Thursday, April 16, 2020

नगरपालिका या महापालिका

नगरपालिका या महापालिका
शहर में सबसे पहले आती है

”नगरपालिका या महापालिका“। इसकी वैसे तो ड्यूटी सफाई, पानी, सड़कें, गली, उनकी रात की रोशनी, मकान, दुकान का टैक्स और सारे शहर की हर देखभाल की है, जो अधिशासी अधिकारी के अधीनस्त चलती है। चेयरमैन (5 साल का नेता) इसकी देख-रेख करता है। चेयरमैन के साथ-साथ सभासद पूरी तरह देखभाल में साझेदार और जिम्मेदार होता है, हर सेक्टर का सभासद अलग-अलग होता है। सही मायने में महापालिका या नगरपालिका की जिम्मेदारी पूरे, शहर की सफाई-सुधार की होती है। शहर में हर गतिविधियों का आईना होती है नगरपालिका। हर विभाग इनकी हद में होता है, हर प्राणी व घर इनके रिकार्ड में होता है। इन्हें कानूनी और गैर कानूनी हक है कि, हर सफाई-सुधार रखें, हर अनियमितता को सबसे पहले देखंे, सुधार करने की हर कोशिश करंे, अगर न सुधार सकंे तो पहले जिस विभाग के कारण अनियमितता है, उसका सहयोग लें फिर भी न सुधरे तो उपर अपने से उच्च अधिकारी और सर्वाेच अधिकारी व विभाग को सूचित करें। नगरपालिका या महापालिका सबसे पहला विभाग है, जिसे सही मायनों में हर घर, फैक्टरी, आॅफिस मतलब चप्पे-चप्पे तक का ध्यान रखना होता है। इसमें कर्मचारी, अधिकारी के पूरे बैच के द्वारा शहर को कई हिस्सों में बाँटकर आसानी से सफाई और सुधार का ध्यान और हर अनियमितता को कन्ट्रोल किया जा सकता है। पूर्व से पश्चिम तक उत्तर से दक्षिण तक हर प्राणी, सब्जी मण्डी से रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड से कचहरी तक की हर जिम्मेदारी इन्हीं के उपर आती है और यह बेहद आसान काम भी है।
सभासद डीपो, दुकान, मकान, नाले-नालियांँ, सड़के, बिजली, पानी यहाँ तक की हर प्राणी की खबर रखता है, जिसकी रिपोर्ट चेयरमैन को करने की ड्यूटी भी है। सारे सरकारी आॅफिस, विभाग भी इसकी हद में आते है। इसके कर्मचारी व अधिकारी, परमानेन्ट 58 साल के लिये बुक हैं। अर्दली से लेकर इंस्पेक्टर और पूरा स्टाफ अलग-अलग तहकीकात के लिये रखे गये हैं। इस समय इनके पास, हाथ ठेली से लेकर ट्रक, बड़ी क्रेन तक है। जमादार (भंगी) से लेकर आपरेटर ही नहीं, फायर बिग्रेड, पी. डब्ल्यू. डी., पुलिस विभाग सब इनके सहयोगी हंै। यह सब बेहद आसानी से, हर अनियमितता पर काबू पा सकते हैं। लेकिन यह केवल टैक्स तक ही सीमित रह गये हैं। हाउस टैक्स देने का मतलब है पानी, बिजली सड़कंे, डीपो, सरकारी अस्पताल, अदालत तक ठीक-ठाक काम कर रहे हों। डी. एस. ओ., आर. टी. ओ., रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड ठीक-ठाक हों। पुलिस विभाग, टैªफिक पुलिस, फायर बिग्रेड, अदालत तक ठीक हांे। नगरपालिका या महापालिका के अधिकारी की ड्यूटी है कि वह अपने स्टाफ को इस तरीके से हैण्डल करे, फिर डी. एम. और कमिश्नर के सहयोग से व सभासद चेयरमैन के सहयोग से सुधार करे और सुधार रखे। केवल नगरपालिका या महापालिका की कोताही से, इसमें भी सबसे पहले परमानेन्ट कर्मचारी की कोताही से सभासद, चेयरमैन जो केवल 5 साल के लिए होते है, अनियंत्रित और बाधित होते हंै और फिर शहर का, हर सरकारी विभाग, यही नहीं गैर सरकारी प्राणी, स्कूल तक अनियंत्रित होते चले जाते हैं। यह शहर ही नहीं, पूरे देश के लिये नुकसानदायक साबित होते हैं और हो रहे हंै। अगर अधिशासी अधिकारी, डी. एम. को लिखकर दे कि रेलगाड़ी के लेट आने से हमारी जनता बाधित है, शहर का नुकसान हो रहा है। डी. एम., कमिशनर और अधिशासी अधिकारी के हस्ताक्षर के साथ रेलव, सी. एम. व रेलमंत्री को भेज दें, तो फौरन सुधार होगा। गलती पर सजा या जुर्माना होगा। बस अधिकारी को समझाना है कि वह अधिकारी है और फिर सब छोटे-बड़े कर्मचारी, अधिकारी, सभासद से लेकर हर नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री से काम लेना उनकी इज्जत बढ़ानी है, देश को समृद्ध बनाना है। जनता जिनके वह सेवक हंै, उनको सही सुख देने की कोशिश करनी है। खुद को नमक हलाल बनाना है।
नगरपालिका या महापालिका एक चैन की पहली कड़ी के समान है, जिसका गलत होना गारण्टी है कि पूरी चैन ही निश्चित रूप से गलत हो जायेगी। कोई सरकारी विभाग, नेता, कर्मचारी खुद को गलत होने से रोक ही नहीं सकता। जिसका फल होता है महंगाई। हर विभाग देश के लिये नुकसानदायक, सब पर अत्याचार करना और अत्याचार सहना, जो कि अब हो रहा है। राजकोष का कम होना, प्रत्येक टैक्स बढ़ना और कर्मचारी अधिकारी की पगार भी पूरी न होना, हर चुनाव में मोटा नुकसान और नेताआंे का असिमित खर्चा बढ़ना, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचारी, गद्दारी का फलना-फूलना, चोर, डकैत पलना, नेताओं का गद्दार होना आदि यह क्रम बहुत लम्बा है। लास्ट में देश के गुलाम होने पर ही रूकता है।
नगरपालिका या महापालिका की कोताही से, हर गैर सरकारी या सरकारी प्राणी को अत्याचार सहने और करने से नहीं बचाया जा सकता। नगरपालिका ने शुरूआत की, अब हर प्राणी चोरी में निश्चित कदम रख चुका है। हर नगरपालिका का इंस्पेक्टर चैन की पहली कड़ी है। आज शहर में नाजायज हाउस टैक्स, हर दुकान, मकान का है। गैर सरकारी प्राणी, टैक्स का मोटा पैसा पहले ही इंस्पेक्टर की जेब में डाल देता है, केवल पहली किस्त का, फिर भी टैक्स देना ही पड़ता है। मकान बनाना, पहले रिश्वत दो, दुकान हो या छोटा सा घर हो। आज शहर में बड़ी-बड़ी कोठी, दुकान, बड़ी-बड़ी फैक्टरी पर, छोटे टैक्स मिल जायेंगे। रिकार्ड नगरपालिका में मौजूद है, वही छोटे घरांे पर मोटा टैक्स मिलेगा, टूटे-फूटे मकान का टैक्स मिलेगा, जबकि इंस्पेक्टर व सभासद दिन घूमते हैं, उनकी ड्यूटी है, पानी का टैक्स, पानी पहुँचे न पहुँचे, आपको देना पडे़गा, धाँधली है। किसी भी कारण से टैक्स इकट्ठा हो गया, तो आर. सी. काट दी जाती है, जबकि तहसीलदार साहब भी नगरपालिका की हर कोताही भुगत रहेे हंै। वह यह नहीं देखते कि मेरे साथी, कर्मचारी और अधिकारी की गलती भी हो सकती है।
मानवता से या कानूनी तरीके से देखा जाय तब तो ”बलन्डर मिस्टेक“ अधिकारी और स्टाफ की ही है। इतना टैक्स उपभोक्ता पर हो क्यांे गया? उपभोक्ता कमजोर है या अधिकारी की धाँधली है, गलती है, दोनों बातों में गलती अधिकारी की ही है। पिछला इंस्पेक्टर गलत टैक्स कैसे लगा गया। यही केस अदालत में हो, तो कोई अधिकारी सजा और जुर्माने से बच ही नहीं सकता, लेकिन सबसे पहले ड्यूटी, इन्हीं अधिकारी की है कि अपने कर्मचारी व सभासद को, छोटी सजा देकर सुधारें और अपने आप को सच्चा-अच्छा अधिकारी साबित करे। गलत करने वाले कर्मचारी या अधिकारी को सजा का प्रावधान हो, वह चाहे ड्यूटी पर है या रिटायर हो चुका है, लेकिन प्राविधान निश्चित हो। कर्मचारी अधिकारी को पगार और हर सुविधा काम के ऐवज में, उसने खुद निश्चित की है, नौकरी पर हो, तो पगार में कटौती से लेकर सस्पेंशन तक है। लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी गलती पकड़े जाने पर, पेंशन में कटौती भी है, कानून है, सजा तक है।
कर्मचारी या नेता का यह सोचना, कि रिटायरमेंट के बाद कुछ नहीं होगा, एकदम गलत है। रिटायरमेंट पर क्लीयरेंस सर्टीफिकेट होने के बाद भी, गलती खुलने पर, गलती की सजा निश्चित होती है, बल्कि क्लीयरेंस सार्टिफेकेट पर, जिस अधिकारी के हस्ताक्षर हैं, वह भी दोषी करार दिया जाता है, यह भी कानून है। उपभोक्ता और कर्मचारी का कम्प्रोमाइज भी, कर्मचारी को दोषमुक्त नहीं करता, क्योंकि कर्मचारी की गलती, हर विभाग, हर कर्मचारी व उसका पूरा विभाग, बल्कि पूरी बिरादरी की इज्जत पर दाग लगता है। इसलिये ऐसे कर्मचारी, अधिकारी सजा से बचने ही नहीं चाहिये इंसान गलती की सजा भुगत कर ही दोष मुक्त होता है और जिस पर अत्याचार हुआ है, उसके बच्चे, पूरा परिवार, पूरे समाज पर गलत असर पड़ता है, निश्चित ही, वह दया का पात्र है। मुआवजा लेने का हकदार है, उससे, उसका पूरा तो नहीं हो सकता, लेकिन पूरे समाज में जागरूकता आती है। सबको चोरी, भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी से लड़ने की प्ररेणा और हिम्मत मिलती है। उपभोक्ता पर अत्याचार न होता तो, उसके बच्चे अच्छे अधिकारी या अच्छे बिजनेसमैन बनकर पूरे, देश में समृद्धि लाने जैसे फायदेमंद होते।
नगरपालिका या महापालिका विभाग के कर्मचारी और अधिकारी समस्त विभाग और सारे कर्मचारी और अधिकारी भी ज्यादा दयनीय स्थिति में रहे हैं। यह नगरपालिका से महापालिका बनती है, इसलिये नगरपालिका के कर्मचारी सबसे ज्यादा सीधे और बेहद गरीबी में भी गुजारा करने वाले होते हैं। इसका मुख्य कारण था, सफाई कर्मचारी अधिकतर अनपढ़ और बड़ों की आज्ञा में रहने वाले होते हैं, जिन्हें एक जमादार जो स्वीपर के अधिकारी के रूप में रहता था। यह जमादार भी थोड़ा बहुत ही पढ़ा-लिखा था और सही काम लेता था, इसके अन्तर्गत में स्वीपर, नारी और पुरूष थे। जो हल्का काम, जैसे झाड़ू लगाना और नाली, नालांे की सफाई, झाडू़ और पानी जैसे हल्के काम, नारी के जिम्मे और भारी काम पुरूष के जिम्मे रखे गये। इनमें भी छोटी कूड़ा ढ़ोने वाली हाथ ठेली से लेकर ट्रैक्टर, ट्राली और सफाई में काम आने वाली सारी मशीनरी, परमानेंट कर्मचारी के अन्तर्गत में रहती थी। जो अधिकतर अब ठेके पर काम ले रहा होता है।
इसके अलावा, गलियांे की लगभग सारी मेन्टिनेंस, नाले-नालियांे की मेन्टिनेंस, हाउस व वाटर टैक्स आदि सब, पूरा स्टाफ देखता है जिसमंे अर्दली से लेकर अधिकारी तक होते है। पहले सब कर्मठ और बेहद सीधे होते थे और छः-छः माह पगार न मिलने पर भी काम करते थे और गुजारा करते थे। पहले-पहल झाड़ू वाले, सफाई वाले के जमादार की नियत खराब होनी शुरू हुई, वहीं टैक्स विभाग के अर्दली द्वारा, इंसपेक्टर और नक्शानवीस, इंजीनियर आदि मकान बनाने से पहले पहँुचना व सबसे पहले अर्दली ही मकान मालिक से जोड़-तोड़ करता है और सपोर्ट इंस्पेक्टर की होती है। टैक्स कम लगाना या नक्शे की कमी को पूरा करने के बहाने, नं0 दो का पैसा कमाना, वाटर टैक्स कम लगाना कहकर 200 से लेकर 2000/-रुपये तक रिश्वत मार देते हंै या जितना पैसा दोगे, उतना कम टैक्स और ज्यादा पैसा मिलने पर, मामूली टैक्स कहकर अच्छी रिश्वत ली जाती है।
जमादार, कम मेहनत की जगह ड्यूटी लगाने वालांे से रिश्वत, मशीनरी ठीक कराने के बहाने गलत बिल बनवाकर, उनके कमीशन से शुरू हुआ। मेले, त्यौहार पर सफाई के ठेके, जमीन (दुकानों की) की नीलामी के ठेके के पैसे, मेले में इस्तेमाल होने वाली रेहड़ी से रिक्शा तक से टैक्स की घपलेबाजी या धांधलेबाजी से व हर दुकान से टैक्स और रिश्वत का बाँधना, इनकी ठोस कमाई बनती चली गई। वाटर टैक्स, मीटर बदलना व लगाना और अनगिनत तरीकों से दो नंबर का पैसा कमाना बेहद, सफल साबित हुआ। जिनको छः-छः माह पगार नहीं मिलती थी, वहाँ एक कर्मचारी भी राजा, महाराजाओं जैसा रहना, खाना, बच्चे अच्छे स्कूल में ठीक-ठाक पढ़ना-लिखना जारी हुआ।
मतलब यह है कि शहर में, हर मकान, हर दुकान, हर रेहड़ी, रिक्शा, सड़क पर बैठने वाला, सब्जी वाला, जूते गाँठने वालों, हर प्राणी से डेली, मन्थली, सालाना इनकी इनकम बँधी हुई है। पहले चेयरमैन का हाथ कम रहा है और पूरा स्टाफ डर कर, काम करते रहे। जब से सभासद, चेयरमैन के चुनाव में, मोटा पैसा खर्च होने लगा। तब से, सारे परमानेंट अधिकारी डी. एम. और कमिशनर से सभासद तक अनियमित हुए।
आज के समय में घंटाघर जैसी, स्टेशन जैसी जगह पर कोठी, होटल का हाउस टैक्स 100-200/-मिल सकता है और छोटी टूटी-फूटी जगह का हजारों रूपये सालाना टैक्स मिल सकता है। उपभोक्ता हाउस टैक्स कमाकर देता है और होटल का टैक्स कमाने के लिये होता है। एक गरीब परिवार का टैक्स हजारों रूपये होता हैं, एक दो कमरा, लैट्रीन, बाथरूम तक अधूरे हों या टूटे-फूटे हों या तो रिश्वत दो, या नाजायज टैक्स दो, हर साल भरो। इनकी पूरी यूनिटी, उपभोक्ता से पैसे कैसे निकाला जाये, टैक्स कैसे लिया जाये, और कैसे पचाया जाये, सेंटर से आने वाला पैसे तक को कैसे पचाया जाय, केवल इसमें निश्चित मेहनत करतेे हैं।
सरकारी कालोनी बनाई गई, जहाँ, पूरा सरकारी स्टाफ रखा गया, बिजली वाला तक, यहाँ तक कि हाउसिंग इंस्पेक्टर तक रखा गया। लेबर कालोनी जैसे मकानों के लिये, हर माह सबकी मिलाकर मोटी पगार बन जाती है। आज इनकी गद्दारी से, हर मकान कई-कई लाख का हो गया है, पार्क व ब्लाक के चारांे तरफ की खुली जगह खत्म, मकान दो से तीन मंजिल के हो गये है। प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र और खेल का मैदान, आज अदालत बनाकर खत्म सी कर दी गई है। शहर की साफ-सुथरी जगह आज, हर माह मोटी पगार लेने वालों के सामने बिना नक्शे, नाजायज कन्स्ट्रक्शन, हाउसिंग इंस्पेक्टर की ओवर इनकम बनकर, हर कानून तोड़ रही है। मकान कई-कई लाख के बिक रहे हैं और सरकारी प्राणी व नेता रह रहे हंै, देख रहे हैं, भुगत रहे हैं। हाउसिंग इंस्पेक्टर को पैसा दो और हर नाजायज कंस्ट्रक्शन करो।
हर शहर से हाउस टैक्स, वाटर टैक्स (जायज टैक्स) से हर साल निश्चित इतना पैसा इकट्ठा होता है कि शहर की सारी सड़के चाँदी की बन सकती हैं। कुछ सालों में नालें, नालियां बेहद मजबूत साफ सुथरी बन सकती हैं और सरकार के पास, इतना पैसा हो सकता है कि जिस प्रकार साइकिल टैक्स, टीवी टैक्स खत्म हुआ, हाउस टैक्स, वाटर टैक्स खत्म हो जाये गद्दारी की भी हद पार कर दी, एक तो नाजायज टैक्स, जो उपभोक्ता देे नहीं पाता, फिर नगरपालिका टैक्स ठीक करना तो दूर, कोई कार्यवाही करना भी नहीं चाहता और या टैक्स किसी भी कारणवश मोटी रकम हो जाती है, फिर तहसीलदार के पास उगाई के लिये पहँुचाई जाती है।
नगरपालिका में लगे बड़े बोर्ड पर मकान मालिक का नाम उछाला जाता है। उसका नाम उछाला जाता है, जिसकी कमाई से पूरा पालिका विभाग, सभासद, चेयरमैन तो पल ही रहे थे, शहर की जनता को भी फायदा था। वैसे यह गैर सरकारी प्राणी है और पूरा देश, हर नेता, इसके कारण पल रहे हैं, चाहे पलने में, करोड़वाँ हिस्सा हो और निश्चित ही, इस पर इतना टैक्स होने के लिये दोषी, कम से कम नगरपालिका के सारे कर्मचारी, अधिकरी डी. एम. कमिशनर और सभासद व चेयरमैन हंै और कठोर सजा के अधिकारी हैं। चाहें ट्रांसफर पर हो या रिटायरमेन्ट हो गया हो। नगरपालिका में कोई उपभोक्ता ऐसा है ही नहीं, जिसने शिकायत न की हो। लेकिन इनको रिश्वत दो या भुगतो, पक्का है। विडम्बना यह भी है कि गैर सरकारी से पूरा शहर भरा पड़ा है, एक पीसता रहता है और सब देखते रहते हैं। इनके लिये रखे गये कर्मचारी, इन्हंे पीसते रहते है और इन्हीं के द्वारा बनाये नेता पीसने में, सरकारी प्राणी की पूरी सहायता करते रहेे हैं। जब कि कानून है, मानव धर्म है, नियम है।
हर नगरपालिका कर्मचारी, अधिकारी खासतौर से इसलिये रखे गये कि गैर सरकारी से मकान, दुकान, पानी का टैक्स लंे, उनकी औकात और स्थिति देखकर, उनकी हर परेशानी में उनका टैक्स, कम करके, माफ करके उनका साथ दें, पूरा सहयोग करें। नियम या कानून है, टैक्स लेने का मतलब, नाले, नाली की सफाई, वक्त पर पानी, हर समय बिजली, हर सरकारी विभाग जहाँ उपभोक्ता जाता है, वहाँ काम की गुणवत्ता, अस्पताल, अदालत तक अविलम्ब कर्मशील होने ही चाहिये जिनको नगरपालिका का ध्यान रखना है, सुधार करना है, सुधार न होने पर उपर रिपोर्ट करनी है आदि।
सभासद, हर सेक्टर का अलग है, जिसका पहला काम ही यही है। उससे उपर चेयरमैन है, उससे उपर नेता और सी. एम. व राष्ट्रपति तक है। जिनकी जिम्मेदारी, देखना, सुधारना और कर्मचारी अधिकारी से काम लेना है। लेकिन अर्दली और इंस्पेक्टर मकान का कंसट्रक्शन हो, तो फौरन पहुँचते हंै और टूट-फूट नुकसान हो, तो पता ही नहीं, बिजली नहीं, पानी नहीं, सड़के नहीं, नाले, नाली ठीक नहीं, जिसके कारण इंसान, हर अधिकारी सजा भुगत रहा हैं, फिर टैक्स कैसा?
बीमारी के कारण अस्पताल, स्टाफ परेशान, लेकिन मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) हर तरीके से पढ़ा-लिखा होने के बाद, नगरपालिका को नोटिस नहीं भेज सकता। ऐसा करते ही 30 या 35 प्रतिशत मरीज की बीमारी खत्म निश्चित है। डाॅक्टर के काम से सरकार का मोटा धन बचता है। यह बीमारी का इलाज तो करते हैं, लेकिन बीमारी क्यों, कैसे है जानते हुए बीमारी को जड़ से खत्म नहीं करते। नगरपालिका, सरकारी मशीनरी या चेन की पहली कड़ी है और खास कड़ी है। यह ही कमजोर या गलत है, तो लास्ट तक सुधार हो ही नहीं सकता और अनियमितता, हर जगह फैलेगी, गारण्टी है। सबूत है, नगरपालिका का पिछला रिकार्ड जल्द से खत्म नहीं होता, दूसरा निश्चित गलत टैक्स पैसे जमा की गलत रसीद, हर नगरपालिका में मौजूद है। गहरी तहकीकात की जरूरत है और जनता सबूत है, चाहे जितने तड़पते गवाह मिल जायेेंगे।
पूरा तहसील विभाग तक इनसे परेशान है, आर. सी. काटना तहसील का काम है। नाजायज काम है, तहसीलदार अपनी जिम्मैदारी समझकर कर अच्छा अधिकारी बनकर पूछ लें, कि जो उपभोक्ता 500/-साल नहीं दे पाया, वह 20 हजार, 50 हजार रूपये कैसे देगा? उन पर अत्याचार नहीं है? कानून के मुताबिक, आपने एक हजार रूपये होते ही कार्यवाही क्यों नहीं की? पहले आप 500/-ही वसूल करते, तो वह ही सरकार के पास लाखों रूपये हो गये होते। सजा के हकदार आप हैं और अदालत के सामने तो, निश्चित ही नगरपालिका दोषी साबित होती हंै। इनकी कमी से उपभोक्ता ही नहीं, तहसील और अदालत के काम व सिरदर्द बढ़ते हैं। यह अपने आप में गलत है। शहर में बड़ी तादाद में जिम्मेदार हर अधिकारी हैं, लेकिन उनका ध्यान किसी भी कारणवश, इस जिम्मेदार विभाग और उसके सही कन्ट्रोल पर है ही नहीं। यही नहीं हर नया पुराना नेता है, नेता भ्रष्ट है। लेकिन यही, उनकी कमाई का बड़ा कमाई स्थल है, वह ध्यान क्यों रखंेगे या सुधार क्यों करंेगे? हर किस्म की हर अनियितता पैदा करने का काम, यह छोटा सा गरीब सा नगरपालिका और उसका स्टाफ है और निश्चित ही, अनगिनत सबूत दिये जा सकते है। डीपो से अस्पताल तक, सब्जी मण्डी से अदालत तक सफाई नहीं, हर अनियमितता फैलाने का काम, नगरपालिका का काम है। नगरपालिका की अनियमितता सैकड़ांे पेज में वर्णित की जा सकती है, वह भी सबूत के साथ। लेकिन हमारा ध्येय सुधार का है, जो या तो अधिकारी और नेता करेंगे या फिर जनता खुद करेगी। अब शिकायत इन्टरनेट पर करना बेहद आसान है, सुधार करना ही पड़ेगा।
सरकार हर कोशिश कर रही है, सूचना विभाग तक बनाया है, लेकिन इन्हीं की ऐक्युरेसी की कमी के कारण, हर युक्ति फेल नजर आती है। लेकिन सुधार तो करना है, जनता, सरकारी प्राणी और नेता को जागरूक करना है, सबको कर्मठ बनाकर, सबकी इज्जत बचानी है। इसके लिये कुछ नियम बनाने है, लागू करने है, अमल में लाने हैं और पूरा देश, अपने आप हर अनियमितता से खुद बच जायेगा। संसार के सब प्राणी समझ गये होंगे। नगरपालिका का सुधार, पूरे देश की हर अनियमितता खत्म करना हैं और आप जरुर करेंगे।

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. गाँव और शहर की हर अनियमितता की जिम्मेदारी, सबसे पहले वहाँ के प्रधान, सेक्रेटरी, सभासद, चेयरमैन नगरपालिका के सारे कर्मचारी व अधिकारी की पहले है। इसके बाद, हर सरकारी प्राणी, सारे नेता, डी. एम. और कमिश्नर तक कि जिम्मेदारी है, ड्यूटी है। इसके बाद जनता की ड्यूटी है, अनियमितता की शिकायत करंे और दोषी व्यक्ति, उसका मातहत व दोषी प्राणी के साथी और अधिकारी पर अविलम्ब सजा के रूप में जुर्माना राजकोष में जमा कराये। यह नियम सब समझें अमल में लाये और शिकायत करंे।
02. नगरपालिका आॅफिस में कम से कम, दो जगह शिकायत पेटिका, नगरपालिका द्वारा निश्चित रूप से लगाई जाये शिकायत रजिस्टर भी रखे जाये, इसकी चाबी डी. एम के पास रहे, और हर माह शिकायत पेटिका का ताला, किसी सेक्टर के, तीन गैर सरकारी प्राणी के सामने खोला जाये और हर माह सेक्टर बदल कर, गैर सरकारी प्राणी भी बदले जाये, उस पर शिकायतकत्र्ता के हस्ताक्षर होना अनिवार्य माना जाये।
03. शिकायत पेटी का ताला खोलने वालों के नाम, नगरपालिका बोर्ड पर, हर माह लिखे जाये और शिकायत पत्रों की गिनती, हर माह बोर्ड पर जिम्मेदारी से अंकित हो, साथ ही ऐसा न होने पर नगरपालिका के उस कर्मचारी को, जिसे बोर्ड की जिम्मेदारी दी गई है, उसे दोषी करार देकर, उससे नकद जुर्माना राजकोष में जमा कराया जाये, साथ ही नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी को दोषी करार दिया जाये।
04. हर गैर सरकारी प्राणी, सरकारी प्राणी, नेता को चाहिये कि हर साल हाउस टैक्स जमा कराये, नगरपालिका की ड्यूटी है, कि टैक्स जमा करे, लेकिन अगर शिकायत है, तो तुरन्त निवारण करे। जनता का हक है कि शिकायत, निश्चित समय में निवारण न होने पर, वह अदालत तक पहंँुचे और वह सारा खर्च, नगरपालिका अधिकारी से पहले लें। शिकायत करने वाले को वरीयता दी जाये और नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी को चाहिये कि वह उपभोक्ता की शिकायत पर विशेष ध्यान दें और शिकायत निवारण करे। उसकी अदालत तक जाने का, एफ. आई. आर. दर्ज कराने का और उसकी दिहाड़ी, जो उसने शिकायत करने में, अपना काम छोड़कर नुकसान किया है, वह उसी दिन अपने आॅफिस से दें। एक छोटे से मजदूर की दिहाड़ी कम से कम सरकारी नियमानुसार अविलम्ब दें, जो आॅफिस के खर्च रजिस्टर में दर्ज करें। जिससे उपभोक्ता की, शिकायत गलत पाये जाने पर, उससे वसूल की जा सके, अदालत में दिखाई जा सके। साफ शब्दों में उपभोक्ता की शिकायत का निवारण करें या उपभोक्ता को अदालत में जाने के लिये खर्चा दें। जिससे दोषी कर्मचारी और विभाग को, दोषी आसानी से साबित किया जा सके और कर्मठ कर्मचारी और अधिकारी और नेता की सिर दर्द बचे, इज्जत बढ़े और उपभोक्ता व सारे देश का भला हो।
05. कोई भी सरकारी प्राणी, अपने मातहत कर्मचारी या साथी कर्मचारी और अधिकारी के साथ के बिना, अनियमितता कर ही नहीं सकता। यह सूत्र हर प्राणी जान ले और शिकायत करने वाला शिकायत पत्र पर, तीन प्राणियांे के वोटर/आधार नम्बर के साथ हस्ताक्षर करा कर, उस विभाग अधिकारी को पोस्ट करंे या पहँुचायें। उसकी रिसिविंग अपने पास रखे। 30 दिन बाद रिमाइण्डर में उस अधिकारी के साथ-साथ, उससे बड़े अधिकारी और नेता तक जरूर पहुँचायंे और शिकायत निवारण न होने पर, अपनी दो दिन की मेहनत और पहले दिन अदालत में जाने के खर्चे की माँग करें। शिकायत पत्र में अपने सेक्टर के सभासद का नाम भी दर्ज करें। जिससे सफाई-सुधार जल्द से जल्द हो और हर अनियमितता दूर हो।
06. मजलूम का मजबूर का साथ देना सहायता करना सबसे बड़ा धर्म है और सारे सरकारी प्राणी और सारे नेता की पहली और आखिरी ड्यूटी है, जानकर हर प्राणी शिकायत करने वाले का सहयोग और साथ दें और दोषी प्राणी से, अपनी दिहाड़ी वसूल करें। खासतौर से गैर सरकारी प्राणी, क्योंकि हर सरकारी प्राणी और नेता पहले से पगार ले ही रहे हैं। गैर सरकारी को चाहिये कि वह अपना नुकसान न करके, पूरे देश का नुकसान बचाये।
07. नगरपालिका को चाहिये और जनता को चाहिये कि हर गली की रिपेयर मेन्टिनेन्स का बोर्ड, हर गली में लगा हो और उस पर रिपेयर मैन्टिनेन्स की तारीख और गारण्टी समय की अवधि लिखी हो, जिससे गलत काम का मुआवजा वसूल किया जा सके। एक गैर सरकारी, जिसकी औकात भी नहीं है, वह कुछ बनाता है, तो बाबा बनाये, पोता बरते की नीति पर मजबूत बनाता है, लेकिन हर सरकारी प्राणी पढ़ा-लिखा, सक्षम प्राणी, सभासद, चेयरमैन और जनता के सामने, आज बनाया और अगले सप्ताह में टूटने वाला काम करके या कराकर, देश के हर सरकारी प्राणी, गैर सरकारी प्राणी और नेता व पूरे देश की इज्जत से खेलते है। भ्रष्टाचार फैलाते है, गद्दारी करते है, इन्हें रोका जाये और इनसे नगद जुर्माना राजकोष में जमा कराया जाये।
08. किसी भी दोषी कर्मचारी या अधिकारी को सस्पेण्ड न किया जाये, क्योंकि इसकी जगह आने वाला कर्मचारी या अधिकारी गद्दारी में, इसका भी बाप हो सकता है। दूसरांे केे पेट पर लात मारना भी पाप है। बस इनके मातहत, साथी और अधिकारी को थोड़ा जुर्माना और दोषी को पगार के मुताबिक मोटा जुर्माना, अविलम्ब राजकोष में जमा कराया जाये, निश्चित समय में दूसरी गलती पर, पहले जुर्माने का 5 गुना और तीसरी गलती पर 10 गुना जुर्माना राजकोष में अविलम्ब जमा कराया जााये। यह जुर्माना इसकी पगार फण्ड या परिवार और नोमिनी से वसूल किया जाये, क्योंकि परिवार जो गद्दारी का पैसा खा रहे थे, सजा के भी हकदार है, जिससे हर परिवार वाले अपने नौकरी करने वालों को गद्दारी न करने की सलाह दें, गलती न करने के लिये प्रेरित करे।
09. नगरपालिका के पहले अर्दली इंस्पेक्टर और स्टाफ ने, उपभोक्ता पर अत्याचार किया, रिश्वत ली जिसकी सजा लम्बे समय तक उपभोक्ता और पूरा आज का स्टाफ भुगत रहा है। ऐसे कर्मचारी अधिकारी भयंकर दोषी हंै और उनको पालने वाला स्टाफ दोषी है, इसलिये उनकी पेंशन, फेमली पेंशन और परिवार व नोमिनी से जुर्माना वसूल करके उपभोक्ता का हाउस टैक्स पूरा किया जाये और कानून की गरिमा को बरकार रखा जाये, मजलूम की सहायता हो, गद्दार को सजा मिले और सबको सही शिक्षा मिले, देश का सुधार हो।
10. हर प्राणी को चाहिये अनियमितता की सही शिकायत करे, हर प्राणी आपके साथ है, अगर आप कुछ नहीं कर सकते, तो शिकायत डाक से ही भेजिये, यह भी नहीं कर सकते तो भी, हम आपके साथ है रुपये 5/-के डाक टिकट, रुपये 5/-या लिफाफे या डाक खर्चे के साथ शिकायत, हम तक भेजें, बस शिकायत पत्र पर तीन प्राणी के वोटर/आधार नम्बर के साथ हस्ताक्षर हों। आपको निश्चित समय में सूचित किया जायेगा, कार्यवाही होगी। आपके चाहने पर रिपोर्ट गुप्त रखी जायेगी, आप साथ दे, सहयोग दे, सुधार निश्चित होगा। इन्टरनेट पर शिकायत-सुधार बेहद आसान है, सब बड़ों की प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति तक की वेबसाइट खुली रहती है, आप कोशिश तो करें।



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