Saturday, March 14, 2020

श्री स्टीफेन हाॅकिंग - ”समय का संक्षिप्त इतिहास“

श्री स्टीफेन हाॅकिंग - ”समय का संक्षिप्त इतिहास“
         
परिचय - वे चल-फिर नहीं पाते लेकिन स्टीफन हाकिंग्स (जिन्हें दूसरा आइन्स्टाइन कहा जाता है) की निगाह रहती है-आकाश गंगा की चाल पर। वे बोल नहीं पाते लेकिन उनकी बातों को जमाना खामोश होकर सुनता है। जी हाँ, ये हैं महान वैज्ञानिक गैलीलियो गैलिली की मौत 8 जनवरी, 1642 के ठीक 300 वर्ष बाद जन्में इस महान वैज्ञानिक को न तो पूरी तरह लकवाग्रस्त शरीर रोक पाता है और न ही खामोश जुबान।
8 जनवरी 1942 को आक्सफोर्ड (इग्लैण्ड) में जन्में हाकिंग्स में बचपन से ही भौतिकी और गणित के कठिन प्रश्नों को असानी से हल करने की क्षमता थी। यही प्रतिभा उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में ले गई। आज ब्रह्माण्ड, भौतिकी और गणित में उनका योगदान अतुलनीय है। हाकिंग के जन्म के समय उनके माता-पिता लंदन वासी थे। स्टीफेन हाकिंग के पितामह यार्कशायर के एक धनी किसान थे, मगर बाद में उनकी हालत काफी खस्ता हो गई थी। फिर भी अपने बेटे को अर्थात हाकिंग के पिता फ्रैन्क हाकिंग को चिकित्सा के अध्ययन के लिए आॅक्सफोर्ड भेजा। स्टीफेन की माँ इसोबेल हाकिंग भी सामान्य परिवार से आयीं थीं, मगर उसने भी आॅक्सफोर्ड में शिक्षा पायीं थी। हाॅकिंग के माता-पिता पहले लंदन के उस हाइगेट इलाके में रहते थे जो वैज्ञानिकों और विद्वानों के आवास के लिए प्रसिद्ध था। 
17 वर्ष की उम्र में स्टीफेन ने छात्रवृत्ति की परीक्षा पास करके आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहाँ उन्होंने 3 वर्ष तक अध्ययन करके अन्तिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की और उसके बाद विश्वोत्पत्ति विज्ञान में शोध कार्य करने के लिए कैम्ब्रिज में दाखिल हुए। आॅक्सफोर्ड के अन्तिम वर्ष में ही स्टीफेन अपने शरीर के विकार को महसूस करना शुरू कर दिया था। हाकिंग्स की जिजीविषा का असली सफर तब शुरू हुआ, जब वह अपने शरीर पर नियंत्रण खो चुके थे। 21 वर्ष की उम्र में ही इम्युट्रोफिक लेटर्नल सीलेरोसिस नामक असाध्य बीमारी ने उन्हें व्हील चेयर पर ला दिया। शरीर ने भले ही उनका साथ छोड़ दिया, लेकिन इच्छाशक्ति बनी रही। हाकिंग्स ने पढ़ाई जारी रखी। 1965 में उन्होंने जेन वाइल्ड से विवाह कर ली और उनके तीन बच्चे हुये। सन् 1974 तक वे खुद अपना भोजन करने और बिस्तर पर लेटने में समर्थ थे। 1980 से 1985 तक उन्हें सुबह-शाम नर्सो की सेवा लेनी पड़ गयी। 
कैम्ब्रिज से पीएच.डी प्राप्त करने के बाद यहाँ उन्होंने कई पदों पर काम किया। सन् 1977 में यहाँ उन्हें गुरूत्वीय भौतिकी का प्राध्यापक बनाया गया और 1979 में गणित का ल्यूकाशियन प्राध्यापक। यह वही प्रख्यात पद है जिसे हाकिंग के पहले आइजेक न्यूटन और पाॅल डिराक जैसे वैज्ञानिकों ने सुशोभित किया था। इस पद पर नियुक्ति के 5 वर्ष पूर्व ही हाकिंग 32 वर्ष की उम्र में लंदन की राॅयल सोसायटी के फैलो चुने गये थे। सन् 1980 में स्टीफेन का अपनी पहली पत्नी जेन से विवाह विच्छेद हो गया। उसके बाद उन्होंने अपनी एक नर्स एलईन से विवाह कर लिया।
हाकिंग्स की ज्यादातर खोजें ब्रह्माण्ड से जुड़े रहस्यों पर आधारित रहीं। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और ब्लैक होल जैसे विषयों पर उन्होंने कई प्रयोग किये व सिद्धान्त प्रस्तुत किये। हाकिंग्स की शारीरिक स्थिति जैसे-जैसे खराब होती गई, उनकी बुद्धिजीविता का प्रदर्शन और उपलब्धियों का क्रम बढ़ता गया। बोलने की क्षमता खोने के बाद इलेक्ट्रानिक वाॅइस सेंथेसाइजर की सहायता से उन्होंने ब्रह्माण्ड के रहस्य दुनिया को बताए। हाथ में कलाम उठाये बिना और बिना मुख एक शब्द भी बोले उन्होंने पाँच किताबें लिख दी। लम्बे समय तक हाकिंग की माली हालत भले ही बहुत अच्छी न रही हो मगर अब वे एक सम्पन्न व्यक्ति है। 1998 में आयी उनकी किताब ”ए हिस्ट्री आॅफ टाइम: फ्राम द बिग बैंग टू ब्लैक होल्स“ वर्ष की सबसे ज्यादा बिकने वाली नाॅनफिक्शन किताबों की सूची में शामिल हुई। इसकी 10 लाख से भी ज्यादा प्रतियां बिकीं। जिससे उन्हें बहुत धन मिला। वे अपने व्याख्यान व टेलिविजन शो के लिए 50 हजार से 1 लाख पाउण्ड तक की माँग करते हैं। लेकिन उनके खर्चे भी बहुत अधिक हैं। 
वर्ष 2009 में उन्हें ”प्रेसिडेंसियल मैडल आॅफ फ्रीडम“ से सम्मानित किया गया, जो अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।

”ब्लैक होल (सर्वोच्च गुरूत्वाकर्षण की ब्रह्माण्डीय अति सघन वस्तु) के पी-ब्रेन्स माॅडल में पी-ब्रेन स्थान के तीन आयामों और अन्य सात आयामों में चलती है जिनके बारे में हमें कुछ पता नहीं चलता। यदि हम सभी बलों के एकीकरण का एक सार्वभौम समीकरण विकसित करें तो हम ईश्वर के मस्तिष्क को जान जायेगें क्योंकि हम भविष्य के कार्य का निर्धारण कर सकेगें, और यह मनुष्य के मस्तिष्क के द्वारा सर्वोच्च अविष्कार होगी।“, ”एक प्रभावपरक सिद्धान्त को बहुत ज्यादा इसके शाब्दिक अर्थ में ग्रहण करने से बचा जाना चाहिए“, ”दर्शन शास्त्र के महान परम्परा का अन्त“ (बीसवीं शताब्दी के सबसे बड़े दार्शनिक विटगेंस्टीन के कहे शब्द- दर्शनशास्त्र के लिए एक मात्र शेष कार्य - भाषा का विश्लेषण करना ही बचा है पर वक्तव्य) -प्रो0 स्टीफेन हाकिंग 
”भारत यात्रा पर राष्ट्रीय सहारा, हस्तक्षेप, 27 जनवरी ‘2001 

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण

”भौतिक विज्ञान के वर्तमान ब्रह्माण्ड व्याख्या के अनुसार ब्लैक होल एक तन्त्र या ब्रह्माण्ड के अन्त का प्रतीक है अर्थात् वह एक तन्त्र या ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ का भी प्रतीक होगा। इस प्रकार बाह्य अनुभूति से हम पाते है कि एक सिंगुलारिटी (एकलता) है तथा तीन और सात आयाम है।
दर्शन शास्त्र के व्यक्तिगत प्रमाणित मार्गदर्शक दर्शन के अनुसार - दर्शन शास्त्र से व्यक्त भारत के सर्वप्राचीन दर्शनों (बल्कि विश्व के) में से एक और वर्तमान तक अभेद्य सांख्य दर्शन में ब्रह्माण्ड विज्ञान की विस्तृत व्याख्या उपलब्ध है। स्वामी विवेकानन्द जी के व्याख्या के अनुसार- ‘‘प्रथमतः अव्यक्त प्रकृति (अर्थात तीन आयाम- सत, रज, और तम), यह सर्वव्यापी बुद्धितत्व (1. महत्) में परिणत होती है, यह फिर सर्वव्यापी अंहतत्व (2. अहंकार) में और यह परिणाम प्राप्त करके फिर सर्वव्यापी इंद्रियग्राह्य भूत (3. तन्मात्रा- सूक्ष्मभूतः गंध, स्वाद, स्पर्श, दृष्टि, ध्वनि 4. इन्द्रिय ज्ञानः श्रोत, त्वचा, नेत्र, जिह्वा, घ्राण) में परिणत होता है। यही भूत समष्टि इन्द्रिय अथवा केन्द्र समूह (5. मन) और समष्टि सूक्ष्म परमाणु समूह (6. इन्द्रिय-कर्मः वाक, हस्त, पाद, उपस्थ, गुदा) में परिणत होता है। फिर इन सबके मिलने से इस स्थूल जगत प्रपंच (7. स्थूल भूतः आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) की उत्पत्ति होती है। सांख्य मत के अनुसार यही सृष्टि का क्रम है और बृहत् ब्रह्माण्ड में जो है-वह व्यष्टि अथवा क्षूद्र ब्रह्माण्ड में भी अवश्य रहेगा। जब साम्यावस्था भंग होती है, तब ये विभिन्न शक्ति समूह विभिन्न रूपों में सम्मिलित होने लगते है और तभी यह ब्रह्माण्ड बहिर्गत होता है। और समय आता है जब वस्तुओं का उसी आदिम साम्यावस्था में फिर से लौटने का उपक्रम चलता है। (अर्थात एक तन्त्र का अन्त) और ऐसा भी समय आता है कि सब जो कुछ भावापन्न है, उस सब का सम्पूर्ण अभाव हो जाता है। (अर्थात सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का अन्त)। फिर कुछ समय पश्चात् यह अवस्था नष्ट हो जाती है तथा शक्तियों के बाहर की ओर प्रसारित होने का उपक्रम आरम्भ होता है। तथा ब्रह्माण्ड धीरे-धीरे तंरगाकार में बहिर्गत होता है। जगत् की सब गति तरंग के आकार में ही होता है- एक बार उत्थान, फिर पतन। प्रलय और सृष्टि अथवा क्रम संकोच और क्रम विकास (अर्थात एक तन्त्र या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का अन्त और आरम्भ) अनन्त काल से चल रहे है।ं अतएव हम जब आदि अथवा आरम्भ की बात करते है तब हम एक कल्प (अर्थात चक्र) आरम्भ की ओर ही लक्ष्य रखते है।’’
उपरोक्त दोनो में एकीकरण करते हुये दर्शन शास्त्र के सार्वजनिक प्रमाणित विकास / विनाश दर्शन के अनुसार - सृष्टि में, सृष्टि का कारण मानक अर्थात आत्मा अर्थात ब्लैक होल से सत्व गुण युक्त मार्गदर्शक दर्शन (Guider Philosophy) से प्रारम्भ होकर स्थिति में रज गुण युक्त क्रियान्वयन दर्शन (Operating Philosophy) से होते हुये प्रलय में तम गुण युक्त विकास / विनाश दर्शन(Destroyer / Development Philosophy) को व्यक्त करता है। जिससे आदान-प्रदान (Transaction), ग्रामीण (Rural), आधुनिकता / अनुकलनता (Advancement/Adaptability), विकास (Development), शिक्षा (Education), प्राकृतिक सत्य (Natural Truth)  व धर्म (Religion)  या एकत्व या केन्द्र व्यक्त होता है।
कोई भी विकास दर्शन अपने अन्दर पुराने सभी दर्शनों को समाहित कर लेता है अर्थात उसका विनाश कर देता है और स्वयं मार्गदर्शक दर्शन का स्थान ले लेता है। अर्थात सृष्टि-स्थिति-प्रलय फिर सृष्टि। चक्रीय रूप में ऐसा सोचने वाला ही नये परिभाषा में आस्तिक और सिर्फ सीधी रेखा में सृष्टि-स्थिति-प्रलय सोचने वाला नास्तिक कहलाता है।
एक सिंगुलारिटी (एकलता) आत्मा है तथा तीन आयाम सत्व, रज और तम है। सात आयाम आदान-प्रदान (Transaction), ग्रामीण (Rural), आधुनिकता / अनुकलनता (Advancement/Adaptability), विकास (Development), शिक्षा (Education), प्राकृतिक सत्य (Natural Truth) व धर्म (Religion)  या एकत्व या केन्द्र है।
कोई भी विकास दर्शन अपने अन्दर पुराने सभी दर्शनों को समाहित कर लेता है अर्थात उसका विनाश कर देता है और स्वयं मार्गदर्शक दर्शन का स्थान ले लेता है। अर्थात सृष्टि-स्थिति-प्रलय फिर सृष्टि। चक्रीय रूप में ऐसा सोचने वाला ही नये परिभाषा में आस्तिक और सिर्फ सीधी रेखा में सृष्टि-स्थिति-प्रलय सोचने वाला नास्तिक कहलाता है।
हिन्दी व्याकरण शब्द विन्यास के अनुसार ब्रह्माण्ड शब्द ब्रह्म + अण्ड से मिलकर बना है। ब्रह्म, ब्रह्मा से सम्बन्धित है। और एकात्म ज्ञान से सम्बन्धित हैं। इसी प्रकार विष्णु, एकात्म कर्म से और शंकर, एकात्म ध्यान से सम्बन्धित हैं। इसी क्रम में उनका अस्त्र ब्रह्मास्त्र, सु-दर्शन और पशुपास्त्र है अर्थात क्रमशः ज्ञान का अस्त्र, अच्छे विचार का अस्त्र और सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त का अस्त्र है। इस प्रकार ब्रह्माण्ड का अर्थ ज्ञान के अण्डे से है। ब्रह्म के साथ अण्ड जोड़ने के पीछे ये रहस्य था कि ज्ञान का प्रारम्भ और अन्त एक चक्र है जैसे क्रिया-कारण, जन्म-मृत्यु-जन्म। अर्थात एक चक्र या गोला। ब्रह्माण्ड के सभी ग्रह-तारे सब गोल रूप में हैं। यह ब्रह्माण्ड, ईश्वर की दृश्य कृति हैं जो उससे निकला है और इसमें वह स्वयं है। जिस प्रकार यह ”विश्वशास्त्र“ श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ से निकला है और इसमें वे स्वयं है। यह ब्रह्माण्ड, ज्ञान का अण्डा हैं, अनन्त है, इसका कोई निश्चित आकार और सीमा नहीं हैं, यह एक बड़े वट वृक्ष के समान है। बस, कुछ नहीं।
यह ब्रह्माण्ड, ईश्वर का दृश्य रूप है। इसमें क्रियाशील सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त उसके मस्तिष्क का कर्मज्ञान और प्रबन्ध प्रणाली है। मन का विश्वमानक शून्य श्रृंखला उसी का मानवीय व्यवस्था द्वारा व्यावहारिकरण के लिए रूपान्तरण है। ये एक प्रभावपरक सिद्धान्त है। मानवीय समाज में अधिकतर लोग ”शब्दार्थ“ को नहीं बल्कि ”शब्द“ को पकड़ बैठे हैं। ईश्वर के सम्बन्ध में वैदिक साहित्य ने ”ब्रह्म“ या ”आत्मा“, गीता ने ”मैं“, पुराण ने ”शिव“, कपिल मुनि ने ”कारण“, संतों ने ”एक“, हिन्दुओं ने ”ईश्वर“, सिखों ने ”वाहे गुरू“, इस्लाम ने ”अल्ला“, ईसाई ने ”यीशु“ इत्यादि कहा। इसे ही पूर्ण, धर्म, ज्ञान, सम, सार्वभौम, चैतन्य, केन्द्र, GOD, सत्य, अद्वैत, सर्वव्यापी, अनश्वर, अजन्मा, शाश्वत, सनातन इत्यादि भी कहा गया है। इन शब्दों के यथार्थ सत्य के वर्तमान प्रचलित शब्द में CENTRE कहा जा रहा है जो एक समष्टि शब्द है। जो शब्द किसी मानव समूह से सम्बन्धित हो जाये, उसे व्यष्टि शब्द कहते हैं। इसी प्रकार यह ब्रह्माण्ड एक अनन्त व्यापार केन्द्र या क्षेत्र (TRADE CENTRE or TRADE AREA) के रूप में है जहाँ प्रत्येक क्षण व्यापार या आदान-प्रदान (TRADE or TRANSACTION) चल रहा है और यह स्थिर नहीं है। इस प्रकार ब्रह्माण्ड के लिए समष्टि शब्द के रूप में TRADE CENTRE शब्द उपयोग किया जा सकता है।

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