Monday, March 16, 2020

अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा विश्व शान्ति का अन्तिम सत्य-सन्देश

अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“  द्वारा विश्व शान्ति का अन्तिम सत्य-सन्देश 

प्रकाशित खुशमय तीसरी सहस्त्राब्दि के साथ यह एक सर्वोच्च समाचार है कि नयी सहस्त्राब्दि केवल बीते सहस्त्राब्दियों की तरह एक सहस्त्राब्दि नहीं है। यह प्रकाशित और विश्व के लिए नये अध्याय के प्रारम्भ का सहस्त्राब्र्दि है। केवल वक्तव्यों द्वारा लक्ष्य निर्धारण का नहीं बल्कि स्वर्गीकरण के लिए असिमीत भूमण्डलीय मनुष्य और सर्वोच्च अभिभावक संयुक्त राष्ट्र संघ सहित सभी स्तर के अभिभावक के कर्तव्य के साथ कार्य योजना पर आधारित। क्योंकि दूसरी सहस्त्राब्दि के अन्त तक विश्व की आवश्यकता, जो किसी के द्वारा प्रतिनिधित्व नहीं हुई उसे विवादमुक्त और सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया जा चुका है। जबकि विभिन्न विषयों जैसे- विज्ञान, धर्म, आध्यात्म, समाज, राज्य, राजनिति, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, परिवार, व्यक्ति, विभिन्न संगठनों के क्रियाकलाप, प्राकृतिक, ब्रह्माण्डीय, देश, संयुक्त राष्ट्र संघ इत्यादि की स्थिति और परिणाम सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य रुप में थे।
विज्ञान के सर्वोच्च आविष्कार के आधार पर अब यह विवाद मुक्त हो चुका है कि मन केवल व्यक्ति, समाज, और राज्य को ही नहीं प्रभावित करता बल्कि यह प्रकृति और ब्रह्माण्ड को भी प्रभावित करता है। केन्द्रीयकृत और ध्यानीकृत मन विभिन्न शारीरिक सामाजिक और राज्य के असमान्यताओं के उपचार का अन्तिम मार्ग है। स्थायी स्थिरता, विकास, शान्ति, एकता, समर्पण और सुरक्षा के लिए प्रत्येक राज्य के शासन प्रणाली के लिए आवश्यक है कि राज्य अपने उद्देश्य के लिए नागरिकों का निर्माण करें। और यह निर्धारित हो चुका है कि क्रमबद्ध स्वस्थ मानव पीढ़ी के लिए विश्व की सुरक्षा आवश्यक है। इसलिए विश्व मानव के निर्माण की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा नहीं है और विभिन्न अनियन्त्रित समस्या जैसे- जनसंख्या, रोग, प्रदूषण, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, विकेन्द्रीकृत मानव शक्ति एवं कर्म इत्यादि लगातार बढ़ रहे है। जबकि अन्तरिक्ष और ब्रह्माण्ड के क्षेत्र में मानव का व्यापक विकास अभी शेष है। दूसरी तरफ लाभकारी भूमण्डलीकरण विशेषीकृत मन के निर्माण के कारण विरोध और नासमझी से संघर्ष कर रहा है। और यह असम्भव है कि विभिन्न विषयों के प्रति जागरण समस्याओं का हल उपलब्ध करायेगा।
मानक के विकास के इतिहास में उत्पादों के मानकीकरण के बाद वर्तमान में मानव, प्रक्रिया और पर्यावरण का मानकीकरण तथा स्थापना आई0 एस0 ओ0-9000 एवं आई0 एस0 ओ0-14000 श्रृंखला के द्वारा मानकीकरण के क्षेत्र में बढ़ रहा है। लेकिन इस बढ़ते हुए श्रृंखला में मनुष्य की आवश्यकता (जो मानव और मानवता के लिए आवश्यक है) का आधार ‘‘मानव संसाधन का मानकीकरण’’ है क्योंकि मनुष्य सभी (जीव और नीर्जीव) निर्माण और उसका नियन्त्रण कर्ता है। मानव संसाधन के मानकीकरण के बाद सभी विषय आसानी से लक्ष्य अर्थात् विश्व स्तरीय गुणवत्ता की ओर बढ़ जायेगी क्यांेकि मानव संसाधन के मानक में सभी तन्त्रों के मूल सिद्धान्त का समावेश होगा।
 वर्तमान समय में शब्द -‘‘निर्माण’’ भूमण्डलीय रुप से परिचित हो चुका है इसलिए हमें अपना लक्ष्य मनुष्य के निर्माण के लिए निर्धारित करना चाहिए। और दूसरी तरफ विवादमुक्त, दृश्य, प्रकाशित तथा वर्तमान सरकारी प्रक्रिया के अनुसार मानक प्रक्रिया उपलब्ध है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि मानक हमेशा सत्य का सार्वजनिक प्रमाणित विषय होता है न कि विचारों का व्यक्तिगत प्रमाणित विषय। अर्थात् प्रस्तुत मानक विभिन्न विषयों जैसे- आध्यात्म, विज्ञान, तकनीकी, समाजिक, नीतिक, सैद्धान्तिक, राजनीतिक इत्यादि के व्यापक समर्थन के साथ होगा। ‘‘उपयोग के लिए तैयार’’ तथा ‘‘प्रक्रिया के लिए तैयार’’ के आधार पर प्रस्तुत मानव के विश्व स्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए मानव निर्माण तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class Manufactuing–Total Life Maintenance- Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation.Conceousness) प्रणाली आविष्कृत है जिसमें सम्पूर्ण तन्त्र सहंभागिता (Total System Involvement-TSI) है औरं विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला (WS-0 : World Standard of Mind Series) समाहित है। जो और कुछ नहीं, यह विश्व मानव निर्माण प्रक्रिया की तकनीकी और मानव संसाधन की गुणवत्ता का विश्व मानक है। जैसे- औद्योगिक क्षेत्र में इन्स्टीच्यूट आॅफ प्लान्ट मेन्टीनेन्स, जापान द्वारा उत्पादों के विश्वस्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए उत्पाद निर्माण तकनीकी डब्ल्यू0 सी0 एम0-टी0 पी0 एम0-5 एस (WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing-Total Productive Maintenance-Siri (छँटाई), Seton (सुव्यवस्थित), Sesso (स्वच्छता), Siketsu (अच्छास्तर), Shituke (अनुशासन) प्रणाली संचालित है। जिसमें सम्पूर्ण कर्मचारी सहभागिता (Total Employees Involvement) है।) का प्रयोग उद्योगों में विश्व स्तरीय निर्माण प्रक्रिया के लिए होता है। और आई.एस.ओ.-9000 (ISO-9000) तथा आई.एस.ओ.-14000 (ISO-14000) है।
युग के अनुसार सत्यीकरण का मार्ग उपलब्ध कराना ईश्वर का कर्तव्य है आश्रितों पर सत्यीकरण का मार्ग प्रभावित करना अभिभावक का कर्तव्य हैै। और सत्यीकरण के मार्ग के अनुसार जीना आश्रितों का कर्तव्य है जैसा कि हम सभी जानते है कि अभिभावक, आश्रितों के समझने और समर्थन की प्रतिक्षा नहीं करते। अभिभावक यदि किसी विषय को आवश्यक समझते हैं तब केवल शक्ति और शीघ्रता से प्रभावी बनाना अन्तिम मार्ग होता है। विश्व के बच्चों के लिए यह अधिकार है कि पूर्ण ज्ञान के द्वारा पूर्ण मानव अर्थात् विश्वमानव के रुप में बनना। हम सभी विश्व के नागरिक सभी स्तर के अभिभावक जैसे- महासचिव संयुक्त राष्ट्र संघ, राष्ट्रों के राष्ट्रपति- प्रधानमंत्री, धर्म, समाज, राजनीति, उद्योग, शिक्षा, प्रबन्ध, पत्रकारिता इत्यादि द्वारा अन्य समानान्तर आवश्यक लक्ष्य के साथ इसे जीवन का मुख्य और मूल लक्ष्य निर्धारित कर प्रभावी बनाने की आशा करते हैं। क्योंकि लक्ष्य निर्धारण वक्तव्य का सूर्य नये सहस्त्राब्दि के साथ डूब चुका है। और कार्य योजना का सूर्य उग चुका है। इसलिए धरती को स्वर्ग बनाने का अन्तिम मार्ग सिर्फ कर्तव्य है। और रहने वाले सिर्फ सत्य-सिद्धान्त से युक्त संयुक्तमन आधारित मानव है, न कि संयुक्तमन या व्यक्तिगतमन के युक्तमानव।
आविष्कार विषय ”व्यक्तिगत मन और संयुक्तमन का विश्व मानक और पूर्णमानव निर्माण की तकनीकी है जिसे धर्म क्षेत्र से कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेदीय श्रृंखला तथा शासन क्षेत्र से WS-0 : मन की गुणवत्ता का विश्व मानक श्रृंखला तथा WCM-TLM-SHYAM.C तकनीकी कहते है। सम्पूर्ण आविष्कार सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त अटलनीय, अपरिवर्तनीय, शाश्वत व सनातन नियम पर आधारित है, न कि मानवीय विचार या मत पर आधारित।“
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त एक ही सत्य-सिद्धान्त द्वारा व्यक्तिगत व संयुक्त मन को एकमुखी कर सर्वोच्च, मूल और अन्तिम स्तर पर स्थापित करने के लिए शून्य पर अन्तिम आविष्कार WS-0 श्रृंखला की निम्नलिखित पाँच शाखाएँ है। 
1. डब्ल्यू.एस. (WS)-0        : विचार एवम् साहित्य का विश्वमानक
2. डब्ल्यू.एस. (WS)-00       : विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक
3. डब्ल्यू.एस. (WS)-000      : ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
4. डब्ल्यू.एस. (WS)-00000    : मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
5. डब्ल्यू.एस. (WS)-00000    : उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक
भारत सरकार इस श्रृंखला को स्थापित करने के लिए संसद में प्रस्ताव प्रस्तुत कर अपने संस्थान भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के माध्यम से समकक्ष श्रृंखला स्थापित कर विश्वव्यापी स्थापना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में भी प्रस्तुत कर संयुक्त राष्ट्र संघ के पुर्नगठन व पूर्ण लोकतंत्र की प्राप्ति के लिए मार्ग दिखा सकता है। 
संयुक्त राष्ट्र संघ सीधे इस मानक श्रृंखला को स्थापना के लिए अपने सदस्य देशो के महासभा के समक्ष प्रस्तुत कर अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन व विश्व व्यापार संगठन के माध्यम से सभी देशो में स्थापित करने के लिए उसी प्रकार बाध्य कर सकता है, जिस प्रकार ISO-9000 व ISO-14000 श्रृंखला का विश्वव्यापी स्थापना हो रहा है।  

“शासन और शासक, विकासात्मक हो या विनाशात्मक। प्रणाली कोई भी हो- एकतन्त्रात्मक अर्थात राजतन्त्र या बहुतन्त्रात्मक लोकतन्त्र। वह तब तक अब स्थायी और अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने उद्देश्य की प्राप्ति के अनुरूप जनता का निर्माण और उत्पादन न करें। हमारा उद्देश्य है- ‘अपने सीमित कर्म सहित असीम मन युक्त मानव का निर्माण और उत्पादन’, जिसके लिए हमारे सम्मुख दो मार्ग है- एक-गणराज्यों का संघ भारत, दूसरा-राष्ट्रों का संघ संयुक्त राष्ट्र संघ। दोनों एक ही है। बस कर्म क्षेत्र की सीमा में अन्तर है। दोनों का उद्देश्य एक है बस कार्य अलग है। भारत का अपने जनता के प्रति कर्तव्य और दायित्व तथा विश्व के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ऐसी विवादमुक्त प्रबन्ध नीति उपलब्ध कराना है जिससे दोनों अपने उद्देश्य को निर्वाध गति से प्राप्त करें। जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ को सिर्फ अपने अधीन कार्य सम्पादन ही करना मात्र है। उसे प्रबन्ध नीति का आविष्कार नहीं करना है। वह कर भी नहीं सकता और न ही किया क्योंकि वह पाश्चात्य के प्रभाव मण्डल में है। पाश्चात्य के पास सत्य के आविष्कार का इतिहास नहीं है। जबकि प्राच्य के पास सनातन से सत्य के आविष्कार का व्यापक संक्रमणीय, संग्रहणीय और गुणात्मक रूप से अनुभव संग्रहीत है। अब भारत व्यक्तिगत प्रमाणित भाव आधारित सत्य नहीं कहेगा क्योकि अब सार्वजनिक प्रमाणित कर्म, व्यक्त और मानक आधारित समय आ गया है। जो विश्व व्यापी रूप से पदार्थ विज्ञान और आध्यात्म विज्ञान सहित प्राच्य और पाश्चात्य संस्कृतियों में सार्वजनिक रूप से प्रमाणित होगा। और उस विवादमुक्त प्रबन्ध नीति से जब मूल अधिकार शिक्षा द्वारा मनुष्य का निर्माण और उत्पादन होगा। तब भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ को उसका उद्देश्य प्राप्त होगा अन्यथा वह रोको-रोको, निरोध-निरोध वाले कानून में ही अधिकाधिक समय व धन खर्च करता रहेगा। जिसकी जटिलता बढ़ते ही जाना है। भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ दोनों में से किसी के प्रारम्भ से मनुष्य का ”विश्वमानव“ के रूप में निर्माण और उत्पादन प्रारम्भ हो जायेगा। विश्व के सभी देशों के बीच संस्कृतियों का मिश्रण तेजी से हो रहा है ऐसी स्थिति में उसे मानव संसाधन जो कि समस्त निर्माण और उत्पादन का मूल है, का भी विभिन्न विषयों की भांति मानकीकरण तथा विश्व प्रबन्ध के लिए प्रबन्ध का मानकीकारण करना ही होगा। सम्पूर्ण विश्व में निर्माण से उत्पन्न उत्पाद की गुणवत्ता का मानक, संस्था की गुणवत्ता ISO-9000 फिर प्रकृति के कत्र्तव्य व दायित्व को स्वयं का कर्तव्य व दायित्व मानकर पर्यावरण की गुणवत्ता का मानक ISO-14000 स्वीकारा जा चुका है तो फिर गुणवत्ता से युक्त प्रकृति की भाँति स्वयं मनुष्य अपना गुणवत्ता का मानकीकारण कब करेगा? वह मार्ग जो अभी तक उपलब्ध नहीं था वह  विश्वमानक: शून्य (WS-0) - मन की गुणवत्ता का विश्व मानक श्रृंखला के रूप में उपलब्ध हो चुका है जो मेरा कत्र्तव्य था और अब अन्य मानवों का अधिकार है। संसाधन, ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी से युक्त पृथ्वी कमल की भाँति खिलने को उत्सुक है, मानवता का रचनात्मक सहयोग लेकर भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ, उसके खिलने में सहयोग करें जो उसका कर्तव्य और दायित्व है। जिस पर मनुष्य ईश्वर रूप में विराजमान हो सके।” - लव कुश सिंह “विश्वमानव”


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