Thursday, March 26, 2020

विश्वमानव और विश्वनाथ प्रताप सिंह (25 जून, 1931 - 27 नवम्बर, 2008)

विश्वनाथ प्रताप सिंह (25 जून, 1931 - 27 नवम्बर, 2008)

परिचय -
विश्वनाथ प्रताप सिंह, भारत गण्राज्य के 8वें प्रधानमन्त्री थे। उनका शासन काल 2 दिसम्बर, 1989 से 10 नवम्बर, 1990 तक ही चला। वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री भी रह चुके हैं और वे माण्डा, उत्तर प्रदेश के 41वें राजा बहादुर थे।
विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून, 1931 को गढवाली राजपूत (राठौड़) दैया के राजा भगवती प्रसाद सिंह के परिवार में हुआ था और 1936 में माण्डा के राजा बहादुर राम गोपाल सिंह द्वारा गोद लिए गये फिर 1941 में राजा बहादुर बनें। वे 5 वर्ष देहरादून के कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल में शिक्षा प्राप्त किये। उन्होंने नेहरू युग के दौरान इलाहाबाद से राजनीति में प्रवेश लिया। देवगढ़, उदयपुर के रावत संग्राम सिंह की 1936 में जन्मी द्वितीय पुत्री रानी सीता कुमारी के साथ उनका विवाह 25 जून, 1955 को हुआ। जल्द ही वे राज्य कांग्रेस पार्टी मंे अपना एक स्थान बना लिए। वे इन्दिरा गाँधी द्वारा सन् 1980 में उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री नियुक्त किये गये। उन्होंने उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों से डकैती उन्मूलन के लिए घोषणा की। 1983 में कुछ डकैतों के आत्म समर्पण के बावजूद वे खुद को लक्ष्य में सफल नहीं समझें और उन्होंने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की जिससे उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रचार मिला। 1984 में राजीव गाँधी के भारी बहुमत से जीतने के बाद उन्हें केन्द्र में बुलाकर वित मंत्री बनाया गया। अपने कार्यकाल के दौरान वे सोने की तस्करी को कम किये और भूरे लाल की अध्यक्षता में प्रवर्तन निदेशालय को शक्तिशाली बनाया। परिणामस्वरूप उच्चस्तरीय व्यक्तियों जिसमें धीरूभाई अम्बानी और अमिताभ बच्चन भी थें, के यहाँ कर के मामले में छापे पड़े। जिससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ी फिर उन्हें रक्षा मंत्रालय का मन्त्री बनाया गया। बोफोर्स रक्षा सौदे में घोटाले से उत्पन्न स्थिति में उन्हें रक्षा मन्त्री से हटाया गया, जबाब में उन्होंने कांग्रेस पार्टी और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
अपने सहयोगियों अरूण नेहरू और आरिफ मोहम्मद खान के साथ मिलकर उन्होंने एक विपक्षी पार्टी- जन मोर्चा का गठन किया। वे इलाहाबाद से सुनील शास्त्री को हराकर फिर लोकसभा के लिए चुन लिये गये। वर्ष 1988 में मूल जनता दल के आध्यात्मिक नेता जय प्रकाश नारायण के जन्मदिन 11 अक्टुबर के दिन उनहोंने जनता पार्टी, लोकदल और कांग्रेस (एस) के विलय के साथ जनता दल जन मोर्चा का गठन किया। राजीव गाँधी सरकार के विरोधी दलों को एक साथ लाने के लिए उन्होंने नेशनल फ्रंट नाम से गठबन्धन बनाया जिसके संयोजक स्वयं और अध्यक्ष एन.टी.रामाराव थे। इस गठबन्धन में जनता दल, द्रमुक, तेदेपा और अगप सहित अनेक क्षेत्रीय राजनीतिक दल साथ थे। 1989 में नेशनल फ्रन्ट ने लोकसभा में साधारण बहुमत हासिल की और सरकार बनाने का निर्णय किया जिसमें वे थोड़े से कार्यकाल के लिए प्रधानमन्त्री बनें। इनके कार्यकाल में गृहमन्त्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की पुत्री का अपहरण हुआ था जिसके बदले आतंकवादीयों को रिहा करने के लिए सहमत होना पड़ा था।
विश्वनाथ प्रताप सिंह, सामाजिक न्याय के लिए ऐतिहासिक रूप से अन्य पिछड़े वर्गो के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के सभी नौकरियों में मण्डल आयोग के सिफारिशों को लागू कराने के लिए आन्दोलन किये, जो पूरे देश में काफी विरोध के बाद लागू हुआ। विश्वनाथ प्रताप सिंह का गुर्दे की विफलता से लम्बे संघर्ष के बाद 27 नवम्बर, 2008 को निधन हो गया। उनके बेटे अजय सिंह द्वारा इलाहाबाद में गंगा तट पर 29 नवम्बर को अन्तिम संस्कार किया गया। उसके बाद जनमोर्चा को जून, 2009 में राष्ट्रीय जन मोर्चा का नाम दिया गया जिसे राष्ट्रीय राजनीति में तीसरा विकल्प बनाने के लिए नाम दिया गया था परन्तु एक महीने बाद उसका भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय की घोषणा कर दी गई।

लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण               
स्वस्थ समाज, स्वस्थ लोकतंत्र और स्वस्थ उद्योग सहित एकता, समता, शान्ति, स्थिरता युक्त सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त द्वारा भारत को इन कठिन चुनौतियों के दिनों में विश्व को नई दिशा देने का दायित्व और विश्व के नेतृत्व के लिए शक्तिशाली बना सके वह सब सर्वाभौम सत्य-सिद्धान्त यहाॅ है। और मैं न नेता हूॅ, न ही आन्दोलन कत्र्ता। मैं हूॅ एक, भारत सहित विश्व का आम नागरिक, जिसने अपना कर्तव्य समझकर देश की ओर से विश्व को कुछ देने के लिए थोड़ा प्रयत्न, स्वयं को कठिन परिस्थितियों में डालकर भी कर रहा हूॅ। परिणामस्वरूप स्थिर सरकार प्राप्त होकर भी व्यवस्था परिवर्तन, तन्त्र परिवर्तन, विचार परिवर्तन और कर्मज्ञान जैसा मूल आवश्यक विषय स्थापित नहीं हो पायेगी। जिससे भारत की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन की सम्भावना नहीं दिखाई पड़ती। वर्तमान संसद की हालत भी तो यह है कि ‘मृत्यु’ जैसा सत्य विषय जिसे व्यक्ति प्रतिदिन देखता है यदि यह मुद्दा कि ‘मृत्यु सत्य है’ मानने के लिए संसद में प्रस्ताव आये तो वह भी विवाद में पड़कर पारित नहीं हो पायेगा। इसलिए आवश्यक है कि या तो सभी दल मिलकर सार्वजनिक सत्य पर आधारित धर्मनिरपेक्ष एवम् सर्वधर्मसमभाव विश्वमानक-शून्य श्रंृखला: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक की विश्वव्यापी स्थापना प्राथमिकता के आधार पर करें। या किसी एक दल को यह सर्वोच्च मुद्दा सौंपकर भयंकर राजनीतिक ज्वार भाटा ला दिया जाये।
जाति आधारित आरक्षण पर समाजिक समानता लाने का प्रयत्न सामयिक होना चाहिए या उसका लाभ प्राप्त हो जाने के उपरान्त जीवन स्तर उठ जाने के बाद उससे वंचित करने का भी प्राविधान होना चाहिए। देश के स्वतन्त्रता के समय जातिगत आरक्षण की आवश्यकता थी और वह सीमित समय के लिए ही लागू किया गया था परन्तु राजनीतिक लाभ के कारणों से वह वर्तमान तक लागू है। हम समाज से मनुवादी व्यवस्था को समाप्त करने की बात करते हैं परन्तु एक तरफ आज समाज इससे धीरे-धीरे मुक्त हो रहा है और दूसरी तरफ संविधान ही इसका समर्थक बनता जा रहा है। ऐसी स्थिति में आरक्षण व्यवस्था का मापदण्ड जाति आधारित से शारीरिक, आर्थिक और मानसिक आधारित कर देनी चाहिए जो धर्मनिरपेक्ष और सर्वधर्मसमभाव भी है और लोकतन्त्र का धर्म भी धर्मनिरपेक्ष और सर्वधर्मसमभाव है। 
किसी व्यक्ति के बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है कि उसे भोजन, स्वास्थ्य और निर्धारित आर्थिक आय को सुनिश्चित कर दिया जाय और यह यदि उसके शैक्षिक जीवन से ही कर दिया जाय तो शेष सपने को वह स्वयं पूरा कर लेगा। यदि वह नहीं कर पाता तो उसका जिम्मेदार भी वह स्वयं होगा, न कि अभिभावक या ईश्वर। और यही सबसे बड़ा आरक्षण होगा।


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