के. एस. सुदर्शन (18 जून, 1931 - 15 सितम्बर, 2012)
परिचय -
श्री के. एस. सुदर्शन (कुप्पाहाली सीतारमैया सुदर्शन) का जन्म 18 जून, 1931 को रायपुर, छत्तीसगढ़ प्रदेश के एक कन्नड़भाषी परिवार में हुआ था। वे जबलपुर के राजकीय इंजिनियरिंग महाविद्यालय (सागर विश्वविद्यालय) से दूरसंचार प्रौद्योगिकी में स्नातक की डिग्री प्राप्त किये। 16 जनवरी 2009 को मेरठ के शोभित विश्वविद्यालय ने उनको डाॅक्टर आॅफ आर्ट्स की मानद उपाधि से विभूषित किया।
वे 9 वर्ष के थे तब पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो एक हिन्दू राष्ट्रवादी एवं सामाजिक कल्याण का संगठन है, के सम्पर्क में आये। 1954 में उन्हें संघ के प्रचारक के रूप में रायगढ़ जिले में भेजा गया। 1964 में प्रान्त प्रचारक बनें। 1969 में वे अखिल भारतीय संगठनों के प्रमुखों के संयोजक नियुक्त हुए। 1979 में वे बौद्धिक प्रमुख के रूप में पदभार ग्रहण किये। 1990 के बाद वे संगठन के संयुक्त महासचिव बनें। वे विभिन्न अवसरों पर शारीरिक व बौद्धिक दोनो पदों पर एक साथ रहने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं।
श्री सुदर्शन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के 5वें सरसंघचालक थे। मार्च 2009 में श्री मोहन भागवत को 6वाँ सरसंघचालक नियुक्त कर स्वेच्छा से पदमुक्त हो गये। श्री सुदर्शन अपने पैतृक कन्नड़ के अलावा मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी, छत्तीसगढ़ी और कुछ उत्तर-पूर्व और बंगाल की भाषाओं में भी बोलते हैं।
”हिन्दू चिन्तन पर आधारित नई आचार संहिता बने।“
-श्री के. एस. सुदर्शन, प्रमुख राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ,
साभार - अमर उजाला, इलाहाबाद दि0 16-03-2000
लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
”हिन्दू धर्म में जब भी कोई महापुरूष व्यक्त होता है और वर्तमान से भूतकाल में चला जाता है तब वह राष्ट्रीय स्वयं संघ के अधीन पेटेण्ट हो जाता है। सिर्फ जपने के लिए। संघ का बुद्धि 75 वर्षो के अपने कार्यकाल के बाद हिन्दू धर्म के लिए सिर्फ यह व्यक्त करता है, वह भी स्वामी विवेकानन्द के 100 वर्षो बाद और द्वारिकापीठाधीष्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी के मई 1997 में वही व्यक्त करने के बाद कि हिन्दू चिन्तन पर आधारित नई आचार संहिता बने’ तो कोई नई बात नहीं और संघ को क्या कहा जाय। सिर्फ यही कहा जा सकता है कि भूतकाल को जपने वाले अन्ततः भूतकाल की ही बातें करते रहते हैं। फिर आप लोग कहते किससे है? भारतीय संस्कृति का ज्ञाता संघ को ही आचार संहिता बनाना चाहिए। नई आचार संहिता की बात पुरानी हो चुकी है वह भूतकाल बन आपके समक्ष है। अब आपको क्या करना है? यह सोचें। महोदय इसमें आपकी गलती नहीं है। एक ही स्थिति, एक ही विषय, एक ही चिन्तन इत्यादि में लम्बे अवधि तक पड़े रहने से बुद्धिबद्ध हो जाती है। सोचिये संघ ने देश में कितने बुद्धि बद्धों का निर्माण कर दिया है सर्वप्रथम संघ, हिन्दू को भारत की सीमारेखा से परे भी देखना प्रारम्भ करें। आप सभी तो अनेक मत-सम्प्रदायों के समन्वयक-समन्वयाचार्य श्रंृखला के श्रीकृष्ण, श्रीरामकृष्ण, परमहंस और स्वामी विवेकानन्द के भी चित्र लगाते है और जपते है। सोचिये ऐसा क्यों हुआ? और भारत के इस अन्तिम कार्य में कौन किसके समक्ष समर्पण करेगा या कोई किसी के समक्ष समर्पण न करते हुये ”एक तरफ में रहूँ और दूसरी तरफ मेरी सेना रहे“ द्वारा कार्य सम्पन्न किया जाय। क्योंकि श्रेय को संघ तो खो चुका है ध्येय वह निश्चित रूप से प्राप्त करेगा यह मेेरा आशीर्वाद है“
No comments:
Post a Comment