सजा और सुधार
सृष्टि बनने से पहले ही खासतौर सजा और सुधार जैसा नियम बना। प्रकृति ने, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड ने, हिन्दू धर्म के मुताबिक 84 लाख योनि बनाई और इस समय एक-एक योनि के असंख्य जीव हंै, लेकिन उसने शुरू से सजा और सुधार की पैथी (विधि), हर जीव व निर्जीव में रखी। खासतौर से हर जीव में दिमाग दिया और ऐसा किया कि दिमाग के द्वारा शरीर से, जो भी काम कराता है, गलत होने पर अपने आप, उस जीव की सजा बन जाती है। उसका जीवन खराब हो जाता है या कष्ट उठाता है।
यहाँ तक की अकाल मृत्यु तक हो जाती है। सही काम होने पर ईनाम के रूप में अजीब-अजीब उपलब्धि होती है, जीवन सुखमय होता है, मौत तक टल जाती है, उम्र बढ़ जाती है, ये ही नहीं, युग बदलने पर, यह जीव जिन्दा तक बच जाते हंै। गलत की छाया में या साथ रहने से, जीव को गलती करने से कोई नहीं रोक सकता। गलत छाया गलती कराती है और उसके साथ रहने वाले को भी सजा भुगतनी पड़ती है। जिस प्रकार जुकाम जैसा छोटा सा रोग, पास बैठने वाले को भी लग जाता है। यह सब केवल दिमाग के द्वारा ही संचालित हुआ है, कैसे या किस प्रकार होता है, गहरे शोध का विषय है। गलती करके सजा से बचना नामुमकिन है और गलत की छत्र-छाया में रहकर या गलत की संगत होने पर, सजा से पूर्ण रूप से बचने के लिये, अपने धर्म का पालन करते रहने से और प्रबल मजबूत इच्छा शक्ति व अच्छे आचरण से सजा में कमी लाई जा सकती है, या कभी-कभी बचा भी जा सकता है। सब जीवों में यह नियम बरकरार है, बल्कि ध्यान दें, तो निर्जीव में भी देखा व समझा जा सकता है। जैसे सूर्य के पास वाले ग्रह गर्मी से ग्रसित हैं और बाँझ औरत की तरह, हर जीव से वंचित है।
यह गलत के पास रहने की या गलत छत्र-छाया की सजा ही तो है, ऐसे अनगिनत सबूत है। निर्जीव में भी दिमाग है, यह कहना फिलहाल अधूरा है, क्योंकि गहरे शोध का विषय है और कहा जाता है कि निर्जीव में कुछ नहीं है, लेकिन सच है कि पत्थर में जीव के गुण है और जीव के गुण हैं, तो दिमाग भी होना ही चाहिये एक छोटा पत्थर पानी में पड़ा रहने से विशाल बन जाता है। करोड़ों साल से हिमालय, जैसा पर्वत हर मौसम बर्दाश्त करते हुए उतना ही उँचा है, जबकि बारिश, तेज हवा हमेशा, हर पल उसका अथाह मलबा या पत्थर उपर से नीचे की तरफ पहुँचाते रहते हंै। यह पहाड़ जमीन के नीचे से बढ़ते रहने के कारण ही, पहले जितना ही उँचा रहता है। जीव में मनुष्य पत्थर की पूजा करता है और मनोवांछित फल पाता है कैसे? पत्थर ही नहीं, नदियों की पूजा, माटी तो हर कोई माथे से लगते हंै, यह पैथी (विधि) पूरे ब्रह्माण्ड में हैं।
विज्ञान का कहना कि इच्छा शक्ति के प्रबल होने से, उसे छूने वाली की इच्छा पूरी होती है। मन की बात है, लेकिन ज्ञान कहता है कि एक बुद्धि के, दूसरी बुद्धि से मिलने पर बुद्धि के द्वारा शरीर के आचरण में ऐसा काम हो जाता है, जो फायदेमंद होते हैं और वह जीव ही नहीं, सारी सृष्टि सुख उठाती है या उसको छूने से अदृश्य किरणें, आकर्षण द्वारा हमारे दिमाग या शरीर में चेंज लाती है। फलस्वरूप शरीर को फायदा होता है या मनोवांछित फल पाते हैं, प्रत्यक्ष प्रमाण है, जैसे शिव (पत्थर) और पीपल, तुलसी की पूजा में, हम उस पर हाथ लगाते हैं, फलस्वरूप इनके शुभ गुण पूजा करने या छूने वाले के अंदर आते हैं।
इस समय मशीन आज्ञाकारी है, लेकिन जीव की तरह सुनती नहीं है, केवल हैण्डल करने से काम करती है, लेकिन हमंे उसकी हर रिक्वायरमेन्ट पहले पूरी करनी पड़ती है, अगर हम जीव की पहले, हर रिक्वायरमेन्ट पूरी कर दें, तो वह भी आज्ञाकारी बन जाता है और इशारे पर, हर काम को अन्जाम देता है, जैसे बन्दर घोड़ा, कुत्ता, हाथी आदि, बस जीव अपने जैसा दूसरा, अपने शरीर के द्वारा पैदा करता है और हमें पालना या सिखाना पड़ता है। मशीन कोई बनाता है या लाता है और हैण्डल करने वाले को सीखना पड़ता है और दूसरा कोई भी हैण्डल कर सकता है, मशीन नहीं, लेकिन पत्थर के टुकड़े-टुकड़े हो जाने पर, हर टुकड़ा एक बड़ा पत्थर बनता है। वैज्ञानिकों की पैथी (विधि) में, पत्थर के मुताबिक वातावरण, दबाव और अनुकुल मौसम मिलने से रसायनिक क्रिया के द्वारा, यह पत्थर बड़ा बना। जीवों में भी गर्भाधान या ससेंचन के बाद, रसायनिक क्रिया से, दूसरा जीव उसी जैसा या उसी नस्ल का बनता है। इसे चेंज या सुधार भी कह सकते हैं, कहना यह है कि सजा और सुधार करना, प्रकृति या उपर वाले की देन हैं। मनुष्य बुद्धिजीवि है, सर्वोपरि है। सुधार की दृष्टि से सजा और सुधार नियम, खुद अपनाया, होश समभालते ही नियम और कानून बनाकर अमल में लाया।
सृष्टि में पहले पुरूष, नारी और अन्य जीव रहे। पुरूष बड़ा होने के कारण, नारी के साथ, सजा-सुधार नियम अपना कर, अपना जीवन शुरू किया। हर एक को अपने लिये या अपने फेवर का बनाया। मतलब सुधार किया, धर्म रहने से पत्नी के लिये या खुद के लिए सुधार किया। खानपान, रहन-सहन खुद को सुरक्षित रखने के लिये, सब पर कन्ट्रोल रखा, जिसमें गलती पर अविलम्ब सजा पैथी (विधि) को, सबसे ज्यादा अपनाया गया। वंश बढ़ा, पहले पत्नी का बढ़ा और कुछ जीव, निर्जीव का भी बढ़ा था, मुखिया था, अब वह बिरादरी का भी हुआ, मोह भी था लेकिन सजा का नियम बरकरार रखा गया। वंश बढ़कर कबीला बना और बढ़ते-बढ़ते समाज बना।
घर से गाँव बने और फिर अनगिनत गाँव बने। मुखिया से प्रधान, प्रधान से राजा, राजा से महाराजा बने, यह सब सजा और सुधार के नियम को कठोरता से पालन करने के बाद ही मुमकिन हुआ।
पहले ही घर के मुखिया ने, सबको उनके मुताबिक काम बाँटे और उनको जाति का रूप दिया। सजा और सुधार के नियम पर ही यह सही हुआ। भीड़ बढ़ी और उसके साथ-साथ काम भी बढ़ा, जिसके कारण कामगार भी बढ़ाने पड़े, जैसे-जैसे बढ़ोत्तरी होती है, उसका सूत्र ही सजा और सुधार है। हमें कैसी भी बढ़ोत्तरी करनी हो, चाहे धर्म या आश्रम बनाना हो, तो भी सजा और सुधार पर ध्यान देने पर, विशाल धर्मस्थल या आश्रम निश्चित बनेगा। आश्रम में जो आज्ञाकारी हैं, उसे आगे रखिये या पास रखिए और दूसरों की देखभाल रखिये और यहाँं पर सजा केवल गुरूमंत्र का ना देेना, देर से देना, सजा ही है। किसी की जरा सी गलती पर उसे गुरू मंत्र ना दें। अगर गुरू मंत्र दिया जा चुका है, तो उसे बड़े काम से हटाकर, छोटे काम पर लगाना, सजा देने के बराबर है। सुधार अपने आप हो जायेगा।
समाज बना, फिर प्रजा बढ़ी। प्रजा की सही परवरिश के लिये कर्मचारी बढ़े। कर्मचारी बढ़े तो विभाग बनाने पड़े, यह सब गाँव, जिला, प्रदेश और केन्द्र के लिये या केन्द्र से सम्बन्धित रखे गये। उल्लेखनीय बात है। बड़े को, मेहनत हमेशा ज्यादा करनी पड़ती है। मुखिया, प्रधान, राजा-महाराजाओ में, सब कुछ बनाया है और खुद चेक करना और खुद करना या करके दिखाना, अब भी जारी है, जैसे न्याय करने में खुद, लेकिन तहकीकात में कर्मचारी और खुद भी थे। खुद की सेना थी, जो पूरी तरह सक्षम थी, लेकिन लड़ाई में सबसे आगे रहते थे, आगे रहने के लिये निपुण होना जरूरी होता है और निपुणता के लिये हमेशा मेहनत करनी जरूरी है, जो वह लगातार करते थे। वह जानते थे कि गलती हुई तो सजा मिलेगी, वह भी पूरे राज्य को, मुखिया ने शुरू से सजा और सुधार नियम का रब या भगवान की तरह पालन किया, बढ़ते-बढ़ते महाराजा तक बना।
सजा और सुधार में कमी आयी और अंग्रेज पूरे भारत में छा गये, फिर सजा और सुधार में सख्ती आयी और अंग्रेजो को भागना पड़ा।
भारत स्वतन्त्र हुआ। हमारे हर विभाग में गलती पर सजा, सबसे पहला नियम है, जो कर्मचारी के उपर कर्मचारी, बड़े कर्मचारी के उपर अधिकारी, अधिकारी के उपर बड़ा अधिकारी और लास्ट में जी. एम., जी. एम. के उपर नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और सुप्रीम न्यायमूर्ति तक केवल सजा और सुधार नियम बरकरार रखने के लिये रखे गये।
खास हिदायत है कि यह भी सजा और सुधार की हद में रहे हैं। यह सब मिल कर गद्दारी न करें, वैसे मिलना नामुमकिन है, फिर भी शक के बिना पर विजिलेंस, सी. बी. आई., खुफिया विभाग और लोकल इल्टेलीजंेस यूनिट तक रखी गई। घर हो, फैक्टरी हो, खेत हो या सरकारी विभाग हो, अस्पताल हो, मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा हो, गिरजा घर हो विजिलंेस हो, सूचना विभाग हो, नेता हो, जनता हो गलती पर सजा सबके लिये है।
गलती पर सजा देने का उद्देश्य केवल गलती करने वाले का और आस-पास सबकी सुरक्षा है। चोर को सजा दी जाती है, जिससे वह चोरी जैसा गन्दा काम छोड़ दे और जीवन सुधारे। हमने जुर्म में मौत की सजा भी रखी, जिससे दूसरा कोई करने वाला डरे और जुर्म न करें, लेकिन एक जीव को सजा देकर मार दिया जाता है, नाजायज नजर आया और कानून ने यह सजा लगभग खत्म करके, उम्र कैद रखी। इसके अलावा छोटे-बड़े में सजा का डर रहे, मुजरिम न बने इसलिये अखबार, मीडिया और अगली सजा 5 गुना की, सजा का नियम बनाया।
इस समय हर इंसान रिश्वत लेकर गलती कर रहा है और खासतौर से परिवार व स्टाफ व अधिकारी तक पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं और सजा सबकी बन रही है, कर्मचारी काम लटका कर रख रहे हैं, नेता काम न करके पैसा और वोट इकट्ठे करने में, सबको बेकार बना रहे हंै। इन सबको गलती पर सजा नहीं मिल रही है, इसलिए बाकी सब सजा भुगत रहे हैं।
हर विभाग नुकसानदायक हो रहा है। महँगाई बढ़ रही है। खेत की बाड़ ही खेत को खा रही है। गधे पंजीरी खा रहे हैं, यह सब केवल इसलिये हो रहा है कि गलती करने वालों को सजा नहीं दी जा रही, उसका सुधार नहीं किया जा रहा। गलती पर सजा न देना भी बेहद बड़ी गलती करना है और प्रकृति का नियम है, सबको सजा भुगतनी पड़ेगी।
जैसे गलत खाया, गलती मुँह हाथ ने की, दर्द पेट में होता है, दिमाग और पूरे शरीर ही नहीं पूरे परिवार, पूरे अस्पताल को भुगतना पड़ता है। इसलिये सजा और सुधार पर खास ध्यान रखना ही चाहिये, यह बात सुप्रीम न्यायमूर्ति, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तक सब जानते हैं लेकिन यह राजा नहीं हैं, नौकर हैं, वह भी उम्र केवल 5 साल है। वोट बैंक, सीट का लालच, सब कुछ भूलाने के लिए मजबूर कर देता है जो सबकी सजा बन जाती है। प्रत्यक्ष है।
जो भी गलती करता है, वह उसका परिवार सम्बन्धी और पूरी जाति कभी-कभी वह पूरा धर्म उसकी सजा की चपेट में आता है। इतिहास गवाह है, आज भी लोग कह देते हंै, यह खून ही खराब है, उस इंसान से लोग सम्बन्ध नहीं रखते, उनमें शादी विवाह नहीं किया करते, पूरा का पूरा गाँव बदनाम हो जाता है, सब व्याधा, परेशानी, बेइज्जती से बचने और बचाने के लिये मतलब सबको सजा से बचाने के लिये, उस गलत प्राणी को सजा देकर, पाक-साफ करना या सुधार करना ही श्रेयकर है।
इस समय इंसान बेहद गिरा है जबकि पढ़ने-लिखने के बाद ज्ञान बढ़ना चाहिये, बोल्डनेस आनी चाहिये, लेकिन इस विज्ञान के समय में निश्चित ही मनुष्य बेहद गिरा है, आज हमारे पास अनेक उपलब्धि आयी है, हर सुख है। पेड़ांे से साल में फल ले लेते है, जबकि पहले 10 साल लगते थे। बिना मुर्गे के मुर्गी से अण्डे ले लेते हैं, गाय, भैंस से दूध ले लेते हैं, महीनों का सफर दिन में कर लेते हैं, दूरदर्शन देखते हैं, राजा-महाराजाओं जैसा खाना और पहनना है, वहीं नेचर बेहद खराब हो गई है, रिश्वत लेना-देना, लड़की-लड़के का पहनावा तक भूल गये हैं, धर्म इज्जत पर ध्यान नहीं हैं, गलत को गलत, सही को सही कहने से झिझकते हैं।
पैसा चाहे गलत हो, ऐसे-पैसे और ऐसे पैसे वालो की इज्जत करते हैं, गलत को यह कहकर छोड़ देते है कि इसका फैसला भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड करेगा, हम नौकर, नेता, नारी, बच्चा, पशुु और मशीन को रखना-पालना ही नहीं जानते हैं, या गलती पर सजा देना या शिकायत करना भी नहीं जानते। छोटांे को गलती पर सजा देना या शिकायत करना भी नहीं जानते, छोटों की, अपनों की गलतियाँ छिपाकर उनका, अपना व सबका जीवन नष्ट कर रहे हंै और अपना, उनका और साथ में सबका जन्म खराब कर रहे हैं।
हमंे रब का या प्रकृति के नियम का या कानून का, पूरी तरह ध्यान रखना है, उनके नियम गलती पर सजा और सुधार नियम का पालन करना चाहिये, खासतौर सब अच्छों की उम्र बढ़़़़़़़़े। पृथ्वी, चाँद, सूरज हर जीव बना। गलती मंे अति होने पर, सजा देने का काम प्रकृति या रब करेगा। यह पृथ्वी आपकी है, आप किसान हैं या किसान के पास नौकर हैं। हर सरकारी प्राणी और विभाग आपका है या आप वहाँ कर्मचारी व अधिकारी हैं। आप नेता हंै या वोटर, आप विद्यार्थी हैं या शिक्षक। सबका कानूनी नियम है बल्कि पहला नियम है, गलती करो सजा मिलेगी। इसलिए अनियमितता देखो, सुधार करो। हम अपने छोटांे को हर शिक्षा शुरू से देते है। मनुष्य में पहला गुरू माता कहलाती है, हर जीव में माँ के पीछे चल के बच्चे सीखते हैं, सीख में हर बात सीखते हैं, हम सफाई-सुधार भी सिखाते हैं, झूठ मत बोलो, अत्याचार के आगे मत झुकों, झुकना पड़े तो बाद में कभी बदला लो आदि-आदि।
हम आप सब किसी के छोटे हैं। हमें आपको सबको भी सिखाया गया है। जीतना भी सिखाया गया है। बचना भी सिखाया गया। फिर हम इतने कैसे गिर रहे हैं कि केवल गलती पर सजा नहीं दंे पाते? कहीं प्यार के वश में, कहीं मोह के वश में, कहीं लालच के वश में, कहीं सुस्ती के वश में और आज हमारे छोटे कमजोर होने लगे हैं।
छोटी सी शिक्षा ने, हमंे खराब किया, जैसे वक्त के साथ चलो, वक्त बलवान है। पानी के बहाव की तरफ चलो। गलती करने वाले को माफ करना महानता है, आदि-आदि और अच्छी बात भूल गयेे। यह सब बातें गलत नहीं है। गलत हो ही नहीं सकती। बस ध्येय क्या है समझना पड़ता है। हमंे जीतना है। हमंे गलती पर सजा देनी है। हमंे अपनी आने वाली नस्ल सुधारनी है, तब यह सूत्र काम के हंै। वक्त के साथ चलो। वक्त बलवान है, किसी ने रिश्वत ली। पैसा आपका या आपके बाप का या आपके बेटे का है, उस समय सामने वाला बड़ा है, तो वक्त के साथ चलो। वक्त बलवान है वह गलत कर रहा है। उसे याद रखो और वक्त आते ही सुधारना है। अभी बहाव की तरफ ही चलना है, मजबूरी है। बाद में वक्त आने पर 5 और 10 गुना वसूल करो और दिखाओ आप किसी मर्द की औलाद हंै, शिकायत कर नहीं सकते, काम रोक नहीं सकते लेकिन वक्त तो, आपका आयेगा। आप किसी का साथ ले नहीं पाये, तो बाद में तो दूसरे को हरा सकते हंै। गलती करने वाले को माफी देना महानता है, लेकिन अगर उसने माफी माँगी है तब, यह माफी देना महानता है। लेकिन माफ करने से पहले उसने कितनी गलती की है, आगे करेगा या नहीं, यह सोचना-समझना और भी ज्यादा महानता है।
वह गलती करने वाला, भी गलती पकड़े जाने पर वक्त बलवान है, पानी के बहाव से साथ चलो। चलते पानी में हाथ धोओ, नियम अपना कर गलती की सजा से बचना चाहता है और माफ करने लायक है या नहीं, यह सोचना समझना आपका काम है। अब सोचना यह है कि सजा इसे नहीं दी, तो दूसरे सब सजा भुगतेंगे। इससे अच्छा यह है कि वही सजा भुगते।
सबूत अनेक हैं लेकिन सच्चाई यह है कि छोटे निश्चित गलती करते हैं। नारी, बच्चा, नौकर, नेता और पशुु को, आपने सजा नहीं दी, गलती पर। तो पूरा घर, परिवार, खानदान, फैैक्ट्री, गाँव, शहर, पूरा विभाग, पूरा देश और तो और सारी सृष्टि सजा निश्चित भुगतेगी और सबका इलाज गलती करने वाले को सजा देना ही है।
आपकी शादी हुई, पत्नी आयी। शुरू में चाहे वह आपकी इच्छानुसार, हर धर्म निभाती है, आप उसे बेहद प्यार करते हैं, कुछ समय बाद ही धीरे-धीरे उसके धर्म में कमी आती जाती है। वह आपके डर से सारे धर्म कर रही थी, वह डर भी कम होने लगता है। आपने पहली गलती पर सजा नहीं दी या भूल गये या गलती नजरअन्दाज कर दी, तो आपने भी गलती कर दी। यह गलती बेहद बड़े रूप में आयेगी, निश्चित है।
आपने शुरू में उसे बचा लिया। शिक्षा देना आपका धर्म भी है। आपने कहा भी है लेकिन जब पहले, आचरण में गलती की है, आगे भी जरूर करेगी। पहले आपको भगवान कहती, समझती थी, आपके एक बच्चें के आने के बाद, वह भी भगवान रूप है, होना चाहिये, लेकिन ऐसा होता नहीं। उसे हमेशा परेशानी का कारण समझती है, यह धीरे-धीरे ही उजागर होता है। जो आपने पहले समझा या सोचा भी नहीं, फिर इस बच्चे के बड़े होने पर, आपकी समझ में आयेगा। अब प्रातः उठाते, समय आपके पुत्र को, आपके सामने गाली दी जाती है। यह उस गलती की बढ़ोत्तरी है, जो पहले की थी और अपने बिना माफी माँगे माफ कर दी थी। यह आपका बच्चा, आपका आईना है। बच्चे के बडे़ होने पर, आपको सुनना पड़ता है कि यह कहना नहीं मानता, पढ़ता नहीं, काम नहीं करता।
बच्चा आईना है, वह दिखा रहा है। आप पति-पत्नी ने पहले गलती की है। छोटे ने एक गलती की, बड़े ने सजा नहीं दी, फिर अनेक गलती करती रही। हर काम अपनी इच्छा से करना, आपके माँ-बाप की सेवा न करना या उन्हें गलत समझना, उनसे दूर रहना। शादी के बाद अपने माँ-बाप की इच्छा करना या आपकी बिना इजाजत के पूजा-इबादत करना या ऐसे करना, जहाँ आपकी बाधा बढ़े, यह सब गलती ही तो है। एक नौकर भी ऐसा करता है, पशुु और बच्चा भी करता है, नेता भी ऐसा करते हैं, इससे आपका और सबका जीवन खराब हो जाता है।
आज तो हर जगह आम या मामूली नजर आता है, वह सब आपके द्वारा शुरू में गलती पर सजा न देने का फल ही है। नारी, बच्चा, नौकर नेता व पशुु का फर्ज है, बड़े की इच्छा से करे। चाहे दिन का काम है, फिर भी पूछे तब ठीक है, इतना कहना ही समझदारी और आज्ञाकारिता का सबूत है। ऐसा करते रहने से सारी कमियाँ खत्म होती जाती हंै, बड़े हमेशा सामने नहीं रहते, इसलिये कहना-पूछना थोड़ी देर का ही होता है और कहा या पूछा जा सकता है। पशुु शान्त रहता है, बेहद कम या गिना चुना काम है। मशीन भी शान्त है, हैण्डल ही करनी होती है। ऐसी नारी व नौकर और पशुु महान इज्जत पाते है, पूजे जाते है। वहाँं समद्धि होती है, हर व्याधा खत्म होती है। बड़ा या बड़े, सूरज के समान होते हैं।
पृथ्वी, चन्द्रमा, बुध, बृहस्पति अन्य ग्रह छोटे होते हैं और सूर्य (बड़े), के हमेशा चक्कर काटते हैं। उससे दूर नहीं जाते, जैसे उसकी आज्ञा में रहते हैं, आज्ञा का उल्लंघन करते ही, उन्हें भी सजा मिलती है, वह छिन्न-भिन्न हो सकते हैं, वह खत्म हो जाते है। सूर्य बड़ा है, छोटों की गलती का असर जरूर पड़ता है, लेकिन बड़े होने के कारण, कम असर पड़ता है। इसी गलती का सुधार भी है। गुरूत्वाकर्षण शक्ति सूर्य की शक्ति, छोटों को चारों तरफ घुमाती जरूर है लेकिन दूर जाने से रोकती है।
जैसे-जैसे समझदारी बढ़ती है, समय के साथ-साथ, हर एक में दोष कम होते जाते हैं, गलती कम करते हंै, लेकिन यह गुण लगातार बन्धन में रखने, गलती पर सजा देते रहने से या समझदारी आने पर ही होता है। जैसे एक पशुु, बैल, घोड़ा या कुत्ता, आपका इशारा भी समझकर वही करता है, जैसा आप चाहते हैं। बन्दर तो नाच तक दिखाता है, पहले इन सबको प्यार से, डर से, लालच से, डंडे से कुछ दिन सिखाना पड़ता है, वह भी लगातार। ऐसे ही हर छोटा होता है, बड़ों की बात है, सजा के डर के कारण, वह आपके वफादार हैं या आपके अपने हैं। भय बिन प्रीत नहीं। कर्म बिन गति नहीं।
हमारे जितने कर्मचारी व अधिकारी रखे गये या विभाग बनाये गये या नेता बनाये गये, उन सब मंे गलती पर सजा के नियम और कानून सबसे पहले बनाये गये। चाहे वह न्याय-मंत्रालय हो या राष्ट्रपति हो, बिल्कुल इसी प्रकार, जैसे परिवार में, समाज में, सम्बन्धों को बेहद अच्छा बनाने के लिए, शरीर और जीवन अच्छा बनाने के लिए, बड़ों ने, गलती पर सजा का नियम बनाया। हमारा बेटा, बेटी, बाबा, दादी, चाचा, ताऊ (हमारा अपना खून), जो भी है, यह और अच्छे बनें। इनका जीवन अच्छा हो, अच्छा समाज बने। यह सम्बन्ध मनुष्य ने बनाये। गलती पर सजा रब ने या बड़ों ने बनाई और दूसरा खून या धर्म के रिश्ते, जो इंसान ने बनाये, जैसे पत्नी, सास, ससुर, साले साली और सब मंे, बेहद सुन्दर, अच्छे, सुखी जीवन, इनका खुद का, समाज का और हमारा भी सुखी रहे, इसके लिए मनुष्य ने गलती पर सजा और सुधार के लिए नियम और कानून बनाये। बल्कि हर कर्म में बनाया, जैसे तलाक, हुक्का-पानी बंद करना, बहिष्कार करना, बच्चों को पिटना, जानवर को डण्डे से सिखाना, पत्नी को डराना आदि। यहाँ तक कि मशीन में रिपेयर, हथौड़ा बजाना, तेल ग्रीस देना आदि तक। मशीन में ग्रीस, तेल देना, उसकी रिक्वायरमेन्ट पूरी करना भी है, जैसे एक कर्मचारी को रिश्वत देना या बन्द मशीन को धक्का देकर चलाना एक बराबर है।
राजा बनने के बाद नामुमकिन है, अगले जन्म में कंगाल या गरीब न बने, क्योंकि राजा से जाने-अनजाने गलती हो जाती है। दूसरी तरफ कंगाल या गरीब बनने के बाद, नामुमकिन है कि राजा या अमीर, इसी जन्म में या अगले जन्म में ना बनें, राजा या अमीर जरूर बनता है। क्योंकि गरीब बना, तो जाने-अनजाने में धर्म हो जाता है या धर्म करता है, या गलती की सजा भुगतता है, प्रायश्चित करता है या प्रायश्चित हो जाता है। प्रायश्चित करना या सजा भुगतना एक ही बात है।
आज हम सारे सरकारी प्राणी, नेता या विभाग को देख रहे हैं कि यह सब, पहला नियम भूल रहे हैं, छोड़ रहे हैं, इसी प्रकार धर्म के रिश्तों में, पहला नियम, पहला धर्म भूल रहे हैं या छोड़ रहे हैं। यही गलती, खून के रिश्ते में भी, हम कर रहे हैं और इसलिए हमारे सारे विभाग, सारे सम्बन्ध, फायेदमंद होने के बजाए, बेहद नुकसानदायक हो रहे हैं। जबकि एक विभाग भी सही चले, तो पूरे देश को पाल सकता है या एक-एक विभाग पूरे देश को पाल सकता है। हम एक भी सम्बन्ध सच्चाई और सही तरीके से निभायें, तो पूरा घर, पूरा खानदान, सही बन सकता है, चल सकता है। हमें पहला नियम, ”गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ पर बेहद सख्ती से अमल करना ही चाहिए। सुधार-सफाई के लिए राजा ने जेल बनाई जिसमें मुजरिम सजा भुगतता है या प्रायश्चित करता है। प्राणी से गलती न हो, इसलिये सुधार के लिये बच्चे को, स्कूल, बीमार को अस्पताल, कर्मचारी को टेªनिंग सेन्टर भेजते हैं। बच्चा, नौकर, नेता, मशीन, और नारी, यह सब ताड़न (देख-भाल) के अधिकारी। मनुष्य ने सबका शुरु से ध्यान रखते हुए, सबके सुधार के लिये ट्रेनिंग सेन्टर, पाठशाला ही नहीं, मशीन तक के लिये, बडे़-बड़े वर्कशाप और फैक्ट्री तक खोली, बड़े-बड़े आश्रम भी इसी का रूप है, राजा-महाराजा, अपने बच्चों के सुधार, के लिये जंगल में गुरूओं के आश्रम में भेजते थे, सबूत है, अपने सुधार के इच्छुक, होनहार विभूतियाँ, केवल गुरू की मूर्ति को खुद बना कर, गुरू मान कर अदित्य खुद का सुधार किया, एकलव्य मिसाल है। हमने चारो का सुधार किया या कराया, उसमें सब कुछ परफैक्ट किया है। नारी, बच्चे, नौकर और पशुु को, नारी को बचपन से पराया धन कहकर, माँ से लेकर पूरी नारी जाति व पुरूष जाति, नारी के बुढ़ापे तक सजा और सुधार के तहत बाँध के रखा, लेकिन नेता की सजा और सुधार अब तक है नहीं। नेता की कभी-कभी जेल भी होती हैं, तो वह भी वी. आई. पी. होती है। इसकी सजा और सुधार, तो है ही नहीं, केवल इसके सुधार के लिए जनता ही है और भविष्य मंे, जनता को, नेता का सुधार करने से कोई रोक ही नहीं सकेगा, यह सूत्र हर पाँच साल वाले पर निश्चित लागू होगा। संसार के सारे प्राणी व यूनिटी को निमंत्रण हैं, वह खुद या सब मिलकर, कहीं पर भी या सब जगह की हर अनियमितता खत्म करके, सारे संसार को सुनहरा बनाकर खुद को धन्य करें और सब अच्छों पर एहसान करें।
प्रकृति के इस नियम को बरकरार रखने, सारे सुख उठाने, समाज व देश को सुधार करके चलाने के लिये, व सजा और सुधार का ध्यान रखने के लिये कुछ नियम बनाने हैं और उन पर सख्ती से अमल करना ही चाहिए, जो वक्त के अनुसार खुद भी, उसी समय जरूरत के मुताबिक भी बनाये जा सकते हैं। यह हक सबको है यह प्राकृतिक गुण भी है।
सुधार-सफाई के लिए विचार
01. सजा का डर सबमें बरकरार रखना ही चाहिये, यह हर जीव-नीर्जीव में प्राकृतिक है। हम सब छोटे से बड़े बनते हंै। हम छोटे हैं और बडे़ भी हैं। गलती न करें। गलती हो जाने पर जो कि निश्चित जाने-अनजाने में होती ही है, गलती मानकर माफी माँग लेनी चाहिये माफी मिले या न मिले, माफी माँगने के बाद गलती न हो, ध्यान रखना चाहिये या जल्द से जल्द प्रायश्चित कर लेना चाहिये। खुद का व सबका भला इसी में है, बेहद आसान है, कोई जीव हो, गलती छुपाना बेहद गलत है, सजा हजारांे गुना बढ़ानी है, वह भी सब की।
02. अगर हम बड़े हैं तो छोटांे को गलतीयाँ समझायें। जिसमें साम, दाम, दण्ड, भेद गुण का इस्तेमाल करके गलती समझाने और उसे सुधारने में बेहद आसान होती है और उसके माफी माँगने पर सहनशीलता, दूरदृष्टि, समझदारी से हल्की सजा या डर दिखा कर माफ करें, जिसमें ध्यान रखें, गलती करने वाले को गलती का अहसास तो हो, परन्तु मायूसी नहीं। अच्छाई में वह अग्रसर हो। काम में निपुण हो और आगे के लिये गलती होने पर ज्यादा कठोर सजा का अल्टीमेटम दें।
03. गलती करने वाला किसी का कुछ नहीं होता या वह गलती से अनजान होता है या गलती की सजा से अनजान होता है, ऐसे गलती करने वाले की गलती उस समय नजरअन्दाज करना श्रेयस्कर है। लेकिन ध्यान रखें, आगे वह गलती न करे, ऐसे में डर दिखाना जरूरी है।
04. गलती पर, पिटने जैसी सजा कभी-कभी जरूरी तो है, परन्तु सीमा में, क्योंकि गलती करने वाले को डर दिखाना है। गलती करने वालो को डर जरूरी है। जो पिटाई करके समझाने पर समझता है। पिटने से शरीर चोटिल हो सकता है, जो नुकसानदायक भी है। हमारा ध्येय गलत को सुधारने का होना चाहिये, पिटाई का नहीं। अधिकतर पिटने से बच्चे, नारी और ज्यादा ढीठ हो जाते हैं। पुलिस की पिटाई मुजरिम को और मजबूत मुजरिम निश्चित बना देती है। सही सजा गलती करने वाले को गलती का अहसास कराना ही होता है और बड़े की शिक्षा, छोटांे की गलती पर सजा से निश्चित मिलती है। अतः हाथ छोड़ना पड़े, तो छोटे पर डराने के ध्येय से ही पिटा जाये।
05. सरकारी नौकर की गलती सुधारना बेहद मुश्किल होती है। जबकि उसके अधिकारी उसके साथ हो। लेकिन सुधार का ध्येय या सूत्र छोड़ा ही नहीं जा सकता है। सरकार ने उनकी सजा के नियम भी बनाये हंै। अदालत भी है, फिर भी बेहद मुश्किल है या बेहद देर लगती है। इसके लिये सही तरीके से शिकायत करना ही श्रेयस्कर है, ध्यान रहे उसके पेट पर लात नहीं मारनी है, उसे अहसास कराना है, उसके उपर नकद अविलम्ब जुर्माना लगाकर राजकोष में जमा कराना है। उसके मातहत, उसके साथी, उसके अधिकारी को भी दोषी करार दिलाना है, क्योंकि इनके साथ सहयोग या छत्र-छाया के बिना कोई प्राणी गलती कर ही नहीं सकता। इसके लिये शिकायत लिखें। तीन प्राणीयों के वोटर/आधार नंबर सहित हस्ताक्षर करायें। तीन कापी बनायें। एक उस विभाग में, दूसरी उससे बड़े विभाग मंे खुद दें। रिसीविंग लें और एक माह बाद दूसरा रिमाइण्डर भेजें, साथ ही परेशानी जरूर है। परेशानी बड़ी भी हो, लेकिन आगे सबकी परेशानी दूर होती है इसलिये शिकायत करना सबसे बड़ा धर्म है। अपनांे में साथ देने वालांे को साथ लें। निश्चित कामयाब होंगे। ध्यान रखें वह सीट पर या नौकरी पर बरकरार रहे, क्योंकि उसकी नौकरी जाते ही उसके बाद आने वाला भ्रष्टाचार में, उसका बाप हो सकता है। दूसरे पेट पर लात मारना पाप है। तीसरा दुश्मनी बढ़ सकती है। गलती करने वाले को अहसास कराना है। जुर्माना राजकोष में जमा कराना है। दूसरी गलती निश्चित समय मंे होने पर 5 गुना बढ़ा कर जमा कराना है। उसको गलती न करने पर मजबूर कर देना है। उसके परिवार वाले भी कहे कि गलती मत करना, ऐसा माहौल बनवाना है। नेता से जुर्माना जमा कराना, आने वाले नेता में सुधार लाना भी है, क्योंकि दोषी नेता तो जाने के बाद आयेगा ही नहीं, लेकिन आने वाला नेता डरेगा और गलती नहीं करेगा, इसमें नेता की गलती सुधारना सबसे कठिन या नामुमकिन होती है, लेकिन केवल जनता ही इसका सही विकल्प है, जनता ही भविष्य में इसका सुुधार करेगी।
06. आॅफिस हो या घर गलती करने वाले के साथ या गलती करने वाले को उकसाने वाला कोई जरूर है। ध्यान रखें। घर पर सुधारने का तरीका पारिवारिक है और कहीं भी सुधार के लिये यूनिटी जरूरी है। चाहे दो की हो या 200 की, लेकिन नेता के पीछे यूनिटी हमेशा नुकसानदायक है। आपकी, आपके-अपनों की, कर्मठता खत्म करनी है, इसलिये शिकायत करना और सुधार करना ही फायदेमंद हैं। घर पर सुधार थोड़ा मुश्किल है। वहाँ केवल शान्ति से भावनात्मक तरीके से, धर्मगं्रन्थों की गलती दिखाकर, डराना ही फायदेमंद है। लड़का है तो शादी करके, समय के अनुसार सुधार न होने पर प्रेमपूर्वक दूर करना। कम से कम 25 कि. मी. दूर करना, मोह खत्म करना ही ठीक है। लड़की है तो शादी करके भूलना ही अच्छा है। शादी का सही नियम, दूर शादी करना है। बड़ांे का धर्म है, बच्चे सक्षम हों, तो उनके मुताबिक रहना। अगर गलत है, तो उनसे ज्यादा दूर रहना और खुश रहो, खुश रखो नियम अपनाना, लड़की से किसी भी प्रकार का लालच रखना, उसके व अपने वंश को खराब करना ही है। बड़ों ने इसी वजह से वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम बनाया। ध्यान रखना है कि अगला कदम, बिगाड़कर नहीं समझदारी और प्रेमपूर्वक ही उठाना चाहिये और कम से कम लोगों में चर्चित हो व जितनी जल्द जितना भी सुधार हो, उतना ही अच्छा है। केवल आप और लड़का, आप की पत्नी, अगर आज्ञाकारी हैं, तो साथ लें और लड़के की पत्नी, तो आपकी बेटी है, समझकर बर्ताव करें। समझदार बड़ों को कभी कोई कष्ट हो ही नहीं सकता। बच्चे कैसे भी हैं, आपके दःुख के अलावा, सब कुछ बच्चों का ही है, समझना चाहिये अगर आप लड़के से दूर हंै या दूर होना चाहते हैं, तो लड़के की सब चीजों से दूर होना ही समझदारी है। लड़के कीे पत्नी, बच्चे, रिश्तेदार तक, लेकिन दूर रहकर किसी की बुराई कभी नहीं, बुरे शब्द मँुह से कभी नहीं, क्योंकि वह आपके बेटे के ही कुछ है। बुराई खींचतान में सब कुछ मिलने से, कुछ भी न मिलना अच्छा है लेकिन हर छोटे से प्यार होना चाहिये, मोह कभी नहीं। अगर दूर करना पड़े, तो जो बच्चे चाहे वह दे दो, क्योंकि आप बड़े हैं और दूर रहकर, आप सब ठीक कर लेंगे, फिर सहनशीलता जैसा अनमोल धन आपके पास हैं, लेकिन फिर दूर रहने में भी फायदा है, क्योंकि गलत बच्चे बाद में, फिर मिल जाते हैं और कष्ट देते हैं।
07. आप किसी के बेटे हैं, तो आप ही सब कुछ हैं, समझना धर्म है। आपकी कोई गलती, बाप का, उसके परिवार का मोटा नुकसान है। लेकिन आप अगर पसन्द नहीं है, तो उनकी सब चीजें ही नापसन्द करने में ही आपका, आपके अपनो का सुख है, पैसा, जमीन जायदाद, उसके बेटे, बेटी, यहाँ तक की पत्नी भी (आपकी माँ बाद में है, बाप की पत्नी पहले है) अगर आपको दूर रहना है, तो सबसे ही दूर रहिये और इज्जत से दूर होइये। किसी से भी उनकी बुराई नहीं, बुरे शब्द तक नहीं। ”तुम भी खुश, हम ही खुश“ नियम पर, और कोशिश करें, कि वह आपसे प्यार करें। लेकिन आप उनकी सब चीजें त्याग चुके हंै, तो त्याग चुके है। बाप गलत है, तो उसकी सब चीजों को गलत समझकर त्यागिये, फिर लालच क्यों? यह बात कभी नहीं, कि बाप बुरा है, माँ, बहन, भाई नहीं, याद रखिये यह सब फल एक ही पेड़ के है। बाप बुरा है, तो सबको बुरा समझना ही ठीक है, दूसरा दूर रहना ही धर्म है। मरा समझकर छोड़ देना, कभी नहीं। इसी प्रकार लड़का गलत है, तो उसकी पत्नी, बच्चे रिश्तेदारों से क्या मतलब? आज नहीं, तो कल आपको महसूस होगा। इन सब से अलग रहिये, लेकिन बुराई किसी की कभी नहीं। अगर अपनी या अपनांे की कोई गलती है। तो फौरन मान लीजिये, साॅरी बोलिये और सब ठीक।
08. गहराई से सोचने पर सच्चाई, धर्म और आपका भविष्य, आपको खुद नजर आ जायेगा और फिर आप निर्णय लेकर, उस पर अमल करें। साथ ले भी किसी को, तो समझदार-ज्ञानवान को लें। जो किसी सम्बन्ध को मानकर निर्णय ले, वह गलत है। मोह में बँधा इंसान लालची और झूठा, आपने साथ लिया या सलाह भी ली, तो नुकसान ही नुकसान है।
09. निर्णय करने वाला इन्तजार करायें, तो वह निर्णय कर नहीं सकता। रिश्वत का लालच रखे या न रखे, वह हमेशा नुकसानदायक है। शिकायत करने पर अदालत में जाना, पति-पत्नी परिवारिक झगडे़ में अदालत में जाना, देर करना है, परेशानी बढ़ाना और पैसा खराब करना है, इज्जत खराब करना है, क्योंकि कानून तो है, परन्तु अधिकतर भ्रष्ट लोगों का ही भला होता है। सबूत है यह लालच और ड्यूटी न करने वाले लोगों का समूह है। हर नियम है, परन्तु आप खुद नियम नहीं जानते। इसलिये यहाँ सब नियम तोड़ने वाले ही हैं। यहाँ एक जज फैसला करता है, यह फैसला किसी भी कारण से टूट जाता है या मुजरिम तोड़ देता है, तो फैसला करने वाला जज कह देता है, मैं अब कुछ नहीं कर सकता, अगली अदालत में जाइये। यहाँ वकील जो जज को भी सिखा सकता है, यह भी कह सकता था कि फैसला देर से क्यों हों रहा है या गलत है। लेकिन आपका वकील खुद आपके पैसे के लालच में है। पहले मुखिया, प्रधान, राजा फैसले करते थे, कभी देर नहीं हुई। मुद्दई को परेशानी नहीं हुई और फैसला गलत होने पर, मुद्दई की भरपाई तक होती थी। लेखक का ध्येय अदालत की गरिमा को ठेस पहुँचाना बिल्कुल नहीं है। पूरे देश व पृथ्वी के सारे जज और न्यायमूर्ति है, अगर जजमेंट में देर होती है, तो गलती है। गलती महसूस करें और सुधार करें। एक न्याय का तलबगार, हर परेशानी से जूझ रहा है, फैसले के लिये तड़प रहा है। वहीं मुजरिम सुख की रोटी खा रहा है और कानून तोड़कर, सबको मुजरिम बना रहा है। वहीं अदालत या कानून का मन्दिर का पुजारी या मुखिया कह देता है, हमारे पास और भी केस हंै, तो ऐसी जगह न्याय, फायदा या सकून कहाँ मिलेगा?
आपके पास सुविधा और कानून है। बाहर से बाहर बिना किसी झगड़े, अधिकारी, कर्मचारी या बड़ांे के सहयोग से इसे हल करें। खुद निर्णय लें। हर अच्छा इंसान सच्चे इंसान के साथ है, मुजरिम डरता भी है। नौकर तो ज्यादा बन्धन में है, शिकायत की कापी आपकी पूरी सहायक है। अदालत को भी झुकना पड़ेगा। केवल कोशिश करें कि पूरी अदालत व विभाग को परेशान न करें, कर्मचारी और नेता तो सही शिकायत से ही धराशायी हो जाते हैं। इस पर भी अदालत में जाना पड़े, तो कोई बात नहीं कम्पनसेशन भी मिलेगा। डट कर, झूठ के मुकाबले में लड़ाई जारी रखें, जीत सच की होगी। जो जज अविलम्ब फैसला नहीं करता या जो डाॅक्टर अविलम्ब ईलाज नहीं करता, वह निश्चित अधूरे हैं, इनके कारण जुर्म और मुजरिम या बीमारी और मरीज बढ़ते ही हैं या यह गलत के, अनजान सहयोगी है। यह कभी भी किसी के लियेे भी नुकसानदायक हो सकते हैं, क्योंकि इनकी तेज छठी इन्द्रिय और तजुर्बा ही इनका गुण है। जो आपके लिए नुकसानदायक हो जाते हैं।
10. बच्चा, नौकर, नेता, पशुु, मशीन और नारी। यह सब ताड़न के अधिकारी।।
(ताड़न = हर समय की पूरी देखभाल)
11. शिकायत करें या कुछ नहीं कर सकते तो हमें पाँच रुपये के डाक पर या लिफाफे या पाँच रुपये के साथ हमें लिखें। लेकिन उसमें तीन प्राणीयों के वोटर/आधार नम्बर सहित हस्ताक्षर जरूरी हैं। आपको निश्चित समय में सलाह मिलेगी और कार्यवाही होगी। आप चाहंेगे तो शिकायत या पत्र गुप्त रखा जायेगा। इन्टरनेट पर शिकायत बेहद आसान है, सफल है, कोशिश करें।
संसार मंे जो भी, पहले छोटी सी गलती करता है, आने वाले समय में बड़ी गलती नहीं करेगा, कोई गारण्टी नहीं है, गारण्टी है कि वह जरूर ही गलती करेगा। एक भी मशीन, जिसने आपको बीच रास्ते पर या किसी भी जगह पर धोखा दिया है, आगे किसी भी समय कभी भी फिर परेशान कर सकती है। इसलिये उसकी औकात के मुताबिक, बाउण्डेशन के मुताबिक, समय के मुताबिक वह हमेशा ताड़न के अधिकारी है। एक आपकी पत्नी जैसी पक्की सम्बन्धी, जो सात जन्म तक साथ निभाने का वादा करके 65 या 70 साल की आयु में भी, सब छोटे बड़ों के सामने भी कह देती हैं कि जब से में इस घर में आई हूँ, ऐसी ही हूँ या आपका खून आपके पैसे से पलने वाला बच्चा, आपके बारे में कुछ गलत कह दे, तो और कौन बचेगा? जो आपका नुकसान न करे। वैसे यह बच्चा, आपकी पत्नी की अनियमितता का ही सबूत है, फिर भी यह सब गलत है और सजा के हकदार हैं। यह पाँचों प्राणी व चीज, उसकी औकात के मुताबिक बाउण्डेशन करके, समय के मुताबिक, साम, दाम, दण्ड, भेद के योग से बँाधने चाहिये और हल्की और भारी सजा, प्यार, बन्धन, धर्म का डर, पगार, नौकरी, सीट की उपलब्धि या सीट छुटने का डर, दिखाकर सजा देनी चाहिये पहले से ही सजा सोचकर ही सजा देनी चाहिये, जहाँ तक हो सके गलती का अहसास कराने से ही सजा पूरी हो जाती है। माफी माँगने पर अल्टीमेटम देकर माफ करना श्रेयस्कर है। समझदार को आसानी से सुधारा जा सकता है। अगली गलती पर सजा देना बहुत बड़ा धर्म हैं, खुद की पूजा कराने जैसा साबित होगा, होता है। अपने इन्टरनेट पर, समझदार और धर्म से ओत-प्रोत साथियों में समय अनुसार, सुधार और अनियमितता के बारे में चर्चा करते रहें, पूजा-इबादत से ज्यादा फलदायी होगा।
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