कम नहीं।“ 
विशाल जनसभा में जे.पी. ने पहली बार ”सम्पूर्ण क्रान्ति“ के दो शबदों का उच्चारण किया। क्रान्ति शब्द नया नहीं था, लेकिन ”सम्पूर्ण क्रान्ति“ नया था। गाँधी परम्परा में ”समग्र क्रान्ति“ का प्रयोग होता था। जे.पी. का ”सम्पूर्ण“, गाँधी का ”समग्र“ है।
आजीवन पद-प्रतिष्ठा से दूर रहकर ”सम्पूर्ण क्रान्ति“ के उद्घोषक और लोक साहित्य को जिवित रखने के लिए प्रयत्नशील महानतम व्यक्तित्व। इनकी दिशा से शेष कार्य यह है कि व्यक्ति के पूर्णता के लिए साहित्य तथा सम्पूर्ण, सर्वोच्च और अन्तिम व्यवस्था का सूत्र व व्याख्या प्रस्तुत हो ताकि लोक साहित्य तथा सम्पूर्ण क्रान्ति का इनका सपना पूर्ण हो जाये।

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण

क्रान्ति के प्रति विचार यह है कि- ”राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक परिस्थिति में उसकी स्वस्थता के लिए परिवर्तन ही क्रान्ति है, और यह तभी मानी जायेगी जब उसके मूल्यों, मान्यताओं, पद्धतियों और सम्बन्धों की जगह नये मूल्य, मान्यता, पद्धति और सम्बन्ध स्थापित हों। अर्थात क्रान्ति के लिए वर्तमान व्यवस्था की स्वस्थता के लिए नयी व्यवस्था स्थापित करनी होगी। यदि व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन में विवेक नहीं हो, केवल भावना हो तो वह आन्दोलन हिंसक हो जाता है। हिंसा से कभी व्यवस्था नहीं बदलती, केवल सत्ता पर बैठने वाले लोग बदलते है। हिंसा में विवेक नहीं उन्माद होता है। उन्माद से विद्रोह होता है क्रान्ति नहीं। क्रान्ति में नयी व्यवस्था का दर्शन - शास्त्र होता है अर्थात क्रान्ति का लक्ष्य होता है और उस लक्ष्य के अनुरुप उसे प्राप्त करने की योजना होती है। दर्शन के अभाव में क्रान्ति का कोई लक्ष्य नहीं होता।“
सम्पूर्ण क्रान्ति के लिए ही आविष्कृत है निम्न आविष्कार जिससे आपका सपना पूरा हो सके।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त एक ही सत्य-सिद्धान्त द्वारा व्यक्तिगत व संयुक्त मन को एकमुखी कर सर्वोच्च, मूल और अन्तिम स्तर पर स्थापित करने के लिए शून्य पर अन्तिम आविष्कार WS-0 श्रृंखला की निम्नलिखित पाँच शाखाएँ है। 
1. डब्ल्यू.एस. (WS)-0 : विचार एवम् साहित्य का विश्वमानक
2. डब्ल्यू.एस. (WS)-00 : विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक
3. डब्ल्यू.एस. (WS)-000 : ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
4. डब्ल्यू.एस. (WS)-0000 : मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
5. डब्ल्यू.एस. (WS)-00000 : उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक
और पूर्णमानव निर्माण की तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C है। 
और यह कार्य भी आपके जीवन की भाँति पद-प्रतिष्ठा से दूर रहकर एक आम नागरिक का अपने देश के प्रति कर्तव्य के आधार पर सम्पन्न किया गया है।

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