विश्वशास्त्र के बाद का मनुष्य, समाज और शासन
प्रकृति की व्याख्या द्वारा ज्ञान के अन्त के शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ के बाद ब्रह्माण्ड की व्याख्या द्वारा कर्मज्ञान के अन्त का मानक व तन्त्र शास्त्र - विश्वशास्त्र उपलब्ध होने के बाद मनुष्य, समाज और शासन का निर्माण किस दिशा की ओर होगी यह विचारणीय विषय है। जिसकी संक्षिप्त रूपरेखा निम्न प्रकार है-
1. शिक्षा में शिक्षा पाठ्यक्रम को बदले बिना एक पूरक शास्त्र मनुष्य को उपलब्ध हो जायेगा जिससे वह अपने कर्मो के विश्लेषण व तुलना से जान सकेगा कि वह पूर्ण ईश्वरीय कार्य के अंश जीवन यात्रा में कितनी यात्रा तय कर चुका है और वह यात्रा इस जीवन में पूर्ण करना चाहता है या यात्रा जारी रखना चाहता है।
2. पृथ्वी के मानसिक विवादों को समाप्त कर मनुष्य, समाज व शासन को एक संतुलित कर्मज्ञान का मानक प्राप्त होगा जिससे एकात्मकर्मवाद का जन्म होगा। इस कारण सम्पूर्ण कर्म और मनुष्यता की सम्पूर्ण शक्ति एक दिशा की ओर होगी जिससे ब्रह्माण्डीय विकास होगा।
3. व्यक्ति आधारित समाज व शासन से उठकर मानक आधारित समाज व शासन का निर्माण होगा। अर्थात जिस प्रकार हम सभी व्यक्ति आधारित राजतन्त्र में राजा से उठकर व्यक्ति आधारित लोकतन्त्र में आये, फिर संविधान आधारित लोकतन्त्र में आ गये उसी प्रकार पूर्ण लोकतन्त्र के लिए मानक व संविधान आधारित लोकतन्त्र में हम सभी को पहुँचना है।
4. सभी का ज्ञान-कर्मज्ञान समान हो जाने से हम सभी वर्तमान में जीवन जीते हुये अपनी शक्ति का अधिकतम उपयोग करने में सक्षम हो जायेंगे।
5. अन्ततः सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य जगत व विज्ञान में अधिकतम मन केन्द्रित होने से प्रत्यक्ष पर ही विश्वास होगा और डाॅ0 संदीप बीजे बाग, संस्थापक एवं अध्यक्ष, ”विश्व सेवा तीर्थ“, 106, ओस्तवाल शापिंग सेन्टर, प्रथम तल, भयन्दर (पूर्व), थाणे (महाराष्ट्र)-401105 के निम्न पाँच विचार सत्य सिद्ध होगें।
ईश्वर के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक प्रभु - सूर्य
देश के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक देश - विश्व
धर्म के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक धर्म - प्रेम
कर्म के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक कर्म - सेवा
जाति के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक जाति - मानव
निर्णय आपके हाथ,
एकता का प्रयास या अनेकता का विकास
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Humanism, society and governance after the VISHWSHASTRA
After the interpretation of the universe, "Srimad Bhagavadgita or Gita or Geetopanishad" by the interpretation of nature, the standard and system of the end of karmagyan by the interpretation of the universe - after the availability of cosmology, which direction will the creation of man, society and governance be considered? subject is. The brief outline of which is as follows-
1. Without changing the education curriculum in education, a supplementary scripture will be available to man so that by analyzing and comparing his karma, he will know how much journey he has taken in the part-life journey of complete divine work and that journey in this life Wants to complete or continue the journey.
2. By ending the mental disputes of the earth, man, society and government will get the standard of a balanced karma, which will lead to monotonicism. Because of this, all the work and the entire power of humanity will be in one direction, which will lead to cosmic development.
3. Person-based society and governance will arise and a standard-based society and governance will be created. That is, just as we all rose from the king in a person-based monarchy and came to a people-based democracy, then we came to a constitution-based democracy, similarly we all have to reach the standard and constitution-based democracy for complete democracy.
4. With everyone's knowledge and knowledge being equal, we will all be able to make the most of our power by living life in the present.
5. Ultimately, due to maximum focus in public certified visual world and science, there will be direct belief and Dr. Sandeep B.J. Bagh, Founder and President, "Vishwa Seva Tirtha", 106, Ostwal Shopping Center, 1st Floor, Bhayandar (East), The following five views of Thane (Maharashtra) -401105 will prove to be true.
A God to end the war in the name of God - Surya
One country to end war in the name of country - World
A religion to end the war in the name of religion - love
A karma - service to end the war in the name of karma
A race to end war in the name of caste - human
Decision your hand,
Effort of unity or development of diversity
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