अखबार और मीडिया
सृष्टि के बनते ही 84 लाख योनि बनीं और मनुष्य ने ही नहीं हर जीव ने अपने पेट की आग के लिये व अपने आप को और अपने वंश को आगे चलाने के लिये, जहाँ तक मुमकिन हो सका, वहाँ तक जानकारी रखनी चाही, मनुष्य ने तो खासतौर से अपनी, अपनों की और सबकी जानकरी रखनी चाही, यह जानकारी रखना एक-दूसरे से हालचाल सुनने-सुनाने के अनेक तरीके निकाले, जैसे त्यौहार, पूजा-पाठ, गाना-बजाना, कहानी किस्सों के जरिये सिखाकर। पहले मुखिया बना। उसके छोटे और सम्बन्धी ठीक-ठाक हैं, जैसी ख़बरों को इकट्ठा करके सुनने से ही सन्तुष्टी और सुधार करने की ध्येय से जारी रखा गया।
राजा महाराजा और उनके उच्च अधिकारी या राज्य कर्मचारी आदि का ब्योरा रखना अपने बड़ों को बताना या राजा को ख़बर देने तक सीमित रहा। बाद में प्रजा की कार्य-शैली ध्यान में रखकर उनके भले के लिये, क्या-क्या कदम उठाये जाये जिससे सब सुखी रहे। दूसरा राजा महाराजाओं ने अपने नाम और शोहरत के लिये, क्या-क्या किया, प्रजा तक खबर पहुँचाना साथ ही एक-दूसरे राजा और सारी प्रजा की, प्रजा तक, एक-दूसरे की खबर पहुँचे, केे ध्येय से अलग-अलग साधन रखे, जिसे हम समाचार देना या समाचार लेना कह सकते हंै और यह सब जानकरी इकट्ठा करने वालो को पत्रकार और इस प्रकार के कर्मचारी, अधिकारी व पूरे विभाग को मीडिया का नाम दिया गया, सूचना, समाचार या खबर शुरू में भोजपत्र, कपड़ा, पत्तों पर, कबूतर पक्षी के द्वारा पहुँचाये और लाये जाते रहे, ये जब और ज्यादा प्रचलित हुआ, इसे मीडिया का नाम दिया गया।
आज हमारे पास सक्षम, मेहनती और बड़ी तादात में, मजबूत मीडिया है, इनके अनेक रूप हैं और समाचार पत्र के रूप में सैकड़ों समाचार पत्र, पत्रिकाएँ हैं, यही नहीं आज विज्ञान के युग मंे रेडियो, दूरदर्शन, अनेक समाचार चैनल हैं, अख़बार डेली, सुबह-शाम के अलग-अलग व साप्ताहिक, मंथली, तिमाही, छमाही और सलाना पत्रिकायें छपती हंै।
मीडिया की अथाह मेहनत और राउंड-द-क्लाक सेवा, दूरदर्शन समाचार चैनल, देश-विदेश तक हर पल की, हर पल, खबर फोटो समेत चैबीस घंटे लगातार देते रहते हैं, जिसका ध्येेय, समृद्धि और सुधार करना ही है, कहा जाता है, जहाँ ना पहुँचे रवि वहाँ यह मीडिया पहुँच जाता है। सेना, सारा खुफिया विभाग फेल हो सकता है, लेकिन मीडिया पहुँच जाता है। इस मीडिया की वफादारी और सुधार जैसे पवित्र काम के कारण, राजा-महाराजाओं के जमाने से, राजा-महाराजाओं तक ने और आज हर बड़ांे ने और सरकार ने इन्हें, हर जगह आने-जाने की छूट दी है, जिससे सारी सच्चाई, अख़बार द्वारा सब तक पहुँच सके। मीडिया, घमासान युद्ध में, बरसती हुई गोलीयांें की बौछार में, बीमार और बम के धमाको में भी घुस कर समाचार इकट्ठा करते हैं और संसार में फैलाते है। इनकी निडरता, मेहनत व कर्मठता का कोई सानी नहीं है, यह अतिशयोक्ति नहीं है। आज के युग में जब अन्धेरे में फोटो खींचने वाले कैमरे, दूर तक की आवाज रिकार्ड करने वाले यन्त्रों के कारण और पेन जैसे असिमित तेज धार वाली तलवार के माध्याम से, यह बड़े से बड़े पापी की, भ्रष्टाचारी की, धज्जियां निश्चित उधेड़ देते हंै, जिसके लिये कानून भी इनके सामने नतमस्तक है और कानून ने इन्हें पूरे हक भी दिये हैं, छूट भी दी है।
इनकी पहले, वफादारी की सबसे ज्यादा दाद दी जाती थी। जनता के खास सम्पर्क में रहने का गुण है। सब अच्छों का, शुभचिन्तक माना जाता रहा है। इसलिये बड़े से बड़े तूफान का रूख भी मोड़ देने में, यह सक्षम रहा है। बड़े से बड़ा अधिकारी, नेता जिसकी इजाजत के बिना हवा भी इनके पास से गुजरती नहीं, यह मीडिया उनकी, हर गुप्त बात तक की ख़बर रखते हैं या ख़बर रख सकते हैं और पूरे संसार में, खबर फैलाने की हिम्मत और कानून की इजाजत रखते हैं।
हर इंसान, इज्जत के कारण डरता है और इसी कारण मीडिया से सब डरते हैं, इज्जत करते हैं। मीडिया की सच्चाई में, जितनी तारीफ की जाये, उतनी कम है। इसकी मेहनत से आप अख़बार पढ़ते हंै, जिसमें पूरे संसार की ख़बरंे और ज्ञान होता है, ऐसी-ऐसी बातें, जो खासतौर सी. बी. आई. न जान पाये, ज्ञान, खेलकूद, हर धर्म की, चर्चा और फिल्म और फिल्म वालांे की बेहद गुप्त बातें, विज्ञान की बातें, हँसी मजाक, चुटकलों की बातें, नेताओं-मंत्रियों की अच्छी-बुरी बातें पार्लियामेन्ट, विधानसभा की बातें व हर जीव-निर्जीव का ज्ञान यह, केवल 3/-में प्रातः ही करा देते हैं और निश्चित ही अथाह जानकारी का ज्ञान और जानकारी का भण्डार, अख़बार या पत्रिकाएँ हंै।
मीडिया एक ऐसा बड़ा व मजबूत स्रोत है कि हर बात समाज में फैलाकर हर अन्धकार दूर कर सकता है व न सुधरने वाली चीज सुधार सकता है। इंसान को, धुरंधर या कमीना बना सकता है, जो कोई नहीं कर सकता व मीडिया कर सकता है। इसीलिये इसे चैथा स्तम्भ कहा जाता हैं।
संसार व सृष्टि की हर चीज जितनी फायदेमन्द होगी, दूसरी तरफ वह उतनी ही नुकसानदायक होती है, सिक्के के दो पहलू होते हैं, एक सामने, दूसरा इसके विपरीत, दूसरी तरफ।
समाज में हर इंसान के सही रहने पर उसमें असीमित गुण आ जाते हैं और थोड़ा सा ही गलत होने पर असीमित अवगुण भी आ जाते हैं और देश को प्रभावित करते हैं।
संसार की हर मशीन सही रहने पर सबके लिए बेहद सुखदायी होती है और थोड़ी सी खराब या अनियमित होने पर मशीन रखने वाले और अन्य लोगांे तक के लिये ही असीमित, नुकसानदायक हो जाती है, प्राणी हो या मशीन दोनों से फायदा हो, अपने आप को और समाज को कोई नुकसान न हो, उनके बिगड़ने पर, इसीलिये उनकी अच्छी देखभााल, मेंटिनेंस रखना या करते रहना अतिआवश्यक है। यह प्रकृति का भी नियम है और मनुष्य ने होश सम्भालते ही अनेक व अलग-अलग रूप से माना और उस पर अमल किया है, करते थे, करते रहेंगे।
इस कमी से यह मीडिया भी अछूता नहीं रहा और जो सफाई और सुधार का सबसे बड़ा साधन मीडिया था, इसके गड़बड़ाते ही सारे इंसान, सारा समाज, सारे घर व सारे देश निश्चित गड़बड़ा गये हैं, आज हर जगह, हर सरकारी प्राणी, हर नेता, हर गैर सरकारी प्राणी निश्चित गड़बड़ाए हंै। यहाँ तक की धर्मरक्षक, मौलवी, पण्डित, धर्म स्थल, आश्रम तक गड़बड़ाए हंै, केवल मीडिया ही ऐसी शक्ति थी जो हर बात स्क्रीन पर लाकर खड़ा करती थी और गलत को सुधरने के लिये मजबूर कर देती थी, मीडिया के गड़बड़ाते ही, सबके नियम टूट गये और सब का ड़र खत्म हो गया, मीडिया के गड़बड़ाने की कहानी बड़ी अजीब है, लेकिन दो शब्दों में केवल पैसे का लालच है, जो कि गलत खाने और गलत सोहबत से ही पैदा होता है, पैसे का लालच, मीडिया में आया और पोल्यूशन लगातार बढ़ता चला गया।
शुरू में पत्रकार जो हर जगह पहुँचता था और देश का दिल जैसा हिस्सा है, धन के लालच में आया और पार्टी को ब्लैकमेल करने से शुरू हुआ, केवल इतना ही कहना पड़ा होगा कि मुझे कुछ दो तो यह ख़बर छाप दंूँ। आपका बहुत फायदा होगा या यह ख़बर इस प्रकार छापँूगा कि आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता और इस पत्रकार को थोड़े से पैसों ने अथाह गहराई तक रिश्वत और गद्दारी के कुँए में पहुँचा दिया है, दूसरा जरिया नेतागण हंै जिन्होने वोट और नोट के लालच में मीडिया को पैसांे के लिये उकसाया है कि यह हमारा स्टेटमेंट छापो, तो हम स्क्रीन पर आ जायेंगे और यह लो पैसे।
इन दो कारणों में पहल किसकी हुई, यह कहना मुहाल है। केवल पत्रकार के गड़बड़ाते ही सम्पादक और प्रोड्यूसर गड़बड़ाये और कागज की सप्लाई में बचत या बिजली की सप्लाई में बचत या फायदा उठाने के चक्कर में आज पूरा मीडिया लालचवश उसी लाईन पर काम करता है जिनसे, उन्हें 10 पैसे और अपनी मजबूज छत्र-छाया व बचत नजर आती हो। आज हजारों प्रकार के छोटे बड़े अखबार इस पैथी (विधि) के कारण किसी न किसी रूप में सरकारी विभाग, प्राईवेट फैक्ट्री, लगभग सारे नेता, गैर सरकारी प्राणी, फिल्मी कलाकार, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर तक से फायदा उठा रहे हंै। सबकी अनियमितता चरम सीमा पर पहुँच गयी है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि हर इंसान की जेब से तीन रुपये निकालने वाला अख़बार हर इंसान को जलील, कमीन, गद्दार, गुलाम, रिश्वतखोर, चोर, भ्रष्टाचारी लगातार बनाता जा रहा है। इसके अनेक सबूत हंै।
आज का हर इंसान छोटा या बड़ा, अनपढ़-गँवार भी अख़बार या समाचार पत्र से अछूता नहीं है, चाहे उसे किसी और से अख़बार पढ़वाना पड़े, वह चाय और खाने से बच सकता है लेकिन अख़बार पढ़ने से नहीं। पहले-पहल अख़बार बेहद कम जगह पहुँचता था, दूर के गाँव और देहात तो बचे हुए ही थे, धर्मस्थल बचे हुए थे और इसी कारण हर इंसान थोड़ी सी गलती होने पर मरने-मारने को तैयार रहता था, गाँव जैसी जगह पर तो, पूरा गाँव या पूरा समाज या पूरा धर्म छोटी सी गलती पर मरने-मारने पर उतारू हो जाता था, आज अख़बार के जमाने में, हर घर में गड्ढा खुदा हुआ है और घर वाले, रिश्तेदार व पूरा समाज सोच लेता है, कह देते हैं कि हर दिन के समाचार हैं, वहाँ भी ऐसा हुआ और वहाँ भी ऐसा हुआ और सब जगह ऐसा हुआ है, मेरे यहाँ ऐसा हो गया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? कोई खास बात नहीं हुई।
अख़बार में दिन सब देखते हैं कि, हर गलती, हर अनियमितता और हर अत्याचार अच्छे से अच्छा इंसान, बिना परेशानी के निगल जाता है और हजम कर लेता है, अख़बार पढ़कर हर इंसान कितना गिरा है, हर कदम पर इसका सबूत है, पहनावा, चाल-चलन, आचार-विचार, मोबाईल का गलत इस्तेमाल, नारी जाति का शर्म जैसा गहना खत्म होना, यही नहीं बशर्म, बेधड़क होना। बच्चों में बड़ांे के प्रति बेकदरी, हर धर्म की, उसी धर्म वाले की या अपने धर्म में रूचि न रहना या बेकदरी, त्यौहारों का फीकापन, संरक्षक द्वारा बच्चों को, गलत आजादी देना, खासतौर से नारी जाति के बारे में गलत बढ़ावा तो खास है, आप कहीं भी सुन सकते हैं, नारी के रात को देर से आने पर उसके संरक्षक कह देते हैं कि होटल में तो सब जाते हैं, खाते-पीते हैं, डान्स मनोरंजन करते हंै, कौन सा उस लड़की या नारी ने शादी कर ली, सब ऐसा ही चलता है, इसमंे क्या गलत है?
एक बड़ा अधिकारी लाॅन में प्रातः ही अख़बार में लीन हो जाता है, सामने पड़ी चाय भी ठंण्डी हो जाती है, कोई जरूरी काम से आने वाला भी यह सुनकर लौट जाता है कि साहब बि़जी हैं। अख़बार के कारण इन साहब को बच्चों की, बीवी की या किसी के जरूरी काम की भी चिन्ता नहीं रहती, इसके बावजूद वह केवल पढ़ते ही नहीं, बल्कि एक-एक अक्षर ध्यान से पढ़ते हैं। आप पिछले अख़बार के बारे में पूछंे, तो तुरन्त बता देंगे, लेकिन पढ़ने के बाद अमल या सुधार पर उनका ध्यान बिल्कुल नहीं, हर कर्मठता से दूर होते जा रहे हैं, ड्यूटी पर कोई भी काम हो, पूरा नहीं करते, हाँ ग़लत काम या गद्दारी अविलम्ब करते हैं, तो कानून के दायरे में रहकर, जिससे पकड़े न जायें।
यह सब जो कर रहे हैं, हर दिन के अख़बार पढ़कर सीखा है कि इस गलती को किस प्रकार करंे कि वह पकड़ में ही न आये और पकड़ में आये, तो बचने का तरीका यह होगा, अख़बार पढ़-पढ़ कर हर मुजरिम अपनी बचत की तरकीब आसानी से निकाल लेता है, नयी उम्र के बच्चे नये-नये तरीके से गलतियाँ करते हैं, उनकी बुद्धि तेज होती है, जोश ज्यादा होता है, फिर भी सारा प्रोत्साहन अख़बार पढ़कर ही मिलता है, जिसकी सजा, हर माँ-बाप, सारा परिवार और समाज भुगतता है, बेहद छोटा सा वफादार कर्मचारी अख़बार पढ़ते हुए अपनी कर्मठता को भूल जाता है। वहीं जज और न्यायमूर्ति जैसा इंसान न्याय देर से करने में, शर्माते तक नहीं।
मीडिया हर नेता, हर गद्दार, हर मुज़रिम का जुर्म छाप देते हैं। दूरदर्शन पर दिखा देते हैं। जनता को जागरूक करने की हर कोशिश जरूर करते हैं, सारा मीडिया जानता है कि जनता भोली और मजबूर है, इसके विपरीत अख़बार के कारण या अन्य तरीके से ये सारे मुज़रिम, जनता के सामने निर्दोष साबित हो जाते हैं, जो कि मीडिया की भी खुलेआम बेइज्जती है। जिसे मीडिया कभी महसूस भी नहीं करते, इनमें कोई 1 प्रतिशत भी खुद्दार होता तो सी. बी. आई, विजिलेंस, खुफिया विभाग और सी. आई. डी., सबसे पहले न्यायापालिका, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक को मुजरिम करार दिया जा चुका होता और सबका सुधार हो गया होता।
अभी सी. एम. की माला 5 करोड़ रुपये की बताई और दिखायी गयी और 24 घंटे लगातार 5 करोड़ की बताई-दर्शायी गई, इसमें परेशानी की बात क्या है? भारत का खासतौर से एक भी नेता, आजादी के बाद का, कोई बताये जिसने, नोट और वोट के लिए कभी, कुछ कसर छोड़ी हो। मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) जी भी आम इंसान ही तो हैं और सृष्टि के प्रत्येक जीव अपनी इच्छा पूरी करना चाहते हैं, उस इच्छा के लिए वह सब कुछ करते हैं, खासतौर से इंसान तो मौका मिलते ही चूकता ही नहीं। मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) जी ने अपने जीवन में बेहद मेहनत की है, बड़े-बड़े दुःख सहे हैं, इज्जत-बेइज्जती सही हैं, अच्छी-बुरी बनी हैं, अब वह सी. एम. की सीट पर हैं, उनकी हर इच्छा, आम इंसान की तरह पूरी हो रही है, कभी सपने देखे थे, वह पूरे हो गये हैं, 70 लाख के बेड पर सोती हैं, तो बुरा क्या है? जब वह चारपाई पर सोती थी, तब तो किसी ने नहीं पूछा, क्यों?
सीट और सुख की इच्छा किसे नहीं होती? मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) भारत में हैं, जहाँ पर सरकारी प्राणी, सारे नेता लगभग अनियमितता के दायरे में हैं, सारे विभाग निश्चित हर अनियमितता के कारण बजाय फायदे के नुकसानदायक होकर जनता के उपर अत्याचार कर रहे हैं, जनता मजबूर हो गई है, अत्याचार सहने और अपनों के उपर अत्याचार करने के लिए, सेन्टर अच्छी योजना निश्चित बनाता है लेकिन सरकारी अधिकारी, कर्मचारी और नेताओं के ऐक्स्ट्रा खाने के साधन ही बन कर रह गये हैं और हर योजना, सरकार के लिए नुकसानदायक हो जाती है, जनता शिकायत तक करने से घबराती है, पार्लियामेंट में नेताओं की मीटिंग में कभी किसी समस्या का सही समाधान सुना हो, नेताओं के झगड़े, दिन के चुनाव, हर नेता, अपने अध्यक्ष को, अपनी समस्या पूरी करने के लिए कहते रहते हैं और सबकी समस्या रह जाती है, क्या किसी नेता ने कभी कहा है कि पहले, मेरे से पहले नेता की समस्या हल करांे, फिर मेरी समस्या सुनना, नेता मिलकर एक-दूसरे की समस्या हल करायेंगे, तब सबकी समस्या हल होगी।
हमारे यह सी. एम. ही नहीं, हर नेता राजा है, अधिकारी राजा है, लेकिन हर अधिकारी व हर नेता, आम प्राणी से भी कम ज्ञान रखते हैं और निश्चित धर्म भूला चुके हैं या जानते नहीं हैं या अपने सुख में भूल गये हैं।
एक अधिकारी या एक नेता, राजा होता या बाप होता, तो निश्चित ही धर्म जानता, नेता माँ होती तो धर्म जानती। धर्म कहता है, मैं बाप हूँ, यह सारी जनता, मेरी औलाद है।
जब तक औलाद सुखी नहीं, मेरा सुख कहाँ है? जब लड़का नौकरी पर पहुँचता है या सक्षम होता है, एक बाप खाना, पहनना, अपने शौक भी नहीं कर सकता (नौकरी से पहले)। एक माँ के सामने कुँआंरी बेटी हो, तो माँॅ अपने श्रृंगार, खाना-पहनना भूल जाती है। जब लड़की की शादी हो जाती है, माँंॅ का सुख, खाना-पहनना लौट आता है।
मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) जी भूल गई हैं कि वह रानी हैं, माँ या बड़ी बहन का धर्म भूल गई हैं। भारत में उनके अनगिनत भाई, बहनें सुखी नहीं हैं, फिर वह 70 लाख क्या 700 करोड़ रुपये के बेड पर भी नींद नहीं ले सकती, माला 5 करोड़ की नहीं 50 करोड़ की माला भी, इज्जत नहीं दे सकती। हर नेता उनकी बिरादरी का है, नेता होने के कारण सम्बन्धी भी हुआ, वह बुरे या अच्छे हैं, जलते हैं या नुकसान चाहते हैं, तो भी सम्बन्धी छोड़े या भूलाये नहीं जा सकते, यह सब एक-दूसरे के भी वफादार बनें, केवल ऐसा मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) और राष्ट्रपति ही कर सकते हैं।
सच्चाई में नींद तो, भारत के राष्ट्रपति जी की हराम हो गई है, इतने सुख होते हुए भी सब बेकार नजर आते हैं। राष्ट्रपति जी के सामने सब हैं, सारी औलाद हैं, इतने सारे विभाग, अख़बार, मीडिया, सारे नेता, सारे गैर सरकारी प्राणी (खास हैं), जनता को पालने के लिए, प्रधानमंत्री तक हैं, जो न तो माननीय राष्ट्रपति जी को सही युक्ति बताते हैं, न सही ख़बर देते हैं।
विजिलेंस, खुफिया विभाग, एल. आई. यू. है, सूचना विभाग तक का निर्माण किया, लेकिन हर सरकारी प्राणी मोटी पगार ले रहा है, दूरभाष, दूरदर्शन जैसे विभाग तक घाटा दिखा रहे हैं, डी. एम. और राजा, राष्ट्रपति व घर का मुखिया या बाप ऐसा हो ही नहीं सकता, कि प्रदेश, देश, शहर, गाँव और घर मंे कोई भूखा हो, गुस्सा हो, हड़ताल, धरना-जाम आदि हो और बड़ा ऐक्शन न लें, यह बड़ा अपना सारा काम छोड़कर, यहाँ तक कि खाना-पीना तक छोड़कर, ऐट द स्पाॅट पहुँचता है और समस्या हल करके ही चैन से बैठता हैं, चाहे बड़े की तबीयत खराब हो या दो दिन की जिन्दगी हो, गलत लोगों के कारण ख़बर छुपी रहे, राष्ट्रपति तक खासतौर न पहुँचें लेकिन डी. एम. तो 60 साल के लिये बुक हैं, साथ ही सबकी हर ख़बर रखना, उसकी ड्यूटी मंे शामिल है, डी. एम. शहर का राजा है, राजा बनकर ही सारे काम रोक कर, पहले निर्णय करना ही चाहिए, तब तक चाहे राष्ट्रपति जी भी शहर में आना चाहें, तो डी. एम. को प्रार्थना करके उन्हें रोकें और समस्या हल करें, मीडिया हर बात सिखा सकता है।
मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) जी ने लेखक के द्वारा भेजे गये पत्र पर, शुरू में सरकारी प्रार्णीयों में, केवल पुलिस पर सख्ती की, जिसके फलस्वरूप वह सी. एम. की कुर्सी तक पहुँची, नियम अधूरे अपनाये गये और इसी कारण पुलिस विभाग, नेताओं के लिए मोटी कमाई का साधन बना, उससे दूसरे विभाग भी नेताओं की चपेट में आये, पुलिस की भर्ती और ट्रांसफर ही मोटे पैसे की कमाई काफी है। आप केवल खुद को रानी समझिये, खुद को माँॅ समझिये, वफादार माँॅ केवल अपने बेटे को पालती है, माटी का कर्ज उतारने के लिए। बेटी को पालती है, सती बनने के लिए, शेर पैदा करने के लिए। नौकर को पालती है, वफादारी की पगार लेने के लिए। वरना सबको छोड़ देती है, मार-मार कर भूसा भर देती है। कठोर से कठोर सजा देती है। सम्बन्धी की सेवा करती है कि, उसके बेटे-बेटी और नौकर को सही इज्जत दें, कर्मठ बनायें। रानी तो बेहद ख़तरनाक होती है, नजर मिलाने वाले की, गद्दारी करने वाले की, नमकहरामी करने वाले की गर्दन ही उड़ा देती है। यह बात सभी के लिए है।
लेखक के नियम में, गलती पर सजा में, संस्पेंशन नहीं, रिवर्सन नहीं, सजा-ए-मौत नहीं, ट्रांसफर आदि कुछ नहीं जेल नहीं, सजा है केवल जुर्माना, जो निश्चित ही सबके काम आऐगा।
मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) जी व डी. एम. साहब सब देख रहे हैं, सब समझते-जानते हैं, भुगत चुके हैं। एक-एक पल जिये हैं, इतनी उम्र गुजारी है, उनका हर बच्चा अत्याचार सह रहा है, शेर पैदा करना, कर्मठ बनाना बेहद मुश्किल नजर आता है, नौकर गद्दारी ही गद्दारी कर रहे हैं, जबकि एक विभाग ही, पूरा देश पाल सकता है, लेकिन सब लगभग नुकसान दे रहे हैं, सम्बन्धी और नेता की तो बात करनी ही अफसोस करना है, स्थिति आगे समझी जा सकती है। आप तो बैरिस्टर है। मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) जी जानती है, कि वह पूरे देश की बड़ी बहन, केवल कर्मठ, वफादार बच्चों की, नौकर की या सम्बन्धी की ही होती है, जो उसके खानदान या वंश के बारे में भला सोचते हैं, भला करते हैं, या भले की कामना करते हैं, वरना दूध पिलाना तो दूर परछाई से भी नफरत करती है, ऐसा माँ या रानी, 70 लाख के बेड पर सोना या 5 करोड़ की माला कबूल कर ही नहीं सकती।
भारतीय इतिहास गवाह है, जो भला करते हैं, भला सोचते हैं, भले की कामना करते हैं। उनके लिए तो यह सब कुछ लुटा सकती है, छोड़ सकती है, जीवन तक दाँव पर लगा देती है, ऐसी सी. एम., डी. एम. या राष्ट्रपति जी, पगार के लिए नहीं जीते, बल्कि मौके का इंतजार करते हंै और जाते-जाते भी ऐसा करके जाते हंै कि सब स्वर्ग या जन्नत बन जाये, सुधार हो और कर्मठ ही रहें। यहाँ बात मीडिया की चल रही थी कि मीडिया किसी को भी, ज्ञान का भण्डार बना सकता है, सलाह देनी ही चाहिए।
इसके बाद ही वह माला हजार 10 हजार कम की नहीं हुई, सीधा 18 लाख की रह गई। 24 घंटे बाद ही खासतौर, दो चार घंटे और देर होती तो, केवल कुछ रुपयों की रह जाती, कानून की दृष्टि से देखा जाये, तो या तो मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) दोषी है या मीडिया दोषी है, दोषी व्यक्ति कोई हो, जितना चाहे बड़ा हो, कठोर सजा का हकदार होता है, और लेकिन यह बात देश-विदेश तक ने देखी और सुनी, देश में जनता और सारे सरकारी विभाग, सारे गणमान्य नेता, न्यायमूर्ति तक हंै, किसी ने आवाज तक नहीं उठाई, विजिलेंस सी. बी. आई. की तो ड्यूटी भी है, किसी ने कुछ नहीं कहा और राहुल गाँधी अकेले ने कहा भी तो, स्पाॅट में कोई खड़ा नहीं हुआ, कम से कम मीडिया को और उनके संरक्षक को अपनी रेपुटेशन का ध्यान तो होना ही चाहिये, रेपुटेशन और इज्जत पहले लोगों में इतनी थी कि गरीब और कमजोर की भी इज्जत, सारी पृथ्वी की दौलत देकर खरीदी नहीं जा सकती थी और अब थोड़ा सा डर या थोड़ा सा पैसा किसी की भी इज्जत को खरीद सकता है और यह घिनौना काम किया है मीडिया ने, अख़बार ने।
छोटा पत्रकार तो 100/-रुपये या 50/-रुपये में बिक जाता है, बड़े-बड़े सम्पादक और मालिक कागज का कोटा, बिजली की बचत और अपने दूसरे धंधों के चक्कर में बिक जाते है। दूरदर्शन, मीडिया, विज्ञापन के उपर बिक जाते हैं, इनका कहना है कि नयी व ताजी ख़बर छापना, दिखाना ही हमारी ड्यूटी है, आगे क्या होता है हमें कोई मतलब नहीं, जबकि खुद मीडिया वाले, उनके परिवार, उनके सम्बन्धित हर अनियमितता से, हर पल दो-चार होते रहते हैं और किसी पर कोई असर नहीं पड़ता, कोई शिकायत या सुझाव तक नहीं देता।
अनगिनत ऐसे सबूत हैं कि मीडिया किसी के पीछे पड़े और उसके तिनके-तिनके न बिखरे हों या मीडिया जिसको सपोर्ट करे, वह संसार में किसी से भी कभी हारा हो या हीरो न बना हो। लेकिन इस समय, हर जगह, हर अनियमितता लगातार हो रही है, यही नहीं अनियमितता बढ़ रही है और मीडिया देख रहा है, ख़ास समझा तो, छाप दिया। वरना ”ख़ास नहीं है“ कहकर टाल दिया।
दूरदर्शन मीडिया तो बेहद कमाल की चीज है, दूरदर्शन कहता है हम, केवल मनोरंजन कराते हंै और अनेक चैनल लगातार राउंड-द-क्लाक समाचार दिखाते हैं, पार्लियामेंट में नेताओं की जुत्तम-पत्तम, कुर्सी तक की तोड़फोड़, अच्छे खानदानी पढ़े-लिखे, इज्जतदार देश की नाक के, आपसी झगड़े, कुछ लोग ही नहीं, हर पढ़ा-लिखा इंसान, देश-विदेश तक देखता है, अध्यक्ष, जो सबसे ज्यादा इज्जतदार, गरिमापूर्ण कहलाते हैं, उनकी प्रार्थना, करबद्ध प्रार्थना नेताआंे से प्लीज, चुप रहिये, शान्त बैठिये, गिड़गिड़ना कैसे भी गलत आदमी और देखने वाले की, बुद्धि ख़राब कर देती है और सबके लिये गाली बरबस ही निश्चित रूप में निकल जाती होगी, इस दूरदर्शन मीडिया का 90 सेकेण्ड विज्ञापन का खर्च लाखों रुपये हैं और पार्लियामेंट जैसी जगह का खर्च निश्चित ही करोड़ांे रुपये प्रति घंटा जरूर होगा। केवल दूरदर्शन, मीडिया का खर्च ही, दूरदर्शन और सरकार को कंगाल करने के लिये काफी है। जो मीडिया, अगर चाहे तो अख़बार हो या मीडिया हो, दूरदर्शन मीडिया को सलाह दे, तो दूसरे दिन ही बेहद बचत और बेहद अच्छा सुधार सबका हो। यह दूरदर्शन मीडिया तो एक ख़बर को रीपिट कर-कर के सुब़ह से शाम तक दिखा सकता है, दिखाते हंै और निश्चित ही अच्छे खासे का दिमाग ख़राब होने की गारण्टी है। लेकिन दर्शक केवल मनोरंजन है, सोच कर बचा रहता है। सबूत तो ऐसे-ऐसे हंै कि झुठलाये जा ही नहीं सकते, ट्रेन एक्सीडेण्ट दिखाते हैं, भीषण एक्सीडेण्ट। रेल के इंजन एक-दूसरे के उपर चढ़ गये, फोटो भी है। अख़बार में दूरदर्शन पर भी दिखा रहे हैं, लेकिन समाचार छापते हैं, बताते हैं, आदमी कुल 60 मरे हंै, 35 मरे हंै।
हर प्राणी देखता है, सब जानते हैं, दो बसों की टककर भी हो तो 100, 200 व्यक्तियों का मरना निश्चित है, लेकिन यह जानते हुए भी कि जनरल डिब्बे में तो कई सौ आदमी होते हैं, हर ट्रेन में पैर रखने को जगह नहीं होती, 2 टायर में भी 70, 80 सीट होती हैं। भीषणता दिखाने बताने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी, फिर 35, 50 यात्री ही मरे, यह भी माना जाये कि रिजर्वेशन यात्री ही दिखाये गये हैं, तो जनरल यात्री, क्या यात्री नहीं हैं? मरने वाला, बेटिकट यात्री भी यात्री ही था। किसी का बेटा, भाई, बाप, सम्बन्धी भी होगा ही, लेकिन वही कहेेगा, जो समझदार होगा, बड़ा होगा, धर्म जानता होगा, एक यात्री या एक प्राणी भी, देश की अनमोल सम्पत्ति हैं।
आज से ही नहीं खेलकूद इंसान ही नहीं 84 लाख योनि में निश्चित है, बुढ़ापे में भी नादान लोग ताश खेलते नजर आते हंै और कीमती समय खराब करते हैं, यह खेलकूद की कुछ उम्र होती है, जो बच्चे में टेलेन्ट और शरीर की खूबियाँ बढ़ाती हैं, स्टेमिना बढ़ाती है, एक अमीर बच्चा जिम में कसरत करता है, दूसरा बच्चा अपने बाप के साथ खेत में या व्यापार में हाथ बढ़ाता है, निश्चित ही दूसरा बच्चा लगातार बढ़ोत्तरी पर होगा, आज हमारे यहाँ नहीं पूरे विश्व में हर खेल पर खास ध्यान रखा जा रहा है, लेकिन भारत जैसे देश में केवल क्रिक्रेट को दिखाने में ही नजर आते हंै। यह सब मीडिया की देन नजर आती है, सारे खेल एक तरफ और दूसरी ओर गरीब परिवार के बच्चों में क्रिक्रेट जैसे खेल की इच्छा जागृत करना। निश्चित ही खर्च ज्यादा बढ़ाना और पढ़ाई और घर के काम से दूर करना ही तो है।
खेल बेहद अच्छी चीज है और उम्र भी है, लेकिन पहला टारगेट इस समय पढ़ाई है, इसके बाद घर के काम में बाप का हाथ बँटाना व खर्चे में कमी करना खास है, बच्चे तो बच्चे हैं, समाज में नौकरी करने वाले ड्यूटी छोड़कर, बच्चे स्कूल में या स्कूल छोड़कर, यही नहीं नारी जाति को भी देखा गया है, चाय या खाने के समय मैच के चक्कर में अपना काम तथा बड़ों की आज्ञा टाल देती हैैं। देश के प्लेयर हंै, स्टेडिय़म में गैर सरकारी को छोड़कर कर, सब मोटी कमाई करते हंै। एक-एक प्लेयर बेहद मेहनत करता है, करोड़ांे की हेर-फेर इनकम (कमाई) करते हैं और गैर सरकारी करोड़ों खर्च करते हैं, विज्ञापन पर मीडिया वाले इस मैच को रोच़क बनाने के लिये चियर गल्र्स तक दिखाते हैं, जिनको ट्रेंड करने में और स्टेडिय़म में दिखाने के मोटे खर्च दिखाते हंै। सरकार पैसा बनाती है, निश्चित ही मोटी कमाई है, लेकिन देश में उस पैसे का 2 प्रतिशत भी (पहले किसी उपक्रम के सुधार) सरकारी प्राणी, नेता की गलती में सुधार पर खर्च हो, तो फायदा ही फायदा है, यह जरूर है कि मैच के दीवाने मोटा जुआ (स़ट्टा) खेलते हैं, यह भी खेल ही है लेकिन बेहद मोटा नुकसान होता है, गैर सरकारी अपने प्रोडे़क्ट फ्री भी बाँटे, तो नुकसान कम होगा। मीडिया की मेहरबानी है कि एक परिवार, जो दो जोड़ी कपड़े और सीधा-सादा खाना खाकर गुजारा करने वाले थे, अब हर परिवार मोटा नुकसान नारी और बच्चों के शौक पर खर्च करने के कारण, हर घर की कलह और मालिक की सिरदर्द व समाज में गन्दगी बढ़ा रहे हैं।
यही अख़बार सादगी और समझदारी भी सिखाता है, लेकिन वह समझदारी नासमझ और छोटों में आती नहीं या छोटे समझ पाने में असमर्थ हैं, सही मीडिया वो है, जो सबकी बखियाँ उधेड़ देते हंै, विजिलेंस, सी. बी. आई., सी. आई. डी. और हर अनियमितता करने वाले की सच्चाई जनता को दिखाकर, विभाग को बताकर सुधार कर सकते हैं, लेकिन वहाँ बेहद शान्त हैं और अख़बार या मीडिया की बातों पर कोई कान नहीं देता, सब गलत का कहना हैं, यह तो ऐसे ही छापते रहते हैं, हम पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
आज अख़बार हर परिवार को स्वादिष्ट भोजन, तरह-तरह का पहनावा, तरह-तरह के स्टाइल सिखा रहा है और इसी के कारण, हर छोटे, बड़ों के लिये व पूरे समाज के लिये सिरदर्द बनते जा रहे हैं, महँगाई आसमान को छू रही है, छोटे और नारी बड़ों पर और पुरूषों पर भारी पड़ने लगी है। लड़की, लड़का बन ही नहीं सकती, और लड़का, लड़का नहीं रहा, तो बचा क्या?
अख़बार और मीडिया का यह कहना कि हम ताजी और लेटेस्ट ख़बरें छापते हैं। इसका ध्येय क्या है या ऐसा क्यों है? पैसे कमाने हैं, तो जनता को सोचना चाहिये कि अख़बार ठीक है या गलत। वैसे अख़बार में ज्ञान की कमी नहीं होती, वह भी हर किस्म के, लेकिन नादान कैसे समझेगा? दूसरा बच्चों की आज्ञाकारिता, माँ की शिथिलता से निश्चित, बाधित होती चली जा रही है और हर इंसान यहाँ मजबूर नजर आता है।
अब सवाल यह पैदा होता है कि अख़बार और मीडिया को कैसे हैण्डल किया जाये या कैसे समझाया जाये, जो पढ़ने वाला हर नुकसान से बचे, अनियमितता खत्म होने लगे और हर प्राणी अपनी गलतियांें को सुधारे, गलती करने वाला बच्चा भी एक लाख तरीके से समझा देगा कि मेरी गलती है ही नहीं, जब तक ड़र न हो, वह मान ही नहीं सकता, मीडिया या अख़बार तो अपनी गलती बता ही नहीं सकते, दूसरा इन पर कोई बैन भी नहीं है, क्योंकि हर अपराधी और शरीफ को यह फायदेमंद ही नजर आता है, सच्चा साथी, ज्ञान का भण्ड़ार नजर आता है और लाखों तरीके, से सब लोग साबित कर सकते हैं, इसके बावजूद खुद सरकार, इसकी ख़बरांे को अहमियत नहीं देती, और सब समाचार इतनी मेहनत के बाद, नक्कारखाने में तूती की आव़ाज बनकर रह जाते है। पत्रकार मीडिया खुद, अगले दिन भूल जाते हंै कि कल जो लिखा था, उसका किसी पर असर पड़ा है या नहीं। नहीं पड़ा है तो क्यों? वह तो लेटेस्ट छापना ही जानते हंै, ऐसा ही सीखा है, देश समाज कहीं भी जाये? बेहद तेज बोलना, मिनटों मंे सैकड़ों ख़बरें, हर इंसान के सिर से ऊपर निकल जाती हैं या बेअसर हो जाती हैं। फिर मीडिया का मकसद क्या हैं, यह चैथा स्तम्भ कैसे है। किसी के पास इसका जबाब शायद ही हो।
यह सब कमियाँ पढ़कर पाठकगण और खुद मीडिया खासतौर, अपनी कमियाँ, अपनी खुद्दारी और अपनी जिम्मेदारी समझने लगे और अख़बार व मीडिया कुछ और ऐसा करे, कि गद्दारी खत्म हो, अनियमितता रूके और समाज व देश में गन्दगी कुछ कम होने लगे। कुछ देश में तो जनता नितंग-नंगे होकर प्रदर्शन करते हैं, मीडिया छापता भी है, बस। मीडिया वहाँ पहले से है, पहले ही मीडिया ने ध्यान दिया होता, तो जनता को नंगा न होना पड़ता और न वहाँ की जनता सरकार को नंगा कर पाती।
संसार की सारी मीडिया, और सब कोे निमंत्रण है, कोई एक या सारे मिलकर, किसी जगह की या सारे संसार की, कोई एक या सारी अनियमितता खत्म करके, खुद को व मीडिया को चैथा स्तम्भ साबित करे, और सारे संसार को सुनहरा बना कर खुद को व सब को धन्य करे।
इसके लिये हम कुछ नियम लिख रहे हंै, जो निश्चित ही अख़बार और मीडिया में खूबियों की बढ़ोत्तरी करेंगे, उनकी इज्जत और शोहरत बढ़ेगी, साथ ही सब तरफ अख़बार व मीडिया से लेकर, हर विभाग, नेता और गैर सरकारी व विद्यार्थीगणों में निश्चित बदलाव व जागरूकता आयेगी।
लेखक का ध्येय केवल हर एक मंे खूबी बढ़ाना है, जैसे हीरे को तराशकर, उसकी कीमत और उसकी खूबसूरती बढ़ाना है, जो कि हर पाठकगण भी चाहता है।
सुधार-सफाई के लिए विचार
01. हर अख़बार और दूरदर्शन समाचार में एक या आध़ा पेज और एक या डेढ़ मिनट सजा दी गई, चेप्टर या पिक्चर, निश्चित हो, जिससे हर मुज़रिम या दोषी व्यक्ति और हर सरकारी प्राणी व सारे नेता और सारे गैर सरकारी, गलती पर सजा दी गई, देखकर डरे और हर ग़लती करने से परहेज करे, उनके संगी-साथी व परिवार वाले, हर अपने को सलाह देें सके कि गलती मत करना या गलती से रोकने की कोशिश करें।
02. अख़बार और मीडिया, जिस ख़बर को छापता और दिखाता है, उसके प्रति क्या हुआ? यह ध्यान रखे और हो सके तो सम्बन्धित व्यक्ति, विभाग और नेता के बारे में ध्यान दिलायें कि इस अनियमितता में सुधार कितना है। अगर नहीं है तो, कारण पूँछे और छापें या दिखायें। यह काम है, तो मुश्किल क्योंकि कोई सिरदर्द लेना तो चाहता ही नहीं। लेकिन इस नियम से, हर चोर, भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोर, गद्दार निश्चित ही सजा पायेगा, डरेगा और आगे यह सब छोड़कर, कर्मठ बनेगा, खुद का जीवन सफल करेगा और वफादार बन कर पूरे देश के काम आयेगा। अख़बार और मीडिया का ध्येय सुधार का बनेगा, जो पत्रकार और अख़बार से जुड़े इंसान का सिर गर्व से उठेगा और हर शरीफ आदमी प्रोत्साहित व खुद्दार होगा। दूसरी तरफ भ्रष्ट लोग खुद को बचाने के लिए मीडिया को मोटा पैसा भी देंगे। पैसा लेना या न लेना मीडिया के ऊपर रहेगा।
03. अख़बार और मीडिया सच्चाई में सबको, सब की ड्यूटी सिखायें। अख़बार और मीडिया सच्चाई में सबको, जागरूक करता ही है। ज्ञान बढ़ाता है। इसलिये हर दूसरे दिन किसी तरीके से अख़बार और दूरदर्शन पर सूचना विभाग व अनियमितता की शिकायत करे, हर अधिकारी, हर नेता, हर गैर सरकारी को नियमित सिखायें, खासतौर से हर विभाग, हर सरकारी प्राणी, प्रशासनिक अधिकारी और नेता के बारे में और अनियमितता के आधार पर सरकार से इजाजत लेें, कि अदालत, जज और सबके बारे में कम से कम उनकी अनियिमितता और उसकी सजा के बारे में छाप सकें और दिखा सकें। वैसे भी अख़बार व मीडिया, सबके पत्ते बिखेरते ही हैं। अनियमित सरकारी काम में हस्तक्षेप करना, अखबार और मीडिया का हक बने।
04. अख़बार और मीडिया, मजबूर लोगों का साथ खुलकर दे। विदेशों में अत्याचार से परेशान जनता या समाज नितंग-नंगे होकर प्रदर्शन करते हैं। अख़बार और मीडिया को मजबूर लोगों का साथ खुलकर देना चाहिये, जिससे ऐसा, अभद्र प्रदर्शन न हो और हर मजबूर इंसान को अख़बार व मीडिया, शुभचिन्तक साथी के रूप में नजर आये और हर भ्रष्ट इंसान, सुधरने को तत्पर रहे और सजा पाये। साथ ही जनता चाहे किसी देश की हो, ऐसा देख कर साथ दे और सबका सहयोग दे, चाहे वह देश में हो या विदेश में, साथ देने के अनेक तरीके हैं, चाहे वह कितनी ही दूर हों।
05. अख़बार और मीडिया कुछ इस प्रकार छापें कि नारी और बच्चे आजादी, छोड़कर बड़ों की आज्ञा और छत्र-छाया में रहना शुरू करें, इज्जत की इच्छा ज्यादा करें। जो केवल कर्मठता और धर्मपालन से या बड़ों की इज्जत से ही मुमकिन है, समझने लगें। नारी को नारी ही रहने में फायदा नजर आने लगे और आने वाली नस्ल सुधरने लगे। अधिकारी कर्मचारी का, कर्मचारी अधिकारी का ध्यान रखना, सफाई-सुधार रखकर, आज्ञाकारी और वफादार रह सकें, माँ-बाप व पढ़ने वाले बच्चे अपने गुरूओं की इज्जत करने लगें। अनियमितता की शिकायत या प्रचार इन्टरनेट के द्वारा ज्यादा से ज्यादा करें, सप्ताह में एक घंटा समय बाँधकर इन्टरनेट पर फैला दें।
06. हर गलत का, खुलकर विरोध करें और गलत के, हर एक का विरोध करने का प्रयत्न करें। सही को खुलकर, सही कहें। अख़बार और मीडिया यह नियम शुरू से निभा रहा है। लेकिन इतने हल्के तरीके से कि जनता भोली और मजबूर होने के बाद विरोध समझ नहीं पाती, विरोध करना, सीख नहीं पाती और मजबूरी या अज्ञानता के कारण, सही को अपना नहीं सकती। इधर मीडिया पढ़ा कर व दिखा कर जनता को इतना मजबूर कर देता है कि जनता गलत का साथ दे देती है।
07. सब से पहले हर अनियमितता की शिकायत, अनियमित विभाग और सरकारी प्राणी या नेता की शिकायत, आपको करनी है, आपको सीखना और सिखाना है। किसी भी अनियमितता के जिम्मेदार सबसे पहले, गाँव के प्रधान, सेक्रेटरी, शहर में सभासद, चेयरमैन सारे सरकारी प्राणी और नेता हैं। अनियमितता की अविलम्ब शिकायत करें या करवायें। दोषी व्यक्ति और विभाग पर अविलम्ब जुर्माना करायें। राजकोष में जुमऱ्ाना जमा करायें। हमंे राजकोष भी बढ़ाना है। अख़बार और मीडिया सबसे ज्यादा निड़र सक्षम अपने आप में असीम पावरफुल निश्चित है और यह नियम कानूनी नियम या हक है। गैर सरकारी और सरकारी प्राणी को, हर धर्म का ज्ञान है, निश्चित ही हर दोष, हर अनियमितता और हर प्राणी का मीडिया को ज्ञान है, हो सकता है अनियमितता का सही विकल्प न जानते हों, क्योंकि जरूरतमंद और मजबूर प्राणी निश्चित है, जो किसी भी गलती का सही विकल्प जानते नहीं या जानते हुए बताते व करते नहीं। इसके बावजूद सारे खफा हों भी जाये, तब भी जनता जो असीमित शक्तिशाली है, साथ होगी। दूसरा अकेला पत्रकार भी चाहे तो शिकायत करे तो सुधार होगा और विश्व अदालत तक कोई हरा नहीं सकता, यहाँ भ्रष्ट प्राणी, मीडिया या पत्रकार को खरीद सकता हैं, अगर ऐसा हो, तो कीमत लाखों ही ली जाये और कीमत लेकर अल्टीमेटम दिया जाये लेकिन किसी को ब्लैकमेल करने के ध्येय से कभी नहीं। मीडिया और अखबार गैर सरकारी हैं। यह आसानी से देश का राजा साबित हो सकता है। नेता विभाग जैसी विभाग का अंकुश आसानी से बनाकर, संस्था को वेहद लाभदायक और इज्जतदार बनाया जा सकता है।
08. मीडिया को चाहिए कि ”जय जनता-जय कानून“ और ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ छापे और हर एक को जागरूक करें। मीडिया अधिकतर गैर सरकारी प्राणी है और गैर सरकारी के कारण है, हर प्रदेश, हर देश व हर विदेश का मीडिया सब एक है। अनियमितता दिखाने और सुधारने में एकजुट होकर, एक-दूसरे के साथ, व पूर्ण सहयोग दें, हर देश के मीडिया के लिये, सब देशों की जनता एक है, सरकारी प्राणी एक है, नेता एक है। पूरा मीडिया विभाग, हर अनियमितता का जानी दुश्मन है, न कि अनियमितता करने वालों का। अनियमितता करने वाला गलती छोड़ दे, गलती मान ले, तो निश्चित पूज्यनीय है, चाहे जुर्माना देकर ही गलती सुधारे। यह मीडिया अपनी मेहनत और सबके प्रति वफादारी दिखाकर साबित करे और दुनियाँ को एक बनाने में मदद करे।
09. मीडिया आने वाली आपदाओं को, रोचक बनाने के ध्येय से, बेहद भंयकर करके पेश करते हैं, बार-बार घुमा-फिराकर बेहद लम्बा करते हैं, यह बेहद गलत है, जनता में डर और गलत अफवाह फैलती है। ध्यान दें, यह मीडिया का गुण नहीं बल्कि दोष बन जाता हैं और हर अनियमितता के सुधार की सलाह भी पेश करने का नियम भी बनायें।
नेता, मंत्री व प्रधानमंत्री मनमानी करते हैं मीडिया को उनकी ड्यूटी समझानी चाहिए जिससे साबित हो आप आजाद देश के हैं, देश के वफादार हैं, सबसे प्रेम करते हैं। इन्टरनेट पर शिकायत का नियम सबको सिखायें। अगर मीडिया का जबाब है कि सरकारी काम में हस्तक्षेप की इजाजत नहीं, तो सच हो गया कि सब गुलाम हैं, अत्याचारी हैं और इस व्याधा व लाईलाज बीमारी से बचने और सबको बचाने के लिए, जनता का साथ दो और लो।
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