पुलिस और पुलिस विभाग
सृष्टि बनने के बाद मनुष्य ने होश सम्भाला और सबसे पहले अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना नेचुरल रहा, जो अपने शरीर के द्वारा और निर्जीव वस्तुआंे से सुरक्षा करना शुरू करके, अपने परिवार में से, पहले किसी एक को सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गयी, यह काम निश्चित ही मुखिया के द्वारा हुआ, परिवार बढ़ा और अपनी और परिवार की जिम्मेदारी बढ़ने पर सुरक्षा के लिये, एक से ज्यादा प्राणी रखे गये और इनको नाम दिया गया, (सुरक्षा कर्मी), इसके बाद मुखिया, प्रधान, राजा-महाराजा बने और सुरक्षा कर्मी, सिपाही या पुलिस के नाम से प्रचलित किया गया या हुआ। काम की दृष्टि से अलग-अलग नाम और ड्यूटी सौंपी गई। कई शाखाएंे बनती गई या बनाई गई।
आज हमारे पास पुलिस की बेहद बड़ी यूनिट है, इनमंे पुलिस और ट्रैफिक पुलिस, फायर बिग्रेड पुलिस, जल पुलिस, सेना भी पुलिस का रूप ही है, रेलवे की जी. आर. पी. आदि भी पुलिस ही है। गैर सरकारी, अपने व्यापार में अपने प्राईवेट सुरक्षा कर्मी रखते हंै, वह भी पुलिस या सिपाही ही कहलातेे हंै। आज प्रदेश के अनुसार उनको अलग-अलग नाम दिये गये, यूनिटी बनाई गई जैसे उ0प्र0 पुलिस, पंजाब पुलिस, देहली पुलिस, महाराष्ट्रा पुलिस आदि, सुरक्षा और सुधार करना व रखना मनुष्य में प्रकृति की देन है। हर जीव पैदा होने से मरते दम तक लगातार सुधार व सफाई करता रहता है, यही सबसे बड़ा धर्म निभाने की ड्यूटी करने के लिये पुलिस और पुलिस विभाग बनाया गया। अच्छी परवरिश, अच्छे विचार में पलने वाला बच्चा, पढ़-लिख कर बड़ा होता है। फिर उसका कठोर इन्टरव्यू होता है। तंदरूस्त शरीर देखकर, परखकर भर्ती किया जाता है, गहराई से पुलिस वेरिफिकेशन का नियम और कानून है। इन्टरव्यू के बाद 3 माह, 6 माह या साल की कठोर टेªनिंग होती है, उसे पास करने के बाद पोस्टिंग का नियम है। जिससे यह लड़का हर तरीके से सुधार के लिये सक्षम हो जाये जनता की सारी सिरदर्दी में यह शामिल हो सके और सुधार करके स्वच्छ, सुन्दर संसार बना सके या समाज बना रहे।
दिन और रात की कठोर ड्यूटी ही इसका धर्म है। इस समय की पुलिस तो, बेहद सक्षम तरीके से मजबूत है। सारे सरकारी विभाग या सरकारी प्राणी, सारे गैर सरकारी प्राणी, सारे नेता की सुरक्षा और सफाई की बेहद कठोर ड्यूटी पुलिस और पुलिस विभाग की जिम्मेदारी निश्चित की गई। पुलिस की कर्मठता से, हर अच्छा इंसान पैर फैलाकर निश्ंिचत होकर रहता, सोता और कर्मठ बनता है। हर इंसान आदिकाल से पुलिस या सिपाही से बेहद डरता रहा है और इज्जत करता है। मिसाल दी जाती है ”पुलिस की न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी“। उसका सीधा मतलब था, यह सरकार का या मालिक का बेहद वफादार रहता है और किसी की, कोई गलती कभी माफ नहीं करता। आम आदमी पुलिस की इज्जत न करे, तो सरकार की बेइज्जती होती है, यह मानकर उसे पुलिस वाला दण्डित करता है और मिसाल सही साबित होती है। अधिकतर गैर सरकारी बिना कारण भी कानून या नियम तोड़ देता है या अनजाने में टूट जाता है और पुलिस की नजरों में वह मुजरिम हो जाता है। पुलिस का एक सही इंसान, जो कानून में चलता है, धर्म मानता है उससे तो निश्चित बड़ी पावर सहायक और दण्डित करने वाला, दूसरा कोई हो नहीं सकता। इनकी समझदारी और कर्मठता से अदालत जैसी जगह भी 80 प्रतिशत से ज्यादा कड़ी और लम्बी मेहनत से बच सकते हंै। हर एक के झगडे़, घण्टों में खत्म हो सकते हैं। हर उपद्रवी इंसान अपने अवगुण छोड़ने पर मजबूर हो सकता है। बिगड़े से बिगड़ा नेता अपनी गद्दारी छोड़ सकता है तथा इनकी मेहनत से अस्पताल जैसी जगह पर एक्सीडेन्ट के केस से खाली मिल सकता है।
सदियों से राजा-महाराजा ने, इनकी वफादारी के कारण लम्बे समय तक सफलता से राज किया है, इनकी कर्मठता के अनेक सबूत हंै, आगे मिलते रहेंगे। पुलिस का आदमी किसी अनजान गुण्डे के हाथांे मर जाये, तो पुलिस मुजरिम को ढूंढ़ कर 24 घंटे में एनकाउंटर दिखा देते है, किसी भी किस्म के झगडे़, जब दोनों पार्टी, एस. एस. पी. के सामने पहुँचते है, एक घंटे से कम समय में झगड़ा छोड़कर कम्प्रोमाईज करके बाहर निकल जाते हंै। इनके विभाग के बड़े अधिकारीों के द्वारा इनके लिये सख्त कानून बनाये, जिससे यह गद्दारी न कर सके, जनता पर अपनी पावर नाजायज इस्तेमाल न करे। प्रमोशन व ट्रांसफर, इसलिये रखे गये कि, हर जगह जाकर सही सुधार और सुरक्षा रख सके और सब जगह साफ-सुथरी हो। कानून और जनता की जय हो। कोई भी प्राणी या मशीन की, हर समय बारीकी से देखभाल न रखी जाये, तो वह सुस्त और खराब हो जाती है, लेकिन नुकसानदायक नहीं होती। नेताआंे ने इन्हें पहले बेहद बन्धन और गद्दार बनाने की प्रक्रिया शुरू की। पुलिस को इस्तेमाल करके, अपने को बेहद मजबूत बनाया और पुलिस को सबसे ज्यादा काम में पीसकर, एक अत्याचार जैसा इनके उपर किया। काम में लगातार रखा और इस समय पुलिस विभाग, पूरी तरह भ्रष्ट हो चुका है, यह पूरी तरह रक्षक के बजाय भक्षक बन चुके हंै।
इसके बावजूद नेता और जनता व विभाग के कारण न चाहते हुए भी पिसते रहते हैं, लेकिन बर्दास्त करते रहते हैं। पगार और नं0 2 के पैसे की इच्छा के कारण यह काम करने के लिये मजबूर है और काम करते नजर आते हंै। रावण के जमाने से कठोर और सख्त रहे हैं। आज्ञा, हुक्म, कानून को थोड़ा सा मोड़ देकर, यह अपनी ड्यूटी करते हैं और वह राजा, राज्य, फैक्ट्री विभाग खत्म होते चले जाते हैं। आज राजा-महाराजाओं के अत्याचार मशहूर हैं। अंगे्रजांेे के अत्याचार इतिहास में से खत्म नहीं हो सकते। वह सब केवल सिपाही या पुलिस के द्वारा ही हैण्डल किये गये थे, लेकिन वह सरहद व शहर में, आज सरहद पर सिपाही न हो तो चोर, डकैत, उग्रवादी ही, हर घर में बनने लगे और उनका ही राज चले। आज भी अदालत, जो कर रही है, वह पुलिस ही कराती हैं। नेता जो करते है, करवाते हंै, एक हाथ पुलिस है और एक गुण्डा समाज है। खुद नेता के साथ पुलिस न हो, तो नेता एक कदम चल नहीं सकते, एक पल जी नहीं सकते। गद्दारी तो, एक ग्राम भी कर ही नहीं सकते। जिस पुलिस को खासतौर से सबकी सुरक्षा के लिये बनाया गया था। सारी नेता यूनिट ने मिल कर और भ्रष्ट पुलिस अधिकारी के द्वारा खास कानून बना डाला, पुलिस की ड्यूटी, नेता की सिक्योरिटी जरूरी है। वह भी खास सिक्योरिटी, यही कानून पुलिस विभाग की सिरदर्दी, मोटा खर्च और जनता पर अत्याचार के रूप में सामने आया। नेता अगर जनता या सरकार का सही वफादारी से काम करे, तो सिक्योरिटी की जरूरत ही नहीं है और बाॅडीगार्ड भी बचा रहता है। आज नेता की गाड़ी, उस पर लाल बत्ती व हुटर (सायरन) साथ में है, जो जनता की ही नहीं, हर सरकारी प्राणी के लिये सबसे बड़ी बाधा और हर काम में अड़चन डाल रहा है। एक नेता के आगमन पर हजारों पुलिसकर्मी यहाँ से वहाँ तक लगाने पड़ते हैं। सड़कें जाम करने पड़ते हंै। हर सरकारी दफ्तर में काम पेंडिग रखना पड़ता है। अदालत जैसे काम तक रूक जाते हैं। सरकार की यह नीति, बूँद-बूँद तेल, पानी बचाओ, समय भी कीमती है, सब गड़बड़ा जाते हंैं, कमर्ठता धराशायी हो जाती हैं। स्कूल काॅलिज तक प्रभावित होते हैं। यदि देश के भविष्य पर मेहनत रूक जाये, तो क्या होगा?
जनता के लिये बीमार को अस्पताल और जानवरों का चारा लाने तक में परेशानी होती है, पुलिस विभाग को सब से बड़ा नुकसान, चुनाव समय में निश्चित होता है। हमें सारी पुलिस एक जगह से दूसरी जगह ले जानी पड़ती है, टी. ए., डी. ए. और यात्रा पर सरकारी खर्च करना पड़ता है। महँगाई और गद्दारी बढ़ने का, यह एक बहुत बड़ा कारण है। यह खर्च 5 साल में भी पूरा नहीं होता, यह चमचागिरी जैसी कमी, पुलिस विभाग भी पचाने के लिये बेहद मजबूर है, लेकिन टी. ए., डी. ए., पगार व उपर का पैसा, रिश्वत का जहर जैसी गलत खुराक का लालच पुलिस वालों को, नेता की हर कमी पचाने के लिये मजबूर करता हंै और सब कुछ जानते हुए खुशी से पचा रहे हैं। इस समय पुलिस विभाग, जो सब से ज्यादा साफ-सुथरा होना चाहिए था और जहाँ हर बाप-माँ, बच्चे को सच्चाई से जीना सिखाते है। यह होनहार लड़का, जिसके सपने ईमानदारी और सच्चाई के मामले में भगवान को मात देने का दिल, गुर्दा रखता था। अत्याचार चोर, डकैतों के प्रति, मरने-मार देने वाला जवान, भरती से लेकर पोस्टिंग तक में रिश्वत देकर पहुँचता है, तो वह खुद अपनी सुरक्षा नहीं कर पाता। माँ-बाप की पहली इच्छा पूरी नहीं कर पाता। वह जनता की सुरक्षा कहाँ कर पायेगा?
यह पुलिसकर्मी नेता से लेकर, हर प्राणी के बारे में, सब जानता है। एस. एस. पी., कमिश्नर, डी. एम. के बारे में जानता है। चोर, डाकू से लेकर साधु, सन्यासी के बारे में जानता है और सारे अपने बड़ांे की अच्छी बातों को भूलकर, कानून को व खुद के और अपनी पुलिस विभाग के नियमों को तोड़कर, ट्रेनिंग के बाद खाई कसमों तक को तोड़कर, सब कुछ गलत देखता रहता है और खुद गलत करके, वह पैसा अपने बच्चों, माँ-बाप पर, पत्नी, पूजा-पाठ तक में लगाना शुरू कर देता है। तारीफ की बात यह है कि उसकी आत्मा गवाही नहीं देती, लेकिन बड़ी यूनिटी में मिलकर गद्दारी करता रहता है। आज का सिपाही अपनी ड्यूटी चाहे मुस्तेदी से न करे, चाहें सख्त बीमार हो, कोई नया मेहमान घर पर आया हो, तो उसे छोड़कर, सुबह-सवेरे उगाई के पैसे का बँटवारा करने जरूर पहुँचता है, वहाँ पहुँचने में देर हो ही नहीं सकती। आज पुलिस की पोस्टिंग हर जगह के मुताबिक, मोटे नोट देकर होती है। बाॅर्डर जैसी जगह के कई-कई लाख रुपये देकर पुलिस कर्मी पहुँचता है।
अधिकारी तो और कहीं ज्यादा नोट देकर ही पहुँचता है। यह पोस्टिंग की जगह पैसा कमाने का ठीया (स्थान) कहलाता है और पूरे विभाग की व सबसे बड़ी, पहली ड्यूटी होती है कि उस जगह का पूरा ध्यान रखा जायें। यह पुलिस कर्मी या अधिकारी, यहाँ एक निश्चित समय ही रूक सकता है, जिससे जितना, उसने दिया, उससे ज्यादा वह कमा न सके या दूसरे प्राणी की भी पोस्टिंग करनी है। पैसे देने के अलावा पुलिस अधिकारी तक नेताआंे और अधिकारीों की, हर जायज और नाजायज इच्छा पूरी करने की फिराक में खुद रहते हंै, वैसे ऐसे नेता और अधिकारी खुद जायज-नाजायज इच्छा, खुद आर्डर करके पूरी कराते रहते है और आज केवल भ्रष्ट लोगांे का राज हो गया है।
आज भारत पुलिस की मिसाल दी जाती है, अमेरीका की पुलिस 24 घंटे में, जापान की पुलिस 12 घंटे में, जुर्म का खुलासा कर देते है। लेकिन भारत की पुलिस को विज्ञापनवांस में पहले पता होता है। यह पुलिस विभाग वास्तव में इस विज्ञान के युग में खासतौर से, भारत में मेहनत से इतने ही सक्षम हो सकते हैं। क्योंकि भारत की संस्कृति साफ-सुथरी और सच्चाई होने पर कोई जुर्म होना या खुलना बेहद आसान होता है। लेकिन दूसरा तरीका रिश्वत लेने का है, हर जुर्म करने वाला, जुर्म आसानी से और खुलकर सफलता से कर सके, यह सब नेता के द्वारा, पुलिस अधिकारी के द्वारा, रिश्वत देकर ही हो सकता है और पुलिस को विज्ञापनवांस में खबर रहती है कि वहाँ यह जुर्म इस समय होगा। शुरू से इनकी पगार कम रही थी या रखी गई, बड़ों ने और समझदारों ने पूरी तरह सोचा कि, यह जनता के सम्पर्क में रहंेगे और सरकारी ड्रेस में, यह हर सुविधा, गैर सरकारी से जरूर लेंगे। इसलिये थोड़ी पगार में भी इज्जत के साथ गुजारा हो जायेगा। पुराने समय से जो भी जानता है, वह बेहद इज्जत करता है, चाहे वह डर के कारण ही इज्जत करे।
इतिहास हिन्दू धर्मग्रन्थ के अनुसार, रावण के जमाने में भी, यह कानून की आड़ में टैक्स के रूप में अत्याचार करते रहे हैं। यह हद पार की अंग्रेजों के जमाने में। हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई होेते हुए भी, हिन्दुस्तानी (हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई) पर भी कठोर जुल्म किया। कानून और धर्म के अनुसार, यह नमक हलाली मानी जाती है। लेकिन मानव धर्म सबसे बड़ा है और अगर कर्मचारी, अपने अधिकारी को याद भी दिलाकर काम करे। तो अधिकारी मानव धर्म निभाकर, कानून के अनुसार कर्मचारी और गैर सरकारी दोनांे को बचा सकता है, यह कानून भी है। लेकिन पुलिस कर्मी केवल नौकरी के लालच, पैसे की हवस के कारण निश्चित मानव धर्म तोड़ता है। जिससे कानून अपने आप कमजोर होकर टूट जाता है। कानून सबसे पहले, मानव धर्म निभाता है, लेकिन लालच और कर्महीनता, कानून, नियम, धर्म को निश्चित खण्डित करता है।
वैसे तो पुलिस को ”सुरक्षाकर्मी“ के सुन्दर शब्द से सम्बोधित किया जाता है और इनकी इतनी बड़ी ब्रांच है, कि अगर यह 25 प्रतिशत भी सही ड्यूटी करंे, तो निश्चित ही, हर व्याधा से निश्चित और, हर प्राणी सुरक्षित रह सकता है। लेकिन हमेशा टेªनिंग चलते रहने पर भी, यह हर दिन कर्मठता से हीन होते रहते है और झूठ, फरेब दिमाग में रहने से समझदारी भी हीन हो जाती है। अधिकारी को हम 24 घंटे का सेवक मानते हैं, कानून भी है, लेकिन उच्च अधिकारी खुद, कर्महीन होने के कारण गहराई से सही सोच भी नहीं पाते। जो उसकी सबसे पहली ड्यूटी होती है, सबूत और उदाहरण के रूप में हमारे पास ट्रैफिक पुलिस है। लेकिन सड़क अवरोध रोक नहीं पाते, अगर सड़क पर कोई हादसा हो जाये, तो पुलिस का एक सिपाही वहाँ डण्डा फटकारता रहता है और हमारी जनता (भोली और अप्रशिक्षित) घायलों को सम्भालती रहती है। यहाँ तक कि गाड़ी, बस, ट्रक उलट जाये, तो देसी तरीके से सीधा करते रहते हैं। जबकि हमारे पास फायर बिग्रेड जैसी निपुण और सक्षम जैसी बड़ी यूनिट, पुलिस विभाग की एक ब्रांच मौजूद है, जो मिनटों में हर हादसा पर सही कन्ट्रोल कर सकती है। यह ट्रैफिक पुलिस, आर. टी. ओ. अधिकारी चैराहे पर टैªफिक कन्ट्रोल के बहाने, हर बाधा उत्पन्न करते हैं और अनजाने में इस बाधा के कारण, गैर सरकारी प्राणी से कीमती समय को बचाने में, खुली सड़क पर भयानक एक्सीडेन्ट हो जाते है। अगर यह अधिकारी सही दिमाग इस्तेमाल करते तो कम से कम 80 प्रतिशत एक्सीडेन्ट नहीं हो सकते, 20 प्रतिशत हो भी जाये, तो बेहद कम नुकसान होता या नुकसान बचाया जाता।
सबूत है, देखिये चींटी मामूली सा सबूत है, देखिए मामूली जीव है और बेहद कर्मठ हमेशा तेज चलती नजर आती है। आकाश में पक्षी उड़ते हैं। बेहद तेज 50 किमी से 200 किमी प्रति घंटा उनकी चाल हो सकती है। इनके बीच कौन सी ट्रैफिक पुलिस है? कितनी आजादी से उड़ते है, चलते हैं, दौड़ते हैं, उनका दिशा-निर्देश कौन करता है? कैसे सुरक्षित रहते हैं? थोड़ा सा कोई भी व्यक्ति सोचेगा, तो समझ में आ जायेगा। उनके भी निश्चित ही हादसे होते है। लेकिन आप, मनुष्य की तरह भुगतते नहीं। आप बुद्धिजीवि पढ़े-लिखे है। विज्ञान से ओत-प्रोत है। फिर भी आप भुगतते हैं। बेहद आसान है। मनुष्य मानव धर्म भूल गया है, चालाकी, झूठ, फरेब का दिमाग सही सोच भी नहीं पाता।
चैराहे पर नियम कानून बना दे या मानव धर्म मानकर, सबको आजाद कर दंे, जैसे कोई ड्राईवर चूहा भी नहीं मारता। वह छोटे से छोटे जीव को मारता ही नहीं, खुद भीड़ देखता है या समझता है, तो हर एक की स्पीड कम हो जाती है या कर देते है। मानव धर्म यही है। तू भी चल, मंै भी चलूँ, धीरे-धीरे, बचते-बचते सुरक्षित रहना सब चाहते हैं। रूकना कोई नहीं चाहता न रोकना चाहता है, यह सड़क है, चैराहा हो या छः राहा, परन्तु ट्रैफिक पुलिस रोकती है, उसे पगार या रिश्वत कमानी है। बस अगर कानून बना दें कि एक्सीडेन्ट करने वाले को गलती पर फौरन एट-द-स्पाट पर एक्सीडेन्ट के शिकार को 20-50 हजार या मरने वाले को 1 लाख गैर सरकारी को देना पड़ेगा या ज्यादा पैसा है, तो दो दिन में अदा करना पड़ेगा, तो सोचिये कितनी परेशानी से हर इंसान बचेगा, हर एक का एक मिनट भी अगर बचता है, तो पूरे देश को समृद्ध होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा, पुलिस की ड्यूटी कम होगी, यह समय और दिमाग दूसरे मुजरिम में लगाया जा सकता है, हर इंसान में मानव धर्म बढ़ने लगेगा, लेकिन पुलिस को अपना नं0 2 का पैसा कमाना छुट जायेगा।
अगर पुलिस, हर सरकारी विभाग की जनता के प्रति अनियमितता की केवल रिर्पोट उस विभाग और उपर तक भी करना शुरू कर दे, तो यह सुधार सही सुधार निश्चित होता है। आज हमारी पुलिस या सुरक्षाकर्मी अखबार पढ़ते हंै, दूरदर्शन देखते हैं और उनसे सीखते भी हैं, कठोर ड्यूटी करते हैं लेकिन शर्माते बिल्कुल नहीं, माँ, बाप, गुरू की बातें भूला देते हैं, दूध का कर्ज, माटी का कर्ज याद ही नहीं रखते, मुहावरे तक भूला देते हंै। वह यह जानते हैं कोई समझदार इंसान, अपने बच्चे को पुलिस में नहीं भरती करना चाहता था, क्यों? यह भी जानते हैं लेकिन न खुद में सुधार करते हैं और न अपने छोटे या बड़े अधिकारी को गलत न करने की सलाह तक भी नहीं देते, पुलिस भर्ती से पहले, हर गलती पर मरने-मारने तक का इरादा रखने वाला इंसान पुलिस में आने के बाद एक या दो साल में ही कहता है, मरने के लिये नहीं आये हैं, हमें अपने बच्चों को पालना है, यह जानते है, मरना निश्चित है। प्रत्यक्ष हैं, हर अनियमितता ऐसे देखते और सहते रहते है, जैसे मरा हुआ इंसान देखता रहता है, यह जी रहे है, हर अपने साथी, अनुयायी और अधिकारी को भ्रष्ट होते हुए देखकर। वैसे यह इनके साथी, बच्चे के समान और बाप के समान हैं।
नेता के घोटाले इनकी नजरों में और इनकी छत्र छाया में होते हैं, एक बार हो भी गया तो दूसरी बार या दोबारा होना तो चुल्लू भर पानी में डूबने वाली बात नहीं है? नौकरी जरूरी है, खुद को बचाना और बच्चे पालना भी जरूरी है, लेकिन नमकहरामी करके, चमचागिरी करके, क्यों? जेल की हालत भी चिन्ताजनक रहती है, यहाँ सिपाही या सुरक्षाकर्मी, मजबूर इंसान से नाजायज पैसा इकट्ठा करता है, उनकी रोटी में से पुलिस की बकरी, गाय, रोटी खाती है, जो मिलने आता है उससे पैसे लिये जाते हैं, यह पता होते हुए कि इस इंसान के साथ गलत हुआ है या इसे सजा नहीं होनी थी, उस पर भी अत्याचार गाली, गलौज तक करते है, उसके बारे मंे अधिकारी यह जानते हुए कि गलत ही नहीं है, सजा नहीं होनी थी, हो गई तो खत्म हो सकती है। इस मामले में उपर लिखाना तो दूर, सोचते भी नहीं है। आये दिन अपने गलत अधिकारी, नेता का डर, मीडिया का डर फिर नं0 2 का पैसे कमाने की चिन्ता रखता है। अब भी सबूत है।
कुछ पहले के पुलिसकर्मी जो बेचारे झूठ, फरेब, रिश्वत का पैसा जानते भी नहीं है, अब अधिकारी भी है और बेहद मजेदार जिन्दगी है, साथ ही उनके बच्चे भी सुखी है। कोई छोटा या बड़ा स्टाफ में कुछ कहता ही नहीं। नेता ने कहा यहाँ ड्यूटी करनी है ठीक है। जेल के पुलिस कर्मी बेहद मायूसी भरी जिन्दगी गुजारने, अत्याचार करने, कमजोर मजलूम का पैसा खाने के कारण उनके चेहरे पर मुर्दानी छाई हुई हैं। देखी जा सकती है। इनमें बेहद जाँबाज सिपाही व अधिकारी भी हैं। जो जनता के लिये न करते हुए भी बहुत कुछ कर गये। बड़े से बड़े बदमाश, जो शहर के डाॅन होते थे। जिनके कहने से ट्रेन चलती और रूकती थी। आपसी खुन्दक में चोराहे पर ही बेहद मारा-मारी करके धराशायी कर दिये गये। ऐसी यादगारंे भी पुलिसकर्मी की है। किसी मुजरिम की तोड़-फोड़ मंत्री की सिफारिस या रिश्वत आने से पहले ही, यहाँ तक कि खून तक कर देते है, फिर माफी माँग लेते हैं। ऐसे अधिकारी रिश्वत भी नहीं छोड़ते, आज नहीं तो कल जरूर लेगें। प्रकृति और धर्मग्रन्थ के अनुसार बड़ों के मुताबिक, नौकरी की पगार और ईनाम के अलावा कोई भी पैसा या चीज खाना या खिलाना नाजायज है। नमकहरामी है।
रिश्वत लेना तो एकदम गलत है। खासतौर से मजलूम और मजबूर से लेना तो ज्यादा गलत है। यह गलती भुगतनी ही पड़ती है, पुलिस विभाग के द्वारा, इस समय जेल में कैदियों की पगार तक हजम कर ली जाती है। केवल सेन्ट्रल जेल में अभी यह नियम बकाया है। पुलिस एक इज्जतदार शब्द है। लेकिन यह इज्जत खराब खुद पुलिसकर्मी करते हैं, वर्दी की इज्जत कम करते हैं। जो वर्दी पहनकर बिना टिकट यात्रा करना, सामान की खरीददारी करना या ड्यूटी के अलावा कोई घर का काम करना, सरकार की या सरकारी वर्दी का दुरुपयोग निश्चित है, जिससे इज्जत ही सबसे पहले खराब होती है, जो कि खुद की व कानून की नजरों में गलत है या जुर्म है।
पुलिस कहीं की हो और कितनी साफ-सुथरी, कर्मठ हो। इनमें अगर 1 प्रतिशत पुलिसकर्मी भी गद्दारी करता है, वह चाहें किसी भी कारणवश हो जो कि नेचुरल है। तो ऐसा नामुमकिन है कि किसी को, स्टाफ या अधिकारी में किसी को पता न चले। इसका उसी समय सुधार होना ही सबको बचाना है।
अगर यह दो दिन भी आजाद रहा, तो पता नहीं कितने गद्दारों की तादाद बढ़ा देगा, इसकी सजा में देर करना, अपने आप में बलन्डर मिस्टेक मानी जाती है, सुरक्षा और सुरक्षाकर्मी, अपने आप में शब्दों के अनुरूप गुण निश्चित रखने चाहिये इनकी गलती खुद इनका परिवार, माँ, बाप, बच्चे, रिश्तेदार भुगतते हंै, यह खुद भुगतते हैं। मानव धर्म के अनुसार हर हाल में इनको सुरक्षित रखना ही जायज है। लेकिन गलत दिमाग, चालाक और झूठा दिमाग, मानव धर्म भूलाकर सोच लेता है। हमें क्या जरूरत है और आने वाले समय में, यह सोचने वाला भी न भुगते, नामुमकिन है और सच्चाई यही है जो सामने है।
प्रत्यक्ष है कि जनता ही भुगतती है और 80 प्रतिशत से ज्यादा कैदी, केवल गैर सरकारी बिना जुर्म के सजा भुगतते हंै। बेहद शरीफ आदमी, डाकू, चोर का नहीं पुलिस का शिकार बनता है, वह भी नाजायज। गैर सरकारी हो, नेतागण हो, बाकी सरकारी प्राणी हो या देश का भविष्य विद्यार्थीगण हो। यह पुलिसकर्मी, आपका सबसे अहम सेवक है, आपके पैसे व मेहनत से इसकी पगार और सब सुविधा निकलती है, इसकी सही इस्तेमाल व देखभाल सबको ही करनी चाहिये।
यह घर, शहर, गाँव, देश केवल सबसे पहले, आप का है, गैर सरकारी का है। स्पेशल आपके लिये पुलिस का गठन हुआ है। इसका सुधार बिल्कुल सही तरीके से, आप ही कर सकते हैं। वरना यह गलत होकर, आपको, आपके आने वाली नस्ल को, आपके सब अपनांे को, नौकर को ही नहीं, पूरे समाज को निश्चित गंदा कर देगा। आप सब मनुष्य जाति के हैं। एक छोटा सा जीव का, आप थोड़ा सा भी नुकसान करें, तो वह जान पर खेल जाता है, और आप सर्वोपरि होते हुए, हर नुकसान देखकर, इनका सुधार नहीं कर सकते। जबकि धर्म ग्रन्थ पढ़ते हैं, भगवान, अल्हा, वाहेगुरू, गाॅड की इबादत करते हैं। धरती का सीना चीरते हैं, पहाड़ों से टकरा सकते हैं, आपकी यूनिटी, सबसे ज्यादा मजबूत है। सबसे बड़ा समाज हैं, फिर भी कुछ नहीं कर सकते, तो मनुष्य का जीना ही बेकार है। बाप का सिर झुकाना है। दूध को गलत साबित करना है। अपनी मिट्टी को गाली देनी है।
हम शिकायत तो कर सकते है, उस पुलिसकर्मी का नाम, उसका नम्बर मिल सकता है। आसानी से मिले, तो ठीक है जब थोड़ी सी कोशिश मेहनत करेंगे तो निश्चित मिल जायेगा। शिकायत पर चाहंे, अपने परिवार के ही हो तीन सदस्यों के हस्ताक्षर कराकर, उसके अधिकारी और उसके बड़े अधिकारी को भेजे, शिकायत पर अमल होगा, उन पर नगद जुर्माना होगा, जो अविलम्ब राजकोष में जमा होगा। 30 दिन में कुछ न हो, तो उससे बड़े अधिकारी को सूचित जरूर करें, अगर फिर भी विश्वास या तसल्ली न हो, तो हम तक उसकी कापी, जो पहले शिकायत की थी, के साथ हम तक भेजंे, अगर बिल्कुल हिम्मत नहीं होती, तो केवल हम तक ही शिकायत भेजे, आपको सूचित भी किया जायेगा। आप जानते हैं, कानून है, इनकी सुरक्षा-सुधार, इनके साथ ही, इनके अनुयायी और इनके अधिकारी भी हंै। यह कानून है, और यह बताने, समझाने का हक आपका भी है। आप जो कर सकते हैं, कोई नहीं कर सकता। केवल हिम्मत कीजिये सब आपके साथ होंगे। हम तो आपके साथ हंै ही। यह शिकायत करना, आपको हर जगह जीत दिलायेगी कि आप ही हंै, जो सब कुछ कर सकते हंै।
जेल तो केवल जेल है, यहाँ पर किसी को कैसा भी हस्तक्षेप करना, सबसे गलत है। जिसे जेल हो जाये, उसे कोई छूट नहीं है। अगर जेल में कैदी के साथ गलत हुआ है, तो गलत कुछ भी गलत हुआ। जेल तो जेल ही होती है। मुजरिम को डरना ही चाहिये अगर सजा गलत हुई है तो सबसे पहले, सजा देने वाले को, उसके परिवार को, बड़े से बड़ा जुर्माना होना चाहिये जिससे गलत सजा करने वाला, दूसरा पैदा ही न हो। जज पूरी तरह तहकीकात करके या करवा कर ही सजा दे। दूसरा जेल के नियम में हस्तक्षेप, इसलिये भी नहीं करना चाहिये क्योंकि हर मुजरिम, सरकारी व हर गैर सरकारी जेल होने से डरे और कोई भी गलती न करे, चाहे सरकारी ड्यूटी वाला हो या गैर सरकारी प्राणी हो। ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ में गलती की माकूल सजा, केवल नगद जुर्माना ही साबित होती है और जो राजकोष का बढ़ाना सबसे ज्यादा, भविष्य में सबके लिये फायदेमन्द है, इससे निश्चित ही हर व्याधा, हर जुर्म, जल्द ही खत्म होंगे। कुछ समय में जेल भी सुनी व खण्डहर बन जायेगी।
हर मुजरिम, मुजरिम रह ही नहीं सकता क्योंकि छोटी सी, पहली गलती पर थोड़ा सा जुर्माना (निश्चित समय पर), दूसरी गलती पर 5 गुना जुर्माना, सबको सही शिक्षा देगा और खुद गलती करने वाला सीख जायेगा। दूसरा उसके नजदीकी, उसका परिवार, दोस्त ही गलती न करने की सलाह दंेगे, बल्कि बाध्य करेंगे और यह अंधकार करने वाला मुजरिम भी, हर जुर्म करने से बचा रहेगा, उसे जेल जाने की नौबत ही खत्म हो जायेगी। मानवाधिकार वाले या मीडिया वाले जेल में जाकर स्टाफ को शर्मिंदा करें, उससे अच्छा है, वह समझे जेल, जेल है। अगर सुधार करना है, तो सही सुधार करें जिससे जेल ही खत्म हो जाये।
एक उग्रवादी के जुर्म की वीडियो बन जाती है, सबूत सामने होते है, लेकिन प्रधानमंत्री को मारने वाले को भी, सजा देने में देर की जाती है। उसे जेल में लम्बे समय तक रखा जाता है, हर सुविधा दी जाती है, ऐसे इंसान के परिवार तक को, सुरक्षा प्रदान की जाती है। यह खाना जो जेल में दिया जाता है, हर सुविधा तक में, देश के हर गैर सरकारी की मेहनत के पैसे का एक हिस्सा है। सरकारी प्राणी की मेहनत तो है ही, लेकिन उनकी पगार का एक-एक पैसा, गैर सरकारी का पैसा हैै। उस उग्रवादी को व उसके परिवार को सुरक्षा देना बिल्कुल ऐसा है, जैसे जो इस उग्रवादी के हाथ से मरा हैै। उसकी और उसके परिवार की आत्मा को तड़पाया जा रहा है। सालांे तक वह तड़पते हंै कि उग्रवादी को सजा नहीं मिल रही है। वह चैन से न खा सकते है, न सो सकते हैं, तो निश्चित ही सजा मुजरिम की नहीं, सजा मरने वाले के परिवार वालों को हुई। यह बात न मीडिया, न मानवाधिकार वाले, न दूरदर्शन वाले उठाते हंै, सोच तक नहीं पाते। मानवाधिकार जो जानता है, वह जुर्म ही क्यों करेगा या सजा देने में देर क्यों करेगा? घर का बच्चा हो या देश का उग्रवादी, गलती पर अविलम्ब सजा, सबसे पहले बेहद जरूरी है। मुखिया, बड़ा और अधिकारी, अगर ऐसा नहीं करते, तो वह खुद कठोर सजा से बच ही नहीं सकते। हमारे यहाँं पुलिस विभाग कर्मठ, वफादार रहे। खुफिया विभाग, विजीलेंस, लोकल इंटेलिजेन्ट पुलिस भी कर्मठ, वफादार और सुधारक हो। वैसे पुलिस टैªफिक का नेटवर्क नं0 2 के पैसे लेने का इतना मजबूत और बड़ा हैं। जिसे आम आदमी सोच भी नहीं सकता हैं और यह नेताओं की छत्र-छाया ही से मुमकिन हैं।
संसार के सारे पुलिस से सम्बन्धित प्राणी व कोई भी या सब लोग आमंत्रित हैं, सब मिल कर, इस विभाग की व सबकी हर अनियमितता, अपने यहाँ व सारे संसार की, खत्म करें और सारा संसार सुनहरा बनाकर खुद को व सब को धन्य करें। हमें कुछ नियम बनाने होंगे और सख्ती से अमल में लाने होंगे। सबसे पहले एफ. आई. आर. इन्टरनेट पर डालने का नियम बने। जिससे एफ. आई. आर. अविलम्ब हो सके।
सुधार-सफाई के लिए विचार
01. हर जगह विभाग मैं चैकी पर थाने पर, कचहरी पर खास बोर्ड लगाये जाये, जिसमें ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा मेहनती को प्रोत्साहन“ तथा सुधार के लिये शिकायत अविलम्ब करें, लिखा हो। नगद जुर्माना राजकोष में जमा कराया जायेगा साथ ही शिकायत बाॅक्स और शिकायत रजिस्टर रखा जाये और उसकी चाबी, वहाँ के अधिकारी के पास रहे, वहीं पर सूचना बोर्ड हो, जिसमें हर माह ही शिकायत की गिनती दर्ज हो, शिकायत बाॅक्स को हर माह खोला जाये, उस समय जब वहाँ पर तीन सेक्टर के या गाँव के वह लोग मौजूद हों, जिन्हांेने ज्यादा से ज्यादा शिकायत की हो, बोर्ड पर बाॅक्स खोलने की अगली डेट और इस माह की शिकायतों की गिनती लिखी जाये, जिससे शिकायत पर सजा दी जा सके, विभाग शिकायत को छुपा न सके खासतौर से विजीलेंस, खुफिया विभाग, एल. आई. यू. शिकायत के दायरे में आये और सही सुधार हो।
02. गलती करने वाले प्राणी का ट्रांसफर या सस्पेंशन बिल्कुल रोक दिया जाये क्योंकि दूसरी जगह जाकर वह गलती जरूर करेगा। दोषी प्राणी के रिटायरमेंट के बाद भी दोषी व्यक्ति, उसके नोमिनी या परिवार से जुर्माना की रकम वसूल की जाये।
03. शिकायत करने वाले की शिकायत के उपर, उसे प्रमोशन व ईनाम घोषित हो, जिसकी ज्यादा गलतीयाँ हो, उनके बच्चों तक को सरकारी नौकरी, सब जगह वर्जित हो। पहली सजा पर दोषी व्यक्ति पर पगार के हिसाब से जुर्माना राजकोष में जमा कराया जाये, निश्चित समय में दूसरी गलती पर, पहले जुर्माने का 5 गुना, तीसरी पर 10 गुना जुर्माना अविलम्ब जमा कराया जाये, तीन शिकायत पर कोई इन्क्वायरी की भी जरूरत नहीं। ऐसे अधिकारी, जो गलती पर सजा में देर करंे। उसेे देशद्रोही की सजा दी जाये, मतलब मोटा जुर्माना, दोषी व्यक्ति के साथ-साथ उसके मातहत, उसके साथी और अधिकारी पर भी माना जाये इन्हें दोषी व्यक्ति के जुर्माने का चैथाई जुर्माना पहले, दूसरे में 5 गुना और तीसरे में 10 गुना जुर्माना निश्चित हो।
04. पूरा पुलिस विभाग निश्चित ही, हर अनियमितता, हर एक की जानता है, देखता है इनकी शिकायत पर तुरन्त अमल भी होगा, इसलिये जो भी जहाँ पुलिस कर्मी रहता है, वह अपनी पत्नी और बच्चों को भी हिदायत दे, कि किसी अनियमतता की शिकायत, खुद लिखे और शिकायत बाॅक्स में डाले या डलवाये, वह खुद भी कम से कम, एक सप्ताह में एक शिकायत जरूर करे। हर बड़ा समझदार इंसान कोई भी, गलती होने पर, साॅरी बोलता है या साॅरी महसूस करता है, साथ ही आगे कभी गलती करता नहीं और गलती का प्रायश्चित भी करता है।
05. जो भी नियम, गैर सरकारी पर लागू करते हैं, वह ज्यादा सख्ती से, अपने उपर, अपने विभाग के उपर भी लागू करे, ऐसा न करने वाला, दोषी माना जाये, पुलिस ड्रेस में पर्सनल सफर करना या अन्य घर के काम करना बन्द किये जाये पुलिस ड्रेस में उसका नाम व नंम्बर जरुर हो, जिससे गलती करने से डरे।
06. कोई भी हादसा एक्सिडेन्ट होने पर पुलिस और फायर बिग्रेड पुलिस जरूर पहुँचे साथ ही डाॅक्टर और ऐम्बूलेंस पहुँचे। जिससे जख्मी इंसान को फौरन ट्रीटमेंट देकर बचाया जा सके, दूसरा सड़क जल्द से जल्द खुले जाम न लगे, यह सारा काम फायर ब्रिगेड, निपुणता से व आसानी से कर सकती है। सड़क चलने के लिये होती है और जाम से हर प्राणी और पूरे देश का मोटा नुकसान निश्चित होता है, समझा जाये।
07. अगर पुलिस टैªफिक वाहन से रिश्वत लेती पायी जाये, तो अविलम्ब 100 गुना राजकोष में जमा करंे, अगर शिकायत है या पुलिसकर्मी की अनियमितता पाये जाये, तो उनके मातहत साथी और अधिकारी को बराबर सजा दी जाये।
08. हर इंसान को चाहिये कि रिश्वत लेने वालेे का ध्यान रखे। अगर कोई आज फँसा है, तो कल आप भी नहीं बचेंगे, रिश्वत लेने वाले के मुँह का साइज अनलिमिट होता हैं, और आपको यूनिटी बनानी ही पड़ेगी अगर किसी मजबूर से रिश्वत ली जा रही है। तो रिश्वत लेने वाले का नाम और हो सके, तो नम्बर नोट करें और शिकायत अविलम्ब करंे।
09. टैªैफिक पुलिस खास ध्यान रखे कि किसी भी वाहन से रिश्वत न ले। अगर ओवरलोड है, तब भी वाहन चालक व मालिक खुद जिम्मेदार है। वह समय और पैसा बचाने की कोशिश कर रहे हैं। जो सबके काम आयेगा लेकिन ऐक्सीडेन्ट पर कठोर जुमार्ना करंे और चोटिल इंसान की फायर बिग्रेड, ऐम्बुलेंस द्वारा मरीज की देखभाल, सड़क की सफाई, अविलम्ब हादसे के शिकार इन्सान को मुआवजा, सरकार या गाड़ी मालिक से दिलाकर धर्म और ड्यूटी निभायें। दोनों पार्टी का कम्प्रोमाइज साम, दाम, दण्ड, भेद से फौरन करें। नेता जलूस, जाम, अदालत जैसी परेशानी से खुद को और जनता व नेता को बचायें।
10. गाँव का प्रधान, सभासद, सेक्रेटरी, चेयरमैन सारे सरकारी प्राणी, गैर सरकारी प्राणी सारें नेता और विद्याार्थीगण को हक है, कि किसी भी अनियमितता को देख कर, समझ कर शिकायत करंे और दोषी व्यक्ति से जुर्माने के रूप में राजकोष में अविलम्ब धन जमा करायें। जिससे आपको ज्यादा सुविधा, हर टैक्स में कटौती दी जा सकेे, महँगाई जैसी सजा न भुगतनी पड़े, आप और देश समृद्ध हो, आप खुद को अकेला न समझें, समय नहीं है, ऐसा न कहें पंगा नहीं लेना है, गलत सोच है। गलती की शिकायत करना पूजा, इबादत से ज्यादा फलदायक है। हम आपके साथ हंै। आप इतना भी नहीं कर सकते, तो हम तक डाक खर्च सहित शिकायत भेजें, बस तीन प्राणी के वोटर/आधार नम्बर सहित हस्ताक्षर हों। आप चाहेंगे तो शिकायत गुप्त रखी जायेगी, दोषी व्यक्ति को जुर्माना देना पड़ेगा। पुलिस से डरिये मत, यह रक्षक और चालक है, गलती करने से डरिये। पुलिस भी गलती पर ही डराती है। सारी सरकारी मशीनरी, आपकी परेशानी में आपके साथ है। 24 घंटे साथ है, राष्ट्रपति तक साथ है, साथ ही आइ. ऐल. यू., खुफिया विभाग, इन्टैलीजेन्स विभाग की ड्यूटी, कार्यरत विभाग के प्रति ज्यादा है और अपने विभाग के लिये पहले है। यह उसका हक है कि अपनों का सुघार भी करें और सुघार रखें, वरना जनता को रखना ही पड़ेगा जो, अशोभनीय और कठोर होगा। आपका एफ. आई. आर. करना पुलिस को सुधारने जैसा ही है, इन पर कानून सख्त है, इससे अपराधिक तत्व खत्म होते हैं। इन्टरनेट का इस्तेमाल करें, बेहद आसानी होगी।
क्यों है ?
अपना, अपनों का, दामन साफ रख बन्दे,
मुकाबले पर, किसी से, घबराता क्यों है?
आप सीधे जरूर हैं, सीधे, बने भी रहिये,
लेकिन नामर्द, किसी से कहलाता क्यों है?
सच है, मौत तो एक दिन आनी जरूर है,
फिर जिन्दगी को मौत जैसी बनाता क्यों है?
काम तेरे पास है, उजरत भी मिल रही है,
फिर गद्दारी करके, नमक हराम कहलाता क्यों है?
तू हिन्दू है, मुसलमान है, इसाई है या सिख,
तू ही तू रह पायेगा जहाँ में,
खुद को ऐसा समझाता क्यों है?
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