फिल्म निर्माण उद्योग को आह्वान
विजुअल-आडियो मीडिया (दृश्य-श्रव्य माध्यम) का आविष्कार मनुश्य जीवन के लिए सर्वप्रथम आश्चर्य का विषय था जो आगे चलकर मनोरंजन का मुख्य माध्यम बना और अब साहित्य की भँाति आॅडियो-विजुअल मीडिया भी समाज का दर्पण ही है। इस आडियो विजुअल मीडिया में फिल्म, दूरदर्शन तथा वर्तमान में इन्टरनेट भी शामिल हो गया है। परिणामस्वरूप फिल्म से समाज का निर्माण और समाज से फिल्म का निर्माण का रूप उभर कर सामने आया है। यह बात कि फिल्म समाज को क्या दिखाना चाहता है? तथा समाज फिल्म से क्या देखना चाहता है? यह बात फिल्म और समाज दोनो ओर से सदा उठती रही है। निश्चय ही इसमंे मन का व्यापक न होना ही विवाद का मुख्य कारण रहा है। ऐसा न होने से ही अपनी अपनी दृष्टि से देखते हुये ही विचार व्यक्त किये जाते है।
मनोरंजन की दिशा से बढ़ते हुये फिल्म अब उद्योग का स्तर प्राप्त कर चुका है। तब निश्चित रूप से वह गुणवत्ता के प्रमाण पत्रों की ओर भी बढे़गा। जिस प्रकार अन्य उद्योगो के लिए अन्तर्राष्ट्रीय गुणवत्ता का प्रमाणपत्र आई.एस.ओ.-9000 श्रृंखला है, उसी प्रकार समाज को साथ लेते हुये मानव की गुणवत्ता का विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रंृखला है। जिस प्रकार फिल्म के बीमाकरण का प्रारम्भ उसके भविष्य के लिए शुभ संकेत है, उसी प्रकार उपरोक्त मानक प्रमाणपत्रो द्वारा प्रमाणीकरण भी उसके लिए शुभ संकेत ही होगा। विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रंृखला प्रमाणीकरण से फिल्म समाज के मन को व्यापक अर्थात अन्तर्राष्ट्रीय/विष्व स्तर का करता रहेगा। जिससे उसे समाज का पूर्ण समर्थन प्राप्त होगा। साथ ही फिल्मो का स्तर भी तेजी से अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व स्तर का होने लगेगा।
फिल्म जगत से व्यक्त वही कहानी, गीत, संगीत, निर्देशन, अभिनय समाज द्वारा जाने पहचाने और याद रखे जाते है। जो आत्मा को स्पर्श करती है। चंूकि यह आत्मा सर्वव्यापी है इसलिए इसका अधिकतम स्पर्श अधिकतम भीड़ को प्रभावित करती है। जिस प्रकार यह जितना सत्य है उसी प्रकार यह भी सत्य है कि जो व्यक्ति स्वयं आत्मा स्वरूप हो तो वह निश्चय ही आत्मीय कहानी, गीत, संगीत, निर्देशन अभिनय का सर्वोच्च पारखी व चुनने वाला भी होगा। सर्वोच्चता वहीं है जो सब में व्याप्त हो जाये, कहानियाँ वही हैं, जो सबसे लम्बी यात्रा पूर्ण किया हो तथा पाया उसी ने है जो पहले पहचाना है।
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