Thursday, April 16, 2020

सम्बन्धों को सच्चाई से निभाओ

सम्बन्धों को सच्चाई से निभाओ 


सृष्टि में सारे जीव-निर्जीव का आपस में, सम्बन्ध निश्चित है और मनुष्य के अलावा सब जीव-निर्जीव, आपस में सम्बन्धों को सच्चाई से निभा रहे हैं। पृथ्वी, सूरज, चाँद, सितारे आदि सब। पृथ्वी पर जितने जीव-निर्जीव है, सब आपस में सही सम्बन्ध निभा रहे हैं। हिन्दू संस्कृति सबसे पुरानी है और सबसे लास्ट (अन्त) तक चलेगी क्योंकि इसनें बारिकी से हर बात, हर चीज को समझा है।
विज्ञान का कहना है, कुछ तत्वों के द्वारा मौसम, वायु दाब व तापमान और समय माकूल होने पर, हर जीव की उत्पत्ति होती है और जब विज्ञान से बाहर कोई काम हो जाता है या जहाँ रूकावट आती है, तो वही वैज्ञानिक कहता है, अब भगवान के उपर है। संसार में इस समय भी अधिकतर मनुष्य, खासतौर सारी मनुष्य जाति, इतनी रिसर्च के बाद भी भगवान, रब, अल्लाह, खुदा और गाॅड को मानते हंै। यह मानते हैं कि, कोई एक ऐसा है जिसके हाथ में सबकी बागडोर है।
हिन्दू संस्कृति के मुताबिक, पृथ्वी पर 84 लाख योनि है और सबके शरीर की रचना 5 तत्वांे के मिलने से हुई हैै। सबका सम्बन्ध, एक उपर वाले से निश्चित है। बहुत सी बातें केवल महसूस होती है, लेकिन समझ में नहीं आती और गहरे शोध के बाद भी नजर नहीं आती। लेकिन उपर वाले से सम्बन्ध है और हर जीव, सच्चाई से यह सम्बन्ध निभाता आ रहा है। पूरी कायनात चल रही है, यह एक सम्बन्ध निभाने का अकाट्य सबूत है।
विज्ञान, मनुष्य को, बन्दर का बदला हुआ रूप मानता है। बन्दर की बुद्धि को विकसित होने में समय लगा होगा और कम बुद्धि वाले मनुष्य को, बन्दर माना और कहा जा सकता है, लेकिन बन्दर और वनमानुष योनि आज भी है। इसका मतलब है कि मनुष्य उस समय भी था, बन्दर का बदला हुआ रूप नहीं। गीता, रामायण एवं हिन्दू संस्कृति के द्वारा सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग में बाँटकर, सबका समय निर्धारित किया गया। विज्ञान ने या मनुष्य ने गधा, घोड़ा मिलाकर खच्चर की नसल बनाई, लेकिन आज भी गधा है, घोड़ा भी है।
विज्ञान टैक्नोलाॅजी में उन्नत जापान, अमेरिका जैसे राष्ट्र रामायण, महाभारत ग्रंथ और चार वेदों में असम्भव बातों पर ही रिसर्च करके, विश्व में प्रथम स्थान पर है। मतलब यह है कि रामायण और महाभारत भी इतिहास ही है। बात सम्बन्धों की चल रही थी। आज भी लम्बे समय से चाँद, सूरज, पृथ्वी, नवग्रह जो निर्जीव हैं, सबका सम्बन्ध चल रहा है और सच्चाई से सब निभा रहे है। हर जीव उपर वाले से सम्बन्ध रखता है और सच्चाई से निभा रहा है। मनुष्य भी निभा रहा है, लेकिन बुद्धिजीवि होने के कारण, मनुष्य ने उसके अलावा अपने-अपनों के बीच में भी सम्बन्धों को वरीयता दी और आदि काल से सच्चाई से निभाते आ रहे हैं। सम्बन्धों को भी दो भागो में बाॅंटा गया। खून का रिश्ता माना या बनाया गया, क्योंकि मनुष्य ने बुद्धिजीवि होने के कारण, अपनी नस्ल को, पहली नस्ल से अच्छी बने, इसलिये सम्बन्धों व आचरणों पर विशेष ध्यान दिया और चलन में लाये गये। एक लम्बा समय निश्चित लगा होगा। गधे को गधा कहा, कुत्ते को कुत्ता बताया, बन्दर को बन्दर बताया, देखिये उनके नाम के अनुरूप उनमें गुण भी है। यह सम्बन्ध रखने के लिये, नाम देने की योजना, आगे सम्बन्ध बनाने में कामयाब हुई। केवल मनुष्य में, सम्बन्धों को मनुष्य नेे ही नाम दिया।
बच्चा पैदा हुआ, लड़के को बेटा कहा गया, लड़की को बेटी कहा गया। उनका पालन पोषण शुरू किया। सात दिन बाद ही, वैसे तो उसके पैदा होते ही, पूरे परिवार में बच्चे के मुताबिक चाल-चलन रखे गये। लड़केे को लड़के की तरह, लड़की को लड़की की तरह, इसके आने पर स्वागत किया गया। भगवान, रब को धन्यवाद किया गया। सबमें एक-दूसरे से सम्बन्ध निभाने का प्रचलन है ना। अब बच्चों से सम्बन्ध निभाने की प्रक्रिया शुरू होती है। यह बच्चा किसी का भतिजी-भतिजा है, बेटा-बेटी है, नाती-नातनी, धेवता-धेवती है, भांजा-भांजी है, आदि। इन्हीं को खून का रिश्ता कहा जाता है। लेकिन खून के रिश्ते के अलावा, धर्म का रिश्ता भी सब जीव-निर्जीव का है।
खून का रिश्ता एक परिवार, खानदान का होता है। धर्म का रिश्ता गाँव, शहर, जिला, देश और पूरे संसार का होता है। केवल मुँह से कहना और दिल से मानने का होता है और सम्बन्धों को जो सच्चाई से निभाता है वह महान होता है या महान बनता है।
हम सबका, सबसे रिश्ता है। खून का रिश्ता, जिनकी गिनती सीमित है, धर्म का रिश्ता, जो खून के रिश्ते से बेहद बड़ा है, असीमित है। ब्रह्माण्ड में हर जीव-निर्जीव का रिश्ता है। जीव का जीव से, निर्जीव का निर्जीव से और यह कहलाता है ”मोह’। मोह जिसमें है उसका दिल बड़ा है। यह मोह नारी में देखने को ज्यादा मिलता है, लेकिन नारी रूप विचलित रहती है। यह उसका गुण है, जो बदलता रहता है। पहले पिता से, माता से, भाई से, बहन से, यह मोह पति, बच्चा, नाती, पोते और सब में एक सा नहीं रहता, लेकिन पुरूष का मोह हमेशा एक जैसा होता है। यह पुरूष का गुण है।
नारी और पुरूष में शरीर के अनुरूप गुण है, जो दोनों में विपरित हैं। अगर नारी में मोह न पनपे तो, वंश चलाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। अगर पुरूष में मोह बदलने लगता तो, संसार चलना नामुमकिन होता। बात सम्बन्धों की हो रही थी। नारी के सामने, एक बच्चा या कोई भी, एक कुत्ते का बच्चा भी पसन्द आ जाता है, उससे मोहवश सम्बन्ध बन जाता है और यह सम्बन्ध कोई भी, मरने तक निभाता है। उसके मरने पर बड़ा तो, अपने हाथ से दफन तक करता है। आप देखें नारी तो अपने भगवान जैसे बच्चे को पति, आया या नौकर तक को सौंप देती है और कुत्ते को गोद में लेकर चलती है। यह सम्बन्ध बड़े अजीब है। कुत्ता-बिल्ली, एक-दूसरे के दुश्मन है। लेकिन एक कुतिया, बिल्ली के बच्चे को दूध पिलाकर, अपने बच्चों में पाल देती है। मनुष्य तो साँप को पाल लेता है। घोड़े, कुत्ते, शेर पालने की अनेकों मिसाल हैं। हम सबके, पूरेे ब्रह्माण्ड में, एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध हैं। इसका सबूत सबसे बड़ा यह है कि मनुष्य ने उन सबको नाम दिया है चाहे, वह नुकसानदायक या दुश्मनी तक है।
दुश्मनी भी तो सम्बन्धों में एक सम्बन्ध है। हमें सबसे सच्चाई से सम्बन्ध निभाने चाहिये अगर हम समझदार हंै, वफादार हंै, कर्मठ हंै, सच्चाई में बड़े हैं, तो निश्चित ही सच्चाई से सम्बन्ध निभायेंगे, निभातेे हैं।
सच्चे सम्बन्धों का सबसे बड़ा सबूत, भगवान, रब, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड है। उससे हमारे सच्चे, अटूट सम्बन्ध है। वह हमारा है, इसलिये वह हमारा नुकसान भी कर दे, तो हम उसे अपने कर्मों का फल मान कर पूरी तरह (ध्यान दे), सन्तुष्ट हो जाते हैं क्योंकि हमारे उससे पक्के, सच्चे सम्बन्ध हैं। कोई गिला नहीं, कोई शिकवा नहीं। नुकसान होने पर भी खुश होते हैं, उसकी पूजा-पाठ में लीन हो जाते हंै। यही गलती अगर अपने खून, बेटे से हो जाये तो बेटे की छोटी सी गलती से हम खफा हो जाते हैं, उसे दुश्मन मान बैठते हैं।
अधिकतर धर्म प्रचारक, मनुष्य में 5 दोष मानते हंै। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। जबकि यह पाँच दोष बेहद खास है। अनमोल है, फायदेमंद है। काम या सेक्स नहीं होगा तो सृष्टि कैसे चलेगी? दो प्राणी है नर और मादा। क्या हम अपनी गाय को हरी (गर्भवती) कराने के लिये, उसे सांड़ के पास नहीं ले जाते? लेकिन यह काम या सेक्स अपना वंश चलाने के लिये ही है। पत्नी को देखकर सैक्स उभरना अच्छा है, हर नारी को देखकर नहीं। सैक्स या काम होना शरीर जवान होने की पहचान भी है। यह खत्म हुआ तो बुढ़ापा और मौत आने वाली है, निशानी है। लेकिन आप समझदार हैं, बड़े हंै, जवानी या सैक्स या काम वंश चलाने के लिये इस्तेमाल करते हैं, तो ज्यादा लम्बी आयु, ज्यादा कर्मठ, ज्यादा वफादार, जिन्दगी मजेदार, निरोग शरीर का मजा लूटते हंै।
सन्तान अनमोल होती है। लड़की या मादा में अच्छे गुण, देवी के गुण व लड़के या नर में देवताओं के गुण आते हैं। पशुु, पक्षी अब भी सब अपने समय पर काम का प्रयोग करते है और आज भी उनकी उम्र हजारों साल पहले जितनी ही है। मनुष्य काम या सेक्स का इस्तेमाल गलत करते हैं। इसीलिये सतयुग में उम्र 400 साल थी और आज 60 से 65 साल उम्र रह गई है। यही नहीं पशुु-पक्षी के दाँत, आंत, आँख तक पूरी उम्र ठीक रहते है। जबकि मनुष्य में छोटी उम्र में ही खराब हो जाते है। जबकि मनुष्य फल, मेवे, दूध, घी सब अच्छी चीजें इस्तेमाल करते हंै। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार अनमोल है। इनका सही इस्तेमाल छोटे को बेहद बड़ा बना देता है। केवल सम्बन्धों के सच्चाई से निभाने वाला ही, इनका सही प्रयोग कर पाता है या कर सकता है।
सम्बन्ध निभाना बेहद आसान है। लेकिन अज्ञानतावश हम इसे, बेहद कठिन बना देते है। पहल शुरू होती है, माँ, बाप, भाई, बहन, चाचा, ताऊ, यार, दोस्त फिर पति-पत्नी, बच्चे, नाती, पोते आदि से, फिर इसी प्रकार संसार पढ़े-लिखे अच्छे खानदानी रब की पूजा करते हुए भी, खुद को समझदार मानकर लगातार सम्बन्धों को निभाने में गलती करते रहते हैं और झूठा गर्व करते है। किसी का भी, सही इस्तेमाल न खुद करते हैं न दूसरांे को करने देते हैं। पहली गलती अपने पिता के साथ करते हैं, जिसके कारण हमारा सारा संसार चलता है। हमारी जन्मदात्री भी, उसकी पूजा करती थी या करती है। वह पिता खुद, अपने बाप का वारिस भी है, जैसे-जैसे हम बड़े होते है वैसे-वैसे ही उससे दूर और ज्यादा दूर होते चले जाते हंै और लगातार हर किस्म से कमजोर होते जाते हैं। नुकसानदायक चीज बढ़ती जाती है और फायदेमंद चीजें कम होती चली जाती हैं।
माँ भी दूर होती जाती है। माँ की, बहन की, बुआ, दादी, पत्नी आदि और सब भी, जो बाप को बाप मानने के बाद फायदेमंद थे, बाप से दूर होते ही सब नुकसानदायक बनते चले जाते है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार का लगातार गलत इस्तेमाल समय के अनुसार बढ़ता जाता है। बाप की तरह सूरज भी बड़ा है। हम सूरज को जल नहीं दे पाते और पृथ्वी को हर दिन चूमते है। सूरज की कद्र नहीं की, निश्चित ही पृथ्वी की कद्र या इज्जत कर ही नहीं पायेंगे।
ज्ञान, विज्ञान बताता है कि पृथ्वी पर हर जीव, जमीन के नीचे और पानी के अंदर तक या आकाश में सब जीव, सूर्य या बाप के कारण ही पलते है। उसे हम भूल जाते हंै। इसी कारण पृथ्वी की या माँ की पूजा भी गलत होने लगती है। आपने देखा होगा पृथ्वी की कद्र हर इंसान करता है। हम चाय पीते हैं तो, चाय की छींट पृथ्वी को देते है, जल की भी देते है, शराबी तो शराब का छींटा ही दे देते हैं। पृथ्वी हमंे सब कुछ देती है, माना। लेकिन बाप की या सूर्य की बेकदरी से पृथ्वी से मिलने वाली हर नयामत, हमारा पूरा कर ही नहीं पाती और हर किसान व हर मनुष्य परेशान रहता है। उनकी हर कोशिश उनको रिजल्ट माइनस (नकारात्मक) में देती है। बाप की कद्र कम होते ही, हम अपनी पत्नी पर सही कन्ट्रोल नहीं रख पाते। पहले बाप की कद्र करते थे तो सारी पुरूष जाति जैसे, सब भाई, चाचा, ताऊ, दोस्त, नौकर, मालिक आदि सब हमारी फेवर (पक्ष) के थे। हमंे चिन्ता कम थी। हर चीज व हर इंसान कन्ट्रोल में रहे। बाप की कद्र कम होने के बाद, पत्नी पर कन्ट्रोल (नियंत्रण) नहीं रहा और इसीलिए पैदा होेने वाले बच्चे भी हमारे लिये, अपने सब के होते हुए भी, हमारे नहीं रहते और यह बात भी, हमंे बहुत देर बाद पता लगती है, जब उसका कोई विकल्प भी नहीं निकल पाता।
हमारे बड़ों नेे या रब की कृपा से, हर चीज पर कन्ट्रोल करने के, हमें सही तरीके सिखाये या हमारे दिमाग में उपजे, वह केवल सही सम्बन्ध निभाने से ही मुमकिन हुए। नारी को नारी के रूप में रखना, उसको बाँध कर रखना, बाँधना भी इस तरीके से कि उसकी इज्जत भी बढ़े और खुश भी रहे, हर युक्ति बताई। बाप की ही तरह हमारे जीवन में, हर स्टेप पर कोई न कोई बड़ा आता रहता है जैसे सूरज, बड़ा भाई, चाचा, ताऊ, बाबा, ससुर। नौकरी में अधिकारी, फैक्टरी में मालिक और अधिकारी या हमारे से आयु में जो भी बड़ा है खासतौर से पुरूष वर्ग में।
दुश्मनी भी एक सम्बन्ध है, सच्चाई से निभाने ही चाहिये, लेकिन ध्येय है उससे जीतना। जीतने के दो रूप हंै लड़कर हराना या प्रेम नीति से, अच्छाई, धर्म दिखा कर, अपनी फेवर में लेना और दुश्मनी को हराकर दोस्ती में बदलना, मारना तो बिल्कुल नहीं।
सम्बंध की बात लास्ट तक चलती है, जैसे हम गैर सरकारी हैं या सरकारी प्राणी, नेता या देश का भविष्य विद्यार्थी हैं। एक-दूसरे से सबके सम्बन्ध हंै, एक-दूसरे के पूरक हैं। सम्बन्ध सच्चाई से निभाने के लिऐ, अगर गैर सरकारी प्राणी हैं, तो हमें सोचना चाहिये, सरकारी प्राणी और नेता व विद्यार्थी की इज्जत बढ़ायें और परेशानी में उनका साथ दे व उनका सुधार-ध्यान रखंे। उन्हें पाले तो जरूर लेकिन उनका भविष्य खराब न हो। वह सब खुद के लिये, देश के लिये, समाज के लिये, अपने विभाग के लिये, साफ सुथरे रहे। हर प्राणी या हर मशीन की प्रवृत्ति है, वह धीरे-धीरे सुस्त, कमजोर, आलसी या बेकार होती जाती है।
अगर हम सरकारी नौकर हैं, तो हमें सबसे पहले खुद को अच्छा सेवक साबित करना है, जनता का, हम सरकार के नौकर हैं। हमें हर कानून को, गैर सरकारी प्राणी से ज्यादा मानना है, हर उस व्यक्ति की रक्षा करनी है, जो देश व जनता के हित में है। जनता के लिये हम हंै। उनको कानून में बांधना है। जनता को देश का नमक हलाल बनाना है। अधिकारी और नेता की आज्ञा में रहना है, लेकिन अत्याचार या गलत करने के लिए बिल्कुल नहीं, कानून के खिलाफ कुछ न हो, यह करने के लिए।
हम नेता हैं, तो हमें नहीं भूलना चाहिये कि हम जनता के वोट से बने हैं और सरकारी प्राणी से सही काम लेने के लिये बने हैं। हमने वोट चाहे नोट बाँटकर लिये या डण्डे के बल पर लिये लेकिन है तो, जनता के कारण ही, जनता से हम नेता बने हैं। हमारे सम्बन्धी, सारे नेता है। सारे नेता ग्रुप, नेता बिरादरी है। सब की गलती का, खुद में, नेता में, सरकारी प्राणी में व देश के भविष्य विद्यार्थी मंे सुधार करना है। हमारे पास आजादी है, हर फैसेल्टी (सुविधा) है, घर या देश के वफादार रहना है। यही वफादार रह कर माँ, बाप, परिवार की इज्जत बढ़ानी है, दूध का कर्ज अदा करना है। यूनिटी, जलूस, हड़ताल, रैली करने से सब बाधित होते हैं, देश का नुकसान होता है, नकारापन फैलता है। चुनाव से भी मँहगाई और दुनिया भर की परेशानी व हर अनियमितता बढ़ती है। यह ध्यान रखना है।
अगर हम सबके भविष्य विद्यार्थीगण है। तो निश्चित ही 10वीं के बाद हमारी वेल्यू खास हुई है। हमें अब तक समझ जाना चाहिये कि हमारे बाप का वफादार कौन है। बाप की प्रवृत्ति चाहे, वह गैर सरकारी हो, सरकारी हो या नेता हो, अच्छा है या बुरा है समाज और देश के प्रति और उसकी मेहनत का पैसा ही हम पर लग रहा है या नहीं। इन्टर, बी. ए. तक हम वोट देने लायक हो जाते हैं। हमें अब और समझदारी से रहना है। हमारा सम्बन्ध पढ़ाई से जरूर है, लेकिन शरीर की सफाई-सुधार भी तो रखते है। इसी प्रकार समाज, देश में भी सफाई-सुधार का ध्यान रखना है। यूनिटी बनाने के लिये तैयार है। लेकिन पढ़ाई को प्रोत्साहन देने के लिये, अच्छों की इज्जत करनी चाहिये लेकिन गलत की बेइज्जती कभी नहीं, हाँ उनसे दूर रहने की कोशिश करना धर्म है। हम नेताओं के बारे में जानते हैं। सरकारी प्राणी की मेहनत, वफादारी भी जानते हैं। माँ, बाप की मेहनत भी जानते हैं। अध्यापक की कर्मठता भी देख रहे हैं। आज आप राजकुमार है कल राजा निश्चित ही बनना है। अभी से पढ़ाई के साथ-साथ सबका ध्यान रखना, सबसे सम्बन्ध सच्चाई से निभाना है। सीखना है।
हम सब गैर सरकारी हंै, सरकारी प्राणी हैं या नेता हंै और या विद्यार्थीगण हैं। हम सबके उपर असीमित बोझ महसूस होता है, बेहद मेहनत महसूस होती है। हर किस्म की परेशनी से सामना करना पड़ता है। ऐसा लगता है जैसे जीवन बेकार है। मेहनत ही मेहनत, परेशानी ही परेशानी है। यह सच तो हैं लेकिन अगर हमारे साथ कोई छोटा या बड़ा, थोड़ा सा भी समझदार, कर्मठ और वफादार है या इनमें से एक भी गुण, जिसमें हो, बाकी के दो गुण और हर एक गुण इसमें निश्चित आ जाते हैं। तो वह खुद की व ऐसे-वेसे किसी प्राणी की कोई टेन्शन होती ही नहीं। और अगर बड़ा हमारे साथ है, तो हमारे अन्दर सारे गुण आने लगते हंै और जिस प्रकार एक पेड़ बड़ा होता जाता है, जिस प्रकार एक मरीज धीरे-धीरे ठीक होता जाता है। आपकी भी सारी समस्याएँ सुलझती चली जाती हंै। यह समस्याएँ या तो आयेगी ही नहीं या आसानी से आपको पता भी नहीं चलेगा कब खत्म हो गई और सबका विकल्प है, समझदारी से कर्मठ होना।
हमारी और हमारी समस्याओं का भी एक सम्बन्ध ही तो है, इसे सच्चाई से निभाओ, कोई भी काम पैन्डिंग छोड़ो मत, लेकिन समस्या को सुलझाने का पूरा ध्यान रखो। पूजा, इबादत, खाना, डेली वर्क, हर काम लगभग पूरा करो। कभी-कभी कुछ छोड़ना भी पड़े तो टेन्शन नहीं, लेकिन समस्या का ध्यान पूरा रखो, सुलझानें के लिए। सच्चाई यह है कि हर जीव जीतता है लेकिन आसानी से जीतने के लिये, किसी दूसरे की टेन्शन मत बढ़ाआंे, हमें सबसे सम्बन्ध सच्चाई से निभाने है।
इसके लिये हर अनियमितता को समझकर, सबकी या उसको लाने वालेे की मजबूरी समझकर, अपनों की सहायता से व सबकी सहायता से हल करो। उसके लिये समस्या से सम्बन्धित व्यक्ति, विभाग और उपर तक सही तरीके से लिखकर, तीन प्राणी के हस्ताक्षर कराकर, वोटर/आधार नं0 डाल कर शिकायत करो। घर में भाई, माँ, बाप, बाबा, दादी, चाचा, चाची सब हैं, जहाँ आप बिना लिखे भी शिकायत कर सकते है। हर समस्या सुलझा सकते हैं, बाहर हर विभाग और राष्ट्रपति तक हंै, जो आपकी समस्या सुलझाने के लिये ही बैठे हैं मोटी पगार ले रहे हंै। सूचना विभाग तक है, जो 30 दिन में जवाब देने के लिए बाध्य है। सब घर या परिवार हो या बाहर विभाग हो तथा हर जगह कोई न कोई, आपकी समस्या सुनने, सुलझाने वाला निश्चित है। बस समझदारी से दूरदृष्टी से समस्या का समाधान ढूढ़ना है और समस्या सुलझानी है।
इसके अलावा हम हैं ही। हमें समस्या लिख कर भेजांे विकल्प जरूर मिलेगा। लेकिन टेन्शन न खुद की, न दूसरे की बढ़ानी है, केवल समस्या सुलझानी है। गहराई से सम्बन्ध निभाने हैं। करत करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान। ऐसा हो सकता है कि समस्या सुलझाने या सुलझने में देर लगे। ताजमहल बनने में 25, 30 साल लगे। ईद, दिवाली एक साल बाद आती है, बी. एससी. होने में 15 साल लगते हैं, हो सकता है आप समस्या सुलझाने में देर बर्दाश्त न कर सकंे, तब भी कोई बात नहीं, जैसे भारत देश को आजाद कराने में किसी न किसी ने तो बीड़ा उठाया था, बाद में किसी के द्वारा पूरा हुआ और देश आजाद हुआ। आप बीज बोते हैं, पानी आप देते हंै, फल आपको नहीं, तो आपके अपने ही तो खायेंगे या खाते हैं। याद रखो हम सब एक ही बाप की औलाद हैं। (एक पिता एकस के हम बारिस -गुरू ग्रंथ साहिब) और सब हमारे है, भाई-बन्धु, नाती-पोते, परपोते, नौकर, नेता।
सच्चाई से सम्बन्धों को निभाते रहने के बाद आप देखेंगे, आने वाली नस्ल के आगे कोई समस्या ही नहीं होगी। वह सच्चाई से संबन्ध निभाने वाले कर्मठ व समझदार हांेगे। सारी पृथ्वी स्वर्ग या जन्नत होगी। मछली के बच्चे को तैरना नहीं सिखाया जाता। हर जीव की बढ़ोत्तरी की कोई सीमा नहीं होती, बशर्ते वह बड़ों की या समझदारों की छत्र-छाया में हो और सच्चाई से रहना, जीना सीखे और जिये।
अपने धर्म, ग्रन्थों में लिखे का भावार्थ समझें और अमल करें। हर चीज मनुष्य के लिये है लेकिन मनुष्य भी सबके लिये है। इतिहास गवाह है, धर्मग्रन्थ गवाह हैं अब भी सबूत है। लम्बी आयु वाले अथाह शक्तिशाली अथाह तेजस्वी, अथाह गुण वाले अब भी हैं, लेकिन हर शक्ति सच्चाई से सम्बन्ध निभाने के बाद ही मुमकिन है। अब सारे संसार के, हर प्राणी को साबित करना है कि हम सब, सबसे सच्चाई से सम्बन्ध निभाते हैं। जैसेे जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा या जितना मनन करोगे उतना ज्ञान होगा।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, 
पक्षी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
छोटा भया तो क्या भया, जो ना सीखे सीख, 
बड़े का सिरदर्द बने और खुद भी माँगे भीख।





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