आर. टी. ओ. व आर. टी. ओ. विभाग
सृष्टि बनने के बाद जैसे-जैसे मनुष्य ने होश सम्भाला और प्रगति की ओर अग्रसर हुआ, तो धर्म पर चलने वाले लोगों की सलाह, मुखिया के दिमाग में और ज्यादा प्रगति पर चलने की प्राकृतिक इच्छा ने उसका ध्यान आने-जाने या चलने वाले वाहनों पर पहुँचा या ध्यान दिया। सबसे पहले सुरक्षा की और ध्यान गया, और फिर इनकम पर ध्यान दिया गया, इन चलने वाले वाहन से किसी भी प्राणी को या हर जीव को, किसी किस्म का नुकसान न हो, राजा-महाराजाओं ने केवल चेतावनी दी, लेकिन शिकायतों पर फैसला करना पड़ा। इसलिए और भीड़ और जिम्मेदारी बढ़ने पर, इसे अलग विभाग बनाने का हुुक्म दिया गया, विभाग बनते ही, जिम्मेदार कर्मचारी या अधिकारी ने, यातायात के नियम बनाये और ज्यादा सुरक्षा देने की दृष्टि से सिखानें या वाहन चलाने की इजाजत देने से पहले, वाहन चलाने वाले ड्राईवर और वाहन की बारिक जाँच और पास करना निश्चित किया गया। यह विभाग आम इन्सान के वाहन के लिये या सरकारी प्राणी के वाहन, दोनों के लिये निश्चित है या किया गया। जैसे छोटे वाहन या आम शहरी इंसान के लिये, आर. टी. ओ फिटनेस, आर. टी. ओ आॅफिस के अन्तर्गत और सरकारी या फौज, हवाई जहाज, रेल, बस या पानी के जहाज, इनके ड्राईवर और इनकी फिटनेस, उसी विभाग के अन्तर्गत सौंपी गई।
आज के समय में हर गैर सरकारी और सरकारी प्राणी व नेतागण के पास बेहद ज्यादा या ज्यादातर वाहन हैं, इसी के साथ सरकारी वाहन, रेल, बस, ट्रक, हवाई जहाज, पानी के जहाज, छोटे-बड़े सब, सेना में इस्तेमाल होने वाले, बड़े से बड़े और छोटे से छोटे वाहन को मिलाकर एक बड़ी संख्या बन जाती है। एक ड्राईवर पूरी तरह काबिल या फिट न हों, तो हादसा होता है या हो जायेगा। जिससे मुखिया, राजा या सरकार का नुकसान निश्चित हो जाता है, चाहे जान-माल का हो या बेजान नुकसान हों, बचत और सुरक्षा निश्चित ही, बेहद बड़ी सोच है, छोटा नुकसान भी हिसाब किया जाय और रोक न लगाये, तो सारी सृष्टि भी नुकसान के लिये कम है। हमारे धर्म ग्रन्थों के मुताबिक भी हर चीज, हर जीव की सुरक्षा, जान की बाजी लगा कर भी करनी चाहिये एक जीव चाहे छोटा हो, एक बेजान चीज तो मिट्टी के समान बेकार हो, बेकार समझना, खुद को गलत और भगवान, अल्ला, वाहेगुरू और गाॅड की अवहेलना करने के बराबर है। इसीलिये मुखिया, राजा-महाराजा और सरकार ने यह आ. टी. ओ विभाग बनाया। बिल्कुल उपर वाले की तरह, उसने सबकी व अपनी सुरक्षा के लिये, हर जीव को दिमाग दिया, हर दुश्मन, दिन-रात, हर चीज बनाई, जिससे हर जीव आजाद रहकर भी खास व प्यारे और अभेद बन्धन में रहें और सारी कायनात सुचारू रूप से चलती रहे। निश्चित ही एक आ. टी. ओ की पोस्ट ऐसी है कि इसकी कर्मठता के द्वारा बड़े से बड़ा वाहन पूरे विश्वास के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुरक्षित पहुँचता हैं, अविश्वसनीय काम होता है और हर तरफ फायदा ही फायदा होता है। यही नहीं इस आर. टी. ओ. के द्वारा इकट्ठा किया हुआ धन इतना होता है कि हर सड़क चाँदी की बनायी जा सकती है। इसी अधिकारी की मेहनत न हों, तो कुछ समय में इंसान-इंसान को देखने को तरस जाये या हर छोटे से छोटा वाहन नजर ही न आये। आम आदमी हो या सरकारी प्राणी हों, दोनों जगह ड्राईवर और वाहन का और ड्राईवर और वाहन के द्वारा, कोई नुकसान नहीं होता, उसको सुरक्षित रखने वाला, पुरूषोत्तम श्रीमान आर. टी. ओ. साहब ही हैं, साथ ही मोटी इनकम सरकार को देने वाला, कामधेनु के समान आर. टी. ओ. साहब ही हैं। इस सपूत के उपर, इसके पैदा होते ही, बाप को गर्व हुआ था, उस समय तो परिवार खानदान और समाज के लोगों ने भी गर्व महसूस किया था, लेकिन आज अब तो इनकी पत्नी, बच्चें भी गर्व करते है। ऐसे इंसान पर पूरा देश गर्व करता है।
जिस प्रकार शरीर की रचना, सारे अंगों को मिलाकर पूरी होती है। उसी प्रकार सरकार का, एक अंग आर. टी. ओ. भी हैं। शरीर का अंग खराब हो जाये या काम करना बन्द कर दे या काम करने में थोड़ा सा सिथिल हो जाये, तो शरीर बेकार, खराब, नापसन्द आने वाली चीज बन जाता है या त्याज्य होने लायक लगने लगता है, इसी प्रकार अगर आर. टी. ओ. किसी भी कारण से अनियमित या शिथिल हो जाये, तो सरकार भद्दी, गलत, नुकसानदायक हो जाती है। कर्मचारी और अधिकारी को, सबसे पहले अपनी अहमियत समझनी चाहिये, वह कितना फायदेमंद हो सकता है, सोचते रहना चाहिये, इस डेली रूटीन के अलावा, सारे सरकारी प्राणी को सुन्दर रहना चाहिये। डेली रूटीन वर्क के अलावा सारे सरकारी प्राणी को सुन्दर, खूबसूरत, काम का बना सकता है, कर्मठता सबकी साबित कर सकता है। यह सब सोचने वाला महान होता है या महान बन जायेगा निश्चित है।
यह सब कमी केवल जनता को भुगतनी पड़ती है। आज के समय में पब्लिक के सम्पर्क में रहने वाला, खास अधिकारी आर. टी. ओ. की अनियमितता आम देखने को मिलती है, इस अधिकारी की कर्मठता का रूप बदलते ही कर्मठता अत्याचार में बदल जाती है। यह कर्मठता अधिकारी के कारण नहीं बल्कि कर्मंचारी के आचरण से भी बदलता है। यह अधिकारी की बेहद बड़ी कमी निश्चित है। इसका जन्म हादसे रोकने के लिये हुआ था। आर. टी. ओ. बनने से पहले कठोर पढ़ाई की परीक्षा से गुजरना पड़ा था। यह नौकर मालिक का अन्तर समझते हुए ग्रेजुएशन कर चुका है। खुद अधिकारी है, कदर या इज्जत अपनी समझता है, लेकिन जनता की इज्जत, सरकार की बचत पर ध्यान ही नहीं है। यह आर. टी. ओ. साहब, आॅफिस में बैठकर, हर गाड़ी के कागज पूरे करा सकता है, यहीं बैठकर ड्राईवर और गाड़ी को फिट बना सकता है, इस काम में इसके साथ हर सरकारी प्राणी, नेता का साथ व कानून की सहायता व सहयोग ले सकता है, यह इसका कानूनन हक भी है। इस कर्मठता से इसकी इज्जत बढ़ती है, जो दुनिया के हर पैसे से बड़ी है, सरकारी प्राणी की इज्जत बढ़ती है, सबका कीमती समय, इज्जत, कर्मठता, आजादी बढ़ती है। लेकिन यह सब छोड़ कर झूठा रोब दिखाने के लिये, सड़क पर खड़े होकर, सबका अवरोध बनते हंै, सरकारी कर्मचारी को निश्चित गद्दार बनाते हैं। एक जनता का मामूली सेवक किसी भी गाड़ी वाले को ऐसे रोकते हंै जैसे यह तुच्छ प्राणी हैं या सब, इस सरकारी नौकर की छत्र-छाया में हैं। यह पूरा स्टाफ समझता है कि छोटे से छोटा, गैर सरकारी, सरकारी पुलिस या पूरे स्टाफ को क्या कहता है या इनके बारें में क्या सोचता है? यह कर्मचारी अपने अधिकारी के सामने सलूट मारता है, लेकिन वही अधिकारी जनता की कितनी इज्जत करता है, कर्मचारी भूल जाता है या यह अधिकारी, अधिकारी बनने लायक भी होता? तो वह ऐसी गलती, अपने कर्मचारी से करवाता ही नहीं।
किसी भी वाहन को रोकना, सड़क जाम, जैसा कानूनी अपराध है, वह भी गैर सरकारी या जनता के प्रति। आपने कभी किसी मुजरिम, उग्रवादी या डकैत, रिश्वतखोर, गद्दार को पकड़ा हो? आप तो केवल शरीफ इंसान को ही पकड़ सकते हैं या मजबूर को पकड़ते हंै। सड़क पर गाड़ी के कागज चेक करना कौन नहीं जानता, कि पैसे कमाना है, गाड़ी या ड्राईवर फिट करना नहीं गाड़ी बनाने वाली फैक्ट्री मौजूद है, गाड़ी फैक्ट्री से निकलते ही, सारे डाक्यूमंेट पूरे होते है, उपभोक्ता की जन्म-पत्री तक होती है। नगरपालिका में, हर इंसान की जन्म-पत्री और पता मौजूद है, बीमा कम्पनी मौजूद है, सबका लेखा-जोखा मौजूद है। आॅफिस में बैठ कर, यह काम करते, तो निश्चित घंटों मंे, हफ्तों का काम हो जाता और आप व आपका स्टाफ और हर वाहन वाला पूरी तरह आजाद सुरक्षित रहता।
जनता का एक प्राणी पता नहीं किस जरूरी काम से बाहर निकला, चाहे मनोरंजन के लिये ही सही, गाड़ी उसने इसलिये रखी कि कम समय में ज्यादा दूरी तय कर सके या जल्द पहुँचे, आपने उसे रोका बस, इसके पास या किसी के पास कोई कागजात नहीं हैं, क्या हुआ कौन सी खतरनाक धारा तोड़ दी, अगर धारा टूटी, यह सब धारा जो बनाई है, गलत बनी है या केवल आर. टी. ओ. की इज्जत जा रही है, इसलिये यह धारा लगाई जा रही है। बल्कि सड़क रोककर आपने सब धारायें तोड़ी है। आप जो एक सेकेण्ड का अवरोध कर रहें है, सब आपदाआंे की जड़ है, आप किसकी सुरक्षा कर रहे हंै। आप हर तरीके से सोचिये, हर तरफ नुकसान और सबकी बेइज्जती नजर आयेगी, यह सच्चाई है। आप यह कमी या नुकसान देखना और समझना चाहते हैं, तो आपको जहाँ कोई जानता न हो, गाड़ी आपके पास हो और वहाँ का आर. टी. ओ. आप को चेक करें, फिर आपको सरकारी आर. टी. ओ. की गलतियों का अहसास होगा। आप खुद्दार बनके किसी मजबुरी में हो, तो आपको बहुत जल्द अहसास हो जायेगा। यह गैर सरकारी भोला है बस और कहीं न कहीं, किसी सरकारी प्राणी के द्वारा परेशान है, यह अत्याचार करने के तरीके नहीं जानता, बड़ों की इज्जत करना जानता है, कानून की धारा और कानून भी नहीं जानता। अगर भोला न होता, तो गधे पंजीरी न खा रहे होते। यह पहले कागजात पूरे रखता, यह ड्राईविंग बचपन से कर रहा है, ऐक्सपर्ट है। यह थोड़ा सा समझदार हो, तो केवल इसकी एक शिकायत आपकी नौकरी को खतरे में डाल सकती हैं, यह गैर सरकारी है और हर कानून की धारा सुरक्षा के लिये बनी है, और कानून की नयी धारा, इसकी शिकायत पर बन सकती है, जिस कानून की धारा में आप इसे बाँध रहें हैं, इसकी बेइज्जती कर रहें हैं और नुकसान कर रहे हैं, कोई कानून कभी, इसकी इजाजत दे ही नहीं सकता। आप थोड़ा सा सोचिये, कि आप की रचना, इनकी सुरक्षा के लिये की गई है। आपका दिमाग, आपका सारा कानून ही बदल जायेगा। आपको केवल अपनी एक गलत ड्यूटी ही नजर आ रही है, लेकिन इस गैर सरकारी के पास असिमित ड्यूटी है और सबकी जिम्मेदारी है, आप केवल ड्यूटी करके पगार लेते हंै यह गैर सरकारी ड्यूटी 24 घंटे करता है और इसकी मेहनत से देश का, हर प्राणी पलता है।
हर सरकारी प्राणी पगार लेता है, पलते हैं आज भी यह आपको 20/-या 50/-देकर आपसे बचेगा, अगर यह भोला न होता, तो आपको देने वाले पैसे इकट्ठे करके डाक्यूमेंट पूरे न कर लेता। यह भोला है परन्तु आप भोले नहीं है, पढ़े लिखे हंै गजटेड अधिकारी हैं, गैर सरकारी को समझदार बनाइयें, जबकि खुद के साथ-साथ सारे कर्मचारी वर्ग को गद्दार बना रहे हैं। आप ऐसी युक्ति निकालिये कि खुश होकर घर बैठे हुए ही सारे कागजात बनवायें और आपको सड़क पर ही न निकलना पड़े। सच्चाई में तो यह है कि आप भी नौकर हंै और नौकर को रूकना, सैल्यूट मारना, इन्तजार करना, प्रार्थना करना शुभ है, धर्म है।
आर. टी. ओ साहब का ध्यान अगर वफादारी पर है, सुरक्षा पर है, तो आप देख रहे हंै सालों से ऐक्सीडेन्ट, ट्रªेेक्टर-ट्राली से हो रहे है, यह भी आपके पास किये हुए हंै। अखबार आप पढ़ते हंै, रिकार्ड आपके पास रहता हैं, आप देख रहें हैं, 10/-, 20/-और 50/-पुलिस इनसे लेती है। उदाहरणस्वरूप यू. पी सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत) में खासतौर से जो लकड़ी (पपलर, युकेलिप्टिस) ढोते हैं, पीछे लाल बत्ती नहीं है, लाल स्टीगर नहीं है, जिनसे हादसे रूके। आप छोटे बड़े सब वाहन में, कही बेल्ट बँधवाते हंै, कही हेलमैट जरूरी है, कहीं नम्बर प्लेट पर नम्बर जरूरी है, लेकिन सड़क पर ट्रैक्टर से भयानक मौते तक हुई हंै, केवल रात में, बैक सिगनल न होने के कारण या वजन के कारण हादसे होते हैं। आप अधिकारी हैं, हर वाहन वाला, अपकी ज्यादती का शिकार है, खासतौर कोई प्राणी हो, जिससे कभी आर. टी. ओ. का मुकाबला न हुआ हो। यही नहीं हादसे के बाद कई-कई घंटे, हादसे वाले और दूसरे लोग परेशान होते हंै, सड़क पर अवरोध रहता है, हर अवरोध बढ़ता है, पुलिस उस जगह पहुँचती है, मीडिया पहुँचता है, लेकिन ऐसा कभी कुछ नहीं होता कि जल्द से जल्द हादसे में हुए जख्मी को, सरकारी वाहन अस्तपाल पहुँचाये, या जल्द गाड़ी, जो डैमैज हुई है, सड़क से हटे। अगर आप कुछ कभी, सोचते तो सबसे पहले फायर बिग्रेड पहुँचती, क्योंकि हर हादसें में सफलता से बचाने में, यह प्रशिक्षित होते हंै, सक्षम होते हंै। यहाँ पुलिस का कोई अदना सा सिपाही पहुँचता है, वह डण्डा फटकारता रहता है, गैर सरकारी लोग की भीड़ हो जाती है, यह भोले-भाले लोग वाहन सीधा करने और चोटिल को सम्भालने में लगते है, जो सक्षम न होते हुए, हर कोशिश करते हैं, यह वह लोग होते हैं, जो आस-पास रह रहे हंै। सरकार का सहयोग मजबूरी में होता है, लिखा पढ़ी में होता है, वाहन को चैकी थाने ले जाने में होता है। उनको दोषी ठहराने और जो बचा हुआ दूसरा वाहन और ड्राईवर है, उसको घेरने में होता है। हादसे वालों को सम्भालने में जल्द से जल्द होना ही चाहिये, लेकिन बेहद देर होती है। यही काम फायर बिग्रेड करती, तो हादसा मामूली महसूस होता, जान का नुकसान बचाया जा सकता था। बेहद आसानी से, यह काम प्रशिक्षित फायर बिग्रेड वाले ही कर सकते है, क्योंकि यह हमेशा अलर्ट रहते हंै। आपके शिथिल होने के कारण, छोटे से छोटा हादसा भी गैर सरकारी और दूसरे सरकारी प्राणी के लिये सिरदर्द बन जाता है, चोटिल इंसान का इलाज होने तक, हर परेशानी उस परिवार की बन जाती है, फिर यह परेशानी या सिरदर्दी अदालत व पुलिस की बन जाती है और कुछ घंटो में निपट जाने वाला काम, महीनों और सालों में निबटते हैं। हादसे में लिप्त दो पार्टी पैसा और समय बर्बाद करते हंै, जिसमें मोटा हिस्सा पैसे का रिश्वत, अदालती खर्चे और इलाज में डाॅक्टर आदि पर लगता है। वाहन चेकिंग भी जिम्मेदारी से कभी नहीं होती, प्राइवेट वाहन अधिकतर फिट मिलेंगे, लेकिन सरकारी वाहन कभी नहीं, यह अधिकतर खस्ता हाल मिलते हैं और आर. टी. ओ. जो सबके लिये सुरक्षा की जिम्मेदारी निभानें वाला, गलत वाहन पर नजर भी नहीं डालता, उसके ड्राईवर की गलती पर कोई ऐक्शन ही नहीं है। गैर सरकारी इस जगह या तो पूरी तरह पिसता है या पैसा खर्चा करके बीमा वालों के जिम्मे पड़ता है।
आर. टी. ओ. जानता है कि सरकारी वाहन घाटा दिखाते हैं और गैर सरकारी वाहन, सरकार और सरकारी प्राणी के साथ-साथ गैर सरकारी प्राणीयों को भी पालते हैं। यात्रीयों से कम किराया लेते हंै, सबके लिये फायदे मंद है फिर भी, जितना अत्याचार गैर सरकारी पर हो, वह चुप रहते हैं। सबूत है यू. पी. सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत) में, सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत)-गाजियाबाद और सहारानपुर-देहली की प्राइवेट बस सर्विस रूकना, बन्द होना। लोगों के घर बर्बाद होना और सरकारी मोटे टैक्स का खत्म होना। यही नहीं, लाखों लोग, जो इनके द्वारा गुजारा करते थे, लगभग सब बर्बाद है, परेशान है। वहीं कई सौ बसंे कबाड़ी के खरीदने लायक बन जाने वाली स्थति में है। निश्चित ही यात्रियों का नुकसान व परेशानी, सरकार का मोटा नुकसान और गैर सरकारी बस मालिकों का नुकसान का कारण, आर. टी. ओ. कि शिथिलता का सबूत है। आर. टी. ओ. साहब का कितना गुणगान करें, कम है इन्होंने जितने नियम बनाये हंै। केवल गैर सरकारी का नुकसान, उनकी आजादी खत्म और सफर परेशानी से भरा हो, इसलिये होता है। वैसे यातायात का पहला और आखरी नियम होता है, कि आप सुरक्षित और जल्द मंजिल पर पहुँचे और किसी दूसरे को कोई शिकायत या परेशानी न हो।
लेकिन इस विभाग के बारे में एक चुटकुला है, किसी सरकारी आदमी को अपनी लड़की की शादी करनी हो, तो आर. टी. ओ. एक दिन कुछ पुलिसकर्मी लेकर किसी चैराहे पर खड़ा हो जाये, तो उसी दिन या दो दिन की इनकम में लड़की की शादी कर सकता है, अब तो जमाना पढ़े लिखों का है, इसके बावजूद यह सच्चाई है कि हर वाहन वाला, इन्हें कागजात दिखाने की बजाये 10, 20 और 50 रूपये देकर जल्द और आसानी से इनसे पीछा छुड़ाना अच्छा समझता है। इस विभाग को देखकर पुलिस और टैªफिक पुलिस, तो इतनी गद्दार हुई कि इनके परिवार और रिश्तेदार या तो दिखावे की इज्जत करते हंै या दूर रहने की कोशिश करते हंै। इस समय तो होमगार्ड का मामुली आदमी भी वर्दी पहनकर, पुलिस की अनुपस्थिति में भी रिश्वत इकट्ठी कर लेता है।
यह आर. टी. ओ. साहब गजटेड अधिकारी होने के बाद, इनकी कर्मठता बाधित है और लगातार शिथिलता की तरफ अग्रसर है, इनके स्टाफ के अत्याचार जनता पर इनके सामने या साथ होने पर ही होते हैं। इनकी इसी शिथिलता के कारण खासतौर इनका परिवार पूरी तरह, इनकी इज्जत कर नहीं पाता, लेकिन पूरा आर. टी. ओ. विभाग, इन आर. टी. ओ. के कर्मो के कारण व पूरा पुलिस विभाग, ट्रैफिक पुलिस की इज्जत 20/-की हो गई है। औकात का इतना गिरना आर. टी. ओ. विभाग, उनके परिवार के लिये बेहद शर्मनाक बात है, यही नहीं पूरे सरकारी प्राणी के लिये भी शर्मनाक है।
आर. टी. ओ. आॅफिस का गुणगान भी बेहद खास है, इनकी कर्मठता यहाँ पर पूरी तरह उजागर होती है, पूरा बड़ा स्टाफ है, जिसमें हर कर्मचारी है, स्वीपर से लेेकर माली तक, जगविदित है कि लगभग हर परिवार में ड्राईविंग लाइसेंस, तो जरूर किसी न किसी के पास होता है, मतलब यह है कि इस आॅफिस के सम्पर्क में लगभग सब परिवार है, लेकिन यह आर. टी. ओ. सम्बन्धित काम जो आर. टी. ओ. आॅफिस करता है, वह सब किसी ऐजेन्ट के द्वारा होता है, कहने का मतलब है कि इनके आॅफिस के बाहर हजारों लोग केवल ऐजेन्ट के रूप में कार्यरत है और यह सब गैर सरकारी प्राणी, केवल गैर सरकारी का पैसा इस्तेमाल करके, इस सरकारी गजटेट अधिकारी और स्टाफ को पगार के, अलावा मोटी इनकम कराता है, खुद पलता है और बड़ी अच्छी तरह इन्हें पालता है। यहाँ आने वाला या पहुँचने वाला, हर गैर सरकारी प्राणी एक बार में, लगभग एक हजार रूपये की चपेट में निश्चित आता है। ड्राईविंग लाइसेंस का मिनिमम खर्च लगभग 500/-दो पाहिया वाहन का, साथ ही, एक दिहाड़ी लगाये तो मजदूर गाँव में भी कम से कम 200/-लेता है, आने जाने में चाहे थोड़ा खर्च हो, खर्च होता है और सब चाय आदि का खर्च अलग है। यह छोटे से काम ड्राईविंग लाइसेन्स की बात थी, वह भी दो पहिये की, बाकी काम सारे इससे बड़े ही है। यह पैसा गैर सरकारी का अगर सही इस्तेमाल हो, तो रंग अलग ही हों, अगर इकट्ठा हो तो शहर पल सकते हंै। यह सब जनता का है और जनता ही इस्तेमाल कर रही है, कोई दोष नजर ही नहीं आयेगा, लेकिन थोड़ा गहराई से सोचे, तो यह सब केवल आर. टी. ओ. आॅफिस की अनियमितता का सबूत है, जो गैर सरकारी को पालती नहीं, बल्की अपने भाईयांे के प्रति गद्दार बना रही है, वह भी गजटेट अधिकारी के द्वारा, यही नहीं इनकी देखा-देखी दूसरे विभागों का, जनता के प्रति अत्याचार की प्ररेणा और शिक्षा बन जाती हैै। क्या कोई भी गैर सरकारी पसन्द करेगा कि उसके और उसके भाई के साथ गद्दारी हो वह भी गैर सरकारी के द्वारा।
हर धर्म कहता है, समाज में एक-दूसरे के प्रति नुकसान की भावना भी नहीं होनी चाहिये। यह सरकारी आदमी पाप करता है, तो भुगत भी रहा है मजबूरी है, सरकारी बात है लेकिन हम-आप आपस में ही, एक-दूसरे को काटकर सरकारी प्राणी को और उनके अपने परिवार को ही खिला रहे हैं। खाना निश्चित है, लेकिन हलाल करके खाना भी जरूरी है, खुद ही खाइये उपर वाले का या प्रकृति का नियम है, वह भी पेट भरने के लिये कोई पाप नहीं है, हर जीव करता है, लेकिन पगार लेने वाले का, खुद के लिये, हर सुख भी गैर सरकारी से, उठाना एक दम नाजायज है, पाप है। मजबूर से पैसा लेना, बिजनेस नहीं अत्याचार है।
हमारे धर्म ग्रन्थ सिखाते आये हंै, समाज व बड़े सिखाते रहे हैं, इंसान को खुद्दार होना चाहिये मानवता निभाने वाला होना चाहिये, जानवर भी अपनोे को डराता है और जरूरत पर खाता है लेकिन बेहद मजबूरी में, जब काम ही न चले, तब लेकिन ऐसा कभी नहीं कि अपनों को काट कर या मार कर किसी भी, दूसरे जीव के लिये छोड़े।
कोई भी प्राणी अपने परिवार का मुखिया या राजा होता है या हो जायेगा और कोई भी अधिकारी, विभाग के लिये भी और जनता के लिये भी मुखिया या राजा के समान होता है, यह दोनांे धर्म-नियम कानून जानते? तो कभी किसी पर अत्याचार कर ही नहीं सकते। दूसरों से या इकट्ठा किया धन अच्छे और जनता की सेवा में और परिवार से इकट्ठा किया धन, परिवार पर ही लगाते हैं, खुद के ऐशो-आराम के लिये कभी नहीं।
राजा या मुखिया अपनी प्रजा या परिवार वालांे के प्रति अच्छी भावना रखता है, वह गलत चले कभी नहीं चाहता, उनकी रक्षा करता है, यही धर्म है और पीछे सबने निभाया है, आगे भी अच्छे लोग निभायेंगे। निश्चित ही आर. टी. ओ. से सम्बन्धित, हर गैर सरकारी प्राणी, जिनकी इनकम, इस आर. टी. ओ. या आर. टी. ओ. आॅफिस से है, उन्हें नागवार गुजरेगी, लेकिन धर्म यही कहता है और सब भी यही कहेंगे, उनके परिवार वाले, जो बिना लालच, इनसे जुडे़ हैं, वह भी कहेंगे, यह पैसा या यह कर्म गलत है। वैसे उपभोक्ता बेहद खुश है, क्योंकि मोटा पैसा ही खर्च होता है, वह कैसे भी इकट्ठा किया जा सकता है, लेकिन सिर नहीं झुकाना, कहीं लाइन में नहीं खडे़ होना, कहीं डाॅक्टर के पास नहीं जाना, खासतौर से समय की बचत और हर सिरदर्द खत्म। लेकिन वह नहीं जानते कि ऐसा करके, अपने वंश, जो आने वाला है, उसके लिये भी और समाज के लिये ही नहीं, सरकारी विभागों के लिये, लकड़ी में घुन लगाने जैसा काम कर रहे हैं। यह एक सरकारी प्राणी ही अनियमितता या गद्दार होकर, अपने परिवार से लेकर पूरे देेश में आने वाले समय के लिये, गद्दारों की फौज बनाने की फैक्ट्री का बीज बो देगा। जहाँ गुलाम, जलील, रिश्वतखोर, भ्रष्टाचारी ही पैदा होंगे, उल्लेखनीय है पैदा होंगे।
जानकर कोई प्राणी गलती नहीं करता और समझदार किसी भी धर्म का प्राणी, हर कोशिश करता है कि हर तरफ साफ सुथरा हो। अच्छी शिक्षा देता है, झूठ और लालच से दूर रहने व दूसरों को दूर रहने की सलाह देता है। अपने से छोटा, औलाद के समान और बड़ा, सबके बड़े के बराबर मानता है, इज्जत करता है।
हर इंसान को जागरूक होना ही चाहिये, गैर सरकारी प्राणी, हर सरकारी प्राणी, हर नेता और विद्यार्थीगण। अपनी स्थिति, हक, समझना चाहिये, अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी समझनी और आचरण में लानी चाहिये।
इस समय अधिकतर प्राणी पढ़ा लिखा है, लेकिन निश्चित ही कम पढ़ा लिखा या अनपढ़ की कार्यशैली ज्यादा कारगर है, यह पढ़ा लिखा जवान, पूरा समाज, सरकारी प्राणी, नौकर व अधिकारी इतिहास पढ़ते, तो शायद खुद्दार के गुणों से ओत-प्रोत होते, धर्म ग्रन्थ पढ़ते तो समाज के काम आते और सब कुछ अच्छा-अच्छा होता। मरते हुए भी सन्तुष्टी होती, नारी पढ़ी लिखी, देवी की केटेगिरी से निश्चित गिर जाती है, सबूत है हर दिन नजर आता है, लेकिन हम देखना चाहे समझना चाहे, तब समझेंगे या देखेंगे, यही नारी इतिहास देखती या पढ़ती, तब समझती कि नारी चीज क्या है? पहले नारी का, सती होना कितना आसान और कितना बड़ा धर्म होता था, वह अनपढ़ गँवार नारी पूजनीय क्यों थी? आज की पढ़ी लिखी पैसे वाले की खूबसूरत मेनका जैसी नारी, त्यागने योग्य क्यों है? यह, केवल यही की नारी का इतिहास पढ़कर और धर्म ग्रन्थ पढ़कर समझदार होकर, गा-गा कर सुना सकती है। जब एक पढ़ा लिखा इंसान, अपने को समझना भूल जाता है, तो निश्चित ही, आर. टी. ओ. जैसा गलत अधिकारी किसी को भी, बिना किसी बात या जुर्म के मुजरिम सबित कर सकता है।
यह प्राणी रिश्वत लेकर, अपने बड़ों का अपमान, अपने छोटांे को गुलामी की तरफ और अपने आने वाली पीढ़ी को गुलाम बना रहा है।
इसके विपरीत यह पढ़ा लिखा इंसान, आर. टी. ओ., जिस पर सब गर्व करते हैं, अपनी औकात, रूतबा भूल चुका होने के बाद, जनता की सेवा कर ही नहीं सकता, यह जनता से रिश्वत खा सकता है, सारी अपनी बिरादरी को निपटा सकता है, जहाँ रहता है, खाता है, व नौकरी करता है, उसे त्याज्य करने लायक तक, गन्दा कर सकता है। इसकी छाया में पलने वाला कर्मचारी या बेटा खराब न हो नामुमकिन है। आप सब सच्चे देशवासी हैं, महापण्डित रावण या चाणक्य जैसे के वंशज हैं या श्रीराम चन्द्र के वंशज हैं। आप किसी भी देश के हैं, खुद्दार हैं, देश की माटी का असर है, अपने पुरखों की कीमती निशानी हैं। देश के गद्दार को पलने देंगे? हाँ, लेकिन उसका सुधार करने के बाद। आप राणा, सुभाष के अनुयायी हैं। आप खुद्दार हैं, नमक हरामों से घिरे हैं, फिर, आपको रिश्वत देनी पडे़ तो कोई बात नहीं 10/-की बजाय 20/-और 50/-या 100 रू दे दो, लेकिन बाद में उसका दस गुना वसूल करो, आप मर्द जाति हैं, आपके बाप का या आपके बेटे का या आपका ही धन, आपको मजबूर करके कोई ले तो सकता है, लेकिन पचा नहीं सकता। चाहे एक साल लगे, चाहे दस साल, आप गद्दार या गलत को कभी भूल नहीं सकते। यह धर्म-ग्रन्थ या भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड का, यीशु का नियम है। आप गलती करें, तो शुरू में थोड़ी सी सजा, लेकिन देर होने पर कठोर सजा भुगतते हैं। सजा से कैसे भी बचा नहीं जा सकता। प्रकृति का नियम है, फिर आपके साथ, आपके देश के साथ, कानून के साथ गद्दारी करते रहने वाला, कैसे बच सकता है? काम निकालकर आप इन्टरनेट पर, सब में खुलासा कर दो, बस आप कानून के रक्षक बन गये, ब्याज समेत पैसा वसूल करना आपका कानूनी हक बन जायेगा। आप आजाद देश के हैं, आप बूँद-बूँद, पानी, तेल, बिजली, कीमती समय बचा रहे हैं। आप कर्मठता बढ़ा रहे हैं। रिश्वत देकर आप अवरोध खत्म कर रहे हैं।
इसमें आप मायूस न हों आप आजाद हैं, आपके यह सब सेवक हैं, आप कैसे भी रहे यह सेवक आपके तरीके से ही आपका काम करेंगे। यह कानून जो आप के लिये बताते हंै, वह सारा कानून, इस अधिकारी और इसकी पूरी बिरादरी पर कठोरता से और आप से पहले उन पर लागू है। यह कानून और ज्यादा सख्ती से अमल, आप सब ही करा सकते हंै जो कि सच्चाई है। आप गैर सरकारी हंै, गैर सरकारी, धन बचा कर भी हर हाल में सारे देश के काम में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष निश्चित लगाता है। हर हाल में एक कर्मचारी या अधिकारी आप से ज्यादा कानून में बँधा हंै, उसे डरना ही चाहिये एक नेता भी कानून में बँधा है, लेकिन गैर सरकारी अपनी इच्छा से बँधता है। उसे तो भगवान भी नहीं बाँध पाया, समाज भी नहीं बाँध पाया, अगर वह जाग गया, तो कहीं भी रहे, इससे बचना नामुमकिन है। हाँ, समझदार प्यार से तो यह हमेशा लुटता आया है। गाँधी जी सबूत हैं, वह हिन्दुस्तानी थे और हर परेशानी मौजूद थी, जब बीड़ा उठाया था एक दम अकेले थे, और अंग्रेज बेहद मजबूत थे, हर चीज उनकी थी और उनको देश छोड़कर जाना पड़ा। इन अंग्रेजों की ऐसी हालत हुई कि अब तक उठ नहीं पाये आगे पता नहीं उठ पायेंगे या नहीं यह एक ही सबूत नहीं है। इतिहास, पढ़िये अनगिनत सबूत मिलेंगे।
इस माहनुभाव आर. टी. ओ. साहब की एक कमी भी सरकारी प्राणीयों की हीनता बन जाती है। हम इनकी कमी इसलिये चर्चित कर रहे हैं कि यह पूरे देश के साथ-साथ अपने परिवार और खानदान के लिये भी अच्छे हों, इनकी पत्नी नहीं बोलती लेकिन सब माँं-बाप, बच्चे तक जरूर सोचते हंै कि रिश्वत का पैसा गलत है। हमारे लिये पापा और उनकी पगार ही काफी है।
इनका सुधार कैसे हो कानून व विभाग, जो पूरी तरह सक्षम है, सजा देने में वह भी किसी नियम कानून में बँधा है, कानून है शिकायत कीजिये अमल होगा अब कौन शिकायत करेगा, मजबूर, भोला, हर परेशानी से जुझता हुआ प्राणी? सरकारी प्राणी और नेता 10/-देते हंै, तो वह जनता और सरकार से लाखों रूपये इकट्ठा करते हंै, वह खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कैसे मार सकते हैं? इसके लिये सरकार को कुछ नियम बनाने ही चाहिये। यह इच्छा हर सरकारी प्राणी की है, नेता की है, खुद आर. टी. ओ. चाहते हैं, अच्छे इंसान को डर कैसा और गैर सरकारी तो चाहता ही है। इसने बड़े से बड़े हाथी जैसे जानवर के लिये भी अकुंश बनाया, जिससे वह कन्ट्रोल में रहें। रेल जैसे सबसे भारी वाहन के ब्रेक तक, गैर सरकारी ने बनायें, बस सरकार ने उसका सही इस्तेमाल किया। हमें कुछ नियम बनाने हैं और सख्ती से पालन करने हैं, जिससे आर. टी. ओ. साहब की थोड़ी सी सही मेहनत से, पूरा देश पले, हर टैक्स माॅंफ हों, उग्रवादिता और मँहगाई जैसी व्याधा अपने आप में सिकुड़कर खुद खत्म हो। संसार के सारे आर. टी. ओ. सम्बन्धित व सारे सरकारी प्राणी और गैर सरकारी प्राणी आमंत्रित हैं, वह हर समस्या व हर अनियमितता समझंे, खुद या मिलकर सुलझायें व खत्म करके, सारा संसार चमकायें, खुद व सबके लिये धन्य हों, साथ ही लेखक का धन्यवाद कबूल करें।
सुधार-सफाई के लिए विचार
01. आर. टी. ओ. विभाग का स्टाफ जहाँ रहता हो, उससे एक किलो मीटर तक सरकारी अनियमितता पाये जाने पर विभाग के कर्मचारी दोषी करार दिये जाये, क्यांेकि इन्होंने अनियमितता देखते ही, सम्बन्धित विभाग को अविलम्ब शिकायत करके अनियमितता सुधारने की जिम्मेदारी नहीं निभाई। ऐसे कर्मचारी से हर माह 100 रुपये जुर्माना राजकेाष में जमा करें। आर. टी. ओ. साहब यह नियम लागू करके उन उपभोक्ताओं की सेवा कर रहे हैं, जो इन्हंे हर साल टैक्स देते हैं, और आगे इनकी अगली पीढ़ी भी टैक्स देगी, यहीं नहीं सरकार को, हर टैक्स दे कर देश को पालते हैं व हर सरकारी प्राणी की हर अनियमितता सुधार कर, देश को समृद्ध व सुनहरा बनाने की सफल कोशिश मात्र है।
02. हर वाहन के कागजात अपने आॅफिस में या उपभोक्ता के घर पर बनायें जाये, सड़क रोककर तो कभी नहीं, वाहन का नम्बर नोट होने पर, केवल अपने आॅफिस पर कार्यवाही हो या उपभोक्ता के घर पर ही कार्यवाही हो और छोटा मोटा जुर्माना राजकोष में जमा कराया जाये, घर के सदस्य को खासतौर से जिम्मेदार ठहराया जाये खासकर, दोषी का नोमिनी भी दोषी माना जाये अगर दोषी, सरकारी कर्मचारी या उसका खून है, तो जुर्माना कम से कम 500 रूपये होना जरूरी है।
03. किसी भी हादसे में सबसे पहले फायर बिग्रेड को हादसे की जगह पहुँचाया जाये, जिससे हादसें के शिकार प्राणी को आसानी से बचाया जा सके, सड़क जल्द से जल्द साफ हो, फायर बिग्रेड को ड्यूटी मिले। ड्राईवर (गैर सरकारी) की गलती पर, अगर दोषी है, तो हादसे के शिकार प्राणी को अविलम्ब खर्चा और पैसा दिलाया जाये, कुछ राजकोष से बाकी ड्राईवर और या ड्राईवर के परिवार से (नोमिनी से), लेकिन यह अविलम्ब हो चाहे यह पैसा इसी समय सरकार को देना पड़े, बाद में यह किस्तों में दोषी प्राणी से वसूल किया जाये जिससे हादसे के शिकार प्राणी को कोई परेशानी न हो अगर दोषी ड्राईवर सरकारी प्राणी है तो उस पर मोटा जुर्माना जरूरी है, क्योंकि वह पगार लेता है और ज्यादा जिम्मेदार भी है वह सब उसकी हालत पर किस्त के रूप में भी हो सकती है। हादसे का निपटारा एट-द-स्पाट जल्द से जल्द (दो दिन में) निश्चित हो, अदालत में जाना तो बिल्कुल नहीं, क्योंकि जितना ज्यादा समय लगता है दोषी व्यक्ति फायदे में रहता है और मुद्दई नुकसान में रहता है, यह दोनांे प्राणी ज्यादा नुकसान वहन करते हैं, यही नहीं देर होने से, हर सरकारी प्राणी भ्रष्ट होने लगता है या ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। दोनों में कोई गलत है या नहीं फैसला ही होना होता हैं। एक-दूसरे को पैसा लेना-देना पड़ता है यह निश्चित है, हादसा हो ही गया है जल्द काम निपटे, तो सब धीरे-धीरे ठीक ही होना है या होता है। लम्बे प्रोसीजर से भ्रष्टता व सिरदर्दी बढ़ती ही है और कुछ नहीं मरने वाले को 3 लाख निश्चित किये जाये, चाहे वह सरकार ही दे, जो बाद में दोषी व्यक्ति से चाहे किस्त में लें, चाहे मुद्दई छोड़ दे। लेकिन सरकारी प्राणी पर और नेता पर मोटा जुर्माना निश्चित करें, चाहे मुद्दई कुछ न कहे। कोई जान कर हादसा नहीं करता, सब जानते हैं और मानते हैं, दूसरा माल का नुकसान बर्दास्त हो ही जाता है, लेकिन मानवता बेहद जरूरी हैै। दोनांे प्राणी हादसे से गुजरें हैं, ध्यान रखा जाये, नुकसान कैसा भी हो, सहानुभूित सबको सबसे हैं, दुःख दोनों को निश्चित होता है। एस. एस. पी. घंटे भर में फैसला कर सकता है, समझदारी यह भी है कि हादसे में गुजरी दोनों पार्टी, आपस में जल्द से जल्द समझौता करें और हर सिरदर्द से बचें।
04. आर. टी. ओ. सड़क सम्बन्धी अधिकारी है। सड़क की रिपेअर व मेन्टीनेस का भी पूरा ध्यान रखे, गैर सरकारी वाहन के साथ-साथ, सरकारी वाहन भी फिट हाने ही चाहिये, अगर आपकी पावर कम है, तो उसे बढ़ाइये, आपको हर हस्तक्षेप का पूरा हक हैं। सड़क जाम न होने दें, चाहे धर्म कर्म से या जलूस रैली से या हादसे से, खास कानून बनना ही चाहिये। सड़क चलने के लिये है न कि रोक, जाम या भीड़ करके सबको बधित करने के लिये है। नेता और अधिकारी के लिये भी या इनके कारण भी सड़क जाम नहीं होनी चाहिये या ऐसा इन्तजाम हो कि आना-जाना भी चलता रहे, खासतौर से हर वाहन, हर सड़क पर चले, चाहे धीरे-धीरे चलते रहें। सड़क जाम से बेहद ज्यादा और मोटा नुकसान निश्चित होता है, भ्रष्टता बढ़ती है, चलने वाला अपनी इच्छा से धीरे या तेज चलता है, जो उसका हक है, गलती होने पर नुकसान की भर पायी भी करेगा या होगी, लेकिन सड़क जाम जितना नुकसान और किसी भी तरीके से कभी नहीं हो सकता, यह निश्चित है। हर इंसान को बूँद-बूँद तेल, पानी, बिजली और कीमती समय बचाना होता है या बचाना चाहता है, जो हर कोई करता है या करना चाहता है और ऐसा चलते रहकर ही हो सकता है, रूक कर कभी नहीं या रोक कर कभी नहीं। सबूत सारे जीव हंै इंसान को छोड़ कर, हमें सीखना चाहिये छोटे से छोटे जीव चींटी और पक्षीयों में कम से कम हादसे होते हंै और सब आजाद हंै, सब ठीक हैं। गलती पर जुर्माना भरते हैं, जुर्माना सहन करते हैं, लेकिन न रूकते हैं न रोकते हैं। इंसानों में गाँव, कस्बों में छोटी-छोटी गलियां, सड़कंे हंै, कोई ट्रैफिक पुलिस नहीं, जाम नहीं, भीड़ बहुत होती है लेकिन कोई झगड़ा टंटा नहीं, समय से सब काम ठीक होते हैं। भारी और छोटे अप्रशिक्षित वाहन भी होते हैं, कम से कम हादसे होते हैं और सब सुखी हैं। वैसे हादसे अधिकतर घर में ही हो जाते हैं, हादसे रूकने या रोकने से नहीं रूकते, हादसे ऐलर्ट रहने से रूकते हंै या हादसे भुगतने से रूकते हैं। कोई कितनी बार भुगतेगा, उसे खुद को कन्ट्रोल करना ही पड़ेगा और यह उसकी जिम्मेदारी है। सड़क रोकना तो हर हाल में मोटा और हर किस्म का नुकसान है। शहर में स्कूल, त्यौहार, जलूस, रैली, मेला, दशहरा आदि पर रूट बदलने का कानून बनाते हैं, कोशिश की जाये, कार्यरत प्राणी वाधित न हो, आवा-जाहीं बरकरार रहे, रूट बदला न जाये, बूँद-बूँद तेल और कीमती समय भी बचाना है। जनता को परफेक्ट बनाना है।
05. सरकारी प्राणी और नेता के हर दोष को गहराई से लेना अनिवार्य हंै। यह ट्रेण्ड है, जिम्मेदार, परमानेन्ट व बुक हैं, इसलिये छोटी सी गलती पर मोटा जुर्माना राजकोष में जमा कराना व इसके नोमिनी को भी जिम्मेदार बनाना अतिआवश्यक है। आर. टी. ओ. साहब को जिम्मेदार बनाया जाये सरकारी वाहन की थोड़ी सी फिटनेस की कमी, बेहद बड़ी मानकर उसके ड्राईवर, उसके अधिकारी को भी दोषी माना जाये और देखभाल न करने के जुर्म के कारण आर. टी. ओ. भी दोषी माना जाये या जनता की शिकायत पर, दोषी वाहन से मोटा जुर्माना राजकोष में जमा कराया जाये प्राइवेट बस या वाहन को प्रोत्साहन दिया जाये क्योंकि यह जनता की बचत व सेवा करते हैं और सरकार को मोटा टैक्स भी देते हंै। यह प्वाइंट अदालत को भी जानना, समझना चाहिये प्रोत्साहन देना चाहिये न की बंदिश लगानी चाहिये।
06. आर. टी. ओ. और पूरा विभाग सड़क से सम्बन्धित निश्चित हैं, उसे सड़क की रिपेयर, जहाँ वह रह रहा है और वहाँ के हर विभाग पर नजर रखना जरूरी है। यह गुण अधिकारी की ड्यूटी पूरी करता है, किसी भी अनियमितता की शिकायत या सुधार करना अतिआवश्यक माना जाये या केवल वही अधिकारी बनेगा, जो देखभाल करेगा, निश्चित किया जाये केवल यह अकेला अधिकारी भी, अगर नगरपालिका को सुझाव भी दें, तो सारेे विभाग सही चले, नियम व कानून बनाया जाये। हर विभाग और हर अधिकारी के होते हुए व नेता होते हुए कोई भी अनियमितता होना, साबित करती है कि सारे सरकारी प्राणी और नेता भ्रष्ट हैं और सजा के हकदार हैं। हमें देश चलाना है, गलती पर अविलम्ब सजा जरूरी है।
07. हर आॅफिस पर शिकायत बाॅक्स व शिकायत रजिस्टर ऐसी जगह रखें जाये कि शिकायतकत्र्ता, शिकायत जल्द से जल्द लिखकर बाॅक्स में डाल सके, हर माह, हर सेक्टर वाले, शिकायती पत्र की गिनती में शामिल हों। नोटिस बोर्ड पर हर माह शिकायत की संख्या अंकित हो। शिकायती को प्रोत्साहन दिया जायें। ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम पर अमल हो, विज्ञापन हो। संसार को सुनहरा बनाने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी ही समझदारी है। अगर आप किसी भी वाहन की इच्छा रखते हैं या अपने छोटे-बड़े के लिये वाहन रखवाने के इच्छुक हैं, तो पहले अपने सारे विभाग, सारे नौकर, सारे साथी का सुधार करें, चाहे बच्चों की साईकिल क्यों न हो। जलील बनने-बनाने से अच्छा है, पैदल चलकर ही गुजार लो। अपनी सच्ची आत्मा की बात सुनो, केवल नगरपालिका का सुधार करें और करायें। विद्यार्थीगण ध्यान दें, आप बड़ी यूनिटी हैं, इन्टरनेट द्वारा दूर-दूर देश-विदेश तक अनियमितता और सुधार चर्चित करके, बाप-दादा और आने वाले पोते-परपोतों तक को सुनहरा संसार दे सकते हैं।
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