परिवहन और परिवहन विभाग
सृष्टि के बनने के बाद मनुष्य ने होश सम्भालने के फौरन बाद ही, एक जगह से दूसरी जगह पहँुचने में कम मेहनत, कम समय लगे, ज्यादा वजन भी आसानी से पहुचें, इसी पैथी (विधि) पर कर्मशील और लग्नशील रहा है। घोड़े, बैल, हाथी और खुद मनुष्य के द्वारा यह काम होते-होते, मशीन की तरफ भी ध्यान गया और ज्ञान और विज्ञान के योग से मोटर कार की उपलब्धि की, सबसे पहले कार में पीछे दो गार्ड खड़े होते थे, कार से आगे दो आदमी चलते थे, जिससे किसी को कोई नुकसान न हो, कार की स्पीड 5 मील/घंटा होती थी, यह मोटर कार स्टीम या पानी की भाप से चलाई जाती थी, फिर बाद में पेट्रोल और फिर डीजल से चलाने में कामयाबी मिली। राजा-महाराजाओं के जमाने से सफर उजरत या किराये से किया जाता रहा है। मोटरकार का बड़ा रूप बना कर, बस का रूप या और बड़ा रूप किया, जिसमंे ज्यादा यात्री या ज्यादा लोगों को यात्रा करा सके, उसको बस का नाम दिया गया। यह पहले-पहल शहर में और फिर एक शहर से गाँव और दूसरे शहर तक चलाने में या पहुँचने में सफल हुए। यह सब बड़े शहरों में खासतौर से चलायी गयी। यह मशीन बनने के बाद, इसको सरकार ने अपने हाथ में रखा, क्योंकि जनता या प्रजा की सेवा और इनकम का साधन नजर आया।
एक शहर को दूसरे शहर से मिलाने के लिये, सड़कों का निर्माण शुरू हुआ, क्योंकि पहले रास्ते कच्चे ही हुआ करते थे, इस बस में सुविधा के अनुसार बदलाव आते रहे, इसको ”परिवहन विभाग“ सरकारी नाम दिया गया। इस समय देश आजाद है, इसलिये परिवहन से, पहले प्रदेश का नाम जोड़ा गया, जैसे उ0प्र0 रोडवेज, पंजाब रोडवेज, हरियाणा रोडवेज, राजस्थान रोडवेज आदि परिवहन या रोडवेज को केवल प्रदेश तक ही सीमित रखा गया और उसका, हैड आॅफिस प्रदेश के राजधानी में ही रखा गया। आज बढ़ते-बढ़ते रोडवेज एक शहर से दूसरे शहर तक बड़ी लम्बी दूरी तय करती है। रात और दिन राउण्ड दी क्लाक, इनकी सेवा उपलब्ध है, तीर्थ स्थान, यादगार जगह सब चीजों का व जनता का ध्यान रखते हुए सेवारत है। बडे़ शहर या क्लासवन शहरों में, केवल शहर के लिए ही, सिटी बस बेहद माकूल सेवा है। अब आज के समय में बेहद लम्बी दूरी जैसे भारत, पाकिस्तान मतलब दूसरे देशों के लिये भी कोशिश जारी है, पहले बार्डर पर अपने बार्डर तक अपनी, दूसरे के बार्डर से दूसरे मुल्क की बसे थी, चेकिंग या तहकीकात के बाद यात्री सफर करते थे। इसमंे भी बाधक सरकार या नेता ही है, जबकि जनता चाहें जिस देश की हो, चाहें एक-दूसरे में बैर ही हो, लेकिन एक-दूसरे से मिलने में ज्यादातर खुश होते हंै और आने-जाने में या आते-जाते रहने में, एक-दूसरे की इज्जत करते हैं, एक-दूसरे के काम आते हैं, प्यार निश्चित बढ़ता है दुश्मनी खत्म होती है। यह काम मिलने-मिलाने का केवल रेल और रोडवेज करती है, जो लगातार कर ही रही है, लेकिन नेताआंे के कारण, केवल अपने देश में ही सेवा कर रही है और यहीं तक सीमित हो कर रह गई है। इस समय हमारी प्राईवेट बस मालिकों के कारण यात्री ए. सी. बस का, स्लीपर बस का निश्चित मजा लूटते है और प्राइवेट बस मालिक की हिम्मत पर ही टूरिस्ट बस द्वारा, यात्री लगभग हर जगह यात्रा करते है।
वैसे तो रोडवेज, प्रदेश सरकार के मातहत है और प्रदेश के अनुसार छोटी-बड़ी है। प्रदेश सरकार या केन्द्र के मातहत होते हुए भी, यह बेहद फायदेमंद न होकर, नुकसानदायक साबित हो रही हैं, केवल सरकार के लिये ही नहीं बल्कि जनता के लिये भी बाधक या नुकसानदायक है। हर जगह सड़के है, रेल की तरह हर जगह लाने ले जाने का साधन भी है लेकिन, मोटा किराया देकर भी उपभोक्ता कभी खुश नहीं। रोडवेज बस के मुकाबले, प्राईवेट बस बेहद फायदेमंद व अच्छी सेवा देते है। प्राइवेट बस मोटा पैसा सरकार को टैक्स देती है, पुलिस और सरकारी कर्मचारी नं 02 का पैसा मजबूर करके लेते हंै, इसके बाद भी मालिक साल दो साल में दूसरी बस बना देते हंै। यह परिवहन निश्चित मोटी कमाई का साधन है, हर काम सरकारी प्राणी और नेताओं के कारण या सरकारी प्राणी और नेता की अनियमितता के कारण, खुद अपने विभाग और जनता व देश के लिये नुकसानदायक हो जाते हंै। इसी प्रकार रोडवेज भी सबके लिये नुकसानदायक हो रही है। इसमें रोडवेज कर्मचारी व अधिकारी लगातार अनियमितता की तरफ बढ़ने से छोटा सा नुकसान बेहद बड़ा साबित हो रहा है, हर सरकारी प्राणी केवल (पगार) पैसे के लालच के कारण, हर अनियमितता भुगत रहा है और कर रहा है। रोडवेज के सारे उच्च कर्मचारी, अधिकारी कहलाते हैं, अधिकारी ही हंै, लेकिन अधिकारी के गुण न होने के हर सबूत हैं, जिससे नुकसान का सारा श्रेय बड़े अधिकारी और नेता को ही जाता है। रोडवेज आज की खास जरूरत है, यह कितनी फायदेमंद है, इसका अन्दाज प्राईवेट बस वाले सबूत है, जो कुछ समय में ही इसकी कमाई से दूसरी बस बना लेते हंै और आर. टी. ओ से लेकर हर सिरदर्दी से, हर दिन निबटते हंै। यह रोडवेज अधिकारी और नेता मिलकर प्राईवेट बस वालों को हमेशा बाधित करते हंै और जनता भी पिसती है।
सबसे पहले हम बस स्टैण्ड पर पहुँचते हैं और प्राईवेट बस से तुलना करते हंै, जब हम बस स्टैण्ड पर पहुँचते है, जो पहले-पहल प्राईवेट बस मालिकांे द्वारा तैयार कराया था। आजकल रोडवेज सरकारी होने के कारण बेहतरीन इंजीनियरों द्वारा मोटा पैसा लगाकर, बस स्टैण्ड तैयार किया जाता है, जिसमंे हर सुविधा जो यात्रियों को भी देनी होती है, उसी हिसाब से बस स्टैण्ड की बनावट होती है, वेटिंग हाल टिकट घर, स्टाफ का आॅफिस वहीं पर एनाउंसर आदि, पूछ-ताछ या इन्कवायरी आॅफिस। बस स्टैण्ड पर बुकिंग आॅफिस तो है, लेकिन अधिकतर टिकट नहीं मिलती, क्यांेकि कन्डक्टर खुद बस में ही टिकट देने का आदी है और टिकट देना बस में, आसान नजर आता है आसान है भी, अब तो बस स्टैण्ड में जाने वाली बस के उपर छाया भी होती है, प्राईवेट बस स्टैण्ड पर खासतौर से बेतरतीबी नजर आती है, ड्राईवर कन्डक्टर खुद सवारी की भीड़ में आवाज लगाते नजर आ जाते हंै, जो यात्री के लिए लाभदायक है, सरकारी बस स्टैण्ड पर खुद सरकारी आदमी होने के कारण, अहंकार से ओत-प्रोत मिलते हैं, सवारी बैठे या न बैठे, इनकी सेहत पर कोई असर नहीं होता। आप बस में जाकर बैठ जाइये बस की हालत बेहद खराब होगी यह निश्चित है, वैसे अब तो बहुत सुधार है, इनके पास वर्कशाप भी है, हर कारीगर भी हैं, लेकिन वर्कशाप या वहाँ पर कर्मचारी क्या करते हैं? यह अधिकारी को भी पता नहीं होता, अगर इस प्रकार की बस प्राईवेट हो तो आर. टी. ओ. पास ही नहीं कर सकता। प्राईवेट बस स्टैण्ड में यह सुविधा तो नहीं, लेकिन सबके लिये निश्चित फायदेमंद है, बस आपको ठीक-ठाक मिलेगी, टिकट आपको बड़ी जल्द, बस में ही मिलेगी या बाहर भी मिलेगी, सीट आपको दिलाई जायेगी, बस ड्राईवर या कन्डक्टर के मन अनुसार ठीक मिलती है, रोडवेज से हमेशा कम किराया होता है, बस कन्डक्टर और ड्राईवर, आपके सुख का ध्यान रखते है और सफर में या टिकट लेते ही, आपको ऐसा लगेगा कि, रब के शुक्रगुजार होते हंै। खुद कन्डेेक्टर या बस मालिक तक यात्री को सीट देने के लिये खुद खड़े होते हंै। गैर सरकारी प्राणी, जब भी, जो कुछ भी करता है, सब के लिये करता है, उससे पूरा देश पलता है।
हमारे सरकारी प्राणी और नेता जो गलत हैं, प्राईवेट बस पर अंकुश लगाते रहते हंै और वह खुद अपने और अपने विभाग के उपर अत्याचार तक बन जाता है। रोडवेज ने हर प्राईवेट बस से हर इलाका छिनने की कोशिश की है और सरकार व जनता दोेनों ही बेहद घाटा भुगत रहे हंै। सरकारी नौकर, घटिया नौकर बनकर रह गये हंै, इसके हर जगह अनगिनत सबूत मिलते हंै, सबूत हैं। उदाहरणस्वरूप पूरी यू. पी. (भारत), सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत)-देहली और सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत)-गाजियाबाद रूट पर 200 से उपर बस थी, जो कि जनता और सरकार को हर दिन मोटा फायदा और पैसे दे रही थी, यात्री रोडवेज को भूलाने लगे थे, किराया कम था और हर प्राणी खुश था, केवल रोडवेज विभाग को छोड़कर। रोडवेज हर माह मोटा घाटा दिखा रही थी, गलत अधिकारी नेताओं ने मिलकर, पूरी यू. पी. में प्राईवेट बस बन्द करवायी। सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत)-दिल्ली और सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत)-गाजियाबाद की पूरी सर्विस जबरदस्ती बन्द करा दी। यह सरकारी अधिकारी भूल गये कि, इनकी और उन्हीं के भाईयों की मोटी इनकम थी, आ. टी. ओ. से लेकर पुलिस और सब की भी, कम से कम 200 बसे बन्द हुई, इनसे कई हजार लोग पलते थे। सब इस देश की मिट्टी से पैदा हुए थे, सबके परिवार वाले अब तक दुःखी हैं। सरकारी प्राणी सरकार और जनता से कुछ लेता ही है, गैर सरकारी पूरी उमर, सबको देता ही रहता है, गैर सरकारी सीधा और भोला है। इन्होंने अदालत के दरवाजे खट-खटाए। ये सीधे लोग कानून के दरवाजे पर खडे़ हो गये और वकील के आश्रित रहे, विडम्बना यह कि जज जो केवल पगार के लिये बैठे हैं। कानून की धारा देखकर नुकसान, परिवार और मजबूर पर अत्याचार हो रहा है, भूल गये। आज हर गैर सरकारी की बसें, इनमें एक-एक बस, दसियों परिवार चलाती थी, खुद कबाड़ बनकर रह गई हैं। कानून फैसला सही करता है और जो सामने है वही देखता है, समझाने वाले की गलती है क्या समझाता है? यह मसला बेहद आसान है, कानून ने, अनजाने में बेगुनाह मुद्दई को सजा दे दी और मुजरिम सफल हुआ। आज भी रोडवेज कई-कई लाख का हर माह नुकसान उठा रही है, अपने नुकसान के लिये प्राइवेट बस टेम्पांे, थ्री-व्हीलर व कार को दोषी मानकर, आर. टी. ओ, डी. एम व कमिश्नर के द्वारा बेकार के बैन लगा कर, सबको और खुद को मौत के कगार पर ले जा रहे हंै। सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत)-गंगोह प्राईवेट सेवा बन्द करवा दी, किराया बढ़ा दिया फिर भी हर गैर सरकारी ठीक-ठाक पल रहा है और सरकारी मोटी पगार लेने के बाद दुःखी है। एक प्राईवेट बस टेम्पों वाला खींचकर बिठाकर, आपको सवारी कराता हैं। रोडवेज, गैर सरकारी की सेवा का वादा करके, मोटी पगार लेकर भी, गैर सरकारी प्राणी सड़क पर बस रोके तो, रोकते भी नहीं। सब अधिकारी और नेता भूल जाते हैं, कि वह सब भी गैर सरकारी में से ही बने हंै। गैर सरकारी द्वारा ही यहाँं तक पहुँचे और हर हाल में संख्या, गैर सरकारी की ही ज्यादा है, जो भोले जरूर हैं, लेकिन अपनी पर आ जाये, तो कौन क्या बेचता है? सबूत अनेक है, अंग्रेजी हकुमत से कठोर कोई नहीं बना, वह हिन्दुस्तानी से हार कर गये, उन्हांेने अत्याचार किया, आज तक उनकी सुबह नहीं हुई, सूरज नहीं निकला। आगे पता नहीं उनका सूरज कब निकलेगा? सूरज निकलेगा भी या नहीं। ताकत, प्रेम और यूनिटी में ही है। आप पूरी फौज, केवल मधुमक्खी को छेड़कर देखिये? यूनिटी कब बन जाये, कौन जानता है। धर्म कानून यह कहता है, कि आप सरकार के नौकर और जनता के सेवक है, देश के चालक व रक्षक हंै, बस।
संसार में परिवहन विशेषतौर पर आज के लिये बेहद जरूरी चीज बन गई है और सरकार के लिये बेहद मोटी कमाई का साधन भी है। एक मामुली सीधा-सादा गैर सरकारी, केवल मेहनत और बचत करके, बडे़-बडे़ उपक्रम चला देता है, वहीं हमारे रोडवेज के कर्मचारी उपभोक्ता की बेकदरी करने के कारण सरकार के उपक्रम पर सही मेहनत न करके, हर दिन मोटा घाटा कर रहे है, जो माह के अन्त में जोड़ने पर पता चलता है, कि एक शहर की रोडवेज कई लाख घाटे में पहुँची। अभी हमारे पास मेहनती आदमी और उपभोक्ता की कदर करने वाले कर्मचारी हैं। अभी ऐसे अधिकारी भी हैं, जो कर्मचारी का और उपभोक्ता का ध्यान रखते हैं, लेकिन यह दोनों प्राणी उनकी बचत व मेहनत के बाद भी परेशान हंै।
रोडवेज हो या रेल, अधिकारी की मुस्तैदी ही मुनाफा करा सकती है और गैर सरकारी की सेवा करके ही बचत कर सकती है। सारे सरकारी उपक्रम, जनता के लिये, गैर सरकारी उपक्रम से सस्ते हैं, लेकिन परिवहन या बस और टेलीफोन में उल्टा है। सरकारी मँहगा और गैर सरकारी सस्ता, देहली परिवहन ने बचत के लिये, सौर उर्जा से चलने वाली बस तक बनाई, परन्तु हमारे अधिकारी की कोताही से कर्मचारी सुस्त हो जाते हंै और फायदे की बजाय नुकसान होने लगता है, वर्कशाप में मोटर पार्टस की कमी के कारण कर्मचारी सुस्त हो जाते हैं, बस की समय से रिपेयर न होने पर बस की छोटी से छोटी कमी भी मोटा नुकसान बनती है और घाटा कई बुना बढ़ता है, अगर हम थोड़ी सी मेहनत से बस की सही रिपेयर रखंेे, तो ड्राईवर को ड्राईव करने में आनन्द मिलता है और वह उसे इच्छा न होने पर भी चलाता है। कन्डक्टर की व ड्राईवर की ड्यूटी है, यात्री की इज्जत करे, अगर यह इज्जत करते हैं, तो यात्री रेल से न जाकर, बस से जायेगा। यह काम प्राइवेट बस वाले करते हंै और वह फलते-फूलते हंै, अधिकारी की ड्यूटी है ध्यान रखें कि कर्मचारी, यात्री की इज्जत करे, अच्छा बर्ताव करे, जिससे यह रोडवेज घाटे से उबरे।
हमारे प्राइवेट बस कन्डक्टर और ड्राईवर उपर का पैसा बनाते हैं, फिर भी वह घाटा नहीं होने देते क्यांेकि वह ज्यादा मेहनत करते हैं, लेकिन रोडवेज कर्मचारी सोच लेते हैं कि पगार तो मिलती ही है, बस चल ही रही है, यात्री का क्या है बैठंे या न बैठंे और नुकसान होना शुरू हो जाता है, यात्री सड़क पर खड़ा है, यात्रा उसके दिमाग में है, बस न रूकने पर शिकायत भी नहीं कर सकता, क्योंकि शिकायत के लिये बस नम्बर भी चाहिये, वह सारी सिरदर्दी कैसे सम्भालेगा। आज भी हर कच्चे रास्ते पर, केवल अपनी मेहनत से प्राइवेट बस ही चलती हंै, सरकार अपनी जनता की सेवा भी नहीं कर पा रही है, कुछ गैर सरकारी या प्राईवेट बस मालिक अनुबन्धित करा कर, रोडवेज के यात्रीयों की सेवा कर रहे हैं, यह बस मालिक कितनी परेशानी से बस अनुबन्धित करा पाते हैं। यही नहीं जानते, और सब लोग जानते हैं, इतना पैसा खर्च करके एक इंसान बस बनाता है, यह पैसा मेहनत से और थोड़ी-थोड़ी बचत से बना, बस बनाने के बाद हर सरकारी आदमी के कारण, हर परेशानी भुगतनी पड़ती है। अब भी अनुबन्धित कराने में सरकार ही, हर रिक्यारमेन्ट पूरी होने पर भी अधिकारी रिश्वत लेते हंै, इस पर भी नेता की सिफारिस हो, तब पास होती है, इनसे सारी सरकार की बचत के अलावा, गैर सरकारी की सिरदर्द नहीं रहती। ऐसे अधिकारी जनता की सेवा और सरकार को बचत कहाँ दे सकते है? यह कर्मचारी को सही हैण्डल भी नहीं कर पाते, जिससे चारो तरफ से नुकसान होता है, जिसके कारण विभाग बदनाम और कमजोर होता है।
सकल पदार्थ है जग माही, कर्महीन नर पावत नाहीं।
हर परिवहन विभाग का अपना डीपो होता है और वर्कशाप होती है, जहाँ बस की रिपेयर या मेन्टिनेन्स होती है। भारत का यू0 पी0 रोडवेज बेहद बड़ी होने से स्टाफ भी बड़ा है, लेकिन काम बड़े तो करते ही नहीं, रूटिन वर्क ही करते रहे, तो निश्चित सारा स्टाफ, विभाग और जनता भी खुश रहे और समृद्धि की तरफ अग्रसर रहें। यू0 पी0 रोडवेज की बस की, समय पर मेन्टिनेन्स न होने के कारण, हमेशा बस पुराने कनस्तर की तरह से होती है। कभी-कभी ड्राईवर को यात्री समेत बस डीपो पर ले जाकर ठीक करानी पड़ती है, कभी-कभी ब्रेक आयल की कमी या समय पर मेन्टिनेन्स न होने पर ब्रेक आॅयल तक लीक कर जाता है और ड्राईवर को बिना ब्रेक के बस चलानी पड़ती है, कमी एक ही नहीं है। ड्राईवर जो केवल फिट बस को ही लेकर चलना चाहिये, वह केवल खुद को ड्राईवर ही समझकर, कैसी भी बस को ड्राईव करने जैसी, गलती काम करते हैं। खासतौर रिश्वत देकर भर्ती हुए हैं या उपर का पैसा कमाते हंै या सही ड्राईवर ही नहीं हंै। ड्राईवर को समझना चाहिये कि सैकड़ों यात्री लेकर चलता है, खुद और साथ में कन्डक्टर फिर लाखों की गाड़ी सबको बचाना, उसकी जिम्मेदारी है। यह ड्राईवर अगर फिट बस चलाता है, तो सब सुरक्षित होते हंै, सफर मजे से आसानी से पूरा होता है, डैमेज बस हर हाल में नुकसानदायक है। आज 5 मिनट और कुछ खर्चे में बस फिट रहेगी, कल यही बस घंटो में हजारों रूपये में भी ठीक नहीं होगी। ड्राईवर हो या कन्डक्टर, हर कर्मचारी अपने अधिकारी के आर्डर पर सही कर्मचारी बनता है। उसको परफैक्ट कर्मचारी बनाना, अधिकारी की कर्मठता की निशानी है।
जिस अधिकारी को ड्राईवर की कोताही का पता नहीं चलता, यह अधिकारी किसी लायक नहीं है और इस अधिकारी को इसका बड़ा अधिकारी देखे, यह ड्यूटी बड़े अधिकारी की है। वर्कशाप में सामान पूरा न होना या रिकार्ड समय में काम न होना, ड्राईवर को मजबूर कर देती है, बस को ऐसे ही या थोड़ी बहुत गलत हालत में भी बस डिपो से, बस बाहर निकाले। यहाँ स्टाफ की ज्यादती है। बस केवल ड्राईवर की इच्छा पर ही फिट होनी चाहिये कोई भी कैसा भी ड्राईवर, थोड़ी सी कमी वाली बस को भी क्यों चलायेगा? अधिकारी को उसकी मजबूरी पर ध्यान देना ही चाहिये या उसकी इस कमी पर उसे सजा का हकदार मानना चाहिये।
हर कर्मचारी को चाहिये कि वह आठ घंटे कर्मठता से काम करे और विश्वास के साथ काम करे। हर अधिकारी उस पर या हर कर्मचारी पर पूरा विश्वास करता है और विश्वास करके ही काम सौंपता है। आपकी कोताही पर आपको सजा मिल सकती है, वह भी नगद जुमार्ने के रूप में। अधिकारी को अपने अधिकारी होने का गर्व बेहद जरूरी है, अधिकारी, अधिकारी है, अधिकारी कर्मठ होता है, वह परमानेन्ट है, अधिकारी किसी से डरता नहीं, अपनी पगार ही खाता है, रिश्वत लेना तो दूर, किसी का दिया, रिश्वत का पानी भी नहीं पीता। यह अधिकारी किसी नेता के दबाव में नहीं रहता, डरता तो है ही नहीं। नेता ज्यादा से ज्यादा ट्रांसफर कर सकता है, लेकिन अधिकारी अगर शिकायत भी कर दे, तो नेता की सीट भी नहीं बच सकती, कर्मचारी की गलती माफ तो करता ही नहीं, यह अधिकारी यू0 पी0 रोडवेज जैसे विभाग का अधिकारी है और साठ साल के लिए बुक है आदि।
आज हमारे पास अधिकारीों की फौज होते हुए, नेता और मंत्री व प्रधानमंत्री के होते हुए घाटा हो, तो यह शर्म की बात है, यात्रियों को सुख नहीं, एक बार निभ सकता है, जबकि सबसे ज्यादा गलत है, लेकिन मान भी लिया जाये, तो हम जहाँ पगार ले रहे हंै, वह तो नुकसान में न जाये, यह सोच ही आपको, जनता के प्रति वफादार कर्मठ बना देगी और आपका विभाग खुद, अपने लिये ही नहीं, सारे विभाग के लिये फायदेमंद हो जायेगा, कर्मचारी निपुर्णता से काम करें, तो किसी भी बस में बेहद कम काम होगा।
परिवहन विभाग के उच्चाधिकारी गणों ने, हर नीति अपनायी, जिससे कर्मचारी कर्मठ रहे खासतौर से ड्राईवर कन्डक्टर के लिये और यात्री को भूला बैठे, कर्मचारी, यूनियन ने अपने हक की तरफ ध्यान दिया। केवल ड्राईवर कन्डक्टर को चेक करने के लिये अधिकारी रास्ते में ही बस रोककर टिकट चेक करने में ही, अनजाने में यात्रियों के बाधक बनने लगे। कन्डक्टर को टिकट काटने जैसा काम के लिये मशीन मुहैया कराई गई, कन्डक्टर की सीट बुक कर दी गई, जबकि उसका काम बस के यात्रियों को टिकट देना और ध्यान रखना भी है, इस के बावजूद कन्डक्टर की हेरा-फेरी रोक नहीं पाये, वहीं यात्री भी गलत सा महसूस करते हैं। यह चेकिंग वाले, बस की मेन्टिनेंस भी देखते, उनका टाइमिंग और बैठने वाली सवारी पर ध्यान देते, तो सब ठीक चलता।
हर अधिकारी पहले यात्री की सेवा पर ध्यान देकर, अपने कर्मचारी और ड्यूटी पर ध्यान देते, तोेे ज्यादा बेहतर ड्यूटी होती। बिना टिकट यात्री कोई है, तो उस पर जुर्माना क्यों? कन्डक्टर को टिकट देकर चलाना था या बस में सवारी का ध्यान रखना था, यात्री बस में चढ़ा और पीछे सीट पर पहुँचा, वहाँ से वह फिर टिकट के लिये कन्डक्टर के पास पहुँचना, यात्री के लिये परेशानी की बात हो सकती है। बस, कन्डक्टर की देखभाल में है। कन्डक्टर घूमने, टिकट देने की पगार लेता है, घूमकर टिकट देने में उसे आसानी है, उसे सवारी की गिनती भी करनी पड़ती है, सवारी उतारनी, चढ़ानी भी पड़ती है, बिना टिकट यात्री उसकी नजरों से कैसे बचा या क्यों बचा? यह बस, रेल नहीं है, कि बिना टिकट चढ़ गये और छुपकर बच गये या कन्डक्टर ने अधिकारी से शिकायत की हो। बस का मोटा किराया और बच्चों के किराये की छूट भी नहीं, यात्री को पैसा बचाने की कोशिश प्राकृतिक प्रवृत्ति है, लेकिन कन्डक्टर ऐसी सवारी का पूरा ध्यान रखता है, जहाँ अत्याचार जैसा काम हो, बस में कोई यात्री टिकट न लें, ऐसा मुमकिन नहीं, इसलिये जुर्माने का हकदार कन्डक्टर है। सवारी से टिकट पूछना, कहाँ जाना है यह पूछना कन्डक्टर की ड्यूटी है। सिटी बस की बात अलग है, नजदीक स्टोपेज होते है, हर स्टोपेज पर यात्री चढ़ता-उतरता रहता है। इस पर भी प्राईवेट, बस कन्डक्टर निपुड़ता से ड्यूटी कैसे कर पाता है? क्यांेकि यह कन्डक्टर बस का वफादार है, यात्री का सच्चा सेवक है, मालिक को कमाकर देना है, जिसे रोड टैक्स, अधिकारी व जनता की सेवा सब सिरदर्दी भुगतनी है। रोडवेज के नियम हैं, बस को केवल चलना है और यात्री के उपर रोब जमाना है, सरकार पर एहसान करना है। यह प्राईवेट बस अगर अनुबन्धित कर दी जाये, तो यह भी यात्री के लिये पेरशानी इकट्ठी करती है, बस प्राईवेट होते हुए भी केवल कन्डक्टर सरकारी है, केवल इतना अन्तर आते ही सेवा, अत्याचार में बदल जाता हैं, अगर ड्राईवर भी सरकारी हो, तो स्थिति का अन्दाजा, सब लगा सकते हैं और बस मालिक का नुकसान, कोई बचा नहीं सकता। अगर परिवहन विभाग में कमी देखी जाये, तो हर स्टेप पर कमी है और यह कमी केवल कर्मचारी और अधिकारी की गलत सोच के कारण है, यह सोच लेना कि हम सरकार के नौकर हैं, सच्चाई है लेकिन जनता के सेवक हैं, भूल जाते है और इसी कमी के कारण यात्री, विभाग और देश से गद्दारी हो जाती है या हो जायेगी और सबके लिये नुकसानदायक बन जाती है, अधिकारी जब भी जनता का सेवक खुद को मानता या जब तक समझता रहेगा, उसके विभाग में कमी होगी भी, तो यह कमी खत्म हो जायेगी। ऐसे अधिकारी की कर्मचारी वर्ग की, जनता वर्ग बेहद इज्जत करती हैं। इसका परिवार तक सुखी रहेगा।
परिवहन और परिवहन विभाग भी जनता के लिये ही बनाया गया है, इतने कर्मचारी और अधिकारी रखे गये, इसके बाद भी इसकी देखभाल और ज्यादा अच्छी तरह से हो, नेता को जिम्मेदार बनाया गया, ध्येय केवल जनता की अच्छी सेवा और सुन्दर विभाग दोनों ही मुख्य ध्येय था। बचत और इनकम, हर प्राणी की प्राकृतिक आदत है, जब तक वह अच्छा है, धर्म पर ध्यान है और सच्चा है, नौकर या कर्मचारी शानदार पोस्ट है, लेकिन प्रवृत्ति अच्छी हो तब, वरना नौकर या घटिया नौकर, केवल पगार का इच्छुक होता है उसे कोई मतलब मालिक से या मालिक के नुकसान से होता ही नहीं। वहाँ भी सरकारी नौकर की पदवी, तो इंसान में चार चाँद लगाने की बजाये जलील कमीना जनता के प्रति बना देती है और यही गलत सोच नौकर के परिवार और वंश तक का नाश कर देती है। सरकारी नौकर सच्चाई में 58 साल के लिये, जनता का सेवक है, बुक है, बड़ी कठोर परीक्षा पास की है, केवल अच्छा सेवक रहे इसलिये, कर्मचारी केवल 8 घंटे और अधिकारी 24 घंटे राउण्ड-द-क्लाॅक सेवक हैं। बेहद उँची पदवी है, इसी का दूसरा शब्द भक्त है, नौकर पगार लेता है, सेवक या भक्त पगार नहीं लेता, इसीलिये भगवान, रब, वाहेगुरू, अल्लाह का खास प्रेमी है, खास चीज है, खास ही खास है, नौकर कभी यह इज्जत या ओहदा पा ही नहीं सकता। बेहद ज्ञानी, बेहद समझदार इंसान ने उपभोक्ता को भगवान कहा है, सच्चाई में जनता किसी की भी नौकर नहीं है, यह सब एक-दूसरे के लिये प्रेम है, सरकारी नौकर को, वह सेवक मानता है, तो इज्जत करता है, उसका हर अत्याचार सहता है और बेहद बड़ा धर्म, अपने आप हो जाता है, आज जनता के नाम से, केवल जनता के सौजन्य से, हर विभाग, हर नेता, हर चीज है।
इस जनता पर अंग्रेजों ने अत्याचार किये। अब कहाँ हैं वह अंग्रेज जो शक्तिशाली बेहद लम्बी दूरी तक जिनकी बड़ी बादशाहत थी? लेकिन जनता है अब भी है आगे भी रहेगी। अत्याचार करने वाला कोई भी रह ही नहीं सकता। सरकारी नौकर या अधिकारी, सेवक माने तो हमेशा सेवक ही रहें, यही सच्चाई है।
अनगिनत सबूत है सरकारी कर्मचारी या अधिकारी, जो जनता पर अत्याचार कर रहे हैं। वह विभाग के प्रति अपने और अपने परिवार के प्रति, बेहद कठोर सजा भुगतते है, जो धीरे-धीरे बढ़ती ही जाती है और विभाग भी कमजोर होता है। आगे यह खुद अपने और अपने परिवार के नाश के कारण बनते हैं। ऐसे प्राणी को भगवान, रब, वाहेगुरू, गाॅड भी सजा से नहीं बचा सकता। बात परिवहन और परिवहन विभाग की चल रही है। इसके कर्मचारी अधिकारी और नेता रक्षक और सुधार के लिये रखे गये फिर भी कमी आयी और कमी बढ़ रही है। यह सब जब जनता के लिये बनी हैं, तो इसकी रक्षा जनता को भी करनी ही चाहिये देश की हर चीज जनता के लिये है और उसकी रक्षा करना देखभाल करने का, हक भी है, धर्म भी है। यह धर्म इसलिये और बड़ा हो जाता है, क्योंकि अनजाने में, हर विभाग और हर कर्मचारी, अधिकारी और नेता की सुरक्षा या बचत बढ़ जाती है। सुरक्षा और मजबूती बढ़ जाती है साथ ही सारे देश की जनता सम्बन्धी की तरफ अग्रसर होती है।
परिवहन विभाग की मजबूती से देश में सबके उपर अच्छा असर न पड़े ऐसा नामुमकिन है, इस बात से सब ही सहमत होंगे। तो जनता क्यों देखभाल न करे? वैसे तो हर कर्मचारी व अधिकारी को किसी भी अन्य विभाग की अपनी बिरादरी (कर्मचारी वर्ग) का होने के नाते, ध्यान रखना ही चाहिये लेकिन जब कोई न करे, न सोचे, तो जनता को हक है कि वह सोचे (सब एक-दूसरे से है एक-दूसरे के लिये हैं) इसके लिये अन्य कोई विभाग हो, जनता को केवल छोटी सी कमी नजर आते ही, विभाग के आॅफिस में व उपर अविलम्ब शिकायत करें। इसके बाद हर अधिकारी सोचने पर मजबूर हो जायेगा कोई न सुने, तब भी दूसरी बार फिर कोशिश करंे, आप धर्म कर रहे है, फिर झिझकना या मायूसी क्यों?
आप आवाज दीजिये, सब साथ है। साथ कोई न भी हो, हिम्मते मर्दा, मद्दे खुदा। लेकिन किसी की इज्जत कम नहीं करनी है। तीन गवाह चाहें परिवार के सदस्य हो, उसकी कापी अपने पास रखिये। सूचना विभाग भी है, वोटर/आधार न0 शिकायत पत्र में जरूर हो, आप कम पढ़े-लिखे हंै, तब भी मायूसी तो कभी नहीं। आप हिन्दुस्तानी हैं या देशवासी हैं, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड की पूरी जिन्दगी, पूजा इबादत कर सकते हंै, सुधार के लिये दो चार सुन्दर शिकायत क्यों नहीं कर सकते? आप गलत कर्मचारी को सुधार कर, खुद उसको, उसके परिवार व विभाग की ही नहीं, पूरे देश का भला कर रहे हंै, सब पर बड़ा उपकार, और एहसान कर रहे हंै, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड के प्राणी को बचा रहे हंै, रब का काम कर रहे हंै आप धन्य हंै या धन्य जरूर होंगे। केवल इन्टरनेट पर चैटिंग कर सकते हैं तो यह दुःख भी बाँटिये।
आप कुछ नहीं कर सकते तो अपने परिवार को कहे, कोई न कोई युक्ति जरूर निकलेगी, आप यह भी नहीं कर सकते। हमें आप शिकायत भेजे, हम आपके साथ माकूल कर्म, निश्चित करेंगे, आपको सन्तुष्टी होगी। गलती करने वाले को हम फाँसी चढ़ायेंगे, ऐसा मत समझिये, हम उसे सबके लायक बनायेंगे, यही काम आप कीजिये और सलाह दीजिये, आप चाहें सरकारी प्राणी हंै या नेता हैं या विद्यार्थीगण हंै या जनता हैं। कानून की इज्जत करें, सबको प्रेम करंे, प्रेम करेंगे तब ही, तो सबका सही सुधार सोच पायेंगे, सबका भला कर पायेंगे। परिवहन और परिवहन विभाग ने खुद जनता का हित देखते हुए, अपने विभाग के हर कर्मचारी और अधिकारी को पूरी तरह ध्यान में रख कर, बेहद सख्त नियम और कानून बनायें, जिससे कोई भी अनियमितता न हो, विजीलंेस बनाई, सजा में सस्पेंशन की सजा तक रखी, यही नहीं, हर बस में शिकायत रजिस्टर रखा, हर बस में सूचना लिखी, सूचना विभाग तक बनाया। लेकिन हर विभाग, हर कर्मचारी, अधिकारी, नेता और खुद जनता, शिथिलता की तरफ अग्रसर है। आप का उम्र पूरी हो गई है, और सब की उम्र तो बचाइये, ऐसी सोच बड़े की ही हो सकती है। जनता पर अत्याचार हो रहे हंै, इसी के कारण देश कमजोर हो रहा है और गधे पंजीरी खा रहे हैं। खेत की बाड़ ही, खेत को खा रही है। इसके लिये जागरूकता लानी हैं। कुछ नियम ऐसे बनाने पड़ेंगे, कि हर नियम अपने आप अमल में लाने जैसी बात हो, गलती करने वाला डरने लगे और गलती पकड़ने वाली इच्छा, हर प्राणी में खुद पे खुद पैदा हो। सरकार की इतनी मेहनत और खर्च करने के बाद भी कोई शिकायत न करे, इसका मतलब है, अत्याचार गद्दारी की हद तक बढ़ चुके हैं। संसार के सारे परिवहन विभाग सम्बन्धित प्राणी व कोई भी अन्य सब आमंत्रित हैं या कोई भी सरकारी या गैर सरकारी महानुभाव खुद या मिल कर, हर परिवहन विभाग की व अन्य हर अनियमिततायें दूर करें, या दूर करायें, सारा संसार सुनहरा बनाकर खुद को व सब को धन्य करें।
सुधार-सफाई के लिए विचार
01. छोटी से छोटी गलती पर भी गलती करने वाले से, नगद जुर्माना राजकोष में अविलम्ब जमा कराया जाये, उनके अनुयायी, साथी और उसके सीनियर को भी सजा का हकदार माना जाये और गलती करने वाले की, दूसरी गलती पर, 5 गुना जुर्माना, व तीसरी गलती पर दूसरी गलती का 10 गुना जुर्माना अविलम्ब राजकोष में जमा कराया जाये, गलती करने वाले के मातहत, साथी व अधिकारी भी दोषी करार दिये जाय क्यांेकि इन तीनांे के बिना या इनकी शह के बिना कोई गलती कर ही नहीं सकता, माना जाये, गलती करने वाले को कोई जेल या ट्रांसफर, रिर्वसन या कोई और सजा कोई नहीं, क्यांेकि यह जहाँ जायेगा वहाँ भी गद्दारी करेगा या इसकी जगह आने वाला गद्दारी में इसका भी बाप होगा।
02. शिकायतकत्र्ता को प्रोत्साहन जरूर मिलना चाहिये अधिकारी के पास शिकायत पहुँचाने में, गैर सरकारी का तो काम भी छुटता है, जिससे उसी का नहीं, पूरे देश का निश्चित नुकसान होता है, जो हर एक अधिकारी को समझना चाहिये। अतः उसे दिहाड़ी के रूप में अगले दिन से कम से कम 250/-दिन नगद दिये जाये, जब तक गलती करने वाले को सजा न दी जाये, शिकायतकर्ता को विश्वास दिलाया जाये कि शिकायत पत्र पर ईमानदारी से अमल हुआ है और सरकार जनता के व सच्चे के हित में ही है। देखा गया है कि गलती करने वाले को, सारा स्टाफ अपना समझ कर बचाने की पूरी कोशिश करता हैं, जबकि गलती करने वाला, किसी का कुछ नहीं होता, इसने गलती करके सारे सरकारी प्राणी की या सारी बिरादरी की नाक कटवा दी हैं, माना जाये।
03. अधिकारी को गलती पर सजा देने की सूचना या जुर्माना की खबर परिवार को या कम से कम नोमिनी को जरूर देनी चाहिये, जिससे नोमिनी या परिवार वाले कर्मचारी व अधिकारी को गलती न करने की सलाह दे, गलती से रोकें और नमकहरामी के खाने, पहनने से बचने की कोशिश करंे।
04. गलती की सजा देने के प्रति जो भी अवरोध करे, उसे सबसे पहले सजा का हकदार मान कर सजा दी जाये, वह भी कठोर जुर्माना। यह बिल्कुल सीधी देशद्रोहिता मानी जाये।
05. नुकसान चाहे जो हो, गलती पर सजा सबसे पहले दी जाये, अविलम्ब दी जाये, सब काम छोड़कर दी जाये, इसमें कोई छूट कभी नहीं। क्योंकि राजकोष में जमा होने वाला धन भविष्य में हर अनियमितता का इलाज साबित होगा।
06. शिकायतकर्ता को प्रोत्साहन जरूरी है, जिसमें ईनाम से लेकर सरकारी नौकरी तक हो, हमें कर्मठ व सच्चे कर्मचारी भी बढ़ाने हैं। जिससे हर इन्सान किसी भी गलती करने वाले के प्रति हिम्मत दिखा सके और आपका विभाग चमकने में अग्रसर हो। शिकायतकर्ता को मायूसी न होने पर, वह सब कुछ छोड़ उपर शिकायत कर सकता है। अपने, आप तो मरेगा ही, सवा लख (सरदार) हुआ, तो बहुत को मार कर मरेगा। गाँधी जैसा इन्सान गुस्सा होने पर, अंग्रेजों को खदेड़ सकता है, जिनके नियम भी बेहद पक्के थे। गाँधी का उस समय कोई साथी नहीं था। हिन्दुस्तानी की बात ही अलग है, उदाहरणस्वरूप अभी पीछे यू0 पी0 रोडवेज सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत) में कन्डक्टर की भर्ती खुली और गलत अधिकारी की यूनिटी और नेताओं की छत्र-छाया में सबने साथ मिलकर पैसा खाने की स्कीम बनायी और सफलता से पूरी हुई, 30 और 35 हजार की रिश्वत से टेम्परेरी कन्डक्टर भर्ती किये गये। आरक्षण पर बेहद अमल किया गया। गाँव के भोले-भाले हरिजन खासतौर से, पता नहीं कैसे-कैसे रिश्वत के पैसे इकट्ठे करके ड्यूटी पर पहुँच गये और जो रिश्वत लेकर लगा है, वो सब तीसरे दिन ही पैसा इकट्ठा करने में लग गये। चारों तरफ यात्री की कमी नहीं है। सब काम कानून के तहत बड़ी सफाई से किया गया, ध्यान दिया जाये, तो रिश्वत देना खासतौर से बेहद फायदेमंद है, गैर सरकारी का कोई भी काम, पूरे देश बल्की पूरी सृष्टि के लिये फायदेमंद होता है, गैर सरकारी का 90 प्रतिशत पैसा अपनी व अपने बच्चों की पेट की रोटी काटकर बचाया हुआ होता है और जो पगार ले रहा है वह गद्दारी करके, ऐसा धन खाये तो वह बच ही नहीं सकता, चाहें जो हो। आप सब ने मशीन मोटर गाड़ी सब देखी है स्टार्ट नहीं होती या स्पीड नहीं पकड़ती या कोई फसल पकने में देर कर रही हैं, पेड़-पोधे अपनी स्पीड से पनप नहीं रहे है, तो कोई किसान खाद देता है, जिससे तेजी आये और फल ज्यादा हो, कोई मशीन में तेल डालता है, जल्द रवा हो मोटर ट्रक, बस में धक्का लगाता है, जिससे वह स्टार्ट हो। यह सब सुस्ती, कमजोरी या बेकारी का इलाज है, सरकारी प्राणी काम करे, ध्येय है काम लेना, बचत करना, समय बचाना जो सबसे कीमती है एक नौकर पगार लेने वाला प्राणी काम करने के लिये रखा गया, मोटी पगार, हर सुविधा फिर भी काम के मामले में फिस्स. . . उस पर सजा भी नहीं। बिगड़ी मशीन या इन्सान ठीक कराने में या करने में मोटा खर्च, समय ज्यादा, मेहनत ज्यादा लगती ही लगती है। तेल, धक्का इज्जन, गरम करना आदि एक नौकर को रिश्वत देना बराबर है। एक गैर सरकारी ने रिश्वत देकर महीनों में होने वाला काम घंटांे में कराया सबकी मेहनत और सबसे कीमती समय बचाया, यह उसका जुगाड़, कर्म सबको शिक्षा है, जो मशीन या नौकर काम का ही नहीं था, उसे चलाया या उससे काम लिया। छुपे रूप में, हर नेता की, हर अधिकारी की, हर विभाग की नाक काट दी। नाक काटने वाले की गलती कहाँ हैं? आप पगार लेते हंै, मजबूत व सक्षम हैं, आपने नाक बचाई क्यों नहीं, ऐसे इंसान को जिसने अविलम्ब काम न करके सबकी नाक कटवाई उसे सजा क्यों नहीं दी? आपके पास कानून है, आपका कुत्ता दूसरे से बिस्कुट खा ले या आपका बच्चा दूसरे से कोई चीज भी ले ले, तो आप बर्दास्त नहीं करते। आपका कर्मचारी मजबूरी से रिश्वत ले ले, तो आप उसे रोकने की बजाय रिश्वत बाँट कर हजम करने की कोशिश करते हैं। एक कुत्ता या आपका बच्चा केवल आपका है, लेकिन रिश्वत लेने वाला, सारे विभाग का, आपके देश का, किसी परिवार का है। कुत्ते को आप देवता बनाना चाहते हंै। रिश्वत लेने वाले का, आप जन्म खराब होते देखकर चुप हंै या खुद का जन्म खराब करने की कोशिश करते हंै। रिश्वत देने वाला आजाद है, उसने निश्चित छोटी सी गलती की है। एक सरकारी वफादार को खराब करने की कोशिश जरूर की है, लेकिन आपकी इतनी बड़ी यूनिटी, कानून, उसके घर वाले व पूरा समाज उसे रोक नहीं पाया, तो खराब करने वाले की गलती है ही नहीं, शर्म तो आपको भी आनी चाहिये। रिश्वत लेने वाला गलती कर रहा है और उसकी एक गलती की सजा, उसका परिवार और सारा समाज भुगत रहा है। आज सब एक-एक दाना, पेट काट कर, बेहद मेहनत करके बचा रहे हंै और हर बनाई हुई फैक्ट्री, इन नौकरों से परेशान है। यह सजा कम है और बड़ी सजा यह है कि आप देख रहे हंै और आपके अपने अत्याचार सह रहे हंै।
टाॅपिक चल रहा था रोडवेज के कन्डक्टर की भर्ती का, हर इन्सान खुश था, अधिकारी व नेता ने पैसे मोटे कमाये थे इसलिये, जनता खुश थी नौकरी मिली सुविधा मिली इसलिये, यात्री खुश थे अच्छी जल्दी सेवा हो रही है इसलिये। लेकिन दो सप्ताह में सब की खुशी धुमिल पड़ने लगी, नयी भर्ती की रिश्वत खुलने लगी, नौकरी जाने की नौबत आने लगी नेता और अधिकारी बहाने बनाने लगे कि हमने टेम्परेरी पोस्ट दी थी। विभाग में गलती होने से स्टाफ का काम बढ़ने लगा और कर्मचारी सबको बुरा कहने लगे। किसी ने आरक्षण को मानकर कहा कि आरक्षण के कारण सस्ते में काम हुआ, अब भुगतो। जिसने रिश्वत ली या लेन वाले की सहायता की, वह कन्डक्टर यूनिटी को समझाने में लगे, कि कम से कम ही खा लो। इधर कन्डक्टर कमाता था, ड्राईवर का फ्री का हिस्सा देने में वह भी दुःखी था और 6 माह गुजरते-गुजरते सब पिछले जैसा चलने लगा, कुछ सस्पंेड, कुछ की सेवा की जरूरत नहीं कह कर, हटा दिये और कुछ ने कहा सब ऐसे ही चल रहा है सन्तुष्ट हो गये। सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत) यू0 पी0 रोडवेज, हर माह कई लाख का घाटा लगातार सालों से दे रही है, प्राईवेट बस वाले हाईकोर्ट जजों को, इनकी गद्दारी भी नहीं दिखा सके और केस हारनेे से हजारों परिवार परेशान है। केवल रोडवेज अधिकारी अन्य अधिकारी के गलत सहयोग देने के कारण, कानून होते हुए, कानून के द्वारा ही परेशान किया जा रहा है, नुकसान बर्दास्त किया जा रहा है। अधिकारी, नेता, मीडिया सब देख रहे हैं, वैसे जिन्हांेने विभाग चलाने की कसमंे खाई थी और जनता सब देख रही है भुगत रही है। डी. एम. जो शहर का मालिक होने की पगार ले रहे हंै, कमिश्नर डी. एम. से बड़ा है, सब मिलकर 26 जनवरी, 15 अगस्त मना रहे हैं, दिवाली, होली, ईद, गुरूपर्व मना रहे हैं, बड़ा दिन मना रहे हंै, जनता हर त्यौहार मना रही है, जगराते, और पूजा पाठ ईबादत कर रहे हैं, जबकि महँगाई बढ़ रही है, हर व्यापार परेशानी से चलाया जा रहा है, हर नेता, हर सरकारी प्राणी, हर अनियमितता लगातार बढ़ा रहे हंै।
हमें परिवहन विभाग में ऐसे नियम बनाने ही चाहिये, जिससे हमें शिकायत बुक न रखकर, हर एक इंसान को शिकायत करने पर मजबूर कर दें, वह शिकायत कर्मचारी या अधिकारी को बुरा कहलवाने के लिये नहीं चाहिये, गाली खिलाने या सजा दिलाने के लिये नहीं चाहिये होना यह चाहिये युक्ति ऐसी होनी चाहिये, कि गलती करने वाला डरने लगे कि मेरा साथी या अनुयायी भी न देख लें, अधिकारी को पता न चले और गलती हो भी जाये, तो गलती करने वाला 50/-देकर कहे, साहब मुझसे गलती हो गई, आगे नहीं होगी जुर्माना जमा कीजिये। देखिये आप कितने खुश होंगे, काम की स्पीड कितनी बढ़ेगी, प्यार कितना बढ़ेगा। आपका प्रोफिट कितना बढ़ेगा। हर गलत इंसान कितना सुधरेगा आप सोच भी नहीं पायंेगे। हर अनियमितता अपने आप में सिमट कर खुद खत्म हो जायेगी।
हमें हर नियम, कानून, जनता के हित में या पूरी मानवता के लिये बनाने हैं, ऐसे नियम बनते ही या सोचते ही, विभाग के कर्मचारी और अधिकारी की सुरक्षा और सुविधा के नियम, अपने आप बन जायेंगे सोचना भी नहीं पड़ेगा और तब होगा परिवहन और परिवहन विभाग जिन्दाबाद ”मेरा देश महान“ या हमें सच्चे देशवासी होने पर गर्व है। जन हिताये सर्व हिताये और सब कहेंगे -मेरा देश महान।
07. सिटी बस में बिना टिकट यात्री में 50/-जुर्माना जायज है, लेकिन लम्बे रूट की बस में, अगर यात्री बिना टिकट है, तो यात्री दोषी नहीं है, गलती कन्डक्टर की मानी जाये जुर्माना कन्डक्टर पर ही किया जाये, कोई डाँट-फटकार या बेइज्जती नहीं, कभी नहीं।
08. रोडवेज अगर नुकसान दिखा रही है, तो सारे कर्मचारी, सारे अधिकारी और नेता दोषी हैं, इन पर जुर्माना किया जाये, या रोडवेज बन्द की जाये, प्राईवेट सर्विस को वरीयता दी जाये, उन पर टैक्स कम किया जाये, तब होगी जनता की सही सेवा और सरकार की वफादारी।
09. रोडवेज का हर कर्मचारी व अधिकारी अपनी कर्मशाला से दूर-दूर तक रहते है जिसमें नेता भी हैं, हर माह मोटी पगार, हर सुविधा लेते हैं। वफादारी के लिए 60 साल के लिए बुक हैं। शहर में कर्मशाला तक सुबह-शाम दिन आते-जाते हैं किसी किस्म की अनियमितता देखकर माह में दो शिकायत करने की ड्यूटी बनाई जाये। परिवार का कोई प्राणी करे या खुद करें, वरना 200/-हर माह सैलरी से कटे या खुद जमा करें। याद रहे सबको प्रेम करना है, शिकायत से सुधार-सफाई रखने का ध्येय है जिससे आप प्रेम करते हैं उसे आप गुणवान बना रहें हैं। उसका वंश और नस्ल सुधार रहें हैं।
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