Monday, March 16, 2020

पत्रकारिता को आह्वान

पत्रकारिता को आह्वान

21वीं सदी और भविष्य में स्वस्थ लोकतंत्र की प्राप्ति का उसके चारो स्तम्भ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता मंे सिर्फ पत्रकारिता ही एक मात्र और अन्तिम उम्मीद है। इस प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि अब स्वस्थ लोकतंत्र की प्राप्ति न हो पाने का कारण मात्र पत्रकारिता ही है। पत्रकारिता को अपने वर्तमान शैेली कर्म हो जाने पर उसको समाज के समक्ष रखना सहित एक नई शैली अपनानी पडे़गी जिससे दिशाहीन कदम उठे ही नहीं। वह है- भविष्य की आवश्यकता का पूर्ण विकसित सार्वभौम सत्य-सैद्धान्तिक रचनात्मक दिशा को समाज के समक्ष रखना जिस पर विवशतावश कार्य हो सके तथा लोकतंत्र स्वस्थता की दिशा की ओर बढ़ जाये। ऐसा नहीं कि यह शैली पत्रकारिता ने प्रारम्भ नहीं की है, की है परन्तु वह उस पूर्ण विकसित सार्वभौम सत्य-सैद्धान्तिक रचनात्मक दिशा का निम्नतम बीज रूप सिर्फ रचनात्मक दिशा को ही व्यक्त करता है। जो सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त से अभी मुक्त है। 
विचार और विचार आधारित रचनात्मक दिशा के संसार मंे वे ही विचार और दिशा शेष बचते है जो सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त की दिशा की ओर होते हंै। यह या तो समायान्तराल बाद स्पष्ट होता है या विश्वव्यापी विवादमुक्त सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के प्रस्तुतीकरण के बाद। विचार और विचार आधारित रचनात्मक दिशा मंे जिन्हें सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त का आधार प्राप्त होता है वे ही सत्य-सैद्धान्तिक रचनात्मक दिशा में होते हंै तथा शेष सभी विचार आधारित रचनात्मक दिशा में होते है। जो एक समयान्तराल बाद विरोध के शिकार, पुनः विचारणीय या महत्वहीन हो जाते है। 
लेखकांे के सम्बध मंे भी यही बात है, जो जितना सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के ज्ञान के करीब होता है। वह उतना ही उच्चस्तरीय लेखक बन जाता है। अन्यथा उसके लेख समयान्तराल बाद महत्वहीन हो जाते है। अक्षर, शब्द, कागज इत्यादि तो सबके लिए समान रूप से उपलब्ध है परन्तु सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त का ज्ञान ही उन्हें निम्न से उच्च स्तरीय लेखकों के रूप में व्यक्त और स्थापित करता है। 
समयानुसार न होने के कारण ही अब तक सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त मानव समाज को उपलब्ध नहीं था परिणामस्वरूप विचार और सत्य विचार मंे विवाद उत्पन्न हो रहे थे परन्तु अब सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त उपलब्ध हो चुका है। स्वस्थ लोकतंत्र की प्राप्ति तो तभी हो सकती है जब प्रत्येक मतदाता निम्न से उच्च स्तरीय विचार को पूर्ण रूप से समझ सकने में सक्षम हो और तभी स्वस्थ समाज की भी प्राप्ति हो सकती है। ”विश्वशास्त्र“ साहित्य सहित उसके अनेक विषय समाचार का ही विषय है जिसे पत्रकारिता को अपने ”फसर््ट स्टेट“ का दर्जा प्राप्त करने के लिए निस्वार्थ भाव से उठाना चाहिए ऐसी पत्रकारिता से आशा की जा सकती है।


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