अशोक सिंघल ( 27 सितम्बर 1926 - 17 नवम्बर 2015)
परिचय -
डाॅ0 हेडगेवार जी द्वारा सन् 1925 की विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना करते समय संघ का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वाधीनता था। जो स्वाधीनता प्राप्त होने के बाद दार्शनिक हिन्दू, हिन्दू राष्ट्रवाद, हिन्दूत्व, एकात्म मानववाद, राम जन्मभूमि, अविभाजित भारत (अखण्ड भारत), समान नागरिक संहिता जैसे उद्देश्यों में परिवर्तित हो गया। जिसके प्राप्ति हेतू संघ परिवार में अनेक संगठन बने जैसे- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, राष्ट्र सेविका समिति, भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, राष्ट्रीय सिख संगत, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, भारतीय मजदूर संघ, हिन्दू मुन्नानी, हिन्दू स्वयंसेवक संघ, स्वदेशी जागरण मंच, दुर्गा वाहिनी, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, बालागोकुलम्, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, हिन्दू विवके केन्द्र, राम जन्मभूमि न्यास। जिसमें डाॅ0 के.बी.हेडगेवार, माधव सदाशिव गोलवलकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय, मधुकर दत्तात्रेय देवरस, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, राजेन्द्र सिंह, अशोक सिंघल, के.एस.सुदर्शन, प्रवीण तोगड़िया, मोहन भागवत, नरेन्द्र मोदी जैसे नेतृत्वकर्ताओं ने नेतृत्व किया। संघ परिवार की अनेक पत्र-पत्रिकाएँ हैं जिसे पान्चजन्य, देवपुत्र (बाल पत्रिका) तथा आब्जर्वर प्रमुख हैं।
अशोक सिंघल, विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। सिंघल अग्रवाल वैष्य परिवार में बिजौली, अतरौली, जिला अलीगढ़ उत्तर प्रदेश में जन्म लिये। राम जन्मभूमि आन्दोलन में वे प्रमुख थे। उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरित माना जाता है क्योंकि विश्व हिन्दू परिषद्, संघ परिवार का ही संगठन है।
”हिन्दू-बौद्ध एकता से विश्व में बढ़ते ईसाइयों और इस्लाम के विस्तारवादी मनोवृत्ति को रोकने में निश्चित रूप से सफलता“ (लुम्बीनी में आयोजित सभा में)
- श्री अशोक सिंघल, अन्तर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष, विश्व हिन्दू परिषद
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी दि- 20-01-2000
लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
”महोदय, हिन्दूभाव और धर्म सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित है। सत्य सर्वव्यापक, सर्वविद्यमान और सर्वशक्तिमान होता है परिणामस्वरूप हिन्दू धर्म भी सर्वशक्तिमान है। बस अन्तर होता है उसकी व्यापकता के प्रक्षेपण में। आप सब हिन्दू-हिन्दू चिल्लाते हैं उससे कहीं कम समय चिन्तन, मनन, कालानुसार रूपान्तरण पर प्रयत्न किये होते तो धर्मो की एकता और दूसरे धर्मो को रोकने की उन्मादी प्रवृत्ति से युक्त शब्द वेदी वक्तव्य बोलने की आवश्यकता ही न पड़ती वरन् वर्तमान समय में स्थापित करने की आवश्यकता पड़ती। किसी धर्म को रोकने की आवश्यकता नहीं, सभी को आत्मसात् अर्थात अपने व्यापक स्वरूप में लपेट लेने की आवश्यकता है। अब तो कालानुसार रूपान्तरण भी हो चुका है। अब तो कम से कम स्थापना के लिए कर्मो से न सही शब्दों से ही सही, लग तो जाइये।“
हिन्दू - बौद्ध एकता के सम्बन्ध में ही स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने अन्तिम समय में जो कहा था वह पूर्ण हो चुका है और सार्वभौम एकीकरण के लिए सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित नव हिन्दू धर्म अपने शास्त्र - विश्वशास्त्र के साथ व्यक्त है।
”बौद्ध धर्म और नव हिन्दू धर्म के सम्बन्ध के विषय में मेरे विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। उन विचारों को निश्चित रुप देने के लिए कदाचित् मैं जिवित न रहूँ परन्तु उसकी कार्य प्रणाली का संकेत मैं छोड़ जाऊँगा और तुम्हें और तुम्हारे भातृ-गणों को उस पर काम करना होगा। (पत्रावली भाग-2, पृष्ठ-310) - स्वामी विवेकानन्द
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