Thursday, April 16, 2020

शिक्षा और शिक्षा विभाग

शिक्षा और शिक्षा विभाग

सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही शिक्षा की शुरूआत हुई। शिक्षा, अक्षरों के ज्ञान का नाम नहीं हैं, अपितु एक-दूसरे को समझना या एक-दूसरे को समझाना ही शिक्षा है और शिक्षा देने वाला गुरू की श्रेणी में आता है। हर जीव, निर्जीव एक-दूसरे के गुरू हैं। गुरू में छोटा-बड़ा नहीं होता, केवल गुरू होता है। कोई ऐसा जीव सृष्टि में नहीं है, बल्कि निर्जीव तक नहीं है, जो शिक्षक या गुरू न हो या शिक्षा लेने वाला न हो। एक दूसरों को समझना या समझाना, यह किसी एक भाषा में होता है, जो दूसरे के दिमाग से मेल खाये, इसको सीखना और सिखाना ही शिक्षा है। यह शिक्षा प्राचीन काल से सब देश में है। भारत में भी है और मशहूर है, भारत के तिब्बत में सन् 0001 ई. में बेेहद बड़ा विद्यालय था, जहाँ चीन, जापान तक से शिक्षा लेने यहाँ पहुँचते थे। गुरूआंे की पगार नहीं होती थी। शल्य चिकित्सा, खेती बाड़ी तक का यह शिक्षा संस्थान था। वहाँ खाने का मेस था, बड़ा स्टाफ था। भारत की शिक्षा पद्धति आदिकाल से मशहूर है, जिसका खर्चा राजा-महाराजा उठाते थे और संस्थान की अपनी खेती बाड़ी भी थी। भारत के राजा, महाराजा के अलावा, सारे मुल्क इसके सहयोगी थे।
उस समय गुरूआंे की खास कद्र भी थी, गुरूओं की महिमा कभी कम नहीं होगी और शिक्षा कभी खत्म नहीं होगी, कोई भी जीव ऐसा नहीं, जो हमंे ज्ञान नहीं कराता। अगर किसी ने हमें कुछ बताया है या सिखाया है, तो वह हमारा गुरू है, लेकिन हमंे कम ज्ञान होने से कोई, हमें कितना भी सिखाये, उसे गुरू नहीं मानते और हम जिसे गुरू मान लंे, तो वह चाहे कुछ न बताये, नजर न आये, हम उसके प्रति पूरे अर्पण होते हंै और सीखते हैं।
पहली गुरू हमारी माता है और वह हमंे सब कुछ सिखाती है। हमें पैदा तो करती ही है, परन्तु सच्चाई में हमारे पिता की अद्र्धागिनी होती है और उसकी आज्ञा में या आर्डर में, हमें सिखाती है। थोड़ा सा बड़ा होने पर, हमें स्कूल में शिक्षा के लिये भेजा जाता है। शिक्षक, शिक्षा के मुताबिक एम. ए. और पी. एच. डी. तक अथाह गुणवान बनाते हंै, माता गुरू से लेकर, बड़े से बड़े गुरू की कद्र बराबर होती है, इनमें छोटा कोई नहीं होता और समझदार इंसान, इनकी कद्र करके सबकी कद्र करना सीखता है।
पहले तो राजा, महाराजा के बच्चे भी जंगल में, गुरू के आश्रम में शिक्षा के लिये जाते थे। जहाँ राजा का पुत्र होते हुए, अनेक कष्ट उठाकर, बिना कोई कष्ट महसूस किये, शिक्षा ग्रहण करके कामयाब होते थे। गुरू की आज्ञा सर्वोपरि होती थी, गुरू अजीब-अजीब परीक्षा से उन्हें गुजार कर, मिट्टी से सोना और पारस बनाता था। राजकुमार होने पर भी गुरू की आज्ञा से शिक्षा के अलावा, कोई लालच नहीं होता था। कुछ समय पहले तक घर का बड़ा, माँ, बाप, अध्यापक से कहते थे, बच्चा आपका माँस-माँस तुुम्हारा, हड्डी-हड्डी हमारी। आज भी सब जानते हैं, रामचन्द्र, कृष्ण, राणा, सुभाष केवल गुरू के कारण इतने बड़े बने। आज भी डाॅक्टर, इंजीनियर, जज, नेता, केवल गुरू की महिमा ही तो है। पढ़ाई के अलावा हर काम, पूजा-पाठ, इबादत तक बिना गुरू के कुछ भी सम्भव नहीं है। बुरे से बुरे काम को कराने व सिखाने वाला भी गुरू ही होता हैंै। हमारे पास ज्ञान और विज्ञान तराजू के दो पलड़े जैसे हंै, जिससे सारी सृष्टि चलती है।
अनेक भाषायंे, हर चीज का ज्ञान आसानी से हो, इसलिये हम किसी समझदार या पढ़े-लिखे या ज्ञानवान बड़े को गुरू की पदवी देकर उससे सीखते हैं, महापुरूषों का कहना है, कि सीखने वाला पेड़-पौधो से, जानवरों से निर्जीव चीजांे को गुरू मान कर सीखते हंै और महापुरूषों में गिने जाते हैं। शिक्षा बिना पुरूष, जानवर के समान है। किसी की अधूरी बात है। संसार में ही नहीं पूरी सृष्टि में कोई ऐसा नहीं, जिसने शिक्षा न दी हो या शिक्षा न ली हो। शिक्षा पर जितना लिखा जाये, थोड़ा है। राजाआंे ने, गुरूओं में शिक्षा अनिवार्य की और शिक्षा विभाग की उत्पत्ति हुई। भारत के इतिहास में खासतौर से गुरू की महिमा हर हाल में पिता या भगवान से भी ज्यादा रही है। 
गुरू गोविन्द दोउ खड़े, काकोे लागों पांये, 
बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताये।
हर युग में हर धर्म ग्रंथ में, गुरू की महिमा वर्णित है। गुरू और बाप ही ऐसी हस्ती हैं, जो बेटे को अपने से बड़ा बनाते हंै, और गुरू की मेहनत के बदले, हमेशा से गुरू दक्षिणा के रूप मंे शिष्य, अपना कर्जा उतारता था। शिक्षा विभाग बनाया गया और राजा की स्थिति (राजकोष) देखकर या सरकार के द्वारा अध्यापक, गुरू की पगार निश्चित की गई, गुरू बेहद या सबसे ज्यादा इज्जत के लायक होते हुए, खुद गुरू ने पैसे और खुद के आचरण से या प्राकृतिक लालच में, अपना धर्म, मर्यादा, इज्जत कम की या छोड़ दी, दूसरी तरफ हर दिन, हर देश ने शिक्षा को सबसे पहले वरीयता दी गयी और जहाँ भारत में सबसे बड़ा स्कूल काॅलिज था। वहीं इंगलैंड में आॅक्सफोर्ड नाम से काॅलेज की स्थापना की गई। जहाँ भारत में स्टूडेंट (विद्यार्थी) आते थे। आक्सफोर्ड अब शिक्षा के लिये सर्वमान्य हुआ। राजाओं के जमाने में पढ़ाई, लड़ाई और हर शिक्षा के लिये गुरू या आश्रम या संस्थान बनाये गये थे।
बड़ी कम्पनियाँ, सरकार या सेन्टर के उद्गम में, अपने-अपने टेªनिंग सेन्टर बने या बनाये, लेकिन अक्षर ज्ञान के लिये संस्था या स्कूल, पाठशाला, मदरसा व मस्जिद को वरीयता दी गई, और शिक्षा विभाग में ही, पाठशाला स्कूल कॅालेज और डिग्री काॅलिज को रखा गया। जहाँ सबसे पहले इज्जत दी जाने वाली संस्था, अध्यापक व स्टाफ ज्ञान का भण्डार होते हुए, अपराधिक दिमाग, आजादी मिलने के कारण, अनियमितता का सबसे बड़ा पहाड़ नजर आता है। शिक्षा विभाग, जहाँ हर घर का, भविष्य परवरिश पाता है, देश की माटी को पारस बनाया जाता था, इतिहास गवाह है, बड़े-बड़े राजा, महाराजा, चक्रवर्ती राजा, धुरंधर व आजकल सरकारी विभाग में, जज, नेता, इंजीनियर, डाॅक्टर, हर ओहदे पर अधिकारी व नेता बने, वह केवल शिक्षा और शिक्षा विभाग की परवरिश से बनें, लेकिन अब अध्यापक की शिक्षा, उनको, गुलाम, जलील, कमीनी लगातार बना रही है। इसमें सबसे बड़ा दोष अध्यापक (सरकारी नौकर) और नेता के कारण आया, अध्यापक पगार पाने के बाद ही, लालचवश अपने विद्यार्थियों का नुकसान करने लगे, नेता वोट और नोट के लालच में, इन्हंे खुलकर इस्तेमाल कर रहे है। गुरू कभी अपने शिष्य को कमजोर नहीं करता था, अब वही गुरू गलत शिक्षा दे रहा है। बच्चे को यह कहना, वक्त बेहद बलवान है या वक्त देखकर काम चलाओ, किसी के भी वंश, समाज व देश को खत्म करने के लिये काफी है। पूरी सृष्टि खराब करने के लिए काफी है।
गुरू का यह शब्द शिष्य के व, सारे ब्राह्मण्ड़ के, सारे भविष्य को अंधकारमय कर देता है। वह हरिश्चन्द्र, सुभाष, राणा, लक्ष्मीबाई बन ही नहीं सकता, नकल करके पास होगा, आरक्षण का सहारा लेगा, रिश्वत को सर्वोपरि मानेगा, इज्जत को बनावटी या पैसे से खरीदने वाली वस्तु समझेगा, काम न करके पैसा ही चाहिये, मतलब हर भ्रष्टाचार करेगा। माँ-बाप भी जिस बच्चे को स्कूल में पढ़ने भेजते थे, कहते थे, ”हड्डी हमारी, खाल-माँस तुम्हारा“। अध्यापक भी अब शिष्य का पूरा ध्यान न रखने पर या न डाँटने-मारने पर, सारे गुरूओं की बेइज्जती कराने से नहीं चूकते और जहाँ अनपढ़ बच्चा, हर बड़े की कदर करता था और ज्यादा बड़ा बनता था, वही आजकल ग्रेजुएट होने पर भी, माँ-बाप की भी कदर नहीं करता और ऐसे बच्चों के कारण पूरा समाज, देश भी खत्म होने लगा है।
आज भारत में, आरक्षण और नेता के कारण, प्राइमरी के अध्यापक से, स्कूल के अलावा अनेक सरकारी काम लिये जाते है, जनगणना, पोलियो ड्राप, इलेक्शन के काम और अध्यापक, स्कूल के अलावा खेत और प्राईवेट काम जैसे, अपने काम, स्कूल समय में करते है, जहाँ नारी जाति तो, स्वेटर बुनना, मैगजीन पढ़ना, 45 साल बाद तो शारीरिक परेशानी से, हर अनियमितता फैला रही है, मोटी पगार, फिर टयूशन से कमाई का लालच, गुरू को गुरू घंटाल बना रहा हैै। वही देश का भविष्य, उज्जवल होने की बजाय, अंधकारमय होता जा रहा है। इस भारत में शिक्षा के नाम पर बाहर से भी मोटा पैसा आता है, लेकिन जितने स्कूल सरकारी हंै, खासतौर से प्राईमरी की बिल्डिंग तक जर्जर है, अध्यापक केवल पगार चाहता है। अधिकारी और नेता केवल गलत दवाब रखते हंै और केवल राजकोष या सरकारी पैसे या बाहर की सहायता का गलत इस्तेमाल हो रहा है।
आज हमारे देश में हर पढ़ा-लिखा इंसान जहाँ भी जाता है, (प्राइवेट काम को छोड़कर) वहाँ शुरू में बिल्कुल सही नौकर बनता है और दो साल में ही पूरे स्टाफ में मिलकर, पूरी तरह गद्दारी कर रहा होता है। अत्याचार कर रहा है, अत्याचार सह रहा है, खुद अपने वंश तक को खराब कर रहा है। आज स्कूल काॅलिज में ही, रिश्वत देकर विज्ञापनमीशन होते हंै, टी. सी. कटती है, रिश्वत देकर किताबंे, इनाम डिगरी ली जाती है, यह सिलसिला जिसका कोई ओर-छोर ही नहीं है, कभी खत्म नहीं होता। डिगरी लेने के बाद रिश्वत लेकर ट्रेनिंग पूरी होती है, ट्रेनिंग पास भी रिश्वत से ही होेते हंै, नौकरी रिश्वत से मिलती है। यही नहीं मरने तक, मरने के बाद क्रिया-कर्म, डेथ सर्टिफिकेट तक रिश्वत ही पूरी कराती है। तेरहवीं में भी गेंहू, चीनी, चावल रिश्वत के द्वारा ही आसानी से, यहाँ तक कि नाजायज सम्बन्ध, धन से पूरे होते हंै। शिक्षा के सौजन्य से, एकमात्र प्राणी देवता, देवी, पीर, पैगम्बर बनते हैं और गलत शिक्षा से राक्षस व हर गलत तरीके के इंसान बनते हंै।
गुरू को मानने का खास महत्व है और ज्यादा खास बनाने व मानने का सारा श्रेय सिख कौम को जाता है, गुरू को सीधा भगवान कहा गया है और वाहेगुरू कहकर, हर काम की शुरूआत करते हंै, लेकिन वाहेगुरू कहने मानने वाले भी, इस समाज में अनियमितता रोक नहीं पा रहे हंै। इस्लाम और सिख हमेशा से ऐसी कौम रही हंै, कि अत्याचार न सहा है और न अत्याचार किये। अत्याचार के प्रति गर्दन काटने और गर्दन कटवाने का नियम, केवल इन्हीं के यहाँ चलता था। यह कौम भी जैसे मुसलमान, जो लोटे मंे नमक डालकर अनियमितता से निबटते थे, अत्याचार के खिलाफ जेहाद करते थे। सिख ”वाहेगुरू जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतेह“ का नारा लगाकर, बड़ी-बड़ी शक्ति पर विजय पा लेते थे। आज वह बेकार हो गये हैं।
मुसलमान लोटे में नमक डालकर नेता को जिता देते हंै। सिख भाई-चारा ”बोले सो निहाल सत् श्री अकाल“ वोट देकर नेता चुनते हंै, एक बड़ी यूनिटी के यहाँ रहने पर और इसी कौम के सामने, हर बड़े, छोटे की जो वाहेगुरू और गुरू जैसे, उस्ताद जैसे, होने के बाद भी, बेइज्जती, दुर्गति न हो नामुमकिन है। माँ-बाप, भाई, बहन और सब बड़े हैं, पुरूष और नारी, जो इज्जत का प्रतीक है, शर्म का भण्डार है, वह भी बड़ों की कदर नहीं कर पाते और दूसरों को शिक्षा देने के बजाय खुद, अशिक्षित जैसे बर्ताव करते हैं।
सरकारी, गैर सरकारी द्वारा अत्याचार करने और सहने की आदत, चरम सीमा पर पहँुचती महसूस होती है। हमारे बड़े सिर की पगड़ी और टोपी की तरह है, इनकी पगड़ी या टोपी, हर जगह से दागदार होती ही जा रही है। बँटवारा परिवार का हो या देश, प्रदेश का हो, इन्हंे कोई फर्क नहीं पड़ता। बात शिक्षा और शिक्षा विभाग की हो रही थी। गलत गुरू की छाया में पढ़ा-लिखा अच्छा इंसान भी शिक्षा पाकर, जहाँ भी जायेगा गलत ही करेगा। मन्दिर, गुरूद्वारा या गिरजाघर क्यों न हो, ऐसा इंसान नौकरी करेगा, तो गन्दगी ही फैलायेगा, नेता बनेगा तो गलत ही करेगा, पुजारी बनेगा, तो गलत करेगा।
आज चारों तरफ, इसकी मिसाल और सबूत नजर आ रहे हैैैं। शिक्षा विभाग आज एक अध्यापक को 17 हजार से 45 हजार तक पगार दे रहा है, बच्चों को नौकरी और पेेन्शन अलग हंै। किस बात की पगार दे रहे है, कोई नहीं जानता? एक बच्चा पढ़कर, दूसरे प्रदेश में पहुँचे, तो विज्ञापनमिशन में शिक्षा अधिकारी ही अड़चन डालते हैं। हाईस्कूल और इन्टर करने के बाद भी बच्चा किसी लायक नहीं होता, एम. एस. सी. करने के बाद नौकरी नहीं मिलती, इन्टर तक पढ़ाई फ्री है। लेकिन माँ-बाप को लोहे के चने चबाने पड़ते हंै।
इस शिक्षा विभाग की अनियमितता के, सबूत बड़े शर्मनाक निश्चित है, सही पहनना, खाना, शादी-विवाह तक भूल चूके हंै, लड़के-लड़की को बराबर समझने लगे हैं, नौकर, अधिकारी की ड्यूटी करना चाहता हंै, अधिकारी, क्लर्क और नौकर की ड्यूटी करता पाया जाता है, वकील और जज, कानून तोड़ते पाये जाते हंै, हमारी शिक्षा के कारण ही, पहले इंसान की उम्र 400 साल और अब 60, 65 साल रह गई है। कर्मचारी को जनता का सेवक होना चाहिए था, वह अत्याचारी रिश्वतखोर रह गया है। अधिकारी, रिश्वत लेने वाले कर्मचारी का रक्षक बन गया है। हमारे डी. एम. साहब ईनाम बाँटते हुए, फोटो ख्ंिाचाते मिल सकते हैं, जबकि गाँव शहर में, हर अनियमितता चरम सीमा पर है। जैसे-जैसे शिक्षा विभाग में उपर की ओर जाते हैं, अनियमितता उससे कहीं ज्यादा उपर तक मिलेगी।
एग्जाम (परीक्षा) फार्म में गड़बड़, पेपर में गड़बड़ पूरा स्टाफ शर्मिन्दा होने के बजाये, ऐसे ही चलता है, कह देते हैं, सुनकर हर इंसान को गुस्सा आता है और पढ़े-लिखे होने के कारण, वह सह लेता है। नेताआंे की मेहरबानी से, इस समय देश का भविष्य विद्यार्थीगण भी, नेता और चुनाव की तरफ तेजी से अग्रसर है। स्कूल काॅलिज, जहाँ बच्चे शिक्षा लेने पहुँचते है, वहाँ, चुनाव नेता, आरक्षण के कारण, पढ़़ने वाले बच्चे भी पढ़ नहीं पाते, अकस्मात् छुट्टी हादसे से, हर संरक्षक, दो चार होता रहता है, आचरण के कारण भविष्य सबका धूमिल होता जा रहा है। यह सब शिक्षा विभाग की अनियमितता का सबूत है।
आज का संरक्षक अपने हर बच्चे के कारण 99 प्रतिशत से ज्यादा परेशान है और खुद दोषी है। शिक्षा विभाग हमारे पास है और हर उपलब्धि है, हमारे चारों तरफ, हर सुविधा है, फिर हम यह अनियमितता क्यों बर्दाश्त करते हैं? क्या हमंे अपनी, अपनों के भविष्य की चिन्ता नहीं? ऐसी शिक्षा से अनपढ़ कही ज्यादा अच्छे और सन्तुष्ट हैं। इसके सुधार के लिये बेहद आसान तरीका है। जनता सबसे पहले, आरक्षण पर अंकुश लगाये, कोई बच्चा हो, पढ़कर ही पास होना चाहिये, हमंे अपना घर या आॅफिस अच्छा बनाना है, तो पढे़-लिखे इंसान को ही वरीयता देनी चाहिए। अध्यापक, पुरूष है, अध्यापिका नारी है। नारी को हल्का, पुरूष को भारी काम जायज है।
पुरूष 50 साल, नारी 40 साल कर्मठता से काम कर सकती है। इसके बाद वह कर्मठ रहते ही नहीं, जो नारी घर का काम, जो आसान और हल्का है, वह नहीं कर पाती, 45 साल बाद कमर में दर्द, पैरों में दर्द के कारण घर वालांे की सिरदर्द बन जाती है। उससे काम कराना मानवता छोड़ना भी है, उसको पगार नहीं पेंशन चाहिये, जिससे दूसरे नौजवान कर्मठ, तेज काम करने वालो को अवसर मिले और नौकरी के लिये तड़पते लोगांे को मौका मिले। गलती पर पगार का 10 प्रतिशत का जुर्माना, राजकोष में फौरन जमा हो, दूसरी गलती पर पहले नगद जुर्माने का 5 गुना, फिर 10 गुना जुर्माना जमा कराया जाये।
आजकल नेताओं के द्वारा, स्कूल में दोपहर के खाने का प्राविधान चलाया है, जो की एक दम गलत है। बच्चों का ध्यान पढ़ाई के बजाये खाने पर रहता हैं। अध्यापक पढ़ायेगा या खाने का ध्यान रखेगा, 5 या 4 घंटे की ड्यूटी में, खाने की सिरदर्दी नाजायज ही है, दूसरे भ्रष्टाचारी की जड़ लगाना है, राशन में गाँव का प्रधान, अध्यापक और बावर्ची गलती न करे, नामुमकिन है, इससे नेताआंे को सब फायदे हैं, लेकिन काम बढ़ने से वह खुद परेशानी जरूर भुगतते हेै, भुगतना पड़ेगा। इससे कहीं ज्यादा अच्छा है, 100 या 200/-रुपये प्रतिमाह संरक्षक को देना, जिससे सिरदर्द खत्म हो, सही मजबूती आये।
एक कक्षा मंे 60 लड़के हैं, वहाँ की प्रतिशतता के आधार पर, टीचर को प्रमोशन या सजा निश्चित की जाये, बच्चा फेल होने का कारण टीचर की ड्यूटी सही नहीं है, साबित करती है। गलती करने वाले के अधिकारी और उससे जूनियर और साथी, तीन प्राणी में से, एक भी गलती चाहे न करे, परन्तु प्रोत्साहन तो निश्चित मिलता है, अतः गलती की सजा के हकदार तीनों निश्चित होते हैं। किसी की गलती, बाद में पता चलने पर पेंशन से भी जुर्माना वसूल करने का नियम व कानून है। सख्ती से अमल होना ही चाहिये किसी बच्चे की गलती पर संरक्षक बिगड़ते हैं, तो सजा सरंक्षक की भी होनी चाहिये, बच्चे को पढ़ाना है, तो प्यार और डर दोनों जरूरी है, इसके बिना काम चल ही नहीं सकता। चुनाव और नेता ग्रुप या इस प्रक्रिया से विद्यार्थी, स्कूल और टीचर को दूर रखना चाहिये, जब तक वह शिक्षा ग्रहण कर रहा है तब तक पूरा प्रतिबन्ध होना ही चाहिये, पहनना व अचरण पर खास ध्यान रखना चाहिये।
हम इतने शिक्षित या समझदार तो हंै ही, कि जानते हंै, एक लड़की को लड़का माननेे के बाद भी, वह लड़की, लड़का तो बन ही नहीं सकती, वह लड़की भी नहीं रहती, जिससे आने वाली नस्ल बेहद बाधित होती है। हमें समझना ही चाहिये, हमारे भगवान हंै, जीव के दो रूप दिये है, नारी और पुरूष, दोनों के शरीर, काम, आचरण, पहनावा अलग-अलग है, उनके शरीर के मुताबिक परवरिश का, तरीका भी अलग है। लड़की को लड़की और लड़के को लड़का समझना ही समझदारी और सही शिक्षा है। बच्चे के शिक्षक सबसे पहले और सबसे आखरी माँ-बाप, भाई, चाचा, ताऊ, बाबा, दादी, सारा परिवार, सारा समाज होता है और सबसे बड़ा शिक्षा विभाग बच्चे का घर होता है।
क्या हम, हमारी पत्नी, हमारा खानदान लड़के और लड़की को सही शिक्षा दे रहे हंै? कहते तो हैं, शुरू में ही सिखाते हंै, झूठ नहीं बोलना है और बच्चा जब होश सम्भालता है, उसके सामने हम खुद पति-पत्नी झूठ बोलते हैं, माँ-बाप, भाई, बहन, चाचा, ताऊ के सामने, झूठ, लालच, धोखा, चालाकी सब करते हैं, बच्चा सीखता है, नौकरी पर है, तो उपभोक्ता से झूठ, रिश्वत, फरेब, सब करते हंै, काम पेन्डिंग रखते हैं, नमकहरामी की पगार लेकर, सबको खिलाते हैं। नेता है, तो हर वोटर से झूठे वादे करते हैं, काम किसी का नहीं करते और कह देते है काम होे जायेगा। काम करते हैं किसी का भी, तो अवैध काम ही करते हैं, कानून तोड़ते हैं। कही सड़कंे साफ करते हुए, कहीं पौधे लगाते हुए फोटो ख्ंिाचाकर झूठी वाहवाही लेते हंै, हमारे पास सब कर्मचारी हैं, नेता के एक पेड़ लगाने में जितना खर्च आता है, उतने खर्चे में पूरे शहर, जिले में पेड़ लग सकते हैं। अधिकारी और कर्मचारी को सही हैंडल करंे और गलती पर अविलम्ब सजा दें, तो पेड़, रोड, सड़क, गली सब, अपने आप-साफ सुथरी रहे। हम नेता फटेहाल हाथ जोड़कर वोट माँगने आते हंै और करोड़ांे के बिस्तर पर सोते हंै, अरबों का बेलंेस कुछ सालों में कर देते हैं, बच्चों के सामने बिजली चोरी, टैक्स चोरी सब करते हंै, व छोटों को सिखाते हैं, मुसलमान कौम, सिख कौम, राजपूत खासतौर से अपने बच्चों को शिक्षा देते थे, बेटे मर के आ या मार के आ। अपने बड़ों का नाम नीचा मत करना, वहीं लड़की को शिक्षा देते थे, बेटी सब कुछ तेरी ससुराल वाले हैं (शादी के समय), तेरे घर के चार कोने हैं, वहीं मरना-जीना है, वही स्वर्ग और जन्नत है। अब लड़कों को शिक्षा देते हैं, काम चलाओ जैसा बहाव देखो, वैसा चलो, वक्त बलवान है। लड़की को शिक्षा देते हैं, बेटी तेरे घर में कोई बात हो तो हमें बताना।
शादी 25, 30 साल में भी लड़की की नहीं करते, फैशन कराते हैं, नौकरी कराते हैं, वह भी पुरूष जाति बड़ांे के सामने। शर्म, लज्जा खत्म करके और कहते है, लड़के बदतमीज हंै। बिल्कुल ऐसे जैसे गाय खुली छोड़ दें और साँड़ को बाँधने की कोशिश करंे। हम जानते हैं यह उम्र खतरनाक है और छूट देते हंै, वह भी लड़की को और कहते हैं, लड़की सब कुछ कर सकती है, यह सच है, सबूत भी है, रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो के दाँत खट्टे किये थे, परन्तु यह नहीं बताते कि लड़की रानी थी और अपने वारिस को पीठ पर बाँधकर बच्चों के समान, जनता की व अपने पति की शान, आन और बदले के लिये मैदान में उतरी थी, जो हर नारी का धर्म है।
धर्म यह है कि, किसी बड़े के लिये, पति व बच्चे के लिये नारी सब कुछ करे। लेकिन उस बड़े की आज्ञा में रहकर करे। हर प्राणी व परिवार का धर्म है, समय से शादी करें, कन्यादान करें। लेकिन आप में से कौन कन्यादान कर रहा है? लड़की 25-27 साल तक कुआँरी है, नारी पर तो अत्याचार हो रहा है। हमारी अगली पीढ़ी तो कमजोर ही होगी। कैसी शिक्षा पाई है, पेड़, पौधों तक से मनुष्य के अलावा, हर जीव जल्द से जल्द फल और उनके बच्चे चाहता है, लेते हैं।
आम से एक या दो साल में या हर पेड़ से जल्द फल ले लेते है, मुर्गी से अण्डे बिना मुर्गे के ले लेते हैं, कुड़क नहीं होने देते, गाय, भंैस से हर साल बच्चे व दूध लेते हैं, जो एक किलो दूध देती थी, 5 और 10 किलो देती है, महीनों का सफर घंटो में करते हैं। राजाआंे, महाराजाओं जैसा खाना, पहनना, रहना है, लेकिन हर नस्ल सुधारने के बाद, खुद की नस्ल खत्म होने के कगार पर है। हर माँ-दादी जानती है, नखरे दिखाने, शर्माने और झुककर, व बचकर चलना, नारी का, सबको सम्मान देना है, खानदान को स्वर्ग बनाना है, यह सब नारी जाति छोड़ चुकी है, और हम भूला चुके हैं।
हर बाप जानता है, लड़का आज राजकुमार जैसा है, उसे राजा बनाना हैं। आश्रम, पूजा-स्थल पर मौलवी-पण्डित सब जानते हैं, लेकिन सब नारी के कन्धांे का सहारा लेकर, हर बाप अत्याचार बढ़ाकर, खुद को बुद्धिजीवि या मनुष्य कहते हंै। नेता तो वोट ही, नारी जाति व बच्चों को गिराकर, लेते हैं। उनके सहारे से जीतते हंै। आज कोई नारी जाति ऐसी है, जो सच्चाई में, अपने भाई को राखी बाँधती हो। सच्चे लड़के की कमाई खाती हो, खुद नारी जाति को न गिराती हो या अपने पति, देवर, चचिया सुसर, जेठ की सेवा करती हो। एक करोड़ का बच्चा, जो भगवान का रूप है (पति, भगवान का रूप है) पति की आज्ञा में उसका सही पालन करती हो?
आज हमारी शिक्षा हर अवरोध पैदा कर रही है, बच्चों की लड़के-लड़की की सही परवरिश न करके गलत तरीके से, पूजापाठ तक करते हैं, सड़क रोककर जगराते करते हंै, सब जानते हंै क्या होता है? पति, पिता, लड़के, बड़ों की, बिना आज्ञा के धर्मस्थल पर जाना, आश्रम मन्दिर में जाना, रास्ता जाम, सड़कंे जाम, करके नमाज अदा करना, भण्डारें चलाना, यह धर्म बढ़ाना नहीं, हर एक के लिये, खुद अपनों के लिये, सरकार व नेता के लिये, फायदा और हर एक की बाधा उत्पन्न करना है, महँगाई बढ़ाना हैं।
हम मन्दिर, मस्जिद में लाउडस्पीकर से मंत्रोच्चारण करते हैं, नमाज अदा करते हैं, क्यों? क्या हर प्राणी पूजापाठ, इबादत की अहमियत नहीं जानता या हम, एक-दूसरे को, खुद अपनों को डिस्टर्ब नहीं कर रहे हंै? एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं कर रहे हंै? कोई मरीज आराम के लिये परेशान हो या कोई पढ़ने वाला, गरीब बच्चा पढ़ रहा हो या कोई नारी काम में लगी है, तो शोर शराबा तो गलत ही है।
कुरान, गीता, रामायण, गुरू ग्रन्थ साहब या बाईबिल में कहाँ लिखा है, कि शोर-शराबा करके पूजापाठ, इबादत, भण्डारे करो, दूसरों के लिये अवरोध पैदा करो। अगर करना है, तो सरकारी प्राणी, नेता की किसी एक अनियमितता को खत्म करके सबको सुख दो। विद्यार्थीगण व अपनी नस्ल में सुधार करो, यही पूजापाठ, इबादत और सही शिक्षा है। हर काम थोड़ा या ज्यादा कठिन होता है। आज आप दूरदर्शन देखते हंै, यह टी. वी. एक दिन या एक साल में नहीं बना, हवाई जहाज, रेल, राकेट, जो असम्भव थे, वह बने और बनाये, यह सदियांे से लगे रहने का फल है, आजादी लेने में भी ऐसा ही था। नीचे से उपर तक गलत है, गलत हो चुका है, कहकर पल्ला झाड़ने से कुछ नहीं होगा, यह ऐसी सोच, अधूरी शिक्षा का फल है।
एक गँवार किसान के, सारे खेत में गंेहू के बजाये कांटे भी हो जाये, तो वह साफ कर देता है। एक सप्ताह, एक माह लगे, उसके साथ, सारा परिवार, खानदान, पड़ोसी लगते भी हैं या नहीं भी लगते, लेकिन वह कामयाब होता है, आप हर विभाग में फैली अनियमितता नहीं सुधार सकते, आपके पास पूरा परिवार, समाज, हर विभाग, सरकारी प्राणी सारे व सारे नेतागण हैं, निश्चित सारे हैं, विद्यार्थीगण भी हैं, चलो माना कोई नहीं है, सूचना विभाग तो है, मीडिया तो है, चाहे कोई न हो, अविलम्ब आप शिकायत करें, अधिकारी को, विभाग को, और उससे उपर, लेकिन सुधार का सही विकल्प, समस्या, अनियमितता देखकर व समझकर, तीन प्राणीयों के हस्ताक्षर कराकर करंे, यह भी नहीं कर सकते, तो शिकायत हमें ही करें, जो सबसे आसान साबित होगा। सफाई और सुधार जरूर होगा। देर हो सकती है, लेकिन सुधार होगा। क्योंकि आप-आप हैं। अब इन्टरनेट का जमाना है। इन्टरनेट पर गलती करने वाले को, जो दूसरों के प्रति की है, जो आप देख रहें हैं या पता है। केवल गाॅड ब्लेस यू या भगवान तुझे माॅफ करें, ऐसा एस. एम. एस. हर अधिकारी, नेता, राष्ट्रपति, न्यायमूर्ति तक को भेजा जा सकता है क्योंकि यह सब बड़े, हर कर्मचारी के बाप जैसे हैं।
हमें शिक्षा पर और शिक्षा विभाग पर पूरा ध्यान रखना चाहिये, जिससे कोई अनियमितता न हो, अगर हो जाये, तो खुद सिमट कर खत्म हो जाये हमारी शिक्षा और शिक्षा विभाग में असीमित अनियमितताएँ हैं, क्यांेकि हमारी शिक्षा अधूरी है। इसका सबूत है, इस समय हमारे वंश में बच्चा, नारी, नौकर तो आज्ञा में रहे ही नहीं। बड़ों ने कहा है -ढोल, गँवार, शूद्र, पशुु, बच्चा, नेता व नारी, यह सब ताड़न के अधिकारी। यह सब बेहद देखभाल के अधिकारी हैं, और गँवार, अनपढ़ कहते हैं ताड़ना = मार-पीट के अधिकारी हैं। हमारे वोट और नोट के लालची नेताओं ने तो हद कर दी है। आरक्षण जैसे रोग की जड़ मजबूत की है, नारी और बच्चों को आजादी (इज्जत नहीं) दे दी, विधवा को पेंशन, गरीब लड़की जिसने 12वीं पास की है उस को 20 हजार रुपये दे दिये, यह सब गलत हुआ, कोई परिवार, कोई मनुष्य, पुरूष ऐसा नहीं है, जो नारी की इज्जत न करता हो। सख्ती करता या रखता भी है, तो यह सोचकर कि वह मेरी, पूरे परिवार, खानदान की इज्जत है। यह सब कठोर देखभाल की चीजें या प्राणी निश्चित है। इन पर खूबसूरत बन्धन बना के रखना, गहरी शिक्षा है, जेवर, पर्दे वाले सौम्य कपडे़, माँ, बहन, पत्नी, बुआ, दादी इज्जतदार सम्बन्ध और सम्बोधन, पूजापाठ में श्रद्धा बनाना, यह सब प्यारे कठोर बन्धन हैं, और बेहद बड़ी इज्जत भी है।
”तेरे बिना मन नहीं लगता या मैं तेरे बिना अधूरा हूँ“ यह शब्द उसको सामने या पास रखने का एक तरीका है, जिससे नारी कोई गलती न करे और हमारी आने वाली पीढ़ी, हमारे से भी अच्छी हो। सबको मजबूत करने का तरीका है, सही शिक्षा व ज्ञान देना हैं, ना कि पैसा और आजादी। हमारा इतिहास व धर्मग्रन्थ बताते हैं कि पहले स्वयंवर की प्रथा थी, लड़की खुद अपना वर चुनती थी, क्योंकि वह ज्ञान व शिक्षा से परिपूर्ण थी, वह सीख चुकी थी कि अच्छे से अच्छा घर व वर चुनना है, आज भी वह चुनती हैं, किसी के साथ भी सम्बन्ध बना लेती हंै, शादी नहीं, सम्बन्ध बनाती हैं। शादी होती है घर-संसार बनाने व चलाने के लिये। सन्तान पैदा करने, वंश चलाने के लिये। आज की नारी सम्बन्ध बनाती हंै, शारीरिक सुख के लिये, धर्म तोड़ने, बड़ांे की बेइज्जती करने और अपनी नस्ल खराब करने के लिये। यह सबूत है इन बच्चोें के पास सही शिक्षा नहीं है, ज्ञान नहीं है।
नेता ने गरीब विधवा की पेंशन बाँधी, क्यों, यह परिवार की इज्जत थी, पति ही तो नहीं है, बस परिवार, खानदान और खुद के, खानदान के, बाकी सब हैं। अगर इसका आचरण सही होता, तो परिवार, खानदान का, एक भी प्राणी, इसके कर्मों से सही और मजबूत होता। वह इसे ही नहीं, पूरे परिवार, खानदान को अकेला ही पाल देता।
इतिहास गवाह है, राम, कृष्ण, इब्राहिम, सुभाष, किसी नारी के पाले हुए ही हैं। पूरा खानदान इसकी रोटी व इज्जत की चिन्ता करता था। वह कुछ भी करते थे। इसके विधवा होने के बाद, वह खुद भूखा रहते, लेकिन इसे सुखी रखते। इसका गरीब होना या गरीब रहना, घर में इज्जत न होना, साबित करता है कि कहीं न कहीं इस विधवा के आचरण में कमी थी, यह पहले की थोड़ी सी कमी, अब की पेंशन की, मोहताज हैं। गरीब 12वीं पास लड़की को 20 हजार दिये गये, क्यों? पढ़ाने में लोहे के चने माँ, बाप ने चबाए, भाई भी पढ़ाई से वंचित रह गये, और 20 हजार का चेक लड़की को? यह सब अधूरी सोच हैं और या वोट का लालच गलत करा रहा हैं। उनके संरक्षक की मजबूती के बाद, सब छोटे मजबूत होते हैं। छोटे अगर बड़ों के आज्ञाकारी बनें, तो सब मजबूत हांे। काम दो, सब को मजबूत करो। पेंशन या लड़की को 20 हजार रूपये नहीं, केवल सरंक्षक को मजबूत करो, सारा खानदान ही नहीं, पूरा देश मजबूत होगा।
लड़की के पैदा होते ही, खासतौर सबको बुरी लगी हो, लगती है, लेकिन 5 दिन बाद ही घर का हर प्राणी, यही नहीं रिश्तेदार, मोहल्ले वाले, गाँव वाले सब देवी, लड़की मानकर, पूरा ध्यान रखते हंै, बड़ी होने पर तो, नाक, कान, पैर, हाथ में कई हजार का सोना-चाँदी पहनती है, कपड़े, चुटियाँ तक का सबको ध्यान रहता है, जरा सी गलती पर या कमी पर, घर के प्राणी तक को सुननी पड़ती है, लड़की को भी डाँट पड़ती है। यह आजादी नहीं, लेकिन बेहद बड़ी इज्जत जरुर है। स्कूल के समय घर वाले, बाहर वाले, किताबें, काॅपी, पेन, पेंसिल कपड़ों तक का पूरा ध्यान रखते हैं, यह लड़की भी उस पेट में पली है, जिसमें आपका लड़का पला है, वहीं नौ माह रही है, जहाँ लड़का रहा है, वहीं दूध पीया है, इतनी देखभाल किसी लड़के की कभी हुई हो? माँ, बाप, यह मेरी लड़की है, देवी है, जब से यह पैदा हुई, यह काम हुए, यह फायदा हुआ आदि कहते, आप सुन लेंगे, परन्तु क्या लड़के की ऐसे परवरिश हुई? उसे गाली, डण्डे खाने से फुरसत नहीं, किताब, कापी, कपड़े, फीस हो न हो, मनहूस है, नकारा है, कहना नहीं मानता, खेलता रहता है, दुनिया भर की गलत बातें लड़का सहता है, क्यों?
लड़की के पैदा होने के कुछ समय बाद, उसकी शादी उसके ससुराल वालों की इच्छा का ध्यान रखते हुए, पैसा इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं, पराया धन कहकर, उसका ध्यान रखते हैं, पढ़ाते, खिलाते हैं, वह इसलिये कि हमारी आने वाली नस्ल, हमारे से अच्छी हो। हमारे मजबूत करने का तरीका, उसको पैसा या नौकरी देना और इसको को-ऐजुकेशन में पढ़ाना कहाँ से सही है? लड़की जाति की बड़ी संख्या अब भी है, जो कुरान, गीता, रामायण, गुरू ग्रन्थ साहब, बाईबिल पढ़कर, सारी जिम्मेदारी निभाती है, खानदान, समाज में इज्जतदार कहलाती है, कर्मठता से अपना वंश चलाती है, उनकी औलाद ने बड़े-बड़े काम और नाम किये हैं, हम पैसा, नारी को जरूर देते हैं, नारी के पास ही पहुँचता भी है, पगार, कमाई, बाप को दें, वह आय हमारी माँ या अपनी पत्नी को देगा, फिर बहन के पास और बहन, हमारी पत्नी को निश्चित देगी, पहुँच गया न पैसा सही जगह। हमने दिया या हमारे बाप ने दिया क्या? जिसमंे सही शिक्षा है, ज्ञान है, आचरण में सही है, यह देने का तरीका सही है। बाप, बाबा या कोई, पैसे और सम्बन्ध का सही इस्तेमाल जरूर करेगा।
दूसरा तरीका है, हम सीधा अपनी जान, अपनी पत्नी को देे दें, एक दम गलत है, इस पैसे का गलत इस्तेमाल न हो, नामुमकिन है। वैसे ज्ञानवान नारी, आपकी जान आपकी पत्नी खुद कह देती है, आप यह पैसा पापा को दो नहीं, तो मैं आपके नाम से खुद उन्हें देती हूँ। यही धर्म है, यही सही है। यही सबूत है, यह नारी आपकी पत्नी है, अद्र्धांगिनी है। आपके वंश को चार चाँद लगायेगी। इसकी औलाद राणा, सुभाष, लक्ष्मीबाई बनेंगे, बनते हंै। वह नारी असीम ज्ञानवान और मजबूत होगी। हर इंसान फल, फूल मजबूत हो, अच्छे हो, इसके लिये पेड़ की जड़ में पानी और खाद देते हंै। आपको नारी को मजबूत करना है, तो उसके बाप, भाई, बाबा, चाचा, ताऊ, बाबा को मजबूत करें, उसके पति-पुत्र को मजबूत करें, पूरा खानदान व समाज मजबूत होगा। नेता, नोट और वोट के लिए गलत नीति बनाते हैं और देश भुगतता है।
लड़की ने 12वीं पास की, 20 हजार मिले। उसका भाई, बाप को खाना, नौकरी तक नहीं। समाज में पूछ नहीं और लड़की भी हाथ से गई। उसे नौकरी भी मिल जायेगी, परन्तु किसी का ज्यादा फायदा नहीं, कोई फायदा करके दिखाये। फायदा भी किसी पुरूष जाति के सौजन्य से ही होगा।
अरे भोले इंसान, एक बेल को सहारा पेड़ ही देता है, बेल पेड़ पर छा कर, पेड़ खत्म तक कर सकती है, लेकिन पेड़ का सहारा बेल हो ही नहीं सकती। नारी एक बेल के समान ही है, पेड़ के सूखते ही, बेल खुद खत्म हो जाती है। यह सब अच्छी शिक्षा ही सिखाती है। हर नारी के पास जो कुछ हैं, वह बाप, भाई, पति, ससुर, बेटे का ही हो सकता हैं या किसी पुरूष जाति का ही होगा।
आज हमारी शिक्षा बेहद अधूरी है। शिक्षक या गुरू अधूरे ज्ञान से ओत-प्रोत हंै, इसी कारण हर धर्मस्थल, आश्रम, कर्मशाला, घर-गृहस्थी में, हम केवल उनको पालते हैं, सुविधा देते हैं, चेक देते हंै, पगार देते हैं, खाना खिलाते हैं, जो आचरणहीन है, कर्मठता से दूर है। हमंे केवल उनको पालना चाहिये, प्रीफ्रेन्स देना चाहिये, पगार और सेवा करनी चाहिये, जो किसी बड़े की या समझदार बडे़ की, छत्र-छाया में है या उनकी आज्ञा में है या कर्मठ है या किसी बड़े समझदार की सेवा करते है या जो धर्म में चलते हैं।
बड़ा या बड़ा समझदार वह है, जो गलती पर अविलम्ब सजा देकर, गलती करने वाले को सुधारता है, छोटे को अच्छी तरह पालता है, सही तरीके से सम्बन्ध निभाता है। बड़ों की, अपने खून की इज्जत और कदर करता है। एक गैर सरकारी, नेता या सरकारी प्राणी जो अपने बाप, भाई का नहीं। जो नारी अपने बाप, भाई, पति, सास, ससुर की नहीं। जो कर्मचारी अपने विभाग का वफादार नहीं, नौकर होते हुए उपभोक्ता का काम अविलम्ब नहीं करता। वह अधिकारी, जो कर्मचारी की कर्मठता का और अपने विभाग के साथ ही, जनता का ध्यान नहीं रखता, कर्मचारी, साथी को गलती पर अविलम्ब सजा देकर नहीं सुधारता, गलत अधिकारी और नेता की गलती की शिकायत भी नहीं करता। उसको पालना या उसे देखते रहना गलत हैं। वह अपने को, अपने वंश और अपने देश को खत्म कर देता है। यही सही शिक्षा है।
समाज के नियम में चलते रहने से समाज में बड़ा बन जायेगा, देश के कानून को, मानने वाला व कानून में चलने वाला, सब में बड़ा बन जायेगा।
अगर समय बलवान होता, तो राणा ने खुद और बच्चों को घास की रोटी न खिलाई होती। वह केवल अकबर के सामने गलत तरीके से झुक जाता बस, लेकिन राणा नहीं झुका। समय बलवान होता, तो राजा हरिश्चन्द्र को बीवी बच्चे न बेचने पड़ते, राजपाट दान न देना पड़ता, वह समय से जूझते रहे और समय को हार माननी पड़ी। समय पर विजय पाने के अनगिनत सबूत हंै। हवाई जहाज, दूरदर्शन का उत्पादन, चांँद और मंगल ग्रह तक पहुँचना, हर बीमारी पर विजय पाना, अनेक सबूत हंै। बात शिक्षा विभाग की चल रही थी, आप मुख्य शिक्षा अधिकारी के आॅफिस पहुँचिये, वहाँ शर्मनाक माहौल मिलेगा, अधिकारी समय से आॅफिस में नहीं आते, यहाँ पर बुढ़े-बुढ़े पेंशन न मिलने से या हक का पैसा न मिलने पर, दिन परेशान मिलेंगे। पगार बैंक में नहीं पहुँचती, रिश्वत बिना कोई काम मुमकिन नहीं, बी. एस. ए. का हाल भी बेहद बुरा हैं, नारी जाति को परेशान करना, पगार बैंक में न पहुँचना, कोई ऐरियर सालों-साल रूकना, काम लगभग सब पैन्डिंग, जबकि यह गजटेड अधिकारी हैं। बैंक मैनेजर तक को हक हैं, पगार, पेंशन के लिए ऊपर वार्न करें, लेकिन सब गलत रोब दिखाते हैं और काम भी पूरा नहीं रखते।
नारी को चाहिये कि वह मर्द की छत्रछाया में रहे। मर्द को पाले, मर्द की सेवा करे, मर्द को साथी बनाये, मर्द को प्रोत्साहन दे। गलत की सेवा, पैसा, सुख, कबूल न करे या छोड़ने की कोशिश करे। संसार के सारे शिक्षा सम्बन्धित महानुभाव आमँत्रित हैं, आप सब मिल कर सारी अनियमिततायें दूर करें, साबित करें, आपको अक्षर ज्ञान ही नहीं, ज्ञान भी हैं, तब सारा संसार सुनहरा होगा। शिक्षा और शिक्षा विभाग में सुधार हो, सुधार बरकरार रहे, इसके लिये कुछ नियम बनाने हैं, अमल करना है।

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. सबसे पहले, अपने घर में बच्चों की माँ को, विशेष रूप से बच्चों को सही लालन-पालन करना सिखाना चाहिये अपने सामने या किसी बड़े के सामने, खासतौर से प्रातः उठते समय पर पूजा, पाठ के समय, बच्चे को राजकुमार और राजकुुमारी समझकर आचरण करें। नारी का बच्चों को, पति के सामने खासतौर से गाली देना, डाँटना गलत है। माँ, उसकी पहली गुरू है, खुद इज्जत करें और बाप व बड़ोें की इज्जत करना सिखायें, जो बचपन से ही सिखाये जा सकते हैं। लड़का-लड़की के पहनावे अलग हैं, ध्यान रखे। बच्चों के सामने, अपने पति से गलत कभी न बोलें।
02. स्कूल के गुरू के प्रति, अपनी निगाह गलत कभी न करंे, बच्चे को दण्ड देना उसको मजबूत करना है। बड़े से बड़े का बच्चा, केवल गुरू को अपने से बड़ा मानकर ही, गुरू से कुछ ले सकता है। कोई बड़े से बड़ा भी ऐसा नहीं है, जिसने बचपन में, अपने बड़े से डाँट या मार न खाई हो।
03. बच्चे का बड़ा, सबसे पहले घर का मुखिया या बाप होता है, केवल उसकी सलाह से ही बच्चे की परवरिश, पढ़ाई, लिखाई, आचरण होने चाहिये रिश्वत देकर बच्चे को पालना, पढ़ाना ही पड़े जो कि गलत है, फिर भी उस बच्चे का खास ख्याल रखा जाये झूठ या रिश्वत का आदी, वह बड़ा होकर न बने।
अच्छे हाथ का खाईये, अच्छा वंश बन पाये, 
गलत को मिले अविलम्ब सजा, समाज अच्छा रह पाये।
बिन क्षमा माँगे तूने क्षमा किया, यह तो भयंकर गुनाह किया, 
बड़ी गलती सब भुगतेंगे, अपना नाम डुबोने का इन्तजाम किया।
04. हर गैर सरकारी प्राणी, सरकारी प्राणी और नेता खासतौर से, सारे विद्यार्थीगण पूरी तरह ध्यान रखे कि, जहाँ सारे देश या संसार का भविष्य पलता है, वह जगह, वहाँ के कर्मचारी और अधिकारी सब ठीक हों, स्कूल गाँव का हो या शहर की प्राथमिक पाठशाला हो या डिगरी काॅलिज, जनता का एक-एक रुपया, विशाल मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरजाघर, हर धर्म स्थल बना सकता है, तो संसार का भविष्य जहाँ पलता है, वह जगह क्यों नहीं? लेकिन यह जगह गलत गुरू या बच्चा पालने की न बन जाये आज हमारा पूरा शिक्षा विभाग सबसे ज्यादा गन्दा हो चुका हैं, जिसे जनता आसानी से सुधार सकती है।
05. अध्यापक और अध्यापिका की स्कूल की ड्यूटी, घर से दो या तीन कि. मी. के बीच में हो, वह विद्या सम्बन्धी काम के अलावा, दूसरा काम बिल्कुल न करे, बच्चों के साथ, सिखानेे में कुछ भी करे, आरक्षण जैसा रोग खत्म करंे। रिश्वत जैसा पोल्युशन न फैलने दें, हर नशे से दूर रहें।
06. बी. एस. ए. की चेकिंग पर कोई अध्यापक या अध्यापिका गलत पाये जाने पर कम से कम 10 प्रतिशत पगार का जुर्माना अविलम्ब राजकोष में जमा कराया जाये, यह नियम बी. एस. ए. पर भी सख्ती से लागू हो, खासतौर से उन पर भी, जो टी. सी. या पढ़ाई सम्बन्धी काम जिनमंे विद्यार्थी या उनके संरक्षक परेशान होते हैं। इनसे नेता सम्बन्धी या चुनाव सम्बन्धी काम बिल्कुल न लिये जायें। नशा आदि जिनसे विद्यार्थी बाधित हो सकते हंै, स्कूल के आस-पास भी नहीं होने चाहिये ऐसी विद्या किस काम की जिसमें लड़की, लड़की और लड़का, लड़का न रहे। नारी में शर्म न रहे, छोटों में बड़े के प्रति सम्मान न रहे। गलती पर सजा न हो। बे अदब बे नसीब, बा अदब बा नसीब। किसी भी अनियमितता के रहते, हर पढ़ाई का असर गलत होता हैं, यौन शिक्षा तो एकदम गलत हो जायेगी। मनुष्य योनि को छोड़कर हर जीव, बिना शिक्षा के अपना वंश ठीक-ठाक चलाते व बढ़ाते हैं।
07. पूरे शिक्षा विभाग के कर्मचारी और अधिकारी की खास ड्यूटी लगाई जाये कि कहीं भी अनियमितता देखकर, अविलम्ब शिकायत करें, सम्बन्धित विभाग को और उससे उपर अधिकारी को अविलम्ब सजा के रूप में नगद जुर्माना राजकोष में (दोषी व्यक्ति से राजकोष में) जमा कराये। जो ज्यादा शिकायत करे, उसे इनाम, प्रमोशन आदि वरीयता दी जाये कर्मचारी की कार्यकाल अवधि, नारी की 45 साल और पुरुष की 50 साल रखी जाये, जिससे नौजवानांे को मौका मिले, कर्मठता बढ़े साथ ही, बेरोजगारी कम हो।
08. शिक्षा विभाग की पगार, अगर एक दिन भी रूकती है, तो शर्म की बात है। चाहे बैंक बन्द हो, कोई भी छुट्टी हो। सरकार को चाहिये कि, एक दिन की पगार रूके, तो कम से कम 20 प्रतिशत ब्याज के साथ पगार का भुगतान करंे। गलती करने वाले पर नगद जुर्माना किया जाए। यह नियम मंत्री तक पर लागू हो। शिक्षा विभाग के लिये विदेशों तक से अनुदान आता है, उसका सही इस्तेमाल हो। स्कूल में दोपहर के खाने की प्रक्रिया बन्द की जाये, स्टाफ पढ़ाई पर ध्यान देगा या खाने पर, इससे अनियमितता फैलती है, सिरदर्द बढ़ता है। स्कूल में पढ़ाई और खेल कूद पर अध्यापक खास ध्यान दंे। बच्चों को अनियमिततता से दूर रखें और हर सुधार करने के लिये विद्यार्थी को मजबूत बनायंे।
09. शिक्षा विभाग के, हर कर्मचारी और अधिकारी की ड्यूटी है कि, हर अनियमितता का ध्यान रखे, सुधार करने की हर कोशिश करंे, सुधार की चर्चा करें। बच्चांे को व बड़ांे को सिखायंे व खुद शिकायत करंे, दूसरों से करायें। घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन नियम अपनायें और अमल करें। बिजली जैसी न्यामत देश के भविष्य बच्चे और देश की इज्जत नारी के लिये हमेशा रहने वाली 15 वाट रोशनी के लिये फ्री दी जाये, कहीं बिजली हो या न हो, रोशनी के लिये हमेशा रहे।
10. आप सुधार करंे, कराये, आप शिक्षा विभाग से सम्बन्धित हैं। आप कुछ नहीं कर सकते तो शिकायत हम तक डाक खर्च के साथ पहुँचाए। बस तीन प्राणी के वोटर/आधार नम्बर के साथ हस्ताक्षर जरूर हों। आपकी इच्छा पर वह शिकायत गुप्त रखी जायेगी। उस पर कार्यवाही होगी। जो भी पवित्र पुस्तक पढ़ रहा है वह दूर-दूर तक पढ़ी हुई बातें फैलाये, देश-विदेश तक आमंत्रित हैं। सुधार-सफाई करके सबसे बड़ा धर्म लाभ उठायें। थोड़ी भी हिम्मत करें, मोटी पगार ली है, मोटी पेंशन ले रहें हैं। इन्टरनेट पर हर अनियमितता की शिकायत आसानी से कर सकते हैं जो आपकी आने वाली पीढ़ी के लिए होगी। वोट देकर आपने गन्दगी बहुत बढ़ाई है, सफाई-सुधार नहीं करेंगे तो खुद को धरती का बोझ महसूस करेंगे। ऐसा मत होने दिजिये, शिक्षा लेने वाले सबका भविष्य हैं और नेता उनसे बेहद फायदा उठाते हैं, विद्यार्थीगण बड़ी यूनिटी हैं। इन्टरनेट और मोबाइल आपकी जेब में रहता है, शिकायत करने की आदत आप में चार चाँद लगा देगी। डरे नहीं, नौकरी या जाॅब में वेरीफिकेशन पुलिस करती है लेकिन सफाई-सुधार देश-विदेश देखेगा। आप खेल-कूद का फायदा लेते हैं, शिकायत-सुधार का फायदा ज्यादा बड़ा होगा। नौकर नहीं, अधिकारी ही बनोगे, विदेश वाले सिर पर बिठायेंगे। आप भविष्य में राजा ही बनेंगे। अभी आप शेर के बच्चे हो, फिर शेर बनोगे, अनियमितता करने वाला, अनियमितता कर ही नहीं सकता।



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