Monday, March 16, 2020

प्रबंध शिक्षा क्षेत्र को आह्वान

प्रबंध शिक्षा क्षेत्र को आह्वान

सिद्धान्तों का कालानुसार प्रयोग ध्यान और चेतना के अधीन होता है। इसलिए ही कहा जाता है कि ज्ञान का कालानुसार प्रयोग न करना ही अज्ञानता और ज्ञान की अप्रमाणिकता है। समस्त सफलतम प्रबन्धकीय क्षमता का आधार चेतना, ध्यान और दिव्य दृष्टि ही है। परन्तु समयानुसार न होने के कारण इन सभी आधारभूत विषयों का यर्थाथ स्वरूप व्यक्त नहीं था। वर्तमान समय में जबकि विश्व व ब्रह्माण्ड प्रबन्ध की ओर मानव गतिशील हो गया है तब ऐसे समय में इन आधारभूत विषयांे के यथार्थ स्वरूप की आवश्यकता हो गई थी जिससे मानव विवाद मुक्त रूप से विश्व प्रबंध की दिशा को निश्चित कर सके। यही ज्ञान, प्रबंधकीय ज्ञान का सर्वोच्च स्परूप भी होगा। 
विश्व प्रबन्ध के विवाद मुक्त स्वरूप को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक प्रमाणित मूल सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त से ही समस्त विषयांे के विवाद मुक्त स्परूप को प्राप्त किया जा सकता है। और इसी आधार पर ही सम्पूर्ण विषयों के यथार्थ को प्राप्त किया गया है। वर्तमान व्यवस्था के अनुसार आई.एस.ओ. 9000 श्रंृखला, उद्योगों की गुणवत्ता का अन्तर्राष्ट्रीय मानक श्रृंखला की भँाति मन (व्यक्तिगत और संयुक्त) की गुणवत्ता का विश्वमानक, विश्वमानक शून्य: मन (व्यक्तिगत और संयुक्त) की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रंृखला के रूप मंे विकसित किया गया है। जिसकी उपयोगिता मूल रूप से अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व स्तर का मानव संसाधन निर्माण तथा शाखा रूप से सम्पूर्ण विषय क्षेत्र की पूर्ण स्वस्थता से है। क्यांेकि उन सभी का संचालन, उत्पादन और नियंत्रण कर्ता मानव ही है। जिसके फलस्वरूप ही स्वस्थ लोकतंत्र, समाज और स्वस्थ उद्योग सहित विश्वस्तरीय प्रबंध को प्राप्त किया जा सकता है। प्रबन्ध शिक्षा संस्थानों के प्रबंधकीय शिक्षा में विश्वमानक मन (व्यक्तिगत और संयुक्त) की गुणवत्ता का विश्वमानक की शिक्षा भी पाठ्यक्रम मंे शामिल होना चाहिए जिससे संस्थान विश्व स्तरीय प्रबंध शिक्षा प्रदान करने का श्रेय प्राप्त कर सके, ऐसा प्रबन्ध शिक्षा क्षेत्र से आह्वान है।


No comments:

Post a Comment