Thursday, April 16, 2020

सिंचाई और सिंचाई विभाग

सिंचाई और सिंचाई विभाग

सृष्टि के बनते ही मनुष्य ने कुछ समय में होश सम्भाला और पानी की तरफ विशेष रूप से ध्यान दिया गया। वैसे तो पूरी पृथ्वी के तीन तरफ पानी है, मौसम के मुताबिक पानी तो बरसता ही था। वैसे भी गड्ढों में, पहाडों पर, मैदानी इलाकों में तालाब में व नदियों में पानी का भंडार और उनमें पलने वाले जीव तो थे ही साथ ही पृथ्वी पर रहने वालों का जीवन भी पानी ही था। 
”प्रथम, पानी में जीवन है, जिससे प्रत्येक चीज हरी होती है“ 
(गुरू ग्रंथ साहिब, पृष्ठ-472)
”हर जीव की जरूरत पानी है“ यह बात मनुष्य के समझते ही नदी व अन्य स्रोतों के अलावा पानी रखने की प्रथा पर भी ध्यान जरूर गया होगा। खेती पर ध्यान जाने के बाद नदी और अन्य स्रोतों से, बरसात से पानी की जरूरत पूरी करते रहने के साथ-साथ बढ़ोत्तरी हुई और धीरे-धीरे ढेकली, रहट, छाज जैसी चीज भी बनाई गई जिससे खुद की और खेत की पानी की जरूरत पूरी की जा सके। मुखिया के बाद राजा-महाराजा बनें और नदियों की सफाई और उसका रूख मोड़ने के असम्भव काम के बारे में भी मेहनत की गई।
राज महल बनाने की जगह नदी के आस-पास चुनी जाती रही। वहीं राजस्थान जैसी जगह पर महल के आस-पास बड़े-बड़े तालाबों का निर्माण किया गया। महलों के चारों तरफ सुरक्षा की दृष्टि से खाई का निर्माण भी कराया जाता रहा, जहाँ बरसात में पानी, अपने आप भर जाता था। राजा-रानी के लिये बड़े-बड़े सुन्दर बाग बगीचे बनाये गये, जिनके लिये पानी का प्रबन्ध रखा जाना जरूरी लगा और पानी का इंतजाम किया जाता रहा। शुरू से मुखिया या राजा ही ऐसा प्राणी रहा है, जिसे कुछ करना नहीं होता था बाकी सब मेहनती होते थे।
यह पैथी (विधि) मनुष्य में ही नहीं जीवों में भी पाई गई। जैसे चींटी, मकोड़ा इसमें रानी चींटी ही केवल अण्डें देती है और बाकी सब कर्मचारी होते हैं। इस समय हर इंसान राजा ही राजा है। मेहनती या नौकर कोई नहीं। इसलिये मनुष्य की नस्ल खराब हुई है। हम पानी के बारे में चर्चा कर रहे थे। मुखिया के जमाने से पानी की जिम्मेदारी भी दी गई और उसे झींवर या कहार का नाम दिया गया। बाद में यह एक बिरादरी या जाति बन गयी। मशक और घड़े के द्वारा, पानी एक जगह से दूसरी जगह लाया जाता रहा। जब राजा-महाराजाओं का जमाना आया, तो सिंचाई और सिंचाई विभाग भी बनाया गया, जिससे पीने के पानी व खेत की सिंचाई के लिये, पानी का प्रबन्ध करते और रखते थे। पहले-पहल 90 प्रतिशत पानी की आपूर्ति केवल नदी और बारिश के पानी से ही की जाती रही। राजस्थान जैसी जगह पर तो खेती में बाजरा, ज्वार, तिल, मूँग जैसी फसल का रिवाज इसलिये था कि बारिश हो गई, तो ठीक है और कम बारिश में भी यह फसल हो जाती थी। फिर कुँओं का चलन चला। लेकिन अधिकतर इलाकों में पानी या तो बहुत नीचे था। राजस्थान जैसी जगह में कुँए बनाना असम्भव जैसी बात थी। राजस्थान के उस इलाके में तो 5 और 6 साल तक भी बारिश नहीं होती थी और मनुष्य इकट्ठा किये हुए पानी से जीवन चलाते थे। घोड़ा गाड़ी, उँट गाड़ी से पानी ढोया जाता रहा। फिर रेल का जमाना आया और सप्ताह में एक या दो बार, सैंकड़ांे मील दूर से रेल द्वारा पानी पहुँचाया जाता रहा। यह सब जिम्मेदारी सिंचाई विभाग द्वारा पूरी कराई जाती रही लेकिन खासतौर से सिंचाई विभाग में नदी, नहर, ट्यूबवेल आदि दिये गये।
सिंचाई विभाग वैसे बेहद अहम और जिम्मेदारी का विभाग है। लेकिन नौकर पर निगाह न रखी जाये, तो चाहे जितना अच्छा इंसान क्यों न हो, वह सुस्त या नुकसानदायक हो जाता है। जिसका असर पूरे विभाग ही नहीं, पूरे देश पर पड़ता है। विडम्बना यह है कि नौकर के उपर नीचे दायंे-बायंे सब नौकर हंै। विजीलेंस और नेता एक नौकर हैं। यह सब उस नौकर से भी ज्यादा अनियमित होते हंै और ”कोढ़ में खाज“ वाली बात पैदा होती है।
सिंचाई विभाग में खासतौर से नहर विभाग आता है। जिनका कानून और नियम सब इन्हीं के हिसाब के है। पतरोल, खास पब्लिक सम्पर्क में आता हंै, लेकिन एस. ड़ी. ओ., इंजीनियर और पतरोल की कोताही के कारण जहाँ देश को ”सोने की चिड़िया“ कहलाया जाना था, वहीं वह ”मिट्टी की चिड़िया“ बनकर रह गई है। पतरोल जिस किसान से खुश है, वह चाहे रजवाहा काट दे, माइनर काट दे, नहर से पानी लेे ले कोई बात नहीं। जब यह खुश न रहे, तो चाहे कितना बड़ा उद्योगपति हो, देश विदेश की पार्टी हो, इनके जुर्माने से बच ही नहीं सकता। बस इन्हें कहना होता है कि पोल्युशन कर रहा है और जजमेन्ट इनका फाइनल, जिसकी कोई सुनवाई नहीं। जबकि 80 प्रतिशत पोल्युशन, केवल इनकी कोताही के कारण होती है, वैसे यह सारे अधिकारी पढ़े-लिखे हैं और तजुर्बेकार भी हैं। लेकिन यह नहीं जानते कि नहर का पानी खासतौर से, खेत के लिये होता है और इंसान जानवर के द्वारा की गई, गन्दगी पेड़ पौधों की पौष्टिक खुराक होती है और नहर या राजवाहे में 6 इंच पानी रहे, तो मनुष्य के लिये ज्यादा फायदेमन्द है। साथ ही यह कुदरती सफाई है, जो धीरे-धीरे बहते पानी की, सूरज की किरण और हवा के द्वारा होती है। बस पतरोल को आर्डर करना होता है कि राजवाहे या माइनर में 6 इंच पानी रहना चाहिये।
दूसरी बात, जब एक सप्ताह का टर्न है, तो सप्ताह में एक बार नहर या माइनर में पानी क्यों नहीं पहुँचता? यह सब जिम्मेदार प्राणी हैं और सक्षम हैं। डैम और नदी में पानी हमेशा है। अगर 6 इंच पानी भी नहीं रख सकते हंै, तो आप क्या केवल पगार लेने के लिये बैठे हैं? आप सक्षम हंै और यह सोचिये कि सिंचाई विभाग से कितना फायदा लोगों को हो सकता है। खूबी तो तब है, जब पानी से संम्बन्धित नयी-नयी योजनायें बनायें और सिंचाई मंत्री तक पहुँचाएँ। शहर-गाँव में बड़ी-बड़ी पानी की टंकी हैं, करोड़ांे की तादाद में ट्यूबवेल हंै, उनके रख-रखाव, बचत और सबको ज्यादा फायदा कैसे होगा? आपकी नहर या राजवाहे मंे, किसी फैक्ट्री का पानी, निश्चित नुकसानदायक साबित हो सकता है क्योंकि केमिकल यूज होते हंै, लेकिन कुछ पेड़-पोधांे के लिये, वह भी जायज है। तलाश, खोज आपकी है। लेकिन आप पढ़े-लिखे भी हैं और साबित कीजिये कि आला दिमाग भी हैं, साथ ही मेहनती और वफादार भी हैं।
आप तो नहर रजवाहे पर काम करने वालों के झूठे बिल पर पैसा कमाने की आदत बना चुके हंै और अलग-अलग तरीकों से पैसा बनाते रहते हैं। वैसे आपकी पगार ही आपके लिये ज्यादा है। आप सब परमानेन्ट हैं और आपके रहते हुए सिंचाई मंत्री 5 साल में आपकी उम्मीद से ज्यादा ले जाता है क्यों? मेहनत तो आप करते हैं, योजना तो आप बनाते हैं, सिंचाई विभाग के पानी से इनकम तो राजस्थान जैसी जगह पर है। लेकिन वह नगरपालिका वालांे में बँट जाती है। यहाँंॅ तो पानी के नाम, पर हर साल मोटा बजट बनता है और खपता है।
आपके नहर विभाग में, तो नहर, राजवाहे, कूल (राजवाहे से निकली छोटी साखा) ही बिल बनाने, खर्चा दिखाने में कमाँई का साधन है, जिसे पूछने, देखने वाला कोई नहीं। इसके बावजूद यह कहना पड़ता है कि सिंचाई विभाग में खासतौर सबसे कम अनियमितताएँ हैं या यह अनियमितता किसानों के प्रति होने से उजागर नहीं होती। आज के समय में जहाँ यमुना जैसी नदी में पानी नहीं है। पृथ्वी में पानी के स्तर की गिरावट, सबके लिये चिन्ता का विषय जरूर है, लेकिन आपकी मेहनत और योजना हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक पानी की सप्लाई ठीक रख सकती है और वह भी कम खर्च में। वैसे पृथ्वी तीन तरफ से पानी से घिरी हुई है और पहाड़ों से नदियाँ हैं, जिनमें साल के साल पानी रहता है, लेकिन निश्चित ही 80 प्रतिशत पानी वेस्ट होता है। लेकिन प्रकृति अपना काम जारी रखती है। यह सच है कि मनुष्य की बनावट की प्रवृत्ति से, प्रकृति के काम और नियम में बाधा पड़ती है। यह पानी कम नहीं है, अगर अंग्रेजी खाद इस्तेमाल न हो। अंग्रेजी खाद होने से पानी की खपत बढ़ती है और हम ज्यादा फल और ज्यादा उपज के चक्कर में, दूसरे बड़े नुकसान कर देते हैं। जैसे वैज्ञानिकांे ने बताया कि यूकेलिप्टस पानी ज्यादा लेता है। सच है लेकिन बरसात का मौसम पानी लेकर आता है, यह भी यूकेलिप्टस के कारण ही सम्भव हुआ। वातावरण की शुद्धता केवल यूकेलिप्टस के कारण है, वरना बरसात, तो लोग भूल ही जाते और जनसंख्या के कारण शहर और गाँव बीमारी से खाली हो चुके होते। यह सब गहरे शोध के विषय हैं, जिसे आम नागरिक समझ ही नहीं सकता।
आज आपको कागज लकड़ी, जो मिल रही है, प्लाई मिल रही है-पपलर और यूकेलिप्टस के कारण ही सम्भव हुआ है। प्रकृति ने जो जीव बनाये हंै उनकी परवरिश, उम्र, उनका, अपना वंश बढ़ाने का तरीका, केवल प्रकृति के मुताबिक है। उनके किसी भी गुण को बढ़ाने के लिये वैसा वातावरण बनाना सही युक्ति है, अगर दूसरी युक्ति अपनाई जाये, जैसे नसबन्दी करके, बच्चे कम करना या पेड़ से ज्यादा फल देने के लिये, अंगे्रजी दवा और खाद इस्तेमाल करना, तो निश्चित दूसरी व्याधियाँ बढ़ानी हैं, जिनकी रोक बेहद मुश्किल है।
आज के इंसान ने कितनी रिसर्च की है, दिल बदला है, नसबन्दी की है। बस आज अमेरीका कुछ दिन समुद्र मंे रह कर या कुछ दिन आकाश में रह कर गर्व करता है। जबकि रामायण धर्म ग्रन्थ इतिहास बताता है कि रावण के लड़के का महल पाताल में ही था। नारद तीनों लोकों में बिना मशीन के घूमता था, गणेश का सिर हाथी का था। यह भी रिसर्च ही थी, हनुमान हवा में उड़ता था, रावण की अशोक वाटिका में पेड़ हर समय फल से लदे रहते थे। यह थी रिसर्च। इनकी रिसर्च ऐसी थी, कि उस किस्म की प्रकृति बनाई। प्रकृति ने एक मछली बनायी है, जो हमेशा पानी में रहती है, दरियाई घोड़ा बनाया जो पानी और पृथ्वी दोनों पर रहता है, सही रिसर्च अभी दूर है, रिसर्च में थोड़ी सी फेरबदल कर दी जाये, तो निश्चित ही मनुष्य मौत पर भी जल्द ही विजय प्राप्त कर लेगा। लेकिन यह कहा जा सकता है कि माँँगते-माँगते, भिखारी बन ही जाता है।
बात सिंचाई और सिंचाई विभाग की हो रही थी, सिंचाई विभाग का पहला कर्तव्य है, पानी दूर तक पहुँचे। चाहे नहरें, राजवाहे पक्के बनवाने पड़े या बड़ी मोटी पाइप लाइन डालनी पड़े। हर नहर, हर राजवाहे में टर्न पर पानी पहुँचना चाहिये जिस तरह दूसरे रिसर्च कर रहे हैं किसी भी हालत में कोई भी पानी पूरा कर नहीं सकता क्योंकि पानी इस्तेमाल करने वाला, अभी गँवार और लालची भी है। वह चाहता है, बस। मेरे ही खेतों में पानी रहे। दूसरा अजीब तरीके के खाद और वेस्टेज रोकना नामुमकिन है। पानी की पूर्ति हो सके यहाँ सिंचाई विभाग की ड्यूटी बढ़ जाती है कि वह सलाह दे, साईंटिस्टांे को और किसानों को जागरूक करें।
भारत जैसे देेश में जहाँ नदियों की पूजा होती है, कन्ट्रोल करना आसान है। लेकिन जहाँ लैट्रीन बाथरूम तक का रिवाज नहीं, जानवरों को जोहड़ में खुले में नहलाने की प्रथा है, वहाँ पोल्यूशन रोकना भी टेड़ी खीर है। बिजली का सही तारतम्य, कुँआंे का निर्माण भी जरूरी है, ट्यूबवेल लगाने से, टंकी बनवाने से खर्चे बहुत बढ़ते हैं और वेस्टेज खुलकर होती है। एक हैण्डपम्प से हर इंसान जरूरत पर कम से कम में काम चलाता है। टयूबवेल, टंकी से इंसान वेस्टेज ही वेस्टेज करता है। आजादी और सुविधा केवल समझदार और बड़ों के लिये फायदेमंद होती है। छोटों के लिये, नासमझ के लिये आजादी और सुविधा खासतौर से छोटे व बड़े दोनों को खत्म भी कर देती है। नुकसानदायक तो होती ही है।
बन्दर के हाथ में उस्तरा आ जाये तो वह खुद को लहुलूहान कर लेता है। नारी, बच्चा, नेता, नौकर और जानवर इसी छोटे का रूप है, गँवार भी छोटे के रूप हैं, एक बच्चे को एक बार टाॅफी दे दो, उसे डर न दिखाया जाये, तो उसकी केवल टाफी की रिक्वायरमेंट पूरी नहीं की जा सकती है। पानी या सिंचाई की व्यवस्था, कुछ इस प्रकार है कि जैसे-तैसे पूरी हो भी जाये लेकिन यह काम सरकारी नौकर के हाथ में है, उस नौकर के हाथ में जिसको कोई डर नहीं, विजिलंेस का डर भी खत्म हो चुका है, यह नौकर जिसमें लालच भी है, वह रिसर्च सेन्टर, बिजली विभाग या सरकार को सलाह भी देने के लिये, दिमाग क्यों खर्च करेगा?
नौकर बनते ही इसका, अधिकारी जैसा दिमाग तो नेता के पास गिरवी रखा है, यह आजाद नहीं है, आजाद रखा भी नहीं जा सकता और नेता तो किसी काम का है ही नहीं। मतलब यह है कि बूँद-बूँद पानी की बचत सोचना भी पड़े, तो इन सबको एक्युरेट करो, तब बूँद-बूँद पानी बचता है और सबको एक्युरेट क्या, यहाँ तो पतरोल को भी एक्युरेट नहींें किया जा सकता। बिजली विभाग और रिसर्च विभाग तो बेहद दूर हैं। नौकर, नेता, नारी, बच्चों व पशुु को ऐकुरेट करो।
नेता, मंत्री तो कुछ ऐसी जाति हैं, जिन पर मिसाल फिट है, कुत्ते की पूँछ बारह साल तक नलकी में रखो, तो भी सीधी हो ही नहीं सकती। (पाठक गण या कोई नेता ही बताये, क्या नेता की वोट, नोट व सीट की चाह खत्म हो सकती है, उपर लिखी मिसाल को अन्यथा न लें।) एक नेता सुधर भी गया, तब तक दूसरे नेता का आगमन हो जाता है, जिसके आगमन पर ही पाँच वर्ष का, पूरे देश का बजट गड़बड़ा जाता है।
पाठक गण समझ रहे हंै कुछ ठीक नहीं हो सकता। तो मान्यवर। यह असम्भव काम बेहद आसान है, जिसे भगवान भी नहीं सुधार सकता, उसे जनता सुधार देती है और जनता को सुधारने के लिये है, सरकार। सरकार ने ही, हर कर्मचारी और अधिकारी और नेता के लिये उसी के विभाग के द्वारा, ऐसे सख्त नियम बनाये हैं, कि वह शिंकजे में कसा रहे, लेकिन वह जान कर तोड़े जा रहे हंै और इन नियमों की सुरक्षा, जनता करेगी या करायेगी, दूसरा जनता बेहद आजादी से, नासमझी से इस्तेमाल करती है और पैसा देना नहीं चाहती (नेताओं के कारण) या वेस्टेज ज्यादा करती है। सबका तारतम्य ठीक हो, इसके लिये बड़े कुँए और हैंडपम्प लगाये। कुँए बनवाये, बिजली विभाग को, बिजली बचानी है, तो सरकार को सलाह दे कि कुँए और हैंडपम्प लगाये, जिन पर पुराने समय के समान रेहट, ढे़कली व ट्युबवेल या पम्पिंगसेट इस्तेमाल किये जा सके।
बिजली नहीं है, माइनर या नहर, राजवाहे में पानी नहीं है, तो मेहनत करो और काम चलाओ। जिस खेत में जितना पानी चाहिए तरीके से लो, टंकी के पानी का समय भी निश्चित होना चाहिये, दो घंटा सुबह, दो घंटा दोपहर और दो घंटा शाम को। बस केवल 6 घंटे पानी जिसेे जरूरत है, भरकर रखे, नहाये या फैलाये, आपरेटर की ड्यूटी सख्त की जाये, 18 घंटे टंकी भरें और सप्लाई, पाइप लाइन बन्द रखें, समय से वाॅल खोले और बन्द करे, यह आपरेटर मोटर स्टार्ट करके या आॅटोमेटिक स्विच लगा कर सो जाता है, घर चला जाता है या आजाद घूमता है, पानी सप्लाई लाइन मंे चलता रहता है, टंकी खुली घरवाले भी छोड़ देते हैं, बड़ी टंकी भरती नहीं, तो सब घर या सब जगह पानी पहुँचता नहीं, कभी बिजली नहीं, कभी समय पर आपरेटर नहीं, केवल ट्यूबवेल आपरेटर को सही आपरेट करने पर, सबकी पानी की समस्या हल हो सकती है और बूँद-बूँद पानी बचाया जा सकता है, जो सबसे ज्यादा आसान है, फिर कुँए हंै, जिसको जितना-जितना पानी चाहिए, मेहनत करो और पानी लो, नहीं तो पम्पपिंग सेट चलाओ या नलका, बिजली की हाय-हाय भी खत्म, बिजली सबसे पहले रोशनी के लिए, वह भी हर घर की रोशनी के लिये चाहिये न की चैराहों पर, टावरों पर 500 वाट के अनगिनत हेलोजन के लिये, या ट्यूबवेल के लिए। अरे भाई। हम हिन्दुस्तानी हंै या किसी भी देश के वासी हैं, चादर से बाहर पैर निकालने से कभी फायदा है ही नहीं।
सड़कांे पर इतना खर्च रोशनी के लिये कि सुई तलाश कर लो, घर में पढ़ने के लिये 15 वाट की ट्यूब भी नहीं, मिट्टी का तेल नहीं, सरसों का तेल नहीं, मतलब रोशनी नहीं, हर छोटे-बड़े घर में जाइये, वहाँ हर एक की कोशिश लाॅन और फूल-पौधों को लगाने की होती है, पीने के पानी की एक बाल्टी भरी नहीं होगी, टंकी से, टुल्लू पम्प से छत पर रखा टैंक भरते हैं, वैसे लाॅन में 4 और 6 टंकी लगी है, जिनमें लगातार पानी चलता रहता है।
हमारा आपरेटर कन्ट्रोल में नहीं, सिंचाई विभाग कन्ट्रोल में नहीं और खुद लाॅन की घास को पानी से सींच रहे हंै, वह भी खूबसूरती के लिए। जबकि हर जगह अनिमितताओं का बोल-बाला हो, वाह री समझ। वाह रे बड़प्पन। वाह रे खानदानी खून। माँ मर गई अधेरंे में, धी का नाम रोशनी। 5 साल वालों पर कन्ट्रोल नहीं, तो कोई अनियमितता रोकी ही नहीं जा सकती, चाहे आपके घर के बच्चे और नारी ही क्यों न हो?
आज हमारे गाँव में प्रधान हैं और गाँव में पढ़ी-लिखी लड़की तक है, लेकिन बड़ी टंकी से जब सप्लाई आती है, तो टोटी खुली रहती है। जहाँ एक बाल्टी पानी का खर्च है, वहाँ लगातार तब तक, जब तक कि खुद टंकी की सप्लाई बन्द न हों, तब तक चलती रहती है, यह पानी गलियों की नाली, सड़कांे पर चलता रहता है, जिन नालियों की सफाई तक नहीं, वैसे तो प्रशासन की मेहरबानी है, सड़कंे, नाली ठेके पर बनाई, वह भी कमीशन के चक्कर में, माल सही नहीं लगा। एक गँवार भी बनाता है, तो सोचता है अच्छा, पक्का बनाउँगा, बनाता है। ”बाबा बनाये पोते बरते“ ऐसा माल लागता है।
प्रशासन भी ऐसा ही है, अपना मकान ऐसा ही बनाया है, लेकिन गाँव के काम में दगा कर गया, गाँव का बच्चा-बच्चा जानता है, चलो जैसा बना, बना, अब आप ही अपने सामने का साफ रखें। यह पानी आप की नासमझी से बेकार नाली, सड़कांे पर पहुँचा, वहाँ गन्दगी कर रहा है। यही पानी साफ नाली से गुजर कर खेत तक पहुँचता, तो खेत की सिंचाई जरूर होती, गन्दगी तो निश्चित नहीं होती, कैसे खानदानी हैं आप? गलती पर गलती आप करे जा रहे हंै, यह प्रशासन बना, जानते हंै बचपन से कैसा है, चुनाव के समय इसकी शराब पी, मिठाई खाई, नेता को आप जानते हैं। हिन्दुस्तान या जो देश आजाद हुये, उन्हें देखकर समझते हैं, जब आजाद हुए, तब से जानते हैं फिर भी इनके पीछे भागते रहे हैं, गली सड़कें बन रही थी, आप जानते हुए भी चुप थे, टंकी बनी। आप खुश थे, पैसा कहाँ-कहाँ जा रहा है? सब जानते हैं। पानी आया, खुशी है। अब आप घर वालांे को कन्ट्रोल नहीं कर रहे हैं, यह नाली ठीक नहीं बनी। आप सफाई तो रख सकते हैं। गलती की रिपोर्ट भी नहीं कर रहे हैं, आगे क्या होेगा?
अब भी समय है धीरे-धीरे मिल कर शान्ति और इज्जत के साथ घर से लेकर बाहर तक सुधार, आप ही कर सकते हैं, करेंगे भी आप ही। घर, गली, सड़क, नाली, खेत, प्रशासन, टंकी, सरकारी प्राणी, सिंचाई विभाग आपसे व आपके लिये है, बच्चे आपके हंै, देश आपका है, बचत आपकी है। यह एक-एक बूँद पानी, सबका जीवन है। आपके होते हुए गधों ने पंजीरी खा ली, अब आगे मत खाने दीजिये और खाते हैं, तो खाने दीजिये, आप पीछे तो न भागें, दूसरों को रोकने की कोशिश तो करें, आप तीन गवाह चाहे घर के हों, वोटर/आधार नम्बर के साथ ही शिकायत तो करें, अरे केवल डाकखाने में तो डालंे, देखिये सुधार होता है या नहीं।
समझदार को, कुछ नहीं असम्भव यारा।
आप सीधे हैं, अच्छा है। अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं, कोई बात नहीं। लेकिन आप समझदार तो हैं और ज्यादा समझदार और खुद्दार बनिये। आपका घर है, बीवी है और दो बच्चे हैं। इन पर आपका कन्ट्रोल नहीं, माँ बाप बिरादरी का सहारा लेना पड़ता है। आये दिन आप किसी भी कर्मचारी, अधिकारी, नेता या प्रधानमंत्री को दोष देते हंै, जिन्हें पूरा विभाग और देश चलाना होता है। आप समझिये आपकी पत्नी, आप और आपके बच्चों की इच्छा का खाना भी नहीं बना पाती। कोई नमक कम या ज्यादा बताता है कोई मिर्च। कोई कहता है सब चीजें हैं, सब्जी छोंक कर भी नहीं बनाती। इसी नारी ने इन बच्चों को पैदा किया था। चालीस साल से तुम्हारा खाना बना रही है। फिर भी आज शिकायत है। यह कल के बच्चे जो कुछ जानते भी नहीं, वही बातें बता रहे हंै। फिर एक कर्मचारी, अधिकारी या एक नेता, इतनी बड़ी जनता या देश को कैसे सन्तुष्ट कर सकता है? नहीं कर सकता, यह भी गलत है, आप हंै ना, केवल उसकी स्थिति व मजबूरी देखकर समझदारी से शिकायत करें, विकल्प भी बतायें, फिर देखिये वह गलती दोबारा नहीं होगी।
पहली गलती पर जुर्माना होगा लेकिन पेट पर लात मारना पाप है। प्रधान, सभासद, सेक्रेटरी या नेता से गलती हुई, कमीशन खाया या गलत माल लगाया, उसका जुर्माना वसूल कराईये या वसूल कीजिए, लेकिन सीट पर यही रहेगा, जाने मत दीजिये, यही ठीक है, दूसरा आयेगा तो वो गद्दारी में इसका भी बाप होगा और यह प्रधान इसी गाँव का है, गलती की है यहीं भूल जायेगा। केवल अपका और आपके धर्म का दुश्मन बन जायेगा, आज नहीं तो कल बदला जरूर लेगा। सीट से उतर कर तो निश्चित बदला लेगा। इसलिये इसे जाने मत दीजिये, पहली गलती पर थोड़ा जुर्माना, दूसरी गलती पर पाँच गुणा जुर्माना रखो, पहली गलती के बाद दूसरी गलती करेगा ही नहीं या आपसे दुश्मनी करने लायक ही नहीं रहेगा, काम ठीक करेगा या अपने आप सीट छोड़ कर जायेगा, इसके परिवार वाले भी व खानदान वाले भी कहेंगे, गलती क्यों करते हों? वो ही इसे सजा भुगतने के लिये मजबूर कर देंगे या बस्ता छुड़वा दंेगे और आने वाला, पापी प्रशासन भी देवता बनकर आयेगा, समाज का, आपका अपना व सब के लिये कर्मठ व देश का वफादार रहेगा, है न आसान तरकीब। लेकिन आप भी मेहनत करें और गलती न करें। आप मिलकर, झोट्टे के नाथ डाल देते हैं, तो प्रशासन क्या चीज है।
मेहनत आप करते ही हैं। गलती न करें और आँखे खुली रखें, इस का मतलब है कि आप देखें नाजायज टंकी में या राजवाहे में पानी क्यों आ रहा है या पानी नहीं आ रहा है, तो क्यों नहीं आ रहा है? गलियों की सफाई, नालीयों में पानी रूकना, बिजली न होना या नाजायज इस्तेमाल होना, इन सब अनियमितता के खिलाफ प्रधान से कहें, बल्कि उपर तक जायज शिकायत करें। प्रधान, चेयरमैन या सेक्रेटरी को अधिकारी या विभाग को जागरूक करेगा। गली, सड़कें, नल इस प्रकार बनवाने हंै कि ”बाबा बनाये पोते बरते।“ अलर्ट रहना हमेशा बचपन से आता है बच्चों को सिखाइये।
आपको तो विजिलेंस, सी. आई. डी., सी. बी. आई. तक को जागरूक करना है, आप खेतांे में, घर पर, नौकरों पर, काम के मामले में, विश्वास नहीं करते, तो इतने बड़े, अपने देश को जो आपके बाप-दादा का है, भगवान व अल्लाह का, वाहेगुरू का व गाॅड का है केवल नौकर और नेता के उपर छोड़ना तो, एकदम गलत है।
हमारे सी. एम. साहब शराब फैक्ट्री से, हर बनने वाली बोतल से पाँच रुपये और शराब की पेटी से बीस रुपये प्रति पेटी चार्ज करते हंै, जो प्रोडक्शन होता है उस पर, जो किसी खाते में नहीं, रिकार्ड मंे नहीं। डी. एम. शहर का पन्द्रह और बीस लाख रुपये एक बार में आने-जाने में ले लेता है। नौबत यह है कि पैसा दो चाहे, फैक्टरी बेचो या बन्द करो।
ऐसा करने से हर इंसान और देश का कितना नुकसान होता है। आपके द्वारा बनाये गये नेता का और आपके लिये रखे गये नौकर मजबूरी या आजादी में कितनी गद्दारी कर रहा है, तो क्या आप बचायंेगे नहीं?ं केवल जुर्माना ही तो कराना है, एक बार सिलसिला शुरू हुआ, तो सब गुणिया में आयेंगे। आपने टी. वी., दूरदर्शन, अखबार मंे देखा व पढ़ा है कि पाँच करोड़ की माला मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) की बनी, बेहद बड़ा सबूत है, गद्दारी का देश के हर प्राणी के लिये। विजीलेेंस, सी. बी. आई., खुफिया विभाग, प्रधानमंत्री, पार्लियामंेट अध्यक्ष, हर नेता, हर सरकारी नौकर, इनमें केवल मीडिया ने हिम्मत की, हर नागरिक को दिखाने कीे कोशिश की। यही माला, अगले दिन बीस लाख की निश्चित हुई, क्योंकि हर नेता को व सरकारी अधिकारी को, पैसा देकर दबाया जाये या उनकी कमजोर नस को दबाकर रोका जाये या सब प्राणी दबकर, अब भी शिक्षा नहीं लेंगे, तोे यह नेता लोग इससे भी अच्छी गद्दारी आगे करंेगेे।
मीडिया के सर्वोच्च अधिकारी को भी कैसे शिकन्जे में बाँधा गया कि अगले दिन यह माला अट्ठारह लाख की रह गई। अब या तो मीडिया वालो की गद्दारी है, कोई कमजोरी है या नामर्दी, वह ऐसी बात दिखाते या छापते ही क्यों हंै? जिस पर ऐक्शन नहीं करवा सकते। अपनी खुद्दारी और इज्जत को समझना ही चाहिये या केवल पैसा ही कमाना है और ड्यूटी पूरी करनी है, आगे कोई कुछ करें या न करंे, ऐसा कहकर या ऐसा सोचकर, सबको गलती करने के लिये छुट देनी ही है, ऐसा सब कर सकते हैं, कर रहे हंै, इसलिये अब जनता को ही बीड़ा उठाना चाहिये, क्योंकि देश आपका है और सुख-दुःख या महँगाई, आपको ही फेस करनी है।
जैसे-जैसे देर होगी स्थिति विकट ही होगी। आप अपना वोट देने वाला थोड़ा सा समय भी बचा सकें, तो सबकी आँख खुलनी शुरू हो जायेगी, नेताओं के चमचे, कर्मचारी या पार्टी के मेम्बर, सी. एम. का कार्यकाल पूरा होते ही बेरोजगार और रंगहीन हो जाते हैं। केवल सी. एम. या मंत्री के चमचे ही सैकड़ों की तादाद में होते हैं, मंत्री तो दो साल में ही सीधे, कंगले से अरबपति बन जाते हैं, बाकि सब फक्कड़ रह जाते हैं, या हेरा-फेरी या किसी का नाजायज काम करवा कर पैसे बनाते हैं, जो समझदार हंै वो पछताते हैं, बस जबकि कार्यकर्ता की मेहनत और आवाज के कारण व भीड़ के कारण ही यह प्राणी नेता सी. एम. और मंत्री बनते हैं। सबको माँग करनी ही चाहिये कि हर कार्यकर्ता को दस हजार रुपये प्रति माह बाद में पेंशन मिले, मेहनत और वफादारी का कुछ सिला तो मिलना ही चाहिये और अगर समझते हैं कि नेतागण गलत हैं, तो अपनी-अपनी मेहनत करें, मनोरंजन करें, लेकिन रैली, जलूस या वोटिंग में कहीं शामिल ही न हों, अपना और अपनों का व देश का कीमती समय बरबाद क्यों करें या क्यों करते हंै। जागरूक तो आपको होना ही पड़ेगा।
यह सोचना कि हम वोट नहीं, देंगे तो क्या फर्क पड़ेगा? सच्चाई से सोचिए, आपने सोचा है तो दूसरा भी पैदा होगा, फिर हजारों होंगे और हर सरकारी प्राणी व नेता पर असर जरूर पड़ेगा। कर्मठ व वफादार बनना ही पड़ेगा, दूसरा पहलू सोचिए, हमारे सरकारी प्राणी को जनता के वोट के लिए बेहद मारामारी करनी पड़ती है, उससे उन्हें निजात मिलेगी। यह जनता वोट तो जरूर दे लेकिन गलती पर शिकायत भी करें या शिकायत करनी सीखें और गलती पर चाहे एक सप्ताह में ही नेता को सीट छोड़नी पड़े या मोटा जुर्माना राजकोष में जमा करायें, नेता कोई भी आयेगा, जाने-अनजाने गद्दारी जरूर करेगा, गद्दारी न भी करे, हर बैलेंस जरूर खराब करेगा। आप वोट देना सीख गये हैं, गलती पर शिकायत करना या सुधार करना और कराना भी सीखें तब आप देश के नागरिक होंगे। जो नेता सीट से उतरा है, उसकी कोई गलती उजागर हुई है, तो उस पर नगद जुर्माना कराईये बस, आप देखेंगे, आने वाला नेता, गलती करेगा ही नहीं। पार्लियामेन्ट में नेताओं की लड़ाई खत्म, मीडिया की सिरदर्दी खत्म, बेहद मोटे खर्चे खत्म। अरे भाई रिटायरमेंन्ट के बाद भी गलती पकड़े जाने पर, उसकी पेंशन से जुर्माना वसूल करने का कानून हैं। उसे आप लागू करायेंगे।
चमचागिरी तो छोड़नी पड़ेगी, कर्मठ तो होना ही पड़ेगा। अरे बुद्धिजीवियांे नारी, अबला, रण्डी भी अपनी इज्जत रखती है, सुधार की हर कोशिश करती है। आप सब मनुष्य होते हुए अपनी खुद्दारी और मेहनत भी भूल चुके हैं। नारेबाजी कर रहे हैं। थाली के बैंगन की तरह हो चुके हैं। पगार पेंशन कुछ नहीं, तवायफ भी अपनी कीमत नहीं छोड़ती, आप इतने भी नहीं।
बात सिंचाई और सिंचाई विभाग की चल रही थी। आप एक पेड़ सींचते हैं, तो लकड़ी, फल, हवा आदि मिलती है, जानवर पालते हैं, तो दूध, दही, खाल, माँस मिलता है, लेकिन एक बच्चे को सही तरीके सेे पालते तो, तब आपको सब कुछ मिलता है, आप पालना सीखिये, संसार मिल सकता है, जन्मों-जन्मों तक मिल सकता है। आप पालिये, अपनों का सहयोग लें और सहयोग दें, बच्चों को पालोगे तो नौकर, नेता सब पलेंगे-सुधरेंगे। आपके और खुद के वफादार होेंगे, आपका पाला हुआ बच्चा, राणा, सुभाष, राम, कृष्ण, यीशु, लक्ष्मीबाई, दुर्गा हो सकते हैं, बन सकते हंै।
केवल नेतागिरी से ही नहीं बनेंगे। नारे लगाने से, वोट देने से, प्रधान, सी. एम., प्रधानमंत्री ही बन सकते हैं और वह भी ऐसे जैसे आप देख रहे हैं, भुगत रहे हंै और बनाया है या बनाना है, तो इन्हें रखना सीखिये और कन्ट्रोल भी कीजिये। एक नारी अबला हवाई जहाज चला सकती है। तो आप इन्हें कन्ट्रोल भी नहीं कर सकते। करेंगे और दोनांे ही काम करेंगे। हम सब हिन्दुस्तानी या किसी भी देश के वासी हैं। सच्चे देशवासी हैं। हमारे देश अलग-अलग हैं। लेकिन विपदा में, सारे संसार के सब एक ही हैं।
रहिमन, पानी राखिये, बिन पानी सब सून, 
पानी गये न उबरें, मोती, मानस, चून।
पानी=इज्जत या चमक, सून=बेकार, चून=आटा
हमें सिंचाई और सिंचाई विभाग पर खास ध्यान रखना है। संसार के सारे सिंचाई विभाग से सम्बन्धित व अन्य सब प्राणी आमंत्रित हैं कि खुद या मिलकर कहीं की भी या पूरे संसार की पानी सम्बन्धित या हर अनियमितता को दूर करें या दूर करायें और सारा संसार सुनहरा बना कर खुद को धन्य करंे और सब अच्छांे पर एहसान करेेें। यह सुन्दर और फायदेमंद हो और आगे भी ऐसे ही रहे, कुछ नियम बनाने हैं और सख्ती से अमल में लाने हैं। मेहनत करने में ही सबका व अपना भला है।

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. पम्प आपरेटर को सही कन्ट्रोल करना है। पतरोल पर कर्मठता का दबाव बनाना है। सिंचाई विभाग, पूरे देश और जनता को सुख देने के लिये है। एक-एक बूँद पानी बचाना और उसके सही इस्तेमाल के लिये हैं। पम्प आपरेटर को सही कन्ट्रोल करना है। पतरोल पर कर्मठता का दबाव बनाना है, कि वक्त से सप्लाई दें, दिन में तीन बार, बाकी समय बड़ी टंकी भरने में लगायें, टंकी मोटी लागत से बनती है लेकिन समय निश्चित नहीं है, इसलिये या तो जेनरेटर का इन्तजाम हो या दिन में तीन बार दो-दो घंटे की सप्लाई की बजाय, डेढ़ घंटे के तीन ट्रिप दिन में दें, लेकिन टंकी पूरी भरें, ध्यान रखें। ऐसे ही पतरोल राजवाहे व माइनर में सप्ताह का रूटीन न तोड़ें। बिजली विभाग को निर्देष दिये जायें। डैम या जहाँ से राजवाहे या माइनर की सप्लाई है, उन्हंे सही हैन्डल किया जाये हैन्डपम्प, कुँए खास जरूरत के लिये बनवाये जायें। सिंचाई विभाग द्वारा किसानांे को सही सलाह, सही प्रोत्साहन दिया जाये।
02. नहर, राजवाहे, माइनर के किनारे लगे वन विभाग के पेड़ों पर ध्यान दिया जाये सही उम्र पर उन्हंे कटवाना और नये पेड़ लगाने का सही रूटीन बनाया जाये। देखा जा रहा है कि बड़े-बड़े कीमती पेड़ न कटवाने से वह कौड़ियों के भाव के हो जाते है और बेहद मोटा नुकसान होता है। अधिकारीगण लकड़ी से पैसा बनाते हंै और गद्दारी बढ़ती है। सिंचाई विभाग द्वारा वन विभाग को जागरूक किया जाये।
03. किसानों के नुकसान होने पर सांतवना, सलाह देना सिंचाई विभाग की खास ड्यूटी बनाई जाये, जिससे किसान और सिंचाई विभाग के सम्बन्ध गूढ़ हांे। फायदा और अपनापन बढ़े। गद्दारी, तानाशाही खत्म हो।
04. पूरा सिंचाई विभाग जनता और किसानों के सिंचाई के प्रति पगार लेता है। इसलिये हर विभाग की हर अनियमितता पर सम्बन्धित विभाग को सूचित करें और जनता को जागरूक करें। निश्चित ही सिंचाई विभाग पर किसी के कोई नियम लागू नहीं होते, लेकिन इनकी कर्मठता, सुझाव और समझदारी के सुझाव से बूँद-बूँद पानी और तेल बच सकता है। हर नेता, हर सरकारी प्राणी में से गद्दारी खत्म हो सकती है। पतरोल से किसानों को राहत मिल सकती है।
05. माइनर और रजवाहे या नहरें धीरे-धीरे बजरी, सीमेन्ट के बनाये जायें, तो सिंचाई में कम से कम 60 प्रतिशत का फायदा निश्चित होगा। माइनर, राजवाहे और नहरे की मेन्टिनंेस व सफाई के खर्चे में ही बन सकती हैं, क्योंकि सफाई या रिपेयर में लगे पैसे का 50 प्रतिशत या ज्यादा पैसा उपर नीचे के अधिकारी व नेता ही खा जाते हैं और यह परसेन्टेज बढ़ ही रही है और काम भी कम होता है।
06. विभाग की विजीलेंस से काम लिया जाये या यह विभाग खत्म किया जाये क्योंकि वह नाम-चारे की ही रह गई है। विभाग में और आस-पास सब सरकारी विभाग और नेता लोग लगातार अनियमितता बढ़ा रहे हंै और विजीलेंस देख रहा है, पगार ले रहा है।
07. विभाग की अनियमितता पर किसी भी कर्मचारी या अधिकारी की गलती पर, उस पर मोटा जुर्माना वसूल कर राजकोष में जमा कराया जाये साथ ही उसके मातहत, साथी और अधिकारी से भी थोड़ा जुर्माना वसूल किया जाये क्योंकि इनके साथ के बिना कोई भी कर्मचारी गलती कर ही नहीं सकता, बल्कि गलती करने की सोच भी नहीं सकता। हर कर्मचारी और अधिकारी जहाँ रह रहा है, वहाँ अगर कोई नेता या सरकारी विभाग की अनियमितता है, तो उसकी अपनी अनियमितता मानी जाये क्योंकि यह जिम्मेदार प्राणी है और इनकी रिपोर्ट पर, हर विभाग आसानी से सुधर सकता है, चाहे वह बिजली विभाग हो, पुलिस विभाग हो, चाहे अदालत ही क्यों न हों।
08. शिकायत पेटिका लगाई जाये और शिकायत और सुझाव देने का प्रोत्साहन जनता में फैलाया जाये क्योंकि, हर सरकारी अधिकारी व नेतागण आये दिन अपनी उलझनों में रहते हैं या सुझाव देने से घबराते हैं, क्योंकि नोट और वोट पर गलत असर पड़ता है।
09. ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम पर कठोरता से पालन किया जाये और कराया जाये खासतौर से हर सरकारी विभाग ओर नेता ग्रुप पर, जिसमें सजा के रूप में केवल मोटा जुर्माना राजकोष में जमा कराया जाये, फिर निश्चित समय में दूसरी गलती पर पहले जुर्माने का 5 गुना निश्चित किया जाये इस सजा में अड़चन या देर करने वाले को सबसे बड़ा देशद्रोही माना जाये।
10. शिकायत बाॅक्स और शिकायत रजिस्टर का इस्तेमाल होना चाहिए। नोटिस बोर्ड पर हर माह शिकायतों की गिनती लिखने की नीति अपनाई जाये ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम का बोर्ड लगे। इसे समझंे और कठोरता से अमल में लाया जाये। इन्टरनेट का जमाना है, शिकायत इन्टरनेट पर करें, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक भी मजबूर हो जायेंगे और शिकायत पर ध्यान देना ही पड़ेगा।



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