मेरे विश्व शान्ति के कार्य हेतू बनाये गये सभी ट्रस्ट मानवता के लिए सत्य-कार्य एवं दान के लिए सुयोग्य पात्र
अधिकतम व्यक्ति अपने बहुत सी खुशियों व इच्छाओं की पूर्ति अपने व्यक्तिगत समस्याओं के कारण नहीं कर पाते। इसी कारण ऐसा कार्य जो उन्हें आनन्द प्रदान करता है, कार्य करने वाले को पुरस्कार या दान देकर स्वयं को संतुष्टि प्रदान करते हैं। मेरे सम्पूर्ण कार्य हेतू बनाये गये सभी ट्रस्ट भारत सहित विश्व के मानवता के लिए सर्वोच्च व अन्तिम कार्य है। फलस्वरुप यह अनेक मानवों की इच्छा की पूर्ति भी है। ट्रस्ट का कार्य मनुष्य के उस बिन्दु पर कार्य है, जहाॅ से मनुष्य स्वयं अपनी सहायता के लिए तैयार हो सके। ट्रस्ट संघर्षशीलता व कर्म में विश्वास करता है न कि मनुष्य को सीधे धन उपलब्ध कराकर उसे निकम्मा बना देने में। ट्रस्ट इस सर्वोच्च और अन्तिम कार्य के लिए जन साधारण से सहयोग की अपेक्षा करता है जिसका वह सुयोग्य पात्र भी है।
”इस कलयुग में मनुष्यों के लिए एक ही कर्म शेष है आजकल यज्ञ और कठोर तपस्याओं से कोई फल नहीं होता। इस समय दान ही अर्थात एक मात्र कर्म है और दानो में धर्म दान अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान का दान ही सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा दान है विद्यादान, तीसरा प्राणदान और चैथा अन्न दान। जो धर्म का ज्ञानदान करते हैं वे अनन्त जन्म और मृत्यु के प्रवाह से आत्मा की रक्षा करते है, जो विद्या दान करते हैं वे मनुष्य की आॅखे खोलते, उन्हें आध्यात्म ज्ञान का पथ दिखा देते है। दूसरे दान यहाॅ तक कि प्राण दान भी उनके निकट तुच्छ है। आध्यात्मिक ज्ञान के विस्तार से मनुष्य जाति की सबसे अधिक सहायता की जा सकती है।“ - महर्षि मनु
”पुण्य, व्यक्तिगत कर्म के लिए सत्य पात्र को दान, दूसरांे की सेवा और देखभाल, अपने पुण्य का भाग दूसरों को देना, दूसरे द्वारा दिये गये पुण्य के भाग को स्वीकारना“-भगवान बुद्ध (लोक धर्म शिक्षा)
”सावधान रहो! तुम मनुष्यों को दिखाने के लिए अपने धर्म के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्ग स्थित पिता से कोई फल नहीं पाओगे। इसलिए जब तू दान करे, तो अपने आगे तुरही न बजवा जैसा कपटी लोग सभाओं व गलियों में करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करे। मै तुमसे सच कहता हूॅ कि वे अपना फल पा चुके“- ईसामसीह
”यह कि तू कहे कि मैने सर्वोच्च अल्लाह की दासता स्वीकार की है और मैं उसका ही हूँ और यह कि तू नमाज (प्रार्थना) कायम कर और जकात (दान) दे। यह कि तू भूखों को खाना खिला और तू जिन्हें जानता है और जिन्हें नहीं जानता, उन सबको सलाम कर“ - मुहम्मद पैगम्बर
”धनी व्यक्तियों को अपने धन से भगवान और भक्तों की सेवा करनी चाहिए और निर्धनों को भगवान का नाम जपते हुए उनका भजन करना चाहिए“ - श्री माॅ शारदा
”दान से बड़ा और धर्म नहीं। हाथ सदा देने के लिए ही बनाए गये थे। कुछ मत माँगों बदले में कुछ मत चाहो। तुम्हें जो देना है दे दो, वह तुम्हारे पास लौटकर आयेगा, पर अभी उसकी बात मत सोचो। वह वर्धिक होकर, सहस्त्र गुना वर्धिक होकर वापस आयेगा, पर ध्यान उधर न जाना चाहिए। तुममे केवल देने की शक्ति है। दे दो, बस बात वहीं पर समाप्त हो जाती है।“ - स्वामी विवेकानन्द
”भगवान से दान लेने वाले थक जाते हैं किन्तु उनकी उदारता अथक है। युगो से मानव, भगवान की उदारता पर पलता आ रहा है। अरे नानक, उनकी इच्छा संसार का निर्देशन करती है परन्तु फिर भी वे असक्त अथवा चिन्ता से अलिप्त रहते है“ -गुरू नानक
ट्रस्ट के योजनाबद्धकर्ता की घोषणा
इस शास्त्र-साहित्य व आविष्कार से प्राप्त समस्त आर्थिक लाभ मेरे मार्गदर्शन में स्थापित पाँचों ट्रस्ट में से सक्रिय ट्रस्ट के माध्यम से सामाजिक कार्यो, मानवता व एकात्मता के विकास हेतू वितरित कर दिये जायेगें। पाँच ट्रस्ट निम्नलिखित हैं-
1: साधु एवं सन्यासी के लिए - सत्ययोगानन्द मठ (ट्रस्ट)
2: राजनीतिक उत्थान व विश्वबन्धुत्व के लिए - प्राकृतिक सत्य मिशन (ट्रस्ट)
3: श्री लव कुश सिंह के रचनात्मक कायों के संरक्षण के लिए-विश्वमानव फाउण्डेशन (ट्रस्ट)
4: व्यवहारिक ज्ञान पर शोध के लिए-सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय (ट्रस्ट)
5: ब्राह्मणों के लिए - सत्यकाशी (ट्रस्ट)
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