Thursday, April 16, 2020

वन और वन विभाग

वन और वन विभाग

सृष्टि की उत्पत्ति होते ही सारी पृथ्वी पर तीन तरफ पानी और एक बड़े हिस्से मंे पहाड़, रेगिस्तान, झील और वन ही नजर आते थे, जो अब भी हैं। लेकिन धीरे-धीरे मनुष्य की बढ़ोत्तरी और उत्थान के कारण जंगल या वन बेहद कम हुए हैं, लेकिन पृथ्वी का बड़ा हिस्सा अब भी घना जंगल और वन हैं, जिसमें अफ्रीका के घने जंगल मशहूर हैं। मनुष्य को जंगलों से शुरू मंे बेहद जानी नुकसान भुगतना पड़ता था। मनुष्य की संख्या सीमित होने से, जंगली जानवर अक्सर जानी नुकसान करते रहते थे। लेकिन मनुष्य के पास वन और जंगल बेहद बड़ी प्रापर्टी के रूप में थे और अब भी हैं।
मनुष्य का शुरू से सारा काम, केवल जंगल से ही चलता था। आग की खोज से पहले आदि मानव या जंगली मनुष्य, तन ढकना और खाना आदि जंगल के द्वारा ही करता था। आग की खोज होते ही तेजी से बदलाव आया। कच्चा माँस और फल, फूल, पत्तों से अपनी खुराक पूरी करने वाला और जंगली कहलाने वाला, मनुष्य लगातार तेजी से बदलता चला गया और आज सभ्य शहरी या पढ़ा-लिखा मनुष्य कहलाता है।
अफ्रीका के जंगलो में अभी भी आदि मानव का वंश या जाति मिलती हैं, जो अपनी रूढ़ीवादिता के कारण लगभग उसी रूप में रहने के आदी हैं। चीन, जापान व अरब देशांे के जंगल भी अभी अनेक खतरनाक अजुबों से भरे पड़े हैं, अनमोल वनस्पति, जंगली जानवर इसमें पलते और सुरक्षित हैं। शुरू में घर का और बाद में कबीले का मुखिया, फिर राजा-महाराजाओं का जमाना और अब जनता का राज आ गया। पीछे जंगलों पर ध्यान कम रहा। लेकिन शुरू से मनुष्य ने जंगलों के द्वारा सारा जीवन गुजारा।
इस समय तो वन और वन विभाग के नाम से अलग विभाग बनाया गया है। यह सच्चाई है कि पूरे देश का सारा खर्च केवल, एक वन विभाग ही चला सकता है। बाकी के सारे विभाग और जनता, केवल वन विभाग से पल सकती है। अनमोल जड़ी-बूटियां, तेल के और कोयले के भण्डार, सोना, चाँदी, हीरे की खानें, अनमोल लकड़ी, जंगली जानवर, अपार सम्पदा वन या जंगल ही तो है। शुरू में मनुष्य के पास विज्ञान कम था, मशीनी युग नहीं था, फिर भी मेहनत पर केवल सारे सुख वनों से उठाते थे और अब तो बड़ी-बड़ी मशीनंे व विज्ञान के सहयोग से आसानी से और ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाया जाता है, लेकिन जंगलों से हर साल मोटा नुकसान भी मनुष्य उठाता रहा है, जैसे जंगलो की आग, वातावरण की गर्मी और तेज हवा के चलने से पेड़ों के आपस की रगड़ से भीषण आग लग जाती है, जिसमें घिर कर अनगिनत जंगली जानवर, पशुु-पक्षी, कीमती लड़की जलकर भस्म हो जाती है और महीनों तक आग ही आग रहती है, जंगल के जंगल साफ हो जाते हंै और लगभग सालंांे-साल बाद ही दोबारा नई वनस्पति जन्म लेती है। आये साल ऐसा नजारा कहीं न कहीं होता रहता है, लेकिन बरसात, सर्दी, दलदल के कारण यह आपदा दबी भी रहती है।
आपदा का नुकसान बेहद बड़ा माना जाता रहा है। लेकिन फिलहाल मनुष्य के कारण इस समय बेहद मोटा नुकसान वन विभाग का हो रहा है, वह भी केवल सरकारी वन विभाग और नेता और नेताओं के कारण। वन विभाग की गद्दारी से, गैर सरकारी, पुलिस विभाग खासतौर से पूरी तरह गड़बड़ाया है और नुकसानदायक हुआ है।
इस समय तो वन विभाग के द्वारा सड़कों के दोनों तरफ राजवाहे, नहर नदी के दोनों तरफ रेलवे लाइन के दोनों तरफ, नये पेड़ लगाकर बेहद बचत के बीज बोये हैं, लेकिन पेड़ों की उम्र ज्यादा होने से बेहद कीमती लकड़ी खराब हो रही हैं, जिसकी कीमत का अन्दाजा भी नहीं लगाया जा सकता। इंचों के हिसाब से बिकने वाली लकड़ी, कितनी खराब हो रही है, सोचना भी नामुमकिन है और यह हो रहा है, वन विभाग की अनियमितता के कारण। जबकि हर माह, हर जगह अरबों-खरबों की लकड़ी चोरी हो गई, बताकर वन विभाग लाखों करोड़ों कमा रहा है, मंत्री कमा रहे हैं, जो किसी खाते में नहीं है। यह केवल लकड़ी का हिसाब है।
सरकार ने पेड़ांे की तरफ बेहद ध्यान दिया। आए दिन मंत्री लोग, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक पेड़ों का रोपण कर, जनता में प्रचलित करने की कोशिश करते आये हंै कि ”पेड़ ही जीवन है“, ”हरियाली ही जीवन है“।
पेड़ कैसा भी हो, निश्चित ही, हमें उससे आक्सीजन, फल-फूल पत्ते, लकड़ी मिलती है, वातावरण साफ रहता है, प्रकृति का चक्र पूरा होता है। लकड़ी से इमारती लकड़ी के रूप मंे बेहद बड़ी जरूरत पूरी होती है, कागज जैसी खास चीज की, हर समय की जरूरत पूरी होती है, लकड़ी के द्वारा और लकड़ी के काम से बेहद बड़ा कारोबार चलता है, आरा मशीन, लकड़ी पर नक्काशी, खिड़की, दरवाजे से लेकर मेज, कुर्सी, पलंग, स्टूल लगभग सब घरेलु सामान बनता है, जिसमें चम्मच थाली से लेकर लगभग हर बर्तन तक बनते हैं और हर दिन की जरूरत ईंधन के रूप में बेहद बड़ी मिकदार (मात्रा) में उपयोग होती है। रेल विभाग, रोडवेज जैसे महकमे में लकड़ी का बेहद खर्च है, बच्चे के घड़िलने से लेकर बन्दूक के बिट तक बनते हैं। लकड़ी ही जीवन है कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी और यह जंगल इस लकड़ी का सबसे बड़ा स्रोत है।
जहाँ बेतरतीबी से लगे पेड़ होते हैं, वही जंगल कहलाते हंै। अब से ही नहींें सृष्टि बनने के फौरन बाद ही मनुष्य ने होश सम्भालने से पहले ही पेड़ों का सहारा लिया और होश सम्भालते ही पेड़ों को लगाना, उनकी परवरिश और उनसे फायदा उठाना चलन में रहा है। जिस मनुष्य या किसान ने खेत और पेड़ दोनों पर बराबर ध्यान दिया है, वह सफल व सक्षम किसान बना है।
यह समय विज्ञान का युग है और विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि पेड़-पोधे भी जीव हंै और हर चीज पेड़-पौधों से ली जा सकती है या बनाई जा सकती है। रबड़ जैसी उपयोगी चीज भी पेड़ की ही देन है, जिसे डनलप जैसे मनुष्य ने सालों की मेहनत के बाद खोज निकाला। पेड़-पोधे ज्ञान के रूप से देखंे तो भी शुभ-अशुभ, खुशी-गम सारे संकेत देते हंै।
इन पेड़-पौधों में मनुष्य या और जीवों की तरह एक छोटा सा दिमाग या मस्तिष्क होता है। छोटा सा जो जड़ के शुरू होने से पहले और तने के खत्म होने की थोड़ी सी जगह में होता है और इसी मस्तिष्क के कारण पूरे पेड़ का सही तरह से संचालन होता है। इसकी जीवन लीला की सम्पूर्ण क्रिया होती है। इसमें सहन शक्ति, हर जीव की तरह डर, खुशी, गम, दुःख, दर्द, बीमारी, उत्तेजना, शर्माना किसी के प्रति संवेदनशीलता जैसे गुण भी हैं।
यह सब बातें इसके उपर दूसरों के द्वारा असरदार भी होती हैं। धर्मग्रन्थांे के मुताबिक पेड़-पौधो की अपनी भाषा तक होती है, जो पहले सतयुग के जमाने में बोलते, सुनते या समझते थे, यह झूठ नहीं। देखा गया है कि पेड़ के नीचे गमगीन मनुष्य या जानवर के कुछ समय बैठने पर इसके फलने-फूलने में अन्तर आ जाता है। अगर सुन्दर म्युजिक, खुशी या सुन्दर गाने या खुशियाँ मनाई जाये, तो इसकी बढ़त व फलने-फूलने क्रिया में तेजी आ जाती है। वन में दलदल और कीटभक्षी पेड़ भी होते हैं, जो जीव-जन्तु ही नहीं बड़े-बड़े जानवरों को जैसे भैंसा, सूअर, घोड़ा और गाय को अपनी शाखाओं की चपेट में लेकर, कुछ समय में निर्जीव करके, उनको निचोड़ कर जर्जर कर देते हैं। पेड़ों में संवेदनशीलता मनुष्य की तरह ही होती है, तेज हवा, गर्मी, सर्दी सब इनके लिए दुःखदायी है। यह सुख, दुःख, दर्द, बीमारी, इलाज सबसे ओत-प्रोत हैं और यह हर जीव के साथी हैं। मनुष्य तो पेड़-पौधों के लिए खास है, दोस्त भी दुश्मन भी।
पेड़ बोलते हैं और सुनते-समझते है। इनके अनेक सबूत हैं और गहरे शोध का विषय भी है। पुराने, लोग जो प्रकृति पर खास ध्यान देते थे व पेड़ों के संकेत समझ कर भविष्यवाणी तक करते थे। आज भी कोई चाहे तो, पेड़ के पास जाकर समझने की और उसको पढ़ने की कोशिश करेें, तो कुछ समय की प्रैक्टिस के बाद, अजीब-अजीब तजुर्बे निश्चित होते हैं। जिस प्रकार मनुष्य की अंगुली और अंगुठे के निशान दूसरे किसी मनुष्य से नहीं मिलते, इसी प्रकार हर पत्ते के निशान दूसरे किसी पेड़ के पत्तों के निशान से नहीं मिलते। जबकि पेड़ एक नस्ल के है और असंख्य हैं। पत्तों के निशान अलग-अलग ही हंै।
पेड़ों से बात करने की या समझने की आदत के बाद हर रोग, हर व्याधा का सफल निदान निश्चित है।
भारत में तो पीपल, तुलसी, बरगद, केले जैसे पेड़ांे की पूजा-अर्चना आज भी होती है और अज्ञानतावश भी मनोकामना पूरी होती है। जबकि ध्येय उसको पालना-समझना होना चाहिये इसके हर अंग व हर चीज जैसे फल, फूल, पत्ते, जड़, तना, बक्कल, छोटी जड़, बड़ी जड़, बारीक जड़, सबका रोल अलग-अलग है और फायदे और नुकसान अलग-अलग है। इस सबका वर्णन या व्याख्या जितना किया जाये कम है। अनगिनत पेड़ हैं और एक पेड़ की खुबियों में कई-कई ग्रंन्थ भरे जा सकते हैं और हम लिख चुके हंै, इसकी कभी गारण्टी नहीं दी जा सकती। क्योंकि असीमित ज्ञान, पेड़ के गर्भ में है, जिसे टटोलना किसी एक के बस का नहीं तथा अनेक के बस का भी नहीं, घास से लेकर छोटे पेड़, बेल एक साल, दो साल उम्र के पेड़ और बहुवर्षीय जीने वाले पेड़ो में, अलग-अलग सम्पदा उनके गर्भ मंे है, उनके अन्दर हैं, जो ब्रहमाण्ड के बारे में भी ज्ञान रखते हैं। अज्ञानी मनुष्य इन बातों को सोच भी नहीं सकता। ज्ञानी पुरूष या जीव इनके ज्ञान या इनके संकेत समझने के बाद ही ज्ञानी जीव या महापुरूष बने हैं।
समझा जा सकता है कि गौतम बुद्ध जैसे मनुष्य खासतौर, इनको पढ़ कर ही भगवान के रूप में पूजे जाते हैं, इनकी भाषा समझकर ही भगवान बने, कोई भी महापुरूष इनके सम्पर्क के बिना महान बन ही नहीं सकता। जिसे भगवान बनना हैं, पेड़ पौधों को समझे, पढ़े, शिक्षा लें, सहारा लें तभी मुमकिन है कि वह भगवान बनेगा।
ऐसा कोई युग या समय नहीं है जिसमें पेड़-पौधों की पूजा या इबादत न होती हो। यह सेम ऐसे ही है जैसे इन्हें समझना, बात करना, इन्हें पढ़ना, इनकी सहायता या सहयोग लेना, इस्तेमाल करना तक शामिल है। इनको लगाना या पालना, लगाने या पालने वाले की नेचर या ध्येय के मुताबिक फायदेमंद या नुकसानदायक होते हैं, इसके अनेक सबूत हैं, जो तजुर्बे के बाद ही समझ मंे आते हैं, एक नारी, बच्चा या पुरूष केवल पूजा या अर्चना करता है और मन बुद्धि से साफ व सच्चा है, एक-दूसरे के प्रति भेदभाव, चालाकी या झूठ फरेब नहीं हैं, तो बाद के फल अनेक खुशियों से भरपूर होते हैं, हर इच्छा पूरी होती है, इसके विपरीत धोखा, झूठ, फरेब, दिल दिमाग में है, तो आपकी एक कामना पूरी होती जरूर है, लेकिन अनेक व्याधा, चिन्ता परेशानी न आये मुमकिन ही नहींें है और खुलासा सबूत है। एक मंत्री या प्रधानमंत्री महोदय लालचवश, एक पेड़ का रोपण करते हैं, अखबार, दूरदर्शन पर फोटो आते हैं, दुनिया भर की चर्चा होती है। जनता पेड़ लगाना सीखती है, अनेक फायदे नजर आते हैं। बेहद मोटा खर्च होता है और बेहद कीमती समय सबका खराब होता है, हर अधिकारी, हर नेता परेशान होते हैं।
मतलब बेहद फायदेमंद समझ कर पेड़ लगाते हुए फोटो खिंचवाते हैं। लेकिन बेहद मोटे नुकसान को, हम नजरअन्दाज कर जाते हैं, तो मोटा नुकसान करने में नुकसान करवाने में, हम भी शामिल हुए हंै, हफ्तों पहले प्रोग्राम बना, मतलब हर अधिकारी, हर नेता हफ्तों से नुकसान की तरफ बढ़ते हैं, फिर पेड़ रोपण का समय आया और काम पूरा हुआ। इसके बाद मीडिया से लेकर जनता तक की ड्यूटी बन गई, कि उसे देखे, चर्चा करें, खुशियाँ मनायें, तारीफ करें। बच्चों-बड़ो में, घर-बाहर चर्चा करें और यह प्रोग्राम अगले दिन से लेकर हफ्तो-महीनों तक चल सकता है, चलता है, इसमें कुछ लोग तो निश्चित ऐसे होंगे कि सालों तक फोटो और उसकी चर्चा करना-सुनना या सुनाना चलता रहेगा। मैंने फला सन् में फला दिन, राष्ट्रपति जी के साथ पेड़ रोपण किया था। ऐसा हुआ, वैसा हुआ आदि।
इतने बड़े देश में इतने सरकारी जिम्मेदार प्राणी, सारे नेतागण, आई. पी. एस., पी. सी. एस. अधिकारी ही नहीं जनता में भी महान विभूतियों के होते हुए, खुद कोे ही समझने वाला या समझाने वाला या इशारा करने वाला ही नहीं हुआ, जो सही इशारा भी कर सकता हो।
हमारे एक अधिकारी की ड्यूटी है कि अपने स्टाफ से कर्मठता से काम ले। नेता की ड्यूटी है कि कर्मचारी और अधिकारी की कर्मठता और उनकी परेशानी का पूरा ध्यान रखें, जिससे कर्मठता बढे़, एक-दो पेड़ लगाने में अगर नुकसान को भूलाकर खर्च जोड़े, तो पूरे प्रदेश में, बड़े प्रदेश में करोड़ों के पेड़ लगाये जा सकते थे और टोटल नुकसान को भी जोड़ दंे, तो पूरे देश में पेड़ रोपण हो सकते थे। सौ रुपये की दिहाड़ी में एक मजदूर सैंकड़ांे पेड़ निश्चित एक दिन में लगा लेगा। निकम्मे से निकम्मा मजदूर पचास, सौ पेड़ तो लगा ही देगा।
अधिकारी सही ड्यूटी अगर निभाते, तो केवल अपने पी. ए. को आर्डर करना था, कुछ सेकेण्ड का काम था, आवाज निकालते ही हमारी फौज जैसी बड़ी सरकारी प्राणी की भीड़ और नेतागण व सारे गैर सरकारी प्राणी, पेड़ लगाते ही नहीं, परवरिश भी करते और सारी समस्या दूर होती। इस नुकसान का अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता। सब अधिकारी या नेता सीख लें कि केवल पगार के लिये या नोट और झूठा परपंच ही करना हैं, तो आने वाला पूरा समाज, कर्मठता से दूर होता चला जाता है और हर अनियमितता व व्याधा आती है।
ज्ञान की दृष्टि से देखें तो एक नेता ने, साथ ही पूरे सरकारी वर्ग ने, ड्यूटी गलत करके, अपना धर्म तोड़ा, तो उनके मातहत, उसकी छाया में रहने वाले हर प्राणी, उनके साथी सब, सजा के अधिकारी बन गये, जनता जिसने देखा और धर्म तोड़ा, सजा के हकदार बन गयी। अब होती है सजा की शुरूआत, पता लगता है सरकार के पास पगार देने के लिये पैसा कम है, इस माह पगार देर से मिलेगी, पूरा सरकारी विभाग परेशान, हर नेता बेचारे इतना पैसा होते हुए भी, पैसे की भूख से परेशान। जनता की आये दिन गाली खाना, पिक्चर अखबार द्वारा, हर दिन बेइज्जती कराना, कठोर सजा है।
अब जनता की सजा पर भी नजर डालें, बेहद मेहनती, पेट की रोटी, बचाकर बढ़ोत्तरी करने वाला जीव, केवल दूरदर्शन पर देख रहा था, अखबार पढ़ रहा था, गलती की शिकायत भी नहीं की, केवल यही गलती की थी, गैर सरकारी अब बेचारा मँहगाई भुगत रहा है। हर अत्याचार भुगत रहा है, फिर भी टैक्स देता है। हर परेशानी है, ना बिजली है, ना पानी है, हर दिन नेता के चुनाव से, आने वाली हर व्याधा भुगत रहा है, लालचवश पेड़ रोपण किया, अपनी ड्यूटी भूल गया। इस कारण कठोर सजा भुगत रहा है, हर सरकारी प्राणी और नेता, हर सुविधा व मोटी पगार पाते हुए भी मन में शान्ति नहीं, शरीर निरोग नहीं, पारिवारिक परेशानी अलग, इसके बाद भी पूरे देश की हर अनियमितता का असहनीय नजारा। विजीलेंस, हर सिक्योरटी होते हुए भी मौत का हमेशा डर, हर एक की बुराई करती आंखों का डर, कठोर असहनीय दुःख निश्चित है। सीट कब छीन जाये यह ड़र, मौत से भी बुरी जिंदगी निश्चित है।
गांधी जी ने तीन बंदर बनाकर बेहद बड़ी शिक्षा दी थी। पहला किसी की बुराई मत करो, लेकिन चुप रहकर सुधारो, दूसरा बन्दर कान बन्द रखो, मतलब बेकार की बात मत सुनो और कर्मठ रहो। तीसरा बन्दर आँखें बन्द रखो, मतलब गलत देखो मत या फौरन सुधार करो, कर्मठता छोड़कर कुछ भी देखना किसी काम का नहीं।
आज का दूरदर्शन देखो, मैंच देखो, सीरियल देखो, समाचार देखो। केवल इतना देखकर कुछ समय में ही नारी हो या पुरूष गलत ना बन जाये, धर्म ना टूटे या कर्मठता कम ना हो, नुकसान की तरफ न बढ़े, ऐसा होना नाममुकिन है, कोई भी तजुर्बा कर सकता है। इसीलिये गांधी जी ने तीन बन्दर दिये, लेकिन दिमाग और सोच गलत होने से हम गलत ही समझते हैं। बोलना, देखना, सुनना प्राकृतिक देन है। इसे रोकना रब का नियम तोड़ना है। सच बोलो या चुप रहो। सही देखो या अँाखें बन्द रखो, सही सुनो या कान बन्द रखो। लेकिन सुधार करने के लिये वचनबद्ध रहो, यही तीन बन्दर के, तीन मामुली से ध्येय थे। जिनको हम छोड़कर या बदलकर, घर से लेकर बाहर तक, हर अनियमितता बढ़ा रहे हैं और गलती करने की सजा भुगत रहे हैं।
बात वन विभाग की चल रही थी और विवरण में जायें, तो सरकारी प्राणी और नेताओं की अनियमितताओं का भण्डार नजर आयेगा, जो दिनों-दिन तेजी से लगातार बढ़ोत्तरी पर है, सारे सरकारी विभाग, विजिलेंस, खुफिया विभाग, सी. आई. डी. साथ ही सारे नेतागण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पूर्ण रूप से अनियमितता में सहयोगी हैं या लिप्त हैं, और नमकहरामी की पगार ले रहे हैं। 70 साल हो गये हैं। 100 साल में 30 कम है, या तो सब सुधरेंगे या रहे नाम राम (अल्लाह) का।
वन से लकड़ी की चोरी भी तसल्ली से स्कीम बनाकर होती है। साहब को कहने की या बातचीत की जरूरत ही नहीं होती, तारीफ की बात तो यह भी है, कि चोरांे के सरगने को भी सामने आने की जरूरत नहीं होती, पैसे का लेन-देन भी इस तरीके से होता है कि महसूस ही नहीं होता। यहाँ तक की विजीलेंस भी फेल हो जाती है। छोटी-मोटी चोरी में केवल चपरासी और उसका छोटा अधिकारी ही काफी है। छोटी-मोटी चोरी कभी-कभी कागजों में दिखाने के लिये ही उजागर होती है और छोटे-मोटे जुर्माने की अदायगी पर ही रफा-दफा कर दी जाती है।
बड़ी चोरी अब तो बड़े वैज्ञानिक तरीके से होती है, उस समय साहब दूर होते हंै या छुट्टी पर होते हैं, पेड़ो की कटाई और लदान केवल, अंधेरा होने के बाद सुबह के भोर होने तक निबटानी होती है और सफलता के साथ निपटा दी जाती है, चोरी अगर छः पेड़ों की हुई है, तो आपको चार के निशान ढूंढने पर मिल पायेंगे, यह तो महसूस होगा कि पेड़ कटे हंै, लकड़ी गई है लेकिन बात एक अधिकारी और उसके ग्रुप में ही होती है, एक सप्ताह बाद तो बिल्कुल ही बात आई-गई हो जाती है।
खैर (कत्था) के पेड़ जैसी सम्पदा देखते-देखते गायब हो जाती है। वैसे ये वन विभाग हर तरीके से सक्षम हैं, लेकिन सारी सक्षमता माल पचाने, नेताओं में माल बाँट कर खाने में ही उपयोग होती है। कभी-कभी तो देखा गया है कि कुछ दूरी पर बस्ती हैं, लेकिन वहाँ रहने वाले भी यहीं कहते हैं कि शाम को तो पेड़ थे, लेकिन सुबह उसके निशान भी नहीं मिले, क्या हुआ? कैसे हुआ? कोई नहीं जानता, पेड़ काटना, उनके टुकड़े करके उनका लदान और सही जगह पहुँचाने तक निश्चित ही पुलिस भी मोटा पैसा खाती है, तब ही माल खप पाता है। कमाई के, वन विभाग में अनगिनत तरीके हैं, जिनमें कुछ चोरी करने वाले बताते हैं और कुछ साहब प्रोग्राम के तहत, बताकर कर देते हैं। जैसे जलाने की बेकार लकड़ी बताकर, ट्रक में नीचे कीमती लकड़ी भरकर बाहर निकाल दी जाती है और कागजों का पेट भर दिया जाता है, उपर वालों को देखने या तहकीकात करने की जरूरत ही नहीं होती। मंत्री जी जैसे सारे सुख छोड़कर, जंगलों में मारे-मारे कहाँ फिरने वाले हैं? बैठकर कुछ परसेन्टेज पर ही खुश हैं, फिर इनके पास अधिकारी को, नाजायज तबादला करनेे जैसे कमाई के मजबूत साधन या बेहद बड़ा काम निश्चित हैं। कौन कहाँ नहीं जाना चाहता यह जानकारी पैदा करना बेहद आसान है।
नई भरती, वन विभाग की कमाई का अलग साधन है। यह कहना सही हो ही नहीं सकता कि सरकारी प्राणी और नेता केवल पगार के लिये ही काम करते हैं, पगार के अलावा कितना मिलता है या कहाँ कितना देकर, ट्रांसफर करना है और वहाँ जाकर इतना मिलेगा, इसलिये ट्रांसफर कर लो, केवल सेंटर की नौकरी में अभी बहुत सी जगह बची है और कुछ डर भी बचा है। केवल उपर के खाने के चक्कर में वन विभाग छोटा और फायदेमंद, तो रहा ही नहीं। हाँ पगार जरूर सरकार को ही देनी पड़ती है। जबकि सब जानते हैं कि रिशवत खाने वाला, दस रुपये खाकर हजार रुपये का नुकसान नहीं, तो पाँच सौ रुपये का नुकसान जरूर करता है।
संक्षिप्त में कहा जाये तो वह यह है कि नुकसान को रोका जाये, यह नुकसान रोकना सबको एक दम नामुमकिन नजर आता है, पैसे की कमाई निश्चित है, नौकरी करने वालांे ने बेहद शानदार पच्चीस और पचास लाख के मकान, अपनी थोड़ी सी सर्विस में बनाए हैं, जोकि केवल पगार में बनाना नामुमकिन है, अब सवाल यही पैदा होता है कि गद्दारी कैसे रोकी जाये? सरकारी कर्मचारी और अधिकारी या नेता तो गद्दारी रोक ही नहीं सकता, एक चोरी रोकते हैं, तो बड़ी चोरी होती है या, मोटा नुकसान दिखाकर, मोटा फायदा उठाते हैं, नेता रोकते हैं, तो पार्टी नाम पर, नेता बेहद मोटा धन इकट्ठा करते हंै। यह काम कर सकती है, तो वह है, जनता।
वन विभाग की मोटी कमाई का एक साधन और भी है और वह है जंगली जानवर। जानवरों की खाल, हड्डी, दांत, अंगों में सींग, खुर की स्मगलिंग (तस्करी) का यह धन दूर-दूर तक पहुँचता है। हाथी, शेर, हिरण, जंगली सूअर आदि छोटे-मोटे जीव का शिकार तो, आम आदमी करके दिनचर्या चलाते हैं।
सरकार अगर हक देती है जनता को, तो नियम में बाँधकर, खुद गैर सरकारी आदमी, सरकारी प्राणी को कैसी भी अनियमितता करने लायक नहीं छोड़ेंगी। विजिलेंस मीडिया सब गड़बड़ा गये हैं। अगर जनता को उकसाया जाये, तो जल्द ही इनकी पोल खुल सकती है और सजा देने की छूट बनाकर खुद को व सब को धन्य करंे। इसके लिये कुछ नियम लागू करने होंगे और सख्ती से अमल में लाने होंगे। संसार के सारे वन विभाग के प्राणीयों को व सब को निमंत्रण हैं कि कोई भी या सब मिल कर कहीं की भी, हर अनियमितता को मिटायें और सब अच्छों को बचाकर, सारा संसार सुनहरे कर दी जाये तो रहे नाम अल्लाह का, या सरकारी कर्मचारी को सच्ची शिकायत पर इनाम और प्रमोशन (तरक्की) दी जाये, तो सफाई-सुधार जल्द हो सकते हैं। ा

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. कोई भी चोरी या नुकसान होने पर, कागजों में, वहीं के गैर सरकारी लोगों के हस्ताक्षर, वोटर/आधार नंबर साहित होने चाहिये।
02. वन विभाग के कर्मचाारी और अधिकारी की ड्यूटी बनाई जाये, कि वह जहाँ रहते हैं वहाँ की हर अनियमितता (चाहे कोई हों, कैसी भी हों) की शिकायत, विभागीय स्तर या व्यक्तिगत रूप से, एक माह में जरूर करनी होगी। जो प्रदेश और देश से सम्बन्धित हो। निश्चित ही, यह शिकायत किसी की करेंगे, तो दूसरे भी प्रोत्साहित होकर गलती की शिकायत करेंगे और सुधार-सफाई हो सकेगी और होती रहेगी। सरकारी प्राणी यह ड्यूटी लेकर धन्य होंगे, क्योंकि इसी मिट्टी में आपके पर-पोते भी खेलेंगे।
03. गलती पाये जाने पर पगार और ओहदे के मुताबिक नकद जुर्माना अविलम्ब राजकोष में जमा कराया जाये मुजरिम के मातहत, साथी और अधिकारी को भी दोषी मानकर चाहें, थोड़ा हो लेकिन, जुर्माने के हकदार यह भी माने जाये और निश्चित समय में दूसरी गलती पर पहले जुर्माने का कम से कम पाँच गुना जुर्माना जमा कराया जाये तीसरी गलती पर, दस गुना जुर्माना निश्चित किया जाये।
04. जनता में यह बात चर्चित की जाये कि शिकायत पर इनाम और सरकारी नौकरी तक मिलती है, जिससे वह खुद ज्यादा ध्यान रखें। गैर सरकारी की शिकायत पर फौरन से पहले, अमल किया जाये और दूध का दूध व पानी का पानी किया जाये, शिकायतकर्ता को थोड़ा पैसा देकर, उसको प्रोत्साहन किया जाये, जिससे यह गैर सरकारी सुधार-सफाई में अग्रसर रहें और बेरोजगारी खत्म हो। साथ ही बेरोजगारी के कारण, गैर सरकारी प्राणी, गैर कानूनी कामों से भी बचा रहे।
05. हर सरकारी प्राणी को पार्टी के चन्दे, जैसी बीमारी से दूर रखा जाये, क्योंकि इन बातों से भ्रष्टाचार और गद्दारी बढ़ती है, सरकारी विभाग और नेतागण दोनों में। साथ ही महंगाई बढ़ती है।
06. शिकायत और सुझाव पेटी, हर गाँव और जंगल के रेस्ट हाउस में जिम्मेदारी से बनाई और रखी जाये, जिससे इन्हेें डर रहे कि शिकायत हो सकती है। शिकायत और सुझाव रजिस्टर में बाकायदा एंट्री अप-टू-डेट होनी अनिवार्य हो, नोटिस बोर्ड पर, हर माह की शिकायत गिनती, लिखी जायें। साथ ही शिकायत बाॅक्स की, तीन गैर सरकारी की मौजूदगी में गिनती हो। शिकायत न आना महानता है लेकिन विजिलेंस को अलर्ट हो जाना चाहिए कि कहीं जनता या सरकारी प्राणी डरने के कारण शिकायत तो न कर रहे हों।
07. ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम पर सख्ती से पालन किया जाये और सजा में नकद जुर्माना राजकोष में जमा करना है, माना जाये, बोर्ड पर अंकित हो।
08. आरक्षण जैसा रोग खत्म किया जाये या यह आरक्षण पढ़ाई तक सीमित रखा जाये वह भी पढ़ाई को मजबूत करने के लिये, न कि विभाग में नौकरी में छूट देने के लिये। परीक्षा और इन्टरव्यू टेलेन्ट देखने के लिये होते हैं, आरक्षण नहीं।
09. कोई (सार्वजनिक ऐसे काम जिनके लिये, पूरा विभाग कार्यरत है), नेता को करने की इजाजत ही, न दी जाये अगर वह शौकिन हैं, तो ड्यूटी के बाद, अपने लाॅन या खेत पर यह काम करे। वह भी अपने बीवी-बच्चों के साथ, ना की सरकारी कर्मचारी या विभाग के आदमियों के साथ तो, कभी नहीं।
10. पाठकगण कोई और सुधार की माकूल तरकीब या कोई विभाग की गलती बताना चाहे या लिखे हुए में सुधार चाहते हंै, तो सुझाव के लिये आमंत्रित हंै। आपका स्वागत है।
11. कोई कर्मचारी, अधिकारी और नेता या गैर सरकारी प्राणी अगर शिकायत करने या सुझाव देने में हिचकते हैं, तो निम्न पते (हमारे पते) या नजदीकी सूर्योदय आॅफिस के पते पर 5/-रुपये के डाक टिकट या लिफाफे के साथ तथा तीन प्रार्णियों के हस्ताक्षर (वोटर/आधार नम्बर के साथ) हम तक भेजें। शिकायतकत्र्ता अगर चाहता है तो शिकायत गुप्त रखी जायेगी और दोषी व्यक्ति पर कार्यवाही भी होगी।
हम सब एक-दूसरे से हैं, एक-दूसरे के लिये हैं। हम सब एक हंै। एक-दूसरे की सफाई-सुधार करना और ध्यान रखना ही पड़ेगा, हमारी आने वाली नस्ल हमारे से बढ़िया लानी हैं, उनको खास बनाना है। सब जगह जन्नत, स्वर्ग नजर आना ही चाहिये। इसके अलावा अब इन्टरनेट का जमाना है, हर शिकायत इन्टरनेट पर जरूर करें जो हमेशा सबूत रहे और सुधार करने की आदत बने। हर प्राणी आमंत्रित है, पुरूष, महिलायें व विद्यार्थीगण, आप सब पढ़े लिखे अच्छे खानदान से हैं, आप (बेताज) बादशाह हैं। कोई भी अनियमितता, जुलूस, जाम, जगराता, सड़क रोक कर पूजा-इबादत तक या किसी नेता, सरकारी कर्मचारी, अधिकारी की कोताही बिना डर के इन्टरनेट पर डालें, आप आने वाली परेशानी पर ध्यान जरूर दें कि न हो। इसके लिए किसी नारी का नाम, वोटर/आधार नम्बर डालें। नारी निडर होती है। दो-चार साथियों का बड़ों का व अन्य का नाम व वोटर/आधार नम्बर डालें जिससे जल्द ही ध्यान जाये और परेशानी उठाये बिना सुधार हो। ध्येय सुधार का ही हो, साबित होगा आप सच्चे प्रेमी हैं और सबसे प्यार करते हैं व हिन्दुस्तानी हैं। आप किसी मजलूम की ही नहीं, देश व संसार के अरबों लोगों को मजबूत बना रहें हैं। धरती को स्वर्ग बना रहें हैं। सबसे बड़ी बात, अनियमित व गद्दार को व उसके परिवार के वंश को गन्दा होने से बचा रहे हैं। एक अबला नारी का नाम देकर उसे महाशक्ति बनाकर या साथीयों को यहाँ मर्द बनाकर अधर्म का नाश कर रहे हैं।


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