Thursday, April 16, 2020

पी. डब्ल्यू. डी. विभाग

पी. डब्ल्यू. डी. विभाग

सृष्टि बनने के बाद मनुष्य ने शुरू से ही चलना और हर रास्तेे का ध्यान रखना शुरू किया। जैसे-जैसे मनुष्य ने होश सम्भाला और बढ़ोत्तरी की। अपने आने-जाने वाले रास्ते का भी ध्यान रखा, सुधार रखा। मुखिया बनते ही इस और भी खास तवज्जो दी, राजा-महाराजा बने और आने-जाने में खुद की व प्रजा की सहुलियत का विशेष ध्यान रखा। पहले कच्चे रास्ते बनाये, फिर पत्थरांे की सड़के तथा बाद में तारकोल की सड़कांे का चलन शुरू हुआ, सड़कों का बड़ा काम सही तरीके से, लगातार व जल्द हो, इसकी इस यूनिटी को, पी. डब्ल्यू. डी का नाम दिया गया और अलग विभाग बनाया गया।
पूरे देश में गाँव और शहर को मिलाने के लिये सड़कांे का विशाल कार्य करने वाली यूनिटी को पी. डब्ल्यू. डी का नाम देकर, बेहद सक्षम बनाया गया, आज इनकी मेहनत से, हर इंसान हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक सड़कों के द्वारा बिना परेशानी के, आसनी से पहुँच सकता है। सरकार के पास सबसे बड़े दो ही काम थे और वह थे, रेल और सड़कंे, जिनके उपर अन्य सारे काम आधारित थे।
रेल का विशाल काम लगभग पूरे देश में, रेलवे लाइन बिछाना और पी. डब्ल्यू. डी. के पास पूरे देश में माकूल, बढ़िया सड़कंे बनाना, अविश्वसनीय मेहनत, लगन और दिमाग का काम निश्चित रूप से है। इस विज्ञान के जमाने में बड़े बड़े हैवी लोड 60 और 90 कि. मी. की स्पीड से साफ चिकनी सड़कों पर, एक जगह से दूसरी जगह पहुँचते हैं, जगह-जगह बड़े पुल बनाना। अब तो बड़े-बड़े शहरों की भीड़ बाधक न बनें, इसके लिये 7 और 10 किलोमीटर लम्बे, बड़े-बड़े हैवी ओवरब्रिज बनाये गये, जिनके डिजाइन और बनावट व मजबूती देखकर, देश की समृद्धि नजर आती है। विदेशी टैक्निक लाना और उनके द्वारा या उनकी देख-रेख में बनाना, बेहद मोटे खर्च का प्रोजेक्ट है, जो सफलतापूर्वक चल रहे हंै और पूरे हो रहे हैं।
रेल, मेट्रो और छ-छः लाइन की बेहद विशाल चैड़ी सड़कंे, सोचते हुए ही मन प्रसन्न होता है। यह सब पी. डब्ल्यू. डी. की मेहनत और लगन का फल है, रेल के काम सीमित हो चुके हैं क्योंकि स्टीम इंजन, फिर डीजल इंजन, अब बिजली के इंजन और बिजली की लाइन व सब जगह ब्रोड ग्रेज लाइन लगभग पूरी होने को है, लेकिन सड़कों का काम अभी अधुरा है, बड़े-बडे़ महानगरों में भी सड़कें अभी अधूरी हैं, जिसमें सब शहर-गाँव की सड़कें पूरी करने में लम्बे समय और मोटे धन की आवश्यकता निश्चित है और पी. डब्ल्यू. डी. निश्चित ही कार्यरत है।
यह सारे काम सोचे हुए समय से आधे समय में पूरे हो सकते हैं, अगर हर सरकारी विभाग एक-दूसरे का ध्यान रखें। ”गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम अपनायें, नेतागिरी जैसे प्रोजेक्ट को बाँधे, सड़कंे बनाना, पुल बनाना, उनकी मेन्टिनेंस समय पर करना, अपने आप में बड़ी मेहनत का बेहद विशाल प्रोजेक्ट है और इसमें, केवल गैर सरकारी ही पिस रहा है। हर चीज पर नाजायज या असहनीय टैक्स अपने आप में बेहद विशाल धन का भण्डार है, जिससे हर काम बड़े व अविश्वसनीय काम भी रातों-रात में निश्चित हो सकते हैं लेकिन आये दिन नेतागणों के खर्चे और गद्दारी बेमकसद, इनके सरकारी विभागो पर दबाव, भ्रष्टाचारी, गद्दारी आजादी से लेकर, हर छोटे काम में भी खासतौर से, देश की समृद्धि में बेहद विशाल अवरोध है।
इन नेताओं के कारण एक गली की छोटी सी सड़क पर भी, बेहद मोटा खर्च दिखाया जाता है और उसकी बनावट इतनी घटिया होती है, कि बनने के बाद, तीसरे दिन ही टूटने लगती है। इन घटिया नेतागिरी के कारण, हमारा वफादार सरकारी कर्मचारी और अधिकारी भी मजबूरी में गद्दारी करने के लिए मजबूर हो जाते हैं और मोटा धन नेतागण और सरकारी प्राणी में बँट जाता है।
विडम्बना यह है कि काम भी नहीं हो पाता। इन सड़कों के बनने से लगभग, हर गैर सरकारी प्राणी मोटा नुकसान सह रहा है, यही नहीं बेहद परेशान भी है, यह नुकसान और परेशानी कई गुना और उस समय बढ़ जाती है, जब पी. डब्ल्यू. डी. विभाग, ठेके पर काम औरों से करवाते हैं। पहले एक सड़क बनाने में महीनों लगते थे और गैर सरकारी एक-एक बूँद तेल व ज्यादा खर्च करके, अपने वाहन मेन्टिनेंस में एक-एक पैसा ज्यादा खर्च करके, अपना मोटा नुकसान और परेशानी महीनों भुगतता था। अब मशीनों द्वारा रातों-रात लम्बी दूरी तक अच्छी सड़के बनती तो हैं, लेकिन नाजायज पैसा सरकारी अधिकारी और नेताओं में बंट जाता है। जो घूम फिर कर गैर सरकारी के उपर ही पड़ता है।
इस अत्याचार और गैर सरकारी के पिसने के अनगिनत सबूत हैं। दिल्ली (भारत) से गढ़ गंगा वाली कई लेन की सड़क और हर जगह ओवरब्रिज की स्कीम ने जनता को भारी कष्ट दिया है। सेन्टर का नियम है कि किसी गैर सरकारी की जमीन या प्रोपर्टी के सर्किल रेट देकर सरकार उसकी जगह इस्तेमाल करे। नेता, अधिकारी और ठेकेदारों ने मिलकर जनता और सरकार से गद्दारी की, सड़क के दोनों और की कीमती जगह, जिसमें गैर सरकारी प्राणी, खेती करके खुद का व अपने परिवार का गुजारा करता था और सरकार व जनता को देता था, कौड़ियो का भाव लगाया और सरकार को ज्यादा दिखा कर पैसा खाया।
बाद में जनता जागरूक हुई और जनता को सामने आना पड़ा कि हम किसी कीमत पर या इससे कम कीमत पर जमीन देंगे ही नहीं। फिर काम रूका और सरकार ने खुद नेता और सरकारी विभाग की गलती को छुपाकर, सही कम्प्रोमाइज किया, इसमें भी ठेकेदार को ही नुकसान उठाना पड़ा, यह भी गैर सरकारी ही है। सरकारी प्राणी पगार भी ले रहा है और गद्दारी की कीमत भी ले रहा है। उदाहरणस्वरूप सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत) में अम्बाला रोड, खलासी लाइन, आई. टी. सी., रेलवे और पी. डब्ल्यू. डी. के सौजन्य से रेलवे फाटक पर पुल निर्माणाधीन है। लेकिन सरकारी प्राणी और नेतागण की गद्दारी का सबूत है कि पुल नवादा रोड की तरफ उतारने के, सही नक्शे और बचत को छोड़कर आई. टी. सी. खलासी लाइन की तरफ उतारा और डिजाइन गलत किया, जनता का मोटा नुकसान किया, साथ ही सरकारी मोटा पैसा खपाया, पुल अभी निर्माणाधीन हैं, घनी बस्ती, आने-जाने का रास्ता भी बंद हैं, उम्मीद से ज्यादा समय लगना और लाखों लोगों का हर दिन का नुकसान व परेशानी चल ही रही है।
आये दिन जनता एक-एक बूँद तेल और कीमती समय बर्बाद करे, चढ़ने-उतरने में परेशान हो। इसके अलावा पूरी मार्किट की दुकानों की वैल्यू कौड़ियों में पहुँची, कारोबार खत्म। जबकि इस पुल की जरूरत ही नहीं थी। रेलवे लाइन के नीचे छोटे वाहन और पब्लिक के लिये रास्ता काफी आसानी से और सस्ता बन सकता था, आई. टी. सी. और सबके लिये कचहरी का पुल, दूसरी तरफ अम्बाला रोड पर बड़ा पुल माकूल और सही था और है भी, यह पुल सालों से निर्माणाधीन है और लाखों लोग, सालों से हर परेशानी भुगत रहे हैं, मोटा नुकसान कर रहे हंै, सेन्टर पहले पब्लिक की परेशानी देखता है, रेल विभाग तो खासतौर से ध्यान रखता है। इस बार रेल ने भी यह नियम तोड़ा है, शहर में हर अधिकारी है, नेता है, शहर ही समृद्धि बताकर महापालिका बना दी गई, लेकिन यह सब उपर का पैसा खा रहे हैं और नेता, जनता को पिसने के लिये मजबूर कर रहे हंै।
यह निर्माण कब तक पूरा होगा यह भी निश्चित नहीं है, पुल गलत है, यह कोई भी कह सकता है और कहेगा। निश्चित ही हर अधिकारी और नेता सब गलती की सजा के हकदार हंै, खासतौर से नगरपालिका, प्रशासनिक अधिकारी व कर्मचारी। सबूत हर शहर और हर गाँव के हंै। अभी (पश्चिमी उ0प्र0, भारत) देहली रोड हसनपुर (सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत)) से अम्बाला रोड-सर्किट हाउस रोड का राजवाहा व उसकी सड़क निर्माणाधीन है। राजवाहे का फर्श, दोनों तरफ की दीवार, उस पर सलेब और राजवाहे के दोनों तरफ वन वे सड़क लेकिन लोहा व सरिया लगभग ठीक लगा रहे हंै, बाकी सीमेन्ट भगवान ही मालिक है। इंजीनियर, ओवरसीयर नहर विभाग तक के हंै, लेकिन निर्माण बिल्कुल गँवारू है। कोई नाप-माप नहीं, डिजाइन नहीं, राजवाहे की चैडाई कहीं जायदा कहीं कम हैं। सलेब व सलेब का सीमेन्ट सही न होने के कारण व सलेब का नाप-माप सही न होने के कारण, सलेब रखते हुए डैमिज होना निश्चित है, लेबल तक गलत है।
गंगोह रोड से हसनपुर रोड तक इतना खुबसुरत डिजाईन और बेहद मजबूत, इससे बेहद कम लागत में निश्चित बन सकता था। इस राजवाहे से व सड़क से, हर साल मोटा पैसा, सब नेता व सरकारी प्राणी के द्वारा खाया जाता रहा है। इतने पैसे से, कई ऐसी सड़कंे बनती और मजबूती में ”बाबा बनाये पोता बरते“ वाली कहावत सिद्ध होती।
नगरपालिका व पी. डब्ल्यू. डी. इस समय पूरी तरह सक्षम है और नियम है शहर के बीच निर्माण में भी, जनता की हर असुविधा का ध्यान रखा जाता है, सब पढ़े-लिखें हंै, लेकिन हर निर्माण की तरह इस निर्माण में भी केवल सर्किट हाउस लक्कड़माजरे तक बेहद बुरा नजारा है। कुछ दुकान तो निर्माण शुरू होने के बाद से ही बन्द हैं। केवल घूल-धक्कड़ और पोल्यूशन के कारण सब परेशान हैं, जबकि नगरपालिका को दोनों समय पानी का छिड़काव करना चाहिये सारी परेशानी दूर हो, ठेकेदार की भी ड्यूटी है कि रेत, बजरी, सड़क पर ना छोडे़, सफाई रखें। बेहद ट्रैफिक और बजरी के कारण, मोटरसाईकिल वाले दिन में तीन-चार बार गंभीर एक्सीडेंट से बचते मिलते हैं, लेकिन चोट व टूट-फूट तो निश्चित होती हैं। आये दिन दो-चार हादसे होते हंै। लोग बेचारे नकाब लगाने को मजबूर हैं, खुद झाडू़ मार-मार कर परेशान हैं। इन पढ़े-लिखे लोगांे को काम कराने और काम करने की तमीज तक नहीं है, वैसे नेता भी हैं, सरकारी अधिकारी भी हैं, खानदानी भी हैं, यह निर्माण पूरे निर्माण का दसवाँ हिस्सा ही अभी हुआ है, बाकी सब अधूरा है।
ऐसी बात नहीं है कि यह सारी अनियमितताएँ किसी की नजरों से बची हों या किसी के दिमाग में न आयें और पी. डब्ल्यू. डी. जो बेहद, जिम्मेदार विभाग है, खास है, सारे उच्च अधिकारी, कर्मचारी व सारे नेता आये दिन, इस रास्ते से गुजरते हैं और पूरी तरह वाकिफ हैं। फायदे नुकसान से वाकिफ हैं। वफादार और समझदारी का सबूत यह भी है कि काम करने वाले उच्च अधिकारी को सही सलाह भी दें, वह भी आपके भाई-बन्धु ही हैं, अनियमितता या गलती हो सकती है, सलाह देकर सही कराना खुद को और ऊँचा उठाना ही है, किसी को भी अपने काम और ड्यूटी से निश्चित ही फुरसत नहीं होती, लेकिन अतिरिक्त मेहनत अतिरिक्त फलदायी जरूर होती है। फिर अधिकारी चैबीस घण्टे का कर्मचारी निश्चित है, पूरे देश की जिम्मेदारी उसकी है यह बात कभी भूलनी नहीं चाहिए।
कोई भी भगवान जैसा इंसान या पीर-पैगम्बर भी अनियमितता या गद्दारी खामोशी से देखता रहे, तो एक दिन वह खुद गद्दार बन जायेगा, एक अधिकारी अनियमितता देखता रहता है, यह अपने आप में गद्दारी ही है। यह गद्दारी परिवार, खानदान तक के लिये निश्चित रूप से अपने-आप हो जाती है।
आज के समय में कोई सरकारी कर्मचारी गद्दारी से बचा हो सकता है, लेकिन कोई भी सरकारी विभाग और कोई नेता गद्दारी से बचा ही नहीं है, यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है। इसी बात की सच्चाई के कारण पी. डब्ल्यू. डी. विभाग भी अनियमितताओं के दायरे में है और जितना बड़ा और जिम्मेदार विभाग है, उसी हिसाब से अनियमितताएँॅ बड़ी और बेहद गहरी हैं। यह सब कमी इंजीनियर, ओवरसीयर और उच्च अधिकारीगण व गलत नेता के कारण हैं, जो पढ़ाई के समय से व गलत सोहबत के कारण, नौकरी शुरू होने से ही है। गलत नेताओं के गलत दबाव और गद्दारी के कारण तेजी से बढ़ोत्तरी पर है।
ठेकेदारों को काम दिया जाना और खासतौर से शहर के काम में भी, डी. एम. जैसे अधिकारी को बिना माँगे परसेन्टेज पहुँचाने जैसी बातों से और ज्यादा गहराई है, इधर सड़कें बनवाना और फिर मेन्टीनेन्स न करना, खर्चा बेहद बढ़ा देता है, जिसमें टूटी-फूटी सड़कों के कारण 80 प्रतिशत भार गैर सरकारी के उपर पड़ता है, मशीनरी की टूट-फूट, तेल का खर्च और असुविधा के साथ-साथ कीमती समय की बरबादी निश्चित होती है, फिर महँगाई भी बढ़ती हैं।
रेल विभाग जैसी संस्था अपने रेल ट्रेक की निश्चित समय में चेकिंग और रिपेयर करते रहने के कारण बेहद मोटे नुकसान से बचत करता है, इसी प्रकार सड़कों की रिपेयर होती रहे तो सरकारी और गैर सरकारी की बेहद मोटी बचत निश्चित है, खासतौर से कीमती समय की बचत, हर गैर सरकारी को भारी रोड टैक्स देना पड़ता है, कच्चे माल से लेकर जो फैक्टरी में जा रहा है और पकाकर बाहर निकालने तक का अलग-अलग टैक्स, दुकानदार के पास बिक्री तक और खरीदार को खरीदने तक टैक्स देना पड़ता है, जिसमें किसी को एतराज नहीं। लेकिन रोड सही रहने के बाद जगह-जगह बैरियर लगाकर 20 रूपये, 50 रूपये, 100 रूपये हर वाहन तक का टैक्स हर गैर सरकारी को देना पड़ता है, यह नियम नेताओं के लिये क्यों नहीं? जबकि बैरियर टैक्स एकदम नाजायज नजर आता है। क्या हमारी सरकार इतनी कंगाल है कि सड़क बनाने, ओवर ब्रिज बनाने में जो पैसा लगता है वह वाहनों से इकट्ठा किया जाये? इसमें भी साल दो साल में इसकी लागत से कहीं ज्यादा मोटा पैसा इकट्ठा होता है, लेकिन बैरियर हमेशा टैक्स लेते रहते हैं। जबकि यह पैसा इकट्ठा करने की पैथी (विधि) ही गलत है, यह सब लालचवश चलती रहती है और भष्ट्राचारी, रिश्वतखोरी और गद्दारी में बदलती है।
अधिकतर वाहन 100/-रुपये की बजाय पचास रुपये देकर बिना रसीद के निकल जाते हैं और यह बचा हुआ पैसा, हर अधिकारी और नेता के पेट में पहुँचता रहता है। ऐसी कोई भी प्रक्रिया भ्रष्ट्राचार को बढ़ाना ही तो है, इसके अलावा पुलिस हर ट्रक, ट्राली से पचास रुपये परमानेन्ट लेती है, जो की एकदम गलत है, सरकारी विभाग के प्रति गद्दारी का बेहद बड़ा सबूत है, हर जिला, हर पं्रात में यह जारी है और बेहद शर्मनाक है, खासतौर से विजीलेंस खुफिया विभाग, सी. आई. डी. के होते है, यह खुद इनके प्रति भी गद्दारी का सबूत है।
इसी अनियमितता के कारण पूरे देश के हर प्राणी, सरकारी प्राणी, गैर सरकारी प्राणी व देश के भविष्य विद्यार्थीगण, देश की इज्जत नारी, मतलब पूरे देश की समृद्धि में बेहद बड़ा अवरोध है। इसमें भी आरक्षण जैसा रोग हर अधिकारी, हर नेता और हर गैर सरकारी को निश्चित ही जलील, कमीन, गुलाम, गद्दार, नामर्द बनाता ही जा रहा है, हर इंसान का खून सफेद होता जा रहा है, एक खुद्दार इंसान भी कीडे़-मकोड़े से बदतर हालत में जीने के लिए मजबूर है, जो कि हर हालत में गलत है।
यह सब अनियमितता, जो बड़ी भारी गद्दारी के रूप में सामने है और तेजी से बढ़ रही है, केेवल पी. डब्ल्यू. डी. विभाग की एक अँगुली की जरा सी जुम्बिस से, अविश्वनीय तरीके से गायब हो सकती है और पूरा देश साफ-सुथरा बन सकता है।
यह रोड टैक्स वसूली के चक्कर में कम्प्यूटराईज आधुनिक बैरियर बनाने में भी करोड़ांे रुपये की लागत पहले ही आती है और रिपेयर व मेन्टिनेंस का खर्चा परमानेंट अलग है, जिसमें मोटा खर्चा निश्चित आता रहता है, विजीलेंस खुफिया विभाग, सी. बी. आई., सी. आई. डी. सारे विभाग नकारा साबित हुए हैं और इनकी हर माह मोटी पगार और हर फैसेल्टी मतलब बेहद मोटा धन का भण्डार, हर महीने खपता रहता है, मोटा नुकसान सरकार और जनता का निश्चित रूप से स्वयंमेव हो रहा है।
हर तरीके से घुमा-फिरा कर देखा जाये तो निश्चित ही पी. डब्ल्यू. डी. विभाग की अनियमितता के कारण, यह विभाग जहाँ बेहद फायदेमंद होना चाहिये वहाँ बेहद नुकसानदायक साबित हो रहा है। इनकी अनियमितता की यह छोटी सी झलक है, वरना हर जगह पी. डब्ल्यू. डी. की अनियमितता अलग-अलग है और अविश्वनीय तरीके की है, जो खत्म न होने वाली नजर आती है, ठीक होना अस्मभव नजर आता है, वह भी इसलिये कि हर सरकारी प्राणी और नेता जो सरकार से पगार ले रहे हैं, ठीक करने की सोचते ही नहीं, इसके विपरीत हर अनियमितता को बढ़ावा देते हैं क्योंकि पैसा कमाने में अनियमितता करना आसान है और कमाई का सूत्र ही अनियमितता है।
हर अनियमितता गारण्टी केे साथ खत्म होगी, सरकार भी चाहे कि ठीक न हो फिर भी अनियमितता जरूर ठीक होगी और ठीक करने वाली होगी, जनता। यह जनता कीड़ें-मकोड़ांे की तरह पलने के लिये मजबूर है। हर अत्याचार सह रही है, इसके बावजूद यह महाशक्तिशाली है और अनियमितता ठीक करना, जनता के लिये बेहद आसान है, चींटी, भीरड़, ततैया, मधुमक्खी की तरह इनकी बुद्धि उलट गई तो अनियमितता देखते-देखते खत्म हो जायेगी, यह जनता, सभासद, प्रधान, चेयरमैन, सेक्रेटरी, नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री को तिनके जैसा प्राणी बना सकती है, उन्हें सारे सुख देकर अथाह धनवान बना सकती है, बड़े से बड़ा अधिकारी बना सकती है। (यह सारे यही की मिट्टी में खेलकर पले हुए बच्चे हैं, जो आज पूरा देश चला रहे हैं, जनता की ही सन्तान हंै) तो हर अनियमितता खत्म करना कितना असान है।
हर सरकारी प्राणी और हर नेता को झूठा गर्व है, कि वह देश चला रहे हैं, यह केवल जनता की इजाजत ही है, जो यह देश चला रहे हैं, यह गैर सरकारी प्राणी ही है, जो सबको पाल रहा है, हर फैसेल्टी दे रहा है और खुद हर परेशानी से जूझकर, सबकी सेवा कर रहा है, बड़े-बड़े जज न्यायमूर्ति तक इन्हीं की सन्तान हंै, अच्छा यही है कि यह सब सरकारी प्राणी और सारे नेता अपनी-अपनी ड्यूटी सही व पूरी करें और दूसरे के सुधार और सफाई का पूरा-पूरा ध्यान रखें। हम सब मिलकर अच्छे और बड़े काम करें तो मानव धर्म पूरा हो।
भारत में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख और ईसाई धर्म पल रहा है, जिसमें हर प्राणी अकेला भी ऐसा-ऐसा है कि ”ट्टीे चक देवागंे“ जैसी मिसाल दे सकते हैं। अल्लाह हो अकबर, बोले सो निहाल-सत्श्री अकाल, जय श्री राम, जैसे नारे कुछ समय में ही हर अनियमितता को निगलने की असीम शक्ति रखते है। अतिशयोक्ति नहीं है, झूठ नहीं है।
सी. एम., नेता ही नहीं हर नेता के चमचे, विधायक द्वारा छोटे-मोटे गाँव के छोटे-मोटे बच्चों के झगड़ो में भी, कानून को गन्दा बनाया जा रहा है। हरिजन के द्वारा पुलिस व अस्पताल में भी फोन कराये जाते हैं कि सरकार हमारी है, दूसरी पार्टी की डाक्टरी न हो, वह भगवान रूपी डाॅक्टर सी. एम. के डर से कानून तोड़कर, मानवता छोड़कर डाक्टरी जैसे पैशे की तौहीन ही नहीं करता है, हादसे के शिकार मरीज की दवा-दारू के लिए ही मना कर देता है।
ऐसा करके या सरकारी अधिकारी से गलत करवाकर गाँव जैसी जगह पर दो समाज में खत्म न होने वाले झगड़े, बैर, भेदभाव के बीज बो देते हंै, यह बात गाँव के प्रधान और गाँव वालों को भी सोचनी चाहिए। खुद के बैर-भाव खत्म करके ऐसे अधिकारी और नेताओं से एकजुट होकर पीछा छुडाएंे। आज हर हरिजन ने नियम बना लिया है कि झगड़ा करो, यह झगड़ा भी वहाँ करो, जहाँ काम कर रहे हैं, रोजी रोटी ले रहे हैं, रह रहे हंै और यहीं से झगड़ कर पन्द्रह हजार रुपये लो या बलात्कार की रिपोर्ट करो और दो लाख रुपये लो, इसके लिये झूठा बलात्कार दिखाना और डाॅक्टर कहते देखा गया है कि दो आदमी ले जाओ, बलात्कार करके या करवाकर आओ, मुझे पैसा दो, तब मेडिकल रिपोर्ट में लिखा जायेगा, ऐसे केस एक दो नहीं अनगिनत हंै और आगे लोग गलत नेताओं की सपोर्ट से लगातार कर रहे हैं, वाह रे। मनुष्य, वाह री नारी। खुद मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) पाँच करोड़ की माला पहन सकती है, लेकिन हादसे से गुजरे बच्चों, अनाथ बच्चो को सहायता भी नहीं दिला सकती और सुझाव देने पर जवाब मिलता है कोष में धन नहीं है, गरीब विधवा पेंशन को 300 रुपये प्रति माह, वह भी हर माह नहीं साल में दो बार दिये जाते हैं, जैसे ये गरीब नारी नहीं है, दिन उसे खाना नहीं या 300 रुपये मिले भी नहीं, केवल गेंहू लेकर एक मुट्ठी दिन खाना हैं, 300 रुपये माह में गुजारा करना है न, वह भी केवल पेंशन की इन्तजार के लिये केवल जीना है, एक कप चाय दिन भी पीये तो माह में 150 रुपये का खर्च आता है, जबकि महीना 31 दिन का भी होता है।
भारत में एक से एक धुंरधर हैं, कानूनबाज हैं और हर नेता के होते हुए भी, केवल सी. एम. जिन्दाबाद बाकी सब मुर्दाबाद, यह सब केवल जनता की सुस्ती का ही तो कारण है। यह थोड़ा सा ब्रेक इसलिये हैं, कि पाठकगण और गहराई से सोचे और सही सुधार करें, सब मिलकर एक-दूसरे की सहायता से जल्द से जल्द सुधार करें, बल्कि हर मुल्क के लोग मिलकर, एक-दूसरे मुल्क का सुधार करें। क्योंकि पूरा संसार ही गैर सरकारी है और सरकारी प्राणी व नेता ग्रुप उसकी देखभाल के लिए वेतन पर रखा गया है, और एक घर को भी बचाना है तो बेहद दूर तक सफाई-सुधार रखना ही पड़ेगा। भोली, मजबूर जनता किसी का भी जय-जयकार करा देती है लेकिन बुद्धि उलटने पर रहे नाम भगवान का।
बात पी. डब्ल्यू. डी. की चल रही थी। इन सब अनियमितताओं के कारण पी. डब्ल्यू. डी. विभाग खुद अपनी नजरो में गिरने लगा है और लगातार कमजोरी व अथाह मेहनत की तरफ अग्रसर है, इनके जीवन का रंग खराब होने लगा है, जबकि यह पूरी तरह सक्षम है। इसको इस कमी से बचाने के लिये कुछ नियम बनाने चाहिए, हर इंसान कमी तो बताता है, लेकिन कभी सुधार के लिये कोई युक्ति या विकल्प नहीं बताता। संसार के हर प्राणी, हर समाज, हर यूनिटी व हर देश के सब प्राणी को निमंत्रण हैं, हर जगह की हर अनियमितता खत्म करके, संसार को सुनहरा बनायें, खुद को धन्य करें, आप धुरंधर हैं, साबित करें। पाठकगणों से नम्र अनुरोध है कि नियम पढ़ें अमल मंे लायंे। यह नियम पाठकों पर थोपे नहीं जा रहे हंै, अगर इन्हंे सुधार की कोई और माकूल युक्ति सूझती है तो बताईये। हम आमंत्रित करते हैं, स्वागत करते हैं। इन्टरनेट का उपयोग चलन में लायें। नारी जाति से अपील है पूरा साथ दें, पुरूष का। शिकायत करना सिखा कर मर्द बनायें और खुद को महाशक्ति साबित करें।

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. पी. डब्ल्यू. डी. हर निर्माण से पहले वहाँ पर सूचना बोर्ड लगाये, जिसमें कार्य शुरू होने की तारीख, उसका खर्च, निर्माण पूरा होने की तारीख, कार्य निर्माण की गारण्टी, समय, दिनांक और सन् तक नोट करें, रिपेयर की अगली तारिख तक नोट करें। जिससे जनता, नेता, सारे सरकारी अधिकारी देख सकेें। गारण्टी समय से पहले टूट-फूट होने पर, जिम्मेदार अधिकारी, ठेकेदार और नेता सब का ध्यान रख सकें और किसी भी गलती पर, गलती करने वाले से मोटा जुर्माना राजकोष में जमा कराया जा सके। चाहे ये अधिकारी या नेता या ठेकेदार रिटायरमेंट ले चुके हों या मरणोपरान्त भी यह जुर्माने की राशि, इनके नोमिनी या संरक्षक या पेंशन से अविलम्ब वसूल की जा सके। पी. डब्ल्यू. डी. व सड़कों का नुकसान, सिंचाई विभाग की अनियमितता के कारण भी होता है, हर साल बाढ़ से, मोटा नुकसान और भयंकर परेशानी भुगतते हंै, जब डैम बनाया हैं तो पानी की निकासी का भी साधन जरूरी था और नदी, नहरेें, राजवाहे का भारत में ही जाल निश्चित हैं, सबका कनेक्शन करना बेहद आसान है और हर बाढ़ से बचत संभव है। राजवाहे व नहरों मंे पानी नहीं हैं और नदियाँ जिनकी सफाई भी मुमकिन नहीं, जिसके कारण निश्चित ही बाढ़ का उग्ररूप हो जाता है। सिंचाई विभाग की समझदारी व कर्मठता व पूरी पी. डब्ल्यू. डी. के द्वारा देश का मोटा नुकसान, फायदे में बदला जा सकता हैं, केवल डैम का पानी नहरों और राजवाहों में बाँट कर या नदियों को नहरों की तरह बाँधकर कन्ट्रोल करने पर मुमकिन हैं। बरसात से पहले डैम का पानी कुछ कम कर दिया जाये, तो हर साल बरसात से होनी वाली प्रलय जैसी व्याधा पर अंकुश लग सकता है।
02. निर्माण हुई किसी भी प्रोजेक्ट का मैन्टीनेंस, रिपेयर की लेटेस्ट तारीख और अगली रिपेयर की तारीख सूचना बोर्ड पर अंकित की जाये, जिससे अधिकारी व जनता पूरा ध्यान रख सके और प्रोजेक्ट की आयु लम्बी हो, खर्च कम हो, सबके लिये ज्यादा सुखदायी हो।
03. जहाँ पर भी बैरियर लगाये जाये, वहाँ पर भी ऐसी सूचना बोर्ड लगने ही चाहिये और उस पर प्रोजेक्ट की लगात अंकित हो। अगर उस प्रोजेक्ट पर लगे खर्चो को पूरा करने के लिये टैक्स लिया जा रहा है, तो वह लास्ट अवधि और डेट का पूरा-पूरा ब्योरा अंकित हो जिससे पैसे में हेरा-फेरी न हो और जनता से पैसा न लिया जाये, साथ ही यह नियम सरकारी गाड़ी और नेताआंे की गाड़ी पर ज्यादा शक्ति से लागू हो।
04. टैक्स अगर लिया जा रहा है, तो यह नियम खासतौर से हर नेता, हर सरकारी अधिकारी और उनकी गाड़ी से लेने में कोई कोताही न हो, ऐसा होने पर वहाँ के कर्मचारी और अधिकारी साथ ही नेता को भी दोषी करार दिया जाये और गैर सरकारी की गलती की सजा की तरह, इन पर ज्यादा कठोर सजा और जुर्माना निश्चित किया जाये, जिससे कानून की गरिमा बरकरार रहे।
05. विजिलेंस, खुफिया विभाग, सी. बी. आई., सी. आई. डी. आदि सबको चेताया जाये इन सबसे काम लिया जाये या इन विभागों को खत्म किया जाये इनके होते हुए हर अनियमितता हो रही है, बढ़ रही है। यह इनका बड़ा दोष माना जाये निश्चित ही यह कठोर सजा के अधिकरी हंै, माना जाये इन सब को पेंशन देना ही ठीक हैं, कम से कम गद्दार तो न कहलायें, सरकार की इमेज और नियम भी बरकरार रहेंगे।
06. हर अधिकरी के लिये सख्त आदेश हो कि कोई भी नेता जो कुछ भी कराना चाहते हैं, तो लिखित में भेजें, केवल मोबाइल या टेलीफोन पर कोई आर्डर, किसी अधिकारी को न दें, हर अधिकारी को भी समझना चाहिए कि हर नेता से कोई भी आर्डर लिखित में ही लें, नेता के मुताबिक काम जरूर करें, लेकिन नाजायज कभी नहीं, कानून व मानव धर्म का पूरा ध्यान रखें। अपनी ड्यूटी में कोई कोताही न करें। ऐसे करके व बेहद बड़ी गलती कर रहें हैं, जो क्षमा के योग्य ही नहीं है।
07. पी. डब्ल्यू. डी. के उच्च अधिकारी को चाहिए कि प्रोजेेक्ट बनाने से ज्यादा रिपेयर व मेंटिनेंस का भी पूरा ध्यान रखें, यह प्रोजेक्ट बनाने से भी ज्यादा जरूरी है। अगर ठेकेदार से काम कराते हैं, तो खासतौर से जनता की परेशानी का ध्यान रखें, खासतौर से बस्ती में होने वाले, हर कार्य मंे सफाई और नुकसान का ध्यान रखें, इससे पोल्यूशन न फैले। धूल-धक्कड़ न हो, इसके लिये पानी की छिड़काव का और सफाई ध्यान रखें। यह केवल पी. डब्ल्यू. डी. विभाग ही नहीं, हर अधिकारी, हर नेता और जनता पूरा ध्यान रखें, किसी भी अनियमितता पर अविलम्ब शिकायत और सुझाव अधिकारी और विभाग को भेजें, कोताही होने पर जुर्माना वसूल करने के लिये बाध्य करें। यह नगरपालिका की ड्यूटी भी है, याद दिलाया जाये।
08. जहाँ पर भी प्रोजक्ट चल रहा है। कम से कम प्रोेजेक्ट के दोनों तरफ या बड़े प्रोजेक्ट में कई जगह शिकायत सुझाव पेटी जरूर लगाई जाये जिससे हर सरकारी प्राणी, गैर सरकारी और नेता व 20 साल से उपर विद्यार्थीगण, सुझाव और शिकायत अविलम्ब पहुँचा सके। हर नागरिक को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाये साथ ही ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम पर अमल किया जाये। इन्टरनेट का उपयोग करने की आदत डालें, चाहे दूसरे से करायें।
09. पी. डब्ल्यू. डी. के उच्च अधिकारीगण अगर आरक्षण जैसी बीमारी से बचें, तो बेहतर है। ऐसे आरक्षणयुक्त प्राणी को अगर लेबर में भी रखा जाये, तो वह खासतौर उसके लिये भी सक्षम न हो, वैसे आरक्षण हर जगह गलत है, हर तरीके से गलत है, लेकिन हर जिम्मेदार पोस्ट पर जिम्मेदार कर्मचारीयांे अधिकारी जो टेलेन्टेड हों उन्हे ही रखा जाये, यह सबके लिये खासतौर से विभाग के लिये ज्यादा फायदेमंद है, आजकल सब जगह, हर अधिकारी इस लायक है कि अधिकारी की तौहीन करने लगता है, प्राइवेट मालिक तो ऐसों को झाडू़ लगाने वालों में भी न रखें, ऐसे लोग विभाग और समाज के लिये कोढ़ के समान है, पाठकगण इसे अन्यथा न लें। आरक्षण देकर पढ़ाई और ट्रेनिंग में हर इंसान को सक्षम बनाकर, ड्यूटी पर रखना ही महानता है, नौकरी करने वाला खुद को हरिजन कहकर हरिजन को ही स्पोर्ट करे, यह कानून और मानवता के प्रति बेहद बड़ी गद्दारी है, इस बात को सब मानते हैं, लेकिन अमल में भी लाना चाहिये आरक्षण, सम्बन्धी में कैंसर से ज्यादा खतरनाक रोग है, अच्छा है उन्हें पेंशन ही दी जाये।
10. दोषी व्यक्ति के दोष का शक होते ही उसके मातहत, उसके साथी और उसके अधिकारी पर खास नजर रखी जाये, दोष का देर से भी पता लगते ही, उस पर जुर्माना किया जाये, चाहे वह सेवा मुक्त हो, इसके मरने के बाद, उस का नोमिनी या परिवार जुर्माना देने का हकदार माना जाये, शहर की हद तक खासतौर से हर अनियमितता मेंटिनेंस की जिम्मेदारी नगरपालिका की है, यह चीज निश्चित की जाये।
11. सड़कंे सीमेन्ट की बनाई जा सकती हैं, जिनमें मेंटिनेंस की जरूरत नहीं होती या मेंटिनेंस आसान होती है और सीमेन्ट आसान भी है, फैक्ट्री भी हैं, खासतौर से शहर की सड़के सीमेन्ट की ही होनी चाहिये, जिससे उनकी उँचाई न बढ़े और लोगों की प्रापर्टी की कीमत कम न हों व सड़के साफ सुथरी हों, (बिल्कुल हवाई पट्टी की तरह। इस समय सीमेन्ट की खपत, रेल विभाग कर रहा था जिसकी जरूरत लगभग पूरी हो गयी है और भारत में सीमेन्ट की फैक्ट्री और सीमेन्ट बहुत है। व्यापारी लोगों ने मोटा लोन लेकर, फैक्ट्री लगाई और खपत न होने के कारण फैक्ट्री आॅनर घाटे में हंै और करोड़ों के प्रोजेक्ट बेकार होने की कगार पर हंै, वह सब बचाये जा सकते हंै, निश्चित ही आने वाले समय में सड़कें सीमेंटिड ही बनेंगी। अभी से ध्यान दिया जाये)
12. पी. डब्ल्यू. डी. सड़कांे के सही मालिक निश्चित हैं। इन्हें शहर की सड़कों का विशेष ध्यान देना चाहिये जहाँ प्रशासनिक अधिकारी की अनियमितता से, जी. टी. रोड सड़क गली की सड़कों को तरह बन जाती है, सरकारी आॅफिस सड़क के बीच तक में देखे जा सकते हंै, बिजली और टेलीफोन के खम्बे सड़कों को बाधित करते हैं, ब्रेकर की बनावट गलत और बिना रंग के होने से वाहन और जनता का नुकसान और गम्भीर एक्सीडेन्ट देखे जा सकते हैं, पुलिस रेहड़ी वालांे से, रिक्शे तांगे वालों से उगाही करते हंै और उन्हें माकूल जगह नहीं दे पाते, शहर से बाहर निकलते ही सड़कें चाहे उँची हों लेकिन शहर में सड़को की उँचाई न बढ़ाने दें, क्योंकि कीमती मार्किट भी बेकार हो रही है। नालें, नालियां, नहरंे पक्के हों तो साफ आसानी से रखें जा सकते हैं और शहर में पानी का स्तर सही रहेगा। सीमेंटिड सड़कंे बरसात के मौसम में भी ठीक रहती हैं और बचत रहती है। यह सलाह पी. डब्ल्यू. डी., डी. एम. और नगरपालिका तक खुद दंे कर, देश का सुधार करें और सच्चा गर्व महसूस करें। साथ ही गलियों में पानी की टंकी की रिपेयर में गली की सड़क की टूट-फूट, साथ के साथ ही ठीक करके गली की सड़कें प्लेन व चिकनी बनाई व रखी जाये। सरकारी प्राणी, गैर सरकारी प्राणी व नेता गण निश्चित ही 1 प्रतिशत तक भी वफादार हैं तो हर अनियमितता की शिकायत व हर हादसे इन्टरनेट पर करें। गैर सरकारी डरपोक, मजबूर हो सकता है, विद्यार्थीगण तो समझें, उन्हें देश की बागडोर सम्भालनी है, अभी से मजबूत अडिग बननें और अत्याचार के खिलाफ खड़े होने की आदत डालें, निडर बनें, बड़ों का, देश का नाम रोशन करें।



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