Monday, March 16, 2020

संसद को आह्वान

संसद को आह्वान

विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के संसद को मैं याद दिलाना चाहता हूँ कि अगस्त, 1997 में संसद ने ‘‘द्वितीय स्वतन्त्रता संग्राम शुरू करने का संसद में सर्वसम्मति से आह्वान’’ (दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 31-8-97) किया था। लोकतन्त्र की मर्यादा और विश्व के समक्ष अपनी सवश्रेष्ठता सहित उसकी स्वस्थता व पूर्णता के लिए मैं संसद के समक्ष उसके निर्णय के अनुरूप कुछ लक्ष्य रख कर आह्वान करता हूँ कि संसद नागरिक, देश व विश्व के लिए उसे पूर्ण कर अपने कर्तव्य को निभाये। 
1. जिस प्रकार भारत में एक राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा), एक राष्ट्रीय पक्षी (भारतीय मोर), एक राष्ट्रीय पुष्प (कमल), एक राष्ट्रीय पेड़ (भारतीय बरगद), एक राष्ट्रीय गान (जन गण मन), एक राष्ट्रीय नदी (गंगा), एक राष्ट्रीय प्रतीक (सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ का सिंह), एक राष्ट्रीय पंचांग (शक संवत पर आधारित), एक राष्ट्रीय पशु (बाघ), एक राष्ट्रीय गीत (वन्दे मातरम्), एक राष्ट्रीय फल (आम), एक राष्ट्रीय खेल (हाॅकी), एक राष्ट्रीय मुद्रा चिन्ह, एक संविधान है उसी प्रकार एक राष्ट्रीय शास्त्र भी भारत को आवश्यकता है। जिससे नागरिक अपने व्यक्तिगत धर्म शास्त्र को मानते हुये भी राष्ट्रधर्म को भी जान सके। जो लोकतन्त्र का धर्मनिरपेक्ष-सर्वधर्मसमभाव शास्त्र भी होगा।
2. पिछले 65 वर्षो से अकेले रह रहे हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को एक राष्ट्रपुत्र भी चाहिए जिसके स्वामी विवेकानन्द पूर्णतः योग्य हैं।ं जिससे नागरिक उनके धर्मनिरपेक्ष-सर्वधर्मसमभाव विचार व जीवन से प्रेरणा प्राप्त कर सके।
3. ”शिक्षा के अधिकार अधिनियम“ के बाद अब ”पूर्ण शिक्षा का अधिकार अधिनियम“ बनना चाहिए। पूर्ण शिक्षा पाठ्यक्रम बनने से पूर्ण मानव का निर्माण प्रारम्भ होगा फलस्वरूप देश सहित विश्व के विकास और उसके प्रति समर्पित नागरिक प्राप्त होने लगेगें जो कत्र्तव्य आधारित नागरिक होंगे।
4. यह प्रश्न उठाना चाहिए कि देश, व्यक्ति व संस्था किस प्रकार के नागरिक का निर्माण करना चाहते हैं और उसका मानक क्या हैं? यह सभी संस्थानों से पूछा जाना चाहिए।
5. यह प्रश्न उठाना चाहिए कि ऐसा कौन सा सार्वजनिक प्रमाणित सत्य-सिद्धान्त है जो पूर्णतया विवादमुक्त है जिससे सभी तन्त्रों को विवादमुक्त कर उसका सत्यीकरण किया जा सके।
6. यह प्रश्न उठना चाहिए कि गणराज्य का सत्य रूप क्या है? जिससे हम सबसे बड़े लोकतन्त्र को पूर्णता प्रदान करते हुये विश्व को एक मानक लोकतन्त्र दे सकें।
7. मन या मानव संसाधन का विश्व मानक निर्धारण के लिए प्रक्रिया प्रारम्भ करना आवश्यक है जिससे राश्ट्र को मानक मानव संसाधन प्राप्त हो।
उपरोक्त लक्ष्यों के लिए मैं भारत के संसद का आह्वान करता हूँ कि कम से कम समस्याओं से घिरते विश्व को अपनी सकारात्मक सोच से परिचय कराये।


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