Monday, March 16, 2020

सर्वोच्च न्यायालय को आह्वान

सर्वोच्च न्यायालय को आह्वान

सर्वोच्च न्यायालय, एक तरफ संविधान का संरक्षक, अंतिम व्याख्याकर्ता, मौलिक अधिकारों का रक्षक, केन्द्र-राज्य विवादों में एक मात्र मध्यस्थ है, वहीं यह संविधान के विकास में भी भूमिका निभाता रहा है। इसने माना है कि निरंतर संवैधानिक विकास होना चाहिए ताकि समाज के हित संवर्धित हो। न्यायायिक पुनरीक्षण शक्ति के कारण यह संवैधानिक विकास में सहायता करता है। सार्वाधिक महत्वपूर्ण विकास यह है कि भारत में संविधान सर्वोच्च है। इसने संविधान के मूल ढाँचे का अदभुत सिद्धान्त दिया है जिसके चलते संविधान काफी सुरक्षित हो गया है। इसे मनमाने ढंग से बदला नहीं जा सकता है। इसने मौलिक अधिकारों का भी विस्तार किया है। इसने अनु 356 के दुरूपयोग को भी रोका है। सुप्रीम कोर्ट इस उक्ति का पालन करता है कि संविधान खुद नहीं बोलता है यह अपनी वाणी न्यायपालिका के माध्यम से बोलता है।
न्यायायिक सक्रियता का अर्थ, न्यायपालिका द्वारा निभायी जाने वाली सक्रिय भूमिका है जिसमें राज्य के अन्य अंगों को उनके संवैधानिक कृत्य करने को बाध्य करे। यदि वे अंग अपने कृत्य संपादित करने में सफल रहे तो जनतन्त्र तथा विधि शासन के लिए न्यायपालिका उनकी शक्तियों-भूमिका का निर्वाह सीमित समय के लिए करेगी। यह सक्रियता जनतन्त्र की शक्ति तथा जन विश्वास को पुर्नस्थापित करती है। इस तरह यह सक्रियता न्यायपालिका पर एक असंवेदनशील-गैर जिम्मेदार शासन के कृत्यों के कारण लादा गया बोझ है। यह सक्रियता न्यायिक प्रयास है जो मजबूरी में किया गया है। यह शक्ति उच्च न्यायालय तथा सुप्रीम कोर्ट के पास है। ये उनकी पुनरीक्षा तथा रिट क्षेत्राधिकार में आती है। जनहित याचिका को हम न्यायायिक सक्रियता का मुख्य माध्यम मान सकते हैं।
42वें संशोधन द्वारा भारतीय संविधान के धारा-51(ए) के अन्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य जोड़ा गया है जो निम्नलिखित है-
1.संविधान के प्रति प्रतिबद्धता, इसके आदर्शो, धाराओं, राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रीय गान का आदर करना।
2.स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हेतू प्रेरित करने वाले सुआदर्शाे का अनुकरण करना व उन्हें चिरस्थायी बनाना।
3.भारत की सर्वोच्चता, एकता और अखण्डता की रक्षा करना तथा समर्थन करना।
4.जब भी आवश्यकता पड़े देश की रक्षा करना व राष्ट्रीय सेवाओं हेतू समर्पित होना।
5.समाज में भाई-चारें की भावना का विस्तार करना, मातृत्व भाव, धार्मिक, भाषायिक, क्षेत्रीय विभिन्नताओं में एकता कायम करना तथा नारी सम्मान आदि का ध्यान देना।
6.अपने मिश्रित संस्कृति का मूल्यांकन करना उसको स्थायित्व देना और इसकी परम्परा को कायम रखना।
7.प्राकृतिक सम्पदा की रक्षा करना जिसमें जलवायु, जंगल, झील, नदियां, जंगली जीवों व समस्त जीवों के प्रति दया का भाव सम्मिलित है।
8.वैज्ञानिक भावना को प्रोत्साहित करना, मानवीय भावनाओं के स्वरूप की परख करते रहना।
9.जन सम्पत्ति की सुरक्षा करना और हिंसा आदि का परित्याग करना।
10.व्यक्तिगत, सामूहिक गतिविधियों के प्रत्येक क्षेत्र में सर्वोच्चता हासिल करना, जिससे राष्ट्र शतत उत्थान, प्रयत्न व प्राप्ति की ओर अग्रसर होता रहे।
11.जो कि माता-पिता या अभिभावक हो, वे अपने 6 साल से 14 साल के बच्चों को शिक्षा या अन्य ऐसे सुअवसरों का लाभ उन्हें मुहैया करावें। 
जनहित याचिकाओं का विचार अमेरिका में जन्मा, वहाँ इसे सामाजिक कार्यवाही याचिका कहते हैं। यह न्यायपालिका का आविष्कार तथा न्यायाधीश निर्मित विधि है। जनहित याचिका भारत में श्री पी.एन.भगवती ने प्रारम्भ की थी। ये याचिकाएँ जनहित को सुरक्षित तथा बढ़ाना चाहती हैं। ये लोकहित भावना पर कार्य करती है। ये ऐसे न्यायायिक उपकरण हैं जिनका लक्ष्य जनहित प्राप्त करना है। इनका लक्ष्य तीव्र तथा सस्ता न्याय एक आदमी को दिलवाना तथा कार्यपालिका-विधायिका को उनके संवैधानिक कार्य करवाने हेतू किया जाता है। ये समूह हित में काम आती हैं, न कि व्यक्ति हित में। यदि इनका दुरूपयोग किया जाये ता याचिकाकर्ता पर जुर्माना तक किया जा सकता है। इनको स्वीकारना या न स्वीकारना न्यायालय पर निर्भर करता है। इनकी स्वीकृति हेतू सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नियम बनाये हैं-
1.लोकहित से प्रेरित कोई भी व्यक्ति और संगठन इसे ला सकता है।
2.कोर्ट को दिया गया पोस्टकार्ड भी रिट याचिका मानकर ये जारी की जा सकती है।
3.कोर्ट को अधिकार होगा कि वह इस याचिका हेतू सामान्य न्यायालय शुल्क भी माफ कर दे।
4.ये राज्य के साथ ही निजी संस्थान के विरूद्ध भी लायी जा सकती है।
भारतीय संविधान के धारा-51(ए) के अन्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य तथा जनहित याचिका के माध्यम से मैं भारत के सर्वोच्च न्यायालय का आह्वान करता हूँ कि राश्ट्र की एकता, अखण्डता, विकास, साम्प्रदायिक एकता, समन्वय, नागरिको के ज्ञान की पूर्णता इत्यादि जो कुछ भी राष्ट्रहित में हैं उसके लिए वे सरकार व संसद को उसके संस्थान जैसे- एन.सी.ई.आर.टी, ज्ञान आयोग, राष्ट्रीय नवोन्मेष परिषद्, भारतीय मानक ब्यूरो के माध्यम से निम्नलिखित उद्देश्यों को पूर्ण कराये जो राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य के लिए अति आवश्यक है। साथ ही नागरिको का राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निर्धारण व परिभाषित करने का मार्ग है।

1. जिस प्रकार भारत में एक राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा), एक राष्ट्रीय पक्षी (भारतीय मोर), एक राष्ट्रीय पुष्प (कमल), एक राष्ट्रीय पेड़ (भारतीय बरगद), एक राष्ट्रीय गान (जन गण मन), एक राष्ट्रीय नदी (गंगा), एक राष्ट्रीय प्रतीक (सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ का सिंह), एक राष्ट्रीय पंचांग (शक संवत पर आधारित), एक राष्ट्रीय पशु (बाघ), एक राष्ट्रीय गीत (वन्दे मातरम्), एक राष्ट्रीय फल (आम), एक राष्ट्रीय खेल (हाॅकी), एक राष्ट्रीय मुद्रा चिन्ह, एक संविधान है उसी प्रकार एक राष्ट्रीय शास्त्र भी भारत को आवश्यकता है। जिससे नागरिक अपने व्यक्तिगत धर्म शास्त्र को मानते हुये भी राष्ट्रधर्म को भी जान सके। जो लोकतन्त्र का धर्मनिरपेक्ष-सर्वधर्मसमभाव शास्त्र भी होगा।
2. पिछले 65 वर्षो से अकेले रह रहे हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को एक राष्ट्रपुत्र भी चाहिए जिसके स्वामी विवेकानन्द पूर्णतः योग्य हैं।ं जिससे नागरिक उनके धर्मनिरपेक्ष-सर्वधर्मसमभाव विचार व जीवन से प्रेरणा प्राप्त कर सके।

3. ”शिक्षा के अधिकार अधिनियम“ के बाद अब ”पूर्ण शिक्षा का अधिकार अधिनियम“ बनना चाहिए। पूर्ण शिक्षा पाठ्यक्रम बनने से पूर्ण मानव का निर्माण प्रारम्भ होगा फलस्वरूप देश सहित विश्व के विकास और उसके प्रति समर्पित नागरिक प्राप्त होने लगेगें जो कत्र्तव्य आधारित नागरिक होंगे।

4. यह प्रश्न उठाना चाहिए कि देश, व्यक्ति व संस्था किस प्रकार के नागरिक का निर्माण करना चाहते हैं और उसका मानक क्या हैं? यह सभी संस्थानों से पूछा जाना चाहिए।

5. यह प्रश्न उठाना चाहिए कि ऐसा कौन सा सार्वजनिक प्रमाणित सत्य-सिद्धान्त है जो पूर्णतया विवादमुक्त है जिससे सभी तन्त्रों को विवादमुक्त कर उसका सत्यीकरण किया जा सके।

6. यह प्रश्न उठना चाहिए कि गणराज्य का सत्य रूप क्या है? जिससे हम सबसे बड़े लोकतन्त्र को पूर्णता प्रदान करते हुये विश्व को एक मानक लोकतन्त्र दे सकें।

7. मन या मानव संसाधन का विश्व मानक निर्धारण के लिए प्रक्रिया प्रारम्भ करना आवश्यक है जिससे राश्ट्र को मानक मानव संसाधन प्राप्त हो।

उपरोक्त कार्य संवैधानिक विकास व लोकतन्त्र की पूर्णता का ही कदम है।


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