विचारकों को आह्वान
30 जून, 1999 को लखनऊ मंे राष्ट्रीय पुनर्निर्माण वाहिनी के शुभारम्भ मंे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी स्वीकार किये कि अकेेले राजशक्ति के सहारे समाजिक बदलाव सम्भव नहीं। इनके पहले लोकनायक जय प्रकाश नारायण भी ऐसा वक्तव्य दे चुके हैं फिर भी यदि शिक्षित, बेरोेजगार, असहाय यदि राजशक्ति की सीमित आवश्यकताओं से समाज के असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति का अन्धविश्वास रखती है तो इससे स्पष्टतया मूर्खता, अकर्मण्यता और स्वयं के बहुमूल्य समय को बेवजह उम्मीद में खोना ही कहेगंे। ज्ञान- कर्मज्ञान ऐसा विषय है जिसको आत्मसात् करने से प्रत्येक व्यक्ति के सामने अन्नत मार्ग बनते है जिस पर आदान-प्रदान की नयी योजना बनाकर एक तरफ स्वरोेेजगार से युक्त होता है, तो दूसरी तरफ रोजगार देकर राष्ट्र की सहायता करता है। और बस यही धर्म आधारित धार्मिक कर्म है।
अवतारों का मुख्य कार्य सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त की ओर समाज को मोड़ना होता है। जिसमंे वे या तो प्राथमिकता से स्वयं कर्म करते है या प्राथमिकता से प्रेरक बनते है। भगवान श्री कृष्ण का अवतरण व्यक्तिगत प्रमाणित रूप से स्वयं कर्म करते एवं प्रेरणा देते हुये है वहीं लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का अवतरण सार्वजनिक प्रमाणित रूप से कर्म करते एवं प्रेरणा देते हुये है। भगवान कृष्ण अपने रूप के व्यक्ति का निर्माण नहीं कर पाये थे परिणामस्वरूप उनकी व्यवस्था उनके जीवन काल मंे ही नष्ट हो गयी। प्रत्येक व्यक्ति को कृष्ण रूप में निर्माण के लिए ही लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का अवतरण हुआ है। आचार्य रजनीश ”ओशो“ ने भी कहा था समाज ने सबसे बड़ी गलती यह है कि कृष्ण जैसा एक भी व्यक्ति पुनः पैदा नहीं कर सका।
वर्तमान और भविष्य की ओर जाने वाला समय प्रत्येक व्यक्ति को अनेकों समस्याओ ंसे घेर लेने की ओर है। एक तरफ साहित्यों के अम्बार का अध्ययन कर कर के आत्मज्ञान प्राप्त करना मानव के लिए असम्भव होता जा रहा है तो दूसरी तरफ समाज में इतने साहित्य उत्पन्न कर दिये गये हैं कि व्यक्ति कहीं से शुरू होकर कहीं भी नहीं पहुँच पा रहा है। और जो जिसके साहित्य को पढ़ा उसी को सम्पूर्ण मान बैठ बुद्धिबद्ध बन गया। वर्तमान और भविष्य मंे पूर्ण ज्ञान, चेतना, दिव्य दृष्टि से युक्त ऐसे मानव समाज की आवश्यकता और उसकी सफलता सुनिश्चित है जो व्यक्ति से विश्व प्रबंध तक के विषयो को स्पष्ट रूप से समझ सके। तभी वह स्वस्थ समाज, लोकतंत्र, उद्योेग सहित स्वयं को पूर्णता की ओर ले जाने मंे सक्षम होगा। इसके लिए आवश्यक है कि मूल बीज रूप सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त का पूर्ण साहित्य व्यक्ति को उपलब्ध कराया जाय जिससे वह जड़ व अन्नत शाखा रूपी विषयों को अल्प समय में धारण कर सके। जो लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के अवतरण से संम्भव हो चुका है। ध्यान रहे सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त से युक्त होकर लेखन और विचार व्यक्त करने से स्थापित और उच्चस्तरीय रूप प्राप्त होता है और व्यक्त साहित्य जीवन-साहित्य कहलाता है। जबकि विचार से युक्त होने से अस्थाई और निम्नस्तरीय रूप। मुझे आशा नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि अन्य रूचिकर साहित्यांे की भाँति पूर्ण व्यवहारिक, आवश्यक, अपरिवर्तनीय, संग्रहणीय इस ”विश्वशास्त्र“ साहित्य का लाभ उठाने में आप सभी सफल होगें।
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