Monday, March 16, 2020

मैं भारत और अमेरिका के हताश होने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ

 मैं भारत और अमेरिका के हताश होने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ
(सन् 2000-2001 ई0 के बीच श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा ”उपासना देश“ समाचार पत्र कार्यालय, जौनपुर (उ0प्र) भारत में दिया गया वक्तव्य)

नोबेल पुरस्कार का अगला सशक्त दावेदार होने स्पष्टीकरण विश्वमानव ने आज यहा अपने 34 वें जन्मदिवस के अवसर पर की उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री काफी अन्नान और साहित्कार श्री वी.एस.नाॅयपाल को शान्ति और साहित्य का नोबेल पुरस्कार देने के निर्णय से अब यह स्पष्ट हो चुका है कि आने वाले वर्षाे मे शांति और साहित्य का संयुक्त नोबेल पुरष्कार निश्चित रूप से आइ.एस.ओ./डबल्यू.एस-0 श्रृंखला के आविष्कार के लिए पुनः एक बार भारत के ही पक्ष मे आयेगा। क्योंकि नई सदी में संयुक्त राश्ट्र के समक्ष आने वाली अनेक प्रकार के नई चुनौतियो से निपटने के लिए सर्वमान्य आइ.एस.ओ. /डबल्यू.एस-0 श्रृंखला ही एक मात्र मार्ग है। विश्व को उसके लिए प्रतीक्षा करने के लिए स्वयं श्री कोफी अन्नान घोषणा और आमंत्रण दे चुके हैं। ऐसा साहित्य जो विश्व मंे शान्ति का अन्तिम मार्ग है, निश्चित रूप से वही साहित्य के नोबेल पुरस्कार के भी योग्य होगा। इस वर्ष साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के साहित्कार श्री वी.एस.नाॅयपाल ने भी अपने सूक्ष्म दृष्टि से यह देखे हंै कि भारत बौद्धिक विस्फोट के मुहाने पर खड़ा है। यह बौद्धिक विस्फोट आइ.एस.ओ./डबल्यू.एस-0 श्रृंखला ही है। पुरस्कार किसे प्राप्त होगा इस संबंध मे विश्वमानव ने कहा कि आने वाले समय मे यदि प्राकृतिक सत्य मिशन का  गठन हो जाता है। तो यह पुरस्कार प्राकृतिक सत्य मिशन को मिलना चाहिए। प्राकृतिक सत्य मिशन के गठन के लिए मेरी ओर से लगातार आमंत्रण समाज में प्रसारित किये जा रहे हंै परन्तु समाज मंे व्यक्ति के दूरदर्शिता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक भी व्यक्ति आगे निकल कर नहीं आया जो ऐसे कार्याे मे साथ आ सके। जबकि आइ.एस.ओ. /डबल्यू.एस-0 श्रृंखला का आविष्कार और इस पर आधारित सभी गतिविधियांे के संचालन के लिए योजनाबद्ध प्राकृतिक सत्य मिशन शान्ति, एकता, अन्तर्राष्ट्रीय विचार, साहित्य, संस्कृति , सामाजिक, आर्थिक, विकास इत्यादि से सम्बन्ध्ंिात राज्य, देश, अन्तर्राष्ट्रीय तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के अनेक पुरस्कारो के योग्य है। और यह जाति, निवास, जन्म स्थान, क्षेत्र, प्रदेश, और देश के लिए गर्व का विषय होगा कि अब तक देश के सभी नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर्ताओ मंे सबसे कम उम्र के व्यक्ति के दो नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से प्राप्त होगा। इतनी कम उम्र में बौद्धिकता के चरम ऊँचाईं पर पहँुचने की कला को स्पष्ट करते हुए उन्हांेने कहा कि प्रत्येक अवतार अपने उसी जीवन में भविष्य की कार्यशैली और कला का सूत्र व्यक्त कर देता है। परन्तु साधारण व्यक्ति उसे पकड़ नहीं पाते अब जबकि अवतारी श्रृंखला का अन्त हो चुका है। इसलिए इस जीवन मे भविष्य और वर्तमान की कार्यशैली स्पष्ट करना आवश्यक है और वह यह है कि व्यक्ति को कम समय में यदि अधिकतम कार्य करना हो तब हमेशा वहीं से कार्य प्रारम्भ करना चाहिए जहाँ तक उसके पहले के महापुरूष कार्य पूर्ण कर चुके हांे। अगर ऐसा नहीं करते तो निश्चित जानना चाहिए कि उनके शब्दों को कोई मूल्य नहीं होता और न ही वह हम जैसों के साथ वह जुड़ सकता है। व्यक्ति को सभी में सिर्फ सकारात्मक पक्ष को ही देखना चाहिए तभी वह किसी का उपयोग कर सकता है। मेरे समक्ष अधिकतम व्यक्ति ऐसे आये जो मेरे नकारत्मक पक्ष को ही पकड़ते रहे और मेरी अधिकतम हँसी उड़ाते रहे परन्तु वहीं दूसरी तरफ मैं अपनी कला जो मेरी सार्वजनिक प्रमाणित कृष्ण कला है उसका सफल प्रयोग करते हुए उन पर हमेशा मन से हँसता रहा। उन लोगों के मस्तिष्क में जरा सी भी यह बात नहीं आती जो अपने आप को अवतार जैसे पद पर बिठा रहा है वह विचार प्रधान है या सत्य प्रधान लोगों को जानना चाहिए कि विचार की स्थापना में व्यक्ति का समर्थन आवश्यक होता है। परन्तु सत्य की स्थापना मंे व्यक्ति का समर्थन आवश्यक नहीं वह तो प्रकृति समर्थित होती है। और एक स्थिति के बाद उसकी आवश्यकता अपने आप समाज को हो जाती है। मैं सार्वभौम बल के साथ तथा उसके आगे चल रहा हँू। समाज में यदि बुद्धि का विकास नहीं होता तो वह नकारात्मक और विध्वंसात्मक की ओर स्वतः ही बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति मे सकारात्मकता और रचनात्मकता की माँग स्वयं हो जाती है। आतंकवाद के विरूद्ध विश्वव्यापी चिन्ता ने हमारे कार्य को प्राकृतिक रूप से और भी अधिक सरल कर दिया है। मंै अमेरिका तथा भारत को विश्वव्यापी शान्ति की स्थापना मंे हताश होने की प्रतीक्षा कर रहा हँू। और यह निश्चित भी है क्योकि मेरी कार्यशैली यह है कि हम ऐसे व्यक्ति का निमार्ण ही क्यों करे जो अलगाववाद की ओर सोचता हो। जबकि अन्य की कार्यशैली यह है कि जो जैसे बनना चाहता हो बने जब वह विध्वंस करेगा या कर चुका होगा, तब हम उसे रोकंेगे और उसी के लिए तमाम मिशाइल, तोप, बम इत्यादि बनाये जा रहे हैं। मनुष्य को अभी तब तक विकास करना है जब तक वह स्वयं अपने कृति को देख आश्चर्य में पड़ स्वयं सृष्टिकर्ता होने की अनुभूति न कर ले। इसलिए आवश्यक है कि पृथ्वी के मानसिक विवादों को समाप्त किया जाए जिसके लिए पहला और अन्तिम माॅडल आइ.एस.ओ. /डबल्यू.एस-0 श्रृंखला आधारित प्रस्तुत किया जा चुका है। कोई अन्य व्यक्ति/संस्था भी माॅडल प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र है और उसके लिए उन्हें प्रयत्न भी करना चाहिए। अवतारी गुणों को और अधिक स्पष्ट करते हुए उन्हांेने कहा कि जो अवतार होते हैं या जो स्वयं को अवतार कहते है उनमंे गुणों की इतनी व्यापकता होती है कि समाज मंे उपलब्ध सभी चरित्र का अंश उनमें विद्यमान होता है और उनका प्रदर्शन एक साथ बहुत कम और विश्वसनीय व्यक्ति के समक्ष ही करते हंै विश्वसनीय का अर्थ यह है कि वे जो उनके उद्देश्य और लीला मंे अंतर करने में सक्षम होते हैं। ऐसे व्यक्ति जो विश्वसनीय नहीं होते उनको दूर भगाने के लिए या संबंध विच्छेद करने के लिए केवल एक नकारात्मक गुणांे का प्रयोग कर देना ही काफी होता है। क्यांेकि वे मल्टीडायमेन्सनल अर्थात बहुआयामी को नहीं समझते। अवतारो के साथ अनेक गुण होते हंै। उनमे अन्तर्यामी, भावातीत, गुणतीत, चेतनातीत इत्यादि प्रमुख हैं। इन गुणांे के कारण कोई भी व्यक्ति जब दिल या दिमाग का प्रयोग अवतारांे के समक्ष करता है तो वह अवतार द्वारा तुरन्त समझ लिया जाता है। और उसी अनुसार व्यवहार किया जाता है। ईश्वर और अवतार सम्बंधी धारणा में समाज बहुत पीछे है। उसकी दृष्टि में पूर्व के श्रीराम, श्रीकृष्ण इत्यादि की छवि दिमाग मंे बैठी है, वे आज भी यही सोचते हैं कि कोई ईश्वर या अवतार आयेेेगा तो हाथ में तीर धनुष, सुदर्शन चक्र, चार हाथों वाला, मुकुट इत्यादि पहनकर टपक पडे़गा वहीं दूसरी ओर जीवन के लीला कथा भी जानते हैं। जब भी कोई अवतार आया तो उन लोगांे ने अपने जीवन मे संघर्षशीलता की एक मिशाल खडी की और जब तक वे सशरीर रहे तब तक अधिकतम विरूद्ध ही रहे और जब शरीर त्याग दिये तब उनके नाम पर रोजी-रोटी चलाने लगे। कोेई भी महान कार्य चमत्कार से नहीं बल्कि सतत् बुद्धि युक्त कर्मशील रहने से सम्पन्न होता है। जातिवाद-सम्प्रदायवाद के सम्बंध मे विश्वमानव ने कहा कि जो सत्य रूप मे महापुरूष होते है। वे मानव प्रकृति मात्र के लिए कार्य करते है। परन्तु जब वे कर्तव्य मार्ग पर बढ़ते है तो अन्य मानव चँूकि वे जातिवाद-सम्प्रदायवाद के पक्षधर होते हैं। इसलिए उस महापुरूष को भी उसी अनुसार देखते हुए जुड़ना नहीं चाहते फिर विवशतावश वह महापुरूष अपने परिचितांे को ही साथ लेता है। और ऐेसे मे उसे सर्वप्रथम अपनी जाति सम्प्रदाय के लोेग ही मिलते है। इन स्थितियो में यह नहीं सोचना चाहिए कि वह जातिवाद के अधीन ऐसा करता है। उसका कारण लोगों का साथ न आना होता है और उसका कारण भी अन्य जाति के लोग ही होते हैं। क्यांेकि उनका साथ न आना, उनकी ही गलती होती है। जो अपना अवसर तो गँवाते ही है, साथ ही उस जाति के एकीकरण का अवसर भी देते हैं। (उपासना ग्रुप पब्लिकेशन तथा जर्नलिस्ट कौंसिल आफ इण्डिया के सदस्यो के साथ विश्वमानव ने अपना जन्मदिन एक सादे समारोह में उनके कार्यालय में मनाया और उसी अवसर पर उन्होने अपने विषय मंे उपरोक्त स्पष्टीकरण दी।)


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