Thursday, April 16, 2020

सम्बन्धी

सम्बन्धी 
हम सब एक-दूसरे से हैं और एक-दूसरे केे लिये हैं।


सृष्टि में पृथ्वी पर, हर इंसान एक-दूसरे का कुछ न कुछ है। मतलब सम्बन्धी है। वैज्ञानिकों के अनुसार या धर्मग्रंथों के अनुसार भी यही बात सही है कि हम सब एक ही माँ-बाप की संतान हैं। पहले बड़ों की आज्ञा से कर्मवश, मजबूरी या अपनी सहूलियत के कारण जाति बनी। जैसे बाप ने कहा, बेटा कपड़े सीने है, वह दर्जी बना, जूते बनाने है या चमड़ा सही इस्तेमाल करना है, चमार या हरिजन बना, खेती करनी है किसान, हल-चारपाई बननी है, बाड़ी बनाया या बने, और गिनी चुनी जाति बनाई या बनी। किसी भी कारण से, किसी गलत आचरण के प्राणी ने या बड़ों की किसी गलती से चारों पुत्रों में अलगाव हुआ और हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई बनें और अपने गलत अहंकार से या गलत शिक्षक या गलत साथी के कारण, अलगाव को गहन बनाने के लिए या समय और जगह के कारण, अपने रोजमर्रा के काम में लगातार बदलाव आता गया।
कहा जाता है ”नासमझ दोस्त से समझदार दुश्मन बेहतर है“, लेकिन जब अज्ञानता या अधूरा ज्ञान हो, तो प्राणी बेहद तेजी से अपने समाज (ध्यान दें), अपने समाज को साम, दाम, दण्ड, भेद से बढ़ाने की कोशिश करता है और हर अनियमितता खुद-ब-खुद बढ़ती चली जाती है और हर व्याधा बीमारी तक घेरने लगती है। आज हमारी अनेक जाति बन गई हैं, अनेक धर्म बन गये हैं। गलत नेताओं के कारण बंटने में असीमित वृद्धि हुई है। अनियमितता हर किस्म से बढ़ी है। हमारे बड़े थे, और पीछे जाये या सबसे पीछे जाये, तो भगवान है, अल्लाह है, वाहेगुरू है, यीशु है, हम इन्हीं की संतान हैं।
आपके दो बच्चे हैं, आप कब चाहते हंै कि भाई-भाई अलग हो। रब के सब, बच्चे है, वो कैसे चाहेगा कि अलग हो या द्वेष-भाव रखे। रब ने, सब कुछ आपके लिए छोड़ा है या दिया है। भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू यीशु ने आपको, हमें सब कुछ दिया, पूरी कायनात दी। यही नहीं, बुद्धि दी, जिसकी कोई सीमा नहीं और सबसे कीमती है। सब अच्छी चीजें हमें दी। बस सुधारना, इस्तेमाल करना या सीखना, हमें आना चाहिए। यह सब, हम अपने बड़ों से, सम्बन्धीयों से सीखते आये हैं।
थोड़ा सा और गहराई, से सोचें, हमारा शरीर है। शरीर के बहुत सारे, अंग हंै या हिस्से हंै। सिर, आँख, नाक, मुँह, हाथ, पैर, अंगुलियाँँ। छोटी-बड़ी, यहाँ तक कि, नाखून, बाल तक सब हैं। सबको मिलाकर शरीर बना है। हम कहते हैं, पैर की, छोटी उंगली है, क्या उसकी अहमियत कम है? क्या हम बेकार, छोटी उंगली को, काट सकते है? उसे काटकर, क्या हमारा शरीर पूरा है? कभी नहीं। उसकी गलती पर भी, हम उसे, हर हाल में बचाने की कोशिश करते हैं, या सुधारने की कोशिश करते हैं। हमारा सिर, मेन पाॅवर है। जैसे परिवार में, बाप, बाबा या जिसके सिर पर पगड़ी बंधी है। नारी के लिए भी, लेकिन शादीशुदा नारी का सिर, उसका पति है, बड़ा लड़का है। आश्रम में, गुरू है। विद्यार्थी के लिए, स्कूल-काॅलेज मंे, अध्यापक हैं। समाज में पण्डित-मौलवी, ग्रन्थी-पादरी है। इस सिर में, थोड़ी सी कमी आ जाये, तो पूरे शरीर के, किसी भी अंग में, कोई भी कमी आ सकती है। हाथोें में, लेफ्ट व राईट हाथ हैं। हर इंसान या हर जीव, शरीर के अगों का ध्यान रखता है और पूरा जीवन-चक्र चलता है। जब हम, इन्हें अलग नहीं करते, द्वेष-भावना, इन अंगों के प्रति नहीं रखते, तो यह, जाति, धर्म, देश को बांटने या तोड़ने की या किसी की इज्जत कम करने की कोशिश क्यों करते है?
अज्ञानतावश, हम अपने परिवार (केवल परिवार) को ही बढ़ाना चाहते हैं। ज्यादा से ज्यादा कोशिश की, तो बिरारदी को बढ़ाना चाहते हैं। थोड़ा और समझदार हुए तो अपने धर्म को बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन और बढ़ोत्तरी व समझदारी करें तो, हर धर्म, हर जाति को बढ़ा सकते हैं तथा सबको सुखी बना सकते हैं। आप, बाप बनिये तो, सबको बराबर समझेंगे और सबसे बड़े बन गये तो, पूरी सृष्टि को ही बराबर समझेंगे व चाहेंगे। वह रब है, उसके यहाँ, हर जीव-जन्तु या सब पलते हैं और वह किसी को मारता नहीं। एक गलत नेता चाहता है, उसकी पार्टी के ही सब हों, एक आश्रम वाला चाहता है, सब इस आश्रम के हो। हिन्दू अज्ञानी, हिन्दू को चाहता है, मुसलमान केवल मुसलमान को चाहता है। गलत सिख या गलत इसाई, केवल सिख धर्म या इसाई धर्म की बढ़ोत्तरी चाहते हैं।
क्या हमारा सिर या दिमाग, शरीर में केवल एक अंग की ही बढ़ोत्तरी चाहता है? कभी नहीं, वह सब अंगों की बराबर बढ़ोत्तरी चाहता है। यह नियम है, इसको हम और आप क्यों तोड़ना चाहते हैं? आज से पहले भी और अब भी, नासमझ रहे तो, आगे भी हर गलत कोशिश और हर प्रपंच करते रहे हैं, करते रहेंगे। कहीं मन्दिर में घंटे बजाकर, लाउडस्पीकर में नमाज पढ़कर, वाहेगुरू का शब्द लाउडस्पीकर से गाकर, जगराते, सड़कंे जाम करके, एक-दूसरे की परेशानी बढ़ाकर, खुद को बढ़ाने की, गलत कोशिश करते रहेंगे।
यही नहीं, हर राजनीतिज्ञ पार्टी, बैनर झण्डे लगाकर, रैली, जलूस निकाल कर, हर गैर सरकारी प्राणी, सरकारी प्राणी और देश के भविष्य विद्यार्थीगण को बाधित, नकारा व परेशान करते रहे हैं। पहले राजा-महाराजा अपना राज बढ़ाने के चक्कर में करते थे, आज पार्टी बढ़ाने के चक्कर में करते हैं और संत महात्मा कहलाने वालों ने तो, अलग-अलग तरीके से विज्ञापन व दूरदर्शन पर प्रवचन करके, गलत बढ़ोत्तरी करके, सबको बाधित किया है।
राम-राम, जितना कहो, कुछ भी, राम न होय, 
राम जैसा, कुछ भी करो, जय-जय राम की होय।
हम सब शरीर के अंगों के समान हैं, सब एक-दूसरे के सम्बन्धी हैं, गैर सरकारी प्राणी, सरकारी प्राणी, नेता या हर जाति, हर धर्म व हर विभाग का, हर कर्मचारी और देश का भविष्य विद्यार्थीगण तक भी सम्बन्धी ही तो है, और जिस प्रकार हम शरीर के हर अंग की सफाई-सुधार का ध्यान रखते हैं। हर दिन स्नान तेल, खुशबू से सबकी ही व अपनी पसंद हो, हर अंग को रखते हैं। सुधार के लिए दवा, इन्जेक्शन, कड़वी दवा, यहाँ तक कि आॅपरेशन, काट-छाँट करके, मोटा पैसा व समय लगाकर, सारे सम्बन्धीयों के सहयोग से, एक अंग को भी अपने लायक व सबके लायक बनाते हैं और बाद में सुख उठाते हंै, इसी प्रकार परिवार में, हर कोशिश से बच्चों का सुधार करते हैं। समाज में, जाति में, सुधार करने की, हर कोशिश करते हैं, इसी प्रकार अपने सम्बन्धियंांे का ध्यान रखना ही चाहिये। थोड़ा सा और कर्मठ, वफादार, समझदार बनिये। हर विभाग, हर नेता, हर कर्मचारी का ध्यान रखिए, हर अनियमितता को, आप खुद, सुधार सकते हैं। सुधारने की कोशिश तो, कर ही सकते हैं।
अगर कुछ नहीं कर सकते हो तो, अविलम्ब, परिवार को, विभाग को, अधिकारी को और या उपर तक शिकायत, तो कर ही सकते हैं। यह भी मुमकिन नहीं तो हमें, लिखिए और तीन आदमियों के साईन, उनके वोटर/आधार नंबर के साथ लिखिए, सुधार होगा। घर है तो, आपका ही, आप छोटे हैं या मुखिया हैं, समाज, देश, संसार सब आपका है। अगर आप, सरकारी प्राणी हैं, तो आॅफिस व पूरा विभाग आपका है। आप, छोटे कर्मचारी हैं या अधिकारी हैं, तो सब आपके अंगों के समान हंै। सारे सम्बन्धी हैं। आप, जिस परिवार, खानदान या जिस विभाग में हैं, ध्यान दे, कोई गंदा न हो। इन्टरनेट पर शिकायत-सुधार करना बेहद आसान है, आप हिम्मत तो करें।
थोड़े और बढ़िये, स्वाभिमान बढ़ाईये और सब विभाग या कर्मचारी व अधिकारी, आपके सम्बन्धी के समान है और थोड़ा सा विश्वास जगाइये, सारे नेता, सारा मीडिया, आपके सम्बन्धी हंै और, सब शरीर के अंगों के समान हैं। एक उंगली गन्दी या गलत हो, तो आप किसी लायक नहीं रहते, जब तक यह उगंली ठीक न हो, आप चैन से नहीं बैठते, इसी प्रकार, आप सबका ध्यान रखिए और सुधारने की खुद भी, कोई सही युक्ति सोचें और सबका, सहयोग भी लें। लेकिन सुधार की सोचे, युक्ति मिलेगी। हमारा सहयोग लें, जो जितना बड़ा है, उसी के मुताबिक सुधार-सफाई करता है, रखता है। सब बड़ों का व रब का भी यही नियम है। अनेक सबूत मिलेंगे, इतिहास गवाह है। अनेक राजा-महाराजा हुए हैं, चक्रवर्ती राजा हुए हैं। अकबर बादशाह, छोटी सी आयु में गद्दी पर बैठा और इस नियम पर, ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“, पर हर कर्मचारी, वफादार, कर्मठ व नमक हलाल रहा। हर धर्म की इज्जत हुई, बादशाह अकबर ने, लम्बे समय तक व लम्बी दूरी तक सफलता से राज किया। मिसाल दी जाती है। शेर और बकरी, एक घाट पर, पानी पीते थे। हिन्दू, बीरबल तक मंत्री पद पर रहे। अंग्रेजों ने, लंबे समय तक राज किया। उनके नियम-कानून, हमेशा याद रहेंगे। घोर अत्याचारी साबित होने पर भी, भारतवासी ही कहते मिल जायेंगे कि इस राज से तो, अंग्रेजों का राज ही अच्छा था। सबसे नजदीकी और खास, सम्बन्ध होता है, छोटे-बड़े का। किसी भी जीव में या सब में, निश्चित ही छोटा या बड़ा होता है। जो भी, यह सम्बन्ध निभाता है। वह सुरक्षित और सुखी व समृद्ध रहता है। 
एकांत में रहो, शान्त रहो, सोचते रहो लेकिन, करते भी रहो, हर समस्या का, समाधान निश्चित, मिल जायेगा। बड़ा वह है, जो अपने या किसी, बड़े की आज्ञा पर अमल करे, और अपने छोटों को अच्छी तरह पाले। जो समझदार है, वह बड़ों की आज्ञा में रहता है। जो बड़ों की आज्ञा में रहता है, वह आने वाले समय में, निश्चित बेहद बड़ा बनेगा, बेहद समझदार बनेगा।
गीता के अनुसार, कर्म प्रधान होता है और जितने ज्यादा को, हम अपना बना सकें, उतने ज्यादा हम बड़े, बनते जाते हैं। हम सब, अपना पहला कर्म, भूल रहे हैं या जानकर, भूला रहे हैं। बचपन से बोलना आते ही, सिखाया गया कि, सच बोलो, बड़ों की बात पर अमल करो, सफाई रखो, इसके बाद नमकहरामी, कभी नहीं, सबसे प्यार रखो, सब धर्म-स्थलों पर, आश्रमों पर, हर धर्म-ग्रंथ में सीखते व सिखाते हैं, लेकिन बड़े होते-होते, सब भूलते जाते हैं। हम, अपने इष्ट की पूजा करते हैं लेकिन पहला, सही कर्म व धर्म भूलते जाते हैं।
बड़े अज्ञानतावश, अपने छोटों की अच्छाई में, उनका साथ तक, नहीं दे पाते। इसी का फल, यह होता है कि, सबसे पहले पत्नी-अर्धांगनी ही आज्ञाकारी नहीं रहती और हम, नौकरी, बिजनेस या पूजा-पाठ में व्यस्त रहने से और, झूठे या अधूरे प्यार में, पत्नी का सुधार नहीं रख पाते। आने वाले समय में, बच्चे जो, पत्नी की छत्र-छाया में रहते हैं, उनका सही पालन नहीं हो पाता। लड़का-लड़के के तरीके से, लड़की-लड़की के तरीके से, पलनी चाहिए, पल नहीं पाते और यह छोटी सी कमी, सारी सृष्टि को गड़बड़ाने के लिए, काफी साबित होती है। हमें याद रहना चाहिए कि हम सब, सम्बन्धी हैं। एक-दूसरे से हैं, एक-दूसरे के लिए है। हम अलग जाति और अलग धर्म के हैं, लेकिन एक शरीर के अंगों के समान है। हम सब को, एक-दूसरे की सफाई-सुधार का ध्यान रखना है। अगर हम, अपने बड़े के गले लिपटते रहें, बार-बार उन्हें पुकारते रहें, तो वह भी हमें, थप्पड़ मार कर अलग कर देता है, और डांट पड़ती है कि जो काम सौंपा है, वह पूरा करो। सबसे ज्यादा, उपर वाला ही कठोर है, क्योंकि वह कठोर नियम में बंधा है, उसका नाम जपो या न जपो, केवल उसकी इच्छा के काम करते रहो, वह खुश होगा। मनुष्य के अलावा, हर जीव ऐसा ही कर रहा है और वह पहले भी खुश था, अब भी बेहद खुश है, पूरी उम्र, आजाद रहता है और हर व्याधा व हर बीमारी से बच रहा है।
सम्बन्धों में ही, एक शब्द आता है, ”दुश्मन“। यह भगवान ने नहीं बनाया। यह दुश्मन या दुश्मनी, हर जीव ने खुद बनायी। भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड ने, सब अच्छी और सच्ची चीज ही बनाई हंै। दुश्मन शब्द, बेहद खास अहमियत रखता है। आपका आचरण गलत होते ही सामने वाला, आपका दुश्मन बन जाता है।
बैरी न बनाया राम ने, बैरी, खुद बन जाये, 
स्यानी बुद्धि, पाय के, बैरी ही बैरी, नजर आये।
स्यानी = चालाक
मतलब, हमारा बड़ा चाहता है, आप अच्छे बनंे। भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड ने सारी कायनात बनायी। जो आपके दोस्त है या दुश्मन। दोस्त है, तो ठीक है, दुश्मन है, तो उन्हें दोस्त बनाईये। चारों तरफ नजर डालिये। हर एक के चारों तरफ, दुश्मन हैं और इसी के कारण आप मजबूत हंै। एक पेड़ की दुश्मन, हवा है, वह पेड़ को हिलाती डुलाती है। यह हवा, पेड़ के लिए मौत जैसी है। लेकिन, अगले एक साल में, वह पेड़ मजबूत तने वाला बन जाता है। मनुष्य के लिए, सर्दी बर्दाश्त करने की आदत पड़ते ही, गर्मी आ जाती है। इसका मतलब, यह बिल्कुल नहीं है कि यह दुश्मन, आपको या इनको, मारना चाहते हैं। दुश्मनी, हमें मजबूत बना रही है। बाप, बड़ा भाई, गुरू आपको पीट-पीट कर, हमेशा, दुश्मनी जैसी निश्चित निभाते हैं, लेकिन आप बुद्धिजीवि हैं, इसलिए सही सोचते हंै और हमेशा उन्हें भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड मानते हैं।
सारी सृष्टि, आप की, दुश्मन जैसी लगती है केवल, आपको मजबूत बनाने के लिये। रावण, राम का घोर बैरी था। इस पर भी, राम ने रावण के चरण छूये, राजनीति सीखी और अपनी प्राण प्रिय पत्नी को पा सका।
बैरी, आँगन राखियों, नींद, कभी न आये, 
तू जागत, ही रहे, जो जागा, सब पाये।
आप अपने दुश्मन के प्रति, धर्म-नियम (सच्चे) निभाईये, मानव धर्म, अपनाईये वह आपका, सबसे वफादार दोस्त से ज्यादा, विश्वास के लायक, दोस्त बन जायेगा। हमें, दुश्मनी जैसा, गलत शब्द, खत्म करना है। वह बेहद, आसान है, खुद सोचंे, अनगिनत मौके हंै, आपका आचरण है व हर त्यौहार आना, आपकी दुश्मनी, खत्म करने का मौका, आना ही है। दुश्मनी, गलत लालचवश ही, होती है। हर छोटा, गलत लालचवश ही, हर बड़े के साथ, गद्दारी कर रहा है, घटिया दुश्मनी, करता है, यहाँ बड़ा अगर, कम ज्ञानी है, तो हमेशा, हारता है।
बड़े के बैरी, सब रहे, कभी, बाज न आये, 
मौका कोई, चूकंे नहीं, खुद भी, नर्क में जाये
आब का सम्बन्ध, सबका नहीं, जर है, सबकी चाह, 
जर की चाह, जिसकी रही, आब क्या, वंश खत्म हो जाये
सब = बच्चे, नौकर, पशुु, मशीन, नेता और नारी।
आब = इज्जत या नाम
जर = जमीन या कैसा भी धन।
दुश्मनी, कैसी भी हो, हमेशा बडे़ का ही, नुकसान है। दुश्मनी घर, परिवार, सम्बन्धी, समाज, देश की, दूसरे देश से हो, सब गलत है। हर जगह, जनता (राजा) का ही नुकसान है। घर, परिवार में बच्चे, बड़े, मुखिया या जिसके भी सिर पगड़ी बँधी हो, को छोड़कर, सब जनता है। समाज में, प्रधान को छोड़कर, सब जनता है। फैक्ट्री व मालिक के लिए नौकर व प्राणी, जनता है। समझदार प्राणी हमेशा, दुश्मनी भी समझदार से ही करता है। कुछ की, दोस्ती भी बुरी और दुश्मनी भी बुरी। जैसे पुलिस की दोस्ती और दुश्मनी भी ठीक नहीं, इसका सही मतलब यह है कि पुलिस, सरकार की वफादार है, आपकी कोई भी गलती, कभी भी पुलिस की नजर में नहीं आती, लेकिन दोेस्त बनाते ही, आपने अपने उपर, अपना पहरेदार जैसा, बिठा लिया। चाहे आप, बेहद अच्छे हैं, साफ-सुथरे हैं, कोई गलती नहीं करते, लेकिन आपका दोस्त, सरकारी नौकर है, दोस्त बनते ही, आपसे नाजायज फायदा जरूर उठायेगा। दुश्मनी तो, हर हाल में पुलिस से बुरी है। बेहद बुरी है, सब जानते हंै। सबमें, दोस्ती-दुश्मनी का, एक खास स्तर होता है, जिसको रखने पर, हमेशा फायदा होता है। इससे, आपको और औरों को भी, फायदा होता है। यह स्तर, खुद सोचना-समझना पड़ता है, जो केवल, अच्छे समझदार सलाहकार की या बेहद प्रखर बुद्धि, खर्च करने पर ही मिलता है। लेकिन, नेता जो लगभग, सब जगह देश-विदेश तक में हंै, इनकी दोस्ती भी, बेहद खतरनाक है। आपका, इनके आसपास रहने पर भी, आपके वंश तक में, हर गलत बीज तक बोने में यह, निश्चित कामयाब होते हैं, जिसमें दोष इनका है ही नहीं, वोट की चाह, सीट की इच्छा इन्हें, हर गलत काम की इजाजत दे देती है। आप अगर, मानव-धर्म निभाकर, रैली में चले भी जाते हंै, तो गलत कर देते हैं और सारा समाज व पूरा देश भुगतता है। नेतागिरी में, चुनाव लड़ने से ही, लड़ाई और दुश्मनी शुरू हो जाती है और पूरी आयु चलती है, कोई खत्म करके दिखाये?
दुश्मन बनाना, बेहद आसान है। इस समय, हर सरकारी प्राणी, हर एक को, हर एक से, केवल रिश्वत लेकर अपना, दुश्मन बना रहे हैं या काम में देर करके, जनता को, सरकार की दुश्मन बना रहे है और नेता का, फायदा कर रहे हैं। लेकिन, सच्चाई इससे भी गहरी है। यह सरकारी प्राणी अपने ही नहीं, पूरे देश के पालनहार से, रिश्वत लेकर, अपने विभाग और अपने वंश से, दुश्मनी निभा रहा है और देश के पालनहार से, दुश्मनी मोल ले रहा है। ऐसा आगे निश्चित होगा कि, यह मात्र प्राणी 10/-की जगह 50/-रिश्वत में देगा और आने वाले, किसी भी दिन, रिश्वत लेने वाले से या, उसके अधिकारी से या, पूरे विभाग से, हर हाल में ब्याज व हर्जे, खर्चे सहित, जरूर वसूल करेगा, चाहे उसका ट्रांसफर कही भी हो। रिटायरमेन्ट हो या उसकी मृत्यु ही हो जाये, लेकिन चाहे रिश्वत लेने वाले के परिवार से ही वसूल करनी पड़े और कानून, खुद कहेगा कि अदालत में जाने के लिये, यह विभाग शुरू में ही खर्चा और दिहाड़ी केवल शिकायती प्राणी की पगार, पेंशन, फंड से या विभाग से ही लिया जाये जजमेन्ट के बाद, दोषी न पाये जाने पर चाहे, उपभोक्ता से जुर्माने के साथ वसूल किया जाये।
उपभोक्ता जरूर जागेगा, उपभोक्ता के जगते ही, गलत को सजा से, कोई नहीं बचा सकता। गलत को बचाने वाला, भयंकर सजा का हकदार हेागा। उपभोक्ता, अकेला भी पालनहार है, तो दुश्मनी का सम्बंध, अकेला भी निभायेगा। हर तरीके से निभायेगा और, सब उसका साथ देंगे। खासतौर से ”सूर्योदय’ तो जरूर देगा। सच्चाई का साथ, हर इंसान देना ही चाहता है। सरकार कानून तक साथ देना चाहता है, साथ देता है।
इस समय हर घर में, बाप-बेटे में निश्चित, दुश्मनी या मनमुटाव है, जिसका दोषी, बेटा तो है ही नहीं। हम पहले केवल, पति-पत्नी थे। बेटा बहुत बाद में, आया और उसको पालने का श्रेय, हमारी पत्नी का ही था। एक पुरूष, पत्नी के लिए, परिवार के लिये, राजा, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड होता है। राजा की पत्नी, मंत्री रूप है, जिसकी अकर्मठता, गद्दारी, नासमझी, बेवफाई, बाप को बाप ही नहीं, राजा, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू या गाॅड तक, रहने ही नहीं देती और अज्ञानतावश, परिवार, समाज, कानून तक, राजा का साथ नहीं दें पातें। राजा भी, नासमझी में सही इलाज, सोच ही नहीं पाता और खुद का बेटा भी, पूरी जिन्दगी पूरा न होने वाला नुकसान, सहता है। बाप का तो, नुकसान हो ही गया, अगर कहीं बेटा समझदार बन के माँ को, बाप की पत्नी मान ले तो, फौरन दुश्मनी, गहरी दोस्ती में बदल जाती है और यह बेटा, असीम उँचाई पर निश्चित पहँुचता है। यह सच्चा ज्ञान है।
बाप अगर समझदार बन के, पत्नी का दोष जानकर, बेटे को गैर समझकर, सही बर्ताव करे तो, कुछ दिन में दुश्मनी, दोस्ती में बदल जायेगी। पति को, पत्नी दोषी नजर आते ही, पत्नी के साथ जितने रिश्ते-नाते, जुड़ते हंै, सब से नजदीक रहकर, बेहद दूर, रहना चाहिये चाहे वह, पति का दिया हुआ ही है। यहाँ भी सब, (कुछ कम ज्ञानी) सब कुछ छोड़कर, सन्यास ले लेते हैं, जो कि गलत हैं और पूरा ज्ञानी, पत्नी के पास रहकर, सन्यास लेता है। धीरे-धीरे सब कुछ सही हो जाता है, यह ईलाज ही, सही ईलाज होता है। लड़का-लड़की, धन, मकान, सब कुछ, बड़े लड़के का मानकर लड़के का सुख, अपना सुख, समझकर छोडे़, तब ही आगे स्वर्ग है।
कहते हंै-पूत-कपूत तो, क्यों धन संचय? पूत सपूत तो, क्यों धन संचय? जब तक पत्नी समझदार और वफादार नहीं, तब तक भी, हर चीज बड़े की है। बड़े है, राजा है, राज केवल मंत्री की, सही सलाह पर चलता है। मंत्री, बदला जा सकता है लेकिन पत्नी, बदली भी नहीं जा सकती और इलाज बेहद, मुश्किल होता है। साम, दाम, दण्ड, भेद के, सही मिलान से, बड़ी समझदारी से ही, कुछ मुमकिन है। यहाँ नारी का, समझदार होना बेहद जरूरी है। कोई आजमा ले। घर में, पति की इच्छा से, जो भी आयेगा, सब का वफादार होगा या आयेगा ही नहीं। पत्नी या नारी की इच्छा से या बिना पति की इजाजत के, देवी, देवता, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड भी आयेगा, तो, परिवार के लिये या मुखिया के लिए, आज नहीं तो कल निश्चित, नुकसानदायक होगा। पति की बिना इजाजत के, कोई धर्म करना, धर्म रहता ही नहीं। बेटे को पालने में, पति से छुपाव, झूठ रखा, तो बच्चा, बाप का वफादार नहीं रहता। जैसे धरती, सबको पालती है। लेकिन सूर्य की इजाजत लेती है। सूर्य की एक मिनट की इजाजत, न लेना, पूरे ब्रह्माण्ड में, तहलका मचा देता है।
लोग बाग, बँटवारा करते हंै। एक घर में, तीन-तीन चूल्हे, गलत हंै। बँटवारा करना है, तो प्यार से कम से कम शहर से दूर रखना ही, सही बॅंटवारा है। यह सही बँटवारा, आने वाले समय में, सबको मिला सकता है। लेकिन एक घर में, तीन चूल्हे करना, सब की तौहीन करना और दुश्मनी, गहरी करना है। अधिकतर लोग अपने खून के प्रति दुश्मनी को, मामूली समझकर निगलेक्ट करते है, जो गलत है, इसी कारण यह दुश्मनी आज, हर घर में है। हर दुश्मनी को गहराई से लेनी ही चाहिए क्योंकि, हमें दुश्मनी, दोस्ती में बदलनी है। आज, हर देश का कानून है, सुधार की हर, कोशिश कर रहे हंै, इसलिये विश्व अदालत तक बनाई गई है।
यह तो निश्चित है कि, हम सबका बाप, भगवान एक है। हम सब, सम्बन्धी हैं। एक-दूसरे के यहाँं, आना-जाना, रहना, काम करना, किसी भी कारणवश होता है, जब तक हम समझदार हैंै। तब तक हम, जिसके यहाँ जाते हैं, उसी के मुताबिक खाना, सोना, रहना करते हैं। मेहमान, सब जगह, भगवान रूप माना जाता रहा है। मेहमाननवाजी में, कोई कसर नहीं छोड़ता, लेकिन मेहमान का, सहयोग भी होता है, जैसा खिलाया, खाया जहाँ सुलाया, वहीं सोये, उनकी परेशानी में साथ देना, उनका सहयोग करना हैं, उन्हें कोई सिरदर्दी नहीं देते, यही धर्म है। यह धर्म हम, भूलने लगे हैंे।
हम भारत में रहते हैं, तो यहाँ के कानून-नियम पर अमल करना ही चाहिए। अमेरिका, जापान में रहें, तो वहाँ के कानून-नियम का पालन करना चाहिए, लेकिन हम विपरीत करते हैं। यूनिटी बनाकर, विद्रोह करते हैं। अपने देश को, भूलना नहीं चाहिए। लेकिन, जहाँ का अन्न खाते हैं, पानी पीते हैं, वहाँ की अहमियत, कम हो ही नहीं सकती। यही धर्म है। वहाँ के कानून से भिड़ना, धर्म है ही नहीं। समाज के नियम को मानने वाला, समाज में बड़ा हो जाता है। देश के नियम या कानून को मानने वाला, सब में बड़ा निश्चित ही बनता है।
हम धर्म-स्थल पर जाते हैं, तो वहाँ के नियम, पूरी मुस्तैदी से अमल करते हैं। आश्रम पर भी करते हैं। होेटल या मनोरंजन पर मोटा खर्च करके, उनके हर नियम निभाते हैं, लेकिन देश के प्रति, यह लगाव नहीं, घर परिवार या जहाँ, हम काम करते हैं, वहाँ हम हमेशा नियम-कानून तोड़ने की, हर चेष्टा करते हैं। मालिक के प्रति, हमें सब कबूल है, वह हमें हर कष्ट देता है, तो हम अपनी ही गलती मानकर, सिर झुकाकर कबूल करते हैं। लेकिन नारी के लिए, उसका पति, बच्चे के लिए, उसका बाप, नौकर के लिए उसका एम्पलाॅयर, मालिक है, भगवान है, लेकिन वहाँ हम गद्दारी करते हैं। हमारे छोटे-बड़े, घर में, नौकरी पर, संगी-साथी है और छोटे-बड़े सब हैं। देश में सब, जनता, साथी, नेता, किसी अनियमितता को रोकते नहीं और इसी कारण, हर घर में, हर फैक्ट्री में, हर देश में, सारे परेशान हैं।
समझौता, सम्बन्धों में, आरी है, आगे बस, ख्वारी की तैयारी है, 
समाज भी, निश्चित गंदा हो, घर की बरबादी की, तैयारी है।
ख्वारी = दुर्गति
घर = देश, संसार
आप देख रहे हैं, आश्रम, मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे में जो बनता है। हल्के से हल्का, खुशी से खाते हैं और रब का और गुरू, पीर-पैगम्बर, देवी-देवता का एहसान मानते हैं। कम हो तो कहते भी नहीं, किसी भी गंदगी को सुधारते या छुपाते हैं और इसी कारण, हर धर्मस्थल, आश्रम, सदाबहार हैं। ऐसा अपने घर में, बाप का, बड़े भाई का, साथ क्यों नहीं देते? जहाँ पैदा हुए, परवरिश पाकर बड़े हुए, या नारी जो केवल सात फेरे (चार फेरे) या निकाह करके, वहाँ बिना कुछ भी किये, मालकिन बनी, माँ बनी, सारे सम्बन्धी मिले, वहाँ थोड़ी सी कोताही पर, मालिक की व पूरे खानदान की, शान्ति और इज्जत, भंग कर देती है।
हर प्राणी को सोचना ही चाहिए, कि जिस पार्टी में जायेंगे या जिस फैक्टरी या मिल में जायेंगे, जिस घर में जायेंगे, वहाँ के नियम पर अमल करके, वहाँ के बड़ों की इज्जत, बढ़ाने में ही समझदारी है। कुछ त्याग करना पड़े या कमी में, गुजारा करना पड़े तब भी, चुपचाप भुगतने में ही, सबका भविष्य संुनहरा होने की गारण्टी है। ऐसा कर्मचारी या घर की नारी या ऐसे बच्चे, निश्चित यश पाते हैं, और उनकी बढ़ोत्तरी व समृद्धि निश्चित है।
सम्बन्धी या सम्बन्धों में सबसे बड़ा है, प्रेम सम्बन्ध और उससे भी बड़ा है, देश प्रेम सम्बन्ध। प्रेम का मतलब उसका सफाई-सुधार रखना है।
जहाँ से जहाँ तक नजर मारेंगे, केवल प्रेम ही मिलेगा। चांँद, सूरज से लेकर पृथ्वी, आकाश का प्रेम, नारी, पुरूष, जानवर, पक्षी, भगवान, देवी-देवता, पीर-पैगम्बर आदि का प्रेम। प्रेम में, जाति-धर्म या योनि या छोटा-बड़ा, कुछ नहीं होता। समय, उम्र तक का कोई, बंधन नहीं होता। ध्यान देंगे, तो सारा संसार प्रेम-संम्बध में बँधा हुआ है और बँधा रहेगा। इस प्रेम सम्बन्ध होने के बाद, खास उपलब्धि निश्चित होती है। दोनों प्रेमी, एक-दूसरे में, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड देखते और समझते हैं। खास बात यह है, कि ये प्रेम, दुश्मन को भी दोस्त बना देता है। संसार का हर जीव, इस प्रेम-सम्बन्ध के लिए ही, जीता है। हर कर्म करता है और मर जाता है।
माना मुहब्बत जिन्दगी, बर्बाद करती है, 
ये क्या कम है, कि मर जाने पे, दुनियाँ याद करती है।
देश प्रेम में तो 30 प्रतिशत लोग हमेशा, हर दिन जीते हैं और हर दिन मरते हैं। यह कर्म मनुष्य के होश संभालते ही शुरू हुआ और निश्चित ही, पृथ्वी के खत्म होने से पहले तक, हर जीव-निर्जीव देश प्रेम की बली चढ़ेगा। आप सब आमंत्रित हैं, सारे संसार में, हर प्राणी के, एक-दूसरे से सच्चे संम्बन्ध हैं, आप साबित करे।
समझौते से, नुकसान अच्छा, थोड़ा नुकसान, सब कुछ बचाना है, 
अपना, समाज का, घर का, कुछ बचा कर, बड़ा धर्म निभाना है।
समझौता कर, गलती पर सजा देना, निश्चित कर, 
कानून-नियम मान, खुद को सुन्दर बना, सुनहरा सबका संसार कर।



No comments:

Post a Comment