Thursday, March 26, 2020

विश्वमानव और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (15 अक्टुबर, 1931 - 27 जुलाई 2015)

ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (15 अक्टुबर, 1931 - 27 जुलाई 2015)

परिचय -
अवुल पाकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम, जिन्हें आमतौर पर डाॅ0 ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम से जाना जाता है, भारत के पूर्व राष्ट्रपति और जाने माने वैज्ञानिक और अभियंता हैं।
तमिलनाडु प्रदेश के धनुषकोडी गाँव के एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में 15 अक्टुबर, 1931 को जन्में कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नालाॅजी से अंतरीक्ष विज्ञान में स्नातक उपाधि प्राप्त की। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिए भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र में आये जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एस.एल.वी-3 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1980 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। 1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में वापस निदेशक के तौर पर आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान ”गाइडेड मिसाइल“ के विकास पर केन्द्रित किया। अग्नि मिसाइल और पृथ्वी मिसाइल का सफल परीक्षण का श्रेय काफी कुछ उन्हीं को है। जुलाई 1992 में वे भारतीय रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त हुये। उनकी देखरेख में भारत ने 1998 में पोखरण में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया और भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों की सूची में शामिल हुआ।
अब्दुल कलाम को भारत सरकार द्वारा 1981 में प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में पद्य्म भूषण से, 1990 में पद्य्म विभूषण तथा 1997 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 18 जुलाई, 2002 को डाॅ0 कलाम को 90 प्रतिशत बहुमत द्वारा भारत का राष्ट्रपति चुना गया और उन्होंने 25 जुलाई, 2002 को अपना पदभार ग्रहण किया। इस पद पर आने वाले वे पहले अविवाहित थे। इस पद के लिए उनका नामांकन उस समय सत्तासीन राष्ट्रीय प्रजातान्त्रिक गठबन्धन की सरकार ने किया था जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन हासिल हुआ था। वामपंथी दलों ने अपनी तरफ से 87 वर्षीया श्रीमती लक्ष्मी सहगल का नामांकन किया था जो सुभाषचन्द्र बोस के आजाद हिन्द फौज में और द्वितीय विश्व युद्ध में अपने योगदान के लिए जानी जाती हैं।
डाॅ0 कलाम अपने व्यक्तिगत जीवन में पूरी तरह अनुशासन, शाकाहार और ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों में से हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे कुरान और भगवद्गीता दोनों का अध्ययन करते हैं। कलाम ने कई स्थानों पर उल्लेख किया है कि वे तिरूक्कुराल का भी अनुसरण करते हैं। राजनैतिक स्तर पर कलाम की चाहत है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका का विस्तार हो और भारत ज्यादा से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाये। भारत को महाशक्ति बनने की दिशा में कदम बढ़ाते देखना उनकी दिली चाहत है। उन्होंने कई प्रेरणास्पद पुस्तकों की भी रचना की है और वे तकनीकी को भारत के जनसाधारण तक पहुँचाने की हमेशा वकालत करते रहें हैं। बच्चों और युवाओं के बीच डाॅ0 कलाम अत्यधिक लोकप्रिय हैं। 

”अच्छी शिक्षा व्यवस्था ही प्रबुद्ध नागरिक पैदा करती है, बच्चों को नेतिक शिक्षा प्रदान की जाय और रोजगार के नये अवसर पैदा किये जायें, राष्ट्रीय शान्ति व सार्वभौमिक सद्भाव के लिए सभी धर्म आध्यात्मिक आन्दोलन में शामिल हो जायें“
-श्री ए.पी.जे, अब्दुल कलाम, पूर्व राष्ट्रपति, भारत 
साभार - दैनिक जागरण, सम्पादकीय, वाराणसी, दि0 8 दिसम्बर 2002

लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
अच्छी शिक्षा व्यवस्था नहीं बल्कि अच्छा ”शिक्षा पाठ्यक्रम“ प्रबुद्ध नागरिक पैदा करती है। जब शिक्षा पाठ्यक्रम ही ऐसा रहेगा कि शिक्षार्थी के जीवन से तालमेल ही न मिले तो प्रबुद्ध नहीं बल्कि बुद्धि-बद्ध प्रकार के नागरिक पैदा होगें। शिक्षा क्षेत्र का यह दुर्भाग्य है कि जीवन से जुड़ा इतना महत्वपूर्ण विषय ”व्यापार“, को हम एक अनिवार्य विषय के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल नहीं कर सकें। इसकी कमी का अनुभव उस समय होता है जब कोई विद्यार्थी 10वीं या 12वीं तक की शिक्षा के उपरान्त किसी कारणवश जैसा कि अधिकतर होता है, आगे की शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाता। फिर उस विद्यार्थी द्वारा पढ़े गये विज्ञान व गणित के वे कठिन सूत्र उसके जीवन में अनुपयोगी लगने लगते है। यदि वहीं वह व्यापार के ज्ञान से युक्त होता तो शायद वह जीवकोपार्जन का कोई मार्ग सुगमता से खोजने में सक्षम होता।
अच्छा ”शिक्षा पाठ्यक्रम“ नहीं बल्कि अब ”पूर्ण शिक्षा पाठ्यक्रम“ अर्थात ”सत्य मानक शिक्षा“ की आवश्यकता आ गई है। जिससे शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों ही प्रबुद्ध हों जिससे अपने आप ही प्रबुद्ध नागरिक और नैतिक शिक्षा दोनों का ही कार्य सम्पन्न हो जाये। प्रबुद्ध नागरिक पैदा होने से स्वतः ही रोजगार के नये-नये क्षेत्र रचनात्मक-सकारात्मक दिशा से उत्पन्न होने लगेंगे। मनुष्य की व्यस्तता बढ़ती जा रही है। सभी को कम समय में बहुत कुछ चाहिए। तो ऐसी शिक्षा की भी जरूरत है जो कम समय में पूर्ण शिक्षित बना दे। एक व्यक्ति सामान्यतः यदि स्नातक (ग्रेजुएशन) तक पढ़ता है तो वह कितने पृष्ठ पढ़ता होगा और क्या पाता है? विचारणीय है। एक व्यक्ति इंजिनियर व डाॅक्टर बनने तक कितना पृष्ठ पढ़ता है? यह तो होती है कैरियर की पढ़ाई इसके अलावा कहानी, कविता, उपन्यास, फिल्म इत्यादि के पीछे भी मनुष्य अपना समय मनोरंजन के लिए व्यतीत करता है। और सभी एक चमत्कार के आगे नतमस्तक हो जाते हैं तो पूर्ण मानसिक स्वतन्त्रता और पूर्णता कहाँ है? विचारणीय विषय है। 
कुल मिलाकर जो व्यक्ति या देश केवल आर्थिक उन्नति को ही सर्वस्व मानता है वह व्यक्ति या देश एक पशुवत् जीवन निर्वाह के मार्ग पर है-जीना और पीढ़ी बढ़ाना। दूसरे रूप में इसे ऐसे समझा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति जिनका लक्ष्य धन रहा था वे अपने धन के बल पर अपनी मूर्ति अपने घर पर ही लगा सकते हैं परन्तु जिनका लक्ष्य धन नहीं था, उनका समाज ने उन्हें, उनके रहते या उनके जाने के बाद अनेकों प्रकार से सम्मान दिया है और ये सार्वजनिक रूप से सभी के सामने प्रमाणित है। पूर्णत्व की प्राप्ति का मार्ग शारीरिक-आर्थिक उत्थान के साथ-साथ मानसिक-बौद्धिक उत्थान होना चाहिए और यही है ही। इस प्रकार भारत यदि पूर्णता व विश्व गुरूता की ओर बढ़ना चाहता है तब उसे मात्र कौशल विकास ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय बौद्धिक विकास की ओर भी बढ़ना होगा। बौद्धिक विकास, व्यक्ति व राष्ट्र का इस ब्रह्माण्ड के प्रति दायित्व है और उसका लक्ष्य है।
राष्ट्र के पूर्णत्व के लिए पूर्ण शिक्षा निम्नलिखित दो शिक्षा का संयुक्त रूप है-

अ - सामान्यीकरण (Generalisation) शिक्षा - यह शिक्षा व्यक्ति और राष्ट्र का बौद्धिक विकास कराती है जिससे व्यक्ति व राष्ट्रीय सुख में वृद्धि होती है।

ब - विशेषीकरण (Specialisation) शिक्षा - यह शिक्षा व्यक्ति और राष्ट्र का कौशल विकास कराती है जिससे व्यक्ति व राष्ट्रीय उत्पादकता में वृद्धि होती है।

वर्तमान समय में विशेषीकरण की शिक्षा, भारत में चल ही रहा है और वह कोई बहुत बड़ी समस्या भी नहीं है। समस्या है सामान्यीकरण शिक्षा की। व्यक्तियों के विचार से सदैव व्यक्त होता रहा है कि - मैकाले शिक्षा पद्धति बदलनी चाहिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति व पाठ्यक्रम बनना चाहिए। ये तो विचार हैं। पाठ्यक्रम बनेगा कैसे?, कौन बनायेगा? पाठ्यक्रम में पढ़ायेगें क्या? ये समस्या थी। और वह हल की जा चुकी है। जो भारत सरकार के सामने सरकारी-निजी योजनाओं जैसे ट्रांसपोर्ट, डाक, बैंक, बीमा की तरह निजी शिक्षा के रूप में पुनर्निर्माण - सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग द्वारा पहली बार इसके आविष्कारक द्वारा प्रस्तुत है।
”राष्ट्रीय शान्ति व सार्वभौमिक सद्भाव के लिए सभी धर्म आध्यात्मिक आन्दोलन में शामिल हो“, आपका यह कथन सत्य आवश्यकता है परन्तु यह सबसे अधिक कठिन कार्य है। एक व्यक्ति का समर्थन वोट द्वारा पूरा विश्व कर सकता है परन्तु धार्मिक-राजनीतिक नेताओं का साथ आकर आध्यात्मिक आन्दोलन करना असम्भव है। क्योंकि आध्यात्मिक आन्दोलन का अर्थ है - आजादी या स्वतन्त्रता। वर्तमान की स्थिति यह है कि व्यक्ति के उपर व्यक्ति, समाज, मत, सम्प्रदाय, राजनीतिक दल इत्यादि अपने स्वयं के उद्देश्य के लिए व्यक्ति के मन का निर्माण कर रहे हैं। और उनका उपयोग/दुरूपयोग अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कर रहे हैं। ऐसे में कौन समाज, मत, सम्प्रदाय, राजनीतिक दल चाहेगा कि उसके अनुयायी, समर्थक, भक्त मानसिक स्वतन्त्रता की ओर गति करें। यहाँ तो समाज, मत, सम्प्रदाय के नेतागण दूसरे के साहित्य को भी पढ़ने से मना कर रखे हैं। इसलिए ”पूर्ण शिक्षा पाठ्यक्रम“ अर्थात ”सत्य मानक शिक्षा“ ही आध्यात्मिक आन्दोलन एक मात्र उपाय है, जो राष्ट्र की विवशता भी है।


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