Monday, March 16, 2020

रचनात्मक पत्रकारिता - पत्रकारिता का सत्य-रूप

रचनात्मक पत्रकारिता - पत्रकारिता का सत्य-रूप
(सन् 1999 - 2000 ई0 के बीच श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा सर्वजीत साधना भवन, रेनुकूट, सोनभद्र (उ0प्र) भारत, पिन-231217 में दिया गया वक्तव्य)

रचनात्मक पत्रकारिता - पत्रकारिता का सत्य रूप है इसलिए वह पत्रकारिता को नियंत्रित करने वाले किसी भी कानून के दायरे से बाहर रहेगी। विश्वमानव ने अपने एकल प्रवचन मे कहा कि एकत्व के विरूद्ध किया गया प्रत्येक शारीरिक, आर्थिक व मानसिक क्रियाकलाप आतंकवाद का ही रूप है जिसका स्तर परिवार, मुहल्ला, शहर, जिला, प्रदेश, देश व विश्व स्तर पर हो सकता है। वर्तमान समय में समाज सिर्फ शारीरिक रूप से होने वाले आतंकवाद से ही परिचित है जबकि आर्थिक व मानसिक आतंकवाद अभी विध्वंसक रूप मंे सामने नहीं आ सका है। इसलिए उससे समाज अभी परिचित नहीं है परन्तु यह अवश्यसम्भावी है। यदि हम विश्व से शारीरिक आतंकवाद को समाप्त कर सकंे तो आर्थिक व मानसिक आतंकवाद बारी-बारी से विश्व के समक्ष आयेेंगे आर्थिक आतंकवाद के अन्तर्गत व्यक्ति या देश स्तर पर धन का संग्रह हो जाने से उत्पन्न होगा और मानसिक आतंकवाद उस वक्त जन्म लेगा जब ऐसी शिक्षा उपलब्ध कराने की साजिश रची जायेगी जो सिर्फ उनके मत के समर्थकों को बढ़ावा देने वाली होगी। आर्थिक व मानसिक आतंकवाद आज भी समाज मंे विद्यमान है परन्तु वह देश व विश्व स्तर पर अपना प्रभाव पूर्ण रूप से नहीं डाल पायी है। वर्तमान समय मंे व्यक्ति अपने आप में इतना अधिक केन्द्रित हो चुका है कि जब तक उसे व्वक्तिगत क्षति व समस्या न हो तब तक वह न तो आंदोलित हो सकता है और न ही अपने आप से उपर उठकर समाज व देश के लिए सोच सकता है। विश्व व ब्रह्माण्ड स्तर पर सोचना व ऐसे विषयों का अध्ययन तो दूर की बात है। व्यक्ति की यही भावना उसे लगातार दूर से आने वाले ऐसे विनाशक घेरे मे घेरते जा रहा है जिसका अनुमान उसे नहीं है। देश व विश्व स्तर पर होने वाले आतंकवाद को तो हम जानते है व उसके विरूद्ध कार्यवाही मेें लगे हुये हंै परन्तु प्रत्येक परिवार में उसके सदस्य ही परिवार के लिए आतंकवाद सिद्ध होते जा रहे हंै। यह तभी समाप्त हो सकता है। जब व्यक्ति को संकीर्ण मानसिकता की शिक्षा के बजाय सार्वभौमिक शिक्षा के द्वारा उसे विश्व व्यापक बनाया जाय तभी हम व्यक्ति को प्रत्येक स्तर पर आतंकवादी बनने से रोक सकते हैं। और प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत केन्द्रित विषयों से उठाकर समाज व विश्व केन्द्रित विषयों पर ला सकते है। जिस प्रकार विश्व इस समय आतंकवाद के विरूद्ध कार्यरत है उसी प्रकार प्रत्येक परिवार से घर के आतंकवादियों का सफाया भी सार्वभौमिक शिक्षा द्वारा अभियान के तहत आवश्यक है। विश्वमानव ने आगे कहा कि भारत का यह दुर्भाग्य है कि सभी कुछ यहाँ तक कि मानसिक व आर्थिक आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सार्वभौम शिक्षा और सार्वभौम सत्य -सिद्धान्त पर आधारित आई.एस.ओ./डब्ल्यू.एस.-शून्य श्रृंखला उपलब्ध होने के बावजूद वह पूर्ण रूप से परिणामों पर कार्य करने की पश्चिमी संस्कृति पर कार्यशील है। आध्यात्मिक विचारों से सहमति और उसे व्यवहार मे उतारना ये दो अलग बाते हैं जिसमें जमीन आसमान का अन्तर है। भारत निश्चित रूप से आध्यात्मिक है परन्तु उसके नेतृत्वकर्ता उन विचारों का ढ़िढ़ोरा पिटवाकर अपना व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने मे संलग्न है। यदि ऐसा न होता तो भारत परिणाम व मूल दोनों पर एक साथ कार्य करता अर्थात वह एक तरफ आतंकवाद के विरूद्ध कार्यवाही करता तो दूसरी तरफ आतंकवादी पैदा ही न हो ऐसी शिक्षा व्यवस्था लागू करता। सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त पर आधारित मानव संसाधन की गुणवत्ता का विश्वमानक आइ.एस.ओ./डब्ल्यू.एस.-शून्य श्रृंखला का आविष्कार हो चुका है। जो विश्वशान्ति का विवशता पूर्ण अन्तिम मार्ग भी है। विश्वशान्ति की प्रक्रिया का प्रारम्भ कब होगा, अब यह अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ व भारत के सर्वाेच्च नेतृत्वकर्ताओं के कर्म पर ही निर्भर है तथा उसके प्रारम्भ न करने से होने वाली क्षति के जिम्मेदार भी वे ही है विश्वमानक आइ.एस.ओ./डब्ल्यू.एस-शून्य श्रंृखला से विश्व में अ-वाद अर्थात सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त की स्थापना होगी जो सर्वमान्य और सार्वभौम विषय है फलस्वरूप लोकतंत्र के धर्म सत्य-धर्म का स्वरूप विकसित होगा तभी एक शान्त व लोकतं़त्र आधारित लगातार विकासशील विश्व को हम प्राप्त कर पायेंगे। मानवी बौद्धिक ़क्षमता अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त हो वापसी की ओर हो गयी है। यह उसी प्रकार है जैसे एक गंेद को उपर उछालने पर वह एक सीमा तक जाकर वापस होने लगती है। ऐसी स्थिति जब आती है। तब प्रकृति ही मनुष्य को विवशता पूर्वक ऐसे आविष्कारांे को स्थापित करने के लिए बाध्य कर देती है। जिस पर वे अपने अनेकों प्रकार के अहंकारों के कारण सोचना पसन्द नहीं करते। वर्तमान समय मे विश्व समुदाय जिन समस्याआंे से लड़ रहा है। वह सब मनुष्य निर्मित ही है। इसलिए अन्ततः मनुष्य ही उसे हल करेंगे। यदि वे उसे हल नहीं कर पायें तब उस निराकार-ईश्वर और साकार-अवतार को समझ सकंेगे। और यह विवशता है कि सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त भी मनुष्य शरीर के अलावा कहीं से व्यक्त नहीं हो सकता। पूर्व मेे कहे गये अपने शब्दो की याद दिलाते हुए विश्वमानव ने कहा कि मंैने कहा था कि परमाणु बम उतना खतरनाक नहीं है। जितना की उपर से लागू होने वाली नीतिया है आतंकवाद निरोधक अध्यादेश के कारण उतना डर लोगांे में व्याप्त नहीं है जितना की ऐसे समाज मंे इसे लागू करने के लिए है जहाँ मनुष्य का नैतिक पतन हो चुका है। क्योकि कोई भी शस्त्र-अस्त्र गलत नहीं होता परन्तु वह किस उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जा रहा है इस पर ही उसका मूल्याकन होता है। जो पूर्णतया मनुष्य के नियत पर निर्भर करती है। कानून का दुरूपयोग निश्चित रूप से इसके प्रयोगकर्ता अपने व्यक्तिगत हित के लिए करते हंै क्योकि समाज में व्यक्तिहित ही पूर्ण प्रभावी हो चुकी है। जबकि सार्वजनिक हित इसका उद्देश्य होना चाहिए जिसकी संभावना नहीं के बराबर है। पत्रकारिता के क्षेत्र में खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रभाव डाल सकता है। रचनात्मक पत्रकारिता व्यक्ति स्तर से विश्व स्तर तक के शारीरिक, आर्थिक व मानसिक विकास के लिए मार्गदर्शन होता है। जो अलगाववाद को नहीं बल्कि एकीकरण के लिए होता है, न कि विध्वंस के लिए। विश्वमानव ने अपने एकल प्रवचन के दौरान कहा कि विश्व की गति सार्वभौमिकता की ओर ही है। जिसके प्रक्रिया में प्रत्येक विषय व नीतियाँ विवादो के घेरे मे चली जा रही है। कारण जिस ओर से प्रथम कदम उठता है। उसे उसी ओर के मत से प्रेरित समझा जाने लगता है। और ऐसा तब तक होता रहेगा जब तक सर्वमान्य सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के मूल बीज से आधार प्राप्त न किया जाय क्योंकि सर्वमान्य सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त कोई मत नियम नहीं है बल्कि वह समग्र ब्रह्माण्ड में व्याप्त नियम है, और प्रकृति तथा मनुष्य दोनांे के नियमों के मिलने का समय आ रहा है। विवादांे का एक उदाहरण है-पाठ्यक्रम है जिसमे परिवर्तन से शिक्षा के भगवाकरण का आरोप भारत सरकार पर लग रहा है। अभी भारत के ज्ञानीजन इतिहास अर्थात भूतकाल की व्याख्या और उसके पुनर्लेखन में ही व्यस्त है जबकि यहाँ वर्तमान और भविष्य का साहित्य पूर्ण किया जा चुका है। जो एक घटना है। घटनायें तो प्रत्येक क्षण घटित हो रही है। परन्तु व्यक्ति को जो पता होता ह उसे ही सत्य मानता है। शेष अविश्वसनीय हो जाता है। रामायण और महाभारत मंे भविष्य के सम्बंध में यही हुआ है। और वर्तमान मंे भविष्य के साहित्य विश्वशास्त्र के साथ भी यही हो रहा है। जिन्हंे पता है उनके लिए विश्वसनीय है। शेष के लिए अविश्वसनीय होगा। इस प्रकार रामायण व महाभारत की रचना कैसे हुई समझा जा सकता है। जो हमेशा जीवित व जीवनोपयोगी बनी रहेगी इसलिए वह पुरातत्व के साक्ष्य से प्रमाणित हो या न हो उसकी महत्ता सदैव रहती है। हिन्दूत्व का पाठ सारे समाज को पढाने वाली राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के रज्जू भैया ने अपने पुस्तक मे लिखा है कि ब्रह्मास्त्र आज का आणु बम ही है आश्चर्य होता है कि एक तरफ ये लोग ब्रह्म को ज्ञान कहते हंै दूसरी तरफ बह्मास्त्र को अणुबम बताते हैं। जबकि इसका सीधा सा अर्थ है ज्ञान का अस्त्र, इसी प्रकार नारायणास्त्र अर्थात सुदर्शन चक्र का अर्थ है- अच्छे दर्शन का चक्र तथा पशुपास्त्र का अर्थ है- पशु प्रवृत्तियों के नाश का अस्त्र अर्थात सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त। नारायणास्त्र में ब्रम्ह्मास्त्र तथा पशुपास्त्र में नारायणास्त्र की शक्ति समाहित है। बह्मास्त्र ब्रह्मा का नारायणास्त्र विष्णु का तथा पशुपास्त्र शिव-शंकर का अस्त्र है। सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित आइ.एस.ओ./डब्ल्यू.एस-शून्य श्रंृखला पशुपास्त्र ही है। भारत के नेतृत्वकर्ता जरा इसे चलाकर देखंे कि कैसे पशु प्रवृत्तियों का नाश होता है। आई.एस.आ/डब्ल्यू.एस-शून्य श्रंृखला विश्वव्यापी तहलका मचाने मंे सक्षम है। वही धार्मिक आतंकवाद को हमेशा के लिए समाप्त करने मंे सक्षम है। वर्तमान समय में मनुष्य किसी भी पुस्तक व अंश को पढ़कर मनमाने ढंग से इतिहास की व्याख्या करने लगा है। बावजूद इसके कि भारत मंे सब कुछ उपलब्ध हो चुका है। मंै भारत तथा विश्व के उज्जवल भविष्य की कामना करता हँू।


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