Thursday, April 16, 2020

टैक्स और टैक्स विभाग

टैक्स और टैक्स विभाग

सृष्टि बनने के बाद ही मनुष्य ने खासतौर होश सम्भालने से भी पहले जो कुछ भी वह करता था, उसके फायदे मंे, कर या टैक्स, हर हाल में जाने अनजाने देता रहा है चाहे, वह जंगल ही हो, दूसरा कोई वहाँ नहीं होता, अपने जैसा, लेकिन जो भी फायदा उठाया गया, जैसे मामूली बात पेट के खाने के लिये फल इकट्ठे किये या, शिकार मारा, तो खाने में से ही थोड़ा-बहुत दूसरों को देना पड़ा, छोड़ना पड़ा या बचा रहा और उसमें भी थोड़ा बहुत, कम या ज्यादा हुआ या पूरा नहीं मिला तो उसी समय या बाद में देना ही पड़ा। यही बात सही समझें तो, देना या छोड़ना और बचना, टैक्स या कर ही था। समय बदला मनुष्य ने होश सम्भाला, मुखिया का नाम मिला और इससे पहले की टैक्स जैसी बात खुलकर अपने छोटों से कहना और करना शुरू हुआ, तूने इतना किया है, इसलिये मुझे इतना दे या मैंने इतना किया है, इसमें से इतना तू ले ले या उसे देे दे। मुखिया बनने के बाद, प्रधान फिर राजा-महाराजा, चक्रवर्ती राजा बनने तक यह नियम पक्के कानून में तब्दील कर दिये गये। मुखिया, प्रधान का ध्येय यही था, थोड़ा-थोड़ा लेकर, कुछ अपना मिलाकर, अपनों के लिये, कुछ ना कुछ खास किया जाये, जिससे अपना नाम, समृद्धि-सुख बढ़े, मजबूती बढ़े, कम समय और कम मेहनत में ज्यादा काम व ज्यादा फायदा निश्चित हो। मुखिया के लिये परिवार की तरह, प्रजा भी थी और मुआवजा देना या लेना टैक्स का ही पहला-पहला रूप था, जो अब बेहद बड़ा टैक्स विभाग बना हुआ है। पहले-पहल मुखिया ने, इस अनजाने टैक्स से बड़े-बड़े घर परिवार के अनेक काम किये, बाद में खुद प्रधान बना। प्रधान ने इसी टैक्स से बढ़ोत्तरी की और बड़े काम किये। दुश्मनों को भगाना, ताकत इकट्ठा करके दूसरों पर विजय प्राप्त करना। प्रधान से राजा बनना। प्रधान को हथियार, औजार, मशीन, जानवर, सेना बनाना, मकान बनाना, सड़के बनाना आदि सब काम टैक्स और खुद की बचत लगा कर किये। कमी होने पर दूसरे के यहाँ डकैती और चढ़ाई तक की गई। मतलब जोर जबरदस्ती से भी वसूल किया। यह भी टैक्स का ही रूप था और धर्म इसलिये बना कि यह सबमंे अत्याचार करके भी यह धन जनता के हित में या जनता के लिये ही उपयोग में लिया जाता रहा है।
एक मुखिया इस टैक्स के सहयोग से चक्रवर्ती राजा तक बना। शाहजहाँ बादशाह ने ताजमहल जैसे अजूबे भी बनवाये। अनजाने में या कर्मचारियों की अनियमितता के कारण, हर राजा इस टैक्स के कारण बदनाम भी हुआ है। किसी ने शराबी, अय्याशी भी की तथा अय्याशी मंे डूबे रहते थे। इतिहास में लिखा भी गया है, लेकिन ध्यान दिया जाये, तो इस टैक्स की कीमत अदा करने के लिये, वह खुद जान की बाजी भी लगाते थे। बेहद बड़ी सेना (दुश्मन सेना) के बीच लड़ता था। मरने के अनेक सबूत भी हैं, राजपाट जाने के बारे में इतिहास बताता है, आप टैक्स देते थे, एक सेर अनाज, कुछ कौड़ी या थोड़ा सा नमक, इसी थोड़े से कुछ धन से, खास प्राणी (मुखिया, प्रधान, राजा, महाराजा) अपना धन, इज्जत, जान, सुख, चैन मिलाकर या जोड़कर अपनी प्रजा या सन्तान या जनता के लिये सब कुछ करता था। वह नौकर नहीं था। इस राजा या मुखिया के, प्रजा या औलाद में धर्म के सम्बन्ध थे। यह एक-दूसरे को पालते थे, एक-दूसरे का धर्म निभाते थे, एक-दूसरे का कर्ज उतारते थे और शब्दों में कहते थे, माटी का कर्ज उतार रहे हैं। बड़े के गुण हैं, सच्चा, निडर, कर्मठ और त्यागी। छोटे के गुण हंै, पर्दा, डर, चालाकी और बन्धन। बड़े और छोटे के गुण अपोजिट होते हैं और गुण अपोजिट होते हुए, एक-दूसरे के पूरक होते हैं। एक-दूसरे के लिये होते हैं, एक-दूसरे से ही हैं। दोनों जन, जब सच्चाई से धर्म निभाते हंै, तब असीमित वृद्धि होती है, उपलब्धि होती है, सब अच्छों की समृद्धि होती है।
राजा, प्रजा, बाप, बेटा पति, पत्नी, मालिक, नौकर, गुरू, चेला, भगवान, भक्त सबमें बड़े व छोटे हैं। बड़ा या छोटा शब्द है, भाव है (अन्यथा न समझें)। जब छोटा अपना धर्म निभाता है, तो नामुमकिन है कि वह छोटा, बड़ा न बनें। छोटा अगर धर्म तोड़ता है, तो नामुमकिन है कि सजा से बच जायें। उसके साथ बड़ा भी और छोटा भी साथ ही, वह साथी भी सजा से बच ही नहीं सकते। बड़ा राजा हो, मुखिया हो, बाप हो, मालिक या भगवान हो, धर्म तोड़ने वाले या गलती करने वाले या बुरे की छाया छोड़ने में ही सबका भला है। अधिकारी भी बड़ा होता है, लेकिन छोटे के धर्म तोड़ते ही, अगर बड़ा नहीं रोकता, या छोटांे को सजा नहीं देता, तो बड़े के आस-पास वाले भी सब सजा भुगतते हंै।
सबसे बड़ा भगवान है, रब है, अल्लाह है, वाहेगुरू है, गाॅड है। सच्चाई यह है कि वर्तमान में जो सामने है, वो बड़ा भी, बड़ा ही है। गलती करे, बड़ा जरूर सजा देगा, अब नहीं, थोड़ी देर बाद, कुछ भी युक्ति करो, सजा मिलेगी या मिलती है। बात या टापिक था टैक्स। दुनिया या सृष्टि का कोई जीव नहीं बचा, जिसने किसी न किसी को टैक्स अदा न किया हो। बल्कि सच्चाई यह है कि सृष्टि का हर जीव निर्जीव, अपने बड़े को टैक्स अदा करता है। सूर्य ग्रहण होना, सूर्य का टैक्स अदा करने जैसा होता है। हर बड़ा छोटे के लिये कुछ करता है और छोटे को टैक्स अदा करना पड़ता है या हम सब एक-दूसरे के लिये कुछ करते हैं, तो मुआवजा या टैक्स देते हैं। लेकिन टैक्स बड़ा ही लेता है, मुआवजा एक अलग या विपरीत पैथी (विधि) है।
आदि काल से टैक्स का चलन रहा है। हर रूप में रहा है। जैसे-जैसे मनुष्य ने प्रगति की, इस क्रिया को मजबूत रूप दिया जाता रहा, राजा-महाराजाओं ने अलग-अलग कर्मचारी, टैक्स वसूल करने के लिये रखे और यह टैक्स कर्मचारी के काम करने की यूनिट को या यूनिटी को ”टैक्स विभाग“ या ”कर विभाग“ का नाम दिया गया। पहले-पहल केवल जमीन के लगान के रूप में लेखा-जोखा बनाया गया, बाद में हर काम में टैक्स का चलन चलाया गया, जिससे जिस काम का टैक्स लिया जाये, उसका सही हिसाब रहे। कर्मचारी या अधिकारी गलती न करे और जिस काम से टैक्स लिया गया, उस टैक्स को उसी काम में लगाया जाये जिससे ज्यादा बढ़ोत्तरी हो, समृद्धि हो। यह टैक्स की गलत प्रवृत्ति या ज्यादा बढ़ोत्तरी की प्रवृत्ति ने कर का रूप, अत्याचार बना दिया। ऐसा नहीं है कि यह राजा-महाराजाओं के जमाने में नहीं हुआ। राजा मुखिया कोई भी बड़ा, बेहद बढ़िया बढ़ोत्तरी चाहता है, वह समझदारी से बढ़ोत्तरी करता है। लेकिन कर्मचारी की अनियमितता या छोटों की गलती, बड़े को अत्याचारी कहलवा देती है। बड़े का सोचना कहना भी है, यह प्राणी सुखी है उससे टैक्स लिया जाये, इसका मललब यह बिल्कुल नहीं है, यह प्राणी सुखी है उसका सुख छीन लो या खत्म कर दो। यह काम बड़े का छोटा, राजा का नौकर कर देता है, छोटे में ज्ञान, आचरण, बुद्धि कम होती है। अहंकार, तेजी ज्यादा होती है। वह छोटा होते हुए कह देता है, हम आ गये हैं टैक्स दो, यह दो शब्द ही अच्छे खासे इंसान का दिल हिला देते हैं। टैक्स देने वाला हमेशा टैक्स लेने वाले के बराबर या बड़ा होता है।
वह टैक्स देकर सहयोग कर रहा है कि काम ज्यादा अच्छे हों, यह जुर्माना नहीं है, यह छोटा या कर्मचारी की सोच या कर्म या आदत ने टैक्स लेेने वाले की और टैक्स देने वाले की अनजाने में बेइज्जत कर दी। केवल टैक्स देने वाले की बेइज्जती करना, अपने बड़े को खत्म करने जैसा है। यह कुदरती नियम है। टैक्स देने वाला कमजोर हो सकता है, छोटा नहीं, लेकिन इस टैक्स वसूल करने वाले ने, अपनी भाषा और आचरण से टैक्स देने वाले को, छोटा बना दिया और यह सजा टैक्स वसूल करने वाले के महाराजा तक पर पड़ती है, इतिहास गवाह है करोड़ों सबूत हंै। आज विज्ञान का समय है। सूर्य ग्रहण होता है, जैसे टैक्स अदा कर रहा हो, टैक्स लेने वाला कोई, देने वाला कोई, बेहद दूर है। वैज्ञानिक लोग और पढ़े लिखे लोग, ताली बजा कर हँसते हैं, कोई खास बात निश्चित नहीं है, प्रकृति की क्रिया है, लेकिन एक गँवार इंसान भी, अपनी गाय के पेट पर गेरू लगाता है, गर्भवती महिला को उसकी किरण से बचाता है क्यों? क्योंकि पेट में पल रहे, जीव के उपर ग्रहण का असर न हों, यह समय सूर्य पर भारी है और उसका असर, हर जीव पर पड़ता है। यह गँवार बुद्धिजीवि हैं, अनपढ़ हैं, लेकिन ज्ञान है, धर्म जानता है, सबूत है ग्रहण होते ही अधिकतर पक्षी तक नजर नहीं आते।
पृथ्वी-आकाश पर रहने वाले, हर जीव-निर्जीव चीज पर ग्रहण का असर पड़ता है। यह सच्चाई है। बात गहरी नहीं है, सोचने की है। टैक्स देने वाला, टैक्स लेने वाले से बड़ा हैं। वह कोई भी हो वसूल करने वाला निश्चित छोटा है, छोटे को धर्म के अनुसार, छोटा बनकर टैक्स माँगना या वसूल करना ही चाहिये (आम जिन्दगी में)। ग्रहण में, दूसरे सब दर्शक हैं, इनमें हँसने की या ताली बजाने जैसी बात कहाँ आ गई? ऐसा करके हम गलती कर रहे हैं, टैक्स वसूल करने वाला निश्चित भुगतेगा। हम हँसे हैं, किसी ने रोका तो नहीं, हमें भी भुगतना पड़ेगा और सबूत है, आज के दौर में कोई प्राणी नहीं जो टैक्स विभाग और या टैक्स कर्मचारी के अत्याचार से, या टैक्स देने से या टैक्स के कारण परेशान न हो। वह गँवार आज भी सुखी है, आज भी वह अच्छी स्थति में हैं, क्योंकि टैक्स देने लेने वालांे पर हँसता नहीं, आज भी ग्रहण के समय बचता और बचाता है, वह व्रत रखता है, दान करता है, वह खुद लगान जैसा टैक्स देता है। रोड टैक्स, और अन्य टैक्स देता है और फिर भी सुखी है। यह छोटा या यह कर्मचारी और अधिकारी, जो सबके सेवक हैं, गलती पर गलती कर रहे हंै, अत्याचार कर रहे हैं और उनके साथ उनका परिवार, उनके स्टाफ साथी अधिकारी, यही नहीं, यह जहाँ रह रहे हंै, पूरा शहर भुगत रहा है। ग्रहण में सारा पक्षी वर्ग छुप जाता है, लेकिन हम सब रोक न लगा कर हँसते हंै, देखते हंै, अपने जैसे प्राणी पर अत्याचार होते हुये, तो निश्चित इस कर्मचारी या अधिकारी की गलती, हम भी भुगतेंगे। आज हम कहीं से भी गुजरें चारो तरफ कर या टैक्स की मारामारी है। मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरजाघर से लेकर मुर्दाघाट, कब्रिस्तान तक, हर जगह टैक्स है और टैक्स देना ही पड़ता है, होटल हो या स्कूल, अस्पताल हो या पार्क। लेकिन टैक्स लेने वाले की प्रवृत्ति के कारण कहीं हम खुद हँस कर, खुश होकर टैक्स देते हंै और वह टैक्स लेने वाला, जो टैक्स लेते समय हाथ जोड़ता है, प्रार्थना करता है, सलूट मारता है, वह और उसके बच्चें, उसका मालिक सब खुशहाल हैं, उनके सब काम चल रहे हैं। सही टैक्स जिसके ऐवज में उसने लिया है, वह सब दिन दुगने रात चैगुने बढ़ोत्तरी पर हैैं। आप खुद देखिये, होटल, स्कूल, खेल, जगरातें, मन्दिर, मसिजद, गुरूद्वारे, गिरजाघर ही नहीं, बुरी से बुरी जगह आजकल, सरकारी लैट्रीन बाथरूम, रेल, बस सब बढ़ोत्तरी पर है, सब खुश है। धर्म स्थल, आश्रम जहाँ लगातार भण्डारे चलते हंै, सब जगह केवल टैक्स लेने या वसूल करने वाले की इज्जत देने से मुमकिन हुआ है।
इसके विपरीत, हर सरकारी विभाग टैक्स लेता नहीं, आपके पेट में हाथ डाल कर आपकी बेइज्जती करके अत्याचार करके टैक्स लेना चाहता है और सब भुगत रहे हैं, हर टैक्स विभाग, नगरपालिका, बिजली विभाग, रोडवेज, हर सरकारी दफ्तर, इसके जिन्दा सबूत हंै। सेन्टर सबका मालिक, प्रधानमंत्री, उससे बड़ा राष्ट्रपति, उससे बड़ा कानून, यह कभी नहीं कहते कि अत्याचार करो, पेट में हाथ डालकर निकालो, बेइज्जती करो, आर. सी. काटो, यह केवल टैक्स लेने वाले अभद्रता करते हैं और इस अभद्रता को सब देखते हैं, इसी के कारण, सब विभाग मोटा टैक्स लेकर भी बेहद नुकसान में हंै और हर प्राणी भुगत रहा है, वह भी कर्मचारी अधिकारी नेता के धर्म तोड़ने के कारण। नगरपालिका इतना टैक्स वसूल करती है कि कुछ समय में चाँदी की सड़के बना दे, लेकिन खुद भुखी नंगी है और रिश्वत पर जीती है और पैसा सेन्टर से व जनता से कैसे हड़पा जाये, हर समय कोशिश में हैं। बिजली विभाग, सबसे बड़ा, सबसे ज्यादा जरूरी विभाग, बेहद मोटा टैक्स हर उपभोक्ता से जबरदस्ती वसूल करता है, लेकिन इसका हर कर्मचारी, अधिकारी खुद परेशान है, हर उपभोक्ता की व अपनों की गाली खाने के लिये मजबूर है, बेचारा बिजली चोरी करके गुजारा करता है, गरीब और खोखला इतना कि बेहद बड़े-बड़े ही नहीं, बड़े से बड़े सहयोगी और बड़ी-बड़ी छत्रछाया के होते हुए, बिजली पूरी नहीं दे पाते और सब विभाग नुकसानदायक हो रहे हैं, केवल इसलिये कि छोटे टैक्स वसूल करने का अभद्र तरीका अपनाते हंै या धर्म तोड़ते हंै। उपभोक्ता बड़ा है, भगवान है। लेकिन सारे सरकारी विभाग उपभोक्ता कोे छोटा मानते हंै। यह खुद की सच्चाई समझंे, तो खुद का भी स्वर्ग और उपभोक्ता, तो है ही भगवान। आज हर कर्मचारी और अधिकारी अपने को नौकर समझता ही नहीं, यह धर्म टूटना, देश डूबोने के बराबर है। इज्जत मिलती है, कोई प्राणी नहीं जो सरकारी प्राणी या नेता की इज्जत न करता हो, धर्म यही है, सच्चाई यही है, लेकिन छोटे को भी धर्म निभाना चाहिये उसे सही आचरण करना ही चाहिये, और हर कर्मचारी व अधिकारी को हर विभाग, हर कर्मचारी और अधिकारी को, एक-दूसरे की कमी रोकने की कोशिश तो करनी ही चाहिये, यही मानवता है या मानव धर्म है। आज आर. टी. ओ. पूरी टीम लेकर, पुलिस लेकर सड़क रोक कर, केवल गाड़ी के कागज देखता है क्यों? चालान करता है, वह भी कानून से बाहर, गाड़ी वाला मालिक है, उसके साथ मालिक वाला सलूक कर के, तो देखिये, आप बैठ कर ही पगार लेंगे। आप तो नाजायज टैक्स वसूल करने पहुँचते हंै, वह भी मालिक के अवरोधक बनकर। कानून तो आप सब तोड़ रहे हंै और एक नौकर से गलती न हो, नामुमकिन है। बेहद कठोर सजा मिल सकती है और आप तो हर पल गलती कर रहे हंै। कानून कहता है सड़क चलने के लिये है, एक मालिक चाहे मनोरंजन को निकला, एक मिनट की देरी करना भी कानून तोड़ना ही तो है, आप नौकर हैं, आप बँधे हुए है, हर तरफ से बँधा हुआ, कैसे किसी को बाँध सकता है? धर्म के अलावा कोई बन्धन कामयाब नहीं, इसके लिये धर्म कहता है, आप अवरोध न बनें, जो करना है वाहन चालक के घर पर करें, कानून भी यही कहेगा, सच्चाई है। यह हर विभाग, हर कर्मचारी, हर अधिकारी और नेता पर लागू है, सच्चाई है। यह हीन बात भी नहीं है, बुरा मानने वाली बात भी नहीं है। देश चलाना है, सब सम्बन्ध हो, एसी युक्ति बनानी है और यह तब ही मुमकिन है कि जब सब जागरूक हों। जनता जागरूक हो जाये, सरकारी प्राणी न हो, नेता जागरूक न हो, तब भी गलत है, बेहद नुकसानदायक भी है, जागरूक सब को होना है, सब को करना है, तब ही समृद्धि बढ़ेगी। कहना यह है कि छोटा बड़ा केवल शब्द है, इज्जत सबकी बराबर है, कर्म अलग-अलग हैं। बस फिर समझने में, त्रुटि होने पर गलत असर पड़ता है। कर्मचारी काम करके, जनता की सेवा करता है और अधिकारी, कर्मचारी पर ध्यान दें, कर्मचारी को कन्ट्रोल करके व जनता की मजबूरी में, उनका साथ देकर या जनता को जिन्दा रखकर ही, अधिकारी बन सकता है।
अत्याचार में तेजी लाने के गुण दिखाने के लिये या कर्मचारी को मनमानी करने देने के लिये या कर्मचारी की गलती को छुपाने के लिये या गलती रफू करने के लिये अधिकारी नहीं बनता या अधिकारी नहीं बनाया जाता। काम ठेके पर देना ही साबित करता है, कि गड़बड़ है। वहाँ सबसे पहले उसी विभाग में खलबली मच जानी चाहिये वहाँ कर्मचारी हैं, छोटे हैं, साथी हैं अधिकारी के रूप में बड़े हैं और दूर तक एक चेन बनी हुई है। सब सो रहे हैं, यह तो बेहद गलत है, बलण्डर मिस्टेक है, सबकी बेइज्जती है, निश्चित है। गिरे से गिरा प्राणी, बेइज्जती कैसे बर्दास्त कर सकता है? आप जिम्मेदारी नहीं निभायेंगे तो उपर वाले निभायेंगे, आज नहीं तो कल सुधरना ही पडे़गा आप भी, नेता भी और जनता भी, सब के लिये नियम या कानून एक ही है और एक ही रहेगा। आज टैक्स विभाग की बढ़ोत्तरी बेहद तेज है, निश्चित ही हर जगह कर है और बेहद मोटी इनकम भी है, सड़के हैं नहीं, टैक्स चल रहा है, हर एक के उपर, कुछ तो सड़क से सैकड़ों मील दूर हैं, लेकिन टैक्स भर रहे हैं, सड़क बनी, पुल की स्कीम नहीं बन सकती बैरियर लगा दो, टैक्स मिलेगा। धन पहले भी इकट्ठा हुआ, वह धन सरकार के पास जरूर है, लेकिन जनता का है, जनता पर खर्च होना ही चाहिये, लेकिन नहीं हो रहा है। खर्च रूकता भी नहीं और नियम देखिये, बेहद मोटा हिस्सा खर्च होता है, नेतागिरी पर, पहले मुखिया या राजा एक था, खर्च कितना करेगा, खर्च करता भी था, तो हर दूसरे माह ज्यादा से ज्यादा 6 माह में अपने जौहर दिखाने ही पड़ते थे। जान भी जाती थी और अब हमारे यहाँ नेताओ की बाढ़ है, सैकडों से उपर मंत्री है, मंत्री राजा जैसे तो हो ही नहीं सकते, लेकिन इनके खर्चे है वह भी बिगडे़ राजा-महाराजाओं जैसे, बिगड़े हुए राजा के भी इतने खर्च नहीं होते, खर्च हो भी, तो साल में एक काम तो करे, यहाँ काम भी नहीं, काम करना तो दूर, यह नेता तो, हर कर्मचारी अधिकारी को भी काम से पूरी तरह बाधित करते हैं। इनका ध्येय पैसा कमाना है, चुनाव कराना है, ट्रांसफर कराने है, जनता को उलझाना है, हर दिन विधान-सभा में एक-दूसरे की बेईज्जती करनी है, झगड़े करने हैं।
जिस विभाग में पहुँचे वहाँ गडबड़ करनी है, हर विभाग, टैक्स, जनता के पेट से निकालते हैं और उस पैसे को इस्तेमाल कहाँ करते हैं? कोई सोचता तक नहीं, सलाह देना तो दूर। एक अधिकारी टैक्स में छूट देकर खुद पैसा डकारता है, कोई एक विभाग या अधिकारी बताये जो गद्दारी न करता हो, टैक्स तो देना ही पड़ता है, अधिकारी की जेब में जाये या सरकार के पास जाये, लेकिन सही इस्तेमाल बेहद जरूरी है। जो कोई भी नहीं सोच रहा है, इस पैसे से मोटी-मोटी पगार निकलती है, हमारे यहाँ अधिकारी 30 से लेकर, लाखों की पगार तक लेते हैं, कर्मचारी 15 और 25 हजार तक लेते हैं। कर्मचारी काम करता भी है, तो रिश्वत लेकर, उनका ध्येय रिश्वत लेना बनता ही जा रहा है और इस प्रकार जनता से गलत तरीके से लिया गया टैक्स या पैसा, बेहद गलत लोगों पर ही लग रहा है, जो पूरी तरह अनियमितता की तरफ अग्रसर ही नहीं बल्कि, अपने जूनियर को धक्का देकर, अनियमित बनाने को कोशिश लगातार कर रहे हंै। हर प्राणी टैक्स लेता है और टैक्स देता है, लेकिन तरीका सबका अलग-अलग है, और यह पैथी (विधि) फायदेमंद है, इसलिये राजा-महाराजा ने यह विभाग, अलग विभाग बनाया था। साथ ही अलग-अलग किस्म के आॅफिस बनाये, जिससे टैक्स लेने-देने का काम आसानी से हो सके। आज भी सरकार की नीति बिल्कुल सही है और हर इंसान चाहता है कि टैक्स मैं देता रहूँ, लेकिन गलत नौकर या अधिकारी और गलत नेताओं के कारण बेहद नुकसानदायक साबित हो रहे हैं। देश प्रगतिशील होता है, हर जीव प्रगतिशील नेचुरल होता है, इसमें भी हिन्दुस्तानी का जवाब नहीं, बेहद मेहनती तेज दिमाग और बेहद सहनशील होने के कारण, छोटे-छोटे गरीब इंसान ने, छोटी सी दुकान से, फैक्ट्री तक लगाई है, वह सब कठोर मेहनत, तेज दिमाग और पेट की रोटी काट कर बचाया हुआ धन का इस्तेमाल का फल होता है। यह प्राणी अगर गाँव में भी था, तो हर हाल में थूकने और मूतने का भी टैक्स देता था, दुकान का सामान खरीदते समय में, दो पैसे ज्यादा देने पडे़ और बेचते समय कम भी तोला, तो अपने भाई से बचाया ही था, भेद खुलने पर जनता और सरकार की सजा से भी डरता रहा, लेकिन नमक जैसी चीज पर भी टैक्स पहुँचाता रहा। जबकि सरकार की तरफ से नमक पर टैक्स ही नहीं रखा गया। लेकिन हर हाल में नमक पर भी टैक्स गया है। उसे बनाना, भर कर दूर तक पहुँचाना, हर जगह खर्च हुआ है, भरने वाले मजदूर ने बीड़ी भी पी है, तो बीड़ी का टैक्स गया है।
यातायात करते समय हर मशीन टैक्स भर रही थी, हर इंसान टैक्स ले और दे रहा था। इसके अलावा, तो सब चीजें मँहगी ही है ज्यादा टैक्स भी गया है। इस गैर सरकारी प्राणी ने शुरू से व इसके बाप ने भी टैक्स दिया था, आगे बच्चे भी दंेगे। इस गैर सरकारी ने फैक्ट्री लगाने की सोचने भर में भी बेहद मेहनत की है, साथीयांे में बैठा, वहाँ अगर दारू भी पी है, तो भी टैक्स सरकार तक पहुँचा है, फैक्ट्री की शुरूआत करने तक, हर जगह खर्च किया है, जिसमें सरकार को टैक्स निश्चित दिया, लोन भी लिया है, तब तो हद ही हो गई टैक्स के रूप की, यह पैसा जनता से इकट्ठा किया हुआ था और सरकारी प्राणी और नेताओं ने पगार और इलेक्शन में करोड़ो रूपये खर्च करके बने नेताओं की पैसे खाते हुए, पैसे खाने की इच्छा से, बैठ कर बनायी यूनिटी के द्वारा लोन की स्कीम तैयार की हुई थी। इस लोन को पास कराने में भी टैक्स के रूप में, गैर सरकारी को हर जगह रूपये देने ही पड़े हैं। वह भी उन लोगांे को, जो सरकार से हर माह पगार और सुविधा ले रहे हंै। प्रापर्टी मोर्टगेज करो। जिम्मेदार आदमी की जमानत दो, मतलब गैर सरकारी से इकट्ठा किया हुआ पैसा भी, गैर सरकारी को देने में, हर परेशानी पैदा करना या अत्याचार करना, इनकी ड्यूटी या धर्म है। चलिये जैसे-तैसे टैक्स (रिश्वत) देकर ही लोन पास हुआ, अभी और अत्याचार एक नौकर के द्वारा, यह लोन इकट्ठा नहीं टुकडों में दिया गया। नगद और पूरा पैसा होता, तो बचत भी होती, काम जल्द होता फैक्ट्री जल्द चलती, बचत, फायदा, काम, सब होते, ऐसा नहीं हुआ, अब कहीं दुकानदार से सामान की रसीद बनवाओं, ज्यादा पैसे खर्च, आने-जाने की मेहनत, हर सिरदर्द घर से बाहर वालों तक की। मतलब यह है कि पूरी तरह बेहाल हो गये, तब कहीं फैक्ट्री नजर आयी, उससे पहले लोन की किस्त आ जाती है, बिजली का बिल आ जाता है, लेवर का खर्च, बीमारी, मेहनत, अधिकारी का खर्च, मतलब खर्च ही खर्च। फिर भी यह गैर सरकारी लगभग हर एक का पूरा करता है, जबकि समय पर, हर सरकारी बिजली, पानी है या नहीं पता नहीं, टेलीफोन है या नहीं पता नहीं, कोटे से आने वाला माल है या नहीं, सिरदर्द खासतौर से सरकारी बरकरार है। इधर का उधर करके काम पूरे कियें। हजारों आदमी लेबर के पलते हैं, हर सरकारी प्राणी को फायदा ही फायदा है, फैक्टरी का मोटा टैक्स भी पहुँचता है। यही नहीं राॅ मैटिरियल पहँुचने तक हर सरकारी कमाता है और इससे जुडे, हर गैर सरकारी मेहनत करता है और हर जगह टैक्स भरता है कहीं रसीद मिलती है और 90 या 99 प्रतिशत बिना रसीद। फैक्ट्री में पहँुचकर, इसका नया रूप बनता है और फिर मार्केट में पहुँचता है। जिसे गैर सरकारी प्राणी ही पूरे पैसे (हजारों गुना बड़ा कर) देकर खरीदता है, वहाँ वह हर टैक्स देता है। फैक्ट्री वाला या दुकानदार, हर हाल में हर छूट बचाने की कोशिश ही नहीं, हर तरीके से, अपने भाई को काटने की भरपूर चेष्टा करता है कहीं विज्ञापन दिखा कर, कहीं चमकीले पैकिंग करके, कहीं चाय, नास्ता देकर, कहीं सेल्समैन लड़की रखकर। मतलब खरीदार ज्यादा पैसे देकर ही जायेगा। यही माल सरकारी प्राणी या नेता (सरकार से पैसा और हर सुविधा लेने वाले) हर हाल में कम दाम में लेते हंै, फ्री लेते हंै या फैक्ट्री वाले को मजबूर कर देते हैं कि या तो वह माल दें या कोई पेरशानी (करोड़ांे तरीके की) एक भी भुगतो।
फैक्ट्री चलती है तो हर जीव पलता है और भगवान, अल्लाह, रब, वाहेगुरू, गाॅड का शुक्रिया अदा करता है, एक-दूसरे का एहसान मानता है, कदर करता है केवल सरकारी प्राणी या गलत लोगों को छोड़ कर, जो धर्म जानते ही नहीं या जान कर धर्म तोड़ते हैं जैसे नेता। हर सरकारी प्राणी और नेता और नेता या गुन्डे बदमाश, हर कोशिश करते हंै, इस फैक्ट्री से कैसे फायदा उठाया जाये, बिजली, टेलीफोन, टैक्स (लेबर की सहानुभुति दिखा कर) या राॅ मैटिरियल या अनगिनत तरिकों में कोई एक तरीके से, हर हाल में परेशानी पैदा करने की कोशिश करते हंै। हर दिन चुनाव याद दिला कर या एक बार ही चुनाव का नाम लेकर करोड़ों रूपये आपसे ले लेते हैं, (जैसी आपकी फैक्ट्री वैसी माँग) या बड़ी से बड़ी परेशानी भुगतने को तैयार रहिये। नेता दोनांे है चुनाव लड़ने वाला और वर्तमान नेता है ही। इनमें कोई सहायता नहीं करेगा, छूट नहीं देगा, लेकिन सब यही कहेंगे। सेठ जी हम हैं, तो फैक्ट्री चल रही है, बर्ना कहाँ चलती? कर विभाग तो पूरी यूनिटी धम्म से आती है, खाते देखने का डर दिखा कर, हर काम बाधित करते हंै, आपका जीना हराम करते हंै। हर सरकारी विभाग और उनकी पूरी यूनिटी, चपरासी से लेकर मंत्री, नेता तक बैठ कर, हर स्कीम इस फैक्ट्री से नाजायज फायदा उठाने की, राउण्ड द क्लाॅक कोशिश करते है, यही नहीं, चपरासी, क्लर्क, अधिकारी अलग-अलग सोचने में लगे रहते हैं कि कब कैसे फँसाया जाये इस फैक्ट्री को, और सुबह ही अमल करते हैं। मतलब बच ही नहीं सकते, पुलिस विभाग तो ट्रांसफर होने पर अपनी जगह आने वाले कर्मचारी को भी पूरा विवरण से समझायेंगे, नाम पता देंगे। खाने की तरकीब बतायेंगे और जहाँ ट्रांसफर होकर पहँुचे हैं, वहाँ जाकर पूछेंगे कहाँ से कितना, कब और कैसे कमाई करनी है। इसके अलावा फैक्ट्री में पल रहे लेबर में नकारा लेबर, नेता, बदमाश, नुकसानदायक तत्व हमेशा राउण्ड द क्लाॅक सोचते रहते हैं और मौका मिलते ही हर कोशिश करते हंै सफल होने की। इतनी सारी परेशानी होने पर भी, धर्म की या सच्चाई की ही जीत होती है और फैैक्टरी चलती है, जो मालिक, हर इंसान को बिना रसीद काटे देता है, सच्चाई से मेहनत करता है। किसी से डरना नहीं, हर एक का मुआवजा सबको पहुँचाना, गलती पर कठोर सजा या शिकायत करने वाला मालिक बड़ा मालिक निश्चित बनता है। यह मालिक जब तक धर्म निभाता है, तब तक हर गलत प्राणी इसके सामने, इसके मुकाबले में रूक ही नहीं सकता और इसकी बढ़ोत्तरी लगातार रहती है। यह अगर गैर सरकारी है, तब चाहे जितना छोटा हो, सच्चा हो और डर बिल्कुल न हो, तो एक दिन बड़ा मालिक जरूर बनता है, कोई भी सरकारी प्राणी और या नेता गलत होने पर इसके सामने टिक ही नहीं सकते, सब अच्छे प्राणी इसकी सहायता करते हंै।
यह छोटा सा दुकानदार आज फैक्ट्री का मालिक है, यह मालिक बहुतों को खाना, छाया, इज्जत, जीवन देता है। राउण्ड द क्लाॅक, हमेशा फैक्ट्री के बारे में, हर बात सोचता है, इसके सब छोटे भर पेट खाना खाते हंै, हर मनोरंजन करते हैं लेकिन यह मालिक हफ्तों-महीनों का सब छोटों (बच्चे, नौकर, सरकारी प्राणी व नेता) के लिए करके खाना खाता है। यह सोता भी है, तो हर छोटे के लिये कुछ और ज्यादा करने के लिये, जिसमें हर अपना, कर्मचारी, सरकारी नौकर अधिकारी और नेता आते हंै। अपने परिवार, खानदान, पूरा समाज आता है। यह मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और गिरजाघर के लिये भी करता है, सबूत है मोदी, टाटा, बिरला ऐसे छोटे थे, आज बेहद बड़े हंै। छोटे का गुण होता है, गन्दगी फैलानी और या नुकसान करना। जब से सृष्टि बनी है और जब तक सृष्टि रहेगी, यह पैथी (विधि) गलत नहीं होती, छोटों की पहचान या कम बुद्धि, धर्म न जानने या धर्म पर अमल न करने वाला प्राणी छोटा होता है लालच और झूठ से लिप्त प्राणी छोटा होता है। चाहे उमर कम हो लेकिन समझदार प्राणी बड़ा ही होता है। यह नया-नया फैक्ट्री मालिक अब हर छोटे से परेशान रहता है, हर सरकारी प्राणी, नेता, अपने लालच और झूठ से लिप्त, हर प्राणी से परेशान रहता है, जिसको भी टैक्स दिया है रसीद से या बिना रसीद के, सब इसकी, हर देखभाल इसलिये करते हंै, कि कैसे इससे कुछ निकालें। धर्म नियम कानून जानने वाला, हर प्राणी इसका सहयोग करता है, लेकिन गलत यूनिटी के कारण मजबूर होकर गलत का साथ दे बैठता है, कारण उनका छोटापन ही तो है, जिनका सही इलाज ही गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन ही है। यहाँ पर सजा पर केवल नगद जुर्माना ही है।
कर विभाग एक ऐसा विभाग बनाया गया, कि यह 1/-से 100 और 1000 रूपये लेकर टैक्स देने वाले को केवल 1/-रूपया कर लेकर, बदले में उसकी हर सुरक्षा करता है, उसकी और उसके काम के व जीवन की गारण्टी होती है, कोई बीमा, कोई परिवार वाला भी इतना कभी कर ही नहीं सकता, लेकिन कर विभाग इस समय सब विभागों में सबसे खतरनाक साबित हो रहा है, धर्मग्रन्थ, रामायण और इतिहास का, अत्याचार के रूप में पहले से वर्णित हैं। रावण ने साधु सन्यासी तक से कर लेने में खून तक लिया है, यह थोड़ा सा ध्यान देते ही समझ में आ जाता है, कि यह खून लेने जैसा अत्याचार निश्चित ही कर कर्मचारी और कर विभाग द्वारा ही किया गया, राजा या रावण ही नहीं कोई भी बड़ा कैसा भी अत्याचारी हो, कर की जगह खून नहीं लेता। आज कल हर विभाग (सरकारी) निश्चित ही, खून निकालने जैसा या इससे भी भयंकर काम कर रहे हंै, यह सब केवल कर्मचारी और अधिकारी की कोताही ही है। अदालत में जाइये तो ऐसे कर को फौरन माफी मिलती है, यह नियम सेन्टर के उच्चाधिकारी या कोई नेता बना ही नहीं सकते, पूरी यूनिटी या ग्रुप बना ही नहीं सकते, कर विभाग कर लेता है, लेना चाहिये, लेकिन हर परेशानी में वह साथ भी देता है। आज कर देने वाले को निगल जाते है, और पता भी नहीं चलता। आज हमारे यहाँ देश आजाद होने के कुछ समय बाद ही हर साल, एक दो फैक्ट्री, केवल कर विभाग के अनियमितता, कर्मचारी और अधिकारी की गद्दारी के कारण, हर शहर में बन्द हो रही है, सरकार केन्द्र और हर नेता हर नियम निकालते हैं, प्रोत्साहन देते हैं, नयी और छोटी फैक्ट्री लगाने व बढ़ाने के लिये हर लोन, हर सुविधा, हर कर में छूट देते हंै, लेकिन सबसे पहले अनियमित या गद्दार को सजा और सुधार करना बेहद जरूरी है। नयी फैक्ट्री लगवाने से अच्छा है, बन्द फैक्ट्री को चालू कराया जाये, यह असान और फायदेमन्द है।
जितने इन्डस्ट्रियल ऐरिये, शहर और प्रदेश में हैं, सब गड़बड़ा रहे हैं, जिसका मेन कारण गद्दार को सजा है ही नहीं, भ्रष्ट नेता और भ्रष्ट अधिकारी के कारण। उदाहरणस्वरूप सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत) में सिगरेट फैक्ट्री और पेपर मिल जैसी फैक्ट्री तक गड़बड़ाई, लेकिन भ्रष्ट अधिकारी व नेता सच्चाई और नियम के आगे जीत नहीं सकें, पूरा देश ही नहीं, हर जगह यही हालत है। छोटे दुकानदार, छोटी फैक्ट्री तो बेहद परेशान हैं, रातों की नींद हराम हैं, क्योंकि मालिक के पास पैसा कम और बाहर की सिरदर्दी, अनियमिताएँ ज्यादा हंै, विडम्बना यह है कि फैक्ट्री बन्द होने के बाद, हर जगह प्रार्थना पत्र देने के बाद भी बिजली के बिल आते रहते हंै, हर टैक्स हर नोटिस आते रहते हैं, पानी हाउस टैक्स, इनकम टैक्स, प्रोडक्शन टैक्स आदि-आदि। यह सब अधिकारीांें की गद्दारी है, और कठोर सजा के हकदार हैं, इसके कारण हर विभाग बदनाम और नुकसानदायक हो रहे हैं, या रिश्वतखोर होते जा रहे हैं, यही नहीं इसकी देखा-देखी कानून के मन्दिर जैसी आदालत भी अनियमित, गद्दार या रिश्वतखोर होती जा रही है, इस कमी के कारण, हर इंसान, सरकारी प्राणी, हर नेता और हर गैर सरकारी प्राणी व विद्यार्थीगण तक परेशान हंै, चाहे वह भ्रष्ट ही क्यों न हो लेकिन सच्चाई यह है कि परेशान हंै, और गद्दारी की तरफ अग्रसर हैं, हर बड़े ने, हर विभाग को बनाने से पहले, इसके सुधारने का और ठीक-ठाक चलते रहने के नियम, बड़ी मेहनत से और फुलप्रूफ निश्चित बनाये थे। गलती पर कठोर सजा भी निश्चित की, सजा और देखभाल के लिये, विशेष अलग विभाग भी बनायें, जो पूरी बारीकी से देखभाल करें और गलती पर कठोर सजा दें, लेकिन गलती हुई या भ्रष्ट लोगों ने अपने खाने के रास्तों में बदल लिया। देखभाल और सजा, सारी जिम्मेदारी, वह भी उस आॅफिस के गलत अधिकारी को दे दी, साथ ही सजा भी गलत रखी गई, सस्पेंशन और सुविधायें बन्द, जो कि निश्चित अधुरी थी, और इसका फायदा, हर अच्छा-बुरा उस आॅफिस से सम्बन्धित प्राणी और नेता उठा रहे हंै, और हर इंसान अनियमितता या भ्रष्टता की तरफ तेजी से अग्रसर है, अपनी हर चीज (बच्चे, सम्बन्धी, नेता, नारी और नौकर) आदि सब का सही इस्तेमाल करें, और ज्यादा अच्छा और मजबूत बनायें, स्वर्ग या जन्नत अपने आप बन जायेगी। लेकिन सजा और इनाम का ध्यान रखें। जय जनता जय कानून।
आज हमारा कर विभाग पूरी तरह से देश की जड़े खोद रहा है, या जड़े खोदने को मजबूर है, छोटी फैक्ट्री को बढ़ावा देना कानून है, लेकिन हर बनी हुई फैक्ट्री को चालू रखना भी कानून है, धर्म है, यह धर्म और कानून को बचाने के लिये, कर विभाग को खासतौर से गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन, नियम को अपना कर, केवल सजा में रूपये का जुर्माना अविलम्ब राजकोष में जमा करना भी कानून ही होगा, सब अच्छों को बचाना, देश बचाना है, कानून पर अमल करना और सबको बचाना, केवल सरकारी प्राणी या नेता का ही नहीं, सब का धर्म है। गैर सरकारी देश का भविष्य विद्यार्थीगण, सरकारी प्राणी और नेता सब बचायें या कोई एक ही बचायें, नौकर का भी देश है, नेता का भी देश है, उनकी ड्यूटी बचाने की है भी, लेकिन सबसे पहले देश जनता का है, कायनात जनता की है, जनता को इस जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया जा सकता, या एक प्राणी सोचे कि मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता, एक दम गलत है, वह जनता है। अपने तीन साथीयों के साथ प्रार्थना पत्र पर हस्ताक्षर करो वोटर/आधार नम्बर डालो, बन गई, जनता। लेकिन सुधार की नीयत से शिकायत करें, गलती करने वाले की मजबूरी समझें, मतलब गलती करने वाले की जड़ तक पहँुचें। उदाहरणस्वरूप कर विभाग के कारण सहारनपुर (उ0 प्र0, भारत) की अनेक फैक्ट्री है, जिनका नामोनिशान मिटा या मिटने के कगार पर हैं, तारीफ की बात तो यह है, कि गैर सरकारी, हर मालिक इज्जतदार होने के कारण, फैक्ट्री बन्द होने के बाद भी, फैक्ट्री बन्द होने का कारण, घर की कलह या कोई और दोष बताता है, वैसे चाहे जो कहना पड़े, लेकिन किसी सरकारी विभाग का कभी नाम भी नहीं लेता, क्योंकि समाज से सुनना ही नहीं चाहता, कि इतने बड़े मालिक होने के बाद, कोई कर नहीं दें पाये, या बिजली का बिल नहीं दे पाये, या लोन की किस्त रूकी। टैक्स वालांे का फौरन ही आ धमकना और रजिस्टर देखने की इच्छा जाहिर करना, इतना गलत व्यवहार है कि हल्के से हल्का आदमी कह देता है कि मन में आता है फैक्ट्री न हो, कम से कम दो पैसे के आदमी का रोब तो न दिखे, पैसे भी दो, बैठने, खाने के लिये दो और मालिक होते हुए जी हजूरी भी करो।
बहरहाल कुछ ऐसा करना चाहिये, कि हर गैर सरकारी के दिल से डर खत्म हो, खुलकर टैक्स दें और मजबूरी में छूट भी ले या सहायता भी लें, यह कानून है। गैर सरकारी को पालने, सुरक्षित रखने के लिये, केन्द्र ने हर विभाग बनाये, विभागों का तारतम्य सही रहे, इसलिये विभाग के कठोर नियम रखे, मीडिया और बिजिलेन्स, खुफिया विभाग देख-भाल और कर्मचारी व अधिकारी को सजा देने के लिये बनाये, नगरपालिका या महापालिका का पूरा स्टाफ रखा, जो हाउस टैक्स के बहाने से, हर इंसान की जन्मपत्री सुरक्षित रखे और रखते भी हंै, लेकिन हर विभाग केवल गैर सरकारी को चारों तरफ से नोच रहा है, विडम्बना यह भी है कि गैर सरकारी अपने गैर सरकारी को ही अनदेखा करके, उसे निचुड़ता हुआ देखता रहता है और सरकारी प्राणी का अकुंश व गलती पर सजा होते हुए भी अकुंश इस्तेमाल न होने के कारण, सरकारी प्राणी, आजादी से खुद अपने विभाग को, अपने को लगातार गद्दार बना रहा है। और पिस रहा है, गैर सरकारी। सब अधिकारी कहते है, शिकायत कीजिये, सजा मिलेगी, जानते सब हैं, पगार लेने वाले और सारे नेता, मीडिया, दूरदर्शन, विजीलेंस, पुलिस, नगरपालिका लेकिन सुधार नहीं करना चाहते, हर विभाग को या हर कर्मचारी व अधिकारी की कानूनी जिम्मेदारी होनी चाहिये, कि अगर किसी, गैर सरकारी के द्वारा अनियमितता की शिकायत आती है, तो हर एक सरकारी प्राणी से अविलम्ब जुर्मांना राजकोष में जमा कराना पड़ेगा और शिकायतयुक्त प्राणी को मोटा जुर्माना देना ही पड़ेगा, साथ ही गैर सराकरी शिकायतकत्र्ता को प्रोत्साहन के रूप में ईनाम, जिसमें सरकारी नौकरी तक दी जा सकती है।
कर विभाग से भी ज्यादा कस्टम विभाग है, जो पूरे विभाग से ज्यादा जिम्मेदार और वफादार रहने पर, सबसे ज्यादा फायदेमन्द है, हमारी या देश की सरहद, ऐयरपोर्ट, और पायर पर चढ़ने उतरने वाला माल या बाहर से आने वाला और बाहर जाने वाला माल, अगर उस माल का सही टैक्स का लेन-देन हो जाये, सरकारी प्राणी वफादारी करे तो सारे देश के टैक्स माफ किये जा सकते हैं, यही नहीं निश्चित ही राजकोष के धन की चिन्ता ही खत्म हो जाये, सब जगह शराब, बीड़ी, फिल्म इन्डस्ट्रीज, हमें बेहद मोटा टैक्स तो देते ही हंै, लेकिन कर्मचारी और अधिकारी की गद्दारी से सारा पैसा खराब ही नहीं करते, बल्कि टैक्स देने वाले को गद्दार बनाकर, देश की जड़े कमजोर और सारे विभाग को गद्दार बनने पर मजबूर कर देते हंै, देश का सबसे खासतौर से हर गैर सरकारी, गरीब से गरीब डर कर या धर्मवश, केवल अधिकारी की गलत आदत से, हमेशा टैक्स देने की कोशिश करता है, और यह धर्म, केवल अधिकारी कर्मचारी के कारण, गैर सरकारी पर भयंकर अत्याचार बन जाता है, देश का आम टैक्स हो या कस्टम हो, यह गरीब देता है, लेकिन इसके विपरीत, हर सम्बन्ध गैर सरकारी जो बेहद कम है, और अधिकारी व कर्मचारी, सारे नेता बेहद भारी भीड़ हो जाती है। यह सब सक्षम होने के कारण और टैक्स कर्मचारी और अधिकारी या कस्टम कर्मचारी और अधिकारी की बेहद प्रबल मेहनत से सारे उपभोक्ता थोड़े पैसे देकर मोटी बचत करते है, और अधिकारी व कर्मचारी मोटा सरकारी पैसा खराब करके, अपनी थोड़ी सी बचत करते हैं, या थोड़ा सा धन इकट्ठा करते हैं, सबसे खतरनाक सरकारी विभाग का गद्दार होना है, जो पगार लेने के बाद क्षमा न करने वाले जुल्म का भागी बन जाता है, जो सरकार की छत्रछाया में या सरकार के द्वारा ही पाला जा रहा है। जिसे केवल गैर सरकारी की शिकायत या आवाज ही रोक सकती है, लेकिन सरकार के द्वारा ही रूकेगा और आज नहीं तो कल, हर गद्दार सरकारी प्राणी ही ऐसा कानून बनायेगा, या बनाने पर मजबूर होगा, आप सब समझ गये होंगे, कि हर जुल्म और हर जुर्म से बड़ा, जुर्म केवल टैक्स विभाग और कस्टम विभाग की छोटी सी गद्दारी है, यहाँ भारत में तो हर सुरक्षाकर्मी और कर विभाग, कस्टम विभाग, पुलिस विभाग, गद्दारी की हद ही लांघ गये है। जिसे केवल ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“, नियम अमल करने पर ही सुधार मुमकिन है, आप सब को टैक्स विभाग का सुधार करके साबित करना है, कि आप हिन्दुस्तानी हंै, और खुद पर गर्व कर सके। सारे संसार के सरकारी प्राणी व गैर सरकारी प्राणी और सब प्राणी आमंत्रित हैं कि कहीं का भी टैक्स सम्बन्धी समस्या या अन्य समस्या किसी की भी अगर है तो वह खुद या सब मिलकर सुलझायें और संसार सुनहरा बनायंे, खुद को धन्य करंे, सब अच्छों पर एहसान करंे। इसके लिये कुछ नियम बनाने व अमल करने हैं।

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. कर विभाग के हर सरकारी प्राणी, जोे जहाँ भी रहता है, कम से कम एक किलोमीटर तक हर अनियमितता का ध्यान रखें, देखते ही अविलम्ब शिकायत करंे, सुधार करायें, अन्यथा वह भी जुर्माने का हकदार होगा, अपने परिवार वालांे को सिखायंे कि माह में एक शिकायत जरुर करें और ईनाम के हकदार बनंे।
02. अगर उसके (सरकारी प्राणी) प्रति कोई शिकायत, गैर सरकारी प्राणी, नेता या कोई सरकारी प्राणी करता है, तो मोटा जुर्माना अदा करना होगा और हर शिकायतकत्र्ता को प्रमोशन और या प्रोत्साहन में ईनाम मिलेगा, गैर सरकारी बेरोजगार है, तो सरकारी नौकरी तक मिल सकती है।
03. टैक्स विभाग के कर्मचारी व अधिकारी अपनी कर्मठता को साबित करंे। किसी बन्द यूनिट को देखें, तो उसकी समस्या हल कराके, चालू करायें क्यांेकि इसके टैक्स से पूरे देश का फायदा था। दोषी प्राणी के घर के सदस्यों को भी सजा मिलेगी, उनके अधिकारी, साथी और मातहत भी दोषी माने जायंेेगे, व सजा के हकदार होंगे।
04. टैक्स विभाग के अधिकारी ध्यान दें, कि कोई बन्द यूनिट आपके पिछले अधिकारी की कोताही का नतीजा तो नहीं है, उस यूनिट को चला कर टैक्स विभाग को दोष मुक्त करायें और धन्यवाद पायें व देश बचायें। पुलिस, नगरपालिका, सभासद, चेयरमैन, प्रधान, सेक्रेटरी और नेता, हर हाल में अनियमितता के लिये जिम्मेदार हैं, और सजा के हकदार हैं।
05. हर गैर सराकरी को खासतौर से विद्यार्थीगण और नारी को इस ओर ध्यान देना चाहिये कि कोई सरकारी प्राणी, जो उनका कुछ है, समझाना, सलाह और दूसरे बाहर के हर सरकारी प्राणी व नेता आदि की हर अनियमितता की शिकायत, अपने वोटर/आधार नम्बर के साथ और दो गवाह के हस्ताक्षर के साथ, माह में एक बार जरूर करें, अनियमित प्राणी के विभाग और उच्च विभाग को भी जरूर पोस्ट करें, या हम तक शिकायत भेजंे और यह अपना धर्म व ड्यूटी समझें। शिकायत करना बैर बाँधना नहीं है। ऐसी नौबत आती है तो इन्टरनेट पर सबको और हमें जरूर खबर करें, उपर तक सहयोगी होंगे।
06. गैर सरकारी का व सच्चाई का साथ दें, मिलकर अनियमितता को खत्म करने की हर कोशिश करें, बच्चों में अनियमितता से मुकाबला करने का जोश भरें, जुर्माना करायें, हर प्राणी, आपके साथ होगा या साथ हो जायेगा।
07. हर इंसान को ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम अपनायें व अमल करके, जागरूकता दिखानी ही चाहिये, आप सब उपभोक्ता है, सुधार भी आप करेंगे, आप ही करायंेगे।
08. अच्छाई, सच्चाई में सबका साथ दे। गलती का व झूठे का मुकाबला करें, आप बुद्धिजीवि हैं, पढ़े लिखे, इज्जतदार हंै, सच्चे देशवासी हैं।
09. भारत का भूत और वर्तमान देखते हुऐ साबित होता है कि कर विभाग और कस्टम विभाग का सुधार और देखभाल, बेहद बारीकी से व जिम्मेदारी से होनी अतिआवश्यक है, इस विभाग पर गलती की सजा के रूप में थोड़ा भी जुर्माना वसूल करना, सारी जनता के लिये, सरकार को टैक्स से भी ज्यादा धन प्राप्त होने की गारण्टी है, साथ ही देश की 100 प्रतिशत समृद्धि की गारण्टी है।
10. भारत का भूत और वर्तमान देखते हुये साबित होता है, कि कहीं ना कहीं हमारे मान्य नेतागण व सारे सरकारी विभाग व विजिलेस, खुफिया विभाग, एल. आई. यू. के कर्मचारी व अधिकारी गण भी निश्चित दोषी हैं, और मोटा जुर्माना राजकोष में जमा कराने के अधिकारी हंै। सजा देने में देर करने वाला भी, भयंकर देशद्रोही माना जाये।



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