सबका सार
01. सरकारी प्राणी 02. गैर सरकारी प्राणी 03. जनता
हमारी पूरी पृथ्वी पर केवल तीन किस्म के प्राणी हैं-
01. सरकारी प्राणी,
02. गैर सरकारी प्राणी,
03. जनता।
यह तीनों एक-दूसरे के पूरक हैं और तीनों एक-दूसरे के लिए हैं। हमेशा से केवल दो किस्म के प्राणी रहे हैं क्योंकि मनुष्य की महत्वकांक्षाएँ असिमित हैं। जिनका ध्येय केवल बढ़ोत्तरी और आने वाली नस्ल अच्छी हो, सुख समृद्धि बरकरार रहे। इसलिए बड़ों ने मनुष्य में नारी, पुरूष को ध्यान में रखते हुए, हर कोशिश की कि ज्ञान और विज्ञान के प्रति सचेत रहें। नियम, धर्म, कानून बनायें। जाति और धर्म, उनके कर्म के मुताबिक निर्धारित की। (सो पण्डितु जो मनु परबोधे, रामु नामु आतम महि सोधै -गुरू ग्रंथ साहिब)। अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों ने मनुष्य में भी मनुष्य को, हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई में बाँटा। इससे भी सन्तुष्टि न होने पर या आचरण में अन्तर के कारण, हर जाति में दो किस्में बनाई जिसमें भी गलत अहंकार या अपराधिक प्रवृत्ति है, वह कभी शान्ति से नहीं बैठ सकते। जैसे मुसलमान में, शिया और सुन्नी, दोनों में छोटा कोई बनना ही नहीं चाहता और इस प्रकार अपराधिक तत्व या गलत नेता आये। दिन-रात, मार-काट, लड़ाई-झगडे़ करवाते हंै।
अब तक राजा-महाराजाओं का जमाना था और सन् 1947 से पहले केवल गैर सरकारी और सरकारी प्राणी ही थे। गैर सरकारी प्राणी में सरकारी नौकर (कर्मचारी) को छोड़ कर, सब प्राणी आते है और गैर सरकारी $ गैर सरकारी प्राणी = जनता या प्रजा कहलायी जाती थी। आजादी के बाद राजा-महाराजाओं को खत्म किया गया। पहले सरकारी प्राणी को पगार राजा के द्वारा राजकोष से दी जाती थी। राजाओं के खत्म होने पर सरकारी प्राणी सही काम को और ज्यादा सही व तेज करे, इसलिये नेता ग्रुप बनाया गया। इन नेताओं में कोई कोताही न हो, यह गद्दारी न कर सके, इसलिये इनकी कार्य अवधि ज्यादा से ज्यादा 5 साल रखी गई।
पहले छोटे-छोटे राजा और रजवाड़ों में देश बंटा था। लेकिन बडे़ राजा या छोटे राजा, राज और बढ़ाने के चक्कर में, एक-दूसरे पर चढ़ाई करते थे, जिसमें मार-काट होती थी। जिसमें जनता या प्रजा ज्यादा पिसती थी। अब नेता ग्रुप जनता के वोट से ही चलने वाला ग्रुप बनाया गया, जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानामंत्री, मंत्री, चेयरमैन, सभासद, सेक्रेटरी, प्रधान आदि बनाये गये। जिससे हर प्राणी सुख से रहे, कानून के हाथ मजबूत हों।
उनकी सबकी बाग-डोर क्रमशः सभासद की चेयरमैन, प्रधान की सेकेट्ररी, सेकेट्ररी की नेता, नेता की मंत्री के हाथ, मंत्री की बागडोर, केन्द्रीय मंत्री, केन्द्रीय मंत्री की बागडोर प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री की बाग-डोर राष्ट्रपति और राष्ट्रपति की बाग-डोर सुप्रिम न्यायमूर्ती और इनकी यूनिटी के हाथों में रखी गयी। ध्येय केवल कर्मठ व वफादार बनाकर रखना और हर सरकारी महकमों की कमर्ठता वफादारी बढ़ाना ही था। सुधार रखना-करना,
हर अनियमितता खत्म करना ही था।
करनी करे तो क्यों डरें, करके क्यों पछताये,
बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहांँ से खाये?
जो करनी करने वाला है, वह करता है, कहता कब है,
ये तो मशहूर कहावत है, जो गरजा है बरसा कब है?
जो कल करे, सो आज कर, जो आज करे, सो अब,
पल में परलय होयेगी, बहुरी करेगा कब?
01. सरकारी प्राणी
जनता का सेवक, सरकार का नौकर, देश का चालक व रक्षक
सृष्टि बनने के बाद इंसान के पैदा होते ही सेवक का वजूद भी बना होगा। यह पदवी बेहद बड़ी श्रद्धा से ओत-प्रोत और बड़ी इज्जत वाली है। पहले-पहल बाप, माँ, बहन, भाई या कोई भी पत्नी जैसा सम्बन्धी अपने बड़े की सेवा करता होगा। गुरू के पास धर्मस्थल पर, आश्रम या स्कूल में, सब जगह आज भी सेवक न हो, नामुमकिन है। यह सेवक मनुष्य में ही नहीं जीव-जन्तुआंे, पेड़-पोधों तक में निश्चित है।
सेवक वह कहलाता है जिसके काम की कोई उजरत, पगार नहीं दी जाती या नहीं होती। इसलिये यह पदवी और खुद सेवक शब्द बेहद इज्जत का शब्द है, महानता का प्रतीक है। जब से पृथ्वी बनी है और जब तक रहेगी यह पदवी, गुण, नाम निश्चित रहेगा। यह प्राणी अपने बड़े, अजीज या प्रेमी के काम करने पर या सेवा करने पर सेवक बनता है। भगवान, वाहेगुरू, अल्लाह, गाॅड तक के साथ में यह शब्द जुड़ा है। कहीं-कहीं धर्मग्रन्थों में नारी की सेवा करते हुए महान पुरूष पति को दर्शाया गया है। यह भक्ति का बेहद बड़ा रूप भी है, जो मनुष्य के पैदा होते ही बनाया गया, चलन में आया। इसके बाद किसी भी कारणवश, जब सेवक को उजरत या पगार देने का चलन चला तो वह नौकर कहलाने लगा।
सेवा का कोई मोल कभी कुछ नहीं हुआ। छोटी सी सेवा के बदले सेवा कराने वाला क्या दे दें, कुछ पता नहीं। अनेक सबूत हैं, लगभग सब जानते हैं, सब करते हंै और करते रहेंगे। लेकिन नौकर बनते ही उसकी उजरत निश्चित कर दी जाती है। पहले-पहल यह उजरत अनाज, कपड़ा या रोजमर्रा की जरूरत की चीजें जैसी चीज जो इस्तेमाल की चीजें है, दी जाती रही हैं और बाद में धन का चलन चला। कौड़ी, (धन की सबसे छोटी इकाई थी)। जैसे आजकल पैसा। पहले इस्तेमाल की चीज, फिर धन और इस समय केवल रुपये से पगार का चलन है। मुखिया घर के, पहले बने फिर यह पद बढ़कर राजा-महाराजा और चक्रवर्ती राजा पद पर पूरा हुआ और वहाँ नौकर की श्रेष्ठता बरकरार निश्चित रही।
गैर सरकारी हो या राजा हो, नौकर के बिना काम नहीं चलता। राजा या प्रधान जो जनता से सम्बन्धित बड़ा होता है उसके नौकर को हम सरकारी प्राणी मानते हैं, कहते हैं क्योंकि उसकी पगार, प्रधान, मुखिया या सरकार निश्चित करती है और देती है। इनके काम, नियम, कानून, समय भी उनके बड़े या उनके अनुयायी ही निश्चित करते हैं। राजा के नौकर को खूबसूरत नाम दिया गया ”सरकारी नौकर“। सरकारी नाम जुड़ते ही उसकी इज्जत और कीमत अपने आप बढ़ जाती है। राजा, महाराजा शुरू से जनता के लिये कुछ न कुछ करते रहे और आगे भी करते रहेंगे। टैक्स का प्रचलन चला, हर काम के लिये अलग-अलग नौकर रखे गये और उनके अधिकारी रखे गये। आगे चलकर वह विभाग में तब्दील कर दिये गये। नौकर को हैंडिल करने के लिये, जिससे सही समय में सही काम कर सके, साथ ही उनकी किसी गलती पर उन्हें सजा दी जा सके। क्योंकि हर कर्मचारी या पगार लेने वाले नेचुरल, आलसी, नमक हराम, सुस्त व गद्दार होते जाते हैं। इनको वफादार कर्मठ रखने की ड्यूटी अधिकारी की होती है, अधिकारी की जिम्मेदारी होती है। इसके अलावा भी बेहद जरूरी ड्यूटी होती है, गैर सरकारी को सुरक्षित रखना। अगर किसी को अकस्मात परेशानी आती है, तो आॅन द स्पाॅट उसको बचाना, उसकी सहायता करना। क्योंकि हमारा गैर सरकारी प्राणी हमेशा हर जगह टैक्स देता है, जिससे सारे कर्मचारी, अधिकारी व नेता की हर रिक्वायरमेंट पूरी होती हैं। सबकी पगार इन्हीं के कारण मिलती है। सरकारी प्राणी के लिये, गैर सरकारी, उपभोक्ता या भगवान का रूप होता है। इस पर कोई एक भी परेशानी हो, तो पूरी सरकार पर गलत असर पड़ता है। इसलिए अपने विभाग की ड्यूटी के साथ-साथ हर गैर सरकारी प्राणी का पूरा ध्यान रखना अतिआवश्यक है। हर कर्मचारी, अधिकारी को सोचना चाहिये कि यह गैर सरकारी प्राणी आपके विभाग का कभी भी 10 पैसे का फायदा कर सकता है। आज नहीं तो कल या आने वाले कल में फायदा करेगा निश्चित है। सच्चाई में सारे सरकारी प्राणी एक बिरादरी के हैं और कोई भी गैर सरकारी प्राणी किसी न किसी सरकारी विभाग का उपभोक्ता निश्चित ही है।
गरीब से गरीब गैर सरकारी भी आपके किसी सरकारी प्राणी के काम निश्चित रूप से आता है। इसलिये उसकी सुरक्षा बेहद जरूरी है। हर सरकारी प्राणी को सुविधा, अच्छी पगार, मकान, दवा, बच्चों की पढ़ाई, रिटायरमेन्ट पर पैसा, बीमा, नौकरी के बाद और मरने के बाद भी फेमली को नौकरी और फेमली पेंशन तक दी जाती है। यही नहीं यह सब भी केवल सरकारी प्राणी के द्वारा ही चुना गया है या उनकी इच्छा से ही निश्चित किया गया। केवल गैर सरकारी प्राणी जो जीवन भर पूरे देश के लिये करता रहता है, जीता है, मरता है। लेकिन उसके परेशान होने या मरने का कारण भी किसी न किसी सरकारी विभाग की अनियमितता ही होती है। आप ध्यान दंेगे, तो समझ जायेंगे।
हर सरकारी प्राणी बड़े से बड़े और सारे नेता मिल कर जनता के लिये, हर स्कीम बनाते हंै। जैसे सब गरीब को रोटी मिले। इसलिये इसके लिये डीपो खोले गये, राशन कार्ड बनाये गये। वह भी तीन किस्म के, गांँव में गरीबी रेखा के राशन कार्ड पर, हर गरीब से चेयरमैन-प्रधान ने मोटे पैसे खाये और अधिक नहीं तो 25 प्रतिशत कार्ड, प्रधान सैकेट्ररी वालो के बने, जिनके पास जमीन और हर सुख सुविधा है। उनके कार्ड बने और कार्ड पर राशन ले रहे हैं।
पैसे केवल उन लोगों ने खाये हंै, जो मोटी पगार ले रहे हैं। सरकार के खास हंै। गाँव या शहर का डीपो बनाने में भी गैर सरकारी प्राणी को मोटा पैसा सरकारी कर्मचारी और या अधिकारी को देना पड़ा। यही नहीं मंथली पैसा, चीनी, तेल, अनाज भी देना पड़ता है। यह गैर सरकारी डीपो वाला मजबूर है कि जिनके राशन कार्ड बने हंै, उनसे ही हेरा-फेरी करे। इसके बाद आता है बच्चों का स्कूल, जहाँ पर 12वीं तक की पढ़ाई फ्री है, लड़की 12वीं पास हो, तो 20 हजार रूपये है। प्राईमरी में बच्चों का खाना तक फ्री है, यहाँ पढ़ाने वाले अध्यापक और अध्यापिका, जिनकी पगार 17 से 40 हजार और हर सुविधा है। छठीं कक्षा तक की किताबें फ्री कही जाती हंै, लेकिन सब गड़बड़ है और यह गड़बड़ भी प्रधान, प्रिंसिपल, सरकारी प्राणी और नेता के कारण होती है।
पगार लेने वाले अध्यापक ड्यूटी समय में खेत और जानवरों तक काम कर लेते हंै, महिला टीचर्स स्वेटर बुनकर या आपस में हँस-बोल कर और जो 45 साल से उपर उम्र की हैं, वह पैरो में दर्द, कमर में दर्द कह कर आराम करके या थकान उतार कर पगार लेते रहते हैं। दोपहर का खाना 50 प्रतिशत प्रधान, चेयरमैन या खाना बनाने वाले या प्रिंसिपल में बँटता है। आये दिन खाने के कारण नयी समस्याओं से केवल प्रिंसिपल को ही दो चार होना पड़ता है।
20 हजार रुपये केवल मजबूत, वैल स्टेंन्ड, ज़मींदार की लड़की को ही मिलते हंै। खासतौर 25 प्रतिशत गरीब का नम्बर हो। यह था गाँंव जहाँ कम से कम हेरा-फेरी होती थी या होती है। लेकिन शहर में, तो हर जगह केवल सरकारी विभाग, कर्मचारी और अधिकारी के द्वारा रिश्वत का चलन है। सब्जी मण्डी से रेलवे स्टेशन तक, बस अड्डे से कचहरी तक हर सरकारी विभाग, सभासद, चेयरमैन, नेताओं में केवल रिश्वत ही रिश्वत चलती है।
यह सब सरकारी प्राणी, नेता पढ़े-लिखे समझदार, अच्छे खानदान से हैं। इसलिये रिश्वत को सुविधा शुल्क या डोनेशन का नाम देकर कानून की व पूरे विभाग की सब धाराँऐं, नियम ही निष्क्रिय कर दिये हंै। कानून का कहना है रिश्वत देना और लेना पाप है, गलत है। हम यह कहते हंै कि मशीन में तेल देना, ग्रीस करना भी गलत है। एक गैर सरकारी चाहता है, घंटों का काम मिनटों में हो, जिससे कर्मठता और समृद्धता बढे़। सरकारी विभाग ने गलत कर्मचारी रखे, उनके उपर गलत अधिकारी रखे। ठीक-ठाक चलती मशीन में कौन तेल, ग्रीस देता है, पन्चर लगाता हैै। शर्मशार उस विभाग, उसके अधिकारी को होना चाहिये, जहाँ रिश्वत या सुविधा शुल्क चलती है।
गैर सरकारी का काम रूका रहे, यह तो और भी गलत है। एक काम पूरा होे, जिससे दूसरा काम शुरू किया जाये सरकारी प्राणी नहीं चाहता और मजबूर होकर, गैर सरकारी प्राणी को रिश्वत देनी पड़ती है। गैर सरकारी को यह पैसा बड़ी मेहनत से या अपने भाईयांे को काटकर, पेट की रोटी काटकर बचाना या बनाना पड़ता है। लेकिन वह बेकार गाड़ी को धक्के लगाकर चला लेता है। यही गाड़ी जो सरकार से मोटी पगार, हर सुविधा मतलब महँगा तेल, ग्रीस खा रहे हैं और बेकार ही नहीं है बल्कि बेहद नुकसानदायक भी सबित हो रही है, यह भयानक, गन्दगी, सबको शर्मशार करने वाली कमी है।
यह कमी कभी एक-आध कर्मचारी में होगी। अब ऐसा सारे कर्मचारी अधिकारी में है। खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पलटता है ना। अपने विभाग में, हर विभाग में अपने कर्मचारी वफादार रहंे, कर्मठ रहंे, तेज रहें, इसलिये कर्मचारी और अधिकारी को पालने के साथ-साथ सजा का भी प्राविधान या सख्त कानून, विभाग बनाने से पहले बनाया गया, लेकिन उस पर मुस्तैदी से अमल ही नहीं हुआ। अमल हुआ जरूर, लेकिन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है और अब केवल आपसी झगड़े या द्वेष के कारण ही सजा दी जाती है। किसी कन्ज्यूमर (उपभोक्ता) के कारण नहीं। हम आगे आप सब का ध्यान कुछ सरकारी विभाग, उनकी अनियमितताएँ और उनका सुधार दर्शाने की कोशिश करेंगे। संसार के सारे सरकारी प्राणी आमंत्रित हैं, साबित करें कि आप सरकार के नौकर, जनता के सेवक और अपने-अपने देश के चालक व रक्षक हैं, जो नियम जनता के लिये हैं, उससे कठोर नियम, हर सरकारी प्राणी और नेता के लिये हैं, मानेंगे और अमल करेंगे।
02. गैर सरकारी प्राणी
जनता या प्रजा की एक इकाई
जनता या प्रजा की एक इकाई ही, गैर सरकारी प्राणी है। सृष्टि बनने के बाद ही परिवार में तीन, चार, पाँच प्राणी होते ही, घर का बड़ा या मेन प्राणी, छोटे की रक्षा में जुटा। उन्हें खाना, उनकी जरूरतें पूरी करना व जानवरों से रक्षा करने जैसा काम किया। जो आगे चलकर छोटों को प्रजा और खुद को राजा माना गया। परिवार बढ़ते ही सबको अलग-अलग ड्यूटी, जिम्मेदारी सौंपी गई। जिन्हें पहले सेवक कहा जाता था फिर उनकी पगार का चलन बना और सेवक को नौकर का नाम दिया गया। पहले-पहल घर-परिवार का मुखिया, अपने कर्म, उनका लालन-पालन और रक्षा पूरे परिवार की, करने से मुखिया बना और परिवार के प्यार और इज्जत ने उसे मुख्यिा से, राजा का नाम दिया गया। इसके बाद परिवार में या राज्य में और बढ़ोत्तरी हुई और यह राजा से महाराजा, चक्रवर्ती राजा आदि बनें।
निश्चित ही पुरूष, नारी में से किसी भी कारण से या नेचुरल, किसी एक के दिमाग में अपराधिक प्रवृत्ति ने जन्म लिया और बाद में डण्डे के बल पर राजा या मुखिया का हक भी लिया गया। अब दो समाज या यूनिटी बनी और दोनों ने अलग-अलग धर्म बनाये। दोनों मुखिया या राजा ने अपने तरीके से बढ़ोत्तरी की। परिवार बढ़ते गये। सेवक अपने कर्म में लगे रहे। मुखिया अपने वाहुबल और दिमाग से व सेवक के सहयोग से राजा, महाराजा और चक्रवर्ती राजा तक बनें। मनुष्य ने होश सम्भालते ही दिमाग और बाहुबल से पेड़, पौधों, जानवरों और बेजान चीजों को इस्तेमाल करके व खुद की रक्षा और बढ़ोत्तरी की।
हर तरीके से सोचा या समझा जाये तो केवल एक प्राणी से ही सारे ब्रह्माण्ड की रचना का सूत्र नजर आता है या ब्रह्माण्ड मंे खास अहमियत एक प्राणी की ही है। भगवान, रब, अल्लाह, वाहेगुरू या गाॅड ने भी पहले-पहल एक प्राणी ही बनाया होगा। जब से संसार बना और जब तक रहेगा, इस एक प्राणी के कारण या एक प्राणी के लिये ही, सब कुछ होता रहा और आगे भी होता रहेगा। इसलिये इसकी सबसे ज्यादा कदर है। एक प्राणी को बचाने, रखने के लिये घर वालों से लेकर राजा तक हमेशा, हर कोशिश करते रहे हैं। इस एक प्राणी को, वो चाहे बड़े से बड़ा मुजरिम क्यों न हो, सबसे पहले उसे बचाने के बारे में ही सोचा जाता है। यह प्राणी अगर, गैर सरकारी है, जिसकी गिनती हमेशा से सबसे ज्यादा रही है और हमेशा रहेगी। केवल इसी के कारण सारा संसार चलता है। राजा, महाराजा, चक्रवर्ती राजा का पूरा राज्य इसी के कारण चलता था और आज भी चलता है, जबकि रजवाड़े खत्म हो गये हंै और सब आजाद बने व हंै। गणतंत्र का समय है। यह सब इसी प्राणी के कारण है और इसी के लिए है। इसी के कारण सब विभाग बने व चलते हंैं। यह एक प्राणी चाहे भीख माँगने वाला है या चोर डकैत है या शराबी है। पूरा देश इस एक प्राणी से पलता और चलता है। एक किसान है या फैक्ट्री का वर्कर, जूते गाँठने वाला चमार, रिक्शा चलाने वाला या हर एक जाने-अनजाने देश के लिये ही पूरी जिन्दगी, हर हाल में करता ही रहता है और इसलिए सच माना जाये तो यह देश का राजा है। बिना ताज का बादशाह है।
हम सब ने रेल से लेकर हवाई जहाज, टेलीविजन आदि तक बनाये। सारे विभाग बनाये लेकिन सब इसी के लिए बनाये और इसी के कारण चलते हैं। शराब फैक्ट्री, बीड़ी फैक्ट्री सब इसी के कारण चलते हंै। राजा-महाराजाओं के जमाने से राजा के द्वारा अनेक उपक्रम चलाये गये, जिससे प्रजा को हर सुविधा मिले और उसे सस्ते से सस्ता बनाया गया। गैर सरकारी प्राणी के द्वारा कोई उपक्रम खोला भी गया, तो उस पर जायज टैक्स लगाया गया। किसान पर लगान, चीजों के बेचने खरीदने पर टैक्स, यातायात पर टैक्स, मनोरंजन पर टैक्स, मतलब गैर सरकारी कुछ भी करे, इनके मरने तक पर टैक्स लगया गया। टैक्स लगाने का ध्येय केवल यह था कि पूरा राज्य समृद्धि व बढ़ोत्तरी पर रहे। सबको हर किस्म की सुविधा मिलती रहे।
इस टैक्स के पैसे से राजा-महाराजा अपनी जरूरतें भी पूरी करते थे। जैसे कर्मचारियों की पगार, खुद की लड़ाई या लड़ाई से बचाव के हथियार या साधन पर खर्च, सड़कंे, कुँए, धर्मशालाओं पर खर्च करते थे। इस गैर सरकारी प्राणी के लिए, हर विभाग बनाये गये। अस्पताल से लेकर अदालत तक बनाई गयी और राजा-महाराजा खुद एक कर्मचारी की तरह कर्मठता और समझदारी से कर्म करते थे। जैसे अदालत जहाँ कर्मचारी कोताही कर सकते थे। वहाँ जज की जगह या न्यायकर्ता की जगह खुद बैठते थे। यही नहीं खुफिया विभाग और अनेक गुप्तचर या सी. आई. डी. के होते हुए, खुद रातों को गुप्तचर का काम राजा करते थे।
जगविदित है कि गुप्तचर को हर भेष रखना पड़ता है और गन्दे से गन्दा काम करके सबूत इकट्ठे करने पड़ते हैं और सच्चाई की गहराई तक जाना पड़ता है। गलती पर कठोर सजा का कानून था। गलती करने वाला चाहे, राजा का पुत्र, बाप या पत्नी ही क्यों न हो। एक राजा अपनी प्रजा के प्राणी को भी, अपने पुत्र के समान समझता था। लेकिन ड्यूटी और नियम कानून के मामले में कोई भेद-भाव नहीं था। इसी प्राणी के लिये वह दिन, रात मेहनत करते थे। सुख देेने के लिये राज्य बढ़ाते थे और यहाँ तक की सिर पर कफन बाँधकर खुद लड़ते थे। इस लड़ाई में मौत भी होती थी और जीत और हार भी होती थी।
राजाओं के जमाने से ही हर विभाग बनाये गये। उनके कर्मचारी व अधिकारी रखे गये। कर्मचारी के अधिकारी रखने का ध्येय था, कर्मचारी से कर्मठता से काम लिया जाये उनको वफादार रखा जा सके और गलती या गद्दारी न कर सके। कठोर सजा का नियम या कानून बनाया गया और अगर गैर सरकारी पर कोई आपत्ति आती है, तो आॅन-द-स्पाॅट उसकी सहायता करके, उसे पहले बचाना या हर व्याधा से बचना उसका धर्म, नियम और कानून बनाया गया। इस अधिकारी के उपर भी अधिकारी रखे गये। यह चेन राजा पर ही जाकर खत्म होती थी।
ध्येय केवल यह था कि कोई अधिकारी या कर्मचारी कोई गलती न करे या किसी गैर सरकारी पर अत्याचार न हो। यही नहीं वह अधिकारी अपनी पावर या विभाग की सुविधा नाजायज तरीके से अपनो में न बाँट दे। राजा तक शिकायत पहुँचाने पर, 24 घटे में फैसले की हर कोशिश होती थी। अनेक सबूत मिल जायेंगे कि राजा-महाराजाओं ने एक प्राणी के लिये राजपाट तक दांव पर लगाये, बल्कि अपनी जान भी दांव पर लगाई। आज भी एक बच्चे या बीमार प्राणी पर करोड़ांे का नुकसान सरकार करती है, लेकिन बच्चे की जान बचाने की, हर कोशिश की जाती है। बीमार प्राणी के लिये घर वाले लाखों खर्च करते हैं, जबकि कभी-कभी जानते हुये भी कि यह बचेगा नहीं। इस समय लगभग हमारे आस-पास पढ़े-लिखे ज्यादा हंै, जो इतिहास जानते हैं। वह जानते है कि जब पहली मोटर कार बनी थी, जिसकी स्पीड 5-7 किमी/घंटा थी और भीड़ भी नहीं थी, फिर भी दो आदमी कार के आगे-आगे चलते थे, जिससे कोई प्राणी या जानवर कार की चपेट मंे ना आये। इस एक प्राणी की इतनी कदर थी कि 20 साल पहले तक रेल से कटे प्राणी के उपर से गाड़ी गुजरती थी, तो पहले कुछ सेकेण्ड के लिए डेडबाडी वाली जगह गाड़ी रोकी जाती थी। अंग्रेजों के समय के बाद तक यह आलम था कि अगर कोई मर्डर हो जाता था, तो हर गैर सरकारी प्राणी कई मील दूर से गुजरता था जिससे पुलिस के चंगुल में न फंसे। क्योंकि सरकार एक प्राणी के मारने वाले को भी नहीं बख्शती थी। क्योंकि मरने वाला प्राणी देश के लिये बहुत फायदेमंद था। उसकी कमी देश में सबका नुकसान माना जाता था।
मुखिया हो या बाप हो या गुरू हो, राजा हो, मालिक हो, वह केवल अपने छोटों को चाहे वह जिस हाल में हो, हर तरीके से पालता है। यही काम गैर सरकारी प्राणी करता है। एक किसान जिसके पास सैकड़ांे बीघे जमीन होती है। अनाज, सब्जी उगाता है। बेहद मेहनत करता है। सर्दी में, बरसात में, गर्मी में काम करता है। झोपड़ी में रहता है। हल्का पहनता है। उसके छोटे-बड़े सब उसका साथ देते हंै और यह अनाज पूरे देश में, हर कर्मचारी, अधिकारी, नेता, राष्ट्रपति व सेना तक पहुँचता है। वह लगान भी देता है। एक मजदूर, ताजमहल बनाता है। सबके, सब काम करता है। बीड़ी, सिगरेट, शराब भी पीता है, तो सरकार का फायदा ही होता है। एक फैक्टरी मालिक आज फैक्ट्री चला रहा है। पहले उसकी छोटी सी दुकान थी, तब भी वह नगरपालिका को टैक्स देता था। एक-एक पैसा बचाकर बच्चों के व अपने पेट की रोटी से बचाकर फैक्ट्री बनाई। आज भी हजारों कर्मचारी, उसके यहाँ मेहनत करके खाते हैं।
आज वह सरकार को मोटा टैक्स देता है, जबकि फैक्ट्री की लागत की ब्याज भी उसके जीवन भर के लिए ज्यादा होती है। गैर सरकारी बेइन्ताह मेहनत करता है और मरते दम तक मेहनत करता है। उसकी हर चीज केवल सरकार के काम आती है, पूरे देश के काम आती है। बच्चे भी पैदा करता है, तो भी यह बच्चा चाहे भीख माँगता है केवल सरकार को ही फायदा है। यही बच्चा सभी के लिए मेहनत करता है या पढ़ता है। पढ़कर कोई डाॅक्टर, इंजीनियर, जज बनते हैं या रेल, हवाई जहाज चलाते हैं या नेता बनते हैं। मतलब सब सरकार के लिये करता है। जहाँ भी जाता है खुद का मकान हो या झोपड़ी हो, इसकी अपनी होती है सरकार की नहीं यह अच्छे से अच्छा और बुरे से बुरा काम भी करता है, तो केवल सरकार को ही फायदा है, सरकार को ही पालता है।
पालने वाला राजा होता है। आज यही प्राणी पिस रहा है। अंग्रेजों के अत्याचार भारतीयांे पर मशहूर हैं। इसके बेहद सहनशील होने के कारण राजा-महाराजाओं के जमाने से इसने हर अत्याचार सहा है। सरकारी प्राणी, जमींदार को भी अनपढ़, गँवार कहकर उस पर अत्याचार की शुरूआत कर देते हंै। मजदूर की खाल और खून पसीना बहा देते हैं। ज्यादा से ज्यादा काम लेने की कोशिश करते हंै। रिक्शे वाला, रिक्शे का टैक्स, स्कूटर, मोटरसाईकल वाला उस जैसा टैक्स, बस वाला बस का मोटा टैक्स भरते हंै। हर सरकारी प्राणी, गैर सरकारी प्राणी को बाल बराबर समझते हैं। गैर सरकारी हर झटका, हर बेइज्जती बर्दास्त करते हैं। होटल मालिक हो या डीपो होल्डर, फैक्टरी मालिक हो या किसान यह केवल अत्याचार सहता रहता है और मजबूर होकर केवल अपने बच्चों पर, भाइयों पर, खानदान पर ही अत्याचार करने पर मजबूर हो जाता है।
आप अपने बेटे को, बाप को, भाई को या दूसरे किसी गैर सरकारी को कभी कुछ नहीं दंेगे। लेकिन सरकारी कर्मचारी, नेता, अधिकारी को सब कुछ दे देतेे हंै। डीपो होल्डर अपने भाईयों का चीनी, गेहूँ, तेल में हेरा-फेरी करता है लेकिन डी. एस. ओ. को देता है। सरकार को टैक्स देता है। गैर सरकारी में पण्डित और मौलवी, आश्रम, मदरसे, गुरूद्वारें तक सब आते हैं। इससे भी केवल सरकार को ही फायदा है। हर त्यौहार मनाता है, कभी छुट्टी नहीं करना चाहता। पूजा-पाठ और जुए के अड्डे तक चलाता है। लेकिन सरकार को ही फायदा होता है। सब बातों को देखते हुए, हर किस्म से साबित होता है कि गैर सरकारी प्राणी, देश का राजा है। यह बेहद सहनशील है, बेहद मेहनती है और सबका पालनहार है। संसार के, आप गैर सरकारी प्राणी हैं, सब आमंत्रित हैं, एक-दूसरे के सहायक बने, साबित करें, आप सबसे बड़ी पावर हैं।
मानस से संसार है, नारी, नौकर, नेता और सरदार,
मानस बिन कुछ भी नहीं, नहीं सूरज, चाँद, आकाश।
03. जनता
गैर सरकारी प्राणी की भीड़
यह गैर सरकारी प्राणी की भीड़ है। जनता बेहद भोली होती है लेकिन अथाह शक्तिशाली होती है। जनता या प्रजा के द्वारा या इसके लिये ही राजा-महाराजा तक सब कुछ करते थे और खुद भी असिमित सुख उठाते थे। इस समय तो खुले रूप में कहा जाता है कि जनता का राज है। पहले राजा-महाराजा और अब सरकार जो कुछ भी करती थी, जनता के लिये ही करती थी। जनता के लिये शुरू से, हर अधिकारी ग्रुप का हर आदमी प्रयत्न्शील रहा है। मंत्री और राजा तो सोते जागते भी जनता के बारे में ही सोचते रहतेे थे। बड़े व्यापारी जो गैर सरकारी होते हैं, जनता के बारे में सोच कर ही कदम उठाते हैं, क्योंकि जनता बेहद भोली परन्तु अथाह शक्तिशाली निश्चित है। गणतंत्र के जमाने में तो हर बड़ा, जनता के बारे में ही सोचता है क्योंकि जनता के द्वारा ही नेता को वोट मिलते है, नोट मिलते है। रेल, हवाई जहाज, फैक्ट्री, बैंक जनता के कारण ही चलते हंै। पुल और सड़क व सारे मनोरंजन जनता के कारण ही बनते हैं, जनता के लिये बनाये जाते है। प्रधान, सैक्रेटरी, सभासद, चेयरमैन, नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक जनता के द्वारा और जनता के लिये बनते है। मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरजाघर जनता के द्वारा और जनता के लिये बनते हैं। शुरू से जनता को एक डंडे से हांका जाता रहा। जैसे एक डंडे से भेड़, बकरी हांकी जाती है और अब जनता की पावर का अन्दाजा सबको हैं। हमेशा से जनता का नाम लेकर हर अधिकारी, राजा से फायदा उठाता रहा है। इस समय हर विभाग जनता के लिये बने हैं लेकिन गणतंत्र के समय में भी हर विभाग, हर नेता, ठेकेदार केवल जनता के नाम पर हर काम में नाजायज फायदा उठा रहे हंै। केन्द्र में तो हर मंत्री, हर अधिकारी बेहद सोचकर, इनकी पूरी यूनिटी बैठकर जनता के फायदे के लिये ही स्कीम बनाते रहते हैं, हर कदम उठाते हंै और हर हाल में जनता से फायदा उठाकर, जनता की आड़ में करोड़ांे, अरबों का नुकसान करके सरकार का व हर विभाग के अधिकारी अपने उस विभाग की जडे़ कमजोर कर रहे हैं।
आज के समय में इसी वजह से भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी चरम सीमा पर है। महँगाई लगातार बढ़ रही है। हर इंसान खासतौर से जनता का प्राणी (गैर सरकारी) अत्याचार भुगत रहा है और जनता पर ही अत्याचार करने के लिये मजबूर है। जनता सबसे बड़ी यूनिटी होने पर भी और बेहद मेहनती, बेहद सहनशील होने पर भी केवल भोली होने के कारण पेट की रोटी के लिये मेहनत में लगे रहने से, जनता का कोई प्राणी कुछ भी सोच ही नहीं पाता या सरकारी कर्मचारी अधिकारी के डर से कुछ करने से बचते देखे गये है।
जनता का हर प्राणी हर अनियमितता देख व सहकर कहता है। अपना काम देखंे, करें या इन बेकार के मामलों में न पड़े और देश में ही नहीं विदेशांे तक में, गधे पंजीरी खा रहे हैं। जनता पिस रही है। जनता के लिये सरकार, मंत्री, सरकारी अधिकारी हर अच्छी योजना बनाते हैं या बनाते रहते हैं। इनकी गरीबी पेंशन, स्कूल में बच्चों की सहायता, बड़े-बड़े अस्पताल। गरीबों के वेरीफिकेशन करके तीन किस्म के राशन कार्ड, बिजली, पानी, सीनियर सिटीजन जैसी छूट या हर उपक्रम करते हैं। लेकिन अपराधिक व गलत नेचर के अधिकारी या नेता के लोग हर सरकारी प्राणी, सरकारी प्राणी के ही सहयोग से नेता, नेता के सहयोग से सरकारी प्राणी, इन्हीं सरकारी प्राणी और नेता के सहयोग से गैर सरकारी प्राणी व सरकार के हर विभाग और सारी जनता को मोटा चूना लगा रहे हंै, जो लगातार बढ़ोत्तरी पर है।
आज हर इंसान चाहे सरकारी प्राणी हो, गैर सरकारी प्राणी हो, या नेता हो, सब परेशान हैं। जिसमंे खासतौर से गैर सरकारी प्राणी या जनता बेहद मेहनती और सहनशील होने के बाद भी बुरी तरह से पिस रही है। सरकार ने शिकायत पेटियां लगवाई, जिसमें आप अपनी शिकायत लिखकर डाल सकते हैं। शिकायत रजिस्टर रखवाये कि अनियमितता के बारे में लिख दें। सूचना विभाग बनाये जहाँ 30 दिन में जवाब मिलने की गारण्टी है, लेकिन जनता का विश्वास सब पर लगभग खत्म हो चुका है। यहाँ तक कि सूचना विभाग और अधिकारी ढूढ़ने से नहीं मिलते या अधिकतर जनता के पास, परेशान होने के लिये समय नहीं है या शिकायत करने से फायदा समझ नहीं पाये या शिकायत पर अमल नहीं होता या जवाब दोतरफा होने के कारण, जनता खुद बचना चाहती है। कहीं-कहीं देखा गया है कि शिकायती को पैसा देकर या गैर सरकारी को मुकदमें की धौंस देकर दूसरे कर्मचारी अधिकारी के द्वारा शिकायत करने वाले को शिकायत लौटाने तक के लिये मजबूर किया जाता है। एक गैर सरकारी अपने स्थान से दूर कैसे बार-बार काम छोड़ कर, पैसा लगाकर कितनी बार शिकायत करेगा। जबकि 99 प्रतिशत वह सोचे बैठा है कि शिकायत करने से भी, इन भ्रष्ट लोगों का कुछ नहीं होता। हर प्राणी, नेता या सरकारी प्राणी और जनता यहाँ तक कि विद्यार्थीगण तक यह कहते हैं, कि नीचे से उपर तक सब भ्रष्ट हो चुके हैं। वहाँ पर शिकायत करने वाले की इच्छा होने पर भी, उसी के परिवार वाले तक व सगे-सम्बन्धी तक रोकने की हर कोशिश करते हैं और सबूत के आधार पर शिकायत करने वाला, शिकायत भूल जाने के लिये मजबूर हो जाता है। सरकार ने लोक अदालत और ”जागो उपभोक्ता जागो“ तक का पूरा प्रचार किया। लेकिन भोली जनता समझ नहीं पा रही है कि हर गैर सरकारी प्राणी और नेता तक खुद उपभोक्ता हैं। हर गैर सरकारी प्राणी, खासतौर से हर सरकारी विभाग, कर्मचारी व अधिकारी और नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक उपभोक्ता हैं। दुकानदार भी उपभोक्ता हैं। इसीलिये लेखक पूरी कोशिश कर रहा है कि हर प्राणी जागे। गैर सरकारी प्राणी, सरकारी प्राणी और हर नेता पूरी तरह जागे।
पुराने समय से जनता किसी ना किसी कारण से बाधित तो जरूर रही है। अत्याचार भी सहे हंै क्योंकि प्रकृति के कष्ट भी जनता भुगतती आयी है। पहले खेती भी मौसम खराब होने से गडबड़ाती थी। राजाओं के झगड़े, चोर-डकैतांे की ज्यादती व बीमारी आदि फैलने से जनता परेशान रही है। नेतागिरी का चलन नहीं था, पढ़े-लिखे कम थे। लेकिन अब इस विज्ञान के युग में लगभग सब कुछ होते हुए कानून को गलत तरीके से इस्तेमाल करके, सरकारी प्राणी और नेता की ज्यादतियाँ या दोनों की ज्यादतियाँ साथ ही, गैर सरकारी मजबूर लोगों की ज्यादतियाँ गैर सरकारी को बेहद भुगतनी पड़ रही हैं, जो खासतौर चर्म सीमा के नजदीक हैं, जो केवल ज्ञानवान व जागरूक होने से ही बचत सम्भव है।
जनता के जागरूक होते ही, हर सरकारी प्राणी जो जनता में से किसी की सन्तान है। देश का चालक और रक्षक बना है, सही तरीके से चलायेगा और रक्षा करेगा। एक नेता हर किस्म की चोरी, भ्रष्टाचारी, गद्दारी लगातार फैला रहा है। वह भी कानूनी तरीके से। जनता की औलाद सरकारी प्राणी, देश के चालक व रक्षक के सहयोग से सरकारी प्राणी के द्वारा जनता को खराब व उन पर अत्याचार कर रहा है और करा रहा है। जबकि यह नेता भी, गैर सरकारी प्राणी का पुत्र है, भाई है, चाचा, ताऊ, बाबा, पति है। देश का एक खास अंग है। यह ज्ञानवान व जागरूक हो जायेगा, तो सबके लिये फायदेमंद जरूर होगा। आप सब से अपील है, साथ दंे-सहयोग दंे, और संसार को स्वच्छ व सुनहरा बनाये। संसार के सब आमंत्रित हैं, साबित करें, आप से ही सब कुछ हैं, आप सबको पाल सकते हैं, तो गलती पर माकूल सजा भी दिला सकते हैं या सजा दे सकते हैं। इन्टरनेट का इस्तेमाल करके खतरनाक, सक्षम, गद्दार को भी सुधारकर देश, समाज और खुद उसके लिए, उसका नवीनीकरण करके, बेहद बड़ा धर्म का लाभ उठा सकते हैं।
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