Thursday, April 16, 2020

इम्प्लायमेंट और इम्प्लायमेंट विभाग

इम्प्लायमेंट और इम्प्लायमेंट विभाग

सृष्टि बनने के साथ ही जब पहला जीव आया, तो जमीन पर आते ही वह कर्मशील हुआ। यह नियम 84 लाख योनि के हर जीव का गुण अब भी है, इसमें सर्वोपरि मनुष्य बुद्धिजीवि भी है सबसे पहले हर जीव की तरह, इसने भी हाथ-पैर फेंकने से लेकर, जीवन के सब कार्यों में सक्षम हुआ। बड़े होने पर उसने काम भी किये, काम ज्यादा हो, कम समय में हो, इसलिए उसने अपने छोटांे से या साथियों से काम करवाया भी। इंसान प्राकृतिक धर्म को मानने और धर्म पर चलने वाला होता है। श्रद्धावश भी काम करता है, हर बड़े की सेवा, बिना लालच करता है, कुछ नियम के मुताबिक करते हैं, बड़े उसकी सेवा और काम के बदले जरूर कुछ न कुछ देते हंै। इस देने में आशीर्वाद, छत्र-छाया, खाने, पहनने और इस्तेमाल की चीजें, जमीन आदि, चीजों में, जमीन, जायदाद, मकान, ओहदा तक असिमित चीजें आती हैं। बड़ों के पास काम की भरमार और लगातार काम होने के कारण नौकर या काम करने वाले को, एक निश्चित बँधे हुए मुआवजे के साथ रखा जाता था। जिसे हम रोजगार देना कहते हंै और मुआवजे को रोजी कहते हैं, क्योंकि हर दिन या सप्ताह, 15 दिन में मुआवजा देते थे। अब तक, यह हर आदमी के द्वारा होता था। राजा-महाराजाओं के समय में कोई महल, पुल, सड़क बनाते समय कुछ राजकर्मचारी, मजदूर रखे जाते थे। राजा-महाराजा, जनता या प्रजा को रोजगार देना या काम लेना और मुआवजा देने का काम करते आये हैं। यही अब प्रदेश के अन्तर्गत में काम करने वाली यूनिटी को रोजगार दफ्तर या रोजगार विभाग का नाम दिया गया।
रोजगार दफ्तर का ध्येय बेहद सुन्दर और जनता के, हर प्राणी को रोजी देने जैसा बड़े धर्म का काम था, जहाँ किसी धर्म-जाति, पढ़े-लिखे, अनपढ़-गँवार, छोटे-बड़े, नारी, पुरूष तक सबको काम और पगार मिले, इन पर अत्याचार न हो, सीधा, शरीफ इंसान भूखा न मरे, इस ध्येय से विभाग बनाया, जो लगभग हर जिले और बड़े शहरों में रखा गया। यहाँ पर हर प्राणी, जो रोजगार चाहते हैं, उनका नामांकन किया जाता है, उनकी क्वालिफिकेशन व काम का तजुर्बा या जिस काम का इच्छुक हैं, कार्ड में नोट करके रखा जाता है और जरूरत पर उसे प्राइवेट या सरकारी नौकरी पर भेजा जाता है।
यह विभाग भी जनता के लिये खास अहमियत रखता है, हर सरकारी और गैर सरकारी विभाग जो कर्मचारी रखते हैं या रखना चाहते हैं, शुरू में लगभग 40 साल पहले, इसे पूरी वरीयता दी गयी। लेकिन रोजगार अधिकारी की कोताही के कारण शुरू में रजिस्टेªशन कराने में ही 20, 30/-रू0 और नौकरी पर जाने के लिये नाम निकलवाने में मोटा पैसा लिया जाने लगा। यह प्रदेश सरकार के अन्तर्गत में, जनता के ज्यादा सम्पर्क में रहने वाला विभाग भ्रष्ट होता चला गया। नई उम्र के पढ़ने वाले बच्चों को यहाँ के क्र्लक और नोटिसबोर्ड से नफरत होने लगी। आज यह सरकार से पगार लेने वाला विभाग ही रह गया है। कुछ बुकसेलर, कम्पयूटर वाले ही, जो भी वेकेंसी हो, वहीं फार्म बेचते हैं, भरने और भेजने का तरीका बताते है, अब लगभग 80 प्रतिशत बच्चे बिना रोजगार दफ्तर के रोजगार मोहैया कर रहे हंै। अच्छी-अच्छी लिमिटेड फर्म और खुद प्रदेश सरकार व केन्द्र सरकार के बड़े उपक्रम रेल, नेवीगेटर, फोर्स के फार्म निकलते हैं। 10, 20 या 100, 200 सीट के लिये भी करोड़ों बच्चे फार्म भरते हैं, और माँ-बाप का मोटा पैसा सरकार के अनजाने खाते में पहुँचता है। यही नहीं फार्म भरने के बाद टेस्ट और इन्टरव्यू की मेहनत के लिये किताबें और खर्च, इस पर भी टेस्ट के लिये, कितनी दूर जाना पड़े, उसका खर्च आम प्राणी, मतलब यह है कि एक आम नौकरी के लिये बेइन्तहां मेहनत, 1500 से 2000 तक मामूली खर्च और कहीं प्रदेश सरकार की नौकरी हो, तो इन्टरव्यू पास करने पर या पहले ही रिश्वत है, जो सरकारी प्राणी के द्वारा नेता का दबाव करा रहा है। इस समय भारत में खासतौर से हर प्राणी को पता है, आरक्षण जैसा श्राप हर टेलेन्टेड स्टूडेण्ट को मायूस तो कर ही रहा है, वहीं हर सरकारी विभाग इंजीनियर, डाॅक्टर, हर आॅफिस, नकारा और बेकार लोगांे से भरते जा रहे हैं और देश की समृद्धि में बाधक बन रहे हैं, विडम्बना यह है कि हर विभाग में विजीलेंस विभाग होने के बाद भी, सेना तक में भी रिश्वत शुरू हो चुकी है और लगातार बढ़ रही है। भारत में खासतौर से शिक्षा विभाग में हर अनियमितता जो प्राइमरी पाठशाला से ही शुरू होती है और इन्टर तक शिक्षा फ्री होने पर भी, संरक्षक का मोटा पैसा खर्च करा देती है, फिर भी बच्चा ग्रेजुएशन के बाद भी, किसी भी लायक नहीं हो पाता, क्योंकि नेताओं की प्रक्रिया के कारण, हर अध्यापक, हर स्टूडेन्ट़, हर सरकारी विभाग बाधित रहते हैं और शिक्षा जैसी तपस्या भी भंग रहती है। इसके अलावा नेताओं के हर दूसरे दिन के दौरे, जन्म दिन, त्यौहार, मरण-दिन इन सब का असर पूरे देश पर पड़ता है, इसमें देश के भविष्य विद्यार्थीगण तो लगभग बेकार ही हो जाते है। बात रोजगार की चल रही थी, जो राजा-महाराजाओं के जमाने से चलती आ रही है, लेकिन वह राजाआंे के अन्तर्गत में था और मेहनती को रोजगार मिलता था, अब यह प्रथा नौकर के हाथ में है, जिसके कारण रोजगार किसे मिलता है? यह किस्मत या पैसे के हाथ है। बेहद टेलेन्टेड स्टूडेण्ट रह जाते हैं और जो किसी लायक नहीं, उनको नौकरी मिल जाती है। यह कहने की या लिखने की बात ही नहीं है कि हर सरकारी प्राणी का मूक या प्रत्यक्ष योगदान पूर्ण रूप से है, खासतौर से प्रशासनिक सरकारी व हर प्राणी का। आज हमारा नौजवान, नया भर्ती कर्मचारी, ईमानदारी, समय का पाबंद प्राणी निश्चित होता है और मात्र 6 माह में वह सारे हथकण्डे सीखकर, जनता के सक्षम से सक्षम आदमी को उँगली भी नहीं रखने देता और मजाल ही क्या जो कोई समय पर बिना पैसे दिये काम करा लें। कोई समय था कि राज्य कर्मचारी भी प्रजा के लिये जान छिडकता था और राजा भी आम प्राणी की कदर करता था, अब बड़े से बड़ा अधिकारी क्या छोटे से छोटे कर्मचारी भी, गैर सरकारी को तुच्छ मानता है। कभी कहावत थी। उत्तम खेती, मध्यम बान, निषिद्ध चाकरी, भीख निदान। और अब है उत्तम चाकरी, मध्यम खेत, बान हो गया सरकारी गुलाम। नौकरी में शुरू के 6 माह केवल हाँ-जी, हाँ-जी करो, बाद में आना-जाना कभी समय पर नहीं, रिश्वत के बिना कभी कोई काम नहीं, अगर खेती करो, तो कर्जमंद रहो और दुकानदारी केवल सरकार के लिये करो। जबकि हर सरकारी प्राणी और नेता जानते हैं कि अगर लिखित में शिकायत हो जाये तो बचना नामुमकिन है।
रोजगार विभाग, सारी प्रजा के लिये और कर्मठ लोगांे के लिये व पूरे देश की समृद्धि के लिये बहुत दिमाग (धर्मात्मा दिमाग) की बेहद बड़ी रिर्सच व अच्छी सोच थी, क्योंकि नगरपालिका प्रत्येक प्राणी का पूरा डाॅटा रखती थी और 18 साल बाद ही रोजगार विभाग उसकों रोजी-रोटी दे देता, प्रोत्साहन देता, तो देश सोने की नहीं, हीरे मोती या प्लेटिनम की चिड़ियाँ होती।
इस विभाग ने हर कर्मठता को, खुद मेहनती प्राणी को, कैसा भी कोई काम ही नहीं दिया। मजदूर को सीट का लालच, सीट वाले को मजदूरी दिखाकर पैसा ही नहीं लिया, उनके जमीर से खेला भी गया और अब इंसान वहाँ जाकर अपना समय बर्बाद करना नहीं चाहता। अपनी खुद्दारी दाव पर नहीं लगाना चाहता और जो जाते हैं, वह भी छोड़ रहे हंै। मौजूदा हालात में सिक्यूरीटी गार्ड लगाने को कहकर कुछ समझदार लोगों ने ऐजेन्सी खोली हैं और शहर में, ए. टी. एम, होटल, दुकान और कोठी पर गार्ड की ड्यूटी लगाते हैं, पार्टियांे में वेटर व गार्ड की ड्यूटी के लिये आदमी उपलब्ध कराते है और मोटा कमीशन मारते हैं। काम करने वाले की पगार रूकी रहती है, 8 घंटे की बजाये 12 घंटे और 16 घंटे की ड्यूटी ली जाती है, दिहाड़ी 120, 130 बताकर 80 और 90 रूपये ही देते हैं, इसके बावजूद, आॅफिस का कर्ज, कभी दावत कहकर सुपरवाइपर पैसे ऐठता रहता है। फौज से रिटायर इंसान की भी बेकदरी हो रही है और पढ़ा-लिखा इंसान मजबूरी में अत्याचार व इनकी गद्दारी सह रहा है और सहने की आदत डाल रहा है।
हर जगह हर योनि के जीव हैं। एक जैसे जीव, एक-दूसरे की सहायता करते हंै या उनकी बचत करते हंै, यह बात हर धर्म की भी है, जैसे नेता, नेता की सहायता करता है, सरकारी प्राणी चाहें चपरासी हो और उसका बड़े से बड़ा अधिकारी, हर हाल में उसे बचाने को कोशिश करता है, लेकिन गैर सरकारी प्राणी, हर गैर सरकारी की सहायता या बचत करता ही नहीं, इसके बावजूद गैर सरकारी को काट-काट कर सरकारी प्राणी और नेता को पेश कर रहा है, जबकि गैर सरकारी की सबसे बड़ी तादात है, बेहद कर्मठ भी हैं, बेहद सहनशील भी हैं। इसी के कारण, हर गद्दारी, रिश्वतखोरी, महँगाई बढ़ रही है, हिन्दू, हिन्दू नहीं रहा, मुसलमान, मुसलमान नहीं रहा, सिखँ सवा लख ही नहीं, बल्कि सिख ही नहीं रहा, ईसाई जो सबसे ज्यादा थे, नजर ही आने बन्द हो गये। जबकि मन्दिर में सुबह शाम माइक पर खूब घंटे सुनाई पड़ते हैं, मस्जिद की आवाज भी मीलों सुनाई देती है, गुरूद्वारे के भण्डारें लगातार चलते हैं और शब्द, गुरूग्रन्थ साहब की आवाज दूर तक पहुँचती है, गिरजाघर में भी कैण्डिल जलती है। आपकी नस्ल जितनी खराब होती है, 5 साल कार्यकाल वालों का उतना ज्यादा फायदा होता है।
मानव धर्म अब भी है लेकिन 24 घंटे गद्दारी ही गद्दारी है, अपने धर्म से, समाज से, हर छोटे बड़े से, नौकर हो या बेटा, गलती पर सजा क्यों नहीं? जबकि आप काम की माकूल से ज्यादा पगार और सुविधा दे रहे हंै। हर सरकारी प्राणी 24 घंटे बिना ड्यूटी के भी सोचता रहता है, गैर सरकारी पर कैसे बैन लगायें कि ज्यादा से ज्यादा टैक्स लिया जा सके। नेता और नेता ग्रुप का नौसिखिया नेता भी हमेशा सोचता है, गैर सरकारी से नोट और वोट कैसे मिले। सरकारी प्राणी और नेता ग्रुप, एक-दूसरे की पूरी सहायता करते हैं और गैर सरकारी प्राणी, देश की इज्जत नारी, देश का भविष्य विद्यार्थीगण को कैसी भी, किसी भी तरकीब से निगलते ही जा रहे हंै और कैसे भी जाने-अनजाने, हर गैर सरकारी भी इनका सहयोगी बन जाता है, कभी आरक्षण के बहाने, कभी किसी के जन्मदिन के बहाने, रैली के बहाने, अनगिनत कारण और तरीके अपनाये जाते हंै। हर दिन नेताओं की रैली में ही, हर प्राणी कई-कई सौ रूपये का अपना नुकसान करते हैं और देश का अलग। उदाहरणस्वरूप 5 करोड़ की माला मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) के लिये तैयार हुयी, पहले विजीलेंस, मीडिया, सी. आई. डी. विभाग सोया हुआ था। दूरदर्शन से सीधा प्रसारण हुआ तो आँख खुली, अब विजीलेंस कमेटी जाँच करेगी, सब कुछ दूरदर्शन, अखबार, मीडिया ने दिखाया व बताया, यह सबूत भी है लेकिन अब जाँच होगी जैसे पीछे हुआ सपना था। कोई चश्मदीद गवाह था ही नहीं, सब झूठे और मक्कार हंै, इनका कोई बजूद नहीं है। यह 5 करोड़ की माला 12 घंटे बाद 18 लाख की हो गई। मीडिया, दूरदर्शन, हर नेता, हर अधिकारी इज्जतहीन हैं, खासतौर से सी. आई. डी. व खुफिया विभाग तक। अब नई टीम जाँच करेगी, जबकि देश के हर सुप्रीम न्यायमूर्ति से लेकर प्रधानमंत्री तक, सब अन्धें है? मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) की माला 5 करोड की थी, तो सबसे पहले बाॅडीगार्ड, सी. बी. आई., विजिलेंस, खुफिया विभाग के उपर इनकी गलती पर 5-5 करोड़ का अविलम्ब जुर्माना होना ही चाहिये। उससे पहले जिनके अन्तर्गत में यह विभाग है 2-2 करोड़ उन पर, फिर नई विजिलेंस कमेटी को बनने वालों की, सबसे पहली ड्यूटी होनी चाहिये कि इनके जूनियर पर, जिनकी कर्मठता के बाधित होने पर कमेटी बनानी पड़ी, ज्यादा दिमाग, ज्यादा खर्चा, कीमती समय का नुकसान करना पड़ा, इसके लिए एक-एक करोड़ का अलग से जुर्माना होना ही चाहिये। सबूत है 5 करोड़ की माला बनी, यह जुर्माना होते ही आगे ऐसी गलती होनी ही बन्द हो जायेगी। मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) के सुधार की जरूरत ही नहीं है। ऐसी गलती और करें, तो ज्यादा अच्छा होगा। नकारा विजिलेंस की जरूरत ही कहाँ है, कि उन्हें स्पेशल आर्डर पर यह सब करना पड़े, ऐसा करने के डेलीवेजेज पर लेबर हैं। सुधार मायवती का नहीं बिजिलेंस का और विजिलेंस जिसकी छाया है उसका होना अनिवार्य हैं।
संसार की कोई अदालत या कोई प्राणी, इस विकल्प के अलावा कोई सही विकल्प बतायें, सबकी इज्जत बचानी है, हर नुकसान बचाना है व हर गद्दारी खत्म करनी है, आगे भी ऐसा न हो, यही तो देश चलाना है। देश में मर्द जाति या खुद्दार लोग हैं ही नहीं या गद्दार एक-दूसरे की सहायता कर रहे हंै। एक आम आदमी कह देता है मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) 70 लाख के बेड पर सोती है और विजिलेंस जाँच करेगी, जैसे बेहद गहरी बात है, जोे पहले से पता होना चाहिए, ऐसी विजिलेंस, खुफिया विभाग या एल. आई. यू. पर पूरे देश के हर प्राणी की गर्दन शर्म से झुकनी ही चाहिये, वह भी जीेने के लिये नहीं, इस पूरे विभाग और इनके संरक्षक को बड़ी से बड़ी सजा देने के लिये। इससे पहले सबका खाना, कैसा भी खाना, अपनों का खून पीने के बराबर है। आज मजबूरी है, चलो साल दो साल में बदला लो जबकि, देर की बात ही नहीं है। देश का कोई भी प्राणी राष्ट्रपति से पत्राचार से पूछने का पूरा हक रखता है। आजादी के बाद से आप वोट दे रहे हैं और 5 साल कार्यकाल वाले ही देश का नाश कर रहे हैं।
यह बीड़ा गैर सरकारी को उठाना ही पडे़गा। मीडिया के हर प्राणी को इज्जत तक का दावा अलग-अलग मोटे जुर्माने के साथ करना चाहिये कि जो देखा, जो कहा उसे झूठा क्यों कहा गया? दूरदर्शन के खासतौर से ऐनाउन्सर को अपने-अपने दावे अलग-अलग करने चाहिये, झूठा कहकर, सोचकर उनकी फिल्म उनकी आवाज को दबाया व झुठलाया जा रहा है। हर गैर सरकारी सक्षम प्राणी को दूरदर्शन पर दावा इसलिये करना चाहिये कि गैर सरकारी विज्ञापन के लिये 90 सेकेंड के लाखों रूपये देते हंै और फिर भी ध्यान देना पड़ता है कि विज्ञापन पूरे दिये हैं या नहीं। मायावती जी (पूर्व मुख्य मंत्री, उ0प्र0, भारत) की शोहरत में 24 घंटे पूरा दूरदर्शन व्यस्त रहा, न्यूज चैनल व्यस्त रहा, उसका कितना पैसा लिया और या क्योें नहीं लिया? राष्ट्रपति को सबसे पहले लगभग, हर सरकारी विभाग और नेता ग्रुप को जुर्माने का हकदार मानकर फौरन दंड़ित करना ही चाहिये एक बार ऐसा होते ही, सारे देश का तारतम्य सही होने लगेगा। उस दिन रेल विभाग का मोटा नुकसान हुआ, हर सरकारी विभाग बाधित हुए। जन्मदिन खुशी बढ़ाने के लिये होते हंै न कि आगे कष्ट बढ़ाने व उठाने या गद्दारी बढ़ाने के लिये। राजा सही निर्णय लेते थे क्यांेकि वह नौकर नहीं थे। उनके मंत्री सही सलाह देते थे, क्योंंिक वह सलाह राजा को देते थे, नौकर को नहीं।
हमारे देश भारत में लेबर कमिश्नर की कोर्ट तक लगती है। देश का नियम है कि कम उम्र के बच्चों से मेहनत न कराई जाये, श्रम विभाग में आते हैं। चाहे वह सरकारी कर्मचारी हों, गैर सरकारी कर्मचारी हांे, जैसे दुकान पर काम करने वाले, भट्ठे पर काम करने वाले, किसान के खेत पर काम करने वाले के उपर अत्याचार की सुनवाई और न्याय के लिये, लेबर कोर्ट तक की सुविधा देश में है। यह अदालत जिसे कई लाख रूपये हर माह पगार देनी पड़ती है, आॅफिस के खर्चे अलग लेकिन खुद कानून तोड़ते नजर आते हंै। आये दिन यहाँ पर लाल झण्डे, धरने देते नजर आते हंै, लेकिन यहाँ खासतौर मनुष्य योनि का इंसान कोई नहीं, रिश्वत खुले आम है। नई उम्र के बच्चे या नारी या छोटों से काम लेना शुरू की प्रथा हैं। जहाँ हिन्दू के छोटे-छोटे बच्चे सुबह प्रातः ही स्कूल जाने की उम्र, एक नारी सबको इकट्ठा करके ग्रुप के रूप में कारखाने तक लाती है और वह चुड़ी व कंगन बनाने का काम करते हैं (चुड़ी कारखानें) फिरोजाबाद में हर दिन देखें जा सकते है, वही मुसलमान बच्चे एक गु्रप के रूप में लकड़ी के काम पर एक आया या नारी दिन में छोड़ती है, शाम को ले जाती है। सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत) में (खाताखेड़ी) लकड़ी की नक्काशी बाजार। इसके अलावा दुकान पर नारी या बच्चे सफलता से काम सम्भालते हैं और 18 या 20 साल तक काम करके कम से कम 6 और 8 हजार के कारीगर बन जाते हंै। सुनार, कुम्हार, दर्जी, मैकेनिक, बाढ़ी, मिस्त्री, लगभग इसमें सब केटेगिरी आती है, मजदूरी में तो नारी, पुरूष के बराबर और कभी-कभी पुरूष से ज्यादा काम करती है, यही नारी और बच्चे शाम को अपने-अपने परिवार के साथ स्वर्ग जैसा आनन्द उठाते हंै और खुद को धन्य समझते हैं। इन पर कोई अत्याचार नहीं हो रहा है, हर घर में माँ, बाप, बाबा, दादी, चाचा, ताऊ अपने बच्चो से छोटे से छोटा काम कराते हैं यही बच्चे बड़े होकर, माँ-बाप, सास-ससुर, पति-पत्नी और पूरा घर-संसार सफलता से चलाते हैं। खेत-खलिहान में जिम्मेदारी से काम सम्भालते हंै। यह अनपढ़ भी धर्म निभाते हंै और सुखी जीवन गुजारते हंै। आज के पढे़-लिखे समाज के बच्चों से माँ-बाप और खानदान वाले परेशान हंै, लेकिन यहाँ गवाँर व अनपढ़ की आज्ञाकारिता की प्रतिशतता बेहद ज्यादा है और कोई झुठला नहीं सकता। आज भी जिस बच्चे की पढ़ाई पर लाखो खर्च किये हैं, वह बेरोजगार है, समाज में परेशान है और जीवन उनका कष्टमय है। इन अनपढ़-गवाँर लोगों से उनके खानदान वाले ही नहीं, हर गैर सरकारी प्राणी, हर सरकारी प्राणी, हर नेता व जीव जन्तु तक फायदा उठा रहे हैं और उठाते रहेंगे।
इनकी मजबूरी या इन पर अत्याचार सबसे पहले रोजगार विभाग की अनियमितता का सबूत है, इससे पहले और बाद में श्रम विभाग आता है, निश्चित ही यह कठोर अक्षम्य अपराध की कठोर सजा के हकदार हंै, इनकी हद में काले और लाल झंडे लहराना, शहर और जिले का हर सरकारी अधिकारी सजा का पूर्ण रूप से अधिकारी है। यह झंडे या इनकी मजबूरी प्रधानमंत्री तक को क्यों नजर नहीं आती? निश्चित ही इस मजबूर इंसान से पहले भी, दूसरे मजदूरों ने शिकायत जरूर की है, इन सबके बाद अल्टीमेटम भी जरूर दिया होगा, उसके बाद ही तो झंडे लेकर चलने की नौबत आयी है। यह अत्याचार की चरम सीमा का सबूत है। इस पर गैर सरकारी को पूर्ण रूप से मिलकर आवाज उठानी चाहिये सबसे पहले गाँव में प्रधान व सेक्रेटरी, शहर में सभासद, चेयरमैन, हर नेता और हर सरकारी कर्मचारी व अधिकारी निश्चित ही बड़े जुर्म की सजा के हकदार हंै, क्योंकि झंडे देखकर भी आँखें बन्द किये बैठे रहे और मोटी पगार लेते रहे हंै।
श्रम विभाग के आस पास दूर तक हर अनियमितता बिखरी पड़ी हैं। गन्दगी, टूट-फूट, रिश्वत, रहन-सहन सब गलत है और यह खुद को गजेटड अधिकारी कहलाते हंै। हर काम का सालाना बजट भी बनता है, आता है। अगर पीछे के आकडे़ नोट किये जाये तो कई लाख के पेड़ काटकर बिक चुके हैं। निश्चित ही अनपढ़ भी इनसे ज्यादा सफाई-सुधार रख सकता है या रखता है।
अगर हमें बच्चों और नारी को मेहनत (नाजायज मेहनत) से बचाना है, तो सबसे पहले शिक्षा विभाग और सबके बाद अदालत तक सारे विभाग व नेता ग्रुप को गलती पर अविलम्ब सजा (नगद जुर्माना) और मेहनती को प्रोत्साहन नियम पर अमल करना ही होगा, जो बेहद आसान और असीम फायदेमंद है।
आज हमारे हर विभाग में कर्मचारी और अधिकारी की भर्ती का चलन है। सबको मनमानी तरीके से भर्ती करने का हक मिल गया है या हक दिया गया है। भर्ती करने वाले विभाग को एक खास प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल जाता है। संसार के सारे रोजगार सम्बन्धी प्राणी व सब प्राणी आमंत्रित हैं, सारे संसार या कहीं एक देश की अनियमितता खत्म करके, सारे संसार को सुनहरा बना कर, खुद को व सबको धन्य करे। हमारे अधिकारी मिलकर या हमारे अधिकारी नेताओं के दवाब में निश्चित अनियमितता फैला रहे हैं, अनियमितता न रहे, न फैले इसके लिये कुछ नियम बनाने पडे़ंगे और शक्ति से उन पर अमल करना पडे़गा।

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. भर्ती केवल छोटे कर्मचारी की भर्ती से शुरूआत हो, चाहे वह कितना ही क्वालीफाइड़ हो, चपरासी से भर्ती करके चाहे, एक सप्ताह में प्रमोशन करें, लेकिन बीच में कोई छुट्टी न हो, यही ठीक है। (क्योंकि हमें निपुण कर्मचारी की आवश्यकता है। यह भर्ती होने वाला कर्मचारी मेहनत से ही निपुण होता है और निपुण को ही प्रमोशन का हक है। निपुण कर्मचारी जब अधिकारी बनता हैं, तो कम से कम अनियमितता होती है, भ्रष्टता खत्म होने लगती है और या रोजगार विभाग ही खत्म कर दिये जाये या इनकी कोताही पर पूरी तरह ध्यान रखना, विजिलंेस को सौंपा जाये। लेकिन यह सख्त प्रक्रिया खुद ब खुद बन जाती है।)
02. कर्मचारी की गलती पर सजा केवल नगद जुर्माना ही ठीक है, दूसरी गलती पर पहले जुमाने का 5 गुना, तीसरी गलती पर 10 गुना जुर्माना वसूल किया जाये।
03. कर्मचारी के बाॅण्ड में खास काॅलम होना चाहिये, माह में किसी की एक अनियमितता की रिपोर्ट देनी ही होगी या हर माह 100 रूपये जुर्माना देना होगा।
04. नारी जाति का सेवा काल 45 साल, पुरूष जाति का 50 साल रखा जाये जिससे कर्मठता बढ़े और बेरोजगारी कम हो। (कोई सबूत नहीं है कि 45 साल बाद यह नारी, कमर में दर्द या घुटने के दर्द से परेशान होकर किसी पुरूष वर्ग की सहायता के बिना चल सके, निश्चित ही अनियमितता फैलती है, कर्मठता बाधित होती है। उनके परिवार वालों की समृद्धि बाधित होती है या पुरूष वर्ग अपनी स्थिती व नेचर से गिरते हंै। पुरूष वर्ग के कर्मचारी खुद 50 साल के उम्र में ही सुस्त हो जाते हंै, इनसे काम लेने में अधिकारी और स्टाफ को भी परेशानी उठानी पडती है, इन्हे पगार देने की बजाय पेंशन देना ही हितकर है। मानव धर्म के मुताबिक भी, हमें केवल नारी या पुरूष कर्मचारी व अधिकारी से काम लेना है न की मनुष्य नस्ल खराब करनी है। बड़ी-बड़ी पोस्टांे पर पति-पत्नी काम पर लगे तो हंै लेकिन वह सरकार या जनता का काम कम करते हंै और गृहस्थ जीवन का सुख ज्यादा उठाते हैं। अदालत, अस्पताल और अनगिनत जगह देखंे जा सकते हैं। लंच का समय हो या प्रेगनेन्ट नारी हो, ड्यूटी समय में पूरा बैन होना ही चाहिये, कोई छूट नहीं। गृहस्थ और नौकरी अलग-अलग समझना और रखना ही चाहिये, यह नियम हर पुरूष और हर नारी की पसन्द है और यह पसन्द सबूत है कि वह समझदार और वफादार हैं। देश के प्रति, अपने परिवार के प्रति और खासतौर से मानव धर्म के प्रति। यही नहीं अपने बड़ों के प्रति और छोटों के प्रति वफादारी का सबूत हैं।)
05. कम उम्र के बच्चों के लिये, काम मिलना उनके गुण बढाना है, वह काम चाहे पढ़ाई का हो या घर के काम हो या माँ-बाप या किसी बड़े का काम हो। (यह उम्र प्यार और प्यारे बन्धन की निश्चित है, जो बडे़ खूब समझते हैं। आजादी, कर्मठ और समझदार के लिये वरदान है, लेकिन नासमझ या छोटे के लिये आजादी अभिशाप है और इससे कैसे भी नुकसान से बचाया नहीं जा सकता। नौकर, नारी, बच्चे, नेता और मशीन व जानवर हमेशा ताड़न के अधिकारी है (ताड़न=देखभाल) और इसके लिये हमेशा संरक्षक की आवश्यकता है। खासतौर से पुरूष वर्ग संरक्षक होना ही चाहिये, चाहे वह नारी की गोद का लड़का ही क्यों न हो, पोता ही क्यों न हो और यह पाँचों निश्चित ही अपने मालिक के या बड़े के आस-पास रहते हैं, तब ही वफादार रहते हैं।)
06. सरकार और बड़ों को चाहिये, समाज को चाहिये कि इन बच्चों के माँ-बाप को इस तरीके से सहायता दे कि छोटों के सही काम में प्रोत्साहन मिले और अनियमितता भी न फैले, सही संरक्षक या काम के बिना लड़का या लड़की गलतियों की तरफ बढ़ जाते हंै और समाज को दूषित करके मनुष्य जाति की नस्ल को खराब करते हैं, ऐसे बच्चे और संरक्षक त्याज्य होने ही चाहिये या नगद जुर्माने के हकदार।
07. किसी सरकारी अधिकारी, कोर्ट और या नेता के अगेंस्ट, झंड़े, हड़ताल, धरना, जलूस, पुतले फूँकना या जाम लगता है, तो डी. एम. को पहला मुजरिम माना जाये, कमिश्नर और एस. एस. पी. को भी दोषी करार दिया जाये। (इन्होंने शिकायत मिलते ही, रिकार्ड समय में निर्णय क्यों नहीं लिया? ऊपर रिपोर्ट की गई हैं तो दोषी ऊपर वालों को मानकर दंड़ित किया जायें। इन अधिकारी ने निर्णय में देर करके, पूरे देश का नुकसान किया है। सबको गद्दार, नकारा साबित किया है। शिकायतकर्ता को अपने ऊपर हुये अत्याचार को भूलाकर, उसके पीछे जितने लोग साथ हैं, उन सब की हर दिन की दिहाड़ी की माँग पहले करें, जिससे सारे सरकारी प्राणी, नेता और सब गैर सरकारी की आँखें खुलें और एक ही बार के बाद, आगे किसी को अत्याचार सहना ही न पड़े या अत्याचार सहने का मुआवजा मिले। गलत अधिकारी को केवल जुर्माना ही किया जाये, ट्रांसफर, जेल, सस्पेंशन, तो बिल्कुल नहीं, उसे आप के बीच कर्मठता और वफादारी से रहना ही चाहिये।)
बाकी सुधार-सफाई के लिए विचार पिछले अनुसार ही हैं।



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