Thursday, April 16, 2020

दूरभाष और दूरभाष विभाग

दूरभाष और दूरभाष विभाग

सृष्टि बनते ही 84 लाख योनि के जीव की उत्पत्ति हुई। जिनमें कुछ तो मिक्स नस्ल से निश्चित बनीं और कुदरत ने या भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड ने हर जीव में अपनी बात कहने, सुनने और समझने के लिये आवाज और कान दियें। वैज्ञानिकों ने आवाज पर बेहद लम्बे समय से, बेहद ज्यादा मेहनत से, जान पायंे कि आवाज तरंगों में वायु के माध्यम से दूर तक पहुँचती है। तरंग धैर्य सब जीवों में बोलने सुनने में अलग-अलग है। मनुष्य और जानवर में थोड़ा अंतर है। छोटे जीव, बेहद छोटे जीव से बेहद अलग है, अंतर है। शोधकर्ता और आगे बढ़े और आवाज को चुम्बकीय प्रभाव, विद्युत, गुरूत्वाकर्षण, रेडियो-वेव के द्वारा बेहद ज्यादा दूरी तक पहुँचाने और पकड़ने में कामयाब हुए। आज हम विज्ञान के सौजन्य से रेडियो, दूरदर्शन, मोबाइल जैसी उपलब्धियों से ओतप्रोत हैं लेकिन पहले से ही, आज भी और जब तक सृष्टि रहेगी तब तक प्रकृति की देन हमारे साथ हैं, जिसे दिमागी ज्ञान या छठीं इन्द्रिय कहते हैं।
सबको अपनी-अपनी बात कहने, सुनने और समझने की शक्ति दी और बेतार यंत्र की तरह इस्तेमाल होने वाली बेहद शक्तिशाली, छठीं इन्द्रिय दी, देसी भाषा में, ज्ञान की भाषा में, तीसरी आँख कही गयी, हजारों मील दूर बैठा जीव इंसान जैसा, इस इन्द्री के द्वारा देखता, समझता और बात तक सोच लेता है, सबूत के रूप में एक माँ देहली में रह रही है, उसका लड़का मुम्बई में रहता है, माँ के अंग फड़कते हैं, स्तन पर खुजली होती है, तो वह कह देती है, मेरा बेटा किसी परेशानी में है। यही नहीं बेटे को भी आभास हो जाता है कि माँ याद कर रही है या बहन याद कर रही है, प्रेमी-प्रेमिका तो खासतौर कोई बचा ही नहीं, जो इस छठीं इन्द्रिय का इस्तेमाल करके एक-दूसरे की भावनाओं से दूर रहते हुए भी वाकिफ न हों, गुरू-चेला, भगवान-भक्त, दोस्त-दुश्मन के करोड़ांे किस्से कहानियाँ हंै, जिनमें कम से कम 90 प्रतिशत सच्चाई है।
एक कुत्ता या बिल्ली जैसा जीव रात को रो कर, भौंक कर अपने मालिक के भविष्य, दोस्त, दुश्मन, अच्छे, बुरे का सिग्नल दे देता है, जो अधिकतर सच्चे साबित होते हैं, इन पर गहनता से ध्यान दिया जाये, तो करिश्में जैसे सबूत मिलते हैं। यह पैथी (विधि) आदिकाल से प्रचलित है, आपदा में दुश्मन को पूरी, तरह अपने वश में करके अपनी जान की सफलता से सुरक्षा करते थे, यह ज्ञान और प्रकृति की पैथी (विधि) हैं, जो हमेशा थी और हमेशा रहेगी। यह हर जीव में है। इसके अलावा बढ़ोत्तरी में लीन मनुष्य के वैज्ञानिक दिमाग ने शुरू में कुछ दूरी के लिये, धागे के जरिये अपनी आवाज को दूर खड़े मनुष्य के कानों तक पहुँचाई। शोध करते हुए, यह टेलीफोन के रूप में आयी और आज मोबाइल, रेडियो, दूरदर्शन तक पहुँची।
शुरू में डाक प्रथा चली और इसके चलते हुए टेलीफोन या दूरभाष के आते ही दोनांे को मिला कर पी. एन. टी. विभाग बना दिया गया। आज दूरभाष ने अविश्वसनीय प्रगति करके मोबाईल और दूरदर्शन, इन्टरनेट जैसी उपलब्धि दी, पी. एन. टी. का टेलीफोन विभाग बेतार माइक और स्पीकर द्वारा देश-विदेश तक बातचीत निश्चित करते रहे हैं, जो ज्यादा मेहनत, कम देखभाल, बेहद मोटी इनकम व कम खर्चे का प्रोजेक्ट रहा है, निश्चित ही सरकार के लिये दूरभाष बेहद मोटी इनकम का बेहतरीन साधन या उपक्रम रहा है, हर बड़ी पार्टी इसकी उपभोक्ता रही है और शुरू में डायरेक्ट डायलिंग न होने के कारण, हर दिन मोटी इनकम थी और खर्चे बेहद कम थे, लाइटनिंग काल के चार्ज काफी ज्यादा थे, जिससे इतनी इनकम थी कि कोई सोच भी नहीं सकता।
लम्बे समय तक ईमानदारी, वफादारी खून में होने से कर्मचारी और अधिकारी सरकार को फायदा देते रहे, वैज्ञानिक आगे रिसर्च में लगे रहे और बदलाव आया, पहला बदलाव देश में एस. टी. डी. सुविधा हुई, कहीं का भी कोड डायल करके नम्बर डायल करने पर डायरेक्ट बात होने लगी और उपभोक्ता का खर्च कुछ कम हुआ, आज तो ट्रंक डायल से देश-विदेश में कहीं भी फौरन बात करने की सुविधा है, लेकिन थोड़ी खर्चीला निश्चित है। इस समय तो मोबाइल कम्पनियों ने धमाका मचा रखा है, रात का एस. टी. डी. काल तक फ्री है, इनकमिंग टोटल फ्री है। देश-विदेश में कुछ रुपये में बहुत सारी बात हो जाती है और टेलीफोन विभाग बेहद घाटे में लगातार पहुँच रहा है और बेहद शोचनीय स्थिति में है।
दूरभाष या टेलीफोन विभाग लगभग 35 साल पहले से कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा गद्दारी के कारण, सरकार को 10 और 20 प्रतिशत ही फायदा पहुँचता रहा, बाकी 80 प्रतिशत खासतौर से टेलीफोन आपरेटर, मैकनिक विभाग और उच्च अधिकारी जैसे जे. ई., एस. डी. ओ. निश्चित पचाते रहे हैं। लेबर टाइप से लेकर उच्च अधिकारीगण तक झूठे मेडिकल के मोटे बिल, मैकेनिकल स्टाफ के स्टूमेन्ट में, मोटे बिल, मोटा खर्च दिखाते रहे, स्टोर बाबू खम्भे तार में, मोटा खर्च दिखाते रहे, एक-एक टेलीफोन आपरेटर सस्ते समय में 1500 और 2000/-दिन की इनकम जेब में डालकर ले जाते थे, जो एक माह की पगार से भी ज्यादा था।
टेलीफोन बिलों में बेहद हेराफेरी रही है, उपभोक्ता बेहद परेशान रहते थे, टेलीफोन खराब होने पर सुनवाई बेहद कम थी और मैकेनिक 50, 100/-आसानी से उपभोक्ता से ले लेता था, काम न करके परेशान ज्यादा करते थे, लाइनमेन की अच्छी खासी ओवर इनकम थी, बिना रिश्वत दिये उपभोक्ता के टेलीफोन सही रहते ही नहीं थे, रिश्वत के बाद भी रात को टेलीफोन बैच लगाकर बंद कर दिये जाते थे और रिश्वत लेकर ही कुछ सुधार हो सकता था, वह भी कितना समय ठीक रहेगा कोई बता भी नहीं सकता था, पुलिस स्टेशन, एस. डी. ओ., सरकारी टेलीफोन को छोड़कर खासतौर से प्राईवेट टेलीफोन ठीक रहेंगे, गारण्टी बिल्कुल नहीं थी, हर कर्मचारी का खाने का स्टाइल अलग था, हेराफेरी जरूर होती थी।
कुछ अधिकारी जो रिश्वत नहीं लेते थे, वह महँगा सामान रिश्वत में लेते थे, हर कर्मचारी और अधिकारी भारत के टेलीफोन विभाग से अपने-अपने तरीके से खा रहे थे। 10/-रुपये खाते थे तो 100/-रुपये का सरकार का व विभाग का नुकसान करते थे और यह गद्दारी गैर सरकारी सक्षम इंसानों की नजरोें में थी, इसी का फल यह है, कि आज प्राइवेट कम्पनी ने मोबाइल जैसी चीज अपने हाथ में लेकर, टेलीफोन को इतना सस्ता बना दिया है, कि सबसे गरीब इंसान के पास जैसे भिखारी, जूता गाँठने वाले, हरिजन, रिक्शे वाले भी मोबाइल रखते हैं।
छोटे बच्चे, लड़कें-लड़कियाँ, बेरोजगार, गाँव के लगभग सब प्राणी मोबाइल जेब में रखते हैं। भारत सरकार के टेलीफोन विभाग के टेलीफोन एक्सचेंज में टेलीफोन का चलन होते ही, बिल के लिए मीटर रूम बना, जो हर टेलीफोन की रीडिंग बताता था, इसमें जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारी मनमाने तरीके से बिल बनाते रहे, जिससे हर उपभोक्ता को रिश्वत देने के बाद भी मोटा बिल ही भरना पड़ता रहा और आज भी यदि कुछ लोगों ने सरकारी टेलीफोन ले रखा है, तो सब कुछ कटवा कर केवल इनकमिंग रखने के बाद भी 115/-रुपये प्रतिमाह देने ही पड़ते हैं, हाँ फाल्ट लगभग नहीं के बराबर हुए हैं। लेकिन जहाँ कहीं तार से टेलीफोन हंै, जो इक्का-दुक्का है, वह भी कटने के कगार पर हंै।
वहीं प्राइवेट कम्पनी से केवल 10/-रुपये का रिचार्ज डलवाकर, रात-रात भर, पूरे माह बात करते और सुनते हैं। निश्चित ही मोबाइल का फायदा आज लोग बेहद उठा रहे हैं, हर गैर सरकारी निश्ंिचत इसलिये है, कि हर माह मोटे बिल की चिन्ता नहीं हंै, बिल जमा करने जैसी सिरदर्दी नहीं है, खासतौर से चोरी, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार से बचा है।
आज भारत का टेलीफोन विभाग, रिश्वत खाते रहने के कारण, इतना परेशानी से गुजर रहा है, कि सरकार के केन्द्र का उपक्रम होते हुए भी खस्ता हाल है, इस समय भी इनके कर्मचारी सुबह 11 बजे ड्यूटी पर आते हैं, दोपहर डे़ढ़ बजे घर आ जाते हंै और मोटी पगार ले रहे हैं, नंबर दो का पैसा, तो है नहीं लेकिन मोटी पगार होने से और काम बेहद कम होेने से, मौज ही मौज उन्हंे नजर आती है और विभाग को, कोई सही रास्ता नजर नहीं आ रहा है।
यूनियन के नेताओं के कारण अधिकारी शुरू से दबे रहे और आज भी केवल पगार ले रहे हैं। नेतागण और उनके चमचे पहले भी विभाग में कुछ करते तो थे ही नहीं, साथ ही कर्मठ लोगों को भी नकारा बनाते रहे और आज भी करते कुछ नहीं, केवल समय बिताते हैं और पगार लेते हंै। अच्छे अधिकारी भी उनकी गद्दारी पर कुछ कर ही नहीं पाते या जान बूझकर नहीं करते या करना चाहते ही नहीं, मतलब अधिकारी कहलाने के लायक ही नहीं हैं।
आज टाटा, एयरटेल, रिलायन्स आदि ने धूम मचा रखी है, लगभग हर इंसान की जेब में मोबाइल है या हर प्राणी मोबाइल इस्तेमाल करता है, कर रहा है, अब तो बातचीत करने वालों की फोटो, एफ. एम., वीडियो गेम, गाने, पिक्चर, रिकार्डिंग और अनगिनत खूबी इस छोटे से मोबाइल में और बेहद सस्ती दरों पर हर इंसान उपयोग कर सकता है, कर रहा है।
यह सजा है, गैर सरकारी को पीसने की, उसकी इज्जत न करने की, उसके पैसे से परिवार पालते थे और उसी पर एहसान करने की। आने वाले समय में यह सजा बिजली विभाग की भी हो सकती है क्योंकि हर गैर सरकारी, सक्षम इंसान तक बिजली विभाग से परेशान है, लेकिन कुछ न होने पर भी विज्ञान के जमाने में क्या हो जाये, कहा नहीं जा सकता? एक मोबाइल 1. 5 वोल्ट में 24 घंटे बात कराता है। पिक्चर, गाने, वीडियो गेम मैंच दिखाता है और बिजली विभाग, सौर उर्जा, जल, हवा होते हुए घरों में रोशनी परमानेंट नहीं रख पा रहा है, जबकि देश में, गाँव में भी महान दिमागदार बच्चे तक है, जिन्हें प्रोत्साहन न मिलने पर वह खो जाते हैं, उनकी रिसर्च बेकार हो जाती है, हमारे सारे नेतागण और सरकारी प्राणी किसी भी विभाग से फायदा उठा रहे हैं और उससे किस-किस को कितना नुकसान है, उन्हंे कोई मतलब ही नहीं बस देख रहे हैं, वह पूरा विभाग कहीं भी जाये, गैर सरकारी या तो अत्याचार सहता रहता है या नाजायज तरीके से केवल अपने लायक बना लेता है और बांकी अपने भाई, छोटे बड़े चाहे जैसे रहें ध्यान भी नहीं देता या आँखें मूंद लेता है, जबकि बेहद आसानी से सब ठीक हो सकता है, हर विभाग का विजिलेंस या खुफिया विभाग या सी. आई. डी. या सी. बी. आई. की कर्मठता से, हर कर्मचारी अधिकारी कर्मठ बना रह सकता है, दूसरे विभाग ही ध्यान रखें तो भी, हर विभाग कर्मठ बनता चला जाये। अगर नेता भी थोड़े से कर्मठ हों, तो हर विभाग सुधरने के लिये मजबूर हो जाये।
दूसरी तरफ जनता या गैर सरकारी प्राणी, अपने बच्चों की भी यदि चिन्ता करता, तो गलती पर अविलम्ब शिकायत करता और हर प्राणी का फायदा होता, पूरे देश का ही नहीं, उन सरकारी प्राणी जो गलत हैं उनका भविष्य भी सुधरता, हर इंसान को समझदार और खुद्दार होना चाहिए, चाहे वह कोई हो, अपने बड़ों का और बच्चों का ध्यान होना चाहिए, यह देखा गया है कि जो अपने बड़ों का और बच्चों का ध्यान रखता है और बुरे से बचाता है या जो बड़ों की आज्ञा में नहीं, उनसे बचता है, उसके बच्चे अपने आप ठीक होते हैं, लेकिन बड़ांे की कदर और बच्चों का ध्यान करके जीवन चलाया जाये, तो सबका भविष्य सुधरता है और अच्छाई बढ़ती है।
हर गैर सरकारी को सोचना चाहिये कि यह सब नौकर हैं, पैसे के गुलाम हैं, आपका बच्चा भी नौकर या नेता बनेगा, तो वह भी ऐसा ही हो जायेगा, इसलिये गलती पर शिकायत करना या सुझाव देना सबसे बड़ा धर्म बन जाता है, कभी न कभी, तो सुनवायी होगी और हर नौकर व हर गैर सरकारी को अमल करना ही चाहिये। गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन चाहे वह प्यारी पत्नी ही क्यों न हो। आने वाले समय में हर परेशानी इतनी सी बात के अमल से जरूर खत्म होगी।
हर धर्म सिखाता है, हर बड़ा कहता है, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू और गाॅड कहता है उसका नियम भी यही है बस सही ज्ञान पैदा करना है, कभी-कभी सक्षम गलत प्राणी आपके सामने हो, तो प्रार्थना करके उसकी गलती बतायी जा सकती है या अप्रत्यक्ष रूप से उससे दूर रहकर, उसको बड़ी सजा का जुगाड़ किया जा सकता है, गलती करने वाला, किसी का कुछ नहीं होता, यह सच्चाई है। हर छोटा अगर अकेला है तो गलती कर ही नहीं सकता। खासतौर से पुरूष वर्ग या गलती करवाने वाला, कोई उसके साथ छोटा या बड़ा जरूर होगा, हर एक को किसी बड़े के आर्डर में रहना ही पडेगा, वह भी जिन्दा, जो सामने है। खासतौर से नेता, नौैकर, नारी, बच्चा और पशुु, बड़े के आर्डर में रहकर ही, उसका जीवन सफल होगा। इसी के कारण बड़ों ने इसके सिर पगडी नहीं बाँधी और न पगड़ी बाँधने का नियम बनाया। हाँ, नौकर वर्ग की पगड़ी नौकर के सिर, नारी गु्रप की नारी के सिर, बच्चे वर्ग की बच्चे के सिर पर पगड़ी बाँधने का विधान है। जैसे कर्मचारी के अधिकारी, नारी में बूढ़ी नारी, बच्चों में मानिटर बनाये जाते हैं, ऐसे ही जाति बिरादरी में नियम है। सातों बिरादरी या जाति में ब्राह्मण, काजी, गुरूद्वारे का ग्रंथी और गिरजाघर मंे पादरी के सिर पगड़ी बाँधी जाती है।
आप कितने सफझदार हैं, आपका छोटा सा बच्चा तक समझदार है, आप उसे साईकिल देते हैं। वह चलाता है, तो छोटे गड्ढांे से बचता है, ईंट, पत्थर से बचता है, दूसरे वाहन से बचता है, वह जानता है कि गलती हुई, तो सजा बन जायेेगी, ब्रेक और घंटी का सही प्रयोग करता है। आपके पास वाहन है, छोटे से सफर में, हर बात का ध्यान रखते हैं, फ्यूल तक का ध्यान रखते हैं, वाहन की सफाई मेंटिनेंस का ध्यान रखते हैं, चाहे उधार लें, जानते हैं कि छोटी सी गलती से जिंन्दगी तक जा सकती है, सबकी कठोर सजा बन सकती है, और जीवन जैसे सफर में, घर-संसार जैसे मैदान में, जिससे सारी सृष्टि चलती है, बाप का, माँं का, बच्चे का, पत्नी तक का ध्यान नहीं रखते, वाहन जैसी सवारी की, एक सेकेण्ड की चूक, पूरी जिन्दगी की, आपकी व सबकी कठोर सजा बन सकती है, जानते थे, लेकिन जिन्दगी के सफर में आप एक सेकेण्ड भी अलर्ट नहीं रहें, किसी की, बड़ी से बड़ी गलती को जान कर नकार दिया, अब आप और आपका परिवार ही नहीं, पूरा समाज भुगत रहा है।
नौकरी पर या बिजनेस में आप अपने साथियों पर, मातहत व अधिकारी पर सालों-साल ध्यान नहीं रखते, क्या होगा आपके परिवार का, समाज का, देश का? उत्तर है वही होगा, जो हो रहा है। आपका घर, परिवार, पहनावा तक भूल गया है और आपका स्टाफ, हर धर्म भूल गया है, कहाँ पर जहाँ आपकी कर्मभूमि है। आप अगर गैर सरकारी हैं, आपका समाज तक आपको गलती करते देख रहा है, सही सुझाव भी नहीं दे रहा है। क्या होगा? वही होगा, जो हो रहा है।
कोई भी, जो एक बार बिक गया, वह खरीददार बन ही नहीं सकता या तब तक समय गुजर जाता है, आपको करना ही क्या है, घर में केवल कहना है कि आप कमा कर देते हैं, आज नहीं तो कल हर एक को मानना पड़ेगा। आपके दूर हो जाने का डर उन्हें, मानने के लिये मजबूर कर देगा। याद रखें बड़े की आज्ञा में न रहने वाला, किसी का कुछ नहीं होता।
नौकरी पर केवल आपको खुद को बोल्ड करना है और समझदारी से सर्वोच्च अधिकारी को सही रिपोर्ट करनी है, लेकिन खुद को पहले गलती से बचाना है, अगर आपका ट्रांसफर भी हो जाये तो क्या घबराना? नौकरी ही तो करनी है, वहाँ अपना परिवार समझकर सुधार करिये, आने वाले समय में, सब आपके आज्ञाकारी होंगे और सच्चाई में, आप बड़े होंगे। गैर सरकारी के लिए तो बेहद आसान है, आप कहीं से भी, किसी की भी अनियमितता देख कर, अविलम्ब उपर शिकायत पोस्ट करनी है और शान्त बैठना है। 3/-रुपये का अखबार दिन पड़ते हैं। 5/-रुपये की चाय पीते हैं। 3/-रुपये का लिफाफा खर्च कर देंगे तो पूरे देश व समाज का भला ही होगा। अब तो इन्टरनेट जैसी सुविधा है।
आज टेलीफोन विभाग दयनीय हालत में है। कर्मचारी समझते हैं, अधिकारी समझते हैं, सेंटर में बैठे सब समझते हैं, प्रधानमंत्री तक समझते हैं, लेकिन कर कोई कुछ नहीं रहा है। सब पगार ले रहे हैं और सरकारी विभाग समझकर बर्दाश्त कर रहे हैं, जो ज्यादा समझदार हैं वह कहते हैं कि गिजाई के लाखों पैर हैं, एक टूट गया तो क्या फर्क पड़ता है, देश बहुत बड़ा शरीर है, एक नाखून टूट गया तो क्या फर्क पड़ता है? लेकिन फर्क पड़ता है, आप सब रिटायरमेंट ले लेंगे लेकिन रहेंगे, तो भारत में ही, आपके छोटे यहींे पलेंगे, एक पैर टूटा दूसरे की या करोड़ों पैर के ठीक रहने की गारण्टी, तो नहीं है, शरीर का एक नाखून टूटा है लेकिन सिर नहीं फूटेगा, गारण्टी तो नहीं है, हाँ, आप सुधार कीजिये, यह शरीर विशाल बनने की गारण्टी है, गिजाई की टाँग ठीक रखिये, सुधार रखिये, कभी न कभी डायनासोर जैसी बन सकती है और सबके लिये फायदेमंद होगी, आप नौकर हैं, नेता हैं या गैर सरकारी हैं, आप स्टूडेंट हंै, सब आपके, आपके-अपनांे के लिये ही होगा, सुधार करेंगे तो स्वर्ग, जन्नत नसीब होगा, सुधार न करने पर नर्क, दोजख निश्चित होगा। याद रखिये एक विभाग भी पूरे देश का खर्चा चला सकता हैं, और इतने विभाग होते हुऐ, आपको पगार या पेंशन में देर होती हैं, यह इसलिये हुआ क्योंकि आपने सही डयूटी धर्म नहीं निभाया, सुधार रखना जरूरी था।
टेलीफोन विभाग जिस भी स्थिति में हो, देश की नाक है, पी. एन. टी. विभाग खास है, निश्चित है, इसको सुधारना इसे नवजीवन देना है, हर सरकारी उपक्रम प्राइवेट उपक्रम से सस्ते और सुविधाजनक होते हंै, लेकिन खासतौर से रोडवेज जो गरीब जनता के लिये खास है, सबसे ज्यादा पीस रहा है, दूसरा बिजली विभाग, अत्याचारी ही नहीं बल्कि चोर, रिश्वतखोर, भ्रष्टाचार, गद्दारी ही नहीं, जबरदस्ती गुलाम, जलील, कमीना, नामर्द लगातार बना रहा है, उपभोक्ता चाहे कितना भी मजबूत हैं, चाहे 10 साल लगे लेकिन बिजली वाले झुका ही लेते हैं, टेलीफोन विभाग को नवजीवन देना अपने आप में महान कार्य होगा। हमसे ज्यादा ध्यान गैर सरकारी प्राणी और देश के भविष्य विद्यार्थीगण को देना ही पड़ेगा। संसार के सारे पी. एन. टी. विभाग को व सबको निमंत्रण हैं, कि खुद या सब मिल कर सारी अनियमितततओं को खत्म करें या करायें व सारे संसार को सुनहरा बनायें और खुद को धन्य करंे व अच्छों पर एहसान करें। हमंे कुछ नियम बनाने हैं जिससे टेलीफोन विभाग को नया जीवन मिले और पूरे देश को फायदा हो। 

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. सबसे पहले सी. बी. आई., विजिलेंस विभाग, सी. आई. डी. और खुफिया विभाग सबको एक-दूसरे की जिम्मेदारी सौंप कर सबको कर्मठ बनाया जाये जिससे टेलीफोन विभाग के हर कर्मचारी व अधिकारी को कर्मठ व वफादार बनाया और उनकी वफादारी बरकरार रखी जा सके।
02. हर एक की छोटी सी गलती पर मोटा जुर्माना अविलम्ब जमा कराया जाये, जिससे सब गलती से बचे, सब निश्चित वफादार रहेंगे, नौकरी छोड़ेंगे, तो नये कर्मचारी आयंेगे, वह मेहनती और वफादार ज्यादा होंगे।
03. टेलीफोन में, हर प्राईवेट कम्पनी से ज्यादा सुविधा दी जाये और सस्ता किया जाये, नयी स्कीम और फैसेल्टी उपभोक्ता को दी जाये, निश्चित ही प्राईवेट कम्पनी इतना सस्ता करने के बाद भी करोड़ांे का हर दिन विज्ञापन देकर और अलग खर्च कर रहे हैं, क्योंकि ज्यादा फायदा है, वह सरकारी टेलीफोन विभाग क्यों नहीं कमा सकता? बस कर्मचारी और अधिकारी को कर्मठ और वफादार बनाना है, जो बेहद आसान है।
04. किसी की गलती पर उसके मातहत, उसके साथी और अधिकारी तीनों से जुर्माना अविलम्ब राजकोष में जमा कराना है और निश्चित समय मंे दूसरी गलती पर पहले जुर्माने का 5 गुना जमा कराना है, विजिलेंस का इस्तेमाल करना है, विजिलेंस के उपर खुफिया विभाग और सी. बी. आई. को लगाना है, यह सब वैसे भी पगार ले रहे है, इनकी गलती पर कठोर सजा देनी है, जो कानूनन सही है।
05. प्राईवेट कम्पनी अपनी लेबर और अधिकारी को पगार और सुविधा देती है। उनसे शिक्षा लेकर विभाग को कन्ट्रोल करना है, काम करो पगार लो, काम नहीं करोगे तो जुर्माना भरो या घर जाओ। आज प्राइवेट कम्पनी ने अपने मोबाइल सबके हाथों में पहुँचायें हैं। यह कर्मठता का सबूत है। हमारी सरकारी सक्षम टेलीफोन विभाग, इससे ज्यादा कर सकता है, करना चाहिये या सरकार को यह विभाग खत्म कर देना चाहिये कम से कम देश की जनता का पैसा और देश का नाम तो नीचा न हो।
06. अगर और ज्यादा अच्छा करना है और बाकी सब विभागांे का तेजी से सुधार करना है तो जिन कर्मचारी और अधिकारी के कारण विभाग इस दयनीय हालत में पहुँचा है, अब भी कार्यरत है और कुछ रिटायर हो गये हंै। विजिलेंस द्वारा उनकी पिछली लाइफ उधेड़ी जाये, तो खुलासा हो जायेगा, यह लोग मोटा जुर्माना भी देंगे और इनकी देखा-देखी सारे विभाग वफादार और कर्मठ बने रहेंगे, साथ ही नेताओं में भी बदलाव आयेगा, आने वाली नस्ल जागरूक होगी, लेकिन यह थोड़ा सा मेहनत का काम है, बेकार पगार लेने वालों को व और सबको काम करने की आदत पड़ेगी, इस समय नौकर वफादार नहीं है, लेकिन मालिक वफादार अपने काम के प्रति होता है, आप खुद को नौकर समझकर नहीं, मालिक समझ कर विभाग की कमी निकालिये, दूरभाष विभाग सबके लिए मिसाल बनेगा। हमें देश चलाना है। यह धर्म, वोट के लालच में 5 साल कार्यकाल वाला न करेगा, न करने देगा।
07. ठेके पर काम देना बन्द कर दिया जाये, क्योंकि यह काम हमंे करना चाहिये जिसकी पगार ले रहे हैं, ठेके पर काम देते ही, हम बैठ कर पगार ले रहे होते हैं और उपर का पैसा भी ले लेते है, बाहर के प्राणी को काम देकर, हम देश के साथ व विभाग के साथ-साथ अपने परिवार के साथ भी गद्दारी कर बैठते हैं, टेलीफोन विभाग की गरिमा व इज्जत खराब कर देते हैं।
08. खास ध्यान दिया जाये, आज हमारा मोबाइल सिस्टम बेहद सस्ता है, लेकिन फिर भी अधिकारी और कर्मचारी विभाग का टेलीफोन फ्री ही इस्तेमाल करते है और नाजायज खर्चा बढ़ा रहे हैं, यही नहीं दूसरे से एस. टी. डी. पर बात कराकर, नाजायज विभाग का खर्चा बढ़ा रहे हंै और फ्री की वाह-वाही लूट रहे हैं।
09. ”घर का सुधार, गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम को टेलीफोन चिप द्वारा एनाउन्स करके लोगों के कानों तक पहुँचाया जाये, शिकायत करने की या गलती के सुधार की लिये शिकायत करना सीखायें और शिकायतकर्ता को प्रोत्साहन दिया जाये।
10. हमारें कर्मचारी और अधिकारी की ड्यूटी लगाई जाये कि शहर की हर अनियमितता की शिकायत ऊपर तक पहुँचायें और हर विभाग की सफाई-सुधार करायें, यह बेगारी नहीं होगी, बल्कि हर पिछली गलतियों का पश्चाताप होगा। आप इन्टरनेट इस्तेमाल करें, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक के वेबसाइट उपलब्ध हैं, ये खुद कहते हैं शिकायत करो, सलाह दो, फिर आप नाम कमाना क्यों नहीं चाहते?
स्वभाव
गुण तो ऐसा चाहिए, जैसा सूप स्वभाव, 
थोथा तो देय, गहि रहे, साबुत लेय बचाय।
अच्छे हाथ का खाईये, अच्छा वंश बन पाय, 
गलत को मिले अविलम्ब सजा, समाज अच्छा रह जाये।
बिन क्षमा माँगे, तूने क्षमा किया, यह तो भयंकर गुनाह किया, 
बड़ी गलती सब भुगतेंगे, अपना नाम डूबोने का इंतजाम किया।



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