न्याय और न्याय विभाग
सृष्टि बनाने वाले ने सबसे पहले न्याय और सजा का ध्यान रखा। भगवान ने, अल्लाह ने, वाहेगुरू और गाॅड ने सारी कायनात बनाई, सारे जीव निर्जीव बनाये। हिन्दू धर्मगं्रन्थों के अनुसार 84 लाख योनि बनाई, इस समय एक-एक योनि के असंख्य जीव बनें, यह सब एक चेन से एक-दूसरे से बंधे रहे और इनका जीवन चक्र चलता रहा। हर जीव में बुद्धि की रचना की गयी, जो सारे शरीर का संचालन करती है।
यह बुद्धि एक कम्प्यूटराइज तरीके से शरीर के, हर अंग का सही तरीके से संचालन करती है, लेकिन गलत सोच के आते ही संचालन गलत हो जाता है और इसी बुद्धि या दिमाग के कारण, उस जीव को सजा भुगतनी पड़ती है, इस बारे में विज्ञान कहता है कि प्रकृति द्वारा मौसम, हवा, पानी, पृथ्वी, अग्नि, आकाश के मिलन से जीवों की उत्पत्ति हुई और उसी से सही तारतम्य या मौसम या वातावरण की सहुलियत से जीवों में बढ़ोत्तरी हुई।
विज्ञान के अधूरेपन के कारण गलती और सजा या जीव की आत्मा का शरीर बदलना, सबूत होते हुए, मानते ही नहीं, यह सब ज्ञान की व्याख्या है और हिन्दू धर्म के ज्ञानी महापुरूषों के गहरे मनन और शोध का इतिहास, धर्मगं्रन्थ व दिन के सबूत बताते हैं, सामने आते हैं, जीव की रचना चैरासी लाख योनि में हुई, जिसमें हर जीव आते हैं, छोटे से छोटा जीव, जो सुई की नोक पर भी लाखों करोड़ांे की तादाद में आ जाते हैं और बड़े से बड़ा जीव डायनासोर, जैसा जीव भी दिमाग के कारण ही, हर क्रिया शरीर द्वारा पूरी करता है और अच्छे का फल अच्छा, और बुरे का फल बुरा, भुगतता है। गलती और सजा उसके जीवन में लगातार चलती है और गलती की ही सजा मौत और जन्म तक होती है। यह सारी, सजा शरीर ही भुगतता है और बड़ांे की सच्ची बात सामने आती है कि बची हुई सजा के रूप में, अगला जन्म भी होता है और 84 लाख योनि के, किस योनि में पहुँचा है, सजा या इनाम ही तो है।
जिस प्रकार मनुष्य में नारी, पुरूष, नौकर, मालिक से लेकर जाति-धर्म के अनुसार अनेक भेद हैं, लेकिन मनुष्य योनि एक ही है और यह सजा या इनाम का सबूत है। बस इस प्रकार 84 लाख योनि अलग-अलग हैं। सबमें कर्म है, जीवन चक्र है, आचरण के अनुसार रोग और व्याधा हैं, यह सब दिमाग या बुद्धि के द्वारा ही होता है, जो बेहद गहरी पैथी (विधि) है और सही आचरण, अच्छी सोहबत, अच्छे गुरू या बड़ांे की छत्र-छाया होने पर, अपने-आप प्रत्यक्ष समझ में आता है। जो अज्ञात समय तक कंटीन्यू समझते रहने पर होता है, अज्ञात समय से मतलब एक दिन, एक साल, 50 साल से है, वह कैसे है, यह गहरे शोध का विषय है।
लेकिन देखा गया है, कि यह ज्ञान केवल बड़ों की आज्ञा, सेवा से या उनके आचरण की नकल से, अपने आप आसानी से आ जाता है। प्रत्यक्ष है कि एक जीव कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंसा या कोई जानवर बचपन से अपने बड़ांे के पीछे चलता है, और सब कुछ सीख जाता है, उसका शरीर हर रोग व्याप्त होने के बाद निरोग रहता है, मनुष्य से ज्यादा सुखमय जीवन गुजारता है। आजादी पूरी है, लेकिन बेहद कर्मठ होता है।
प्रकृति को समझता है, हर व्याधा से बचता है। उसकी बुद्धि और आचरण के सही होने से जीवन के दिन, इनाम या सजा के रूप में सामने आते हैं, अपने जैसा जीव पैदा करता है और इसी सोच और आचरण के फलस्वरूप मौत और अगली योनि तक निश्चित होती है।
आप खुद देखते और कह देते हैं। यह गधा है। मेरा बेटा शेर है या यह बिल्कुल कुत्ता है क्योंकि उसमें कुत्ते के गुण हंै, यह अज्ञात है, कि यह पिछले जन्म की आदत है या इस जन्म में उन जीव की नकल का असर है, लेकिन ज्ञानी पुरूष, अच्छे आचरण में लम्बे समय तक सही आचरण में रहता हुआ, जीव पिछले जन्म या अगले जन्म का ब्योरा दे सकता है, देते थे। यह निश्चित है। यह गुण मनुष्य में ही नहीं, हर जीव में है।
मनुष्य बुद्धिजीवि है, सच है, लेकिन गलत अंहकार है। सच्चाई यह है कि बुद्धि हर जीव में है और आकाश की सीमा हो सकती है, बुद्धि की नहीं। हर जीव अपनी बुद्धि और कर्म के सहयोग व आचरण से सब कुछ कर सकता है, जीवन मृत्यु तक उसके, अपने उपर तक आधारित है। भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड ने सब अच्छी चीजें बनाई हैं और सारी गलत चीज, हमने या हमारे अपनांे ने बनाई है। जैसे झूठ, फरेब, चालाकी से लेकर मौत तक, यह बात हर जीव कहता, सोचता और जानता है। एक कुत्ता सही सोचता और करता है। तब वह मनुष्य की गोद पाता है। दुध, बिस्कुट पाता है, ए. सी. गाड़ी पाता है, बाॅडीगार्ड पाता है। बन्दर तो मनुष्य के कन्धे पर बैठ कर सिर पर चढ़कर, फल मिठाई खाता हैं। यह सबूत है सही आचरण के और बड़ें की आज्ञा में रहने के।
इतिहास धर्मगं्रन्थ बताते हैं कि साँप, विषधर शिवजी के गले की शोभा बढ़ाता था। आज भी साँप पालने वाले साथ रखते हैं क्यांेकि तुच्छ, खतरनाक समझे जाने वाले जीव, केवल अपने बड़े की आज्ञा में रह रहे हैं या उनके पीछे चलते हैं या सही आचरण करते हैं और ईनाम के रूप में आगे सुन्दर भविष्य मिलता है, गलती करते या गलत आचरण करते, तो पिटाई से लेकर मौत तक की सजा मिलती, अगर सजा से बच भी जाते तो पत्थर, डण्डे से कुचले भी जा सकते थे या कुचले ही जाते, चालाकी थोड़ी देर के लिये बचा तो सकती हैं, लेकिन सजा और ज्यादा कठोर हो जाती हैं, यह सजा और ईनाम हर जीव के लिये है, पेड़-पौधे तक जिन्हें बड़े लम्बे समय बाद विज्ञान ने भी माना कि पेड़-पौधे जीव हैं, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड की इस पैथी (विधि) को, हर जीव जानता है, मानता है। मनुष्य तथा वैज्ञानिक भी जानता-मानता है, लेकिन गलत आचरण, अपराधिक प्रवृति के लोग, अपनी सजा निश्चित करने वाला, मनुष्य जान कर भूला देता है।
एक नारी अपने पति के साथ अनुचित करके, उसके द्वारा दिये गये बच्चे की सही परवरिश नहीं करती, उस अनमोल बच्चे को बाप की इज्जत करना न सिखा कर बड़ा अपराध कर देती है, एक पुरूष, अज्ञानतावश उस नारी को सजा न देकर भयंकर पाप कर देता है, यह दोनांे प्राणी खासतौर किसी पिछली गलती की सजा भुगतने के लिये, खुद सजा चुन चुके हैं, यह दोनों प्राणी जीवन में सुख से वंचित होते हैं, हर व्याधा, हर रोग भुगतने को मजबूर होंगे, यह बच्चा अगर धर्मगं्रन्थ पर ध्यान चला गया या किसी बड़े की छाया या नकल भी कर लंे, तो सबकी सजा कम हो जाती है। बच्चा बड़ा होकर सुख और नाम कमाता है। समाज व देश को सुखी व समृद्ध बनाता है।
गलती और सजा दिमाग और कर्मों द्वारा कैसे निर्धारित होती है? इसका क्या पैमाना है? किस हिसाब से होती है? यह अब तक अज्ञात है, क्योंकि जानने के लिये, गहन तपस्या या शोध की जरूरत है, जो बेहद कठिन है। मनुष्य के पास अनगिनत उपलब्धियाँ निश्चित हैं और एक डाॅक्टर, विज्ञान का ज्ञाता, सब शरीर को बनाने में सक्षम अपने दिल से परेशान है, यह सजा है। खुद डाॅक्टर भी जानता है, कह भी देता है, लेकिन किस गलती की सजा है? कोई नहीं जानता, पता नहीं किसके, गलत कर्मों की सजा है, कौन सी खुद की गलती है, जान ही नहीं पाता।
यह डाॅक्टर सबका है, परिवार, समाज, देश, हर धर्म का है, कुछ न कुछ जरूर है। पहली गलती अनजाने में हुई, बड़ों ने सजा नहीं दी, आज यह गलती, बड़ी सजा की हकदार हो गई। गलती करने वालो में, डाॅक्टर ही नहीं माँ-बाप, पूरा खानदान, गुरू, समाज देश तक है। हार्ट अटैक एक डाॅक्टर को हुआ लेकिन सब तड़पते हैं, रोते हैं, बिलखते हैं, गलती की है, तो गलती पर सजा न देना भी गलती ही है। भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड की इस पैथी (विधि) को बुद्धिजीवि मनुष्य ने भी अपनाया या नकल की।
सृष्टि बनते ही तथा मनुष्य ने होश सम्भालते ही या उससे भी पहले, अपने परिवार में ही अपने छोटों को गलती पर सजा का नियम लागू किया और अमल किया। सजा में आँखें दिखाना, डाँटना, पिटना से शुरू हुआ और जैसे-जैसे परिवार बढ़ता गया या बढ़ोत्तरी होती गयी, सजा के नियम और तरीके भी बढ़ते गये, किस्में भी बढ़ती गई। घर का बड़ा मुखिया बना, वह समाज का मुखिया बना, राजा-महाराजा तक बनता चला गया, सेवक, नौकर जाति बिरादरी कर्मों के अनुसार बनी और बड़े लोगों ने, ज्ञानी पुरूषों ने नारी-पुरूष, बच्चे-नौकर के अनुसार, उनके जन्म के अनुसार, मनुष्य जाति व अपने वंश के अच्छे-सुधार या मनुष्य ही नहीं, हर जीव और ज्यादा अच्छा बनें सोचकर, तजुर्बे करके नियम और कानून बनायें। धर्म गं्रन्थ भी, उसी का रूप हैं और न्याय बनाया, जिसमें गलत राह पर चलने वालों को सजा देकर सुधारा जाये, जिससे वह जीव खुद के लिये, अपने वंश के लिए, पूरे समाज के लिए, पूरी सृष्टि के लिए फायदेमंद हो। यह काम कोई बड़ा ही कर सकता हैै, इसलिये बड़े ने ही सम्भाला। पहले घर या खानदान के मुखिया और आगे चलकर राजा ने सम्भाला। प्रधान और पाँच आदमी मिलकर न्याय करते रहे। फिर राजा न्याय करते रहे। महाराजा, फिर चक्रवर्ती राजा, जज की कठोर ड्यूटी निभाते रहे। हर देश में न्याय और न्याय विभाग की रचना की गई।
भारत देश आजाद होने पर न्याय और न्याय विभाग की विशेष रचना की गई, गांधी जी बैरिस्टर जैसे, भीमराव अम्बेडकर और अनेक विभूतियों ने मिलकर गहरे मनन के बाद मनुष्य को बेहद अच्छा-मनुष्य बनाने के लिये, अपराधिक तत्चों को सुधारने के लिये ”कानून विभाग“ बनाया। सब को ध्यान में रखकर, हर अनियमितता सोचकर कानून की धारायें बनाई। न्याय करने वाला बड़ा होता है, जज बनाया, पढ़ाई-लिखाई, कठोर परीक्षा व उम्र तक के नियम, जज के लिये बनाये। किसी के साथ अन्याय न हो, दोनों पार्टी की इच्छानुसार गवाह का नियम बनाया, जज के सामने बोलने बताने में झिझक न हों, वकील, एडवोकेट, लायर बनाया, यह पढ़ा लिखा ग्रेजुऐट हो इसके लिए पंजीकरण का नियम बनाया, निर्दोष मारा न जाये, इसलिये खास नियम बनाया कि चाहे 100 मुजरिम बच जाये, लेकिन निर्दोष न मारा जाये।
फैसले में डेट का नियम बनाया, जिससे अच्छी प्रकार सोचा समझा जा सके, सबूत इकट्ठे किये जा सकें, जज की गरिमा, इज्जत राजा जैसी निश्चित की गई, जज से गलती न हो, उनकी बेंच बनायी गई, कई-कई जजों की यूनिटी, हर छोटी से छोटी बात गहराई से सोच सकें, समय की छूट भी दी गई, अच्छी पगार हर सुविधा दी गई, कोर्ट, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और अब तो विश्व अदालत तक का चलन निश्चित किया गया, जिससे हर प्राणी के बारे में सही निर्णय लिया जा सके।
परिवार, समाज, धर्म में भी मुजरिम के लिये, धर्म से गिराना या हुक्का बन्द, बिरादरी से बाहर की सजा, निश्चित की गई और सब धर्म सारे समाज व देश के लिये अपराधिक प्राणी के लिये, सजा जुर्माना, मौत, देश निकाला तक निश्चित किया गया, काले पानी तक की सजा भी रखी गई, मुजरिम के मुताबिक लाॅकअप, जेल, बड़ी जेल, तिहाड़ जेल का निर्माण कराया गया, ध्येय था सजा भुगतो और अच्छा व नया जीवन गुजारो, आगे गलती न करो, गलती की तो पहली सजा से बड़ी या ज्यादा कठोर सजा मिलेगी।
न्याय और न्याय विभाग, जज और न्यायमूर्ति सीनियर न्यायमूर्ति की पोस्ट बनाई गई, सब तरफ अनियमितता न हो, इसलिए विजिलेंस, खुफिया विभाग, सी. बी. आई. और लोकल इन्टेलिजेंस यूनिट (एल. आई. यू.) बनाई, जो हर तरीके से मुद्दई और मुजरिम तक के बारे में सही निर्णय लेने में भी पूरे सहायक के रूप में चुना। चोर, डकैत, नौकर, नेता, पारिवारिक झगड़ों में, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक की, हर अनियमितता का ध्यान रखने की, युक्ति बनाई गई और सजा का कानून बनाया गया।
भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड के खास नियम ”चाहे देर हो जाये, सजा से बचा नहीं जा सकता’ का नियम मनुष्य ने अपनाया। न्यायालय में देर हो सकती है, सजा जरूर होगी, वह भी केवल मुजरिम या दोषी व्यक्ति को, दोषी व्यक्ति की भी दो कैटेगिरी बनाई गई। आम या घरेलु मुजरिम और संगीन मुजरिम, संगीन मुजरिम को जुर्म साबित होने तक जेल में ही रहना पड़ता है।
न्याय और न्याय विभाग में, जज सर्वोपरि होता है, न्याय की सीट सबसे उँची मानी जाती है। इसीलिये पहले मुखिया, घर या गाँव में फिर राजा-महाराजा, राज दरबार में, अब जज या न्यायमूर्ति अदालत में, न्याय करते हैं। इस जगह को ”न्याय का मन्दिर“ या ”कानून का मन्दिर“ जैसे खूबसूरत शब्द से पुकारा जाता है, अदालत में या राजदरबार में, हर मुजरिम की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है, मुजरिम की तो जान ही सूख जाती है, यह जज भगवान जैसी इज्जत पाता है क्योंकि भगवान के काम जैसा काम भी करता है, हर गैर सरकारी, इसकी आज्ञा का उल्लंघन कर ही नहीं सकता और हर सरकारी प्राणी, नेता इसकी आज्ञा काट नहीं सकते।
कहा जाता है ”कानून अन्धा होता है “ यह गलत है, यहाँ बैठने वाला जज पढ़़ा लिखा, तजुर्बेकार, बेहद कठिन परीक्षा पास करके, जज बना होता है, एवं तेज बुद्धि होता है, हर गैर सरकारी प्राणी, आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता, जज के दो हाथ-पैर, तेज आँखें, छठी इन्द्रिय या तीसरी आँख हमेशा साथ है, इसके अलावा हर सरकारी प्राणी, व नेताओं के द्वारा, आज्ञा काटी ही नहीं जा सकती, मतलब सारी सरकारी आँखें, जो बेहद बड़ी संख्या में हंै, उनके शक्तिशाली अनगिनत हाथ-पैर, हमेशा साथ हैं, इतनी पावर के साथ, एक जज न्याय करने के लिये, सीट पर बैठता है और अब तक न्याय करता आया है।
राजा-महाराजाओं के जमाने में तो, राजा (जज) न्याय करने के लिये खुद ही सबूत इकट्ठे करता था, जिसमें कोई भी भेष रखना पड़ सकता था, जबकि इसके पास वफादार कर्मचारी की भीड़ भी थी और खुफिया विभाग भी था, ध्येय था सही न्याय करना और जल्द न्याय करना। इतिहास गवाह है, राजा (जज) ने न्याय के लिये, राजपाट और अपनी जान की भी परवाह नहीं की, किसी मजलूम (कमजोर) को कभी नहीं सताया गया, न्याय के मन्दिर में एक भिखारी हो या राष्ट्रपति सब को, एक जगह या कटघरे में ही खड़ा होना पड़ता है और खड़े होते हैं। सब भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू और गाॅड जैसा काम, यह जज भी करता है और सबके लिये भगवान माना जाता है, यहाँ पर आया हुआ, हर प्राणी पूछने पर यही जवाब देता है, जैसे भाई केस में क्या हो रहा है? तो कहा जाता है, भगवान जो करेगा ठीक ही होगा या भगवान जाने।
भारत की आजादी से पहले लम्बे समय तक अंग्रेजों का राज रहा है और अंग्रेजों ने भारत को हड़पने के लिये, फैसले देने में मतभेद रखें, अदालतों में अंग्रेज ही, जज थे, जो पक्षपात करने लगे और अदालत में अनियमितता का बीज बोया गया, जज (भगवान) जैसी सीट पर गद्दारी करने वाला, अपने वंश और बिरादरी तक को नष्ट कर लेता है और प्रत्यक्ष है, कि अग्रेजों का विशाल राज, जिसमें सूरज भी नहीं छिपता था, उन्हें भारत छोड़ना पड़ा, उनका सूरज ऐसा डूबा कि अब तक नहीं उगा, उनकी सुबह कभी होगी भी या नहीं होगी, कोई नहीं जनता। यह सजा थी न्यायमूर्ति की गलती करने की या निर्णय में मतभेद रखने की।
भारत में नेतागिरी आजादी के बाद शुरू हुई, लेकिन अदालत में नौकरशाही आजादी से पहले ही शुरू थी। ”बच्चा, नौकर, गँवार, मशीन, नेता, पशुु और नारी यह सब ताड़न के अधिकारी।“ (ताड़न = पूरी देखभाल)। अंगे्रजों के नियम हमेशा याद रखे जायेंगे, राजा के नियम में ढील हो सकती थी, लेकिन अंग्रेजो के नियम पक्के थे, नौकर, जज ने निश्चित ही अनियमितता को, अपना गहना बना लिया था और न्याय में हिन्दू-अंग्रेजों मंे पक्षपात किया, इससे पहले पक्षपात का कोई सबूत नजर ही नहीं आता। बच्चा, नौकर, गँवार, पशुु, मशीन, नेता और नारी निश्चित ही हमेशा देखभाल के लायक ही रहे हैं। इनके प्रति थोड़ी सी सुस्ती, इनके भविष्य को और इनके बड़ों और छोटों के भविष्य को बेहद खतरनाक स्थिति में जरूर लाती है, कभी-कभी पूरा खानदान और सारी बिरादरी भुगतती है, यहाँ तक की पूरा देश भुगतता है।
भारत ही नहीं विश्व में व हर जगह, केवल अनियमितता का राज चल रहा है, जबकि भारत में नियम-कानून सबसे हल्के हैं या नियम कानून पर अमल नहीं किया जाता, कमजोर, मजलूम और सीधे-सादे पर ही अत्याचार होते रहते हैं, भारत, नेताओं की पहलवानी और गद्दारी का अखाड़ा बन गया है, जो कभी कर्मठ थे, ही नहीं और हो भी नहीं सकते, पढ़े-लिखे खानदानी होते हुए इज्जतदार व खुद्दार होते ही नहीं या यह गुण छोड़कर मैदान में आते हैं, पूरी तरह भारत में छा गये है और अब कभी भी इनका सूरज अस्त हो सकता है या इन पर अकुंश लगाया जायेगा, यह शुभ काम करेगी जनता।
न्याय और न्याय विभाग में जज, छोटी अदालत में खासतौर से, जहाँ गरीब जनता ही या भोले-भाले लोग न्याय की गुहार लगाते हंै, वहीं सब नौकरशाही के कारण पूरी तरह गद्दारी, नकारापन, रिश्वतखोरी में लिप्त हो गये हंै, आज पेशकार या चपरासी, जज के नीचे ही या सबके सामने ही दस रुपये या बीस रुपये, जैसी हकीर रकम लेता रहता है और यह बात विजिलेंस, खुफिया विभाग, एल. आई. यू, सी. बी. आई, मीडिया को ही पता नहीं है, बाकी बच्चा-बच्चा देश का, विदेश का सब जानते हंै।
यह कानून का मन्दिर जहाँ ”सत्यमेव जयते“ लिखा होता है, यहीं पर गाँधी जी व जवाहर लाल नेहरू की बड़ी फोटो लगी होती है, इसी अदालत की बाउण्ड्री वाल के भीतर देवता जैसा या पीर-पैगम्बर, जैसा इंसान भी आता-जाता रहे, तो कुछ समय में झूठ, फरेब, भ्रष्टाचारी बनकर कर्मठता से दूर चला जाता है और 24 घंटे में कुछ भी न करके, सब कुछ वही कर रहा है, साबित कर देगा, या साबित कर देता है। ”जस राजा, तस प्रजा“ के नियम पर, यहाँ पर हर प्राणी झूठ, फरेब, पैसा का लालची, रिश्वतखोर, भ्रष्टाचारी, गद्दार हो चुका है।
यहाँ पर हर वकील, पढ़ा-लिखा ग्रेजुएट और वकालत की डिगरी व पंजीकरण के द्वारा वकील होता है, लेकिन यहीं एक प्राणी है, जो पढ़ा-लिखा होने के बाद, चद्दरों या फूस के चैम्बर और बेहद हल्की कुर्सी, मेज के साथ धूप, गर्मी, सर्दी, बरसात हमेशा बर्दाश्त करता है, यहाँ के बारे में, हर इंसान जानता है, फिर भी गैर-सरकारी इतना मजबूर है, कि यहाँ, पहुँचता है और पछताता है। खासतौर से कर्मठ और सच्चा इंसान।
वकील सच में ही लायर है, वकील और जज यहाँ पर, हमेशा बिकने को तैयार रहते हंै, बल्कि यह कहा जाना सही है, कि यहाँं पर सब बिकने को तैयार रहते हैं, न्याय में देर करना, इनका नियम बन गया है, रिश्वत का पैसा लेकर, बेहद गर्व महसूस करते हैं, तारीख लगाकर सकून महसूस करते हैं, तारीख भी शाम को लगाते हंै, खासतौर से भारत यू. पी. में, दिन भर मुद्दई इन्तजार करता है, तड़पता है, पैसा खर्च करता है, बेचैन रहता है, अपने सारे काम छोड़ता है, अब साहब बैठेंगे, अब आवाज लगेगी, तीन बजने पर पता चलता है, तारीख लगी है, फिर वह मायूस होकर लूटा-पिटा सा घर पहुँचता है और यह दिन भूलाने की कोशिश करता है।
यह मुद्दई बेहद मजबूर, मजलूम, गरीब, हर पल डरता रहता है, वकील बिक सकता है, गवाह गड़बड़ा जाये, बिक जाये, हजारों किस्म की परेशानी अदालत में आती है, दूसरा वकील गड़बड़ा दे, जज पैसा खा जाये, पेशकार क्या कर दे, आवाज न लगे, केस एकतरफा हो जाये, करोड़ांे तरह के नुकसान हैं, मुद्दई ड़रता रहता है और एक किस्म की कठोर सजा से दो-चार होता है, वहीं मुजरिम के मजे ही मजे हैं, जेल का खाना निश्चित है, अदालत तक आना-जाना फ्री है, मुजरिम तो वह है ही, आवाज लगे न लगे पुलिस जाने, जब कुछ होगा, तो होता रहे और कहीं मुजरिम के घर वालों ने पैसे लगा दिये, तो जेल भी फाइव स्टार होटल की तरह हो जाती है, अदालत से बरी भी हो जाता है।
भारत में तो नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री तक के खुले आम भयंकर कत्ल हो जाते हैं और कानून कत्ल करने वालों के परिवार तक को भी प्रोटेक्शन देते हैं, जिससे मरने वाले के परिवार वाले तड़पते रहें, जलते रहें, परेशान रहें, वह भी एक दो दिन नहीं, सालों-साल, यहाँ पर मीडिया है, दूरदर्शन समाचार चैनल हंै और मुजरिम के, विरूद्ध फोटो फिल्म जैसे गवाह भी हंै, फिर भी न्याय करने में अदालत को सालों-साल लग जाते हैं, मुद्दई के घर वाले, एक तारीख पर नहीं पहुँचे, तो भयंकर मुजरिम भी, इस अदालत के द्वारा बरी कर दिया जाता है।
आज की डेट में, आरक्षण के तहत हरिजन खासतौर से, जहाँ नौकरी कर रहे हैं, मामूली झगड़ों से ”अपनी सरकार है“ कहकर नाजायज फायदा उठाते हंै, हरिजन परिवार नेताओं से फोन करवाकर, जख्मी दूसरी पार्टी की एफ. आई. आर. तक, दर्ज नहीं होने देते, डाक्टरी नहीं होने देते और फिर पन्द्रह बीस हजार में फैसला करने के लिये मजबूर कर देते हैं, देखा गया है कि हरिजन परिवार, छोटीे सीे लड़ाई-झगड़ों को या बच्चों के झगड़ों को बलात्कार का रूप देकर, दूसरी पार्टी को ब्लैकमेल करने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं या तो कोर्ट में केस लड़ते हैं और जज व अदालत को, नेता, पैसे और आरक्षण के बल पर या खरीदकर, दूसरी पार्टी को कम्प्रोमाइज के लिये मजबूर कर देते हैं या पहले ही पैसे लेकर कम्प्रोमाईज करते है, सी. एम. के खास आर्डर हैं, हरिजन को वरीयता दो, इस प्रकार, कानून या न्याय तो खुद टूट जाता है, जज, डाॅक्टर, सरकारी गजटेट अधिकारी, सब गलत करने के लिये मजबूर हो जाते हंै, जज और पूरा स्टाफ जजमेंट देने की नहीं, बल्कि केस पेन्डिंग रखने की पगार लेते हैं, यह इतना भी नहीं जानते कि, एक डेट देने का मतलब, हर सरकारी प्राणी का काम बढ़ाना, हर गैर सरकारी का खर्चा बढ़ाना, उधर चाय वाला, वकील, मुंशी, रिक्शे वाला आदि का खर्चा मुद्दई पर पड़ता है, कीमती समय खराब होता है। यह गरीब मुद्दई, कर्ज लेकर भी पूरा नहीं कर पाता।
मिसाल दी जाती है, भगवान किसी को, अदालत या अस्पताल का मुँह न दिखाये। यह मिसाल, उस समय की है, जब न्याय सच्चा था, इंसान कर्मठ, खुद्दार थे और नौकर वफादार थे। राजा, प्रजा को अपने बच्चे समझकर पालता और कद्र करता था, आज न्याय और न्याय विभाग के गड़बड़ाते ही, सबसे पहले नेता, सारे सरकारी प्राणी, मोहर लागाकर अनियमित हुए हैं, और हर गैर सरकारी पिसता ही जा रहा है। विजिलंेस, खुफिया विभाग, सी. बी. आई. और लोकल इंटेलिजेंस यूनिट तो, जैसे गायब ही हो गये हंै, सुप्रीम न्यायमूर्ति तक बेहद मोटी पगार, हर सुविधा और आरक्षण जैसे रोग से ग्रस्त हो, तो क्या होगा? न्याय और न्याय विभाग सब कर्मचारी व अधिकारी को मिलायें तो छोटी फौज जरूर बन जाती है, जो अकेले राजकोष को खाली करने के लिये काफी है।
सच्चाई यह भी है कि खुद जज और स्टाफ बेहद दुःखी है, हर इंसान का कहना है कि पता नहीं, कौन से गलत कर्मों का फल है कि हम अदालत में कार्यरत हैं और आगे इन कर्मों की कौन सी सजा मिलेगी? जो अब हम कर रहे हैं? ना छोड़ सकते हैं, ना बच सकते हैं। अनेक सबूत हंै, पति-पत्नी एक ही कोर्ट में जज है, तो वह ड्यूटी छोड़कर पारिवारिक सुख ज्यादा उठाते रहते हैं और स्टाफ और मुद्दई कार्यवाही होने का इन्तजार करते रहते हैं।
कहते है कि प्रार्थना में बड़ा असर होता है। भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड जरूर सुनते है। हम (लेखक) खासतौर से, आप सब से करवद्ध ((हाथ जोड़ कर) प्रार्थना करते है कि कुछ ऐसा कीजिए कि हर सरकारी प्राणी की, हर अनियमितता खत्म हो और वह कर्मठ बने, सबका जीवन सफल हो, आप सबकोे मिलने वाली पगार के कुछ हिस्से का भी हक, अदा कर सकें।
आज हम हर तरफ तेजी निश्चित ही लाये हैं, महीनों का सफर घंटो में तय करते हैं, पेड़ांे से फल दस साल के बजाये, दो साल में ले लेते हैं, जो जानवर दो किलो दूध देता था, उस जानवर से दस लीटर दूध ले लेते हैं, मुर्गी बिना कुड़क हुए लगातार, बिना मुर्गे के अण्डे देती रहती है, आठ माह में होने वाली फसल को हम, तीन और चार माह में ले लेते हैं, क्रिकेट में 20-20 मैच दिखाकर खेल का जल्दी फैसला कर देते हैं, फिर न्याय में ही इतनी देर क्यों? पहले 24 घन्टे में फैसला राजा या परिवार वाले करते थे, अब कम समय में जजमेंट क्यांे नहीं कर पाते? आप जानते हैं ना कि न्याय में देर होने से, हर अच्छे से अच्छा प्राणी चोर, रिश्वतखोर, भ्रष्टाचारी, गद्दार, देशद्रोही ही नहीं जलील, कमीन, झूठा, फरेबी, नामर्द व गुलाम निश्चित बन जाता है, मानवता मर जाती है और गलत को या मुजरिम को अमृत या आबेहयात मिल जाता है। आप देख रहे हंै, प्रत्यक्ष है, निश्चित ही आप पूज्यनीय हैं, विश्व भर के, हर जज की व सारे उस प्राणी की, जो जज की छत्र-छाया में हंै, वह चाहे चपरासी ही हैं, निश्चित ही सब पूज्यनीय हैं। हम किसी की बेइज्जती कर ही नहीं सकते, चाहे वह रिश्वतखोर ही है, हम इज्जत कम करने तक की नहीं सोच सकते। घ्येय केवल, कर्मठ बनाना है, काम में कम समय लगाना है, सबको अच्छा बनाना और सबको बचाना है।
यह सब, आप सब, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड के बनाये हुए इंसान हैं, किसी माँ बाप के बच्चे हैं और आप सब, किन्हीं बच्चों के माँ-बाप हैं, किसी के पति-पत्नी हैं, पूरे संसार में, सब के कुछ न कुछ हैं, आप हमारे भी कुछ हंै, जैसे शरीर का सिर या पगड़ी, इनकी सफाई-सुधार तो हम कर ही सकते हैं। हमारा सिर जख्मी हो, तो आपरेशन, इंजेक्शन, कड़वी दवा भी दी जाती है। सिर की रक्षा करके, खुद को व सारे शरीर को बचाने की कोशिश, हम कर रहे हैं। पगड़ी की धुलाई के लिये सर्फ, साबुन लगाकर भट्ठी में गर्म करके, उसको धोना पड़ता है, डण्डे-थपकी से पीट-पीट कर धोकर, सफेद चमका कर, गर्म प्रेस से प्रेस करके, चमका के रखी जाती है, जिससे साफ पगड़ी सिर पर बाँधकर काम किये जाये और अपनी व सबकी इज्जत बढ़े। आप सब भी हम सब के लिये, पूरे देश, सारे संसार के लिये, ऐसी ही महान इज्जत हैं। सिर की या पगड़ी की रक्षा करके खुद को व सबको बचाने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी व सबकी इज्जत, देश और संसार को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। आप बेहद अच्छे हंै और हम आपको और अच्छा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड की इच्छा पूरी कर रहे हैं, उसके प्राणी वर्ग को और अच्छा बना रहे हंै।
संसार के सब जज परिवार से, एक बार फिर करवद्ध प्रार्थना है कि आप सब या आप सब में से कोई एक, इस धर्म के काम में सहयोग दंे, साथ दंे, जिससे हमारी और आपकी पूरी पृथ्वी की सुन्दरता बढ़े और सबका जीवन सफल हो, सम्पर्क करें और सम्पर्क करायें, सहयोग दें, सहयोग लें। साथ दें, साथ लें, जहाँ आप रह रहे हंै, वहाँ भी सफाई व सुधार करें और सफाई बरकरार रखें या हमें सूचित करें, हम तन-मन से निश्चित साथ देंगे, धन की जरूरत होगी, तो वह भी इकट्ठा करके लगायेंगे, पूरी तरह, बिना लालच के साथ देंगे या खुद करेंगे, आजादी से पहले राजा-महाराजा, हर युक्ति से सबूत पर नजर रखते थे या पैदा करते थे, आज का जज और वकील हर सबूत को झुठलाते हैं, जैसे मीडिया के सबूत, मीडिया के फिल्मों के सबूत होते हुए, जजमेन्ट में देर करते हैं, और मीडिया भी इस बेइज्जती पर शर्मिन्दा भी नहीं होते, विजिलंेस, खुफिया विभाग, सी. आाइ. ड़ी., एल. आइ. यू. के नकारापन या गद्दारी के कारण जजमेन्ट में देर होती है। संसार के न्याय विभाग से सम्बन्धित हर प्राणी या यूनिटी व सब लोग आमंत्रित हैं, कोई एक या सब मिल कर न्याय विभाग की अनियमितता या सारी अनियमितताओं को खत्म करके, सारे संसार को सुनहरा बनाकर खुद को व सब को धन्य करें। न्याय और न्याय विभाग की, हर अनियमितता खत्म करने के लिये कुछ नियम बनाने पडे़ंगे और उन पर शक्ति से अमल करना होगा। न्याय करना बेहद आसान है केवल बारीक बुद्धि के साथ मुद्दई के चारो तरफ घूम जाइये, तो सही न्याय तीन दिन में हो सकता है और आप चैन की नींद लेंगे, अब आपकी नींद बेशर्म की है या यह नौकर की नींद है।
सुधार-सफाई के लिए विचार
01. अदालत मंे किसी भी केस को हल करने की अवधि या समय निश्चित होना चाहिए। बल्कि निश्चित गिनती की डेट लगने पर, वह केस निश्चित हल होना चाहिये और यह डेट कम से कम होनी चाहिये निश्चित डेट से, दिन ज्यादा होने पर उस पूरी अदालत को देशद्रोही करार देकर अविलम्ब जुर्माना राजकोष में जमा कराया जाये और मुद्दई को हर दिन की दिहाड़ी, जब तक केस हल ना हो, तब तक हर दिन शाम को, दिहाड़ी की रकम नकद दी जाये हर केस की अवधि व डेट की अवधि, हर वकील के पास लिस्ट के रूप मंे मौजूद रहे और मुद्दई को भी ज्ञान रहे।
02. गैर सरकारी प्राणी किसी विभाग, किसी कर्मचारी की शिकायत करता है और अदालत जाता है, तो शिकायत सम्बन्धी विभाग, अदालत का पूरा खर्चा, पहले शिकायतकर्ता को दे। अगर शिकायत झूठी साबित पायी जाये तो गैर सरकारी से, खर्चा व जुर्माना वसूल किया जाये या सजा और जुर्माना दोनांे किये जायें। देखा गया है कि हर आदमी सिरदर्दी बढ़ने व गरीबी के कारण शिकायत ही नहीं करता और कोर्ट कचहरी के अनगिनत चक्कर और मोटे खर्चे के कारण, हर अनियमितता देखता, सहता और भुगतता रहता है। उसका कोई संगी-साथी नहीं होता। इस नियम से सच्चे और अच्छे इंसानों को, प्रोत्साहन मिलेगा व भ्रष्ट लोगों की हिम्मत पस्त होगी। खास बात यह है कि सरकार और अदालत की गरिमा और इमेज सबकी नजरों में सुधरेगी व बेरोजगारों को काम मिलेगा।
03. ”कानून अन्धा होता है“ यह नियम बिल्कुल काटा जाये क्योंकि जज के सामने, गैर सरकारी, आज्ञा का उल्लंघन कर ही नहीं सकता और सारे सरकारी प्राणीयों के करोड़ों मजबूत हाथ, पैर व आँखें, जो असिमित शक्ति रखते हंै, पूरी तरह आज्ञा में हैं, इसके बावजूद जज के मजबूत, हाथ, पैर, बेहद तेज आँखे, असीमित पावर के दिमाग के साथ-साथ असीमित शक्ति की, तीसरी आँख या छठी इन्द्रिय हमेशा साथ होती है, इसके अलावा जज के पास विजिलेंस, खुफिया विभाग, सी. बी. आई. लोकल इंटेलिजेन्स यूनिट व पुलिस फोर्स निपुण, सक्षम और परमानेन्ट हैं, जो चैबीस घंटे में वेरीफीकेशन करके, दो दिन में जज के द्वारा ”दूध का दूध, पानी का पानी“ जैसा न्याय दिला सकती है। इसके बावजूद न्याय मंे देर होना, न्याय गलत होना, साबित करता है कि, कानून अन्धा नहीं, कानून गन्दा है। यहाँ न्याय हो ही नहीं सकता।
04. ”सौ मुजरिम चाहे बच जाये लेकिन, एक बेगुनाह न मारा जाये“ यह नियम भी काटा जाये, मुजरिम को, जल्द सजा देना न्याय हैं। कभी-कभी क्या हमेशा, गेहूँ के साथ घुुन पिस ही जाता है, लेकिन मुजरिम को, एक घंटे की छूट भी मुद्दई को मार देती है, मुद्दई बचता ही नहीं, मुजरिम सौ नहीं, एक ही मुजरिम, कुछ समय में खुद हजारों मुजरिम पैदा कर देगा और हर एक मुजरिम, सैकड़ांे मुद्दई को मार ही देगा और आज के समय में, जहाँ जज, पेशकार, वकील, मुंशी, पुलिस सब बिकने को तैयार हैं, ऐसे में तो मुजरिम को एक मिनट की छूट भी गलत है। मतलब जल्द से जल्द फैसला देना ही, धर्म है, सही कर्म है।
05. रिश्वत न ली जाये ध्यान रखा जाये केस जल्द हल हों। मुद्दई या गैर सरकारी को बड़ी अदालत या दूसरी अदालत में न जाना पड़े या खासतौर से गैर सरकारी की कोई शिकायत है, किसी सरकारी प्राणी के प्रति, तो कम से कम वह पूरी अदालत, उससे नीचे छोटी अदालत और उससे बड़ी अदालत को दोषी मानकर, दण्डित किया जाये, मौजूद जज जिस आदालत से आया है, वहाँ से सीखकर आया है या बड़़ी अदालत की शह है। अकेला जज गलती कर ही नहीं सकता, माना जाये।
06. नारी को, हमेशा छूट दी जाती है, इस पर ध्यान दिया जाये। पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका या ऐसे झगड़ों में, हर हाल में पुरूष वर्ग ही दोषी माना जाता है, जबकि जज ही नहीं, पूरा संसार जानता है, कि अधिकतर ही नहीं, दोष नारी जाति और नारी जाति को, पालने वाले का होता है, शरीफ लड़की या नारी की तरफ, बदमाश से बदमाश गुण्डा भी नजर नहीं उठा सकता, एक लड़की पर बलात्कार तक में, चार लड़के भी कामयाब नहीं हो सकते, यह लड़की की छूट या गलती ही होगी, उसका पहनावा, आजादी, चाल-ढाल, साधु सन्यासी तक का इमान खराब कर सकते हंै। लड़का बीमार, कमजोर, नामर्द नहीं होता, यह गाय को खुला छोड़ना और सांढ़ को बाँधने जैसा गलत नियम है, इस पर भी सब ही कहते हैं कि गलत लड़की या गलत परिवार ही, पुलिस या अदालत तक पहुँचते हंै, पति-पत्नी डायवोर्स (तलाक) में 90 प्रतिशत पत्नी ही, गलत होती है, आप जो शादी करते हंै, अपने लिये, वंश पालने, माँ-बाप, भाई, बहन को इज्जत देने के लिये करते हंै, पत्नी, आज्ञाकारी न हो, तो वंश ही नहीं पूरा समाज, पूरा देश दूषित होता है। फिर लड़का या पुरूष ही दोषी क्यों? इसमें दोनो को दोषी माना जाये या खास ध्यान रखा जाये।
07. जहाँ पर भी न्याय विभाग के प्राणी रहते हैं, वहाँ के आसपास कोई, कैसी भी अनियमितता पाये जाने पर न्याय विभाग के कर्मचारी को दोषी माना जाये क्योंकि, इस विभाग में रहने वाले को अनियमितता देखते ही, सम्बन्धित विभाग को शिकायत करनी चाहिये और सबको गलती की शिकायत करने के लिये कम से कम माह में एक बार जरूर ध्यान दिया जाये। वरना 50/-या 200/-रुपये हर दिन जुर्माना राजकोष मंे जमा कराया जाये। इन्टरनेट का इस्तेमाल बेहद आसान है। घर की नारी भी करती तो है, शिकायत सुधार के लिए भी करें।
08. छोटी अदालत की चेकिंग के लिये प्रदेश के, केन्द्र से टीम आती है। इसका आना छोटी अदालत ही नहीं पूरे, न्याय विभाग के, हर प्राणी की बेइज्जती करने जैसा है। इनके आते ही पूरी अदालत को दोषी करार देना चाहिये या छोटी अदालत की शिकायत पर ही, इन्हें आना चाहिए और आकर, वहाँ की हर अदालत को चेक करें, वहाँ के केस, उन्हीं जजांे से हल करायें व उन पर थोडा-थोडा जुर्माना करें, जिससे सबकी कर्मठता बढे़, यह टीम टी. ए., डी. ए और खर्चा बढ़ाने, उपर का पैसा कमाने की स्कीम, मानी जाये और दोषी मानकर दण्डित किया जाये, इनके आने-जाने से सुधार की जगह अनियमितता बढ़ती पाई गई है।
09. खासतौर से पूरे न्याय विभाग को ध्यान रखना है कि उन्हें पगार, जजमेंट करने की दी जाती है न कि मीटिंग करने या केस पेन्डिंग करने की।
10. अदालत में शिकायत बाॅक्स और शिकायत रजिस्टर रखे जायें। शिकायत बाॅक्स अदालत के पूरे परिसर के गेट तक पर हांे। जिससे हर गलती की शिकायत, हर प्राणी निडर हो कर सके। नोटिस बार्ड हो, जिस पर हर माह की शिकायत दर्ज हो। शिकायत बाॅक्स खोलते समय अधिकारी के साथ, जो शिकायत ज्यादा करता हो या जो मुजरिम हो, मौजूद रहें, हस्ताक्षर करने भी जरूरी हैं। सजा केवल पगार के मुताबिक, पहली सजा निश्चित समय में। दूसरी गलती पर पहले जुर्माने का 5 गुणा बाद में 10 गुना निश्चित किया जाये, चाहे कर्मचारी या अधिकारी रिटायर या मर ही जाये, जुर्माना अविलम्ब राजकोष में जमा हो, कुछ की गलती 10 साल बाद तक खुलती है और हमारा वफादार कर्मचारी व अधिकारी, इस पैथी (विधि) पर चलते रहते हैं। यह जुर्माना नोमिनी और परिवार से वसूल किया जाय। सजा में, न संस्पेंशन, न जेल, न तबादला।
11. हमारे यहाँ विजिलेंस, सी. बी. आई., एल. आई. यू. और खुफिया विभाग तक हैं, किसी दूसरे को दोषी मानने से, पहले वहाँ के विजिलेंस, सी. बी. आई., एल. आई. यू. और खुफिया विभाग को, दोषी मान कर कठोर सजा का हकदार माना जाये और अविलम्ब सजा दी जायें। विभाग में प्रोत्साहन के लिये केवल शिकायत करने वाले की गिनती पर, प्रमोशन या ईनाम दिया जाये, गैर सरकारी को खास ईनाम हो, जिनमंे सरकारी नौकरी तक हो, हमें कर्मठ, वफादार कर्मचारी ही बढ़ाने व रखने हंै, नियम बनाया जाये।
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