पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी
(Complete Human Manufacturing Technology)
आविष्कार विषयः- ”व्यक्तिगत मन और संयुक्तमन का विश्व मानक और पूर्णमानव निर्माण की तकनीकी है जिसे धर्म क्षेत्र से कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेदीय श्रृंखला तथा शासन क्षेत्र से WS-0 : मन की गुणवत्ता का विश्व मानक श्रृंखला तथा WCM-TLM-SHYAM.C तकनीकी कहते है। सम्पूर्ण आविष्कार सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त अटलनीय, अपरिवर्तनीय, शाश्वत व सनातन नियम पर आधारित है, न कि मानवीय विचार या मत पर आधारित।
मानक का अर्थ है- वह सर्वमान्य पैमाना, जिससे हम उस विषय का मूल्यांकन करते है। जिस विषय का वह पैमाना होता है। इस प्रकार मन की गुणवत्ता का मानक व्यक्ति तथा संयुक्त व्यक्ति (अर्थात संस्था, संघ, सरकार इत्यादि) के मूल्याकंन का पैमाना है चूँकि आविष्कार का विषय सर्वव्यापी ब्रह्माण्डीय नियम पर आधारित है। इसलिए वह प्रत्येक विषयों से सम्बन्धित है जिसकी उपयोगिता प्रत्येक विषय के सत्यरूप को जानने में है। चूंकि मानव कर्म करते-करते ज्ञान प्राप्त करते हुऐ प्रकृति के क्रियाकलापों को धीरे-धीरे अपने अधीन करने की ओर अग्रसर है इसलिए पूर्णतः प्रकृति के पद पर बैठने के लिए प्रकृति द्वारा धारण की गई सन्तुलित कार्यप्रणाली को मानव द्वारा अपनाना ही होगा अन्यथा वह सन्तुलित कार्य न कर अव्यवस्था उत्पन्न कर देगा। यह वैसे ही है जैसे किसी कर्मचारी को प्रबन्धक (मैनेजर) के पद पर बैठा दिया जाये तो सन्तुलित कार्य संचालन के लिए प्रबन्घक की सन्तुलित कार्यप्रणाली को उसे अपनाना ही होगा अन्यथा वह सन्तुलित कार्य न कर अव्यवस्था उत्पन्न कर देगा। आविष्कार की उपयोगिता व्यापक होते हुए भी मूल रूप से व्यक्ति स्तर से विश्व स्तर तक के मन और संयुक्त मन के प्रबन्ध को व्यक्त करना एवम् एक कर्मज्ञान द्वारा श्रृंखला बद्ध करना है जिससे सम्पूर्ण शक्ति एक मुखी हो विश्व विकास की दिशा में केन्द्रित हो जाये। परिणामस्वरूप एक दूसरे को विकास की ओर विकास कराते हुऐ स्वयं को भी विकास करने के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हो जायेगी। सम्पूर्ण क्रियाकलापों को संचालित करने वाले मूल दो कत्र्ता-मानव (मन) और प्रकृति (विश्वमन) दोनों का कर्मज्ञान एक होना आवश्यक है। प्रकृति (विश्वमन) तो पूर्ण धारण कर सफलतापूर्वक कार्य कर ही रही है। मानव जाति में जो भी सफलता प्राप्त कर रहे हैं वे अज्ञानता में इसकें आशिंक धारण में तथा जो असफलता प्राप्त कर रहे हैं, वे पूर्णतः धारण से मुक्त है। इसी कर्मज्ञान से प्रकृति, मानव और संयुक्त मन प्रभावित और संचालित है। किसी मानव का कर्मक्षेत्र सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हो सकता है और किसी का उसके स्तर रूप में छोटा यहाॅ तक कि सिर्फ स्वयं व्यक्ति का अपना स्तर परन्तु कर्मज्ञान तो सभी का एक ही होगा।
वर्तमान समय के भारत तथा विश्व की इच्छा शान्ति का बहुआयामी विचार-अन्तरिक्ष, पाताल, पृथ्वी और सारे चराचर जगत में एकात्म भाव उत्पन्न कर अभय का साम्राज्य पैदा करना और समस्याओं के हल में इसकी मूल उपयोगिता है। साथ ही विश्व में एक धर्म- विश्वधर्म-सार्वभौम धर्म, एक शिक्षा-विश्व शिक्षा, एक न्याय व्यवस्था, एक अर्थव्यवस्था, एक संविधान स्थापित करने में है। भारत के लिए यह अधिक लाभकारी है क्योंकि यहाॅ सांस्कृतिक विविधता है। जिससे सभी धर्म-संस्कृति को सम्मान देते हुए एक सूत्र में बाॅधने के लिए सर्वमान्य धर्म उपलब्ध हो जायेगा साथ ही संविधान, शिक्षा व शिक्षा प्रणाली व विषय आधारित विवाद को उसके सत्य-सैद्धान्तिक स्वरूप से हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है। साथ ही पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी से संकीर्ण मानसिकता से व्यक्ति को उठाकर व्यापक मानसिकता युक्त व्यक्ति में स्थापित किये जाने में आविष्कार की उपयोगिता है। जिससे विध्वंसक मानव का उत्पादन दर कम हो सके। ऐसा न होने पर नकारात्मक मानसिकता के मानवो का विकास तेजी से बढ़ता जायेगा और मनुष्यता की शक्ति उन्हीं को रोकने में खर्च हो जायेगी। यह आविष्कार सार्वभौम लोक या गण या या जन का निराकार रूप है इसलिए इसकी उपयोगिता स्वस्थ समाज, स्वस्थ लोकतन्त्र तथा स्वस्थ उद्योग की प्राप्ति में है अर्थात मानव संसाधन की गुणवत्ता का विश्वमानक की प्राप्ति में है। साथ ही ब्रह्माण्ड की सटीक व्याख्या में है।
तकनीकी का मार्गदर्शक बिन्दु SHYAM.C ही क्यों ?
हिन्दू अवतार श्रीकृष्ण -
शास्त्राकार लेखक महर्षि व्यास के अनुसार ईश्वर (सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के समय तक स्थिति यह हो गयी थी राजा पर नियन्त्रण के लिए नियुक्त ब्राह्मण भी समाज और धर्म की व्याख्या करने में असमर्थ हो गये। क्योंकि अनेक धर्म साहित्यों, मत-मतान्तर, वर्ण, जातियों में समाज विभाजित होने से व्यक्ति संकीर्ण और दिग्भ्रमित हो गया था और राज्य समर्थकों की संख्या अधिक हो गयी थी परिणामस्वरुप मात्र एक ही रास्ता बचा था- नवमानव सृष्टि। ईश्वर के आठवें प्रत्यक्ष एवम प्रेरक व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतार श्री कृष्ण तथा विष्णु (एकात्म वाणी, एकात्म ज्ञान, एकात्म कर्म व एकात्म प्रेम) के पूर्णावतार के रुप में व्यक्त श्री कृष्ण का मुख्य गुण आदर्श सामाजिक व्यक्ति का चरित्र तथा अवतारी गुणों में साकार शरीर आधारित ”परशुराम परम्परा“ की असफलता को देखते हुये उसका नाश करके निराकार नियम आधारित ”परशुराम परम्परा“ को प्रारम्भ करना था। जिसके लिऐ वे विश्व मानक ज्ञान व व्यक्तिगत प्रमाणित विश्वशास्त्र-गीतोपनिषद् व्यक्त किये और गणराज्य का उदाहरण द्वारिका नगर का निर्माण कर किये। उनकी गणराज्य व्यवस्था उनके जीवन काल में ही नष्ट हो गयी परन्तु ”गीता“ आज भी प्रेरक बनीं हुई है। श्री कृष्ण को अनेक नामों से पुकारा जाता है जिनमें से एक श्याम (काला) भी है।
हिन्दू देवता शनि -
महर्षि व्यास रचित पुराणों के अनुसार हिन्दू देवता शनि काले रंग के हैं। हिन्दूओं के बीच ऐसा माना जाता है कि ये समस्या देने वाले हैं साथ ही सबसे अधिक सहायता करने वाले भी है। स्वाभाविक है जब मनुष्य के सामने समस्या आती है तो उसकी बुद्धि सक्रिय हो जाती है फलस्वरूप हल भी निकल आता है। यदि बुद्धि सक्रिय नहीं होती तो मनुष्य समस्याओं से घिरने लगता है।
ब्लैक होल या कृष्ण विवर -
आधुनिक विज्ञान के अनुसार तारों में नाभिकीय (परमाणु) ईंधन के जलने से जो ऊर्जा पैदा होती है वह प्रकाश तथा अन्य किस्म के किरणों के रूप में बाहर निकलती है। ऊर्जा से पैदा होने वाला भीषण दाब उस तप्त तारे को उसके गुरूत्वीय बल के अन्तर्गत सिकुड़ने नहीं देता। तारा लगभग संतुलित अवस्था में टिका रहता है। मगर जैसे ही तारे का नाभिकीय ईंधन जलकर राख हो जाता है, वैसे ही वह तारा तेजी से सिकुडते हुए मरणावस्था में पहुँच जाता है। उस तारे का द्रव्यमान यदि 1.4 सूर्यो से कम है, तो वह पहले ”श्वेत बामन“ और अंततः ”कृष्ण बामन“ बन जाता है। यदि उस तारे का द्रव्यमान 2-3 सूर्यो के बराबर है तो वह अंततः ”न्यूट्रान तारा (पल्सर)“ बन जाता है, परन्तु ऐसे भी अनेक तारे हैं जिनमें 3 सूर्यो से अधिक द्रव्यराशि है। ऐसे तारों का नाभिकीय ईंधन जब खत्म होता है, तब वे एक ही झटके में तेजी से सिकुड़कर न्यूट्रान तारे से भी अधिक सघन पिण्ड बन जाते हैं। खगोलविद्ों ने ऐसे पिण्डों को ”ब्लैक होल“ का नाम दिया है।
ब्लैक होल्स के बारे में सभी बातें बड़ी विलक्षण हैं। ऐसे पिण्डों में इतना अधिक गुरूत्वाकर्षण पैदा होता है कि वह प्रकाश की किरणों को भी बाहर जाने नहीं देता। ब्लैक होल्स के समीप से भी गुजरने वाली प्रकाश-किरणें मुड़कर उसी में गायब हो जाती हैं। यहाँ तक कि ब्लैक होल्स के नजदीक काल के प्रवाह और दिक (स्पेस) की ज्यामिति में भी बेहद परिवर्तन हो जाता है। ब्लैक होल एक ऐसे अथाह गर्त का निर्माण करता है जिसमें प्रकाश व द्रव्य गिरकर गायब हो जाते हैं। चूँकि ब्लैक होल्स से किरणें बाहर नहीं निकल पाती, इसलिए वह हमारे लिए अदृश्य बना रहता है।
हम जानते हैं कि सूर्य के समीप से गुजरने वाली प्रकाश-किरणें थोड़ी भीतर की ओर मुड़ जाती है। सापेक्षिकता के सिद्धान्त के अनुसार यदि हमारा सूर्य सिकुड़कर केवल तीन किलोमीटर अर्धव्यास का पिण्ड हो जाता है तो वह एक ब्लैक होल बन जायेगा। तब इसके पास से गुजरने वाली किरणें पूर्णतः मुड़कर उसके भीतर गिर जायेंगी। द्रव्यराशि गुरूत्वीय पतन के अन्तर्गत सिकुड़कर करीब एक सेंटीमीटर व्यास का पिण्ड बन जाये, तो वह भी एक ब्लैक होल बन जायेगा। खगोलविद्ों का अनुमान है कि हमारी आकाशगंगा में ही लाखों-करोड़ों ब्लैक होल हो सकते हैं। कई वैज्ञानिकों का मत है कि ”क्वासर“ नामक अनोखें पिण्ड और मंदाकिनियों के केन्द्र भाग में भी विशाल ब्लैक होल हो सकते हैं। एक मान्यता यह भी है कि समूचा ब्रह्माण्ड अंततः एक अतिविशाल अदृश्य ब्लैक होल में संघनित हो जायेगा। वर्तमान में अधिकांश वैज्ञानिक ब्लैक होल के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। ब्रह्माण्ड वैज्ञानिक स्टीफेन हाकिंग के अनुसार, विश्व का कोई आरम्भ और अन्त नहीं। आज से डेढ़ हजार साल पहले के भारतीय गणितज्ञ-ज्योतिषि आर्यभट्ट (499 ई.) की भी यही मान्यता थी कि यह विश्व अनादि-अनन्त है।
यही ब्लैक होल इस अनादि-अनन्त विराट ब्रह्माण्ड वृक्ष के बीज हैं जिनसे समय-समय पर छोटे-छोटे ब्रह्माण्ड का सृजन होता रहता है और पुनः बीज रूप में ब्लैक होल उत्पन्न होते रहते हैं।
काला (श्याम) -
व्यावहारिकता के अनुसार काला रंग किसी भी रंग को दृश्य स्पेक्ट्रम से परावर्तित नहीं करता अर्थात सभी रंगों को अवशोषित कर लेता है। काला रंग गम्भीरता और अधिकार के रंग के रूप में देखा जाता है। ब्रिटीश सेना का ब्लैक वाॅच, वरिष्ठ हाईलैंड रेजिमेण्ट है। जापानी संस्कृति में काला, बड़प्पन, आयु और अनुभव का एक प्रतीक है इसके विपरीत सफेद दासत्व, युवा और भोलेपन का प्रतीक है। ब्लैक अबु खलीफा हैं जो अक्सर अरब देशों के झण्डे में प्रयोग होता है। स्पेन में ब्लैक, बास्क स्वायत्त पुलिस दंगा नियंत्रण इकाईयों के रूप में जाना जाता है। स्नातकों के लिए शैक्षणिक पोशाक काले रंग का होता है। औपचारिक अवसरों पर काली टाई कार्य के रूप में जाना जाता है। ईसाई धर्म में उच्च वर्ग के धार्मिक व्यक्तियों द्वारा काला वस्त्र पहना जाता है। काला, हैसिडीक यहूदियों द्वारा पहना जाता है। काला बुरका मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाता है। वकील और न्यायाधीश अक्सर काले वस्त्र पहनते हैं। यूरोपीय शास्त्रीय संगीत या अन्य संगीत कार्यक्रम या गायन में कलाकारों द्वारा काले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं। खगोल विज्ञान में अन्तरिक्ष को काला आकाश, जले हुए तारे को ब्लैक डुआर्फ, संघनित तारे को ब्लैक होल कहते हैं। काली सतह, प्रकाश को अवशोशित करने के कारण तापीय संग्राहक के रूप में प्रयोग किया जाता है। पश्चिमी समाज में काला शोक का प्रतीक माना जाता है। ग्रीस और इटली के समाज में विधवाएँ अपने शेष जीवन में काले वस्त्र पहनती हैं जबकि अफ्रीका और एशिया में सफेद शोक का प्रतीक है। अंग्रेजी विद्या में काला, अंधेरे, संदेह, अज्ञान और अनिश्चितता के अर्थ में प्रयोग होता है। काला सूर्य फासिज्म और ओकल्टीज्म से सम्बन्धित है। केन्या और तंजानिया के जनजातियों में काला रंग बारिश वाले बादल, जीवन और समृद्धि के प्रतीक से जुड़ा हुआ है। अमेरिका के मूल निवासी काले हैं जो मिट्टी से जुड़े हैं। हिन्दू अवतार श्रीकृष्ण और देवता शनि का अर्थ काले से है। मध्यकालीन ईसाई सम्प्रदाय काले को एक पूर्णता के रंग में देखता है। रस्ताफरी आन्दोलन काले को सुन्दर के रूप में देखता है। जापानी संस्कृति में काला सम्मान के साथ जुड़ा हुआ है। काली बिल्ली अच्छे और बुरे भाग्य दोनों के अर्थो में जाना जाता है। काला दिन या सप्ताह या माह आमतौर पर एक दुःखद दिन या सप्ताह या माह के रूप में लिया जाता है।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि काला या कृष्ण या शनि या श्याम (SHYAM), सबकों अवशोषित करता है और पुनः सृष्टि भी करता है। यह और इस क्रिया की चेतना ही सम्पूर्णता का प्रतीक बन सकती है और इस सम्पूर्णता का नाम SHYAM.C ही हो सकता है अर्थात काला या कृष्ण या शनि या श्याम की चेतना (SHYAM.C)। जो और कुछ नहीं बस वही - इतिहास का ज्ञान, नये संस्करण के व्यावहारिक व शासनिक प्रणाली अनुसार स्थापना स्तर तक का रूपान्तरण है।
वैश्विक मानव निर्माण की तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C प्रणाली
जिस प्रकार औद्योगिक क्षेत्र में Institute of Plant Maintenance, JAPAN द्वारा उत्पादों के विश्वस्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए उत्पाद निर्माण तकनीकी- WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing-Total Productive Maintenance-Siri (छँटाई), Seton (सुव्यवस्थित), Sesso (स्वच्छता), Siketsu (अच्छास्तर), Shituke (अनुशासन) प्रणाली संचालित है। जिसमें सम्पूर्ण कर्मचारी सहभागिता (Total Employees Involvement) है। ये 5S मार्गदर्शक बिन्दु हैं।
उसी प्रकार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा मानव के विश्व स्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए मानव निर्माण तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class Manufactuing–Total Life Maintenance- Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation.Conceousness) प्रणाली आविष्कृत है जिसमें सम्पूर्ण तन्त्र सहंभागिता (Total System Involvement-TSI) है। ये SHYAM.C मार्गदर्शक बिन्दु हैं। यह तकनीकी सीधे व्यक्ति को विश्वमन से जोड़ने का कार्य करती है। जिससे मनुष्य का मस्तिष्क व समस्त क्रियाकलाप संचालित होती है। अर्थात मनुष्य के मन को सीधे सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त व चेतना से जोड़कर उसे सार्वभौम विश्वमन में स्थापित कर देती है। फलस्वरूप मनुष्य स्वतः स्फूर्त हो सूक्ष्म बुद्धि से प्रत्येक कार्य को विश्व स्तरीय दृष्टि से संचालित करने लगता है।
S-SATYA ( सत्य )
आध्यात्मिक आधारः
1. सत्य के दो अंग है। पहला जो साधारण मानवों को पांचेन्द्रियग्राह्य एवम् उसमें उपस्थापित अनुमान द्वारा गृहीत है और दूसरा-जिसका इन्द्रियातीत सूक्ष्म योगज शक्ति के द्वारा ग्रहण होता है। प्रथम उपाय के द्वारा संकलित ज्ञान को ”विज्ञान“ कहते है, तथा द्वितीय प्रकार के संकलित ज्ञान को ”वेद“ संज्ञा दी है। वेद नामक अनादि अनन्त अलौकिक ज्ञानराशि सदा विद्यमान है। स्वंय सृष्टिकत्र्ता उसकी सहायता से इस जगत के सृष्टि-स्थिति-प्रलय कार्य सम्पन्न कर रहे हैं। जिन पुरूषों में उस इन्द्रियातीत शक्ति का आविर्भाव है, उन्हें ऋषि कहते है और उस शक्ति के द्वारा जिस अलौकिक सत्य की खोज उन्होंने उपलब्धि की है, उसे ”वेद“ कहते हैं। इस ऋषित्व तथा वेद दृष्टत्व को प्राप्त करना ही यथार्थ धर्मानुभूति है। साधक के जीवन में जब तक उसका उन्मेष नहीं होता तब तक ”धर्म“ केवल कहने भर की बात है एवम् समझना चाहिए कि उसने धर्मराज्य के प्रथम सोपान पर भी पैर नहीं रखा है। समस्त देश-काल-पात्र को व्याप्त कर वेद का शासन है अर्थात वेद का प्रभाव किसी देश, काल या पात्र विशेष द्वारा सीमित नहीं हैं। सार्वजनिन धर्म का व्याख्याता एक मात्र ”वेद“ ही है। - स्वामी विवेकानन्द (चिन्तनीय बातें, पृष्ठ - 11)
2.”वेद“ का अर्थ है- ईश्वरीय ज्ञान की राशि। विद् धातु का अर्थ है-जानना। वेदान्त नामक ज्ञानराशि ऋषि नाम धारी पुरूषों के द्वारा आविष्कृत हुई है। ऋषि शब्द का अर्थ है- मन्त्रद्रष्टा। पहले ही से वर्तमान ज्ञान को उन्होंने प्रत्यक्ष किया है। वह ज्ञान तथा भाव उनके अपने विचारों का फल नहीं था। जब कभी आप सुनें कि वेदों के अमुक अंश के ऋषि अमुक है, तब यह मत सोचिए कि उन्होंने उसे लिखा या अपनी बुद्धि द्वारा बनाया है, बल्कि पहले ही से वर्तमान भाव राशि के वे द्रष्टा मात्र है - वे भाव अनादि काल से ही इस संसार में विद्यमान थे, ऋषि ने उनका आविष्कार मात्र किया। ऋषिगण आध्यात्मिक आविष्कारक थे।
- स्वामी विवेकानन्द (हिन्दू धर्म, पृष्ठ - 27)
सत्य के रूपः- सत्य के निम्नलिखित रूप हैं।
(1) अदृश्य सत्यः वह सत्य जिसे व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से ही अनुभव करता है अदृश्य सत्य कहलाता है। इसे प्राकृतिक सत्य भी कहते है इसके निम्न रूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य सत्यः व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से सत्य की व्यक्तिगत प्रमाणित अनुभूति, व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य सत्य कहलाता है। जैसे- आत्मीय सत्य। इसे देश-काल मुक्त अदृश्य सत्य भी कहते है। जो देश-काल मुक्त दृश्य सत्य का अदृश्य रूप है। व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य होने से प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी दृष्टि और अनुभूति से इस सत्य का नामकरण करता है। विभिन्न मतवादों को जन्म देने वाला यही सत्य है। जिसे वैदिक साहित्य ने ”ब्रह्म“ या ”आत्मा“, गीता ने ”मैं“, पुराण ने ”शिव“, कपिल मुनि ने ”कारण“, संतों ने ”एक“, हिन्दुओं ने ”ईश्वर“, सिखों ने ”वाहे गुरू“, इस्लाम ने ”अल्ला“, ईसाई ने ”यीशु“ इत्यादि कहा। इसे ही पूर्ण, धर्म, ज्ञान, सम, सार्वभौम, चैतन्य, केन्द्र, GOD, सत्य, अद्वैत, सर्वव्यापी, अनश्वर, अजन्मा, शाश्वत, सनातन इत्यादि भी कहा गया है। इस सत्य की व्याख्या करने वाला शास्त्र-साहित्य व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य व्यष्टि वेद, उत्पन्न नाम या शब्द को व्यष्ठि ईश्वर नाम तथा नाम के अर्थ की व्याख्या करने वाले साहित्य को व्यष्टि उपनिषद् कहा जाता है। व्यष्टि समाहित समष्टि दृश्य वेद और उपनिषद् में इस सत्य को CENTRE कहा गया है।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य सत्य:- व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से सत्य की सार्वजनिक प्रमाणित अनुभूति, सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य सत्य कहलाता है। जैसे- ब्रह्माण्डीय, प्राकृतिक या सांसारिक सम्बन्धों पर आधारित सत्य। इसे देश-काल बद्ध अदृश्य सत्य भी कहते है।
(2) दृश्य सत्य:- वह सत्य जिसे व्यक्ति सार्वजनिक रूप से अनुभव करता है। दृश्य सत्य कहलाता है इसे सत्य सत्य भी कहते है इसके निम्नरूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य सत्य:- सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से सत्य की व्यक्तिगत प्रमाणित अनुभूति व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य सत्य कहलाता है। जैसे- व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतारों का सत्य। इसे देश काल बद्ध दृश्य सत्य भी कहते है।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य सत्य:- सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से सत्य की सार्वजनिक प्रमाणित अनुभूति सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य सत्य कहलाता है। जैसे- सार्वजनिक प्रमाणित पूर्णावतारों का सत्य। इसे देश-काल मुक्त दृश्य सत्य भी कहते है। जो देश-काल मुक्त अदृश्य सत्य का दृश्य रूप है। सर्वव्यापी, सर्वमान्य, विवादमुक्त और अटलनीय सत्य यही है। जिसे वैदिक साहित्य ने ”सिद्धान्त“, गीता ने ”परिवर्तन“, पुराण ने ”शक्ति“, कपिलमुनि ने ”क्रिया“ कहा है। इसे ही प्राकृतिक- ब्रह्माण्डीय सत्य, कर्म, आदान-प्रदान, परिधि, व्यापार, काल, सर्वशक्तिमान भी कहा गया। इस सत्य की व्याख्या करने वाला शास्त्र-साहित्य सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य समष्टि वेद, उत्पन्न नाम या शब्द को समष्टि ईश्वर नाम तथा नाम के अर्थ की व्याख्या करने वाले साहित्य को समष्टि उपनिषद् कहा जाता है। व्यष्टि समाहित समष्टि दृश्य वेद और उपनिषद् में इस सत्य को TRADE कहा गया है।
WS-0 मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला के विकास का मुख्य दृश्य सार्वजनिक प्रमाणित सूत्र यही सत्य है। यह विश्वव्यापी रूप से विवादमुक्त सर्वमान्य है क्योंकि वर्तमान पदार्थ विज्ञान भी यह स्वीकार कर चुका है कि इस ब्रह्माण्ड में कहीं भी कुछ भी स्थिर नहीं है। सभी का परिवर्तन या आदान-प्रदान हो रहा है। दृश्य पदार्थ विज्ञान के महान वैज्ञानिक आइन्सटाइन E=MC2 से इसे सिद्ध भी किये है। इसी सत्य के अन्तर्गत WS-0 श्रृखंला भी आता है क्योंकि सार्वजनिक प्रमाणित सत्य के मूल से निकली सभी शाखाएं सार्वजनिक प्रमाणित सत्य ही होगी। अर्थात ”आदान-प्रदान“ ही सम्पूर्ण मानक का विषय हैं।
H - HEART (हृदय)
आध्यात्मिक आधारः-
1. जब तर्क से बुद्धि सत्य को जान लेती है, तब वह भावनाओं के स्रोत हृदय द्वारा अनुभूत होता है। इस प्रकार बुद्धि और भावना दोनों एक ही क्षण में आलोकित हो उठते है और तभी जैसे मुण्डकोपनिषद् (2-2-8) में कहा है- ”हृदय ग्रन्थि खुल जाती है, सब संशय मिट जाते है। - स्वामी विवेकानन्द (सूक्तिया एवम् सुभाषित, पृष्ठ-23)
2. यदि हृदय और बुद्धि में विरोध उत्पन्न हो तो तुम हृदय का अनुसरण करो, क्योंकि बुद्धि केवल एक तर्क के क्षेत्र में ही काम कर सकती है, वह उसके परे जा ही नहीं सकती, पर वह केवल हृदय ही है जो हमें उच्चतम भूमिका पर आरूढ़ करता है। वहाँ तक बुद्धि कभी नहीं पहुँच सकती। हृदय बुद्धि का अतिक्रमण कर जिसे हम ”अन्तः स्फूर्ति“ कहते है, उसे पा लेता है। हृदयवान व्यक्ति मक्खन पा लेते है और कोरे बुद्धिमानों के लिए सिर्फ छाछ बच जाती है।
- स्वामी विवेकानन्द (आत्मानुभूति तथा उसके मार्ग, पृष्ठ-13-14)
3. ईसा के समान सहृदय बनो, तुम ईसा हो जाओंगे, बुद्ध के समान सहृदय बनो, तुम भी बुद्ध बन जाओंगे। भाव ही जीवन है, भाव ही बल है, भाव ही तेज है- भाव के बिना कितनी बुद्धि क्यों न लगाओं, ईश्वर प्राप्ति नहीं होगी। - स्वामी विवेकानन्द (व्यावहारिक जीवन में वेदान्त, पृष्ठ-25)
हृदय के रूप
हृदय का अर्थ है - भाव । भाव के निम्न रूप है।
(1) अदृश्य हृदयः वह हृदय या भाव जिसे व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से ही अनुभव करता है अदृश्य हृदय या भाव कहलाता है। इसे प्राकृतिक हृदय भी कहते है इसके निम्न रूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य हृदयः व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से हृदय या भाव की व्यक्तिगत प्रमाणित अनुभूति, व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य हृदय या भाव कहलाता है। जैसे- आत्मीय भाव। इसे देश-काल मुक्त अदृश्य हृदय या भाव भी कहते है।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य हृदय:- व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से हृदय या भाव की सार्वजनिक प्रमाणित अनुभूति, सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य हृदय या भाव कहलाता है। जैसे- ब्रह्माण्डीय, प्राकृतिक या सांसारिक सम्बन्धों पर आधारित हृदय या भाव। इसे देश-काल बद्ध अदृश्य हृदय या भाव भी कहते है।
(2) दृश्य हृदय:- वह हृदय या भाव जिसे व्यक्ति सार्वजनिक रूप से अनुभव करता है। दृश्य हृदय या भाव कहलाता है इसे सत्य हृदय भी कहते है इसके निम्नरूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य हृदय:- सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से हृदय या भाव की व्यक्तिगत प्रमाणित अनुभूति व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य हृदय या भाव कहलाता है। जैसे- व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतारों का हृदय या भाव। इसे देश काल बद्ध दृश्य हृदय या भाव भी कहते है।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य हृदय:- सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से हृदय या भाव की सार्वजनिक प्रमाणित अनुभूति सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य हृदय या भाव कहलाता है। जैसे- सार्वजनिक प्रमाणित पूर्णावतारों का हृदय या भाव। इसे देश-काल मुक्त दृश्य हृदय या भाव भी कहते है।
Y-YOG (योग)
आध्यात्मिक आधारः-
योग का शब्दिक अर्थ है- मिलन। दार्शनिक दृष्टि से इसका अर्थ परमात्मा से मिलन होता है और जो इस परमात्मा से हमें जोड़ता है, वह योग है। पूरे ब्रह्माण्ड में एक ही ब्रह्म है लेकिन जब यह अज्ञानवश देखा जाता है, तो वह अनेक दिखलाई पड़ता है। अज्ञान के फलस्वरूप हम अपने को परमात्मा से अलग समझते है। इतना ही नहीं, विविध वस्तुओं की आन्तरिक एकता को देखें बिना हम उन्हें भी भिन्न समझते है। यहीं दुःख का उदय होता है। - स्वामी विवेकानन्द (योग क्या है, पृष्ठ - 13)
योग के रूप
योग का शब्दिक अर्थ है- मिलन। योग के निम्न रूप हैं।
(1) अदृश्य योग: व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से मिलन, अदृश्य योग कहलाता है, इसे प्राकृतिक योग भी कहते है। इसके निम्न रूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य योगः- व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से मिलन जो व्यक्तिगत प्रमाणित हो व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य योग कहलाता है। इसे देश काल मुक्त अदृश्य योग भी कहते है। जैसे- आत्मीय योग। आत्मीय योग के निम्न प्रकार है।
राजयोग- मन के विकास द्वारा आत्मा से योग।
ज्ञानयोग- बुद्धि के विकास द्वारा आत्मा से योग।
प्रेमयेाग- सद्भाव के विकास द्वारा आत्मा से योग।
भक्तियोग- समर्पण के विकास द्वारा आत्मा से योग।
कर्म योग- अदृश्य कर्म के विकास द्वारा आत्मा से योग।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य योगः- व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से मिलन जो सार्वजनिक प्रमाणित हो सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य योग कहलाता है। इसे देश काल बद्ध अदृश्य योग भी कहते है। जैसे-
ब्रह्माण्डीय योग- ब्रह्माण्ड द्वारा आत्मा का योग।
प्रकृति योग- प्रकृति द्वारा आत्मा का योग।
हठ योग - शरीर द्वारा आत्मा का योग।
(2) दृश्य योगः- सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से मिलन, दृश्य योग कहलाता है। इसे सत्य योग भी कहते है। इसके निम्न रूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य योगः- सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से मिलन जो व्यक्तिगत प्रमाणित हो व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य योग कहलाता है। इसे देश-काल बद्ध योग भी कहते है। जैसे- व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतार का योग। अर्थात व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य कर्म योग। इसे ही भोगेश्वर समाहित योगेश्वर कहते है।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य योगः- सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से मिलन जो सार्वजनिक प्रमाणित हो सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य योग कहलाता है। इसे देश काल मुक्त दृश्य योग भी कहते है। जैसे- सार्वजनिक प्रमाणित पूर्णावतार का योग। अर्थात सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य कर्म योग। इसे ही योगेश्वर समाहित भोगेश्वर कहते है।
A- ASHRAM (आश्रम)
आध्यात्मिक आधार:
आश्रम का अर्थ है- अवस्था। यह मन, शरीर और कर्म के विषय में हो सकती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने मन के स्तर के केन्द्रित स्थिति से ही संसार को देखता है। और अपने मन के अनुसार उसका मूल्यांकन करता है। सांसारिक, योगेश्वर, परमहंस, ओशो, बुद्ध, विश्वमानव, भोगेश्वर इत्यादि ये सब मानव मन की अवस्थाएं है। शरीर की अवस्था में ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्यास आश्रम हैं। इसी प्रकार कर्म की अवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र आश्रम हैं। प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है तथा उस पर ही निर्भर है कि वह अपने मन, शरीर तथा कर्म के स्तर में परिवर्तन लाकर किसी भी आश्रम या अवस्था में प्रवेश कर सकता है। - लव कुश सिंह ”विश्वमानव“
आश्रम के रूप
आश्रम का अर्थ है- अवस्था। आश्रम के निम्न रूप हैं।
(1) अदृश्य आश्रम: व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से अवस्था अदृश्य आश्रम कहलाती है। इसे प्राकृतिक आश्रम भी कहते है। इसके निम्नरूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य आश्रम: व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से अवस्था जो व्यक्तिगत प्रमाणित हो व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य आश्रम कहलाता है। इसे देश-काल मुक्त अदृश्य आश्रम भी कहते है। जैसे- आत्मीय आश्रम या अवस्था। इसके उदाहरण हैं- परमहंस, ओशो, बुद्ध।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य आश्रम: व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से अवस्था जो सार्वजनिक प्रमाणित हो सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य आश्रम कहलाता है। इसे देश काल बद्ध अदृश्य आश्रम भी कहते है। जैसे- ब्रह्मण्डीय, प्राकृतिक आश्रम या अवस्था।
(2) दृश्य आश्रम: सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से अवस्था दृश्य आश्रम कहलाती है। इसे सत्य आश्रम भी कहते है। इसके निम्नरूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य आश्रमः- सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से अवस्था जो व्यक्तिगत प्रमाणित हो दृश्य आश्रम कहलाता है। इसे देशकाल बद्ध दृश्य आश्रम भी कहते है। जैसे- व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतार की अवस्था। इसका उदाहरण है- योगेश्वर।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य आश्रम:- सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से अवस्था जो सार्वजनिक प्रमाणित हो सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य आश्रम कहलाता है। इसे देश काल मुक्त आश्रम भी कहते है। जैसे-सार्वजनिक प्रमाणित पूर्णावतार की अवस्था। इसका उदाहरण है- भोगेश्वर।
ऋषियों द्वारा संतुलित जीवन और संतुलित समाज के लिए दी गयी व्यवस्था -
संतुलित जीवन के लिए शरीर और कर्म की अवस्था निम्नवत् है-
अ. शरीर की अवस्था के निम्न रूप है-
1. ब्रह्मचर्य आश्रम - 5 से 25 वर्ष उम्र तक - ज्ञान-विज्ञान-तकनीकी शिक्षा तथा व्यवहार।
2. गृहस्थ आश्रम - 26 से 50 वर्ष उम्र तक - परिवारिक जीवन में ज्ञान युक्त कत्र्तव्य और दायित्व।
3. वानप्रस्थ आश्रम - 51 से 75 वर्ष उम्र तक - माॅगें जाने पर अपने अनुभव से परिवार व समाज का मार्गदर्शन।
4. सन्यास आश्रम - 76 से शरीर त्याग तक - आत्मा में स्थित होकर ब्रह्माण्डीय दायित्व व कर्तव्य।
ब. कर्म की अवस्था के निम्नरूप है-
1. ब्राह्मण आश्रम - सूक्ष्म बुद्वि व आत्मा में स्थित हो धर्म से कार्य।
2. क्षत्रिय आश्रम - भाव व मन में स्थित हो बल से कार्य।
3. वैश्य आश्रम - इन्द्रिय व प्राण में स्थित हो धन से कार्य।
4. शूद्र आश्रम - शरीर में स्थित हो शरीर से कार्य।
M-MEDITATION (ध्यान)
आध्यत्मिक आधारः
किसी विषय पर मन को एकाग्र करने का ही नाम ध्यान है। किसी एक विषय पर भी मन की एकाग्रता होने से उसकी एकाग्रता जिसमें चाहों उसमें कर सकते हों। - स्वामी विवेकानन्द (स्वामी विवेकानन्द के संग में, पृष्ठ-47)
ध्यान के रूप
ध्यान का अर्थ है मन को एकाग्र करना। ध्यान के निम्नलिखित रूप है।
(1) अदृश्य ध्यानः- व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से मन को एकाग्र करना अदृश्य ध्यान कहलाता है। इसे प्राकृतिक ध्यान भी कहते है। इसके निम्न रूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य ध्यानः व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से मन को एकाग्र करना जो व्यक्तिगत प्रमाणित हो अदृश्य ध्यान कहलाता है। इसे देश-काल मुक्त अदृश्य ध्यान भी कहते हैं। जैसे- आत्मा पर ध्यान केन्द्रित करना।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य ध्यान: व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से मन को एकाग्र करना जो सार्वजनिक प्रमाणित हो सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य ध्यान कहलाता है। इसे देश-काल बद्ध अदृश्य ध्यान भी कहते है। जैसे- ब्रह्माण्ड व प्रकृति पर ध्यान केिन्द्रत करना।
(2) दृश्य ध्यान: सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से मन को एकाग्र करना दृश्य ध्यान कहलाता है। इसे सत्य ध्यान भी कहते है। इसके निम्नरूप हैं।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य ध्यानः सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से मन को एकाग्र करना जो व्यक्तिगत प्रमाणित हो व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य ध्यान कहलाता है। इसे देश-काल बद्ध दृश्य ध्यान भी कहते है। जैसे- व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतार का ध्यान अर्थात व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य क्रियाकलाप पर ध्यान।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य ध्यानः सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से मन को एकाग्र करना जो सार्वजनिक प्रमाणित हो सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य ध्यान कहलाता है। इसे देश-काल मुक्त दृश्य ध्यान भी कहते है। जैसे- सार्वजनिक प्रमाणित पूर्णावतार का ध्यान अर्थात सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य क्रियाकलाप पर ध्यान। पूर्ण दृश्य सत्य ध्यान का विषय - WSO-0 श्रृखंला तथा WCM-TLM-SHYAM.C तकनीकी है।
. – DOT
(बिन्दु या डाॅट या दशमलव या पूर्णविराम)
बिन्दु का अर्थ:-
(1) अंग्रेजी भाषानुसार - पूर्णविराम अर्थात इसके पहले का विषय पूर्ण है।
(2) गणित के अनुसार - दशमलव अर्थात इसके बाद का विषय ईकाई का भाग है।
(3) कम्प्यूटर प्रणाली के अनुसार - डाॅट अर्थात इसके बाद का विषय कुछ विशेष है तथा वह सम्पूर्णता के लिए अति आवश्यक है।
पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C में सत्य, हृदय, योग, आश्रम व ध्यान के बाद डाॅट है अर्थात डाॅट के पहले का विषय पूर्ण तो है परन्तु डाॅट के बाद का विषय उसका ही भाग है। और उसके बिना यह तकनीकी अधूरी है अर्थात C- Conciousness (चेतना) अति महत्वपूर्ण सम्पूर्णता के लिए अतिआवश्यक विषय है। क्योंकि इसके द्वारा ही ज्ञान का समयानुसार व्यावहारिक प्रयोग होता है।
C - CONCIOUSNESS (चेतना)
आध्यात्मिक आधार:-
(1) जो कुछ प्रकृति के विरूद्व लड़ाई करता है वह चेतना है। उसमें ही चैतन्य का विकास है। यदि एक चीटीं को मारने लगो तो देखोगे कि वह भी अपनी जीवन रक्षा के लिए एक बार लड़ाई करेगी। जहाँ चेष्टा या पुरूषकार है, जहाँ संग्राम है, वहीं जीवन का चिन्ह और चैतन्य का प्रकाश है। - स्वामी विवेकानन्द (विवेकानन्दजी के संग में, पृष्ठ-9)
(2) ज्ञान तो शाश्वत से सर्वव्यापी है। आत्म ज्ञान या पूर्ण ज्ञान से युक्त सभी व्यक्ति हो सकते है परन्तु उसका संचालन काल के ज्ञान और उसके अनुसार कार्यप्रणाली अर्थात चेतना से होता है। कालानुसार ज्ञान ही ध्यान है। और ध्यान ही वास्तविक ज्ञान की प्रमाणिकता है। यही कारण है कि आध्यात्म चर्चा में निवृत्ति व प्रवृत्ति मार्गी प्रायः सहमत होते है। परन्तु काल और कालानुसार कार्यप्रणाली अर्थात चेतना का ज्ञान न होने से स्थापना स्तर पर सहमत नहीं हो पाते । - लव कुश सिंह ”विश्वमानव“
चेतना के रूप
चेतना का अर्थ है- संघर्ष। इसके निम्नलिखित रूप है।
(1) अदृश्य चेतना:- व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से सघर्ष अदृश्य चेतना कहलाता है। इसे प्राकृतिक चेतना भी कहते है। इसके निम्नलिखित रूप है।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य चेतनाः व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से सघर्ष जो व्यक्तिगत प्रमाणित हो व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य चेतना कहलाता है। इसे देश-काल मुक्त अदृश्य चेतना भी कहते है। जैसे- आत्मा पर निर्भर होकर सघंर्ष करना।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य चेतनाः व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य मार्ग से संघर्ष जो सार्वजनिक प्रमाणित हो सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य चेतना कहलाला है। इसे देश-काल बद्ध अदृश्य चेतना भी कहते है जैसे- ब्रह्माण्ड, प्रकृति, व्यक्ति, संयुक्त व्यक्ति (संस्था, संगठन इत्यादि) पर निर्भर होकर संघर्ष करना।
(2) दृश्य चेतना: सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से सघर्ष दृश्य चेतना कहलाता है इसे सत्य चेतना भी कहते हंै। इसके निम्नलिखित रूप हैं।
(अ) व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य चेतना: सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से सघंर्ष जो व्यक्तिगत प्रमाणित हो व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य चेतना कहलाता है इसे देश-काल बद्ध दृश्य चेतना भी कहते है। जैसे- व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतार की चेतना। अर्थात व्यक्तिगत प्रमाणित रूप से स्वंय पर निर्भर होकर संघर्ष करना।
(ब) सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य चेतना: सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से संघर्ष जो सार्वजनिक प्रमाणित हो सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य चेतना कहलाता है। इसे देश-काल मुक्त दृश्य चेतना भी कहते है। जैसे- सार्वजनिक प्रमाणित पूर्णावतार की चेतना। अर्थात सार्वजनिक प्रमाणित रूप से स्वयं पर निर्भर होकर संघर्ष करना।
आदर्श वैश्विक मानव/ जन/ गण/ लोक/ स्व/ मैं/ आत्मा तन्त्र का सत्य रूप
आध्यात्मिक आधार:
1. हमारे शास्त्रों में परमात्मा के दो रूप कहे गये हैं- सगुण और निर्गुण। सगुण ईश्वर के अर्थ से वे सर्वव्यापी है। संसार की सृष्टि, स्थिति और प्रलय के कत्र्ता हैं। संसार के अनादि जनक तथा जननी हैं उनके साथ हमारा नित्य भेद है। मुक्ति का अर्थ - उनके समीप्य और सालोक्य की प्राप्ति है। सगुण ब्रह्म के ये सब विशेषण निर्गुण ब्रह्म के सम्बन्ध में अनावश्यक और अयौक्तिक है इसलिए त्याज्य कर दिये गये। वह निर्गुण और सर्वव्यापी पुरूष ज्ञानवान नहीं कहा जा सकता क्योंकि ज्ञान मन का धर्म है। इस निर्गुण पुरूष के साथ हमारा क्या सम्बन्ध है? सम्बन्ध यह है कि हम उससे अभिन्न हैं। वह और हम एक हैं। हर एक मनुष्य उसी निर्गुण पुरूष का- जो सब प्राणियों का मूल कारण है- अलग-अलग प्रकाश है। जब हम इस अनन्त और निर्गुण पुरूष से अपने को अलग सोचते हैं तभी हमारे दुःख की उत्पत्ति होती है और इस अनिर्वचनीय निर्गुण सत्ता के साथ अभेद ज्ञान ही मुक्ति है। संक्षेपतः हम अपने शास्त्रों में ईश्वर के इन्हीं दोनो ”भावों“ का उल्लेख देखते हैं। यहाॅ यह कहना आवश्यक है कि निर्गुण ब्रह्मवाद ही सब प्रकार के नीति विज्ञानोें की नींव है।
- स्वामी विवेकानन्द-(हिन्दू धर्म, पृष्ठ-40-42)
2. जैसा कि यह स्थूल शरीर, स्थूल शाक्तियों का आधार है, वैसे ही सूक्ष्म शरीर, सूक्ष्म शक्तियों का आधार है जिन्हें हम ”विचार“ कहते हैं। यह विचार शक्ति विभिन्न रूपों में प्रकाशित होती रहती है। इनमें कोई भेद नहीं हैं। केवल इतना ही है कि एक उसी वस्तु का स्थूल तथा दूसरा सूक्ष्म रूप है। इस सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर में भी कोई पार्थक्य नहीं है। सूक्ष्म शरीर भी भौतिक है, केवल इतना ही कि वह अत्यन्त सूक्ष्म जड़ वस्तु है।
- स्वामी विवेकानन्द (हिन्दू धर्म, पृष्ठ-107)
3. हम शरीर की अमरता को नही मानते, हम विचार की अमरता को मानते है। हम साकार ब्रह्म की अमरता को नहीं मानते, हम सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त अर्थात निराकार ब्रह्म अर्थात मानक की अमरता को मानते है। मानकीकरण की ओर बढ़ते विश्व के लिए यह आवश्यक है कि शीघ्रताशीघ्र ही आदर्श वैश्विक व्यक्ति का निराकार सत्य स्वरूप का भी मानकीकरण कर शिक्षा द्वारा प्रत्येक व्यक्ति में स्थापित किया जाय। हमें आदर्श व्यक्ति आधारित समाज नहीं बल्कि उसके निराकार सत्य स्वरूप अर्थात सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त अर्थात मानक आधारित समाज चाहिए जिससे हम प्रत्येक व्यक्ति के आदर्श का मुल्याकंन कर सकें। ध्यान रहे चरित्र को प्राथमिकता देने से सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त अर्थात मानक की अवनति होती है तथा सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त अर्थात मानक को प्राथमिकता देने से चरित्र समाज का दर्पण बन, समाज को ही प्रक्षेपित हो जाता है। और चरित्र की रक्षा स्वतः हो जाती है। - लव कुश सिंह ”विश्वमानव“
सत्य रूप
1. आदर्श वैश्विक मानव (साकार स्थूल रूप) का सत्य रूप
आदर्श वैश्विक मानव का साकार स्थूल रूप WS-0 श्रृखंला तथा WCM-TLM-SHYAM.C से युक्त शरीर है। शून्य पर अन्तिम आविष्कार WS-0 श्रृंखला की निम्नलिखित पाँच शाखाएँ है।
1. डब्ल्यू.एस. WS-0 : विचार एवम् साहित्य का विश्वमानक
2. डब्ल्यू.एस. WS-00 : विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक
3. डब्ल्यू.एस. WS-000 : ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
4. डब्ल्यू.एस. WS-0000 : मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
5. डब्ल्यू.एस. WS-00000 : उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक
2. जन या गण या लोक या स्वथा में आत्मा (निराकार सूक्ष्म रूप) का सत्य रूप
जन या गण या लोक या स्व या मैं या आत्मा का यथार्थ रूप सत्य-सिद्वान्त आधारित WS-0 श्रृंखला का सिद्वान्त है।
3. तन्त्र का सत्य रूप
तन्त्र का यथार्थ रूप WS-000 और WS-0000 से व्यक्त तन्त्र है।
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