घर और सच्चाई
-ः घर -
घर है यह मेरा घर, घर है यह तेरा घर,
घर तो घर ही है, जन्नत है यह हमारा घर।
घर में रहने वाले सब, सारे, सगे सम्बन्धी हैं,
नेता है, सरकारी या गैर सरकारी, सब नर और नारी हैं।
पीर-पैगम्बर, देवी-देवता ही, तेेरे-मेरे घर के वासी हैं,
घर है, यह हमारा घर, घर है यह तुम्हारा घर।
आसमाँ जैसी छत है, पृथ्वी है, सारा आंगन, यही है, हमारा घर,
जीव सारे, पेड़-पौधे, जंगल, पहाड़ और समुद्र शोभा बढ़ाते, हमारा घर।
इज्जत मिलती सब बड़ों को, प्यार छोटों को मजबूती के लिए,
सुधार-सफाई करते हर दम, यही तो है, हम सबका घर।
जाति बस एक है, मनुष्य जाति, मनुष्य में नर और नारी है,
बच्चे हैं जिगर के टुकड़े सबके, कितना हँसी है, यह हमारा घर।
तेरा देश है, मेरा भी देश है, तेरा झण्डा है, मेरा भी झण्डा है मगर,
कहीं मेजबान, कहीं मेहमान हैं हम, बड़ा प्यारा है, हम सबका घर।
गम बांटते हैं, गम खुद ही खत्म हो जाते हैं, खुशी बांटते ही, हजारों गुना बढ़ जाती है,
सब समझदार हैं, बाशिंदे इस घर के, सुन्दर, सारा संसार है, हमारा घर।
खता हो जाये तो छिपाते भी नहीं, और सजा खुद ही चुन लेते हैं,
सब वफादार हैं, कर्मठ हैं यहाँ, ऐसा संसार है, हमारा घर।
न गरूर करते है, न तौहीन करते, कभी किसी की हम,
गलत का सुधार, सब करते है, सबको बचाना है, हमारा घर।
बीज बोया है, मेहनत से बड़ी मेंने, दरख्त बन ही जायेगा,
साथ दो तुम अगर, संसार सारा, जीते जी स्वर्ग बन जायेगा।
-ः सच्चाई -
कर्ज माटी का, दूध का, यूँ ही उतर जायेगा,
बन जायेंगे सब बावफा, खुदा का नूर ही नूर नजर आयेगा।
चमन बनाया है, तूने मुर्द घाटों को, कब्रिस्तानों को,
उजड़ गई बस्तियांँ और तुझे जरा भी गम नहीं।
अजब दस्तूर है तेरा, ऐ दो जहाँ वाले,
कि मेरा खून ही मुझको, एक दिन आतिश लगायेगा।
तसव्वुर किसपे करता है, जहाँ सब, एकरोज फाँनी है,
तू मुट्ठी बांध के आया था, यूँ खाली हाथ जायेगा।
तसव्वुर में तेरे, सारे जहाँ को भूला दिया हमने,
रहे सबके प्रति बावफा, फिर भी बेवफा बता दिया तूने।
हमने कदर की तेरी, और तेरे सब अपनों की,
तूने बेकदरी की, अपने खुदा की, झूठी खुशी के लिए।
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