21 दिसम्बर, 2012 को सर्वनाश नहीं बल्कि पाँचवें युग - स्वर्ण युग और सत्यकाशी तीर्थ प्रकट हुआ है
(सन् 2011 ई0 में श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा अपने निवास - नियामतपुर कलाँ, पुरूषोत्तमपुर, मीरजापुर (सत्यकाशी क्षेत्र) (उ0प्र) भारत, पिन-231217 में दिया गया वक्तव्य)
नियामतपुर कलाँ, श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ ने यहाँ अपने निवास स्थान पर बताया कि 21 दिसम्बर, 2012 को मायां कैलेण्डर के व्याख्याकारों के अनुसार दुनिया का सर्वनाश होगा। परन्तु ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। बल्कि उस दिन से युग परिवर्तन का समय ”विश्वशास्त्र“ के माध्यम से और सत्यकाशी तीर्थ का निर्माण प्रारम्भ हो जायेगा। कितना विचित्र संयोग है कि विन्ध्य क्षेत्र से ही भारत का मानक समय निर्धारित होता है और इसी क्षेत्र से युग परिवर्तन की घोषणा हो रही है। यह भी विचित्रता ही है कि व्यासजी द्वारा काशी को शाप देने के कारण विश्वेश्वर ने व्यासजी को काशी से निष्कासित कर दिया था और वे गंगा पार आ गये और गंगा पार से ही उनके बाद विश्वशास्त्र रचना हुई है।
जिस प्रकार त्रेतायुग से द्वापरयुग में परिवर्तन के लिए वाल्मिकि रचित ”रामायण“ आया, जिस प्रकार द्वापरयुग से कलियुग में परिवर्तन के लिए महर्षि व्यास रचित ”महाभारत“ आया उसी प्रकार कलियुग से पाँचवें युग-स्वर्णयुग में परिवर्तन के लिए ”विश्वशास्त्र“ सत्यकाशी क्षेत्र से भारत और विश्व को दिया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि इस कार्य से सम्बन्धित तीन क्षेत्र हैं- विश्वशास्त्र, सत्यकाशी क्षेत्र जो वाराणसी-विन्ध्याचल-शिवद्वार-सोनभद्र के बीच का क्षेत्र है और स्वयं इसका रचनाकार। तीनांे आपस में ऐसे जुड़े हुए हैं कि एक की स्थापना से सभी स्थापित हो जायेंगे। आधुनिक तकनीकी ज्ञान न होने और कार्य की नीति क्षेत्रवासियों के समाने स्पष्ट न होने से उन्हें यह कार्य असम्भव सा लगता है। क्षेत्रवासियों को यह जानना चाहिए कि मैं इस क्षेत्र का कम्प्यूटर तकनीकी शिक्षा ग्रहण करने वाला प्रथम व्यक्ति (सन् 1988 में) हूँ। वह भी प्रोग्रामिंग और सिस्टम एनालिसिस में जो आजकल इंजिनियरिंग पाठ्यक्रम का विषय बन चुका है। इसलिए हमारी कार्य प्रणाली अलग ढंग की है। अभी आप जो सूचना सुन रहें हैं, वह देश के सभी समाचार पत्रों के सम्पादक, पत्रकार, धार्मिक-सामाजिक-राजनीतिक संस्था, पर्यटन विभाग, लेखकगण इत्यादि लगभग 8000 को ई-मेल से पहले ही पहुँच चुका है। इसलिए ये न समझें कि सिर्फ मैं ही सुन-जाऩ रहा हूँ। संसार इस कार्य और सत्यकाशी को पहले जान रहा है और आपको बाद में पता चल रहा है।
सत्यकाशी क्षेत्र का इतिहास और इसकी आध्यात्मिक विरासत अत्यन्त समृद्ध है। जरूरत थी इसकी समृद्धि पर एक ऐसे प्रोजेक्ट की जो इसे क्षेत्र को ऐसे उद्योग में स्थापित कर दे जो बीघे-विस्से में बँट रहे यहाँ के परिवार के सामने रोजगार के अन्तहीन मार्ग को खोल दे। आप सिर्फ अपने परिवार के बच्चे के प्रति चिन्तित हैं, मैं पूरे क्षेत्र के बच्चों के प्रति चिन्तित हूँ। यही आप में और मुझमें अन्तर है। सत्यकाशी क्षेत्र व्यापारिक शिक्षा संस्थानों से परिपूर्ण है। मैं यह चाहता हूँ कि इस क्षेत्र के विद्यार्थी विश्वशास्त्र के माध्यम से पूर्ण ज्ञान से युक्त और मानसिक रूप से स्वतन्त्र हों क्योंकि यह क्षेत्र हमारे प्रत्यक्ष कर्म का क्षेत्र है। विश्वशास्त्र में ब्रह्माण्ड और पृथ्वी की स्थिति सहित सभी धर्मो, दर्शनों, अवतारों और उनके संस्थापकों के ज्ञान, सभी देवी-देवताओं की शक्तियाँ और उत्पत्ति का कारण व कथा, महर्षि व्यास के पौराणिक कथा लेखन कला रहस्य का पहली बार खुलासा, पृथ्वी पर चल रहें अनेकों प्रकार के व्यापार इत्यादि के समावेश के साथ, वर्तमान और भविष्य की आवश्यकता का सम्पूर्ण प्रक्रिया उपलब्ध है। द्वापरयुग में भी सभी विचारों का एकीकरण कर एक शास्त्र ”गीता“ बनाया गया था। गीता, ज्ञान का शास्त्र है जबकि विश्वशास्त्र ज्ञान समाहित कर्मज्ञान का शास्त्र है। गीता, प्रकृति (सत्व, रज और तम ) गुणों से ऊपर उठकर ईश्वरत्व से एकाकार की शिक्षा देती है जबकि विश्वशास्त्र उससे आगे ईश्वरत्व से एकाकार के उपरान्त ईश्वर कैसे कार्य करता है उस कर्मज्ञान के बारे में बताती है। आप चुनार क्षेत्र के लोग अपने दक्षिण दिशा के लोंगो को ”दखिनहाँ“ कहते हैं परन्तु आप लोंगो को मालूम होना चाहिए कि आप काशी (वाराणसी) के लिए ”दखिनहाँ“ हैं। पहले आप काशी के बराबर बनें। इस बराबरी का नाम ही सत्यकाशी है। भगवान बुद्ध ने बुद्धि, संघ और धर्म के शरण में जाने की शिक्षा दी थी। विश्वशास्त्र बुद्धि का सर्वोच्च उदाहरण है। श्रीराम के कारण चित्रकूट पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र बना, श्रीकृष्ण के कारण मथुरा, द्वारिका पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र बना, भगवान बुद्ध के कारण सारनाथ, कुशीनगर, बोधगया पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र बना। ”विश्वशास्त्र“ के कारण सत्यकाशी स्थापित है। भगवान बुद्ध के कारण काशी के उत्तर में काशी का प्रसार हुआ, विश्वशास्त्र के कारण काशी के दक्षिण में काशी का प्रसार हो रहा है। अभी पिछले महीने में जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी ने दण्डी स्वामी शिवानन्द द्वारा लिखित और उनके द्वारा खोज पर आधारित पुस्तक ”वृहद चैरासी कोस परिक्रमा“ का श्री विद्यामठ में विमोचन किये हैं। सत्यकाशी क्षेत्र के निवासीयों को जानना चाहिए कि इस चैरासी कोस परिक्रमा में सत्यकाशी क्षेत्र के भाग वैकुण्ठपुर (नरायनपुर), शिवषंकरी धाम व चुनार भी शामिल हैं। यदि आप पर्यटन उद्योग को समझते होंगे तो आपको यह मालूम होना चाहिए कि यह फैक्ट्री की भाँति बन्द नहीं होता। ”सत्यकाशी“ नाम किसी व्यक्ति का नाम नहीं, यह तो पूरे क्षेत्र का नाम है, न ही यह ”म्यूजिकल वाटर पार्क“ जैसी आम जनता को कुछ भी लाभ न देने वाली योजना है। आगे के वर्षों में पूर्वांचल राज्य का बनना तय है। ऐसे में मीरजापुर जिले से अलग होकर चुनार भी एक जिला बन सकता है। जिसके नाम का निर्धारण ”चुनार गढ़“, ”चरणाद्रि“, ”नैनागढ़“, ”सत्यकाशी“ इत्यादि या इनको मिलाकर नाम निर्धारण पर भी विचार करने की आवश्यकता आ गई है।
हम सभी साधारण जीवन में ऐसा देखते हैं कि जहाँ कहीं भी कोई फैक्ट्री या नगर निर्माण का कार्य प्रारम्भ हो जाता है। वहाँ एक अलग ही दुनियाँ बसने लगती है और एक व्यापक जन समुदाय को अपने जीवन संचालन के लिए मार्ग प्राप्त हो जाता है। जो किसी जाति, सम्प्रदाय या धर्म आधारित नहीं होती। वह सिर्फ व्यक्ति की योग्यता पर आधारित और वह पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए होती है।
चुनार व मड़िहाऩ विधान सभा क्षेत्र को विकसित बनाने वाला प्रस्तावित ”सत्यकाशी नगर“ प्रत्येक दिन एक-एक कदम बढ़ रहा है और उसका नामकरण यूँ ही नहीं बल्कि वह वर्तमान की उपलब्धि, व्यापक पौराणिक आधार व कारण लिए हुए है। काशी (वाराणसी) के पास अब टाउनशिप के विकास के लिए बड़ी जमीन नहीं बची है। उन्हें पर्यटन के लिए चुनार व मीरजापुर के सिद्ध पहाड़ी क्षेत्र में ही आना होगा। काशी के विभिन्न धार्मिक संस्थाओं के लिए भी हर प्रकार से यह क्षेत्र सुयोग्य है। चुनार क्षेत्रवासियों को अपने इतिहास को जानना चाहिए क्योंकि संसार में वो ही व्यक्ति, नाम एवं स्थान अमरता व विकास को प्राप्त होता है जिसका पौराणिक इतिहास हो या विश्व ऐतिहासिक कार्य हो, शेष सभी पशु-पक्षियों व कीड़ांे-मकोड़ों के भाँति आते हैं और चले जाते हैं।
आप सभी इस गलतफहमी में कभी न पड़े कि इस योजना को हमने प्रस्तुत किया है तो इसके निर्माण की जिम्मेदारी भी हमारी है। यह उसी भाँति है जिस प्रकार एक मकान के नक्शे को बनाने वाले के पास अनेकों प्रकार के नक्शे होते है या आपके जमीन के अनुसार नक्शा बनाता है और आप उसे लेकर अपना मकान बनाते हंै। चुनार क्षेत्र के समग्र विकास के लिए एक नक्शा प्रस्तुत कर दिया गया है और आप सभी अपना घर स्वयं बना लें, या उनसे कहें जिन्हें आप अपना बहुमूल्य वोट देते हंै और पीछे-पीछे अपने व्यक्तिगत स्वार्थ व हित के लिए लगे रहते हैं। हम केवल आपको उस नक्शे से परिचय मात्र करा रहे हंै जिससे इस क्षेत्र को पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए खुशहाली का मार्ग प्राप्त हो जाये। इस क्षेत्र के लिए हमारे कार्य की सीमा यहीं समाप्त होती है क्योंकि इससे जिन ईंट, गिट्टी, सीमेण्ट, बालू, भूमि इत्यादि के व्यापारी को लाभ है अगर वे नहीं सोचेंगे तो मुझे कोई लाभ नहीं है। मैं इस प्रकार का व्यापारी नहीं हूँ। ऐसा कार्य करने वाला जे.पी. ग्रुप आपके क्षेत्र में है। यहाँ के लोगों व अधिवक्ताओं को सम्पर्क कर प्रस्ताव देना चाहिए क्योंकि इससे कचहरी कार्य में भी तेजी आयेगी। मुझे सिर्फ सत्यकाशी क्षेत्र से मतलब है, नगर निर्माण से नहीं। बी.एच.यू. के दक्षिणी परिसर को मालवीय जी के सपनों को साकार करने हेतु उसे स्वतन्त्र बनाकर नाम ”सत्यकाशी हिन्दू विश्वविद्यालय“ करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
हमारे कार्य की स्थिति यह है कि एक तरफ देश के सामाजसेवी और राजनेता व्यवस्था परिवर्तन के लिए अनशन और रथयात्रा कर रहें है जिनके पास ऐसा करने का कोई प्रारूप नहीं है, और दूसरी तरफ इसका पूर्ण प्रारूप ”विश्वशास्त्र“ के रूप में यहाँ उपलब्ध है। जिसे एक मार्केटिंग कम्पनी से एग्रीमेण्ट कर उसे देश भर में वितरण करने के लिए दे दिया गया है। साथ ही 1. पूर्ण शिक्षा का अधिकार 2. राष्ट्रीय शास्त्र 3. नागरिक मन निर्माण का मानक 4. सार्वजनिक प्रमाणित सत्य-सिद्धान्त 5. गणराज्य का सत्य रूप, का प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका के माध्यम से जनहित हेतू पूछने की ओर तैयारी हो रही है जिससे इस शास्त्र को राष्ट्रीय शास्त्र के रूप में स्थापित किया जा सके। जो शास्त्र व्यक्ति सहित संविधान को मार्गदर्शन दे सके, सिर्फ और सिर्फ वही राष्ट्रीय शास्त्र हो सकता है।
जिस प्रकार भारत में एक राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा), एक राष्ट्रीय पक्षी (भारतीय मोर), एक राष्ट्रीय पुष्प (कमल), एक राष्ट्रीय पेड़ (भारतीय बरगद), एक राष्ट्रीय गान (जन गण मन), एक राष्ट्रीय नदी (गंगा), एक राष्ट्रीय प्रतीक (सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ का सिंह), एक राष्ट्रीय पंचांग (शक संवत पर आधारित), एक राष्ट्रीय पशु (बाघ), एक राष्ट्रीय गीत (वन्दे मातरम्), एक राष्ट्रीय फल (आम), एक राष्ट्रीय खेल (हाॅकी), एक राष्ट्रीय मुद्रा चिन्ह, एक संविधान है उसी प्रकार एक राष्ट्रीय शास्त्र भारत को यह सत्यकाशी क्षेत्र देने जा रहा है।
एक फिल्म ”विश्वगुरू: द ब्रेन टर्मिनेटर“ हिन्दी, अग्रेंजी व बांग्ला में लिखकर तैयार है जिससे पिछले 65 वर्षो से अकेले रह रहे हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को एक राष्ट्रपुत्र स्वामी विवेकानन्द के रूप में प्रस्तुत करने की योजना है। इस फिल्म की कहानी में सत्यकाशी भी है। हो सकता है कि शूटिंग भी इस क्षेत्र में हो। विश्वशास्त्र के व्यक्त हो जाने से ”महाभारत“ दूरदर्शन धारावाहिक की भाँति अब उसके आगे की कहानी ”विश्वभारत“ दूरदर्शन धारावाहिक का भी मार्ग खुल चुका है। इसी प्रकार शनि और कलियुग का नाश करने वाली देवी ”माँ कल्कि देवी“ की कथा भी व्यक्त हो चुकी है।
इन सब कार्यों से आप हमसे यह पूछ सकते हैं कि ये सब करने से हमें क्या लाभ है? आपका प्रश्न सांसारिक व स्वाभाविक है क्योंकि आप उसे ही कार्य समझते हैं जिससे धन प्राप्त होता है। परन्तु मैं आपसे पूछता हूँ कि श्रीराम के नाम पर कितने का व्यापार है? श्रीकृष्ण के नाम पर कितने का कारोबार है?, शिव-शंकर इत्यादि के नाम पर कितने का कारोबार है? और इस कारोबार का मालिक कौन है? क्या उसका लाभ लेने के लिए वे आते हैं? ये ऐसे नाम के व्यापार हैं जो कभी बन्द नहीं होने वाले और न ही उसका वे लाभ लेने वाले हैं। ये एक विचार है, इस विचार पर मनुष्यों की आजिविका चलती है। सत्यकाशी, एक विचार है। अगर इससे इस क्षेत्र का लाभ होता है तो करो, अन्यथा कभी मत करो, इससे मेरा कोई मतलब नहीं है। प्रत्येक व्यापार एक विशेष विचार पर आधारित होता है। साधारणतया लोग यही सोचते हैं कि ज्ञान की बातों से क्या होगा, परन्तु ज्ञान ही समस्त व्यापार का मूल होता है। किसी विचार पर आधारित होकर आदान-प्रदान का नेतृत्वकर्ता व्यापारी और आदान-प्रदान में शामिल होने वाला ग्राहक होता है। ”रामायण“, ”महाभारत“, ”रामचरितमानस“ इत्यादि किसी विचार पर आधारित होकर ही लिखी गई है। यह वाल्मिीकि, महर्षि व्यास और गोस्वामी तुलसीदास का दुर्भाग्य है कि वे ऐसे समय में जन्म लिये जब काॅपीराइट और रायल्टी कानून जैसी व्यवस्था नहीं थी अन्यथा वे वर्तमान समय के सबसे धनवान व्यक्ति होते। परन्तु इसी को दूरदर्शन पर दिखाकर रामानन्द सागर और बी.आर.चोपड़ा ने इसे सिद्ध किया। ”विश्वष्शस्त्र“ इसी श्रंृखला की अगली कड़ी है जिसका बाजार विश्वभर में मानव सृष्टि रहने तक है और इससे प्राप्त धन को सत्यकाशी के विकास में लगाने की योजना है। बस इस कार्य के प्रारम्भ करने के लिए शुरूआती समय में थोड़े से धन की आवश्यकता है जिसे मैं समाज से उम्मीद करता हूँ और वह भी सिर्फ उनसे जो स्वयं इन सब कार्यो की महत्ता को समझकर सहयोग देगें। उनसे नहीं जिनके यहाँ मैं सहयोग के लिए जाऊँ और वे भिक्षा के रूप में सहयोग दें। ऐसा सहयोग तामसिक कहा जाता है जिससे कार्य की सिद्धि नहीं होती।
सर्वप्रथम युग शारीरिक शक्ति आधारित था, फिर आर्थिक शक्ति आधारित वर्तमान युग चल रहा है। अब आगे आने वाला समय ज्ञान शक्ति आधारित हो रही है। वर्तमान में रहने का अर्थ है कि वैश्विक ज्ञान जहाँ तक पहुँच चुका है उसके बराबर स्वयं को रखना। किसी व्यक्ति या क्षेत्र को विकसित क्षेत्र तभी कहा जाता है जब वह शारीरिक, आर्थिक व मानसिक तीनों क्षेत्र में विकास करे। मानसिक विकास का परिणाम समाज क्षेत्र के सहयोग से सार्वजनिक कार्य का पूर्ण होना होता है। समाज का प्रथम जन्म चुनार क्षेत्र में भगवान विष्णु के 5वें अवतार वामन अवतार द्वारा हुआ था, जब प्रजा राज्य पर आधारित होने लगी थी। वर्तमान में भी ऐसी स्थिति बनी हुई है कि जनता अपने राज्य आधारित नेताओं से सम्पूर्ण विकास की उम्मीद रखती है। जबकि समाज आधारित कार्य शून्य है। समाज का अर्थ लोगों के बीच मात्र उठना-बैठना नहीं है बल्कि लोंगो के सहयोग से सार्वजनिक कार्य करना है। पद पर बैठकर मनुष्य पद के अनुसार एक निश्चित काम ही कर सकता है समाज का विकास नहीं। इसलिए राजनीतिक नेताओं से उनकी क्षमता से अधिक उम्मीद न करें। क्षेत्र के विकास के लिए आप सभी को स्वयं आगे आकर उन कार्यो के लिए उन नेताओं को विवश करना पड़ेगा जो आपके और क्षेत्र के विकास के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी काम आने वाली है। जो स्थायी हो, जो नेताओं पर निर्भर न होकर यहाँ के निवासियों पर निर्भर हो। तब समाज का जन्म होगा। सत्यकाशी क्षेत्र को जानें और अपने मन को इस क्षेत्र के ऊपर रखकर और ज्ञान र्में िस्थत होकर सोचें कितने सौ करोड़ रूपये का कभी न बन्द होने वाला प्राजेक्ट आपके सामने पड़ा हुआ है। इसी को कहते हैं- उपलब्ध संसाधनों पर आधारित होकर योजना बनाना। और अन्त में अपने बारे में-
लगा ली दो घूँट, यारो की खुशी से, जानता था लोग समझेगें शराबी।
छुपाना था खुद को, जहाँ से, तो लोगों बताओ, पीने में क्या थी खराबी।
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