Thursday, April 16, 2020

खेल और क्रिकेट

खेल और क्रिकेट

सृष्टि के बनते ही 84 लाख योनि बनीं और अन्य जीव-निर्जीव भी हुए जिसमें सारे ग्रह, सौर मण्डल तक हैं। निश्चित ही खेल जैसा कर्म शुरू से ही रहा है। खेल से अनेक फायदे भी हैं। जीव ही नहीं, निर्जीव भी ध्यान दें, तो खेलते-कूदते नजर आते हैं। आकाश में बादल, पहाड़ों पर पानी, समुद्र का पानी, हवा, पेड़-पौधे, पशुु-पक्षी, हर जीव-जन्तु, खेलते या अठखेलियाँ करते महसूस होते नजर आते हैं। मनुष्य में यह नई उम्र की व तंदरूस्त शरीर की और तेज दिमाग की पहचान है। मनुष्य में तो बूढ़े-बूढ़़े, जिनके वश में खाना-चलना तक नहीं होता, वह ताश खेलते हुए, चैपड़, शतरंज खेलते नजर आते हैं। खेल से कोई जीव बचा हो, ऐसा नामुमकिन है। बड़ों ने यह देखते और समझते हुए, मनुष्य में खेलों का वर्गीकरण किया। पुरूष के और नारी के खेल और काम, उन्हीं के मुताबिक रखे गये। 
खेल और काम ही नहीं, पहनावा, बोलना, आचार-विचार उन्हीं के मुताबिक रखे, जैसे पुरूष के लिए, कबड्डी, गुल्ली डण्डा और नारी के लिए गोटी, रस्सी-कूद झूला आदि। खेलों से शरीर तंदरूस्त रहता है, स्टेमिना बढ़ता है, सोच बढ़ती है। यही नहीं जानवर, पक्षियों में तो खेल-कूद से शिकार करना, दुश्मन से बचना और अनेक खूबियाँ निश्चित आती हैं। इसी प्रकार खेल से, मनुष्य में बेहद गुण बढ़ते हैं, यहाँ तक कि बीमारी का इलाज तक बैठे-बिठाये बिना दवा-परहेज के होता देखा गया है। कुछ खेल ऐसे भी हैं, जो नारी पुरूष दोनों में खेले जाते हैं, लेकिन वह एक निश्चित उम्र तक ही चल पाते हैं, जैसे नट, योगा या सर्कस जैसे खेल आदि। लेकिन ध्यान दें, तो यह नियम मनुष्य में ही नहीं, अन्य जीव-जन्तुओं में भी निश्चित है। यह सृष्टि के शुरू के समय से, सृष्टि रहने तक निश्चित रहेगा। खेलों की महिमा जितनी की जाये, थोड़ी है। इतिहास गवाह है, धर्मग्रंथ गवाह हैं, खेल-कूद के चर्चे महापुरूष, देवी-देवता, पीर-पैगम्बर तक के हैं। पेड़-पौधों को लहराते हिलते देखें, तो आभास होता हैं, जैसे खेल रहे हैं और खुश हैं। राजा-महाराजा, आखेट खेल से शिकार करना व मनोरंजन किया करते थे। नवदम्पत्ति मनुष्य में शादी के समय, कंगना खेल, अंगूठी पकड़ खेल-खेलते और ख्ेालाते हैं। खेल में साथी, उम्र, जाति, कोई मायने नहीं रखती। बच्चा-बूढ़ा खेलते हैं। एक बूढ़ा घोड़ा बनता है, बच्चा सवार बनता है, बच्चा-बच्चों में जानवर, कुत्ता, बिल्ली एक-दूसरे के साथ खेलते हैं। मनुष्य में पुरूष और घोड़ा या कुत्ता और पुरूष, घोड़ा और कुत्ता, खेलते आम मिलते हैं। मनुष्य ने लालचवश या नयापन दिखाने के लिए नारी-पुरूष के खेल मिलाये या पुरूष के खेल में नारी, नारी के खेल में पुरूषों, के खेलने के नियम बनायें, लेकिन एक उम्र के बाद, यह छूट जाते हैं या मजबूरी में छो्रड़ने पड़ते हैं, जैसे कुश्ती, क्रिकेट, हाॅकी, फुटबाल और अनेक जिमनास्टिक।
खेलों की इतनी किस्म है कि गिनना मुश्किल जरूर है। खिलाड़ी के दिमाग की उपज है इसलिये गिनना नामुमकिन है। हर मनुष्य का खेल, उसके दिमाग की देन है।
कुछ बच्चों ने पढ़ाई को खेल के रूप में लिया और वह बेहद ऊँचे बढ़े, जिसके पास पढ़ाई मंे कोई सहायक ही नहीं था। हर जगह, हर देश के अपने-अपने खेल हैं। आदिवासी के खेल अलग हैं। खेल से अनेक फायदे हैं, यह निश्चित है। लेकिन खेल से नुकसान भी बेहद हैं, जैसे कुछ खेल ऐसे हैं, कि जान की बाजी लगानी पड़ती है या जान की बाजी लग जाती है, जैसे बाईक रेस या कार रेस, फ्री स्टाइल कुश्ती, उँचाई से रस्सी द्वारा नीचे कूदना, मौत के कुँए में करतब दिखाना, स्टंट दिखाना।
खेल से सबसे बड़ा नुकसान तब होता है, जब खेल की बाजी छोड़कर ईनाम या पैसे के लिये खेला जाता है। खेल-खेलने से नुकसान, तो हो सकते हैं, लेकिन खेल, देखने से बेहद ज्यादा नुकसान होता है। कभी-कभी यह नुकसान पूरा भी नहीं किया जा सकता। जन्म और वंश तक खराब होते देखे गये हैं। खेल-खेलना बहुत छोटा और अच्छा नशा है, लेकिन खेल देखना, बेहद बुरा, बेहद नुकसानदायक नशा है, जिसे करने वाले से ज्यादा कष्ट आस-पास, घर-परिवार वाले उठाते हंै। खेल-खेलने के लिये स्टेमिना मजबूत चाहिये या खेलते-खेलते स्टेमिना मजबूत हो जाता है। इसके लिये खेल की प्रेक्टिस और कसरत लगातार चाहिये, वह भी मालिश (तेल मालिश) के साथ।
खेल की अति हो तो खेलने वाले को अपने टारगेट में नुकसान उठाना पड़ता है, जैसे लगभग 25 या 25 साल तक की उम्र खासतौर से पढ़ाई के लिये होती है। ज्ञान के लिये होती है। वह भी अगर ठीक स्थिति है तो, अगर गरीब घर का है, तो पढ़ाई और माँ-बाप का साथ देने की उम्र होती है और ऐसा कोई सबूत नहीं है, कि खेल की रूचि रखने वाला बच्चा पढ़ाई से या टाॅप क्लास पढ़ाई से वंचित न हो और देखने की रूचि रखने वाला, तो बस ज्यादा से ज्यादा पास ही हो सकता है। अगर खेल देखने की आदत नहीं छोड़ी, तो पढ़ाई जरूर छोड़नी पड़ेगी या पढ़ाई के गुण नहीं आते। इसी प्रकार जिम में जाने वाला बच्चा, बिना तेल मालिश के तंदरूस्त रह ही नहीं सकता।
इसी प्रकार बूढ़ा इंसान खेल में रूचि लेता है, तो उसके परिवार में बच्चे या बड़े निश्चित गड़बड़ाते हंै, क्योंकि यह उम्र ऐसी जिम्मेदारी की पोस्ट के समान है, जैसे एक अच्छे स्तर का आदमी प्रमोशन लेते-लेते, सर्वोच्च अधिकारी बन गया हो। जिसकी जिम्मेदारी पूरे विभाग की देखभाल की होती है, ऐेसे ही बूढ़े की जिम्मेदारी, पूरे परिवार की होती है। यह उम्र अगर एक बच्चे में एक गुण भी भर दे या छोटों के एक अवगुण भी खत्म कर दें, तो यह विभाग या परिवार आने वाले समय में निश्चित समृद्ध हो जायेगा। यह बूढ़ा ताश खेलता है, बस घर की, बाहर की, हर अनियमितता देखता रहता है और ताश खेलता है और क्रिकेट, तो हर छोटे-बड़े, सब कुछ छोड़कर देखते हैं, सरकारी प्राणी, गैर सरकारी प्राणी, नेता और विद्यार्थीगण। घर, समाज, विभाग, देश कहीं जाये, बस क्रिकेट का खेल देखने में खो जाते हैं।
हर जगह, हर किस्म के खेल लोगों की अपनी इच्छा के होते थे। नबाब नौटंकी, नाटक, गाने-बजाने और औरतों से खेलना, जैसे खेल-खेलते थे। नाटक जैसा और पिक्चर को भी खेल का नाम दिया गया। स्वांग के खेल, नाटक का खेल भी थे, जिनमें सबसे कम नुकसानदायक, खेल केवल पिक्चर ही थे, लेकिन लाखों-करोड़ांे बच्चे, नारी, पुरूष, पिक्चर से बिगड़े। जो खेल शरीर के लिये और कम खर्च के हो, वह फायदेमंद अधिकतर होते थे। लेकिन खेल देखने वाला हर हाल में नुकसान में रहता है।
खेल केवल मनोरंजन के लिये देखा जाता है और इस समय दूरदर्शन के कारण, हर समय कोई न कोई, खेल चलता रहता है, साथ ही अधिकतर कोई भी प्राणी, केवल एक खेल-देखने का शौकीन नहीं होता और दूरदर्शन पर समय निश्चित नहीं होता और इसलिए हर कर्मठ इंसान की कर्मठता बाधित होती है।
पहले खेल, तमाशे, नाटक, नौटकी का निश्चित समय, शाम के बाद रात को होता था और हर इंसान अपने काम से मुक्त होकर मनोरंजन करता था, लेकिन अगले दिन उस मनोरंजन के कारण, अपना वह काम उस निपुणता से नहीं कर पाता था, क्योंकि रात को आराम नहीं मिलता था। पिक्चर जैसा खेल केवल 3 घंटे का रखा गया और पहले तीन शो ही चलते थे, जिससे देखने वाला मनोरंजन और काम दोनांे कर सकता था और नुकसान कम था। इसमें भी लोगों ने नकल करने की कोशिश की और सारा समाज दूषित होने लगा।
खेलों मंे चर्चित खेल, क्रिकेट है, जिसके अधिकतर बच्चे ओर लोग दिवाने हैं। भारत में अंग्रेजों का राज रहा और उनकी नकल से लोग खुश होते हैं, उनके पहनावे, बोलचाल, खाने की नकल के साथ-साथ क्रिकेट उनके खेल का शौक भी लगा और खर्चीला व समय ज्यादा खाने वाले खेल का, आज हर बच्चा शौकिन है। वह गरीब भी है, तो जिद करके क्रिकेट का सामान सारे दोस्त मिलकर खरीदते हैं और अपनी ड्यूटी से विचलित रहते हैं। इस समय तो गाँव के गरीब और अनजान बच्चे भी, इस और तेजी से झुक रहे हैं और यही नहीं, क्रिकेट देखने के बहाने रेडियो, टी. वी. अब तो मोबाइल में लोग पैसा और कीमती समय खर्च करते रहते हंै। देश भारत हो या अमेरीका, यह नयी उम्र या नासमझ लोग, अपना काम छोड़कर, क्रिकेट मैच देखते हंै। बड़े लोग इस पर मोटा जुआ खेलते हैं, जो और भी गलत है। इन्हीं लोगों से पूछा जाये, कि दूसरा कोई पढ़ाई छोड़कर, काम आॅफिस का पेन्डिंग रख के, नारी अपने घर का काम छोड़कर, मैच देखे तो वह खुद कहेंगे गलत है। एक खिलाड़ी बेहद मेहनत करता है, इससे जुड़ा हर इंसान मोटी इनकम कमाता है। दूरदर्शन बेहद कमाता है और दर्शक अपना सब कुछ का नुकसान करता है या सब कुछ गँवाता है।
भारत हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई का देश है। पाकिस्तान के खिलाड़ी को देखकर भारतीय आपस मंे लड़ पड़ते थे, जो बेहद गलत है। खिलाड़ी का पैसा कमाना, नियम है और देखने वालों का केवल बहस करना, समय खराब करना क्या उचित है? गरीब माँ-बाप के बच्चे, अगर अपने काम को भी खेल मान लें या मनोरंजन के समय एक, दो, तीन घंटे भी खेलें या देखें, जो कि कभी-कभी समय से आता है, तो ठीक हो सकता है, लेकिन कैसे भी समय खराब करना उचित है ही नहीं। इन पाठकों में अलग-अलग खेल देखने के शौकिन निश्चित गलत महसूस कर रहे होंगे क्योंकि नौकरी के लिये इंटरव्यू के समय खेल सम्बन्धी सवाल भी पूछे जाते हैं, जिससे लड़के का टैलेन्ट नजर आता है, यह बातें किताबों से ही सीखी जाती है, रहा सवाल गलत लगने का, इसके लिये अगर शराबी से कहा जाये कि शराब गलत चीज है, तो वह जानते हुए, कि शराब गलत है, लाखों तरीके से समझा देगा कि शराब गलत है ही नहीं, कहना यह है कि जो भविष्य को खराब करे या भविष्य में छोड़ना पड़े वह ठीक हो ही नहीं सकता।
क्रिकेट दर्शक के माँ-बाप या बड़ों से पूछा जाये, तो वह इसे गलत ही बतायेंगे। हर दर्शक को चाहिये कि माँ-बाप की इच्छा, अपनी ड्यूटी की कर्मठता, बड़ों की सलाह का ध्यान रखें और ऐसा कुछ न करे कि उनके बड़ों को या सलाहकार के दिल का ठेस न लगे।
आज हमारा परिवार, हमारा देश, हर कठिनाई से जूझ रहा है। महँगाई बढ़ रही है, हर आॅफिस में अनियमितता आ रही है, हर नेता नुकसान कर रहे हैं, चुनाव जैसी प्रक्रिया में बेहद नुकसान होता है, हर नेता नुकसान कर रहे हैं, इस पर खेल देख कर समय और पैसे का नुकसान तो, कर ही रहे हैं, अपनी आदत भी खराब कर रहे हैं, जिसका हर छोटे पर बुरा प्रभाव भी पड़ रहा है। बड़ों की आज्ञा का उल्लंघन करके, अपने भविष्य का नुकसान कर रहे हैं, यही नहीं धीरे-धीरे आज्ञा का उल्लंघन करने की आदत डाल रहे हंै। हर खेल-देखने वाले, नई उम्र के बच्चों को सोचना चाहिये, एक दिन वह भी माँ-बाप बनेंगे और उनके बच्चे ऐसा करेंगे, तो उन्हें कैसा लगेगा। क्रिकेट प्लेयर से सीखना ही चाहिए, मेहनत करना, पढ़ाई हो, नौकरी हो, खेत का काम हो, बिजनेस हो, हर एक का, एक निश्चित काम है, उस पर प्लेयर जैसी मेहनत करे, तो क्रिकेटर से ज्यादा धनवान और फेमस निश्चित होंगे और सबका उद्धार होगा। वैसे थोड़ी देर का खेलना या मनोरंजन, करने वाले काम में रूचि पैदा कर देता हैं, लेकिन नादान या बच्चा यह बात नहीं जानता और खेल नुकसानदायक हो जाता हैं, क्योंकि खेल का समय निश्चित नहीं रह पाता।
आप सब को, इस कमी को खत्म करना ही चाहिये सरकार या दूरदर्शन ऐसा कुछ नहीं करेगी, जिससे उनकी कमाई कम हो, यह हर इंसान जानता है कि ऐसी गलत अनियमित लोगों से सरकार को मोटी बचत है और गैर सरकारी को, हर तरीके से भुगतना पड़ता हैं, यह सब तो दर्शकों को ही समझना और बचना चाहिये संसार के हर देश को चाहिये कि मिल कर या बडे़-बड़े, सब देशों को चाहिये कि पहले वह देखें कि उस देश की स्थति खराब, तो नहीं हैं या वहाँ पर सरकारी विभागों में अनियमितता तो नहीं हैं, इसके बाद वहाँ पर खेलों का आयोजन करें, हर मेजबान झूठी शान में आकर मेहमान को निमंत्रण दे देता हैं और फिर उसका पूरा परिवार भुगतता है, जिस देश की स्थिति पहले से खराब है, जनता पहले से परेशान हो, वहाँ का निमंत्रण स्वीकार करना, वहाँ की हर अनियमितता, आकाश में पहुँचाना है और समझदार व खानदानी मेहमान जान कर ऐसा कर ही नहीं सकता। आप सब सक्षम हैं, आपकी दो घन्टे की तहकीकात सब कुछ खुलासा कर देगी, यह आपका, हर देश ही नहीं पूरे संसार पर एहसान होगा, जनता दुआएँ देगी, क्योंकि अधिकतर देश, नौकर और नेता के हाथ में हैं और यह दोनांे अपनी पगार से मतलब रखते हैं, देश कहीं भी जाये, इसमें नेता खासतौर से, केवल 5 साल की उमर होने के कारण, देश के बारे में सोचने में अस्मर्थ होता हैं क्यांेकि वह अपने 5 साल पूरे करने के चक्कर में, हर अनियमितता बढ़ती हुई देखता रहता हैं। इसके लिये कुछ नियम बनाने होंगे और उन पर सख्ती से अमल करना होगा।

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. दर्शक किसी न किसी का बेटा है। माँ-बाप को चाहिये कि बचपन से ही उस बच्चे को आज्ञाकारी रखें, बच्चे को धीरे-धीरे समझदार बनायें। पुरूष वर्ग ड्यूटी या अपने काम पर बिजी रहता है और यह ड्यूटी बच्चे की माँ की होती है। पहला गुरू माँ ही होती है जो बच्चे को बाप की आज्ञा या बड़ों की आज्ञा में रहना सिखा सकती है। बेहद आसान है। प्रातः उठाते समय प्यार से उठाना। यह कहना, तेरे पापा उठ गये हैं। तू भी उठ उनके और बड़ों के पैर छू। ऐसा ही शाम को सोने से पहले आदत डाल दें तो 80 प्रतिशत बच्चा बड़ा होकर आज्ञाकारी रहता है। सलाम, सत् श्री अकाल, गुड् मार्निग बहुत कुछ सिखाते हैं। अगर बच्चे की माँ भी ऐसा ही करती रहे, तो शक ही नहीं कि बच्चा आज्ञाकारी न बनें यह धर्म शादी के बाद ही नारी करती है। लेकिन साल दो साल बाद जानकर छोड़ देती है, जो पाप है ओैर यह पाप ही बच्चे को बड़ों का आज्ञाकारी नहीं रहने देते और माँ-बाप पूरा जन्म भुगतते हैं।
02. बच्चा बड़ा हो जाये तो निश्चित ही उसे कन्ट्रोल करना बेहद मुश्किल है। जो बचपन से खराब हुआ, इसमंे बुआ, चाचा, ताऊ, बाबा, दादी आदि का गलत प्यार का नतीजा होता है, हाथ होता हैं। हर बच्चे को माँ-बाप और बड़ों की कदर करना सीखना, हर एक की ड्यूटी है, धर्म है, देखा गया है कि बच्चा या बेटा बाहर वालों की बात आसानी से मानता है, इसलिये सबको ध्यान रखना ही चाहिये कि कोई बच्चे की बेकदरी, तो नहीं कर रहा है।
03. बड़ा होने पर लड़के को खासतौर से बाप को प्यार और सख्ती के मिश्रण से साम, दाम, दण्ड, भेद नीति से धीरे-धीरे दूर रहकर, पास आकर समझाना चाहिये यह काम उस समय करें जब अकेले हांे या अच्छे धर्म में चलने वाले समझदार सहयोगी हों। वैसे यह बेहद मुश्किल काम है क्योंकि इस समय, पत्नी खुद धर्म से विचलित होती जाती है और परिवार का हर सदस्य, केवल पगार के कारण, आप से मिले हुए होते हैं। यही पत्नी शादी होते ही सबसे ज्यादा शुभचिन्तक, आज्ञाकारी थी, लेकिन अब नहीं क्योंकि यह बच्चे पालना नहीं जानती थी, जिसके कारण, अब बच्चे आज्ञाकारी नहीं हंै।
04. बच्चे नारी की देन हैं। पुरूष की किस्मत है। लेकिन आज्ञाकारी बच्चे नारी की मेहनत, समझदारी और वफादारी का ही सबूत होता है। नारी अधिकतर आज्ञाकारी, तो होती है लेकिन शादी होने पर एक उम्र के बाद, यही नारी पति के अलावा लगभग सब प्राणियों के कारण, विचलित होती चली जाती है। उल्लेखनीय बात यह है, कि हर कमी नारी में, किसी नारी के द्वारा ही आती है और इस विज्ञान के जमाने में पढ़ाई-लिखाई, आजादी या ज्यादा प्यार दूरदर्शन, अखबार, बड़ी बहन, माँ उसके परिवार की पूरी नारी जाति फिर ससुराल की नारी जाति के कारण, हर नारी में कमी निश्चित आती है और पुरूष को भविष्य में बच्चों के रूप में उसे भुगतनी पड़ती है। समझदार और अच्छे माँ, बाप, बहु, बेटांे के बीच में कभी नहीं आते, कोई अपनी रिक्वायरमेंट नहीं रखते। पति-पत्नी अपने बच्चों की शादी के बाद लगभग नजदीक रहते हुए दूर रहते हैं, यह धर्म है, लेकिन लड़के की पत्नी पर क्या प्रभाव पड़ता है? यह बचपन के सीखे हुए और माँ के गुणों के अनुसार होता है, जिससे सबसे बड़ी कमी, पूजा पाठ से आती है क्योंकि यह नई उम्र की बहू, सही पूजा पाठ, इबादत ही नहीं जानती, जिसके कारण या सब कारणों को मिलाकर, इस नये दम्पति को बच्चों के रूप में फल मिलता है, इसका एक ही विकल्प है कि नारी, अपने बच्चों को बचपन से ही पैर छूना और हर बड़े की कद्र करना सिखाये, भूल से भी अपने पति की कोई बेकदरी, इस बच्चे के सामने ना करें, चाहे बच्चा अन्जान ही क्यों न हों? यही नहीं बच्चे से, तो उसके बाप की कोई बुराई कभी न करें, यह छोटी भूल, हर नारी बच्चे के होश सम्भालते ही हमेशा करती है, जैसे तेरा बाप, तो ऐसा ही है या गलत है, उसमें यह बुराई है, आदि। हर छोटी सी नारी की छोटी सी गलती अपने प्रति या अपने पति के प्रति गलत आचरण, एक देवता समान बच्चे को माँ-बाप का आज्ञाकारी बनने से निश्चित रोक देती हैं।
05. हर बच्चा भगवान का रूप निश्चित होता है। अपने-अपने धर्म का भण्डार होता है। लेकिन उसकी माँ की कमी बच्चे को भविष्य में, हर धर्म से दूर कर देती है। भगवान की श्रेणी से धीरे-धीरे, गिरते-गिरते इस बच्चे को राक्षस जैसा बना देती है, बाप कैसा भी हो, बाप ही होता है, कितनी भी कोशिश करें, इस पैथी (विधि) को बदला ही नहीं जा सकता, चाहे उसकी माँ के सारे सहयोगी मिल जायें। इसके अलावा इस पुरूष के माँ-बाप, बच्चे को ज्यादा प्यार या नासमझ प्यार देने के कारण, खाज में कोढ़ का काम करता है। बाप, बच्चे को डाँटे या कोई सजा दें तो बाबा, दादी, बुआ, चाची सामने आ जाते हंै और बच्चा सुधरने की बजाय और ज्यादा बिगड़ता है। बच्चों से काम की बात करना या आचरण करना सही आदत है। सीमित बात करना ठीक-ठीक नजर आता है। यह बाप अगर कुछ कहे तो हर एक को उसकी बात पर अविलम्ब अमल करना ही चाहिये या चुप रहना चाहिये खासतौर से छोटे बच्चांे के सामने।
06. बच्चोें की सही परवरिश के लिये पूरे परिवार को या सबको पूरी समझदारी से खासतौर से बच्चे के सामने समय और स्थिति के अनुसार ही, सही बर्ताव करना चाहिये बच्चे को, उसकी पढ़ाई और बाप के काम, खेल की प्रवृत्ति आदि मिलाकर बिजी रखना चाहिये लड़की को माँ या नारी सम्बन्धी काम में बिजी रखना चाहिये लड़की के बडे़ भाई, बड़ी बहन की आज्ञा में लड़की को रखना फायदेमन्द है और छोटे भाई, छोटी बहन को प्यार दिलाना या रखना सिखाना चाहिये एक लड़के को पालने में माँ-बाप को लोहे के चने चबाने पड़ते हैं। बच्चे लड़का या लड़की बराबर होते हैं लेकिन उनके लालन-पालन में विशेष अन्तर है। लड़के को लड़का समझकर, लड़की को लड़की समझकर ही पालने पर सबका कल्याण है। वरना लड़का बड़ा होकर, पूर्ण पुरूष या मर्द नहीं बन पाता और लड़की तो नारी धर्म से ही वंचित रह जाती है।
07. खेल से किसी जीव को रोका ही नहीं जा सकता। लेकिन बच्चों को खेल की एक निश्चित सीमा, तक ही छूट देनी चाहिये और हमेशा उनके काम में मिक्स करके देनी चाहिये आजादी पूरी हो लेकिन जब तक समझदार ना हो जाये, तब तक बच्चों का खेलना अच्छा है और खेल एक सीमा में, देखना अच्छा है। बच्चे के, हर शौक में काम का मेल जरूर फायदेमंद है। जैसे साईकिल दी है, तो काम भी बताईये। साईकिल का इस्तेमाल, काम में भी करेगा, तो बच्चे का मनोरंजन और कुछ काम का भी फायदा निश्चित होगा। एक बार खेलंे। हर काम चुस्ती-फुर्ती से हो चाहें खेल ही क्यों ना हांे, उस समय बच्चे का पूरा ध्यान रखें। आजादी पूरी रखें।
बच्चा, नेता, नौकर, मशीन, पशुु और नारी यह सब ताड़न के अधिकारी। 
(ताड़न = हमेशा देखभाल)
08. बच्चों का खेल हो या लालन-पालन, जिस प्रकार एक ड्राईवर अपना कोई वाहन चलाता है, वह समय, रास्ता, भीड़, मौसम के द्वारा ही बे्रक, चाल, मोड़ना, तेज या कम दौड़ना खुद निर्धारित करता है, जो ड्राईवर को उसी समय सोचना और सोचकर अमल करना होता है। इसी प्रकार बच्चों के खेल और लालन-पालन में उनका और अपना भविष्य, नेचर, पिछला रिकार्ड व दूसरे के तजुर्बाे को मिलाकर, खुद ही निर्णय लेना श्रेयकर है। ध्येय एक ही है कि बच्चे बड़ों के आज्ञाकारी हों, समझदार बने, छोटांे को अच्छी तरह पालें, सच्चे हो, मर्द बनें, लड़की है तो देवी बने, झूठ को झूठ और सच को सच कह सके, लेकिन बड़ों की इज्जत, छोटे के प्रति प्यार का ध्यान रखें, नौकर को नौकर समझकर व्यवहार न करें, खेल को खेल समझें, किसी नेता के पीछे न भागें, रिश्वत देनी पड़े, तो कोई बात नहीं, लेकिन खुद रिश्वत कभी न लें, रिश्वत देने के बाद रिश्वत लेने वाले से, बाद में कभी स्थिति देखकर उसे धराशायी करें, हर अनियमितता की शिकायत करें और सुधारने की कोशिश करें। नई उम्र के बच्चे यह सब माँ-बाप की इच्छा और जानकारी में ही करें। बच्चों को सच्चा व बोल्ड बनायें, यह धीरे-धीरे ही होता है, अत्याचार, झूठ के प्रति मुकाबला करने लायक बनाये, पूरी जिन्दगी अमल कर सकें, ऐसा बनायें और इनके बड़े होने पर इनका ध्यान रखें कि वह गलत न हो, इनके गलत हो जाने पर, उन बच्चों से अलगाव रखें, ऐसा खाना या सुख त्याग कर साबित करें कि आप अच्छे व बड़े हैं और अच्छे माँ-बाप की औलाद हैं। यह सूत्र आपका सबूत है कि आप किसी के बड़े हैं, बड़ों के पैरों के नीचे, हर न्यामत निश्चित होती है, वह छोटों के आश्रित कभी नहीं होते, बच्चें कितने भी बड़े हो जायें, आप जैसे सक्षम हो ही नहीं सकते, दूसरा आपको समाज बचाना हैं, देश बचाना हैं, दूध व माटी का कर्ज उतारना हैं, मानवता बचानी है। यह गलत लोगों को त्यागने से ही मुमकिन है, उसमें बच्चे, अपने बच्चे सबसे पहले हैं। वैसे भी बच्चों का मोह ही क्यों?
09. हर छोटे में बेहद तेजी होती है। वह खुद को समझदार समझते हंै। बच्चा, नेता, नौकर, पशुु, और नारी यह सब छोटे ही हैं और हमेशा आजादी के तलबदार भी है। समझदार नहीं होेते, अगर समझदार होते, तो बड़े की आज्ञा का जरूर पालन करते। इनका बिना आज्ञा के एक इंच भी आगे बढ़ जाना, अपने आप के लिये व अपने बड़ों के लिये कष्टकारक हो सकता है या होता हंै। प्रत्यक्ष है, एक बच्चा अगर अपने पापा से कहकर या पूछकर आज्ञा मिलने पर, आग में भी कूद जाये, तो उसे बचाया जा सकता है या उसे बचाना आसान है, लेकिन यह पाँचों, अपनी लालच प्रवृत्ति के कारण या नासमझी के कारण आगे बढ़ते हैं, तो निश्चित खत्म होने जैसे रिस्क लेते हैं। इस तरीके से वंश तक खत्म हो सकते हंै। बच्चा खेल को समझता है, खेल बेहद अच्छा है, जैसे क्रिकेट में करोड़ों की इनकम, काम तो करना ही नहीं पड़ता और माँ-बाप की बिना इच्छा के बच्चे खेल में लग जाते हैं, तो पढ़ाई से भी हाथ धो बैठते हैं। यह बच्चा नहीं जानता एक प्लेयर प्रैक्टिस, प्रैक्टिस और प्रैक्टिस, कसरत, जिम, ऐक्सरसाईज से फुरसत ही नहीं पा पाता, जरा सी सुस्ती करने पर वह क्रिकेट के चपरासी भी नहीं बन सकते। काम तो कुछ नहीं करते, लेकिन मेहनत और मेहनत के अलावा मेहनत से एक सेकेण्ड भी नहीं बच सकते। हर छोटांे को चाहिये कि जितना कहा जाये तुरन्त समझदारी से उतना ही करें और पूछकर या बताकर उससे आगे, कुछ समय में ऐसी आदत पड़ जायेगी कि बड़ांे की सोच क्या है? या बड़े इससे आगे क्या कहेंगे जान जायेंगे। बताने और पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, यही समझदारी है। पशुु एक बड़े के इशारे पर या एक मशीन, इशारे पर चलते हैं, इशारे पर रूकते हैं, सौ बार चलाओ या रोको तो यह सब गुस्सा नहीं करते। इसीलियेे यह वफादार और अच्छे व बहुत समझदार कहलाते हैं जबकि वह केवल आज्ञाकारी है। हर बच्चे को क्रिकेट और क्रिकेट खिलाड़ी से शिक्षा लेनी चाहिये कि वह कितने कठोर मेहनती है और कितने आज्ञाकारी हैं। ऐसे कठोर मेहनती व आज्ञाकारी बनिये और क्रिकेट खिलाड़ी से ज्यादा उपलब्धि व पैसा और इज्जत पाईये। हर खिलाड़ी से अपेक्षा की जाती है कि वह दूरदर्शन से कहे कि टी. वी. पर खेल दिखाने का समय निश्चित करे, अपने खेल की शोहरत तो करे लेकिन देश की हर अनियमितता पर भी ध्यान दें। देश का भविष्य बच्चे और सबकी इज्जत नारी का ध्यान रखते हुये निर्णय लें। हम गरीब देश भारत के हैं और कर्मठता बाधित हो रही है, नेता, नौकर पूरी तरह अनियमित हो चुके हैं, देश बचाना पहले है। पढ़ाई हो, घर का काम हो, खेत का काम हो, आॅफिस या बिजनेस का काम हो, निश्चित ही मेहनती के आगे, सारी सृष्टि नतमस्तक होती हैं।
करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान।
रसरी आवत जात ते पाथर पड़े निशान।।



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