Thursday, April 16, 2020

अस्पताल और स्वास्थ्य विभाग

अस्पताल और स्वास्थ्य विभाग 

सृष्टि बनते ही सफाई-सुधार का नियम बनाकर प्रकृति ने, भगवान, अल्लाह वाहेगुरू या गाॅड ने और हर जीव को साथ-साथ ही रखा। सृष्टि बनते ही उसी पल से सफाई-सुधार भी चलने लगा, हवा का चलना, पानी बरसना, यह मामूली बात है यह सफाई और सुधार करने का जरिया ही तो है। प्रकृति बनी, मनुष्य बना और हर जीव बने, हिन्दू धर्म ग्रन्थों के द्वारा 84 लाख योनि है और हर योनी के असंख्य जीव पृथ्वी आकाश और पाताल तक में फैले हुए हंै, जिनमें पेड़-पौधे से लेकर छोटे से छोटे जीव, ऐसे भी हंै जो नंगी आखों से नहीं देखे जा सकते हैं, बीमारी के किटाणु या जर्म तक इसी 84 लाख योनि में ही आते हैं। जिनकी सफाई-सुधार, एक-दूसरे के द्वारा अपने-आप होती रहती है। यह पैथी (विधि) निर्जीव चीजों पर भी लागू होती हंै और लगातार चल रही है। मनुष्य के शरीर मंे भी 84 लाख योनि के जर्म बेहद सूक्ष्म व बीज रूप में मौजूद हंै या उसके द्वारा अज्ञात कम्बीनेशन से जरूरत होने पर, पनपते या तैयार होते हैं, यह गहरे रिसर्च की बात हैं। मनुष्य या जीव जो कुछ भी मुँह के द्वारा खाता हंै, पीता है, शरीर के अंगो के द्वारा रासायनिक क्रिया के द्वारा शरीर को जिस पदार्थ की जरूरत होती है वह शरीर के अंगो द्वारा ही बनता हंै। दुनिया में पाये जाने वाले, सारे तत्व पदार्थ बनते हैं, जो शरीर के काम आते हंै, बाकी मल द्वार के द्वारा बाहर निकाल दिये जाते हंै। प्रकृति द्वारा बनाया शरीर, दिमाग के द्वारा संचालित होता है, जिसके गड़बडाने के फलस्वरूप शरीर के अंगों पर गलत प्रभाव पड़ता है और बीमारी के जर्म या किटाणु पनपने लगते हैं। ऐक्सीडेंट में शरीर की टूट-फूट होती है, यह टूट-फूट भी शरीर, दिमाग के आर्डर में टूट-फूट का इलाज, शरीर खुद करता है। यह क्रिया पूरी उमर चलती है और हर जीव में चलती रहती है। इनमें मनुष्य बड़ा और बुद्धिजीवि माना गया या बनाया गया, मनुष्य ने होश सम्भाला और हर एक को अलग-अलग काम सौंपा या अपनी सहुलियत के मुताबिक मनुष्य ने वह काम अपनाया और आगे चलकर जाति और बिरादरी बनी या नाम दिया गया। मनुष्य में तेजी होती है, इसलिये बीमारी और टूट-फूट का काम जल्द हो, किसी एक से काम लिया गया और उसे वैद्य या हकीम का नाम देकर, उससे काम लिया जाने लगा। यह काम प्रकृति या खुद शरीर, अपने-आप करता है, लेकिन जल्द हो और ज्यादा दिन न लगे या तकलीफ कम हो। मुखिया ने, राजा ने किसी एक को वैद्य का नाम देकर, इस खास काम की जिम्मेदारी सौंप दी, इसकी सेवा सबसे अहम् इसलिये मानी गई कि शरीर जो सबसे ज्यादा जरूरी है, उसको सम्भालने से ही सारे, काम संसार के चलते हैं, हर धर्म, ड्यूटी निभाने में शरीर सबसे पहले आता है। धर्म के मुताबिक जब तक शरीर तंदरूस्त है, तब तक ही संसार या सब कुछ है। यह भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड की देन है। वैद्य, डाॅक्टर इसकी सुरक्षा करते हैं, इसलिये इन्हंे दूसरा भगवान माना गया या कहा गया।
सबसे पहले यह परिवार और प्रजा या जनता की सेवा करता रहा है, मानवता के कारण और धर्म जानने और उस पर चलने वाला होता था और लालच नहीं था, इसलिये मुखिया या राजा-महाराजा तक इसकी बेहद इज्जत करते थे और इतनी ही ज्यादा वैद्य, हकीम की मान्यता थी। किसी भी मरीज का हमेशा ध्यान रखा जाये और वैद्य, हकीम और डाॅक्टर की नजरों में रहे, जो कि घर पर मुमकिन नहीं था। एक या ज्यादा मरीज, जहाँ रखे जाये और डाॅक्टर हर समय उपलब्ध हों, उसे अस्पताल कहा गया था। यह पैथी (विधि) तब बनी, जब राजा-महाराजाओं ने अपनी प्रजा के लिये खास जगह बनाई, निश्चित ही, यह लड़ाई मंे जख्मी हो जाने वाले सैनिको की सेवा के लिये ही बनी और बाद में इसी जगह पर प्रजा की सेवा करने का हुकुम या आज्ञा दी गई, अस्पताल कहलाया। बीमार और इलाज, टूट-फूट और सुधार ब्रह्माण्ड के हर जीव और निर्जीव में निश्चित है, खासतौर से जीवों में यह काम शरीर के हिस्सों द्वारा, दिमाग के कन्ट्रोल से होता है। हर मर्ज की दवा शरीर खुद बनाता है। इसके बावजूद कुछ खास खाने की चीजें, जो शरीर के लिये लाभदायक हैं, वह सब जीव अपने बड़ों से सीखता है या बड़ें, अपने छोटांे को शुरू में सिखाते हैं। कभी-कभी जीव अपने जीवन में अपने दिमाग या तजुर्बे से सीखता है, लेकिन मनुष्य ने, ज्यादा सीखा और ज्यादा अच्छा सीखें, इसके लिये, स्कूल काॅलिज, इन्स्ट्ीयूट आदि बनायें। यह पहले पाठशाला और विद्यालय, मदरसा आदि कहलाते थे। इस स्कूल से निकला बच्चा, अच्छे माँ-बाप की परवरिश के बाद, अगर टेलेन्टेड हैं तो मेडिकल, गुरूकुल और तिब्बती मदरसे में शिक्षा ग्रहण करके वैद्य, हकीम और डाॅक्टर बनकर जनता की सेवा करते हैं और संसार चलता है। यह अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लीनिक में सेवा करने वाला डाॅक्टर होता है और यह अपना सुख छोड़कर दूसरों की शारीरिक व्याधा हरता है और दूसरा भगवान कहलाता है।
हर जीव की हर बीमारी का इलाज या टुट-फूट का इलाज, शरीर अपने आप करता है, जिनमें जानवर, पक्षी, पेड़-पौधे तक आते हैं। जो भी प्राणी, प्रकृति के मुताबिक चलता है, वह आसानी से हर आने वाली व्याधा पर विजय प्राप्त करता है, आने वाले समय में सक्षम होता है, जिसमें लालच और झूठ कभी नहीं होना चाहिये। यह वैद्य, हकीम, डाॅक्टर पहले भी भगवान था, भगवान है, आगे भी भगवान रहेगा।
लेकिन इस समय नेताआंें की छत्र-छाया और नेताओं की वजह से, सरकारी प्राणी की अनियमितता के कारण लगभग सरकारी डाॅक्टर भी निश्चित घटिया नौकर बन चुका है। नेताओं के द्वारा आरक्षण जैसे जहर ने कम मेहनती नौजवानों को जिम्मेदार सीट दे दी और वह जनता के पैसे का, समय का, जगह का दुरूपयोग करके, हर धर्म तोड़ रहे हैं। सरकारी अस्पताल एक ऐसी गलत जगह बन चुकी है कि सबका विश्वास वहाँ से उठता जा रहा है, लेकिन प्राणी के पास इन पर विश्वास करने के अलावा कोई चारा नहीं हैं, इस क्षेत्र में घुस जाने वाला इंसान अगर गैर सरकारी है तो बेहद दुर्गति होती है, अगर सरकारी है, तो अच्छे से अच्छे घर का रोशन चिराग यहाँ भ्रष्टता से ओत-प्रोत होता चला जाता है। सी. एम. ओ यहाँ का इन्र्चाज या राजा है और खास भगवान का रूप मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.), डी. एम. की जी हजुरी, नेताआंे की जी हजुरी करता है। नेचुरल इसके अन्तर्गत में छोटे से छोटा कर्मचारी झाडूवाला, माली, नर्स, कम्पाउंडर, फार्मासिस्ट, लेब असिस्टेंट, ऐक्सरे डिपार्टमेंट, सब बेहद मेहनत करते हैं और फिर भी हर मरीज परेशान है। यह भगवान या डाॅक्टर होते हुये मरीज परेशान रहे, डाॅक्टर नजर नहीं आते, लेकिन मरीज के मरते ही डाॅक्टर उपलब्ध हो जाता है। इनके यहाँ हर टेस्टिग है, लैब है, लेकिन दवा के बारे में, कमी तक नहीं जानते कि इस नाम की दवा में साल्ट के मुताबिक है भी या नहीं। इस विज्ञान के समय में जहाँ ऐलोपैथी (विधि) दवा अन्दर जाते ही अपना असर दिखाती है, वहाँ मरीज मोटा खर्च करके भी विश्वास के साथ कह नहीं सकता कि वह कितने दिन में ठीक हो जायेेगा। वैसे यह सरकारी अस्पताल है जहाँ दवा, खाना, नास्ता, फल आदि सब मरीज के लिये आते हैं, लेकिन यहाँ क्या उपलब्ध होगा कोई नहीं जानता। हर दिन मोटी कीमत में फल और दूध आता है, लेकिन केवल खानापूर्ती होती है, बिल बनता है, उसका पेमेन्ट कैसे होता है, सब जानते हंै। आॅपरेशन, डीलीवरी आदि में मरीज का मोटा पैसा खर्च होता है, जबकि उपकरण पुराने ही होते हैं, मतलब खरीदने नहीं पड़ते। दवा, सरकार की, हर नीति अपनानें के बाद भी, बाजार में पहुँच ही जाती है। यह पढ़े लिखे डाॅक्टर मरीज की औकात देखकर या अपना स्टैण्डर दिखाने के लिये, इतनी महँगी दवा लिख सकते हैं कि वह उधार लेने पर मजबूर हो जाते हैं या यह दवा मिलती ही नहीं।
यह डाॅक्टर या भगवान किसी भी मरीज की दुर्गति कर सकते हैं और गरीब मजबूर अगर, डी. एम. को शिकायत कर दे, तो फौरन दवा और बिस्तर मिल जाता है। यह बिल्कुल ऐसा लगाता है, जैसे मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) भगवान न होकर गुलाम है और डी. एम. एक बीमार के लिये डाॅक्टर को हुक्म दे रहा हैं, लेकिन शहर से हर सरकारी महकमे में अनगिनत अनियमिततायें होने पर निश्ंिचत रहता है, यह डी. एम. की अनियमितता का भी सबूत है। गलती पर सजा से बचाना अक्षम्य अपराध है। डी. एम हर बात जानता है, कठोर परीक्षा पास करके आया है। उसे केवल डाॅक्टर के उपर 1000 या 2000/-रूपये जुर्माना करके फौरन राजकोष मंे जमा कराने थे और यह डाॅक्टर सच्चाई में एक डाॅक्टर, अच्छा अधिकारी और भगवान बन जाता।
वैसे इस अस्पताल का यह मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) पूरे जिले के अस्पतालों का मालिक है, बीमारी के लिहाज से, लेकिन यह मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) अपनी पूरी टीम के साथ, डी. एम. के साथ मिलकर ऐसे-ऐसे प्रोग्राम बनाते और अमल में लाते हैं कि जनता का हर इंसान बाधित होता है। कुछ वर्ग एक दम गड़बडाते हैं, हर सरकारी प्राणी भ्रष्टता की तरफ बढ़ता है। सबूत है, मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) की टीम डाॅक्टर शहर में आने वाले दूध के सेम्पल भरते हैं, जिससे उपभोक्ता को सही दूध मिल सके, शहर में मिठाई की दुकान के सेम्पल भरते हंै, जिससे दुकानदार उपभोक्ता को सही माल दे सके, इसके साथ-साथ परचून वाले के सेम्पल भरते हंै, हल्दी, मिर्च जिससे दुकानदार मिलावट न कर सके। यह रूटीन एक दो माह मंे और लगभग एक साल में दो बार होता था। कितना अच्छा काम है लेकिन, इस सरकारी प्राणी ने अनियमिता की हद पार कर दी। बेहद लम्बे समय से दूधियों से मंथली बाँध दी गई जो आज भी कायम है, यह दूधिये, मन्थली देने के लिये दूध में पानी मिलाते हैं जब डाॅक्टर को मन्थली नहीं देते थे, 5 किलो में आधा किलो पानी मिलाते थे, घर में माँ भी दूध में पानी डाल ही देती है, उसे सबका पूरा करना होता है, लेकिन यह गैर सरकारी मेहनत करता है और सही दूध का सेम्पल भरवा कर कोर्ट कचहरी के चक्कर काटे, जब की पेट की रोटी के लिये भी समय कम हों तो रिश्वत देना ही ठीक है। यह टीम सरकारी पगार लेती है, फिर रिश्वत के लिये गैर सरकारी मजबूर किया गया। यह अपने भाईयों को धोखा दे तो भेद खुलने पर बेहद कठोर सजा भी मिलती है। यह दूध, मावा, पनीर देहली जैसे शहर में 200 किलो मीटर दूर से जहाँ रेल सुविधा है पहुँचता है, और 90 प्रतिशत सब दूसरा गलत माल होता है, जो रिश्वत देकर ही पहुँचता है। सेन्टर में यह काम नहीं रूका, तो यहाँ कैसे रोकोगे? यह गलत काम केवल सरकारी प्राणी और नेता के कारण हो रहा है न कि गैर सरकारी के कारण। इसमें हमारा सुधार का तरीका ही गलत है। हमें पहले अपने कर्मचारी को वफादार बनाकर रखना जरूरी है, जो बेहद आसान है। कहीं भी गलती होगी ही नहीं। हलवाई की दुकान से सेम्पल भरते हंै, यह सब पढ़े लिखे जानते हंै कि हेरा-फेरी या मिलावट सक्षम दुकानदार करता है, छोटे दुकानदार करते हंै तो, कम करते हैं और डरते ज्यादा हंै। सामान लेने वाला गैर सरकारी, दुकानदार की गलती पर खोपड़ी उलट जाये, तो गलती करने वाले का वंश नाश कर देता है, सब जानते हैं। यहाँ पर बड़े हलवाई का सेम्पल भरते हुए सुना ही नहीं होगा या किसी सरकारी प्राणी की दुश्मनी होगी, क्योंकि सक्षम दुकानदार मुँह माँगी रिश्वत देता है और मनचाही हेरा-फेरी करता है। हमारा सरकारी प्राणी खुद को सरकार का जमाई कहता है। खासतौर से प्रदेश सरकारी प्राणी के बारे में, इनकी मोनोपोली ड्यूटी करना नहीं, गैर सरकारी प्राणी को ज्यादा दबाना, निचोड़ना या उस पर अत्याचार करना है, और कोढ़ में खाज का काम, नेता करते हैं।
यह डाॅक्टर टीम सेम्पल भरने वाली, उपर राजधानी (प्रदेश) की टीम होती हंै। बेहद अच्छा सिस्टम है, एक के उपर एक रहना चाहिये, जिससे कर्मठता बढे़ और छोटों की गलती पर अविलम्ब सजा दी जा सके, लेकिन होता इसके विपरीत है। जिले की टीम मंथली बाँधती है, बड़े दुकानदारों से व छोटे दुकानदारों को कभी भी डराकर पैसा ऐठतें हैं। प्रोग्राम ऐसे सेट करते हंै कि दुकानदार खुद पैसे देते हंै और यह पगार लेने वाले पैसे लेकर एहसान मानने की बजाये एहसान करते हैं। लेकिन राजधानी की टीम, तो हर डाॅक्टर की इज्जत ही खराब कर देते हंै। अधिकारी कभी भी आ सकता है नियम है, लेकिन सही अधिकारी सबसे पहले अपने जूनियर की खबर लेता है, यहाँ विपरीत है, यह आते हैं और गैर सरकारी दुकानदार, वह भी छोटे कस्बें, गाँव के लोगों में हाहाकार मच जाता है। नौकर या छोटे का स्वाभिमान नहीं के बराबर होता है, यह भगवान रूपी यहाँ के डाॅक्टर नौकर होने के कारण, राजधानी की टीम को यह नहीं कह सकते, कि मेरे इलाके में मेरे बिना राउण्ड, आप कैसे मार सकते हैं? मैं यहाँ का जिम्मेदार अधिकारी हूँ। यह स्वाभिमान वाला ही कह सकता है।
इस राजधानी की टीम को चाहिये कि पहले जिले की टीम की गलती पकडें़, और फिर राउण्ड पर निकले। हल्दी मिर्च, धनियां छोटा दुकानदार कितनी मिलावट करेगा, लेकिन बड़ा, फैक्टरी वाला टनों में करते हैं। पढ़ा-लिखा इंसान जड़ को पकड़ेगा या पत्तों पर घुमेगा, इन पर टी. ए., डी. ए., एलाउंस बेहद मोटा खर्च आता है, सी. एम. आॅर्डर करता है क्योंकि नेता पार्टी को पैसा चाहिये यह 5 साल की उम्र वाले की धाँधली और समझदारी पर अंकुश, इन 60 साल के लिये बुक परमानेंट सरकारी प्राणी, जो कानून नियम सब जानता है लेकिन नजला गिरता है, गैर सरकारी पर। आज के समय में लोग त्यौहार भूल गये हंै, ईद हो, दिवाली हो, बड़ा दिन हो, गुरूपर्व हो, 26 जनवरी, 15 अगस्त हो, इनकी टीम के अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं। आज महँगाई पर कन्ट्रोल नहीं क्योेंकि सरकारी प्राणी और नेता के खर्चे बेहद बड़े हैं, वह भी हर कानून तोड़कर, हर अत्याचार करके। वर्तमान तक में बेहद इजाफा हुआ है, अब 5 प्राणीयों की टीम सेम्पल भरा करेगी उसमें नगरपालिका और तहसील के कर्मचारी, अधिकारी भी शामिल रहेंगे। बेहद सोचनीय प्वाइंट पैदा होते है। नगरपालिका या महापालिका की कर्मठता शुरू से बाधित है। ऐसे कर्मचारी को भेज कर कर्मठता बढ़ा रहे हैं, कैसे मुमकिन है? तहसील में क्या काम कम है और क्या रिश्वत कम चलती है? इन्हें कही भी भेजो, तहसील का काम भी पेन्डिग और जहाँ जायेंगे अनियमितता चरम सीमा पर या इससे आगे अत्याचार, गैर सरकारी पर। अब बड़े दुकानदार जो 500 मंथली देते थे 1000 निश्चित करने पडं़ेगे, भाई वाह। कमाई का साधन भी और अधिकारी की अधिकारी भी। यह सब इन अधिकारी का दोष नहीं माना जा सकता। यह सब आरक्षण की देन है कहना होगा।
हिन्दुस्तानी गैर सरकारी की खूबी सब भूल जाते हैं, यह हर व्याधा को हजम कर जाता है और कुदरत हर अत्याचार की सजा खुद निश्चित करती है। यह गैर सरकारी जाग जाये, तो कुदरत भी तौबा मानती है। यह भोला है सहनशील है, लेकिन आजाद है। यह सब कुछ, सब देख रहे हैं, मीडिया देख रहा है, सेन्टर का हर प्राणी जानता है, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज जानते हंै, लेकिन यह खासतौर सब कर्मठता से दूर है या खून सफेद है या गलत दूध और खाने का असर है, कोई न कोई कमी तो जरूर है, जो नमकहरामी करा रही है, नामर्दी दिखा रही है। यह जानते हुए कि जिसका खाओ उसे तो बचाओ या जिसका खाओ उसी को और काटो, जैसी गद्दारी कर रहे हैं। कोई एक सरकारी महकमा या उपक्रम बताइये जो गैैर सरकारी के बिना चल सके, उपभोक्ता ही भगवान है और गैर सरकारी इस्तेमाल न करें, तो सरकार को रेल जैसा बड़ा उपक्रम भी बन्द करना पड़े, यही सच्चाई है। डाॅक्टर दूसरा भगवान होता है, जीवन दान देता है, इन्हे मरीजों पर रिसर्च के बजाये, हर तरीके से सब उपर की इनकम के लिये काम कर रहे हंै। इनके साथ सहयोग, हर सरकारी विभाग, अधिकारी, नेता लगातार जानकर कर रहे हैं और विडम्बना यह है कि फलते-फूलते नजर आ रहे हैं लेकिन हर इंसान की आत्मा उन्हें निश्चित कचोट रही है और स्वर्ग में होते हुए सुख से वचिंत हंै।
यहाँ पर गैर सरकारी डाॅक्टर नर्सिंग होम सेवारत हैं, मनचाहे चार्ज लेते हैं, लेकिन कम से कम, बेहद, जी हजुरी, हफ्तों का काम घंटो में निश्चित करते हैं, लेकिन भगवान की कैटेगिरी से यह भी गिरे हंै। अधिकतर डाॅक्टर केवल बेड खाली न रहें और ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाया जाये कोशिश में रहते हैं, जिसके कारण अस्पताल के डाॅक्टर को पैसा खाने का अलग रास्ता मिला, अस्पताल के डाॅक्टर ही, नर्सिंगहोम में अतिरिक्त ड्यूटी करके मोटी फीस लेना आम बात बनी, मानवता डाॅक्टर के लिये बेहद बड़ा गुण है, लेकिन डाॅक्टर के लालच ने डाॅक्टर को और गिराया है। यह अस्पताल में ही सही ड्यूटी करता, तो नर्सिंगहोम वाले मक्खी मार रहे होते। छोटे के बिना काम चल नहीं सकता और हर वह प्राणी डाॅक्टर है, जो किसी का शारीरिक कष्ट कम करता है, चाहे वह घर की अबला हो, कोई साधु हो या लोहार। आज नीम-हकीम सबकी नजरों में हैं लेकिन यह गजटेट डाॅक्टर से कहीं ज्यादा अच्छे हंै। मोटी पगार, हर सुविधा के बाद पढ़ा लिखा डाॅक्टर कनफर्म मर्ज का इलाज कर नहीं सकता, तो यह तो अनपढ़ हंै, मगर ठीक करने की कोशिश तो करता ही है, वह भी मामूली पैसे में, बिना सुविधा के, गलती पर महसूस भी करता है, जनता की सजा भी भुगतता है। डाॅक्टर, हकीम, वैद्य पर कभी कोई बेन नहीं लगा। राजा-महाराजा भी इज्जत करते थे, वह डाॅक्टर भगवान रूप थे, आज मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) नये-नये आर्डर से बाँधने की कोशिश करते हंै, वह भी कानून कह कर, झोला टाइप डाॅक्टर, डाॅक्टर नहीं है वरना, डाॅक्टर और पण्डित से, दुश्मनी करने वाले का वंश नाश कर देती है, मिसाल है सबूत है। जिसे सेवा करनी है, जिसका रूप ही भगवान का है, उसे इंसान क्या रोक पायेगा या बाँध पायेगा। अस्पताल का बँधा हुआ डाॅक्टर कर्महीन है, तो आम इन्सान की कौन-सी गलती, गलत है? सच्चाई को समझना, हर समझदार का फर्ज है और सुधार करना बेहद महानता है।
डाॅक्टर भगवान का रूप है उसमें भगवान जैसे गुण भी चाहिये, यह अस्पताल के डाॅक्टर तो मनुष्य भी नजर नहीं आते। हर मनुष्य को ही नहीं, हर जीव में, किसी भी जीव के मरने पर दुःख होता है, जानवर भी मनुष्य की मौत पर मातम मनाते महसूस होते हैं, यह गुण अस्पताल के डाॅक्टर में तो मिलते ही नहीं, सबूत है, पोस्टमार्टम विभाग, किसी का कोई मरे, उसका तो सबसे बड़ा नुकसान हुआ, संसार में अंधेरा छा गया, लेकिन पोस्टमार्टम के बाद ही, वह भी अगले दिन डेडबाॅडी मिलेगी, इन्तजार करो, तड़पो, सारा खानदान, जानकार, एक बड़ा समाज परेशान रहे, केवल एक डाॅक्टर के कानून के तहत। वैसे डाक्टरों की भीड़ है, अस्पताल में, लेकिन अधिकारी मानवता से दूर हैं, जबकि उसके यहाँ कोई, बीमार भी हो जाये, तो वही डाॅक्टर विचलित हो जाते हैं। इसी अधिकारी के सामने किसी का लड़का मरे या बाप मरे या बहन, कोई मायने नहीं रखता, लाश, अगले दिन ही मिलेगी। यह पोस्टमार्टम की 80 प्रतिशत ड्यूटी भी केवल स्वीपर ही करता है। यह हैं बुद्धिजीवि इन्सान, डाॅक्टर का दिल, जो कि 84 लाख योनि में सर्वोपरी हैं। नेता कोई अधिकारी या आपका पैसा, इन्हंे चाहे जब खरीद सकता है, हर नियम कानून तोड़ सकता है और दो घंटे में भी पोस्टमार्टम हो सकता है।
आज हमारी दवा की फैक्ट्री में सरकारी प्राणी के अत्याचार के कारण, तीन किस्म की दवा बनाने का प्रचलन मजबूरी में चलाना पड़ रहा है। एक ही दवा के तीन रूप है। एक किस्म है, जो केमिस्ट के पास और रिसर्च सेन्टर को पहुँचती है, दूसरी किस्म है, जो गैर सरकारी डाॅक्टर को पहँुचती है, तीसरी किस्म है जो सरकारी अस्पताल को पहँुचती है। फैक्ट्री मालिक मजबूर है सरकारी डाॅक्टर और कई जगह, रिश्वत के कारण दवा बेहद मँहगी पड़ती है, मोटा टैक्स, लेबर का खर्च फैक्ट्री का खर्च और अनेक परेशानी और वह सब भुगतनी पड़ती है जनता को, अस्पताल की असीमित दवाएँ मरीज पर बेअसर होती हैं। जिसकी चिन्ता या गलत असर कम से कम अस्पताल के किसी डाॅक्टर पर पड़ता ही नहीं अस्पताल की लैब में हर सुविधा है लेकिन काम की या ऐकुरेट वर्किग में कोई मशीन नहीं मिलेगी। मरीज को बाहर की लैब का सहारा लेना पड़ता है, मरीज मर्ज से दुःखी, फिर परिवार वाले अस्पताल की अनियमितता से दुःखी।
देश के 100 दुश्मन मारने से अच्छा है, एक सरकारी कर्मचारी या नेता का सुधार करना। माँ तुझे सलाम कहना है, माटी का कर्ज, माँ के दूध का कर्ज उतारना है, यह सबसे बड़ा धर्म हंै। पाप कितना ही छोटा हो और पाप करने वाली यूनिटी कितनी भी बड़ी हो, पाप करने वाले और पाप में जाने-अनजाने भी साथ देने वाले, सजा न भुगते, नामुमकिन है, इतिहास और सारे धर्म ग्रन्थ गवाह हैं।
एक प्रतिशत धर्म जानने वाला भूख होने पर भी कम से कम मजबूर का माल खा ही नहीं सकता, कोई भी खा लें, तो घर के बच्चे औरतंे ताना देते हैं, बड़े तो निश्चित कह देते हैं। अस्पताल में तो पूरा स्टाफ ही सैकड़ों का होता है, इनके परिवार और सम्बन्धी मिलायें तो सैकड़ों होंगे और सैकड़ों के मुकाबले में कई हजार जरूर होंगेे, यहाँ पर मरीज के दूध में से दूध, फल, रोटी, सब्जी, दवा तक में से, जिसके हाथ में जो है, वह सब खाते हैं और नाजायज हैं, खा रहें हंै सबको पता है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) खुद नहीं छोड़ता। इस कर्मचारी को, बच्चों की तरह, सही कन्ट्रोल मंे रखना, पहली ड्यूटी है, कभी किसी ने कुछ नहीं कहा आपरेशन होते हैं, स्ट्रूमेंट सब पहले से हैं, सब एक-एक मिनट की पगार ले रहे हैं, फिर आपरेशन में मोटा पैसा क्यों लगता है? सामान के व मेन्टिनेन्स के बिल तक बनते हैं, फिर मरीज को सुनाया जाता है, मशीन खराब है। इन सबका व हजारों लोगों की धारणा है, उपर तक सब करते है, कितनी गन्दी सोच है। सब गलत करते हैं, तो तू भी करेगा?
किसी ज्ञानी की बात है चलते पानी में हाथ धोने ही चाहिये या बहाव के साथ ही बहना चाहिये, लेकिन यह गन्दी परवरिश के गन्दें लोग, भूल जाते हैं कि गन्दे पानी में हाथ नहीं धोये जाते, बहाव की तरफ बह कर जान बचाई जाती हैं और जान इसलिये बचाते हैं, कि कुछ धर्म कर सके, (गलती का बदला लें सकें, सुधार कर सकें)े।
अस्पताल में गलत सब कर रहे हैं और सब एक-दूसरे के सहयोगी हंै, तारीफ की बात तो यह है कि अब करने के ऐसे-ऐसे तरीके हंै कि मरीज या मरीज के साथ वालांे को पता ही नहीं चलता। इसके बावजूद, यह मरीज मजबूर है, जान बचाने के लिये, गन्दा खाने के लिये भी मजबूर है, लेकिन आज भी ऐसे लोगों की प्रतिशतता ज्यादा है जो गन्दे हाथ का खाते नहीं बीमार की अगर जबान चल रही है, तो कहते हैं, यह तू ही खा या मरने वाला भी है, तो सिर हिला देता है, क्योंकि गलत कर्म और गलत हाथों का खाना अगर अमृत भी है, तो वह सजा बढ़ा देता है।
स्टाफ को पता है सी. एम. और सेन्टर तक को पता है, कि स्टाफ में सीनियर, जूनियर की गलती पर सजा नहीं देतंे, केवल भला बुरा कहते हैं, तो पगार लेने के लिए गाली खाना क्या बुरा है। यह सिलसिला सी. एम. और सेन्टर तक है, लेकिन सजा देते हैं तो और ज्यादा अनियमितता को बढ़ावा मिलता है। सीनियर, जूनियर के काम से कभी खुश नहीं रहता और जूनियर के पास बेकार के काम का भारी बोझ होता जाता है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) प्रदेश के सी. एम. तक यही करते है। सी. एम. की उम्र केवल 5 साल हैं, नेता हैं इसलिये डाॅक्टर से मोटा पैसा रिश्वत का लेते हैं, न मिलने पर ट्रांसफर जैसी सजा, डाॅक्टर, भगवान जैसे को भुगतनी पड़ती है। 24 घंटे काम करने के बाद भी जान सूली पर लटकी रहती हैं। अब सी. एम. साहब ही बडे़ तरीके से पैसे इकट्ठे करते हैं। सी. एम. दो-तीन दौरे करते हैं और हर काम को ऐसे बढ़ाते हैं कि तोबा बोल जाये, मरता हुआ इंसान जान बचाने का रास्ता सुनने को बेचैन रहता है, कहीं से आवाज आती है, अरे पार्टी को चन्दा दे दो, सब ठीक हो जायेगा और यह खानदानी परमानेंट अधिकारी होते हुए, सी. एम. को लाखों रूपये की भंेट देता है। आवाज निश्चित ही सी. एम. पार्टी के अनजाने सदस्य की होती है। डाॅक्टर साल दो साल इन्तजार करता, या ट्रांसफर से क्या फर्क पड़ता हैं? इज्जत के साथ थोड़ा पैसा भी अथाह धन होता है, दूर रह कर तरकीब से बदला भी ले सकता है, लेकिन यह इंसान योनि में ही नहीं है। एक नेता जिसकी उम्र भी निश्चित ही ज्यादा से ज्यादा 5 साल है, गलत है, भोली जनता, बरगलाई जनता की देन है, भगवान जैसा डाॅक्टर भी डर गया। जिले में अनेक प्राथमिक चिकित्सालय होते हैं, उनमें डाॅक्टर होते हंै, पगार इनकी मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) के आॅफिस से ही मिलती है, यह मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) अपनी बिरादरी के अपने जूनियर तक से पगार की परसेन्टेज नहीं छोड़ते, यही कारण है, हराम के 10 रूपये इकट्ठे करो, दूसरा कोई हरामी, लाखों ले ही जायेगा बल्कि आप खुद ही देेंगे।
हर सरकारी अधिकारी का स्वाभिमान खत्म होने से, खुद्दारी न रहने से इतना मजबूर है कि अपने अधिकारी को देना पड़ता है या विभाग और जनता के साथ गद्दारी करके, अपने अधिकारी को न. 2 का पैसा कमाने का पूरा जुगाड़ करता है, जिसमें सारा सहयोग, इस अधिकारी के मातहत, साथी और इसके ऊपर के अधिकारी हैं, इसका सब साथ देते हैं और निश्चित ही नेता, जिसकी उम्र भी कम और धर्म व नीति गलत है, वह अधिकारी के पेट में हाथ डालकर निकालता है, यह बात जनता को छोड़कर सब जानते हैं। अब जनता भी जान रही है। यह सिलसिला खत्म क्यों होगा? क्योंकि इन पढ़े-लिखे इंसान के खून में खुद्दारी है ही नहीं, कोई इसे बचना भी चाहेगा तो खुद भी भुगतेगा और हराम के खाने वाला, आपको धोखा न दें (मतलब बचाने वाले को) यह नामुमकिन है।
वह भगवान रूपी डाॅक्टर अस्पताल के लिये मोटे बिल बनाते हंै या नेता, विकास के नाम पर बिल बनाते हंै और डाॅक्टर खुश होता है पैसे कमाने का साधन मिला। यह खुशी पाप की खुशी इस कारण से है कि यह डाॅक्टर लम्बे समय से माँ-बाप की छाया में गद्दारी कर रहा था, आदत बन चुकी थी। यही डाॅक्टर खुद में खुद्दारी पैदा करे, तो बने बनाये बिल पर हस्ताक्षर भी न करे, जनता का पैसा है, उसमें 10 पैसे भी पगार लेने वाला अधिकारी और या नेता क्यों खाये या डाॅक्टर क्यों खानें दंे? काम पहले से ठीक चल रहा है, हमें पैसे की जरूरत नहीं है आदि-आदि, मेरा ट्रांसफर करोगे, करो। यह काम जहाँ जाउँगा, वहीं करूँगा। मनुष्य की अच्छाई को कोई नहीं रोक सकता। भगवान के गुण तो होने ही चाहिये, वह नकारा को रोटी जीने के लिये दे सकता है, गद्दारी करने के लिये कभी कुछ नहीं, यह पैदा गद्दारी खुद करता है और खुद गद्दारांे से मिलकर गद्दारी करता है। सजा वह और उसका पूरा समाज भुगतता है जनता भुगतती है। जो भगवान रूप से गद्दार बन गया, परिवार समझ और देख रहा है, इससे बड़ी और क्या सजा होगी।
यह मरीज का रोग क्या ठीक करेगा? रोग ठीक होता है, मरीज के दिमाग रूपी कम्प्यूटर के सही फंक्शन से। हम जो भी, केमिकल या दवा इस्तेमाल करते हंै, वह दिमाग को ऐनर्जी देता है और दिमाग के आर्डर पर शरीर के अंगांे द्वारा, अपने आप रोग के किटाणु का जहर शरीर ही बनाता है और रोग खत्म होता है, यह रसायनिक क्रिया अज्ञात है और भारी शोध का तलबगार है। हमारे हर शोध अब तक अधूरे हंै। वैज्ञानिकों ने हिमालय पर रहने वाले पर शोध किया और दवा बना दी, टी. वी., समाचार और वैज्ञानिकों में चर्चा फैल गई, यही दवा कन्याकुमारी के मनुष्य पर फिट हो ही नहीं सकती, ज्ञान कहता है लोगांे को तजुर्बा है, 5 फीट की दूरी पर लगे नलके के पानी में भी अन्तर होता है। विज्ञान की नजर से, हर जगह चुम्बकीय प्रभाव, पृथ्वी की आकर्षण शक्ति और वायु दाब में अन्तर होने के कारण व ग्रहों का अलग-अलग प्रभाव होने के कारण, सब जीव निर्जीव में अन्तर निश्चित होता है, इसका सही तारतम्य दिमाग के द्वारा, शरीर के सहयोग से, खुद शरीर बनाता है और जीवन चलता हैं। यह हर जीव (84 लाख योनि पर फिट है) इसी कारण से हर जगह, वहाँ की वनस्पति जो जीव इस्तेमाल करता है, उसी जगह के जीवों के लिये अमृत होती है। आज का कोई डाॅक्टर या वैज्ञानिक इतनी रिसर्च के बाद, छोटे से छोटे मरीज या रोग की गारण्टी नहीं ले सकता, लेकिन खुद मरीज या नीम हकीम, झाड़ फूक वाले, सिम्पल पानी, मिट्टी, पेड़ की टहनी या हवा के द्वारा, मर्ज का इलाज कर देते हैं। अगर इलाज इनसे नहीं हो सकता, तो निश्चित ही बड़े-बड़े डाॅक्टर इलाज नहीं कर पाते या अनजाने में कोई केेमिकल देने पर दिमाग के द्वारा इलाज खुद हो जाता है और सेहरा डाॅक्टर के सिर पर बँधता है। संसार का हर जीव पेड़-पौधे और बीमारी के जर्म तक, इसी नीति से जीवन चलाते हंै। सब कष्ट भी उठाते हंै, रोगी भी बनाते हैं और निरोग भी होते हैं, मनुष्य जीव के अलावा किसी जीव ने दवाखाना या अस्पताल नहीं खोला, लेकिन वह सब खुद डाॅक्टर भी हैं और खुद का इलाज भी करते हैं। यह सब गुण या डिगरी, इन्होंने अपने बड़ों से या खुद की ठोकरों से ली है, जो हमेशा सफल थी, हमेशा सफल रहेगी।
पूरे अस्पताल विभाग में एक भी समझदार और ज्ञानवान होता, तो निश्चित अस्पताल का रूप धीरे-धीरे भगवान की कर्मशाला जैसा होता, वह किसी गलत अधिकारी व नेता की नहीं मानता और न किसी से डरता और मरीज का इलाज सही डाॅक्टर की तरह करता। सब जानते हैं डाॅक्टर एक मरीज को घूमाकर, इस स्थिति में लाता है कि मरीज खुद आपरेशन के लिये कहता है, उसके संरक्षक फार्म पर हस्ताक्षर करके देते हैं कि चाहे मरीज मर जाये हमें ऐतराज नहीं, मँंुह माँगे नोट भी देते हंै, पहले यही मरीज मीठी दवा भी नहीं खाता था, कोई उँगली भी लगाये बर्दास्त नहीं करता था।
यही कर्मचारी या अधिकारी एक नेता की गलती पर, उसका ऐसा माकूल इलाज करता कि पैदा होने वाला नेता, सरकारी प्राणी पर आँख भी नहीं उठाता और सबके लिये वफादार और कर्मठ होता।
पूरे संसार में धर्म के ज्ञाता हैं, आश्रम हैं, प्रवचन हंै, हर धर्म और धर्म ग्रन्थ के मुताबिक गृहस्थ आश्रम, सबसे बड़ा आश्रम है। इस गृहस्थ की चार दीवारी में, सारा संसार है। फिर अस्पताल यहाँ न हो या डाॅक्टर, नर्स न हों कैसे मुमकिन हैं? जरा नजर मारिये, आपके यहाँ जितने मिर्च-मसालेें हंै, सातो अनाज है, दालें हैं, दूध, दही, पानी, मिट्टी सब टाप क्लास दँवाये है, अमृत है, जीवनदाता है। एक मामूली सी अबला या नारी बिना डिगरी के डाक्टर है, घर में आरामदायक बिस्तर है। घर में यह सब अनपढ़, डाॅक्टर और पूरा स्टाफ है। परफेक्ट डाॅक्टर हैं, बच्चे, नौकर, नर्स और वार्डबाॅय हैं। पूरे साल का विज्ञापनवंास, आपकी खुराक का डाॅटा दिमाग में रखती है, सर्दी आने से पहले तिल के लडडू सर्दी के लिये, गर्मी आने से पहले सत्तू गर्मी से बचाने का साधन रखती है बीमार कोई भी है, अदरक की चाय, गर्म दूध, गर्म पानी देती है और 80 प्रतिशत से ज्यादा ठीक होते हैं, होते रहेंगे। यह नारी केवल अपनी माँ, नानी, दादी, साॅस से ही सीखी थी। यह सब सदियों से चलता आ रहा है। आज हम पढ़े-लिखे हंै, टाप ग्रेजुएट हैं, लेकिन पहनावे व खाने तक का ज्ञान नहीं, बस अच्छा चाहिये, स्वादिष्ट चाहिये आज का पढ़ा-लिखा इंसान तीन घन्टे पहले बनी रोटी को बासी कहकर ठुकरा देता है और महीनों पहले बना बिस्कुट ताजा कहकर खा लेता है, यही बासी बेकार खाना खाकर गरीब इंसान या कुत्ते जैसे जानवर खाकर तंदरूस्त रहता है, हमारे बड़े-बड़े एम. डी. डाॅक्टर साफ-सुथरा रखने और टेस्टिंग के चक्कर में, हर पढ़े-लिखे को बाँध रहे हैं, हर दिन हर सप्ताह टेस्टिंग के बाद सब मरीज है, लेकिन जंगल में रहने वाला गँवार या साधू-फकीर जहाँ पानी भी साफ नहीं मिलता, राख घोलकर पीता है, हर टेस्टिंग में फिट मिलता है। अच्छा खाना, हर सुविधा के बावजूद इंसान की उमर 60 या 65 रह गई, जबकि गँवार अब भी सैकडों साल जीते हैं। तम्बाकू, धूम्रपान, सब वर्जित व नुकसानदायक साबित कर रहे हंै, किसी समय में चेन स्मोकर थे और उम्र सौ से उपर मिलती थी, जिन्हें हम खाने का तरीका ठीक नहीं आता, बताते थे।
आज हमारे ज्ञानी पुरूष, योग में मयूर आसन, कुक्कुट आसन के द्वारा, शरीर ठीक रखने की पैथी (विधि) सिखा रहे हैं, मतलब जानवर पक्षीयों की नकल करके निरोग बनने की कोशिश कर रहे हैं यह बुद्धिजीवि हैं? वहीं यह जानवर केवल अपनी पैथी (विधि) में ठीक-ठाक तंदरूस्त जीते ही नहीं बल्कि, आज भी उनकी उम्र पहले जीतनी ही है। बड़ों की बातें हैं, कौआ चले हंस की चाल, तो वह अपनी चाल भी भूल जाता है। मनुष्य के अलावा कोई जीव किसी की नकल नहीं करता।
गलत पैथी (विधि) की या गलत डाॅक्टर की बड़ी महिमा है, खासतौर से नेताओं की छत्रछाया में। जनसंख्या बढ़ रही है, नसबन्दी करके ही बर्थ कन्ट्रोल क्यों? कुदरत ने सेक्स दिया, इंसान को ही नहीं, हर जीव में है, वह बच्चे पैदा करने के लिये हंै, हम समझदार है, ज्ञानवान हैं, तो केवल जरूरत के मुताबिक बच्चे क्यों नहीं? जानवर में भी बर्थ कन्ट्रोल है, यह सेक्स सबसे कीमती चीज है, शरीर में रहेगा जब तक। हम बेकार मौज मस्ती के लिए सेक्स यूज करेंगे, तो शरीर के सारे अंग शिथिल होंगे ही या खराब होंगे। यह बात दूसरी और तीसरी पीढ़ी में तो, साफ नजर आने लगती है। हर नारी जाति गर्भवती होती है 84 लाख योनि में सब, जिनके पास कोई साधन नहीं है, सबकी नोरमल डीलीवरी होती है। यह कुदरती काम है, जो केवल अपने आप ठीक होता है, सबमें होता है, समय से होता है, लेकिन आचरण और आचार विचार गलत होते ही, हर परेशानी, हर व्याधा, मनुष्य को घेरने लगती है। ऐलोपैथी (विधि) में या डाक्टरी लाइन में केवल आपरेशन सफल क्रिया मानी जा सकती है। लेकिन वह भी शरीर से अंग काट कर निकालना तो, बिल्कुल नहीं। हम जो हर टेस्टिंग से, केमिकल्स पास करके इस्तेमाल करते हैं, वह शरीर भी पचाने में असमर्थ होता है। और भविष्य में साइड इफेक्ट जरूर नजर आते हैं, हमारे शोध सब अधूरे हैं, सबूत अनेक है। इतना विज्ञान और शोध होने पर भी बीमारी की तादात बेइन्तहाँ हो गई है, जबकि मस्तिष्क के सौजन्य से शरीर के द्वारा दुनिया के अज्ञात तत्व भी खुद बनते हैं और जीवन चक्र चलता है, नसबंदी करना, तो मानवता से व प्रकृति से निश्चित खेलना है।
भारत में इन्दिरा गाँधी के समय में बेहद ज्यादती हुई और डाॅक्टर, मास्टर, ऐेजेन्टों, सरकारी नौकरों के कोटा पूरा करने के लिये नई उमर के कुँवारे, बुढ़ों तक की नसबंदी करके कानून और धर्म तोड़ा। बड़े-बड़े नेता हर साल सरकारी खर्चे में बाहर जाकर कायाकल्प कराते हैं, लेकिन कायाकल्प होने के बाद भी जीवन की गारण्टी नहीं होती और डाॅक्टर खुद कहता है भगवान की यही इच्छा थी, यह है हमारे शोध। एक अबला नारी चाय बनाती है, तब खीर नहीं बन जाती और कुछ भी गलत होने पर अपनी गलती मानती है, भगवान की नहीं एक आम बात है, आप कम्पनी का बना टी. वी. लाते हैं और कोई भी फिल्टर या रेजिस्टेन्स कम कर दें या उसकी वेल्यु बदल दें तो टी. वी. में प्रत्यक्ष रूप में कोई कमी नजर नहीं आती, जबकि उसकी लाइफ, सर्विस, गारण्टी सब खत्म मानते हैं, यह केवल बनाने वाल इंजीनियर जानता है, साफझदार जानता है, इस शरीर में यह अलग पैथी (विधि) है, जो प्रकृति के अनुसार ही चलती है, जैसे साँप केचुली उतारतें ही, नई उम्र का हो जाता है। मनुष्य के अलावा हर जीव के आचरण आज भी वही हैं, जो हजारों साल पहले थे और उनकी उम्र भी उतनी ही है, दूसरे जीव किसी की नकल करके खुद का शरीर नहीं बचाते, क्योंकि यह नीति ही गलत है।
हर जीवन की कार्यशैली वही है और ठीक है। आज का डाॅक्टर, डाॅक्टर होते हुए हर टेस्टिंग में पास होने के बाद अक्समात हार्टअटैक से मर जाता है, हर वैज्ञानिक या डाॅक्टर कह देता है हार्टअटैक हुआ, बस। जब यह हर तरीके से फिट था, तो हार्टअटैक क्यों हुआ, खुद नहीं जानता? सोचते भी नहीं, कोशिश भी नहीं करते। इस समय ब्लडप्रेशर कहकर अच्छे खासे इंसान को मरीज बनाकर बुक करते हैं, संसार में कोई जीव ऐसा बतायें, जिसका प्रेशर से सारा तारतम्य न चलता हो। हम सोचते हंै डाॅक्टर है, पढ़ा लिखा है, तो आप गँवार कहाँ है? इन्टर तक की किताबों में थोड़ी-थोड़ी सब बाते हंै, होमसाइंस में तो सब खुलासा है, आप का बेटा डाॅक्टर बन गया और आपको बीमारी का अगला-पिछला हिस्सा भी नहीं पता? कटु सत्य है लेकिन ध्येय जागरूक करना है।
इस सहस्रत्राब्दि दी के शुरू में सन् 0001 में तिब्बत में बेहद बड़ा स्कूल या पाठशाला थी, जहाँ देश विदेश से बड़े से बड़े अमीरों के बच्चें शिक्षा ग्रहण करने आते थे, हर किस्म की विद्या का इन्तजाम था और सब में सेवा-भाव जैसे आश्रम में होता था। बस यहाँ खाना और पढ़ना, ओपरेशन पैथी (विधि) तक थी। आज सबने अपनी-अपनी पैथी (विधि) को बढ़ावा दिया, लालच किया, पैसे की तरफ भागे और अनमोल ज्ञान असरहीन हुआ सबूत है, चीन, जापान ही नहीं छोटे-छोटे प्रदेश और कबिले बिना डाॅक्टर के सफल जीवन, रोग रहित शरीर के साथ जी रहे हैं। अफ्रिका के जगंलो में तो कुछ कबिलों में 35, 40 साल से उपर की उम्र ही नहीं मिलती। गिनिज बुक में भी अनेक 120 साल से उपर के हैं, जिनके दाँत भी नये सिरे से निकले, आई-साइड ठीक हुई।
यह सब कोई चाहे कि खाली ज्ञान से या केवल विज्ञान से मुमकिन है, तो एक दम गलत है। ज्ञान और विज्ञान के सही मिलान से सही उपलब्धि होती है, एक ही बार होती है, अकाट्य होती है, सदाबहार रहती है। हमारे विकासशील देश जापान, अमेरीका जैसों ने रोबोट और पुतले तक बनाये, यह असंभव उपलब्धि निश्चित हैं, यही नहीं पुतलों के चेहरों पर खुशी, गम, शर्म तक उजागर होती है, लेकिन एक मरीज पर छोटे से मर्ज पर भी लाखों का खर्चा करा देते हैं, जो उनके शोध और ज्ञान को हल्का कर देता हैै। वहीं होम्योपैथ, आयुर्वेद मंे बिना आपरेशन के रोग ठीक होते हंै, पिछले जन्मों के रोग खत्म होते हंै, चाइना पैथी (विधि) भी ऐसी ही है, एक्यूपंचर है लेकिन आपकी समझदारी ही आपके काम आती है।
एक नारी माँ, पत्नी या दादी चाहती है, मेरा बच्चा कैसे भी जल्द से जल्द हाथी जैसा बलवान और निरोग बन जाये? इस नारी ने अपने बड़ांे से सीखी पैथी (विधि) पर, कभी बार-बार मनन ही नहीं किया, उसे बढ़ावा देना तो दूर। यह केवल अच्छा बनाना चाहती है। मँहगे को अच्छा समझती है, गर्म-गर्म खाना खिलाने की कोशिश करती है और सबसे गलत बात किसी और या समझदार की सही बात सुनती भी नहीं, गैर की, आम नारी की बात पर अपने बड़ांे की बात काट कर अमल भी कर देती है।
इस नारी का बाप या पति भी लगभग ऐसे ही दिमाग का होता है, वह बेटी या पत्नी को यह नहीं देखता कि बड़ों की आज्ञा में है या नहीं, माँ जैसा करती थी, वह भी कर रही है या नहीं, वह खुद समझता है, मेरे माँ-बाप पुराने विचारों के हैं, यह नारी बच्चे की भी सही परवरिश कर ही नहीं सकती। माँ या सास बच्चे की मालिश करते थे, यह नहीं करती, ठंडा खिलाना, घर का बनाया हुआ नहीं, विटामिन्स, टाॅनिक, हाॅरलिक्स जैसी चीज फायदेमंद कहकर खर्च करती है। डाॅक्टर के कहने पर ड्राप, इन्जेक्शन यूज करते हंै, फिर भी बच्चा स्कूल की प्रार्थना में खड़ा-खड़ा गिर जाता है, हमेशा जुकाम, बुखार से आये दिन दो चार होता है। यह नारी दूध पिलाने से हिचकती थी, अपनी फीगर की चिन्ता थी ना। इसकी माँ और सास बुढ़ी होने तक काम-काजी रही, न कमर में दर्द न चक्कर आना, बच्चे भी कई-कई हुए, खाना भी आज जैसा नहीं। यह नारी भगवान रूपी बच्चा, करोड़ांे की सम्पति सम्भाल भी नहीं सकती, जबकि नौकरी, जुलूस, आश्रम, पूजा-पाठ ही नहीं, शराब के ठेके बन्द कराने के लिये सड़क पर पहुँच सकती है, ये हैं पढ़े लिखे?
डाॅक्टर का कहना है, हरा खाइये (हरी सब्जी), कम बुद्धि नारी या पुरूष बेहद मंहगी हरी सब्जी लायेंगे और खूब तेल-घी में छांैक कर तैयार करते हैं, तेज आग, कुकर, गैस या स्टोव पर, वह बचती ही कहाँ है? मिर्च मसाले जो अनमोल हैं, भूनते हुये ही खत्म हो जाते हैं। गर्म-गर्म खाना, केवल खाने में, खाना बनाने वाले के दोष छुपाता है।
यह गर्म खाना आँत और दाँत साथ ही आँखो पर गलत असर डालता है या खत्म करता है, सब ने सुना है, मंद पके ज्यादा मीठा होय, हल्की आग का खाना, फायदेमंद ज्यादा होता है, सब भूल गये। बच्चे न हों, निरोध, गर्भ निरोधक गोेलियाँ, नसबन्दी कराते हैं और हर हाल में शारीरिक कष्ट उठाते हैं, और भुगतते हैं। यह सब काम बिना बनावटी चीजों के भी हो सकती है, पहले होता था। इस समय नोर्मल डिलीवरी होनी ही बन्द हो गई, यह हमारे पढ़े-लिखे होने का सबूत है। एक जानवर, भूसा, घास या वेस्ट खाता है, लेकिन ठंडा खाता है, सब देखते हैं, वह हमें दूध, घी दे देता है, जल्द बीमार नहीं होता 10, 12 बच्चे पैदा करता है, दाँत और आँत मरने तक सही रहती है। इसकी पहले जितनी उम्र भी बरकरार है, जोड़ों में पैरांे में दर्द नहीं होता और मनुष्य सब तरफ अधूरा है। दरअसल हम सबसे ज्यादा वेस्ट करके खाते हैं या वेस्ट ही खाते हैं, सब पढे़-लिखे हैं, लेकिन तेज आग पर सब खत्म हो जाता है, यह तक नहीं जानते। जिस आटे की रोटी हम आज खा रहे हैं, 15 दिन पहले पिसवाया था पिसते ही गर्म चक्की होने से खत्म हो चुका था, फैक्ट्री का पैक आटा तो कई माह पहले भरा हुआ था, आज गूँथते हैं, तेज आग पर पतली से पतली चपाती बनाते हैं, करारी करने की कोशिश करते हैं, फिर गर्म-गर्म ही खाते हंै कोई पैथी (विधि) कह नहीं सकती कि यह ठीक है, वह तो कहीं से कहीं तक बची ही नहीं, एक बछड़ा दूध पीता है, शरीर के मुताबिक बहुत कम है लेकिन ओरिजनल हालत में पी कर वह जल्द बड़ा होता है, हम दूध को खूब उबालते हैं, किटाणुनाशक बनाते हैं, ज्यादा पीते हैं और बचपन में ही हर बीमारी भुगतते है क्यों? क्योंकि हमने उसे खत्म करके, इस्तेमाल किया। मुर्दा खाना शरीर को कहाँ शक्ति देता है। लाल बहादुर शास्त्री के जमाने से सलाद का चलन चला, जो निश्चित फायदेमंद रहा, पकाना है भी, तो बेहद हल्की आग पर जल्द ही पकेगा, ज्यादा से ज्यादा गुण होंगे, सस्ता होगा।
एक साधु, गरीब समझदार इज्जत करने वाला आपके यहाँ आये, आप चाहे जितने गरीब हैं लेकिन आपके अन्दर आदर-सत्कार में सच्चापन है, इसलिये यह साधु, मौलवी, पादरी चाहे जैसा दो, सब कबूल है, इसके विपरीत आपने देखा तो नहीं होगा सुना जरूर होगा कि अच्छा खासा 36 किस्म का भोजन किसी साधु, मौलवी, पादरी ने ठुकरा दिया, क्योंकि भोजन बनाने वाले की नीयत व कर्म खराब थे, और आप जहाँ सारे गद्दारी कर रहे हैं, जहाँ झूठ, फरेब, धोखा है, वहाँ इलाज करा रहे हंै, मजबूरी निश्चित आती है क्योंकि हमारे और हमारे आस-पास सब सच्चाई खत्म कर रहे हैं, हर नियम तोड़ रहे हंै, पढ़ाई, बड़ों की बातें धर्म-ग्रन्थों का मर्म भूलकर उनकी बातांे का या बड़ों की बातों का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, चालाकी, झूठ दिमाग में है, हम बीमार पडे़ंगे और डीलीवरी जैसी नेचुरल क्रिया के लिये भी अस्पताल पहुँचेंगे और अपने जीवन से खेलेेंगे।
पाठक गण इसका गलत मतलब बिल्कुल न समझें, डाक्टरों ने बेहद मेहनत की है, उनसे काम लेना बेहद बड़ा धर्म है, लेकिन गलती पर सुधार अविलम्ब होना ही चाहिये, आप चाहे जैसे 10/-के 100 खर्च करें, उसे दें लेकिन बाद में वसूल भी तो कर सकते हैं, शिकायत जब करेंगे, तब ही तो अमल होगा, जब इतनी मेहनत की है, थोड़ी सी और सही, आपको मर्दानगी दिखाने की जरूरत है, बेहद बड़ा धर्म है। आपको कोई नौकर, सेवक धोखा दे और आप चुप बैठें, बेहद गलत है। आप उठिये देखियें, कितने उठेंगे। चलिये आप कोई पंगा नहीं लेना चाहते, केवल अपनी परेशानी या शिकायत 5/-के डाक टिकट के साथ लेखक तक पहुँचाइये, बस शिकायत पर तीन प्राणी के वोटर/आधार नम्बर के साथ हस्ताक्षर होने चाहिये, देखिये यह अधिकारी 10/-के बदले 100/-कैसे राजकोष में खुश होकर जमा कराता है और आप का धन्यवाद भी करेगा। डाॅक्टर भगवान है, आप उसे समझिये और भगवान को भगवान बना कर आप ही रखेंगे। यह सब आपका है, आपके लिये है।
हर जीव या मनुष्य का शरीर कोशिकाओं के मिलन से बना है, जैसे मकान ईंटो को जोड़ कर बनाते हंै, इस कोशिका में जीव द्रव होता है, बीच में सूक्ष्म न्यूक्लियस होता है $, - चार्ज होता है। जब तक इसमें जीव द्रव साफ सुथरा होता है शरीर, नया नकोर जैसे बच्चे का है, ऐसा होता है, शरीर के हर अंग में बढ़ोत्तरी रहती है, लगभग 25 साल बाद इस कोशिका में हमारे आचरण, खान-पान, वातावरण के अनुसार जहर बनना शुरू होते ही, हर अंग पकने लगते है और जीव प्रजनन तक में पूर्ण हो जाता है, यह लगभग अगले 25 साल तक रहता है, हमारे अच्छे आचरण, सही नेचुरल खान-पान, प्रकृृति, धर्म के मुताबिक रहने से यह समय असिमित बढ़ता भी है, गलती होने पर जिसका हमें ज्ञान भी नहीं होता, जीव द्रव दूषित होते रहने से बीमारी शिथिलता आदि शुरू होती है, शरीर कमजोर होता जाता है। 50 साल से अगले 50 साल में भी मनुष्य में ठहराव आने के कारण बच्चों के, ज्ञान के बढ़ने से, सेक्स से दूर रहने पर जीव द्रव शुद्ध होना और कभी अशुद्ध होना रहता है। 75 साल के बाद इस छोटी सी कोशिका में जहर इकट्ठा होना शुरू होता है, एक सिरे से और जिस समय जहर से यह पूरी कोशिका भर जाती है, उसी समय मौत हो जाती है। आपकी अच्छी सोच है, तो अज्ञात तरीके से कोशिका का जहर, कम बनता है, कोशिका जहर से खाली होती है या जहर खत्म कर देती है और तब उम्र 120-125 या ज्यादा भी हो सकती है। जापान, अमेरिका लगातार कोशिका पर शोध कर रहे हैं, नई सेल या कोशिका बनाई भी है लेकिन यह असम्भव क्रिया, दिमाग के द्वारा शरीर खुद असानी से बनाता है। निश्चित ही जापान जैसे देश हिन्दुस्तान के चारो वेदों के सहयोग से, हर उपलब्धि कर पायें, लेकिन हर बात समझनें की कोशिश के बाद, केवल दिमाग पर ही रिसर्च माकूल तरीके से होती और वेदों के द्वारा होती तो अब तक विज्ञान सैकड़ों साल आगे होता। कहा जाता है, आकाश की सीमा हो सकती है, मस्तिष्क या दिमाग की नहीं, इसी के द्वारा जीव जो पानी भी पीता है, उसी से संसार के सब अज्ञात तत्व भी दिमाग के आर्डर में शरीर की जरूरत के मुताबिक शरीर ही बनाता है। मनुष्य की नाभी 72 हजार 700 नसों का केन्द्र है और सारा शरीर इन्हीं के द्वारा चलता है।
विज्ञान की पैथी (विधि) है, चीज को बारिक हिस्सों में बाँटो और समझो, ज्ञान की पैथी (विधि) है सबके केन्द्र तक पहुँचों, केन्द्र को हैण्डल करो और सफलता पाओ। केवल विज्ञान में बाँटना एक ऐसी पैथी (विधि) है कि जिसका कोई ओर-छोर ही नहीं होता, इसलिये विज्ञान पूरा होते हुए भी पूरा नहीं है और इसीलिये विज्ञान से होने वाली हर उपलब्धि भौतिक सुख ही दे सकती है जो आखिर में कष्टदायक निश्चित होता है। ज्ञान में सबके केन्द्र में जाना कठिन तो है, लेकिन असमभ्व नहीं। ज्ञान से होने वाली उपलब्धि पूरी होती है और आखिर तक असीम सुखदायी होती है।
विज्ञान और ज्ञान का सामंजस्य सही रखने पर असम्भव उपलब्धियाँ निश्चित होती हंै। भारत के धर्म-ग्रन्थों के मुताबिक, गणेश का सिर हाथी का होना, रावण के दस सिर होना, भीम में असिमित शक्ति होना, हनुमान का हवा में उड़ना सबूत है। उस समय ज्ञान और विज्ञान बेहद बढ़ोत्तरी पर था। आज भी पक्षियों-जानवरों को देखकर उनसे सीखकर नकल करके, अनेक उपलब्धि की है, असम्भव लगने वाली उपलब्धि की है, टेलीविजन, कम्प्यूटर, मोबाइल सबूत है। आज हम महिनों का सफर घटों में करते हंै, पेड़-पौधांे से साल दो साल में फल ले लेते हैं, एक लीटर दूध देने वाली गाय 5 या 7 लीटर दूध दे देती है, बिना बच्चे के गाय, भैंसों से इंजेक्शन लगाकर सालों तक दूध ले लेते है, मुर्गी बिना मुर्गे के अण्डे देती रहती है, यह केवल विज्ञान से नहीं हुआ, यह ज्ञान और विज्ञान से ही संभव है। ज्ञान बिना विज्ञान के चल सकता है, अनेक सबूत हैं, जैसे हनुमान का शरीर जरूरत के मुताबिक छोटा या विशाल करना, हवा में उड़ना, नारद का तीनों लोकांे में भ्रमण करना आदि। जब हम निश्छल दिमाग से सही धर्म, मानव धर्म को लम्बे समय तक अपनाते हैं, तो ज्ञान खुद पैदा होता है और दूसरी पीढ़ी में प्रत्यक्ष नजर आने लगता है। यह ज्ञान सही गुरू मिलने से कुछ जल्द भी हो सकता है लेकिन गलती करने से, ज्ञान नहीं बचता और उपलब्धि करने वाला खुद चला जाता है। अधुरे ज्ञान ने मनुष्य को बेहद गलत समझाया है जैसे मौत निश्चित हैै, सही यह है कि कुदरत, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड ने, गलत चीज बनाई ही नहीं है, मौत जैसी चीज या झूठ फरेब, मनुष्य ने या मनुष्य के अपनों ने बनाये हैं, सबूत है एक परिवार का बड़ा किसी कारणवश, संसार से विमुख हो जाये और जंगल में चला जाये, उस परिवार में अकाल मौत तक हो जाती है, जबकि यह बुड्ढा 100 से उपर तक जीता है। अकाल मौत, हमारी गलत सोच, गलत आचरण या असावधानी होने से आयी। दिमाग के अनियमित होेते ही सेल या कोशिका में अज्ञात रूप से जहर लगातार इकट्ठा होना शुरू होता है और प्राणी 25 साल में ही गुजर जाता है। डाॅक्टर हार्टअटैक जैसी बीमारी बता कर सन्तुष्ट हो जाते हंै। यह सब गहरे शोध का विषय है। हार्टअटैक हुआ लेकिन क्यों, क्या किसी वैज्ञानिक ने कभी सोचा? हार्टअटैक हुआ क्योंकि दिमाग में हार्ट सम्बन्धी नस में कमी आई और हार्टअटैक हुआ, यह गहरे शोध का विषय है, जो वैज्ञानिक कर नहीं पाये, न करने का कारण भी केवल विज्ञान में लिप्त होना ही हैं, जब विज्ञान के साथ ज्ञान का योग होगा, शोध पूरा हो जायेगा और इसके बाद निश्चित अनेक उपलब्धि होगी। अभी अज्ञानतावश हम समझते हैं, हमारे पास ज्ञान है, तभी तो हम वैज्ञानिक हैं, सच्चाई यह है कि हमारे पास दिमाग है, अक्षर ज्ञान है। ज्ञान नहीं।
दक्षिण भारत में अस्पताल का निर्माण किया गया, वहाँ पर नियम है, हल्की आवाज में मंत्रोच्चारण होता रहना है, हर कमरे में, हर मरीज के बेड पर उसके धर्म ग्रन्थ तकीये के नीचे मिलेंगे। सुबह प्रातः ही ड्यूटी की दिनचर्या शुरू करने से पहले बड़े हाल में, पहले सारा स्टाफ प्रार्थना करते हंै और फिर दिनचर्या शुरू करते हंै। कोई रिश्वत नहीं और आॅकडे़ इकट्ठे करने पर 30 प्रतिशत से उपर रिजल्ट $ में मिला, कम मेहनत में मरीज ठीक होते पाये गये, यह कैसे मुमकिन हुआ? अज्ञात है, लेकिन समझ में यही आता है, कि डाॅक्टर के मस्तिष्क में अच्छी भावना आते ही वहाँ का दूषित वातावरण भी शुद्ध और फायदेमंद हो गया, जिस प्रकार, एक फूल, दूर तक खुशबू बिखेरता है, इसी प्रकार चालाक प्राणी के आस-पास होने पर वातावरण दूषित हो जाता है। अच्छे बुरेे इंसान का पेड़-पौधों पर भी अच्छा या बुरा प्रभाव थोड़ी सी गहरी सोच से आसानी से समझा और देखा जा सकता है, इन पर खुशी-गम तक का असर होता है। नारी जाति अधिकतर लालच, प्रवृत्ति उसका गुण होता है और बड़े अधिकतर बुढ़ी और बड़ी नारी अपने से छोटी नारी को खेत या फसल और पेड़ों के नीचे पहुँचने की मनाही कर देती है, यह समझदार नारी खुद या तो पुरूष जाति को वहाँ भेजती है या पुरूष संरक्षण में पहुँचती है, इसी थोड़ी-सी चंेज से पेड, पौधांे, जानवरों में सन्तोषजनक बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है। ऐसी बहुत सारी, ज्ञान की बाते हैं जिन्हे पढ़े-लिखे लोग, दकियानूसी बातें कह कर, मानने वालांे को पागल तक कह देते हैं और अनजाने कष्ट उठाते रहते हैं अधिकतर लोगांे ने अक्षर ज्ञान लिया है, ज्ञान नहीं, और ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती।
विज्ञान बढ़ने के कारण अनेक उपलब्धि निश्चित हुई हैं, लेकिन ज्ञान कम होने से इंसान ने अपनी नस्ल पूरी तरह लगभग खराब कर ली है, आरक्षण जैसा रोग, नारी जाति को आजादी, बेहद नुकसानदायक साबित हो रही है। आज मनुष्य की उम्र 400 साल से घटकर 60 और पैंसठ साल रह गई है, बीमार होने, दवा खाने में शान समझते हैं, हर अत्याचार सह रहे हंै, नारी जाति तो सीना तानकर, आँख मिलाकर गलती करती है और हम कह देते हैं क्या करें? पढ़ाई पर ध्यान हैं लेकिन ज्ञान भूला रहे हंै, बड़ों की कदर छोड़ रहे हंै, बच्चों को ठीक तरह पाल नहीं रहे हंै, नौकर पर कन्ट्रोल नहीं, नेता की गद्दारी पर चुप हैं, वैसे अच्छे खाने, अच्छे कपड़े पर ध्यान हैं और रहने के लिये खूबसूरत ही देखते है, अच्छा नहीं। हमारी आने वाली सन्तान कैसी होगी?
हमारा अस्पताल और अस्पताल विभाग खास है, यहाँ जीवन दान में मिलता है। शहर और जिले भर की मिठाई व खानपान का कन्ट्रोल यहीं से होता है, हर तरीके से सोचने के बाद बेहद जिम्मेदारी और सुधार की अनमोल जगह है। इसकी अनियमितता के कारण हर इंसान जलील, कमीना, नामर्द और गुलाम लगातार होता जा रहा है, यही नहीं इसी के कारण प्रदेश राजधानी का बड़ा स्टाफ गद्दार बनता जा रहा है, जो हर गाँव कस्बे के लोगांे पर अत्याचार बढ़ाते ही चले जा रहे हंै। त्यौहार सब बदरंग होते जा रहे है, गरीब ज्यादा पीस रहा है, डर-डर कर जी रहा है, हलवाई अपना काम छोड़े तो क्या करें? अधिकारी अपने-अपने कर्मचारी को पीस रहे हंै और कर्मचारी जनता को पीस रहा है। इसमें सुधार किस प्रकार किया जाये जो बदलाव आये?
यह समस्या देवता स्वरूप डाॅक्टर और कर्मचारी की भी है, जो मन मार कर अत्याचार करने, अनियमितता करने पर मजबूर हैं। नौकरी छोड़ नहीं सकते, करें तो क्या करें? हर नेता, हर कर्मचारी, हर गैर सरकारी सोच रहा है लेकिन व्यस्त होने के कारण, केवल सोच ही रहा है, कोई विकल्प ही नजर नहीं आ रहा है। हम सब को मिलकर (गैर सरकारी प्राणी, सारे नेतागण, सारे सरकारी प्राणी और सारे विद्यार्थी गण) एकजुट होकर, सुधार करना ही चाहिये नेताओं के पास बहुत काम है, मतलब उन्हें मरीज की सिफारिस न करनी पड़े, डाॅक्टर खुद जिम्मेदार है, वह सिफारिस पर क्यों देखेगा? डी. एम. के पास असिमित काम है, वह मरीज को स्लिप क्यों बना कर दें या कोई मरीज कितना भी सक्षम हो, वह चाहे तो दवा खरीदे, लेकिन उसे यह हक क्यों दिया जाये? मतलब हमें कुछ ऐसा करना है कि सारी सफाई-सुधार एक बटन के दबाने से हो और आगे, अपने-आप होती रहे। हर इंसान इज्जतदार बनने की, कर्मठता में जीने की आदत डाले और सिलसिला लगातार चलता रहे। इसके लिये, कुछ नियम बनाने हंै, जिससे सबको इज्जत भी मिले और नुकसान भी न हो। इसमे खास सहयोग नारी जाति का है या होगा, क्योंकि अधिकतम नारी जाति इस अस्पताल के अन्दर और चारो तरफ, खासतौर से मरीज के संरक्षक के रूप में भी पहुँचती है, इसे अपनी नेचर साफ-सुथरी बनानी होगी, अपनों में व चारो तरफ सुधार की आवाज उठानी और फैलानी होगी, छोटांे में मर्दानगी भरनी होगी, केवल गलती पर नगद जुर्माना राजकोष में जमा करने की युक्ति बतानी होगी। बड़ी शराफत से गलत खाना और गलत सुख त्यागने की कोशिश करनी होगी। नारी खुद देवी रूप हैं, संसार के दुष्टों का कई बार नाश किया है, लेकिन हम नाश नहीं चाहते, चाहते हैं, तो केवल सुधार, जहाँ नारी जाति को भी रहना है, मर्द पैदा करने है, मर्द बनाने हंै, मर्द साथ रखने हंै, नारी जाति को देवी रूप में तब्दील करना है, बस हमें कुछ नियम बनाने हंै और सख्ती से अमल करना है। जो नारी अपने घर की चहारदीवारी में रह कर घर चलाती है, वही संसार चला रही है।
संसार में सच्चाई का प्रतिशत हर वक्त ज्यादा रहती है, जनता को अपना धर्म निभाना ही चाहिये, खासतौर से विद्यार्थीगणों को, खासतौर से सरकार के प्रति, जनता के प्रति और नेता के प्रति वफादार रहें, इनकी किसी भी गलती पर अविलम्ब शिकायत करायें, खुद करें और अधिकारी को चाहिये कि नगद जुर्माना अविलम्ब राजकोष में जमा करायें। आप देखिये, इन गद्दारों की गलती पूरे राष्ट्र और पूरे देश को कैसे जीवन दान देती है, राजकोष बढ़ेगा, महँगाई कम होगी, हर प्राणी गलती से परहेज करेगा और हर इंसान एक-दूसरे का ध्यान रखेंगे। सब जगह बिजिलेन्स केवल दिखावा बनकर रह गई है, हर विभाग इन्हीं की छत्र-छाया में गद्दारी निश्चित कर रहा है और यह नीति विजिलेंस को भी कर्मठ बना देगी।
ड्रग इंस्पेक्टर की ड्यूटी और रैकेट तो ऐसा है कि जवाब ही नहीं है वैसे यह डाॅक्टर दूसरे भगवान जैसे हैं और इनके सहयोग से एक अबोध बच्चा या पागल इंसान भी जान बचा सकते हंै बल्कि बचाते हंै। अस्पताल या प्राथमिक चिकित्यसालय ही नहीं, पूरे शहर में और जिले में फैले केमिस्ट-ड्रगिस्ट हंै, जिनकी तादात कई हजार निश्चित है यह सब फार्मासिस्ट के द्वारा चालित है और हर केमिस्ट की दुकान से 25 से 35 सौ रूपये हर माह पहुँचने का सख्त नियम है, लेकिन एक दो माह पैसे न पहुँचने पर ड्रग इंस्पेक्टर की रेड पड़ती है जिसमें मेन पार्टी कौन सी होगी? पाठकगण जान ही गये होंगे, लेकिन घुन की तरह पिसने वाले अन्य केमिस्ट होते हैं और ड्रग इंस्पेक्टर की दिहाड़ी, ओवर टाइम ऐक्स्ट्रा बनता है, हर केमिस्ट समय से पैसे पहुँचाने के लिये वचनबद्ध होते हंै उनमें मर्दानगी खत्म और गुलामी ही गुलामी आती जा रही है, इधर जिस केमिस्ट ने गलती की थी उससे मोटा चार्ज वसूला जाता है, वह भी हर गैर कानूनी तरीका, कानून में ला कर, जैसे हर केमिस्ट पर ट्रंकलाइजर की डोज मिलती है, जो एक दम बेहद जरूरी है, किसी भी हालत में देसी हकीम, वैद्य या घर के प्राणी तक इससे बच ही नहीं सकते, सिम्पल कम्पोज, जैस ऐलप्रेक्स, सिक्विल आदि, वह भी एक स्ट्रिप और 5 गोली जैसी कम किमतदार। इसे जुर्म बना दिया जाता है, इस एक झटके से आगे सालांे तक, हर केमिस्ट अपने बच्चों को भी ड्रग इंस्पेक्टर की मंथली सबसे पहले बाँधने और पहुँचाने की शिक्षा घट्टी में पिलाते हंै।
जबकि यह केमिस्ट आजाद देश का, गैर सरकारी है और कम से कम भ्रष्ट नौकर से तो बेहद ज्यादा, अच्छा व मजबूत है। यह पूरा अस्पताल और छोटी अदालत मिल भी जाते, फिर भी फैसला केमिस्ट के हक में ही जाता है क्योंकि चोर के पैर होते ही नहीं, सरकारी के पैर अनेक तरीके से, बुरी तरीके से पूरे बँधे होते हंै। कोई कर्मचारी और अधिकारी ऐसा है ही नहीं, जिसने गम्भीर गलती न की हो या आगे एक सप्ताह भी गलती से रूक सकें। बस पंजें झाड़ कर या नहा धो कर पीछे पड़ने की जरूरत होती है और गैर सरकारी आजाद है, भूखा रहकर भी लड़ सकता है, वैसे भी भ्रष्ट के आगे झुकना, अपने वंश को बदनाम और खत्म करने के बराबर है।
दूसरी तरफ एक डाॅक्टर और दूसरे भगवान जैसे के सहायक के रूप में, एक गैर सरकारी केमिस्ट की दुकान खोलकर सरकार को मोटी इनकम और मरीज को दवा मोहय्या कराने के लिये अपना और अपनांे का मोटा पैसा लगाता है, जो उसने और उसके अपनों ने पेट काट-काट कर एक-एक पैसा जोड़ा था। यह पहले केमिस्ट यूनियन की सारी कागजी कार्यवाही पूरी करता है जैसे फ्रीज के सही कागजात, फार्मासिस्ट का संरक्षण, केमिस्ट यूनियन या पूरी यूनियन की फीस और ड्रग इंस्पेक्टर की मंथली पहुँचते रहने के वादे के साथ सारी रिक्वायरमेन्ट पूरी करता है, यहाँ तक कि कम से कम 1 लाख रूपये तक की सब किस्म की सही कम्पनी की सही दँवायंे 30 बाई 30 की दुकान, बिजली की सही फिटिंग, सफाई का पूरा इन्तजाम आदि, ड्रग इंस्पेक्टर के 2000 हजार, एक हजार से 1500 तक फार्मासिस्ट, हर माह के आने-जाने वाले व ऐरे-गेरे, मेडिकल क्लर्क, जैसे अधिकारी का चाय पानी कम से कम 500/-रूपये माह, लम्ब-सम्ब हिसाब देखा जाये, तो कम से कम गैर सरकारी हर दिन 150 से 200/-तक का नाजायज खर्चा वहन करता है, जो निश्चित है, केवल गैर सरकारी मजबूर मरीज से ही जायज-नाजायज तरीके से वसूल कर रहा है, वह भी भ्रष्ट लोगांे के लिये और इसके बाद अपने परिवार और रिश्तेदारों के लिये, जो भीड़ वक्त में कभी साथ नहीं, बल्कि गलत-सही बताने में कभी सक्षम नहीं, कभी जमीर भी नहीं जगाते या इनका जमीर पूरी तरह मर चुका है या गन्दा हो चुका है, वह भी पूरे आँवंे का आँवा या पूरा खदान खराब ही है। बड़ी कड़वी बात है, लेकिन जागृत करने के लिये रामबाण या संजीवनी जैसी दवा है, इसे आप सब खा ही लीजिये और खुद के साथ पूरे समाज, देश और ब्रह्माण्ड का उद्धार कीजिये। यह बेहद बड़ी शिक्षा, हर अधिकारी, हर कर्मचारी के लिये भी हैं। सुधार कीजिये या जनता देख नहीं सकती? भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड से तो बच ही नहीं सकते, कहीं जनता की खोपड़ी उलट गई, तो रहे नाम भगवान का। संसार के सारे मेडिकल सम्बन्धित प्राणीयों को निमंत्रण हैं, आपमें से कोई या सब मिल कर हर अनियमितता का माकूल इलाज करें, जिससे हर अनियमितता का बीज ही नाश हो जाये, हर अनियमितता खत्म करके, संसार को सुनहरा बनायें, खुद को धन्य करें व सब अच्छांे पर एहसान करंे। हर देश में है, हर अनियमितता है। मेडिकल में ही सबूत है कि भारत में ही बाहर से लोग इलाज के लिये आते हैं, क्यांेकि यहाँ इलाज सस्ता है, सीधा मतलब है वहाँ अनियमितता है। मेडिकल सम्बन्धी हर प्राणी भगवान है या भगवान का साथी हैं फिर कोई कैसी भी अनियमितता रह जाये, नामुमकिन है। हर जगह की या कहीं की भी अनियमितता दूर करके सब पर एहसान करें, खुद को धन्य करंे, सबको अपना प्राणी बनायंे। आप या तो डाॅक्टर नहीं हैं, या कहीं भी कैसी भी अनियमितता अब नहीं रहेगी। अब आप साबित करें कि आप सच में डाॅक्टर हैं, और भगवान रूप हैं।

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. हमें ऐसा चलन बनाना है कि सरकारी प्राणी अपने जूनियर से पूरा काम ले, काम की कोताही पर फौरन अपने अधिकारी को सूचित करे और दण्ड के रूप में 50/-जुर्माना फौरन राजकोष में जमा करायें। गलती करने वाले को लिखित में वार्निग दी जाये, निश्चित समय में, दूसरी गलती पर पहले जुर्माने का दस गुना जुर्माना वसूल किया जाये।
02. ऐसा करने वाले या ध्यान रखने वाले कर्मचारी और अधिकारी की, तीन शिकायत पर कर्मचारी को सुधारने का इनाम या प्रमोशन मिलना ही चाहिये, जो ज्यादा कर्मठ हों उसका ईनाम भी ज्यादा हो।
03. किसी भी मरीज को अस्पताल केस को, बाहर से कोई दवा या खाना न खरीदने का नियम बनाया जाये यह सरकारी अस्पताल है और सरकार की गरिमा कम होनी ही नहीं चाहिये।
04. मरीज देखने वाले डाॅक्टर को अपने काम पर विश्वास होना ही चाहिये, अपना तजुर्बा इस्तेमाल करना ही चाहिये, टेस्टिंग का प्रयास कम किया जाये और जो टेस्टिंग करनी है, जरूरी है, उसमें मरीज का कम से कम समय और ज्यादा से ज्यादा सहुलियत का ध्यान रखा जाये लैब में सबसे पहले बाहर से आने वाली दवाआंे की टेस्ंिटग पर ध्यान दिया जाये, जिससे मरीज रिकार्ड समय में ठीक हांे। डाॅक्टर मरीज की भीड़ देखकर पैथी (विधि) के मुताबिक या हताश होने के कारण या जूनियर को सिखाने के कारण अधिकतर टेस्ट लिखते है, पैथी (विधि) के मुताबिक सही भी है, लेकिन मरीज, डाॅक्टर और कर्मचारी सब की सिरदर्दी बढ़ती है, जितना खर्चा और समय टेस्टिंग के प्रपंच में लगता हैं, उतने खर्च में मरीज ठीक हो सकता है, समझना ही चाहिये। देखा जाता है, ट्रेनिंग के दौरान डाक्टरों के बैच के बैच, दिन में कई-कई बार मरीज के खून की जाँच के, बहाने खून लेते रहते है, ऐसे मरीज को ठीक होने में भी समय ज्यादा लगता है।
05. मरीज के किसी टेस्ट के लिये कोई मशीन खराब होने की सूचना देना, अवैध घोषित किया जाये, बाहर टेस्ट कराना है, तो मरीज को टेस्टिंग की पेमेन्ट देकर करायी जाये और रसीद रिकार्ड में रखी जाये।
06. किसी कर्मचारी या अधिकारी की कोई गलती बाद में खुलने पर, उस दौरान के सारे स्टाफ को दोषी माना जाये और सबसे दण्ड के रूप में जुर्माना राजकोष में जमा कराया जाये चाहे, वह रिटायरमेन्ट ही क्यों न ले चुका हो। ऐसे कर्मचारी अधिकारी निश्चित है कि वह अनियमितता का चलन, चला कर चले जाते है और आने वाले कर्मचारी और अधिकारी को मजबूरी में चलन, चलाना पड़ता है और यह चलन, चलता रहता है। हर प्राणी अपने काम से मतलब रखता है, वह मजबूर है, अज्ञानी है। कर्मचारी व अधिकारी पर विश्वास करने के लिए मजबूर है, या समझता है गलती की शिकायत करने से अच्छा है, उसे भूलाकर दूसरे डाक्टर के पास जायें, या शिकायत करने से कुछ नहीं होता, उपर तक सब ऐसे ही हैं। अरे भाई, उपर तक जो हैं वह भी आपने ही बनायें हैं, आँखें होते हुये भी मक्खी खायी है, अब भी समझिये। शिकायत अभी से करें, इन्टरनेट पर चर्चा करें, आगे वोट देने से पहले गलती पर सजा का हक लें। आप नौकर-नेता से काम नहीं ले सकते, तो दूसरों से इन्टरनेट पर कह तो सकते हैं। यह जीना तो है ही, नहीं तो केवल गद्दारी बढ़ानी है, अपनों को सीधा नामर्द बनाना है।
07. अस्पताल में जगह-जगह शिकायत बाॅक्स लगायें जायंे, जिसका चार्ज कम से कम तीन कर्मचारी और अधिकारी के पास हों, एक कर्मचारी तो सबसे छोटे कर्मचारी में से बेहद जरूरी है, बड़े अधिकारी तो शिकायत को छुपा भी सकते हैं या छुपाते हैं। निश्चित ही न. 2 का पैसा कमाने वाले शिकायत छिपा सकते हैं या छिपायेगा, लेकिन स्टाफ में यह बात फैलायी जाये कि गुप्त शिकायत, गुप्त रखी जायेगी और शिकायती को ईनाम का हकदार माना जायेगा, तब दोषी प्राणी बच ही नहीं सकता।
08. डी. एम. और कमिश्नर जैसों के पास मरीज शिकायत लेकर पहुँचते हंै और अधिकारी उन्हें स्लिप बनाकर देते हंै, डाॅक्टर मरीज की रिक्वायरमेन्ट पूरी कर देते है। अगर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) ऐसा नहीं करता, तो डी. एम. तलब करते हैं और डाँट-फटकार करते हैं, यह अधिकारी की गरिमा की बात ही नहीं है। अच्छा यह था कि दोषी डाॅक्टर से कम से कम 5 हजार या ज्यादा जुर्माना राजकोष में फौरन जमा कराते और कहते, और गलती करना। नमकहराम या गद्दार प्राणी पर डाॅट-फटकार का असर होता ही कहाँ है?
09. अस्पताल के नियम हर मरीज के लिये बराबर ही होने ही चाहिये, राशन कार्ड के मुताबिक सुविधा देना गद्दारी फैलाना है, नेताआंे की सिफारिश या धाँधलेबाजी को बिल्कुल तूल न दिया जाये। अस्पताल को अस्पताल ही रखना है, भेद-भाव, औकात या छोटे-बड़े मरीज देखकर बिल्कुल नहीं, कभी नहीं।
10. डाॅक्टर को चाहिये कि मरीज की तादाद से समझें कि सफाई जरुरी है, तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सी. एम. ओ.) के द्वारा, नगरपालिका को चेतायें व नगद जुर्माना कराये, साथ ही सारे स्टाफ के लिये नियम बनाएँ, कि अपने एक किलो मीटर के एरिये में मिलने वाली, हर अनियमितता की शिकायत अविलम्ब करें, सफाई-सुधार करायंे और ईनाम पायें, शिकायत न करने वाले कर्मचारी पर 200 रूपये जुर्माना, हर माह किया जाये या तो आप भगवान का रूप डाॅक्टर नहीं हैं या कोई अनियमितता नहीं रहेगी।



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