दूरदर्शन और दूरदर्शन विभाग
जब से सृष्टि बनी है, 84 लाख योनि में मुनष्य बुद्धिजीवि कहलाया। वैसे तो हर जीव के पास अपनी बुद्धि है और छोटा सा जीव भी अपनी बुद्धि से सोच कर अपने शरीर के द्वारा अपना जीवन चलाते हैं और वंश बढ़ाते हैं। प्रकृति का नियम हैं कि अपना शरीर बचाओ और वंश चलाओ। यह हर जीव अपने दिमाग के द्वारा प्रकृति को समझते हैं और उनका जीवन सुरक्षित रहता है। मेहनत केवल अपने पेट के लिए और शरीर को बचाने के लिए करते हैं। दूसरी तरफ मनुष्य अपना दिमाग और शरीर, सब के लिए इस्तेमाल करता है, मोह-माया, प्रेम हर जीव में हैं, लेकिन मनुष्य को छोड़कर, शरीर पहले है, पेट पहले है, सब जीव का नियम है। मनुष्य की अच्छी सोच मनुष्य को बुद्धिजीवि और सर्वोपरि बनाती है।
मनुष्य ने ज्ञ़ान के साथ-साथ अपनी अच्छी सोच के कारण विज्ञ़ान की उत्पत्ति भी की जो, भौतिक सुख का भंण्डार तो है, लेकिन, विज्ञ़ान होने से ज्ञ़ान कुछ अपने आप कम हो जाता है जिसके कारण, उसकी उम्र लगातार कम होती जा रही है और 400 साल से घटकर, इस समय 60 और 65 साल रह गई है। वह भी अत्याचार सहने और अत्याचार करने के लिए।
हिन्दू धर्म के मुताबिक, ज्ञ़ान बेहद ज्यादा बड़ा है और ज्ञ़ान की कोई सीमा नहीं होती, इसलिये आज की थोड़ी सी विज्ञ़ान की उपलब्धि, सबसे पहले सतयुग में केवल ज्ञान और विज्ञान के कारण थी और ऐसी-ऐसी उपलब्धि थी, कि विज्ञान खासतौर हजारों साल बाद ही कर पायेगा, हर धर्मग्रंन्थ एक इतिहास का ही रूप है। खासतौर से हिन्दू धर्मग्रंन्थ तो निश्चित इतिहास है, जिसमें हर पुरानी बात कहानी और नाटक के रूप में है।
आज का वैज्ञानिक उसे केवल कल्पना मानता है, लेकिन सबूत है, इसी कल्पना के आधार पर विज्ञान ने असीम उपलब्धियाँ अर्जि़त की हैं, जो सामने है, सतयुग में केवल ज्ञान के आधार पर नारद बिना मशीन के चारो लोकों में निर्विघ्न घूमता था, शब्द-भेदी बाण तो कलियुग में पृथ्वीराज राजा के पास तक था, ज्ञान से दिव्य दृष्टि थी, जो सतयुग में थी, त्रेतायुग में राम-रावण के युद्ध के समय में थी, द्वापर में कौरव-पाण्डव के युद्ध के समय थी और अब दूरदर्शन के रूप में आपके पास है, यह पहले ज्ञान के उपर थी, यह ज्ञान खास नियम धर्म पर चलने पर ही मिल सकता था और असिमित था, खर्चा नहीं था, अजीब-अजीब हथियार, तीर-कमान, तलवार सब ज्ञान से थे, इसी ज्ञान की बदौलत सतयुग में शिंवजी के मस्तक पर एक तरफ सूरज और दूसरी तरफ चाँद था। आज का इंसान, विज्ञान से केवल चाँद तक सफलता से पहुँच पाया है, त्रेता युग में रावण राजा के पास ज्ञान और विज्ञान लगभग बराबर था और उसके मुकुट में सूर्य का वास था और अनेक उपलब्धियाँ थीं, सतयुग के बाद ज्ञान कम होना शुरू हुआ और द्वापर में विज्ञान के जरिये कौरवों में ज्ञान के मुताबिक अनेक उपलब्धियाँ थी, जैसे कर्ण के पास कुण्डल और कवच थे, उसी प्रकार कृष्ण के पास विज्ञान की देन सुदर्शन चक्र जैसा हथियार था, जो दुश्मन को मार कर वापिस लौट कर मालिक के पास आ जाता था।
मारने की पैथी (विधि) विज्ञान की देन है या जीव के अपने और अपनों के आचरण की देन है, सतयुग में ज्ञान पूरा होने के कारण मारने की पैथी (विधि) थी ही नहीं, केवल गलती पर सजा की पैथी (विधि), हमेशा थी। जीव के अपने आचरण से या गलत आचरण से ज्ञान का स्तर कम होने लगा। मनुष्य लालची प्रवृत्ति के कारण विज्ञान की तरफ बढ़ने लगा या विज्ञान की तरफ झुकने के कारण, ज्ञान कम हुआ। राजा रावण के अच्छे आचरण और अच्छी सोच का सबूत है, कि उसके पास ज्ञान और विज्ञान दोनों लगभग बराबर थे, जिसकी उपलब्धि के रूप में, उसमें 10 सिर के बराबर दिमाग था और अनेक चीजें उसके पास थी या उसके कन्ट्रोल में थी, जैसे पुष्पक विमान जिसकी स्पीड असिमित थी, कहीं भी उड़ सकता था, सवारी जरूरत के मुताबिक ज्यादा-कम हो सकती थी। फ्यूल की जरूरत नहीं थी, मेंटिनेंस की चिन्ता नहीं थी, कहीं भी उतर सकता था, वायु, इन्द्र, मौत, नवग्रह आदि लगभग 33 करोड़ देवता उसके अण्डर में थे, आज आप वायु पर कब्जा कर चुके हैं, पानी पर अधूरा कब्जा है, राजा रावण के जमाने में सब कंट्रोल मंे था, विज्ञान अधूरा है और ज्ञान का स्तर कम होते ही, व्याघायें निश्चित बढ़ी हैं। उस समय, इसी कारण रावण को मौत को, छूट देनी पड़ी।, दूसरी तरफ राजा दशरथ के पुत्र भरत के पास केवल ज्ञान के कारण, धनुष था, जो निश्चित दूरी तक, एक मूक पर्वत और हनुमान जैसा सिमित वज़न पहुँचा सकता था और हनुमान, मूक पर्वत जैसे वज़न को ज्यादा लम्बी दूरी तक पहुँचा सकता था। प्रत्यक्ष प्रमाण है कि भारत के चार वेदों के द्वारा जापान जैसा छोटा सा देश, विज्ञान में पूरे विश्व में सबसे आगे है।
ज्ञान से और सही आचरण से, धर्म से, हम निश्चित दूर होते जा रहे हैं। इसलिये हमारी कठोर मेहनत से विज्ञान में कुछ उपलब्धि हो रही है। विज्ञान में उपलब्धि होना साबित करता है, कि हमारा आचरण, कुछ ठीक है। कम्प्यूटर और दूरदर्शन रेडियो विज्ञान की लम्बी शोध की देन है और कितनी फायदेमंद है। ज्ञान और विज्ञान बढ़ाने में वर्णन करना कठिन है, 84 लाख योनि में केवल मनुष्य के आचरण, धर्म के विपरीत निश्चित हो जाते हैं, जब वह विज्ञान की तरफ बढ़ता है। दूरदर्शन और मोबाइल जैसी विज्ञान की उपलब्धि ने चारों तरफ धूम मची दी है, ग़रीब से ग़रीब, अमीर से अमीर इंसान ने इसे मनोरंजन का साधन बना दिया है, जिसमें ज्ञानवान पुरूष, इससे अथाह ज्ञान और विज्ञान में उपलब्धि अर्जि़त कर सकते हैं और कर रहे हैं, लेकिन वह सब भी धर्म और आचरण से हीन होते जा रहे हैं।
डाॅक्टर इसका प्रयोग अपने फायदे के लिये कर रहे हैं, शिक्षा विभाग दूरदर्शन का प्रयोग फायदे के लिये पुलिस, सी. बी. आई., सी. आई. डी., खुफिया विभाग, विजिलेंस इसका प्रयोग फाय़दे के लिये करते हैं, लेकिन प्रत्यक्ष है कि यह बस जो भी इस्तेमाल कर रहे हैं, धर्म और आचरण से हीन होते जा रहे है। डाॅक्टर मरीज के लिये दूसरा भगवान माना जाता है, लेकिन मरीज के लिये मोटे पैसे खाने वाला बिजनेसमैन बन कर रहा गया है। शिक्षा विभाग विद्या, धन जैसे काम के लिये प्रयोग करता है, लेकिन सबसे ज्यादा पोल्युशन, शिक्षा विभाग में ही है और पुलिस, खुफिया विभाग, सी. बी. आई. विजिलेंस, तो निश्चित हर एक अनियमितता पालने, हर अनियमितता देखते रहने और अनियमितता बढ़ाने के लिये, इसका प्रयोग कर रहे हैं। इसका सही प्रयोग होता, तो देश में गधे पंजीरी न खा रहे होते। दूरदर्शन और दूरदर्शन विभाग ने तो हद ही कर दी है।
सतयुग से नाँच, गाना, खेल, तमाशें, नाटक, नौटंकी लगातार चलते आ रहे हैं और हर बड़े ने इनसे बचने की, हर छोटे को शिक्षा दी, समझाया, यहाँ तक कि छोड़ने को बाध्य किया है। कलियुग में ही, इन गाने और मनोरंजन ने लाखों परिवार पूरी तरह खत्म किये हैं, सब जानते है जिस समय सिनेमा, बाईस्कोप या पिक्चर का समय आया, तो सक्षम बड़े भी, अपने बड़ांे से चोरी से देखते थे और पिक्चर देखना, गाने-नौटंकी देखना गलत मानते थे, आज हर घर में सिनेमा ही नहीं, सब कुछ दूरदर्शन के रूप में मौजूद है, जहाँ पहले पुरूष जाति तक को भी बंधन था, अब नारी-पुरूष दोनों ही नहीं, सास, ससुर, बहु, बेटी, भाई, बहन सब साथ बैठकर सब कुछ साथ देखते हंै।
निश्चित ही यह नया युग है, मशीनी युग है और सब तरफ बढ़ोत्तरी पर है, तो भी चाहे कितने भी विज्ञापन हो जाये, उसमे भी पति-पत्नी के अलावा, दूसरे कोई सम्बन्ध है ही नहीं, जो दूरदर्शन या पिक्चर एक साथ देख सके, यह सब फैमली, फिल्मी फैमिली या डोम जाति की फैमली नहीं है, ना ही हो सकती है (डोम जाति में भी ऐसा करना निषेध हैं)।
दूरदर्शन पर आज हमारे पास 260 चैनलों से भी अधिक चैनल हैं और विश्व भर में चैबीस घंटे चैनलों की भरमार है, जिसमें वह लगभग सब कुछ दिखाते हैं, यहाँ तक कि यूरोप में समाचार दिखाने के लिए, ऐसे न्यूड चैनल भी शुरू हो गये हैं, जिसमें समाचार वाचिका युवती एक-एक कर, अपने सारे कपड़े उतार देती है। वहाँ पर ऐसे चैनल कानूनी रूप से पे चैनल हैं और विज्ञापन कैटेगिरी में 24 घंटे चलते हैं। भारतवर्ष में धर्म से सम्बन्धित व अनेक चैनल हैं, जो चैबीस घंटे धर्म के बारे में बताते रहते हैं। हर ज्ञान वितरण करते हैं। दूरदर्शन विभाग एक ऐसा विभाग है जो सबसे ज्यादा मेहनत करता है। सबसे ज्यादा खर्च करता है और सबसे ज्यादा, इसकी कमाई है।. समाज, धर्म और देश का यह सबसे ज्यादा नुकसान भी करता है, अतिशयोक्ति नहीं है। इस समय संसार में केवल फिल्म लाईन ही ऐसी यूनिटी है, कि प्राईवेट है और अथाह मेहनत करती है और असिमित पैसा लगाती है, पिक्चर बनाकर मोटा जुआ खेलती है। यह यूनिटी पिक्चर द्वारा हर अच्छी बात दिखाती है और टाॅप क्लास दिखाती है, महँगंे से महँगा और सबकी छाँट दिखाती है। लाखों लोगों की सबसे अच्छी पसन्द दिखाती है, सच्चाई दिखाती है। धर्मगं्रन्थ पर आधारित हो तब भी पूरी तहकीकात करके, केवल सच्ची बात दिखाने की हर कोशिश करती है।
दूसरी तरफ दूरदर्शन जो भी दिखाता है, फिल्म के अलावा कुछ भी सच हो, गारण्टी नहीं हैं। धर्मग्रंन्थों की पूरी तरह बेइज्जती कर देता है, इनका कहना है हम वो दिखाते हंै जो जनता को पसन्द हो।
वैसे टी. वी. कौन देखता है, जरा सोचिये। पढ़ने वाले बच्चे पढ़ाई में लगे रहते हैं, बिजनेसमैन को अपने बिजनेस से ही फुर्सत नहीं है, नौकरी करने वाला, नौकरी करेगा या टी. वी. देखेगा।
अब रह गये रिटायर या बूढ़े, अनपढ़, अनजान या बेकार लोग, खेलने-कूदने वाले बच्चे, घर की औरतें, यह सब टी. वी. देखते तो हैं, बस देखते हंै, अच्छा बुरा तक नहीं जानते, टी. वी. हमंे फैशन शो दिखाता है, शौकिन लोग देखते हैं। हर किस्म की अच्छी बुरी-सब दिखाते हंै। बेहद फेमस रामायण और अन्य धर्मग्रंथों पर आधारित डेली एपीसोड दिखाते हंै और सच्चाई छुपा जाते हंै। जैसे रामायण में सती प्रथा, जो खास थी, पूरी नारी जाति के लिये शिक्षा थी, अच्छी शिक्षा थी, छुपा गये। हनुमान के एपीसोड और फिल्म दिखाते हैं, सच्चाई छुपाते हैं, टी. वी. अपनी इच्छा से दिखाते और सच्चाई छिपाते हैं, उनका कहना है सरकार का बैन (प्रतिबंध) है और खुद ताली बजाकर खुश होते हैं और गर्वित होते हैं।
आज समाज में जितनी गन्दगी फैली है, 99 प्रतिशत दूरदर्शन की ही देन है। लोग संगीत दिखाते हैं, अन्जान बुद्धि के बच्चे देखते हैं और हर टी. वी. प्रोग्राम से गड़बड़ाते हैं, ऐसा संगीत गाँव के सीधे-सादे बच्चे देखते हैं और उसकी नकल करके, तो बेशर्म निश्चित हो जाते हंै। जो भी देखते हंै, शहर या गाँव के देखते हैं, उसकी नकल करके बिगड़ते है, यही नहीं टी. वी. या दूरदर्शन सीरियल बनाते हैं, कोई भी गैर सरकारी मोटा लोन पास कराते हैं और सीरियल बनाते हैं। आज की सरकार और जनता की इच्छा है, यह सोचकर वह भी सौ हिस्सो में 165, 170 हिस्सों में दिखाते हैं, कोई भी सोचे इतना समय किसके पास है, जो सप्ताह में एक बार या दो बार निश्चित समय टी. वी. को दे दे, बेकार मनुष्य या काम न करने के इच्छुक इंसान कामचोेर ही इन्हें देखता है, जो निश्चित ही नुकसानदायक है या एक कर्मठ प्राणी को ख़राब निश्चित करने का ज़रिया, सिरियल हैं।
एक छोटी सी बात देखने के लिये कर्मठ मनुष्य निश्चित ही अपनी कर्मठता को छोड़ देगा। लगभग हर सीरियल ऐसे हैं, जिसमें नारी व बच्चे अपने धर्म से विचलित होते हैं और समाज में गन्दगी फैलाकर, सारे समाज को दूषित करते हैं, खासतौर से सीरियल। सरकार का पैसा खराब, समाज को खराब करके और खुद वाहवाही करनी, कितनी गलत बात है। जनता, गैर सरकारी का पैसा भी बेहद खर्च कराते हैं, जैसे विज्ञापन देना, 90 सेकेण्ड के, एक लाख़ दस साल पहले का चार्ज। एक परिवार की अन्जान बच्ची ने अपनी माँ के सामने, अपने पापा से निरोध या कण्डोम का विज्ञापन देखकर पूछ ही लिया। ”पापा यह क्या है?“ बाप या माँ क्या जवाब दें? विज्ञापन इतने दिये जाते हैं कि सिरदर्द हो जाये, विज्ञान का कहना हैं, इनसे दिमाग पर बेहद गलत असर पड़ता है।
टी. वी. के बारे में सोचे तो 25 प्रतिशत गरीब परिवार तो बेहद मजबूर होकर खरीदते हैं, जब घर के बच्चे और नारी, अपनी स्थिति, औकात भूलकर, दूसरों की नकल करके, घर में कलह करके, जबरदस्ती किश्तों पर लाते हैं और अपनी स्थिति ज्यादा खराब कर लेते हैं, टी. वी. पर पिक्चर चैनल, डिस्कवरी चैनल, हिस्ट्री चैनल जैसे लाभदायक चैनल भी है, लेकिन विज्ञापन ने इनके गुणांे को बेहद गँवाया है, विज्ञापन पर बैन होना ही चाहिये जो कि अब बैन लगने शुरू हो गये हैं।
टी. वी. वाले विज्ञापन पर मोटा पैसा लेते हैं और गैर सरकारी को मजबूर करते हैं कि अपने भाई, गैर सरकारी से ही नाजायज पैसा लो, विज्ञापन देखकर, हर घर-परिवार के नादानों ने, घर का खर्चा बेहद बढ़ाया है, परेशानी बढ़ाई है, अनियमितता बढ़ाई है, समय का नुकसान बढ़ाया है, गलत नेताओं का, गलत बिजनेसमैन का पैसा और इज्जत व शोहरत बढ़ी है, यही नहीं, धर्म चर्चा करने वाले, श्रद्धा चैनल जैसे अनेक चैनल से लोगों को पूरी तरह उलझाया गया है, जो खुद नहीं जानते कि धर्म क्या है? वही लम्बे-लम्बे प्रवचन दिखाते और सुनाते हैं।
इस समय दूरदर्शन समाचार, सीरियल और धर्म पर चर्चा प्रोग्राम से गन्दगी बढ़ी है, नेताओं के भाषण, पार्लियामेन्ट की कार्यवाही और अनगिनत अनेक चैनल पर ऐसे प्रोग्राम दिखाते हंै कि अधिकतर लोग, देखने को मना करते हैं, देखने ही नहीं चाहिये क्योंकि बेहद नुकसानदायक हैं। जनता को बिगाड़ने व धर्म से दूर भगाने जैसा काम है, आज दूरदर्शन भी घाटे में जा रहा है, क्यों? क्योंकि कैमरामैन, मेकअपमैन, आॅफिस के मोटे-मोटे खर्चे, कर्मचारी व अधिकारी की मोटी पगार, उनकी अनेक सुविधा, उनका टी. ए., उनका ओवरटाइम, इस पर भी इन सब की गद्दारी, सुविधा से नाजायज फायदा उठाना, नाजायज बिल के कारण दूरदर्शन को नुकसान या घाटे में निश्चित पहुँचाता है।
इस समय पिक्चर चैनल, जी सिनेमा, यू. टी. वी., एक्शन मूवीज़्ा और ”फिल्मी’ जैसे चैनल सही और ज्यादा फायदेमद है, लेकिन विज्ञापन पर बैन लगाना ही चाहिये चैनल वाले अपने फायदे के लिये जनता व देश का नुकसान करते हैं, भ्रष्ट लोगांे को व नेताओं को इससे बेहद सपोर्ट मिलती है जिसमें धर्म प्रचारक तक हैं, सेट मैक्स चैनल पिक्चर छोड़कर बचत के चक्कर में मैच दिखाने शुरू कर देते हैं, जो चैनल की गरिमा को धूमिल करता है।
आज हमारी या देश की इज्जत नारी, जो मनुष्य का वंश चलाती है, दूरदर्शन के कारण गड़बड़ा रही है और खुद नारी जाति की ही दुश्मन बन रही है, क्योंकि सब का भविष्य बच्चे लड़के या लड़की निश्चित गड़बड़ा रहे हैं। नारी तो खासतौर नारी धर्म से बेहद दूर जा चुकी है, यह मनुष्य के लिये बेहद नुकसानदायक है। लड़की का पहनावा और शर्म कम होना या निडर होना मनुष्य का वंश खत्म करने के बराबर निश्चित है, गलत सरकार और नेता टी. वी. द्वारा नारी ही नहीं, पूरे समाज की हर अनियमितता और पुरूष जाति की सिरदर्दी बढ़ा रहे हंै।
ध्यान दें, तो केवल पिक्चर चैनल की पिक्चर के कारण ही सब, सबकी अनियमितता में बाधक नजर आयेंगे। अगर पिक्चर ना हो, तो हर धर्म, हर समाज, गिरने में पाताल में जा चुका होता। सबसे ज्यादा समाचार चैनल नुकसान पहुँचा रहा है, हर इंसान देखता है और शिकायत भी नहीं कर पाता, कुदरती नियम है। आप दूसरांे के लिये गड्ढा खोदो, तो तुम्हारे लिये खाई खुदेगी। इसी नियम से दूरदर्शन ने, हर अच्छे इंसान के लिये गड्ढा खोदा है, मानवता खत्म की है तो दूरदर्शन विभाग घाटे में क्यों नहीं जाएगा? भविष्य में इससे ज्यादा हो सकता है।
देश का ही नहीं, विश्व का सबसे ज्यादा सफाई-सुधार कर सकने वाला, सबसे सक्षम उपक्रम सबसे ज्यादा गन्दगी फैला रहा है, हर तरीके से बेहद दुःख और शर्म की बात निश्चित है। इससे ज्यादा शर्म और दुःख की बात यह भी है, कि विश्व में हर समझदार, छोटा बड़ा सक्षम इंसान, हर सरकारी प्राणी, नेतागण, सारी गैर सरकारी प्राणी, धर्म के ठेकेदार, प्रधानमंत्री तक देख रहे हैं, बस केवल देख रहे हंै, इनमें कोई भी मजबूर नहीं है, केवल गैर सरकारी प्राणी को छोड़कर, कहा जाता है और हर धर्म कहता है, कि हर युग में कोई न कोई ऐसा जरूर आता है, जो जनता को जागरूक करके युग बदलता है, प्रमाण है।
बेशर्मी देखते रहने वाले और पगार खाते रहने वाले, यह इंसान भी सुधरने के लिये, एक दिन मजबूर हो जायेंगे या सुधरने की सलाह देते हुये संसार से विदा हो जायेंगे। कमियाँ या अनियमितता और नुकसान दिखाने और साबित करने के लिये कागज कम पड़ सकता है, पेन की स्याही कम पड़ सकती है, समय कम पड़ सकता है, लेकिन समझदारी यह है कि इसका विकल्प खोजा जाये या बताया जाये और ऐसी कोशिश की जाये कि जल्द से जल्द अमल में आये और सुधार हो, कुछ ऐसा किया जाये कि हर अनियमितता केे विकल्प पर हर इंसान अमल करने को मजबूर हो जाये, अधिकतर ही नहीं लगभग, सब लोग हिम्मत हार चुके हंै, सब का कहना है, कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता, हिन्दुस्तान को तो केवल भगवान ही चला रहा है, नीचे से उपर तक सब भ्रष्ट हैं। ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है, कि कुछ नहीं हो सकता। यह सोच तो, नासमझी का सबूत है। वैसे सच्चाई व धर्म खत्म ही नहीं होते, और पाप, झूठ या अधर्म की उम्र 100 साल से ज्यादा तो हो ही नहीं सकती, या तो सुधार आप ही करेंगे (क्योंकि 70 साल हो चुके हैं) या कुदरत आपके द्वारा करायेगी। बड़ों की बात है, समझदारों की बात है, नामुमकिन कुछ भी नहीं। ”हिम्मते मर्दा मद्दे खुदा“
यह बातें यूँ ही तो नहीं है, सब जानते हैं और सच भी है। आप ही ऐसा नहीं चाहते बल्कि सब चाहते हैं कि सब कुछ ठीक हो। दूरदर्शन विभाग के सब कर्मचारी व अधिकारी तक चाहते हैं कि दूरदर्शन सब के लिये फायदेमंद हो, लेकिन वह मजबूर हो सकते हैं, लेकिन आप मजबूर नहीं है, बस मायूस हैं, मायूस इंसान, कुछ करना तो दूर, कुछ सही सोच भी नहीं पाता।
हमारे पास नारी जाति भी है, यह धर्म से दूर हो रही है, तो गड़बड़ा रही है, ये भूल चुकी है कि इसका उद्धार पुरूष जाति से है, आज नारी जाति को गलत अंहकार हो गया है, कि नारी अब पुरूष के बराबर है, नारी सब कुछ कर सकती है, करती है, लेकिन नारी भूल गयी है, कि इसको सिखाने वाला या प्रोत्साहित करने वाला भी कोई पुरूष ही था, आज भी पुरूष के कारण ही नारी कुछ कर पा रही है, अकेले तो यह कुछ, सही सोच भी नहीं पाती, कुछ करना तो बेहद दूर है लेकिन पुरूष को, सही सहयोग दे सकती है, पहले नारी धर्म सीखे, नारी धर्म में बड़े की या पुरूष की आज्ञा में रहे और फिर उसके सहयोग से कुछ भी करे। पुरूष के सुख में, अपना सुख समझने वाली नारी, सारे सुख उठाती है और पूरी मनुष्य जाति को समृद्ध बनाती है। सबूत अनेक हैं, नारी खुद सोचे, उसे खुद नजर आयेगा, इस नियम पर जो नारी चली है उसने सब कुछ अच्छा ही किया है।
आज खुद मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) सबूत है। मामूली नारी से सी. एम. जैसी नारी बनी है, सीता, लक्ष्मीबाई, मरियम, मदर टेरेसा बनी है। इस नारी ने रामचन्द्र, कृष्ण, राणा, सुभाष, गांधी, जवाहर जैसों को पैदा किया और पालकर महान बनाया, यीशु, गुरू गोविन्द सिंह जैसे बलिदानी बने, यह सब भी एक नारी की मेहनत का फल है, लेकिन यह सब नारियों ने पहले नारी धर्म निभाया, किसी पुरूष की आज्ञा में रहकर व पुरूष के सुख को, अपना सुख समझकर और पुरूष के ही सहयोग से इतना कुछ कर पायी।
समझने वाली बात यह भी है कि, जो नारी कम आज्ञा में रही या नारी धर्म कम निभाया या जितना नारी धर्म निभाया, उसी हिसाब से इन महापुरूषों में, छोटे बड़े का अन्तर आया, मतलब कम मेहनत कम फायदा, ज्यादा मेहनत ज्यादा फायदा और खुद को बड़ा मनवाने के भी सबूत हैं। आप सब हिम्मत करें, कोशिश करें, साथ दें, तो निश्चित ही सुधार होगा, सफाई होगी और धन्य कहलायेंगे। जो सुधार दूरदर्शन को करना है, वह आप सब भी करेंगे। दूरदर्शन, इसके अधिकारीयों के हाथ में हैं, इनकी जागरुकता ही, इन्हें बदल सकती है या गैर सरकारी जैसे टाटा टी. वाले अपने विज्ञापन देते हैं, ऐसे लोगों से कुछ सम्भव हैं। उल्लेखनीय हैं कि रिश्वत खाने वालों के रिश्वत खाने के अनेक तरीके हैं, रिश्वत खाने के बाद वही होगा, जो ग्राहक चाहेगा, चाहे पैसे, चीजों के साथ-साथ मंत्री जैसों की सिफारिस क्यों न करानी पड़े, पूरी कैबिनट को वहीं लाकर खड़ा कर दिया जाता हैं, जो जनता के लिये ठीक नहीं, और पूछने पर पूरी कैबिनेट का या जनता की पसन्द का नाम ही सामने आता हैं। खैर बँधना तो कैबिनेट को भी पड़ेगा, लेकिन इस समय युवा वर्ग इस टी. वी. के कारण व अक्षर ज्ञान के कारण बहुत आगे बढ़ गया है, जिसमें 95 प्रतिशत नारी जाति का सहयोग हैं। निश्चित ही सुधार में थोडा़ समय लगेगा।
संसार के सारे प्राणियों को निमंत्रण हैं, कोई भी या सारे मिल कर, टी. वी. सम्बन्धी अनियमितता या सारी अनियमितताओं को खत्म करके, सारे संसार को सुनहरा बना कर खुद को धन्य करें, और सब पर भारी एहसान करें।
दूरदर्शन, उसके कर्मचारी व हमंे कुछ नियम बनाने है, जो सबके लिये फायदेमंद हों और सबका फायदा हो, मानव जाति अच्छी बने साथ ही मानव धर्म बढ़े।
सुधार-सफाई के लिए विचार
01. दूरदर्शन के पूरे विभाग को चाहिये कि निडर होकर जो दिखायें सच्चाई दिखायें या दिखाने से इन्कार करें, इतिहास, धर्मग्रंन्थ पर आधारित प्रोग्राम में कोई भी चैप्टर न काटें, न बदलंे, जो कोई मिर्च मसाला लगाना भी हो, तो इस प्रकार लगायंे, कि उनकी भावना उजागर हो, सच्चाई उजागर हो न कि झूठ लगे।, इनके उच्चाधिकारीगण साबित करें कि अपने देश की माटी के हैं।
02. विज्ञापन के समय की निश्चित लिमिट बाँधे। उससे इनकम का साधन है, यह सच है, लेकिन प्रोग्राम की गरिमा कम न हो, दर्शक का सिरदर्द न बने, सारे दूरदर्शन विभाग को दर्शकों की, गाली खाने की नौबत न आये। टाटा टी. जैसे विज्ञापन जरुर लाभदायक हैं, वेसे विज्ञापन का समय, एक मिनट और दो मिनट जो दिखाया जा रहा है, काबिले तारीफ हैं।
03. सीरियल बने लेकिन नारी और बच्चे धर्म पर चलें। ध्यान रखें ऐसा बिल्कुल न दिखायें, निश्चित ही हम 21वी. सदी में हैं, लेकिन गाय को छूट और साड़ को बाँधने वाली बात तो न हो। जो अच्छे मतलब एडवांस फैमिली में भी हो ही नहीं सकता। बेशर्म नारी भी ऐसा नहीं कर सकती, चाहे वह लोक संगीत हो, प्रवचन हो, सीरियल हो, जैसा पिक्चर में दिखाते हैं, ऐसी कोशिश करें, खासतौर से सीरियल के विज्ञापन कम करें, 30 मिनट के सीरियल के लिये पूरा-पूरा दिन और पूरे सप्ताह, उनके विज्ञापन देते हैं और 30 मिनट के सीरियल में 10 मिनट का ही कुछ दिखा पाते हंै, खासतौर से नारी जाति को पुरूष जाति से बाँधने की कोशिश करें। बच्चों को बड़ांे के साथ बाँधने की कोशिश करें और खास बात पिक्चर की तरह 3 घंटे या 6 घंटे में पूरे होने वाली कहानी के रूप में बनायें। पैसा लोन का है, इसका प्रयोग जनता को सुधारने के लिये करें। याद रखें कि आजादी और सुविधा समझदार के लिये ही फायदेमंद होती है। नारी, बच्चे, नेता, नौकर और जानवर के लिये तो बिल्कुल नहीं, कभी नहीं। ऐसा सीरियल तो बनायें ही नहीं कि दूरदर्शन विभाग ही बदनाम हो।
04. यह ध्यान दूरदर्शन विभाग को भी पूरी तरह रखना चाहिये कि अनियमितता से ओत-प्रोत इंसान पैसे के बल पर दूरदर्शन को न खरीद पाये। जैसे गलत नेता, प्रवचन करने वाले, गलत सीरियल दिखाने वाले या अन्य, अधिकारीगण सक्षम हैं, वह कानून को भी जवाब दे सकते हैं और वह मान्य होगा, दर्शक साथ देंगे, दूरदर्शन जनता का ध्यान रखे। कानून को बदलना पड़ेगा। कानून जनता के लिये है, न कि कानून के लिये जनता, फिर मीडिया भी साथ हैं।
05. घटिया विज्ञापन को बेहद छोटा करें। जैसे निरोध के लिये किये गये हैं, घटिया विज्ञापन जैसे विस्पर के या स्टे-फ्री के विज्ञापन ऐसे करें, जैसे निरोध के किये गये हैं और ऐसे विज्ञापन को बढ़ावा दें जैसे ”आप जागेंगे तो देश जागेगा“, ”आगे बढ़ो और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाओ“ जो देश के सुधार में सहायक हों। जैसे टाटा-टी के विज्ञापन।
06. समाचार या पार्लियामेन्ट न्यूज पर खास ध्यान दें। ऐसा दिखाना बिल्कुल बन्द करें जिससे नेता की इज्जत कम हो। देश के हर छोटे-बड़े की इज्जत कम होती हो। समाचार दिन भर रिपीट करते रहते हैं और मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) की माला जैसी न्यूज दोबारा अगले दिन न दिखा कर कानून, जनता व सच्चाई को खत्म करने जैसा काम बन्द करें।
07. पिक्चर चैनल लगभग ठीक चल रहे हैं लेकिन विज्ञापन कम करें। जी सिनेमा, फिल्मी जैसे चैनल को प्रोत्साहन दें। विज्ञापन कम करने का तरीका पैसे बढ़ाना गलत होगा क्योंकि गैर सरकारी पैसे के बल पर दूरदर्शन खरीदने की हिम्मत निश्चित रखता है। सही यह होगा कि कहे, जनता की इच्छा है। दर्शक ऐसा चाहता है या धर्म नहीं तोड़ा जा सकता आदि-आदि या कानून बनाये।
08. मैच हो या सीरियल। कम से कम हर कर्मठ इंसान के समय का ध्यान रखें। लोग अनजान या कम बुद्धि प्राणी, अपना काम छोड़ कर मैच जैसे प्रोग्राम में लीन हो जाते हैं और सबका भविष्य दाँव पर लगा देते हैं। खेल कहीं भी हो, टी. वी. पर मैच या खेल का समय निश्चित करें, जिससे देश में कर्मठता कम न हो, 15 अगस्त, 26 जनवरी के अलावा सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर दिखाना, देश की कर्मठता पूरी तरह बाधित करना है।
09. विज्ञापन को कम करके अगर पहली कक्षा से लेकर एम. ए. कक्षा तक की शिक्षा, अनगिनत शिक्षा के प्रोग्राम हैं, अलग-अलग समय में पढ़ाई निश्चित करें और इनके विज्ञापन देते रहें, तो खासतौर दूरदर्शन का सबसे ज्यादा सही इस्तेमाल साबित होगा। लेकिन बड़े-छोटे की उसी के अनुसार कद्र, नारी पुरूष का साथ और इज्जत ज्यादा दिखायंे। दोनांे की सही, सच्ची स्थिति दिखायें जिससे आने वाली नस्ल अच्छी और बहादुर हो। नारी-नारी रहे, पुरूष-पुरूष रहे, ध्यान रखें।
10. दूरदर्शन द्वारा सूचना विभाग जैसे सही विभाग ज्यादा दिखाये जायें। लोगों को उत्साहित करें कि, अनियमितता की शिकायत करना और सुधार-सफाई करने जैसा प्रोग्राम ज्यादा दिखाने की कोशिश करें। विज्ञापन जरूर दिखायें लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं कि, नारी और लड़की शर्म ही त्याग दें, धर्म ही तोड़ दें। बिल्कुल पिक्चर स्टाइल में दिखायें जिसमें गलत नारी भी बाद में शर्माती है और गलती की माफी माँगती है, क्षमा माँगती दिखाते हंै। छोटे में आज्ञाकारिता, बड़ों के प्रति नतमस्तक होने जैसे गुण आयें। नारी में वह गुण बरकरार रहे, जो शादी के समय पहले तीन दिन पति के साथ आचरण में लाती है।
11. खास समाचार दिखाते हंै 24 घंटे। इन 24 घंटे में एक-एक मिनट का, हर एक घंटे में सजा दी गई, प्रोग्राम जरूर दिखायें कि उस गलती की सजा उस प्राणी को इस प्रकार दी गयी। जिससे हर जुर्म करने वाला डरने लगे। यह उसके बच्चे तक परिवार के लोग सम्बन्धी तक शिकायत करने लगे, कि कोई गलती मत करना, सजा मिलेगी। दूसरा अच्छे इंसान प्रोत्साहित हों, खुश हो कि गलती करने वाले को सजा मिली। याद रखें गलती करने वाला, किसी का कुछ नहीं होता। फिर दूरदर्शन विभाग ही क्यों सोचे कि यह फलाना नेता है, इसकी गलती छुपा लो। सुधार में दूरदर्शन सबसे अहम किरदार निश्चित अदा कर सकता है। खासतौर से किसी हिस्ट्रीसीटर अपराधी को, इतना ना दिखाये कि वह हीरो ही बन जाये।
12. दूरदर्शन कैमरा, हर नेता और नेता के रहने की जगह पर निश्चित रहा है, सर्किट हाउस, पार्लियामेन्ट तक में रहा हैं, फिर भी, इनके घोटाले जैसी कमियाँ, इनकी अनियमितता और इनका सुधार क्यों नजर नहीं आता? हर विभाग की अनियमितता और उनका सुधार भी दिखायें। हर एक्सीडेन्ट, त्यौहार कैमरे पर दिखाते हैं, लेकिन इन्हे क्यों नहीं देख पाता? यह सच है सी. बी. आई., विजिलेंस, सी. आई. डी. और खुफिया विभाग है, यह कैमरा क्यों नहीं दिखा पाता? नेता की गद्दारी के सबूत है कि साथी नेता के मरते ही केवल फूल चढ़ाना, उसकी छुट्टी मनानी याद रहती है। पहले तो नेता ही, दूसरे नेता को मारता है, चाहे देश का कितना ही नुकसान क्यो ना हो। हर अधिकारी को चाहिये कि कैमरे की आँख खुली रखें और जो नजर आता है, वहीं दिखायें। हर विभाग और जनता को चाहिये कि दूरदर्शन का, इस काम में सहयोग करें, साथ दें और दूरदर्शन विभाग को चाहिये कि ऐसी गलती करने वाले से मोटा जुर्माना अविलम्ब राजकोष में जमा करायें।
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