नेता और चुनाव
नेता हर जगह, जनता के प्रतिनिधि माने या कहे जाते हैं। जनता की इच्छा पर, वोट के द्वारा इनका चुनाव होता है और 5 साल की अवधि इनकी सेवाकाल होती है। गणतंत्र के जमाने से पहले से ही अधिकतर विभाग बने। उनको सही रखने के लिये उनके नियम कानून बने, और उनके कर्म जनता को नुकसान न दे पाये, इसके लिए अधिकारी बनायें और आजादी मिलते ही नेता का प्राविधान बनाया गया। जनता ज्यादा सम्पर्क में रहे, काम ज्यादा और जल्द हों, इसके लिये सभासद, चेयरमैन, ग्राम में प्रधान व सेक्रेटरी रखे गये, जिससे हर मोहल्ले से लेकर पूरे शहर व सारे देश की हर अनियमितता को रोका जा सके, जनता पर अत्याचार न हो और कर्मचारी अधिकारी पर भी अंकुश रहे। यह चेन सभासद से शुरू होकर राष्ट्रपति पर जाकर पूरी होती है और हर विभाग में विभाग के अनुरूप नाम और काम निश्चित किये गये।
इनकी पगार और सुविधा, इन्हीं के द्वारा निश्चित की गई। जनता के प्रतिनिधि का रूप, स्वच्छ और साफ होता है। हर एक की सहायता करके, उसको सुरक्षित रखना, जिससे गाँव और शहर, उसके बाद, पूरा देश समृद्ध रह सके, मुख्य मकसद होता है। यह नेता सरकारी प्राणी की सहायता से, हर अच्छा काम व खासतौर से, गैर सरकारी को, हर हाल में बचाने का काम इनकी ड्यूटी व धर्म बनाया गया। लेकिन हर जीव और हर मशीन सुस्त होती जाती है, हर जीव में खासतौर से, मनुष्य हर तरीके से किसी भी कारणवश गड़बड़ाता है। उसमें लालच जो परिवार के कारण या प्राकृतिक है, बढ़ता जाता है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। वह चाहे कितना ज्ञानी, खानदानी और अच्छे समाज का हो। काम, क्रोध, मोह, लालच का सही इस्तेमाल नहीं कर पाता। साथ में अहंकार और सेवाकाल केवल 5 साल होने से, यह केवल एक मेहमान जैसा साबित होता है। अंकुश और सजा न होने से या सजा का ड़र खत्म होने से ”करेला वह भी नीम चढ़ा वाली“ कहावत पूरी तरह फिट बैठती है। हमारे पास सरकारी प्राणी की बड़ी, बेहद बड़ी हर तरीके से सक्षम फौज और कठोर कानून होने के बाद भी, यह नेता हर छोटी सी कोताही को, भोली जनता को बरगला कर, साम, दाम, दंड, भेद के द्वारा, भोली जनता जो देश के राजाओं का समूह, साथ लेकर विकराल अनियमितता में बदल देते हैं।
मोहल्ला हो, स्कूल हो, फैक्टरी हो, घर हो, सबसे बेकार गलत कुछ न करने वाला, हर हेराफेरी में लीन, कम पढ़ा-लिखा, हर धर्म तोड़ने वाला प्राणी ही, नेता जैसी सीट पर पहुँचता है। कितना भी समझदार पढ़ा-लिखा इंसान, एक बार चुनाव में खड़़ा हुआ, हाथ जोड़कर वोट माँगना शुरू किया और सेवाकाल ध्यान में आते ही, झूठ, फरेब से ओत-प्रोत हो जाता है। वोट का लालच, हिस्ट्रीशीटर, गुण्डे बदमाश बेकार लोगों में बैठने, उनसे सहायता लेने, उन्हें पालने के लिये मजबूर कर देता है। फिर पुराने नेता, उसके साथी और ज्यादा गलत बनाने, गलत करने, गलत समझाने में कसर नहीं छोड़ते, यह नेता हर सरकारी प्राणी, गैर सरकारी प्राणी, यहाँ तक की देश का भविष्य विद्यार्थीगण और देश की इज्जत नारी को भी गड़बड़ाने से नहीं चूकते। बिल्कुल ऐसे जैसे आपके यहाँ एक मेहमान आये, वह पहले हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए घर में घुसते हैं, फिर आपके कहे अनुसार बैठेगा, सोयेगा, आपके गुण गायेगा। इसके बाद आप मुखिया हैं, तो ज्यादा सम्पर्क में रहकर, चापलूसी से हर तरीके से घर, खेत, फैक्टरी को समृद्ध बनाने की सलाह देंगे। नौकर-चाकर, बच्चे, नारी, रिश्तेेदारांे के अच्छे-बुरे का ज्ञान और किसके साथ कैसा बर्ताव किया जाये, सब बताओगे। इस दौरान जो नौकर या बच्चा उसकी सेवा कर रहा हो, उसे बरगलाने की, अपना ज्यादा फायदा हो, ऐसा सोचकर उस पर हक जताने की युक्ति चलती रहेगी।
आप चाहे जैसे गरीब हो, औकात न होने पर भी चाहे, उधार लेना पड़े, आपका पूरा परिवार, मेहमान की हर सेवा, जो अपने स्तर से उपर होती हैं, करते रहेंगेे। खूब खीर, पूरी, मुर्गा, शराब, दूध, घी सब चलता रहेगा। कहीं टेलीविजन, गाड़ी, ट्रैक्टर आना चाहिये, नये कपडे़ तुम्हारे बनने चाहिये, आपको आजादी मिलनी चाहिये नौकर से कहेंगे। तुम्हारी पगार कम है। मुखिया से कहेंगे, नौकर की पगार, सुविधा ज्यादा है, काम कुछ नहीं करता आदि और एक सप्ताह बाद ही नामुमकिन है कि आपका बजट या बेलंेस खराब न हो। यह मेहमान नुकसान न करे, नामुमकिन है। चाहे नहाने का साबुन, अण्डरवियर में ही लगाना पड़े।
आपके बच्चे, नौकर, जानवर में से कोई न गड़बड़ाये, नामुमकिन है। आपका रूख व आपकी कमजोरी देखकर, वह आपसे विदा लेने का प्रोग्राम बनाता है या टाइम पूरा हो गया या घर का काम याद आ गया, कहकर निकल जाता है, वह समझ जाता है कि अब चलने में ही फायदा है। आपका सीधा-सादा गरीब परिवार, जो आपकी छूट देने पर भी दस साल में बिगड़ता, आज से ही बिगड़ना शुरू हो गया। अब गाड़ी, टी. वी., कूलर, वाशिंग मशीन, नये कपड़े, टैªक्टर लाने ही पड़ंेगे, चाहे लोन या उधार लेना ही पड़े। चाहे आप टाटा, बिरला हैं, निश्चित गलत मेहमान से नुकसान जरूर होगा, जो सालोें बाद ही पता चलेगा, परन्तु नुकसान जरूर होता है। फैक्ट्री में हड़ताल हो या कुछ और हो, यही बच्चे या लेबर पहले डरते थे, कम में गुजारा करते थे, मेहनती थे, नारी शर्माती थी, चाहे एक पैसे भर हो, मेहमान के जाने के बाद अनियमितता आपके यहाँ जड़ पकड़ लेती है, यह सच्चाई है।
स्कूल काॅलेज की क्लास में सबसे इंटेलीजेंट लड़के को, क्लास का मानीटर या नेता बनाया जाता है, यह लड़का मानीटर बनते ही, अपनी पढ़ाई से बाधित होने लगेगा या तो मानीटरी छोड़ेगा या पढ़ाई में कमजोर हो जायेगा। कर्मठ बच्चा या प्राणी नेतागिरी में तो रह ही नहीं पाता, यही सच्चाई है। जाति प्रथा, भाई-भतीजावाद, छोटे-बड़े का अन्तर, जमीन-जायदाद का अहंकार होने से, हर काम को हाँ कर देना और फिर न करना, झूठा दिलासा देना, वोट माँगना हाथ जोड़कर, मेरा ध्यान रखना कह देना। वोट लेकर अधिकतर, कानून तोड़ने वालों का साथ देना, अच्छा नेता नहीं बनने देता। वोट लेने के लिये रिश्वत, शराब पीना-पिलाना या बाटँना, गलत लोगांे को बढ़ावा देना ही पड़ता है। जो सीट पर बैठा है, हर तरीके से सीट छोड़ना नहीं चाहता। जो चुनाव में खड़ा है, वह हारना नहीं चाहता, चाहे जो करना पड़े, मोटा पैसा खर्च करता है, सीट पर जो है, उसे बदनाम करता है, उसके राज में जलूस, रैली, तोड़-फोड़, लड़ाई, झगड़े करके पार्टी से लोगों को विमुख करने की, हर कोशिश करता है। अगर जीत जाये, तो जो पहले नेता ने उपक्रम किये है उन्हे रोकने या बंद करनेे की, हर कोशिश करता है, हार जाये तो 50 लाख, एक करोड़ चुनाव में खर्च हो ही गये है। 20-30 लाख और खर्च करता है और उपद्रव कराकर खुद को सही साबित करने की नाकाम कोशिश करता है।
मर्डर तक व बड़े-बड़े, हादसे केवल इन्हीं की देन हैं। अगर सीट पर बैठा है, तो गलत-गलत प्रोग्राम सेट करता है। नेता लोगों की सोच है कि पुलिस से मुठभेड़़ हुई नहीं कि दूरदर्शन, अखबार में लड़ाई-झगड़े वाले फोटो छपे, तो उनकी पार्टी स्क्रीन पर जल्द आयेगी। आरक्षण जैसे रोग देकर विभाग व समाज की जड़ें कमजोर कर देते हैं और कर्मठता खत्म कर देते हैं।
इस विज्ञान के जमाने में आरक्षण जैसी छूट, हर हालत में गलत ही गलत है। सफर करो टिकट नहीं लेनी है। बिजली जलाओ, बिल नहीं देना है। कर्जा लो, अदा नहीं करना है। यह सब समाज को खराब व बड़ों को गड़बड़ानेे के लिये काफी है। लकड़ी में दीमक लगाने जैसी बात है। अगर कर्मठ, समझदार, पढ़े-लिखे को आजादी दो, तो काम कई गुना होता है, कर्मठता बढ़ती है। अगर नासमझ या गलत को आजादी दो, तो काम ठप्प ही होगा। नारी को इज्जत नहीं, आजादी चाहिये यह सब काम केवल वोट लेने वाले नेता ही करते हैं। आज विधवा पेंशन की हवा चली और सुहागिन, पति जिन्दा होेते हुए नारी, विधवा पेंशन ले रही हंैै।
इनके हर कदम से हर सरकारी कर्मठ प्राणी भी खराब हुए हैं। हर प्राणी नाजायज फायदा उठाने के लिये अपना, अपनों का, अपनी बिरादरी का नाम गन्दा कर रहा है। जबकि यह बेहद गलत और अशोभनीय है, निन्दनीय है। सुधार बेहद आसान है जो जीत गया है, उसकी 5 साल तक तो, हर बात माननी ही चाहिये अपोजिट प्राणी को हक क्यों दिया जाता है कि जीतने वाले के खिलाफ कोई भी शब्द बोले। जीतने वाला राजा है, वह गलत करे तो भुगतो, सही करे तो भुगतो। अगर यह बात पसन्द नहीं, तो जनता पर छोड़ दो। जनता खुद चुनती है, तो बेहद अच्छी सजा भी देती है। यहाँ दोष जीतने वाले नेता का नहीं, जीतने वाले नेता के जीतते ही, बाकी सब नेता उसके दुश्मन बन जाते हैं। यह गलती खुद नेताआंे की है और उससे बड़ी गलती, उनके उपर के नेताओं की है, जो किसी की गलती पर माकूल सजा नहीं दे पाते।
यह कहना कि अपोजिट पार्टी के सामने रहने से जीतने वाला नेता गलती नहीं करता, एक दम सही है। लेकिन अपोजिट पार्टी का नेता, आपका सहयोगी होना चाहिये न कि प्रतिद्वन्दी। जीतने वाले नेता के, वैसे ही दुश्मन ज्यादा हो जाते हंै। जनता में भी दुश्मन निश्चित है। यह तो ”बन्दरांे के बीच गुड़ की भेली रखने“ जैसी बात हुई।
हमारे भारत में यहाँ गिनी चुनी जाति बिरादरी थी। इन चुनाव की प्रक्रिया ने 370 जाति बना दी। कोई समाजवादी है, कोई कांग्रेसी है, कोई भा. ज. पा. पार्टी या जनता पार्टी। एक पार्टी दूसरों को क्यों चाहेगी और लड़ाई पक्की। चुनाव लड़ना एक ऐसी प्रक्रिया है कि यह लड़ाई शब्द पूरी जिन्दगी से जुड़ जाता है। एक नेता सीधा-साधा चुनाव लड़ा और जीवन भर का द्वेष उसके मन या दिमाग में घुसा। मुझे इसने 20 साल पहले हराया था, चाहे गलती हारने वाल की ही हो, लेकिन हार कोई भूलता है? जनता में, इसने मेरे से सहायता ली, शराब पी, परन्तु वोट नहीं दिया। मंै देखूँगा। जो नेता नोट के बल पर जीतते हंै, जीतने के बाद निश्चित हर काम के पैसे ज्यादा से ज्यादा पहले लेेते हंै और सीधा कहते हैं, चुनाव में मंैने एक करोड़ खर्च किये हंै।
आज के दौर मंे दूरदर्शन, अखबार, विशाल मीडिया हर अनियमितता दिखाता है। नेता से लेकर, हर विभाग की कमियों को दिखाता है। कोई बताये गलती पर सजा, गैर सरकारी के अलावा किसी को मिली है। नेता की सजा भी वी. आई. पी. होती है। सुविधा यहाँं पर, क्लास वन की होती है। फुल्लन देवी जैसी डकैत, जो कानून व जनता की मुजरिम होते हुए कानून और जनता के उपर राज कर गई, गलत कहने वाले ही उसके साथ खाते-पीते और घूमते रहे। सबूत हैं, आरक्षण ने बेहद जहर घोला है।
प्रधान के चुनाव मंे, सभासद के चुनाव में, नारी जाति द्वारा चुनाव लड़ा गया। जिस नारी ने घर की चैखट के अलावा खेत, खुद के खेत की ढ़ोल भी नहीं देखी, बाहर की कोई गली नहीं देखी, उन्होने नामाँकन फार्म भरा और चुनाव से पहले, जो शराब पीने वालों से नफरत करती थी अपने पति व पड़ोसी और नौकर से, उन्हांेने हरिजन परिवार और सबको फ्री शराब बाँटी। चुनाव जीता और आज भी घर से बाहर निकले बिना, हर काम गलत या सही कर रही है। नेचुरली गलत ही गलत कर रही है और नेता बनी हुई है। क्या यह नेताओं की, चुनाव की और जनता की बेइज्जती नहीं है? क्या नारी की बेइज्जती नहीं है? आजादी के बाद, कोई एक नेता भी ऐसा बतायें, जो परिवार, देश, जनता या पार्टी का वफादार हो या घपला या नुकसान न किया हो। जज हो या अधिकारी हो, या नेता हो, जो जनता में खुल गया, घुल गया, उससे गलती जरूर होती है। वह गलती जरूर करेगा।
एक नेता बनता है, उसके अपने सैकड़ांे रिश्तेदार व साथी का खर्चा जनता, सरकार, सरकारी प्राणी को भुगतना पड़ता है। यह नेता क्या कुछ कर दें, सब गलत और नाम उग्रवादी अपोजिट पार्टी या जनता भड़क गई, कह देते हैं। भारत की जनता भूखी लड़ सकती है। बिना सड़क, मकान, बिजली, पानी के रह सकती है। लेकिन भोली-भाली अथाह शक्ति की मालिक जनता, आज भी हर अनियमितता सह रही है और नेता अगूँठा टेक, उपद्रवी, पैदल चलने वाले, अरबों रुपये के मालिक कुछ समय में बन गये हैं। राजा राज्य को बढ़ाते थे, नेता राज्य को बाँटते है।
भारत में गिने चुने राज्य थे। अब हर जगह कहीं हरित प्रदेश, कहीं झारखण्ड है। हर इंसान में भेद-भाव पालने के माहिर है। इस अनियमितता को कैसे रोकंे? यह दिन दुगनी, रात चैगुनी बढ़ रही है। सुधार हर चीज का है। यह प्राणी का प्राकृतिक गुण है, बेहद मामूली तरीका है। गलती पर अबिलम्ब सजा। सजा, सुधार के लिये होती है, जिससे देखने वाले भी गलती न करें। जैसे जनता के वोट पर चुनाव होता है, वोट पर सजा भी दी जा सकती है। हर माह उसकी पेंशन, पगार का एक हिस्सा, जुर्माने के रूप में राजकोष में जमा कराया जाये।
पहली गलती पर 1000/-रुपये जुर्माना, दूसरी गलती निश्चित समय में होने पर पर 5 गुना (5000/-रुपये) जुर्माना, तीसरी गलती पर 10 गुना (20000/-रुपये) जुर्माना राजकोष में जमा करायें। इससे देश की आर्थिक स्थिति ठीक होगी। विभाग का हर कर्मचारी ठीक चलने और सुधार का ध्यान रखेगा। साथ ही गलती करने वाले के परिवार वाले भी सुधरेंगे और गलती करने वाले को, गलती न करने के लिये प्रेरित करेंगे। जबकि सारा परिवार नमकहरामी के पैसे से मौज कर रहा था, तो वह सजा का हकदार भी तो है। जब कम पगार आयेगी, तो परेशानी तो बढ़ेगी ही। जिससे आने वाला नेता भी पहले से सीखें। उसके घर के प्राणी, सम्बन्धी भी गलती करने से रोकें। समाज, जनता, उसकी गलती पर, उसे नफरत की निगाह से देखें। हर आपदा, बीमारी, महँगाई पर कन्ट्रोल करने से पहले, नेता और चुनाव पर कन्ट्रोल करो, देश समृद्ध हो जायेगा। नेता के कारण, ”खेत की बाड़ ही खेत को खा“ रही है। गधे पंजीरी खा रहे हैं। इनके कारण ही, हर गैर सरकारी प्राणी, सरकारी प्राणी, देश का भविष्य विद्यार्थीगण, सारा कानून, खुद नेता भी, पूरी तरह दुर्गति करा रहे हैं।
मनुष्य को अगर अपनी वास्तविक स्थिति में आना और रहना है, तो मेहमान और नेता का पूरा ध्यान रखें, अपनी चद्दर के अनुसार, उससे भी दो इंच पैर, कम फैलायें।
चुनाव के लिए टिकट दिया जाता हैं, अगर टिकट लेने वाला, कानून के दायरें में हैं, तो उसे टिकट मिलना ही नहीं चाहिए, यहाँं पर टिकट देने वाली, पूरी पार्टी ही दोषी मानी जायें। इसके लिए, केवल शक होना ही, सबसे बड़ा सबूत माना जाए। हमेशा से दोषी व्यक्ति ने या तो संन्यास लिया है या फौज में भर्ती हुआ है और अब तो 50-60 केस अदालत में होते हैं, वह ठोक कर चुनाव लड़ते हैं, जीते या हारे, वह पाक-साफ हो जाते हैं। फुल्लन देवी ही मिसाल नहीं हैं, अब तो हर नेता, इसी कैटेगरी के हैं, इसलिए सरकारी या गैर सरकारी पचड़े में पड़े हुए इंसान को टिकट न दिया जाए और टिकट देने वाले को देश द्रोही करार देकर कठोर सजा दी जाय, कानून सजा नहीं देगा, तो जनता को कानूनी दायरे में रहकर, ऐसे गलत प्राणी को सजा ही देनी चाहिए, जिसके करोड़ों तरीका हैं। देश गैर सरकारी या जनता का है, देखभाल भी इन्हीं को करनी चाहिये। संसार के सारे नेता आमंत्रित हैं, साबित करें, कि वह हर नेता को इज्जतदार बनायेंगे और जनता व देश के सच्चे सेवक हैं। चुनाव के लिए आप वोट दें, पर महीनों पहले से करोड़ों रूपये खर्च करते हैं। सबसे पहले गाँधी जी नेता बने, जिन्होंने पार्टी मजबूत करने के लिए नियम बनाया कि अपनी लैट्रिन खुद साफ करेंगे। लेकिन बँटवारा करके बेहद बड़ी गलती की या हो गई। सुभाष को अंग्रेजों को सौंपने का इकरार भी कर लिया, आजादी के बाद से अब तक कश्मीर का मामला ज्यूँ का त्यूँ है, अब 70 साल में भी पूरे देश को समझना पड़ेगा कि नेतागिरी से, खुद नेता का ही नहीं, किसी का भी फायदा हो ही नहीं सकता क्योंकि नेता की गलती पर कोई सजा है ही नहीं। यह हर विभाग के नियम-कानून को अपना हक कहकर खुद काट देते हैं और हर प्रकार के कर्मठता में बाधक बन जाने से, बेहद मोटा खर्च करते हैं। आपको अगला वोट देने से पहले, आपको गलती पर सजा का हक लेना चाहिए, या बेवकूफ बनते रहिये, और अत्याचार सहते रहिये, इनका पैसा-सुविधा बढ़ाते रहिये। अपने वफादार नौकर, बीबी-बच्चों को गद्दार बनते देखते रहिये। लड़ाई, झगड़े, धरने, जाम, जलूस, हड़ताल, हर छुट्टियाँ, इसे अन्यथा न लें, यह बुराई नहीं सच्चाई है, कबूल करें।
No comments:
Post a Comment