क्या है जनिहत यािचका (PIL-Pulic Interest Litigation)
देश के हर नागरिक को संिवधान की ओर से छह मूल अधिकार दिए गए है। ये हैं-
1. समानता का अधिकार, 2. स्वतंत्रता का अधिकार, 3. शोषण के खिलाफ अधिकार, 4. संस्कृित और शिक्षा का अधिकार, 5. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार और 6. मूल अधिकार पाने का रास्ता।
अगर किसी नागरिक (आम आदमी) के किसी भी मूल अधिकार का हनन हो रहा है, तो वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मूल अधिकार कघ्घ् रघ्घ के लिए गुहार लगा सकता है। वह अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट का और अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
अगर यह मामला निजी न होकर व्यापक जनिहत से जुड़ा है तो यािचका को जनिहत यािचका के तौर पर देखा जाता है। पीआईएल डालने वाले शख्स को अदालत को यह बताना होगा कि कैसे उस मामले में आम लोंगो का हित प्रभावित हो रहा है?
अगर मामला निजीहित से जुड़ा है या निजी तौर पर किसी के अधिकारों का हनन हो रहा है तो उसे जनिहत यािचका नहीं माना जाता। ऐसे मामलों में दायर की गईं याचिका को पर्सनल इन्टरेस्ट लिटिगेशन कहा जाता है और इसी के तहत उसकी सुनवाईं होती है।
दायर की गईं याचिका जनहित है कि नहीं, इसका फैसला कोर्ट ही करता है।
पीआईएल में सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट सरकार को उचित निर्देश जारी करती है। यानी पीआईएल के जरिए लोग जनहित के मामलों में सरकार को अदालत से निर्देश जारी करवा सकते हैं।
कहाँ दखिल होती है पी.आई.एल
पीआईएल हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है। इससे नीचे की अदालतों में पीआईएल दािखल नहीं होती। कोई भी पीआईएल आमतौर पर पहले हाई कोर्ट में ही दािखल की जाती है। वहां से अर्जी खारिज होने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है। कई बार मामला व्यापक जनिहत से जुड़ा होता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट सीधे भी पीआईएल पर अनुच्छेद-32 के तहत सुनवाई करती है।
कैसे दािखल करें पी.आई.एल
1. लेटर (पत्र) के जरिये
अगर कोई शख्स आम आदमी से जुड़े मामले में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखता है, तो कोर्ट देखता है कि क्या मामला वाकई आम आदमी के हित से जुड़ा है। अगर ऐसा है तो उस लेटर को ही पीआईएल के तौर पर लिया जाता है और सुनवाई होती है।
लेटर में यह बताया जाना जरूरी है कि मामला कैसे जनिहत से जुड़ा है और यािचका में जो भी मुद्दे उठाए गए हैं, उनके हक में पुख्ता सबूत क्या हैं। अगर कोई सबूत है तो उसकी कॉपी भी लेटर के साथ लगा सकते हैं। लेटर जनिहत यािचका में तब्दील होने के बाद संबंिधत पक्षों को नोटिस जारी होता है और याचिकाकर्ता को भी कोर्ट में पेश होने के लिए कहा जाता है। सुनवाई के दौरान अगर याचिकाकर्ता के पास वकील न हो तो कोर्ट वकील मुहैया करा सकती है।
लेटर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम लिखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम भी यह लेटर लिखा जा सकता है। लेटर हिन्दी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। यह हाथ से लिखा भी हो सकता है और टाइप किया हुआ भी। लेटर डाक से भेजा जा सकता है। जिस हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से संबंिधत मामला है, उसी को लेटर लिखा जाता है। लिखने वाला कहाँ रहता है, इससे कोई मतलब नहीं है।
दिल्ली से संबंिधत मामलों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में, फरीदाबाद और गुड़गांव से संबधित मामलों के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में और यूपी से जुड़े मामलों के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में लेटर लिखना होगा।
लेटर लिखने के लिए कोर्ट के पते इस तरह हैं-
1. चीफ जस्टिस
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंिडया
तिलक मार्ग, नई दिल्ली- 110001
2. चीफ जस्टिस
दिल्ली हाई कोर्ट,
शेरशाह रोड, नई दिल्ली- 110003
3. चीफ जस्टिस
इलाहाबाद हाई कोर्ट
1, लाल बहादुर शास्त्री मार्ग, इलाहाबाद
4. चीफ जस्टिस
पंजाब एण्ड हरियाणा हाई कोर्ट
सेक्टर 1, चंडीगढ़
लेटर (पत्र) का प्रारूप
पत्र निम्न प्रकार प्रारम्भ करें और निचे अपना नाम और पता लिखें -
दिनांक: ....................................
सेवा में,
मुख्य न्यायाधीश
सर्वोच्च न्यायालय, भारत
तिलक मार्ग, नई दिल्ली - 110001
विषय: ...................................................................................................................................................................
माननीय महोदय,
...................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................
पूर्ण सम्मान के साथ
दिनांक - प्रार्थी (याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर)
पूरा पता - (पूरा नाम)
2. वकील के जरिये
कोई भी शख्स वकील के मदद से जनहित यािचका दायर कर सकता है। वकील यािचका तैयार करने में मदद करते हैं। याचिका में प्रतिवादी कौन होगा और किस तरह उसे ड्राफ्ट किया जाएगा, इन बात के लिए वकील की मदद जरूरी है।
पीआईएल दायर करने के लिए कोई फीस नहीं लगती। इसे सीधे काउंटर पर जाकर जमा करना होता है। हां, जिस वकील से इसके लिए सलाह ली जाती है, उसकी फीस देनी होती है। पीआईएल ऑनलाइन दायर नहीं की जा सकती।
FORMAT OF WRIT PETITION
A SYNOPSIS AND LIST OF DATES (Specimen enclosed)
B FROM NEXT PAGE
IN THE SUPREME COURT OF INDIA
ORIGINAL JURISDICTION
CIVIL WRIT PETITION NO. OF 2005
IN THE MATTER OF
.....Petitioner
versus
....Respondents
PETITION UNDER ARTICLE________OF THE CONSTITUTION OF
INDIA FOR ISSUANCE OF A WRIT IN THE NATURE OF
__________UNDER ARTICLE______OF THE CONSTITUTION OF INDIA.
To
Hon’ble The Chief Justice of India and His Lordship’s Companion
Justices of the Supreme Court of India. The Humble petition of the Petitioner
abovenamed.
_________________________________________________________________________________
MOST RESPECTFULLY SHEWETH :
1. Facts of the case
2. Question(s) of Law
3. Grounds
4. Averment:-
That the present petitioner has not filed any other petition in any High Court or the Supreme Court of India on the subject matter of the present petition.
PRAYER
In the above premises, it is prayed that this Hon’ble Court may be pleased:
(i) .............
(ii) to pass such other orders and further orders as may be deemed necessary on the facts and in the circumstances of the case.
FOR WHICH ACT OF KINDNESS, THE PETITIONER SHALL AS INDUTY BOUND, EVER PRAY.
FILED BY:
PETITIONER-IN-PERSON
DRAWN:
FILED ON:
_________________________________________________________________________________
C The Writ Petition should be accompanied by:
(i) Affidavit of the petitioner duly sworn.
(ii) Annexures as referred to in the Writ Petitioner, Rs.2/- per annexure.
(iii) 1+5 copies of the Writ Petition are required
(iv) Court fee of Rs.50/- per petitioner (In Crl. Matter no court fee is payable)
(v) Index (As per Specimen enclosed)
(vi) Cover page (as per Specimen enclosed)
(vii) Any application to be filed, Rs. 12/- per application
(viii) Memo of appearance, Rs. 5/- Court fee.
Petitioner-in-person may see a copy of WP (kept with AR-IB) to have practical knowledge about drafting of petition.
_________________________________________________________________________________
I N D E X
_______________________________________________________________________________________________________
Sl. No. PARTICULARS PAGES
_________________________________________________________________________________
1. Synopsis and List of Dates
2. Writ Petition alongwith Affidavit in support
3. Annexures
4. Application if any
_________________________________________________________________________________
IN THE SUPREME COURT OF INDIA
ORIGINAL JURISDICTION
CIVIL WRIT PETITION NO. OF 2005
.....Petitioner
Versus
......Respondent
P A P E R - B O O K
FOR INDEX KINDLY SEE INSIDE
FILED BY:
(ADVOCATE FOR THE PETITIONER/
PETITIONER-IN-PERSON)
Filed on:
_________________________________________________________________________________
कोर्ट का खुद संज्ञान
अगर मीडिया में जनिहत से जुड़े मामले पर कोई खबर छपे, तो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट अपने आप संज्ञान ले सकती है। कोर्ट उसे पीआईएल की तरह सुनती है और आदेश पारित करती है।
***********************************************************************************************************
जनहित याचिका - 01. पूर्ण शिक्षा का अधिकार
नागरिकों व अन्य संगठन से निवेदन है कि राष्ट्रहित के लिए निम्नलिखित जनहित याचिका के प्रारूप को लिफाफे में रखकर अधिक से अधिक सर्वोच्च न्यायालय को प्रेषित करें।
सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय,
सर्वोच्च न्यायालय, भारत,
तिलक मार्ग, नई दिल्ली - 110001
विषय - एक भारत-श्रेष्ठ भारत के लिए ”पूर्ण शिक्षा के अधिकार“ हेतु जनहित याचिका।
माननीय महोदय,
राष्ट्र के सजग और समर्पित नागरिक होने के कारण भारतीय संविधान के धारा-51(ए) के अन्र्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य तथा जनहित याचिका के माध्यम से मैं निवेदन करता हूँ कि-
मानव सभ्यता अपने विकास चरणों को सफलतापूर्वक पार करते हुये वर्तमान समय में पदार्थ आधारित विज्ञान, पदार्थ विज्ञान और मन आधारित विज्ञान, आध्यात्म विज्ञान दोनों के चरम पर पहुँच चुका है। और हम सभी ”निर्माण“ शब्द से परिचित होकर, निर्माता के रूप में - मनुष्य स्वयं को स्थापित कर चुका है। विज्ञान और आध्यात्म दोनों यह मानता है कि - ”सभी अनुभव प्रवृत्तियों के रूप में अनुभव करने वाली जीवात्मा में संगृहीत रहते हैं और उसे अविनाशी जीवात्मा के पुनर्जन्म द्वारा संक्रमित किये जाते हैं; भौतिकवाद वाले मस्तिष्क को सभी कर्मों के आधार होने के और बीजाणुओं के द्वारा उनके संक्रमण का सिद्धान्त मानते हैं। यदि बीजाणुओं द्वारा आनुवंशिक संक्रमण समस्या को हल करने के लिए पूर्णतः पर्याप्त है, तब तो भैतिकता ही अपरिहार्य है और आत्मा के सिद्धान्त की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि वह पर्याप्त नहीं है, तो प्रत्येक आत्मा अपने साथ इस जन्म में अपने भूतकालिक अनुभवों को लेकर आती है, यह सिद्धान्त पूर्णतः सत्य है। पुनर्जन्म या भौतिकता-इन दो में से किसी एक को मानने के सिवा और कोई गति नहीं है।“
इस प्रकार हम सभी जो वातावरण अपने शब्दों और साहित्यों से व्यक्त करते हैं वह हम सभी पर निर्भर जीवों के मन का निर्माण करता है अर्थात देश और विश्व की स्थिति जो भी हो, वह हमारे द्वारा ही निर्मित है। ऐसी स्थिति में एक पूर्ण शिक्षा पाठ्यक्रम की आवश्यकता है जिससे हम सभी पूर्ण मानव का निर्माण कर सके, दूसरे अर्थ में पूर्ण मानव का उत्पादन कर सकें।
”शिक्षा के अधिकार“ के बाद ”पूर्ण शिक्षा का अधिकार“ हमारे आने वाली पीढ़ी को मिलना चाहिए जो पूरे राष्ट्र के हित के लिए है और उसे प्रभावित करता है। ”शिक्षा के अधिकार“ साक्षर होने को व्यक्त करता है जबकि ”पूर्ण शिक्षा का अधिकार“, हमें क्या पढ़ाया जा रहा है और हमारा निर्माण किस रूप में किया जा रहा है, इससे सम्बन्धित है।
देश, शिक्षा के क्षेत्र में सैकड़ों सरकारी व सैकड़ों नीजी विश्वविद्यालय की स्थापना कर चुका है इसके अलावा महाविद्यालय, इण्टर कालेज, जूनियर व प्राथमिक शिक्षा के विद्यालय भी हैं। इनमें शिक्षक हैं जो वर्षो से शैक्षिक कार्य में हैं उनके द्वारा लाखों बौद्धिक शक्ति का निर्माण हुआ है। वैश्विकरण और ज्ञान की ओर बढ़ते इस युग में ”पूर्ण शिक्षा पाठ्यक्रम“ के निर्माण में इनकी सहायता ली जा सकती है।
अतः निवेदन है कि राष्ट्र की एकता, अखण्डता, विकास, साम्प्रदायिक एकता, समन्वय, नागरिकों के ज्ञान की पूर्णता इत्यादि जो कुछ भी राष्ट्रहित में हैं उसके लिए वे शिक्षा के क्षेत्र के सैकड़ों सरकारी व सैकड़ों नीजी विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, इण्टर कालेज, जूनियर व प्राथमिक शिक्षा के विद्यालय के माध्यम से उपरोक्त उद्देश्यों को पूर्ण कराये जो राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य के लिए अतिआवश्यक है। जो नागरिकों का राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निर्धारण व परिभाषित करने का मार्ग भी है।
पूर्ण सम्मान के साथ
दिनांक - प्रार्थी (याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर)
पूरा पता - पूरा नाम
***********************************************************************************************************
जनहित याचिका - 02. राष्ट्रीय शास्त्र
नागरिकों व अन्य संगठन से निवेदन है कि राष्ट्रहित के लिए निम्नलिखित जनहित याचिका के प्रारूप को लिफाफे में रखकर अधिक से अधिक सर्वोच्च न्यायालय को प्रेषित करें।
सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय,
सर्वोच्च न्यायालय, भारत,
तिलक मार्ग, नई दिल्ली - 110001
विषय - एक भारत-श्रेष्ठ भारत के लिए ”राष्ट्रीय शास्त्र“ हेतु जनहित याचिका।
माननीय महोदय,
राष्ट्र के सजग और समर्पित नागरिक होने के कारण भारतीय संविधान के धारा-51(ए) के अन्र्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य तथा जनहित याचिका के माध्यम से मैं निवेदन करता हूँ कि-
जिस प्रकार भारत में एक राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा), एक राष्ट्रीय पक्षी (भारतीय मोर), एक राष्ट्रीय पुष्प (कमल), एक राष्ट्रीय पेड़ (भारतीय बरगद), एक राष्ट्रीय गान (जन गण मन), एक राष्ट्रीय नदी (गंगा), एक राष्ट्रीय प्रतीक (सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ का सिंह), एक राष्ट्रीय पंचांग (शक संवत पर आधारित), एक राष्ट्रीय पशु (बाघ), एक राष्ट्रीय गीत (वन्दे मातरम्), एक राष्ट्रीय फल (आम), एक राष्ट्रीय खेल (हाॅकी), एक राष्ट्रीय मुद्रा चिन्ह, एक संविधान है उसी प्रकार एक राष्ट्रीय शास्त्र भी भारत को आवश्यकता है। जिससे नागरिक अपने व्यक्तिगत धर्म शास्त्र को मानते हुये भी राष्ट्रधर्म को भी जान सके। जो लोकतन्त्र का विश्व धर्म / एकता धर्म / लोकतन्त्र धर्म / समष्टि धर्म / प्राकृतिक धर्म / सत्य धर्म / संयुक्तमन धर्म / ईश्वर धर्म / सार्वजनिक धर्म /दृश्य धर्म /मानव धर्म / धर्मनिरपेक्ष धर्म और उसका शास्त्र भी होगा।
यह आवश्यक और व्यपाक जनहित के लिए इसलिए है कि राष्ट्र स्वयं के प्रति समर्पित भावना के नागरिक का निर्माण कर सके और जनता को स्वयं सहित राष्ट्र के प्रति कत्र्तव्य बोध हो सके जिससे उनकी बौद्धिकता व्यापक होकर कम से कम अपने राष्ट्र के स्तर तक पहुँच सके।
अतः निवेदन है कि राष्ट्र की एकता, अखण्डता, विकास, साम्प्रदायिक एकता, समन्वय, नागरिकों के ज्ञान की पूर्णता इत्यादि जो कुछ भी राष्ट्रहित में हैं उसके लिए वे राष्ट्र क्षेत्र के आध्यात्मिक-राजनैतिक-सामाजिक-व्यावसायिक बौद्धिक शक्ति के माध्यम से उपरोक्त उद्देश्यों को पूर्ण कराये जो राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य के लिए अतिआवश्यक है। जो नागरिकों का राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निर्धारण व परिभाषित करने का मार्ग भी है।
पूर्ण सम्मान के साथ
दिनांक - प्रार्थी (याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर)
पूरा पता - पूरा नाम
***********************************************************************************************************
जनहित याचिका - 03. नागरिक मन निर्माण का मानक
नागरिकों व अन्य संगठन से निवेदन है कि राष्ट्रहित के लिए निम्नलिखित जनहित याचिका के प्रारूप को लिफाफे में रखकर अधिक से अधिक सर्वोच्च न्यायालय को प्रेषित करें।
सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय,
सर्वोच्च न्यायालय, भारत,
तिलक मार्ग, नई दिल्ली - 110001
विषय - एक भारत-श्रेष्ठ भारत के लिए ”नागरिक मन निर्माण का मानक“ हेतु जनहित याचिका।
माननीय महोदय,
राष्ट्र के सजग और समर्पित नागरिक होने के कारण भारतीय संविधान के धारा-51(ए) के अन्र्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य तथा जनहित याचिका के माध्यम से मैं निवेदन करता हूँ कि-
मानव सभ्यता अपने विकास चरणों को सफलतापूर्वक पार करते हुये वर्तमान समय में पदार्थ आधारित विज्ञान, पदार्थ विज्ञान और मन आधारित विज्ञान, आध्यात्म विज्ञान दोनों के चरम पर पहुँच चुका है। और हम सभी ”निर्माण“ शब्द से परिचित होकर, निर्माता के रूप में - मनुष्य स्वयं को स्थापित कर चुका है। विज्ञान और आध्यात्म दोनों यह मानता है कि - ”सभी अनुभव प्रवृत्तियों के रूप में अनुभव करने वाली जीवात्मा में संगृहीत रहते हैं और उसे अविनाशी जीवात्मा के पुनर्जन्म द्वारा संक्रमित किये जाते हैं; भौतिकवाद वाले मस्तिष्क को सभी कर्मों के आधार होने के और बीजाणुओं के द्वारा उनके संक्रमण का सिद्धान्त मानते हैं। यदि बीजाणुओं द्वारा आनुवंशिक संक्रमण समस्या को हल करने के लिए पूर्णतः पर्याप्त है, तब तो भैतिकता ही अपरिहार्य है और आत्मा के सिद्धान्त की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि वह पर्याप्त नहीं है, तो प्रत्येक आत्मा अपने साथ इस जन्म में अपने भूतकालिक अनुभवों को लेकर आती है, यह सिद्धान्त पूर्णतः सत्य है। पुनर्जन्म या भौतिकता-इन दो में से किसी एक को मानने के सिवा और कोई गति नहीं है।“
इस प्रकार हम सभी जो वातावरण अपने शब्दों और साहित्यों से व्यक्त करते हैं वह हम सभी पर निर्भर जीवों के मन का निर्माण करता है अर्थात देश और विश्व की स्थिति जो भी हो, वह हमारे द्वारा ही निर्मित है।
यह राष्ट्र क्षेत्र के सभी आध्यात्मिक-राजनैतिक-सामाजिक-व्यावसायिक संगठन से पूछा जाना चाहिए कि वे किस प्रकार के नागरिक का निर्माण करना चाहते हैं और उसका मानक क्या हैं?
यह आवश्यक और व्यपाक जनहित के लिए इसलिए है कि जनता स्वयं को यह जान सके कि उनका निर्माण किस उद्देश्य के लिए किया जा रहा है और उनका उपयोग किस क्षेत्र में है। जिससे वे अपने निर्मित मन (मानव संसाधन) के अनुसार उस क्षेत्र में कार्य कर सकें।
अतः निवेदन है कि राष्ट्र की एकता, अखण्डता, विकास, साम्प्रदायिक एकता, समन्वय, नागरिकांे के ज्ञान की पूर्णता इत्यादि जो कुछ भी राष्ट्रहित में हैं उसके लिए राष्ट्र क्षेत्र के सभी आध्यात्मिक-राजनैतिक-सामाजिक-व्यावसायिक संगठन से पूछा जाना चाहिए कि वे किस प्रकार के नागरिक का निर्माण करना चाहते हैं और उसका मानक क्या हैं? जो राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य के लिए अतिआवश्यक है। जो नागरिकों का राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निर्धारण व परिभाषित करने का मार्ग भी है।
पूर्ण सम्मान के साथ
दिनांक - प्रार्थी (याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर)
पूरा पता - पूरा नाम
***********************************************************************************************************
जनहित याचिका - 04. सार्वजनिक प्रमाणित सत्य-सिद्धान्त
नागरिकों व अन्य संगठन से निवेदन है कि राष्ट्रहित के लिए निम्नलिखित जनहित याचिका के प्रारूप को लिफाफे में रखकर अधिक से अधिक सर्वोच्च न्यायालय को प्रेषित करें।
सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय,
सर्वोच्च न्यायालय, भारत,
तिलक मार्ग, नई दिल्ली - 110001
विषय - सार्वजनिक प्रमाणित सत्य-सिद्धान्त को सार्वजनिक करने हेतु जनहित याचिका।
माननीय महोदय,
राष्ट्र के सजग और समर्पित नागरिक होने के कारण भारतीय संविधान के धारा-51(ए) के अन्र्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य तथा जनहित याचिका के माध्यम से मैं निवेदन करता हूँ कि-
मानव सभ्यता अपने विकास चरणों को सफलतापूर्वक पार करते हुये वर्तमान समय में पदार्थ आधारित विज्ञान, पदार्थ विज्ञान और मन आधारित विज्ञान, आध्यात्म विज्ञान दोनों के चरम पर पहुँच चुका है। और हम सभी दानों दिशाओं से अनेक सार्वभौम सिद्धान्तों को प्राप्त कर चुके हैं। ऐसी स्थिति में सभी दिशाओं/विषयों की ओर से आने वाले सिद्धान्तों का एकीकरण करते हुये हमें ”एक सार्वजनिक प्रमाणित सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ को सार्वजनिक कर देना चाहिए।
”एक सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ को सार्वजनिक करने से जनता के लिए हित का विषय ये है कि उन्हें मानसिक-बौद्धिक स्थिरता प्राप्त होगी और उससे वे अपने जीवन में प्रणाली का विकास कर पायेंगे साथ राष्ट्रीय बौद्धिक क्षमता का भी विकास होगा। परिणामस्वरूप राष्ट्र के राष्ट्रीय सुख में विकास होगा।
अतः निवेदन है कि राष्ट्र की एकता, अखण्डता, विकास, साम्प्रदायिक एकता, समन्वय, नागरिकों के ज्ञान की पूर्णता इत्यादि जो कुछ भी राष्ट्रहित में हैं उसके लिए राष्ट्र क्षेत्र के सभी आध्यात्मिक-राजनैतिक-सामाजिक-व्यावसायिक संगठन से पूछा जाना चाहिए कि उनकी दृष्टि-अनुभव-प्रयोग में कौन सा ”एक सार्वजनिक प्रमाणित सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ हैं? जो राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य के लिए अतिआवश्यक है। जो नागरिकों का राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निर्धारण व परिभाषित करने का मार्ग भी है।
पूर्ण सम्मान के साथ
दिनांक - प्रार्थी (याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर)
पूरा पता - पूरा नाम
***********************************************************************************************************
जनहित याचिका - 05. गणराज्य का सत्य रूप
नागरिकों व अन्य संगठन से निवेदन है कि राष्ट्रहित के लिए निम्नलिखित जनहित याचिका के प्रारूप को लिफाफे में रखकर अधिक से अधिक सर्वोच्च न्यायालय को प्रेषित करें।
सेवा में,
माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय,
सर्वोच्च न्यायालय, भारत,
तिलक मार्ग, नई दिल्ली - 110001
विषय - गणराज्य के सत्य रूप को सार्वजनिक करने हेतु जनहित याचिका।
माननीय महोदय,
राष्ट्र के सजग और समर्पित नागरिक होने के कारण भारतीय संविधान के धारा-51(ए) के अन्र्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य तथा जनहित याचिका के माध्यम से मैं निवेदन करता हूँ कि-
मानव सभ्यता अपने विकास चरणों को सफलतापूर्वक पार करते हुये वर्तमान समय में पदार्थ आधारित विज्ञान, पदार्थ विज्ञान और मन आधारित विज्ञान, आध्यात्म विज्ञान दोनों के चरम पर पहुँच चुका है। और हम सभी दोनों दिशाओं से अनेक सार्वभौम सिद्धान्तों को प्राप्त कर चुके हैं। इस विकास यात्रा में हम सभी साकार व्यक्ति आधारित राजतन्त्र में राजा से उठकर साकार व्यक्ति आधारित लोकतन्त्र में आये, फिर निराकार संविधान आधारित लोकतन्त्र में आ गये।
इस विकास क्रम में निःसन्देह मानव ने अनुभव और बौद्धिक विकास भी व्यापकता के साथ किया है और इस क्रम में भारत ने लोकतन्त्र का सफलतापूर्वक संचालन करते हुए विश्व के समक्ष स्वयं को एक सर्वोच्च उदाहरण के रूप में भी प्रस्तुत किया है। भारत के सम्मानित संविधान निर्मातागण ने भारत देश के संविधान के प्रस्तावना में ”समाजवादी लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए“ वाक्य दिया है। संविधान में परिवर्तन के लिए अधिकृत भारतीय संसद से गणराज्य के सत्य रूप के लिए पूछा जाना चाहिए जिससे संविधान के प्रस्तावना में दिये गये ”समाजवादी लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए“ वाक्य के अर्थ को पाने के लिए और भारत को मानक गणराज्य बनाने के लिए देश बौद्धिकता को प्राप्त कर सके।
गणराज्य के सत्य रूप को सार्वजनिक करने से जनता के लिए हित का विषय ये है कि उनका मानसिक-बौद्धिक स्वरूप व्यष्टि से समष्टि में व्यापक स्वरूप को प्राप्त कर स्वयं और देश के एकरूप हो जायेंगे। साथ ही ”एक भारत - श्रेष्ठ भारत“ के अर्थ को समझ पायेंगे और इसके निर्माण में उनका बौद्धिक योगदान हो सकेगा। क्योंकि हम सभी को लोकतन्त्र के विकास यात्रा अन्तिम चरण पूर्ण लोकतन्त्र के लिए मानक व संविधान आधारित लोकतन्त्र तक पहुँचना है और विश्व को एक मानक लोकतन्त्र देना है।
अतः निवेदन है कि राष्ट्र की एकता, अखण्डता, विकास, साम्प्रदायिक एकता, समन्वय, नागरिकों के ज्ञान की पूर्णता इत्यादि जो कुछ भी राष्ट्रहित में हैं उसके लिए भारतीय संसद से गणराज्य के सत्य रूप के लिए पूछा जाना चाहिए जो राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य के लिए अतिआवश्यक है। जो नागरिकों का राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निर्धारण व परिभाषित करने का मार्ग भी है।
पूर्ण सम्मान के साथ
दिनांक - प्रार्थी (याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर)
पूरा पता - पूरा नाम
No comments:
Post a Comment