Thursday, April 16, 2020

रेल और रेल विभाग

रेल और रेल विभाग

सृष्टि में प्रत्येक जीव चलाय मान रहा है। यह प्रवृति, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू और गाॅड की देन है। बुद्धिजीवि मनुष्य ने चलने में तेजी आये, कम मेहनत करनी पड़े। इसके लिये साधन बनाये। पहले-पहल मनुष्य भी अपने पैरों पर ही चलता दौड़ता रहा और अलग-अलग जगह पहँुचता रहा, लेकिन किसी भी कारण से मनुष्य ने, पहले दूसरे जीव को, अपना सहारा बनाया, जैसे घोड़े, गधे, हाथी और जानवर, इसी दौरान गोल चीजांे के इस्तेमाल की इच्छा से रिंग या पहिया बना या बनाया, फिर निश्चित ही घोड़ागाड़ी, बैलगाड़ी आदि बनी, हर तरफ की बढ़ोत्तरी, हर जीव में सच्चाई है, लेकिन मनुष्य ने खासतौर से धर्म और साइंस या ज्ञान और विज्ञान का तारतम्य रखा, बढ़ोत्तरी की इच्छा के कारण मनुष्य बैल गाड़ी और घोड़ा गाड़ी से, आगे बढ़ा और मोटरकार बनाने में विजय प्राप्त की। मोटर कार से भी ज्यादा काम लेने की इच्छा ने, रेल का निर्माण कराया। यह सब उपलब्धि का मुख्य मकसद राजा-महाराजाओं की इच्छा बढ़ोत्तरी और प्रजा को सुख देने, जैसे धर्म के कारण पूरी होती रही और एक छोटी सी कार को रेलगाड़ी के रूप मंे तैयार किया गया। इससे कम खर्चे में ज्यादा लोग व ज्यादा वजन एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाया जा सकता था। आज 250, 300 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाली गाड़ी, किसी समय में 5 और 10 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलती थी। यह सब उपलब्धि जनता या प्रजा को सुख देने की प्रबल इच्छा के कारण हुआ। प्रजा में सक्षम व बड़े लोेग भी थे। बेहद गरीब भी थे। इसलिये रेल में सवारी के लिये, प्रथम क्लास, द्वितीय क्लास, तृतीय क्लास के सवारी डब्बे बनाये गये और अब केवल छोटे और बडे़ या सक्षम और गरीब दो किस्म के कारण, प्रथम क्लास और द्वितीय क्लास के सवारी डब्बें ही रखे गये। यह कितना गलत या सही है, कहना मुश्किल है, क्योंकि नेताओं के वोट और नोट की इच्छा ने और सरकारी प्राणी की पैसा कमाने की प्रवृति ने, यह काम कराया। नेता वोट इकट्ठा करने के लिये, जनता को तृतीय क्लास से द्वितीय क्लास का हकदार बनाया, अपनी सेवा की झूठी प्रवृत्ति दिखाई और बीच के लोग या तो, ज्यादा खर्च करके प्रथम क्लास में बैठे, जो दुःखदायी है या गरीब लोगांे में मिले, यह भी दुःखदाई है। बहरहाल सब ठीक है, सोचकर जनता पर अनेक अत्याचार जानकर होते हैं और देश कमजोर होता है। आजादी का मकसद खत्म होता है। हर प्राणी की मेहनत बढ़ती है। बात रेल की हो रही थी। हर बड़े ने छोटों की कदर की है। राजा, महाराजा प्रजा के लिये ही करते रहे हंै। यह रेल जनता के लिये खास आने-जाने का साधन बना बल्कि हर काम में इस्तेमाल होने लगी। राजा-महाराजाओं ने बड़ी मोटी धन राशी, इसमें लगाई क्योंकि यह मोटे पैसे की कमाई का साधन भी नजर आने लगा था और आज, यह साबित भी हो रहा है। भारत शुरू से सोने की चिड़ियाँ कहलाया था और सच्चाई में यह सोने की चिडियाँ था और सोने की चिड़ियाँ रहेगा। भारतीय रेल विश्व में मशहूर है। यहाँ के देसी, गँवार लोगों की रिर्सच ने हमेशा तहलका मचाया है। यहाँ पर धर्म, सच्चाई, मेहनती, सहनशीलता और इनका दिमाग अनमोल रहा हैं।
इस समय भारतीय रेल 150 किमी प्रति घंटा और इससे उपर चलने की क्षमता रखती है। भारत के इंजन बाहर तक भेजे जाते हैं। सबसे पहले स्टीम इंजन इस्तेमाल होते थे, जो अब डीजल और इलेक्ट्रिक इंजनों में बदल दिये गये है। यह हजारों होर्स पावर का इंजन बहुत पहले से मालगाड़ी के 90 और 100 डब्बे लेकर, हजारों मील की दूरी तय करते रहे हैं। रेल की जरूरत के मुताबिक तीन किस्म बनाई गई। स्मालगेज, यह 25, 30 कि. मी. तक के लिये थी। इससे कुछ अधिक इससे बड़ी और उसे छोटी लाइन का नाम दिया गया, जो लम्बी दूरी के लिये भी सक्षम बनाई गई और सबसे बड़ी लाइन को बड़ी लाइन या ब्राॅड गेज कहा जाता है। यह आजकल सबसे ज्यादा चलन में है और हर जगह स्माल गेज आदि को बदल कर ब्राॅडगेज की रेल ही चलाई जा रही है। रेल पृथ्वी पर दौड़ने वाली, सबसे वजनदार मशीन है और सेन्टर का सबसे बड़ा उपक्रम है। शुरू में रेलगाड़ी के सवारी डिब्बों से लेकर स्टेशन तक में प्रजा या जनता के लिये, यात्री या उपभोक्ता के लिये, हर सुविधा दी जाती थी और रेल का, हर कर्मचारी व अधिकारी, यात्री के सच्चे सेवक साबित होते थे, आज कल यह पैथी (विधि) लगभग खत्म होने के कगार पर है, लेकिन सबसे ज्यादा फायदेमंद और सक्षम, केवल रेल विभाग है, जो जनता की सेवा कर रहा है। इसकी इनकम से नकारा भ्रष्ट कर्मचारी, अधिकारी और खासतौर से भ्रष्ट नेताआंे को पाला जा रहा है। पहले-पहल सवारी डिब्बों में प्रथम, द्वितीय और तृतीय क्लास के डिब्बें थे, तृतीय क्लास की सीट लकड़ी की और केवल शौचालय व बिजली और पंखे जैसे सिमित साधन थे। द्वितीय क्लास के डिब्बों में गद्देदार सीट थी, शौचालय था ऐश ट्रे थी लाइट और माकूल पंखे थे, जिनका हर हालत में पूरा ध्यान रखा जाता था। पंखे रोशनी का प्रबन्ध तृतीय क्लास में भी था, लेकिन ठीक हो या खराब, इनकी तबज्जो कम थी, लेकिन यात्री की परेशानी का ध्यान जरूर रखते थे। प्रथम क्लास के डिब्बे में गद्देदार सीट, पंखे रोशनी, ऐस ट्रे और लेट्रीन साफ-सुथरी, उसमें पानी का सही प्रबन्ध और केवल छः सीट के लिये अलग-अलग केबिन और अटेन्डेट की सुविधा थी। अपनी औकात के मुताबिक यात्री टिकट ले तथा पैसे के अनुसार सहुलियत पाता था। स्टेशन पर स्टेशन मास्टर, खुद प्रथम क्लास के यात्री का पूरा ध्यान रखता था। यात्री को इन्तजार करना पडे़े, तो अलग-अलग वेटिंग रूम, उन्हीं के मुताबिक उसमें सुविधा थी। तृतीय क्लास के यात्री के लिये, वेटिंग हाल खुला हुआ और बड़ा हाल था। लेट्रीन बाथरूम आम किस्म के थे। द्वितीय क्लास के यात्री के लिये कुछ कम सुविधा थी। लेकिन प्रथम क्लास के यात्री का खास ध्यान रखा जाता था। पैसे के बल पर, आप सीट, स्लीपर बुक करा सकते थे। ए. सी., टू. टायर व थ्री टायर की सुविधा हमेशा थी और यात्री बेहद खुशी महसूस करते थे। स्टेशन पर दुकानों का ध्यान रखा जाता था। प्लेटफार्म पर चाय, नाश्ता, खाना, किताब, अखबार, फल वाले, स्टेशन मास्टर की निगरानी में यात्री की सेवा करते थे, करते हंै। रेल ने लगभग, हर सुविधा बल्कि, माकूल हर सुविधा, अपने यात्री को देते रहे हंै, लेकिन इस समय भ्रष्ट नेताओं के कारण और गलत कर्मचारी व अधिकारी के कारण, सच्ची सेवा का नाम धुमिल पड़ता जा रहा है। सबसे ज्यादा इनकम वाली, एक बड़ी यूनिट, पिछले बहुत सालों से भारत सरकार को घाटा दिखाती रही है, लेकिन अब लगभग दो साल से, कर्मचारियों को बोनस तक दिया जा रहा है और घाटे पर अंकुश के साथ-साथ, फायदे में रिकार्ड दिखाया है।
किसी भी विभाग में घाटा होना साबित करता है कि कर्मचारी और अधिकारी किसी भी कारणवश गद्दारी कर रहे हैं, जिसमें नमकहरामी, चोरी भ्रष्टचारी, व रिश्वतखोरी पलना व बढ़ना ही है। यह कमियाँ नेता के आने के बाद, दिन दुगनी रात चैगुनी की स्पीड से बढ़ी है, और हर अनियमितता केवल जनता को ही भुगतनी पड़ती है। रेल विभाग में शुरू से ऐसी कमियाँ बरकरार रही हंै। बड़ा विभाग होने के कारण छोटी से छोटी कमी भी, अरबों का नुकसान निश्चित पहुँचा देती है। बड़ा महकमा होने के कराण काम भी चलता रहता है और जनता हर हाल में भुगतती रहती है, और सहनशीलता के कारण महँगाई, जैसी सजा भी चुपचाप भुगतती रहती है। थोड़ा सा गहराई से सोचें, तो इतना बड़ा महकमा, जब थोड़ी सी कोताही करेगा, तो सरकार को मोटा घाटा जरूर होगा, विभाग तो बन्द हो ही नहीं सकता, इसे चलाने के लिये सरकार को, किसी और जगह लगने वाला पैसा, रेल विभाग में निश्चित लगाना पड़ता हैं और सारा वैलेंस खराब होता है। किसी दूसरे विभाग की पगार सुविधा रोकी नहीं जा सकती और घूम फिरकर टैक्स और जनता की जरूरतांे पर असर पड़ता है और गैर सरकारी की ज्यादा मेहनत का अन्दाजा, इसी एक बात से ही लगाया जा सकता है। बूँद-बूँद तेल बचाआंे, पानी बचाआंे, सरकार का नारा है, जिसमंे करोड़ों रुपये सरकार पहले ही विज्ञापन में खर्च कर चुकी होती है, और रेल में एक बूँद डीजल, पानी व बिजली ज्यादा खर्च करने पर, एक मिनट में पूरे देेश में लाखों लीटर तेल, पानी व बिजली खर्च निश्चित हो जाता है। 
भारतीय रेल ने बेहद तेजी से अविश्वसनीय बढ़ोत्तरी की है। रेल की पटरी पर अब सीमेन्ट केे स्लीपर है। स्टीम इंजन की जगह इलेक्ट्रिक और डीजल इंजन हैं। मेट्रो ट्रेन जैसी ट्रेन सफलता से चल रही है, जिसे बाहर के लोग इंजिनियर तक देखने आते है। यह सब बाते रेल का ही नहीं पूरे देश का सिर गर्व से उठाने के लिये मजबूर कर देती है। अनेक ऐक्सप्रेस ट्रेन तेजी से सफर तय करती है। राजधानी ऐक्सप्रेस की चालें तो 150 किमी प्रति घंटा है।
रेल ही नहीं हर चीज बनी ही इसीलिये है कि सबको फायदा हो रेल या रेल विभाग की बढ़ोत्तरी इसलिये की गई, कि और ज्यादा फायदेमंद हो, लेकिन नेताओं के कारण इसमें लकड़ी में दीमक के समान रोग लगने के कारण फायदेमंद होने की बजाय नुकसानदायक हो रही है, या प्रोफिट का मोटा पैसा कहीं और लग जाता हैं। प्रकृति के अनुसार हर जीव और निर्जीव शिथल और बेकार होता जाता है या भ्रष्टता और कमजोरी की तरफ अग्रसर रहता है। हर सच्चा जीव चाहता है, सोचता है, ऐसा करता है कि चाहें फायदा न हों, लेकिन नुकसान तो कभी हो ही नहीं।
ऐसा रेल विभाग में तो सोच है लेकिन नेता ग्रुप ने सब गड़बड़ा दिया है। वैसे तो रेल कर्मचारी काम बड़ा होने से और अधिकारी सख्त होने से कम से कम कोताही करते हैं, लेकिन मामूली सी गलती से बेहद भयंकर, ट्रेन ऐक्सीडेंट हो जाते है, और सब जानते है कि मरने वालों की सख्या हजारों में ही होती है। राजा-महाराजा का इतिहास है, कि प्रजा के एक आदमी के लिये राजा अपनी जान और अपना राज्य दाव पर लगा देते थे, क्योंकि वह जानते थे कि राज्य में एक प्राणी भी कम होगा, तो आने वाले समय में राज्य ही खत्म हो जायेगा, लेकिन रेल विभाग खासतौर केवल नौकर ही है। वह भी गद्दार या नमकहराम नौकर का रोल अदा कर रहा है। यह नेता और गलत असफरों का असर है। पहले ट्रेन से कोई मनुष्य कटता था, तो ट्रेन रूकती थी और पीछे आने वाली ट्रेन उस जगह रूककर चलती थी, जब तक वह लाश नहीं उठाई जाती थी, और आज कोई यात्री ट्रेन से गिर जाये, तो ट्रेन रूकती भी नहीं। यह देखभाल पहले पीछे गार्ड की होती थी, ड्यूटी आज भी है, लेकिन गार्ड करता नहीं। वैसे हमारे पास सरकारी प्राणी की फौज है और सब अपने को वफादार कहते भी है। यह ट्रेन से गिर कर चोटिल होने वाला प्राणी किसी गाँव या शहर का है। वह इलाज के लिये मोहताज तो नहीं। मर गया है तो उसके परिवार की सहायता या सांतवना देने के लिये कोई नहीं होता, वैसे सरकारी प्राणी देखभाल के लिये ही रखे गये है। शहर में डी. एम., कमिश्नर और गाँव में प्रधान और सेक्रेटरी तक है, अगर यह चाहें तो एक या दो दिन में मुआवजा मिल सकता है, लेकिन कानून होते हुए भी कोई नजर तक नहीं उठाता। सरकारी प्राणी के अलावा नेता भी इसीलिये रखे और पाले जाते है, लेकिन अपोजिट हो रहा हैं। खर्चा और गद्दारी बढ़ रही हैं।
दूसरी सारी अनियमितत या कोताही के देखने के लिये शुरूआत स्टेशन से करते है। यहाँ पर यात्री टिकट घर है, यात्री टिकट लेता है, तो टिकट देने वाला कर्लक कभी टूटे पैसे नहीं लौटाते और उनकी मोटी इनकम का साधन बनता है। कुछ कलर्क गरीब आदमी देखकर नोट देने-लेने में हेरा-फेरी कर देते है। जेब कटना, सामान की चोरी, हर स्टेशन इस मामले में शुरू से बदनाम है। जो अब कुछ कम हो रहा है, स्टेशन पर कुली होते हंै और शरीफ आदमी से नाजायज पैसा ले लेते है। हर ऐब से ओत-प्रोत होते हैं। जिनकी इनकम इसी स्टेशन से होती है। कुछ कुली, तो सुबह से ही दारू पीते रहते हंै। इसमंे खर्च होने वाला पैसा सब हेर-फेर का होता है। यहाँ पर बिकने वाली सब चीजें बाजार से ज्यादा रेट पर होती है। यहाँ पर लैट्रीन, बाथ रूम के चार्ज 1 और 2/-रु अलग से देने पड़ते हंै। यह सबूत है कि रेल सबसे बड़ी संस्था या सेन्टर का सबसे बड़ा उपक्रम भी इतना गरीब हो गया है कि यात्री से लैट्रीन बाथ रूम के लिए रकम वह भी 2/-अलग से लेते है। जबकि टिकट लेने वाले यात्री को पूरा हक फ्री का है, पहले से कभी ऐसा नहीं हुआ, ऐसी गलतीयाँ पूरे विभाग की नजर झुकाने के लियेे काफी है या बशर्म होना पड़ता है। कुछ गलत अधिकारी और कर्मचारी अज्ञानता वश बात रफू करते हैं। उनका कहना है कि लैट्रीन बाथरूम की सफाई इस बहाने से अच्छी होती है और सफाई बरकारार रहती है, ऐसे कर्मचारी और अधिकारी साफ शब्दों में कह रहे है, कि हमारे सफाई कर्मचारी तक भी हमारे कन्ट्रोल में नहीं है, इसलिये यात्री से 2/-लेते हंै, यह कर्मचारी अपने काम में लगे रहते है, और कर्मठता दिखाने की कोशिश करते हैं। परमानेंट पगार लेने वाला कर्मचारी जिसे पहले से कर्मठ होना चाहिये था, अब एक और दो रुपये लेकर सही काम कर रहा है। स्टेशन से अन्दर आते ही अगर आप यात्री हैं तो आप चाहते है कि आजाद रहें तो नामुमकिन है। इन्तजार आपको करना ही पड़ेगा यह आपकी सजा है। इस विज्ञान के जमाने में हर तरफ बढ़ोत्तरी मनुष्य ने की है लेकिन हर तरफ से ट्रेन अगर यहाँ से बनकर चलती है तो भी उसके चलने का समय निश्चित नहीं होता, लेट होना इनकी इस समय (विज्ञान के जमाने) की सबसे बड़ी अनियमितता है। केवल मेट्रो टेªन में अगर लेट होती है, तो आपको पता नहीं चलता क्योंकि थोडे़ समय में दूसरी टेªन, आपकी सेवा में आपके सामने होती है, इस स्टेशन पर आप ट्रेन का इन्तजार कर रहें है, वहाँ आप इन्तजार ही करेंगे और बड़ी खूबसूरत आवाज एनाउंसर की सुनते रहंेगे। वह भी केवल असुविधा के लिये खेद है कि आने वाली गाड़ी इतनी लेट है, और यात्रियों की असुविधा के लिये खेद है। सब सुनते है, आप गैर है, आपके अपने, एनाउंस करने वाले के अपने भी सुनते है लेकिन एनाउंसर का खेद किसी ने खत्म नहीं किया। खेद खत्म करने की कोई युक्ती भी नहीं बताई। माना कि वह कम्पयूटर पर चिप लगी है। सबको कोशिश करनी चाहिये। यह ऐसी चीप के बजाये और खुशी बढ़ाने की चिप लगे। आप या कोई भी सोचे तो खेद है। कहकर बेवकुफ बनाया जा रहा है, अरे किसी अनियमितता के कारण ऐसा हुआ खेद कहकर सबके नुकसान से पीछा छुड़ाया जा रहा है, या अनियमितता को भूलाया जा रहा है। मामूूली बात है, खेद कहने की बजाय मुआवजा दो या खेद न कहना पड़े इसलिये अनियमितता दूर करों। बेहद मामूली सी बात है। ड्राईवर, गार्ड, स्टेशन मास्टर को मोबाइल का इस्तेमाल करना चाहिये गाड़ी लेट नहीं होगी। तो खेद कहना और सुनना ही नहीं पड़ेगा। आपकी रेल लाइन ठीक है। सिगनल पास आने पर नजर आ जाते है। यहीं से तेज ट्रेन रोके। तो स्टेशन पर सही पहुँच सकते है। फिर स्टाॅपेज समय के पूरा होते ही ट्रेन को तेज चलाने की तरकीब अच्छी है। कोई खतरा नहीं है, नुकसान नहीं है, थोड़ी बहुत समय की कवरिंग रास्ते में की जा सकती है।
यात्री, यात्रा चाहता है और कुछ नहीं। इतना बड़ा विभाग यात्रा कराने के लिये रखा है। यात्रा बाधित करने के लिये नहीं। ट्रेन लेट होना हर प्राणी के लिये बेहद नुकसानदायक है। समय का नुकसान, हर नुकसान से ज्यादा बड़ा नुकसान है। और पूरा रेल विभाग एक बार में जितने यात्री आते हंै। उनका व अपना और सबसे ज्यादा समय का नुकसान कर देते है और इस सबसे बुरे काम के लिये, इन्हंे हर प्राणी सहयोग दे रहा है। शहर व गाँव के सारे सरकारी कर्मचारी, अधिकारी और नेता देख रहे हैं, भुगत रहे हैं, आपकी-सबकी इनके लिये, यह खामोशी सबसे बड़ा सहयोग है। एक स्टेशन पर हजारों यात्री, कर्मचारी, अधिकारी सब होते हैं। उस एक गाँव व शहर के मशहूर डी. एम., कमिश्नर तक सब ही है। ट्रेन में यात्रा कर रहे यात्री हैं, जिनकी गिनती हजारों से उपर होती है। एक मिनट का नुकसान कितना बड़ा नुकसान एक बार में करा देती है। इसमें खतरनाक या भयंकर, लेट होने की गलत आदत बनना है, जो सबमें पड़ रही है। मतलब समय के नुकसान की आदत। लेट होने पर आप या आपके या सामने वाले का गुस्सा बढ़ा देती है। आप ड्यूटी पर जा रहे हैं। आपका बोस यह नहीं कहता। नौकरी छोड़ दो या ट्रेन छोड़ दो। वकील, डाॅक्टर, जज, मजदूर, माता, पापा, बाबा, दादा एक बार ही कहते है, ट्रेन लेट थी बस बात पूरी हुई, आप बेहद बोल्ड है। घड़ी 1 सेकण्ड आगे, पीछे चले, तो फेक देते हैं। लेट होने वाला काम पसन्द ही नहीं करते, अपनी या किराये की गाड़ी है, तो ड्राईवर की लेट ड्राइविंग पर गाड़ी बदल देते है। लेकिन आप ट्रेन लेट होने पर बस कह देेते है। क्या करे? लेट हो जाते हंै। आज हर सरकारी प्राणी डेली पेसेन्जर यात्री ड्यूटी पर लेट पहुँचने पर छूट है। कितनी गलत हरकत में सहयोग दें रहे हैं जबकि हर प्राणी खासतौर शिकायत न करें, लेकिन डी. एम., कमिशनर जो शहर, गाँव के राजा हैं, मुखिया हैं, अपनी जनता का नुकसान या जनता को गड़बड़ाते हुए देख रहे हैं, बर्दास्त कर रहे हैं अगर यह शिकायत करते तो इनके स्टेशन पर आने वाली ट्रेन समय की पाबंद निश्चित होती। बड़े से बड़े अधिकारी इस कमी को निकालने की कोशिश करते। आज नहीं तो कल करना पड़ता। इस कमी को जितनी गहराई से देखेंगे। हर परेशानी की जड़ यही नजर आने लगेगी, या हर अनिमियतता की जड़ यही नजर आयेगी।
अब यात्री ट्रेन में बैठता है। यात्री कभी-कभी भागकर ट्रेन पकड़ता है तो कभी-कभी डेली पेसेन्जर अपना पास बनाना या लाना भूल जाता है। किसी मजबूरी में वह टिकट जैसी चीज से वंचित रह जाता है तो कानून की नजरों में वह मुजरिम बन जाता है। यह टिकट चेकर की ड्यूटी टिकट चेक करने की है। यह कर्मचारी अपनी मोटी इनकम निश्चित करता है और पूरा स्टाफ इसे सपोर्ट करता है। रेल विभाग ने जनता को बेहद सुविधा निश्चित दी है लेकिन अधिकतर नेताआंे के दवाब के कारण ही साबित होती है जैसे सिनियर सिटीजन में 55 साल के यात्री को 25 प्रतिशत छूट देते है, डेली पेसेंजर को मंथली और तिमाही की बेहद बड़ी छूट दी है, त्योहारों पर नारी जाति को छूट सरकारी त्योहार पर फ्री छूट आदि। यह छूट देने के कारण भीड़ बेहद बढ़ी है और मनुष्य अज्ञानतावश या गलत मोह और लालच में फँसकर, बिना जरूरत सफर करा ही देता है जो सबके के लिये कहीं न कहीं बाधक या नुकसानदायक है। नेताआंे का नाम लेकर कोई भी सुविधा देना। जनता पर जुल्म बढ़ाना है। सुविधा हर कर्मठ को ज्यादा कर्मठ और नकारा को ज्यादा नकारा या गद्दार बनाती है। इसलिये सुविधा सबको नहीं, केवल कर्मठ व समझदार को ही देनी चाहिये। इस टिकट चेकर को या नौकर को, हमने सुविधा दी है जो कि एक दम नाजायज है। एक सीधा-सादा उपभोक्ता, किसी कारणवश टिकट नहीं ले पाया, उस पर यह टिकट चेकर नाजायज दवाब बनाता है। पूरा स्टाफ इसकी सहायता करता है। जी. आर. पी. तक। यह यात्री इनका भगवान है, लेकिन जलील किया जाता है। डेली यात्री से भी गलती हो सकती है। यह सरकारी कर्मचारी सच्चाई में जनता या उपभोक्ता का सेवक होना चाहिये यह प्राणी धोखा भी दे रहा है। तो भी, यह पैसे बचाकर, केवल देश पर ही खर्च करेगा, चाहे वह जुआरी, शराबी है लेकिन उसकी मजबूरी या गद्दारी पर ध्यान देना ही जरूरी है। यह कर्मचारी अगर बड़ा व समझदार होता। तो निश्चित पहले टिकट लेता। इसका सही विकल्प है। ट्रेन में गार्ड के पास टिकट देने की सुविधा बेहद आसान है और फायदेमंद है। इसलिये है कि गद्दार नहीं पलेंगे। हमें अपने विभाग में सबसे पहले सुधार करना या सुधार रखना सबसे ज्यादा फायदेमंद व जरूरी है। एक बिना टिकट यात्री पर 250/-जुर्माना और जहाँ से ट्रेन चली है, वहाँ से टिकट बनाना कानून है, यह सही माना जाये, तो टिकट बनाने वाले की गद्दारी की भी उससे बड़ी कठोर सजा निश्चित होनी चाहिये।
इस एक प्राणी ने अनगिनत जनता पर जुल्म किये है, सस्पेंशन सही सजा है ही नहीं, उसे कोई परेशानी नहीं होगी, हाँ नगद जुर्माना राजकोष में जमा हो, तो सजा से डर भी लगेगा और सबसे ज्यादा फायदा यह होगा, कि इसका साथ देने वाला कोई नहीं मिलेगा, यह यात्री या गलत यात्री, अपनी मंजिल पर पहुँच जाता है, वहाँ पकाड़ा जाता है, यहाँ पर यह टिकट कलेक्टर और जी. आर. पी., यात्री को बाँधते है, और मजबूर होकर यात्री लूट लिया जाता है। जो पूरी तरह नाजायज है, यह यात्री बिना टिकट यहाँं तक पहुँच गया, जबकि बीच में सैकड़ांे टिकट चेकर थे, यह सारे टिकट चेकर से बचकर यहाँं तक पहुँचा है, सीधा मतलब है, बीच के सारे टिकट चेकर नकारा या गद्दार है। एक यात्री हजार, दो हजार ही देगा और निश्चित ही बिना टिकट रोके नहीं जा सकते लेकिन सैकड़ों टिकट चेकर सच्चाई में कर्मठ होना चाहिये। इन पर नगद जुर्माना हो, तो एक भी यात्री बिना टिकट चल ही नहीं सकता, और जुर्माने के लाखों रुपये कर्मचारी से ही मिलेंगे। सबसे बड़ा फायदा हमारा कर्मचारी वफादार रहेगा और दूसरों को वफादार बनाने को मजबूर कर देगा। इस पैसे की गद्दारी और जनता पर अत्याचार के लिये, पूरी जी. आर. पी. हर यात्री से पैसे ऐठती है और बिना टिकट यात्रा करते है। तारीफ और जी. आर. पी. की हिम्मत देखिये। यह टिकट घर पर खडे़ होकर यात्री को खुद इकट्ठा करते है। 50 प्रतिशत में सीट भी। सुरक्षा भी निश्चित देते हैं। यह खेत की बाढ़ ही खेत को खायेगी तो कौन बचायेगा? वाली मिसाल होगी। यह सब गलती सबसे पहले अधिकारी की है, यह जी. आर. पी. का जवान जो हमारी फोर्स है। इसकी गद्दारी तो अनगिनत है। हर स्टेशन के अलावा, स्टेशन के प्लेटफार्म से आगे और पीछे दोनों तरफ बाहर निकलने का रास्ता होता है। जिस तरफ सड़क होती है। यह जी. आर. पी. प्रोग्राम बनाकर वहाँ स्पेशल ड्यूटी करते हैं और यात्री, और सामान ले जाने वालांे से पैसा इकट्ठे करते है। यह ड्यूटी जनता को भी बिगाड़ती है। जो बिल्कुल गलत है। लेकिन बचत करना हमेशा फायदेमंद हैं खासतौर से राजा या मुखिया के लिये। कर्मचारी की गद्दारी सबसे ज्यादा नुकसानदायक है। अधिकारी और नेता की गद्दारी हर व्याधा या अनियमितता बढ़ाना है।
जनता, कानून से डरती है लेकिन कर्मचारी अधिकारी और नेता। कानून को तोड़ते और बदलते है। वह भी घिनोने तरीके से। यह जी. आर. पी. और इनके अधिकारी के पास गद्दारी करने के करोड़ों तरीके हैं। बिल्कुल कानून के दायरे में। जनता का ही नहीं। खुद सरकार और कानून का नुकसान कर रहे हैं, और सब सहयोग कर रहे हैै। रेल में केवल जी. आर. पी. के द्वारा शुरू से कोयले से लेकर। हर चोरी हो रही है। अब तो चोरी के अलावा। हर हेर-फेर हो रही है। और यह पूरा ग्रुप इसी गद्दारी की पगार ले रहे है। एक यात्री ज्यादा से ज्यादा 100, 50/-का नुकसान देता है। लेकिन यह कराड़ों का नुकसान। हर मिनट करते हैं। किसको रोका जाय। सब कहेंगे? नौकर को और बड़े नुकसान को रोकना है। यही कहेंगे। इस अनियमितता की जड़े बेहद ज्यादा मजबूत। रेल के बड़े आॅफिस तक में है। इससे खुद कर्मचारी और अधिकारी चाहे वह गद्दार है। वह खुद परेशान है। गलत कर्मचारी की बड़ी यूनिटी। हर अच्छे कर्मचारी व अधिकारी को कर्मठता से दूर कर रहा है।
यह कर्मचारी और यूनियन के नेता। तो काम ही नहीं करते, और ऐसे कर्मचारी हर सजा से न डर के काम न करके। अधिकारी को डराकर रखते हंै, और मौज करते हुए, कर्मठ कर्मचारी को यूनियन में मिलाकर, नकारा बनाने की हर कोशिश लगातार करते हंै। अगर रेल के बडे़ आॅफिस डी. आर. एम आॅफिस और बड़ौदा हाउस आॅफिस देखंे। तो अनियमितता की हद टूटती महसूस निश्चित होती है। यह कर्मचारी और अधिकारी हर एक 30, 35 हजार से लेकर लाखों रुपये हर माह पगार लेते हंै। लेकिन यहाँ आने वाला हर कर्मचारी, चाहे पास लेने आये या ट्रांसफर या शिकायत लेकर आये, बिना रिश्वत कोई काम हो ही नहीं सकता। रिटायरमेन्ट के बाद की पेंशन बँाधने तक में रिश्वत देनी ही पड़ती है। यहाँ के गजटेड अधिकारीों का कहना है। रेल के काम ऐसे ही चलते है। देर होनी किसी भी काम में, इनके लिये कोई शर्म की बात नहीं, हमारा कर्मचारी ही, कर्मचारी के काम में देर करे। रिश्वत ले, तो बेहद शर्म की बात नहीं? वैसे यह अधिकारी पढ़े-लिखे हैं, और जानते हंै, रेल विज्ञान की बेहद मेहनत की देन है। और सेकेण्ड का व सूत के दसवें हिस्से का हिसाब रखने पर ही रेल सुरक्षित है। थोड़ी सी अनियमितता विध्वंस के कगार पर पहुँचा देती है। बड़ौदा हाउस में जनरल मैनेजर और रेलमंत्री (नेता) बैठते हैं। और हर अनियमितता की सुरक्षा होती है।
यहाँ बोर्ड लगा है कि आपातकालीन समय में यात्री टिकट, नेता के कोटे से मिल जाता है। यह क्या नियम है, कैसे सही है? टिकट घर किस के लिये है। रिक्वेस्ट से टिकट लेने का क्या मतलब है, नेता रिक्वेस्ट (प्रार्थना) क्यों कराना चाहता है? या हमारे परमानेंट 60 साल के कर्मचारी और अधिकारी को। जनता की देखभाल नहीं करनी चाहिये या नेता की इतनी ही कम इज्जत है कि ऐसे छोटे-मोटे काम में लगा रहे। जनता की किसी भी परेशानी में सहायक हर कर्मचारी या अधिकारी को होना ही चाहिये यहाँ बड़ौदा हाउस के स्टाफ की बात ही अलग है। आरक्षण जैसे रोग ने यहाँ की जड़े बेहद कमजोर ही नहीं की खोखली कर दी है। यहाँ पर आरक्षण के कारण, पति के मरने के बाद पत्नी को नौकरी देने जैसे कानून से सब परेशान हंै। यही नहीं, यह नारी होने के नाते, इसे हर प्राणी छूट देता है। रिपोर्ट कोई करता नहीं, रिपोर्ट होती है, तो नारी गुण का लाभ लेकर शिकायत को रफू या रद्द कर दिया जाता है। यह नारी कर्मचारी या अधिकारी के कारण, इनके मातहत, अधिकारी और कर्मचारी कर्मठ होने के बावजूद, नकारा और मजबूर हो जाते हंै। यह नारी अधिकारी पढ़ी-लिखी भी कम है और यह नारी, पुरूष की तरह सफलता से काम कर ही नहीं सकती, जबकि यह 30 और 40 साल तक रेल के काम तो क्या। घर के काम से भी पूरी तरह वाकिफ नहीं। कर्मठ नहीं या काम करने की आदत नहीं। वैसे भी नारी, 40 साल के बाद सक्षम और कर्मठ नारी भी शिथिल और कमजोर हो जाती है। बीमारी और थकान ही महसूस करती है, हमें रेल में आरक्षण नहीं कर्मठ, मेहनती, पढ़े-लिखे कर्मचारी, अधिकारी की जरूरत होती है या है, आरक्षण से बनें अधिकारी के कारण, हर अनियमितता बेहद तेजी से बढ़ती है और कर्मठ कर्मचारी व अधिकारी सजा के कगार पर पहुँचने लगते है। यह नारी अधिकारी ड्यूटी टाइम में होटल, शापिंग, मनोरंजन भरपूर करती है और महसूस होता है, जैसे इसी काम की मोटी पगार यह लेती है।
रेल में भी नकारा अधिकारी और नेताओं के कारण, ठेके पर काम कराने के नियम पर तेजी से अमल हो रहा है, जबकि हमारे पास, हर काम करने वाले ट्रेण्ड कर्मचारी हैं, वह परमानेन्ट हैं तजुर्वेकार हंै, पढ़े-लिखे हंै। इनके सहयोगी और अनुयायी हैं, इनके मातहत और अधिकारी हैं। इसके अलावा यह पूरी तरह सक्षम हंै। इन कर्मचारीयों पर बहुत मेहनत और खर्च पहले से हो चुका है, इसके बावजूद काम ठेके पर देना साबित करना है, कि हमारे कर्मचारी, हमारे अधिकारी और हमारे साथी कन्ट्रोल में नहीं है, वह चाहे नेता के कारण हो या अधिकारी या किसी भी अन्य कारण से हो। हर हाल में काम ठेके पर देना गलत है, ऐसा करके हमने सब की पूरी तरह बेइज्जती कर दी है, निश्चित है, पूरे विभाग का अपमान है, शिक्षा और यूनिटी व नेता का अपमान है। अधिकारी या नेता का यह कहना कि काम जल्द होता है, काम बचत में होता है। यह भी गलत है। अगर हमें काम बचत में लेना हो, काम सही हो, काम जल्द हो तो केवल परमानेंट को सही कन्ट्रोल करके ही काम चल सकता है।
यह आसान है, सही है, सबका फायदा है। एक गैर सरकारी, नया आदमी ठेके पर काम करता है, वह सही है, तो हमने इतने कर्मचारी अधिकारी किस लिये रखे है, वह काम क्यों नहीं कर सकते या काम क्यों नहीं करते? क्योंकि आप नकारा है, आप बेकार है, आप सक्षम नहीं है। यह मुमकिन नहीं है। तो लालची और भ्रष्ट है, गद्दार है। गैर सरकारी, ठेकेदार काम करता है, उसे पास भी हम ही करते है यह कैसे मुमकिन है? चलिये मान लिया ठेके पर काम सही होता है, सस्ता और जल्द होता है। तो हम आपकी जगह, आप का काम भी ठेके पर दे देते है, एक मामूली कर्मचारी भी 10 और 12 हजार में, एक माह काम करता है। यह दिहाड़ी 300/-या 400/-दिन पड़ती है। यह काम गैर सरकारी 80/-से लेकर 110/-तक में कर देता है, खुश होता है, आपको दुआएँ देता है, समय से पहले आता है, समय के बाद जाता है, यह मामूली से कर्मचारी की बात है, कितना फायदा है। फिर हम सारे कर्मचारी, अधिकारी और नेता तक का काम ठेके पर ही देकर, काम क्यों न चलाये? फायदे का अन्दाजा, आप भी लगा नहीं सकते? ऐसा करे तो आप कहेंगे मुमकिन नहीं है। क्योंकि आप नहीं चाहते या आप काम करना ही नहीं चाहते, केवल पैसा सुविधा ही लेना चाहते है। यह सच्चाई है कि परमानेंट कर्मचारी व अधिकारी ही सही जल्द और सस्ता काम करता था, काम करता है, काम करता रहेगा।
परमानेंट कर्मचारी और अधिकारी से ही सही काम, सस्ता काम और जल्द काम लिया जा सकता है, लेते रहे हैं और काम लेते रहेंगे। लेकिन हम कानून, नियम और धर्म में बधें रहे हैं तब, हर कर्मचारी व अधिकारी परमानेंट किये गये है, वह इसलिये कि जिम्मेदारी से काम करे वरना सजा मिलेगी। इतना बड़ा विभाग बना कैसे? परमानंेट कर्मचारी के मेहनत करते रहने से बना हैं। ठेके पर काम कराने से नहीं, इनको 60 साल के लिये परमानेंट किया गया, हर सुविधा दी गई क्योंकि इनसे काम लेना है, विभाग बड़ा बनाना है।
केवल ”मेहनती को प्रोत्साहन और गलती पर अविलम्ब सजा“ नियम पर रेल विभाग बना है। चल रहा है, ठेके पर काम देकर नहीं और आरक्षण जैसे नियम पर तो बिल्कुल नहीं। एक गैर सरकारी या ठेकेदार भी लेबर रखता है, तो तंदरूस्त जिम्मेदार गुणवान से ही काम लेता है और वह भी परमानेंट काम करता रहता है, परमानेंट ठेकेदार पर ही आप विश्वास कर सकते हैं, इनाम और सजा आसानी से दे सकते है। इसी से आप की सम्बन्धी और इज्जत बढ़ती है। समझदारी का सबूत मिलता है, धर्म पूरा होता है। वफादारी का सबूत मिलता है, ठेकेदारी का नियम सब जगह चलाया जा सकता है लेकिन कहीं भी चल नहीं सकता। इसलिए यह सब जगह अवैध है। गलत है नामुमकिन है। इसे आज नहीं तो कल छोड़ना पड़ता है, इसलिये अवैध है गलत है।
इसको अपनाने से कुछ समय बाद ही गुलामी के आसार नजर आते है। हीनता महसूस होने लगती है, कमी महसूस होती है। खुद ठेकेदार यह चाहता है। मुझे परमानेंट एक जगह से सारा काम मिलता रहे, वह परमानेंट होने के लिये रिश्वत तक देता है, ज्यादा से ज्यादा काम करके दिखाता है। जल्द से जल्द करने की कोशिश करता है। जी हुजुरी और सेवा ऐक्सट्रा करता है। अपनी लेवर परमानेंट रखने की कोशिश करता है। क्योंकि वह सही अधिकारी मालिक है और आप क्या कर रहे है बने बनाये विभाग को दिमाग और मेहनत से काम न लेकर छिन्न-भिन्न कर रहे हंै। ऐसे कर्मचारी और अधिकारी या नेता प्रोत्साहन के नहीं सजा के हकदार हैं, जो ठेके पर काम देने की, आरक्षण की या बँटवारे की बात सोचते हैं।
हर समझदार प्राणी, चाहे गैर सरकारी ही हों चाहे गरीब हों, हर कोशिश करता है कि परमानेंट रहे। परमानेंट रखे और आप ठेके पर काम देकर खुश होते हंै निश्चित ही आप सजा के हकदार हैं, आप अपनी नजरों में भी गिर रहे हैं या गिर जायेंगे। आप परिवार में भी परमानेंट हैं, किसी के पापा, चाचा, दादा, ताऊ, जमाई, जीजा, साले आदि। आप यहाँ परमानेंट रहना चाहते हैं, परमानेंट रखना चाहते हंै। सब यही चाहते हंै। यह सच्चाई है। आप टेम्परेरी, कभी-कभी होटल में खाना खाते है, लेकिन परमानेंट एक होटल में खाने को खाना नहीं छोड़ते। होटल में भी कोशिश यह करते हैं कि परमानेंट एक होटल ही रहे, यह हो नहीं सकता। इसलिये घर पर ही खाना परमानेंट खाते हंै और कोशिश करते हंै कि कोई कोताही न हो, न खुद से, न किसी और से, होटल वाला भी कहता है, साहब हमारे यहाँ ही खाइये। लेकिन आप दूसरों को भी शिक्षा देते है कि यह ठीक नहीं, घर पर ही खाना। परमानेंट खाना चाहिये हर तरीके से सोचने और देखने पर, ठेके पर काम करना और काम कराना गलत ही है। रेल और रेल विभाग ने बेहद सुविधा दी है। लेकिन गलत नेता की छाया में सुविधा सजा बन गई या जनता की व खुद की सजा ही बना दी।
आजकल रेल ने डेली पैसेन्जर के लिये, डिब्बा ही नहीं पूरी रेल ही बना दी। डेली पैसेंजर को कोई परेशानी न हो, भीड़ होने पर खडे़ होने या खड़े-खडे़ सफर करने में भी परेशानी न हो, बेहद बड़ी सोच थी। उसी हिसाब से दरवाजे खिड़कियाँ सीट बनाई गई सोचना और अमल करना दोनों कठिन काम है, लेकिन गलत नेता और गलत अधिकारी। पूरा सोच ही नहीं पाते या सोचकर अमल नहीं कर पाते और डेली पैसेंजर टेªेन में ऐसी गलती कर बैठे कि भारत जैसे देश की अकाट्य समझ भी दागदार होने जैसी बात हो गई। डेली पैसेंजर ट्रेन में लैट्रीन, शौचालय गायब कर दिया। रेल विभाग बेहद बड़ा है, हर किस्म के धुरंधर, समझदार, ज्ञानवान, कर्मचारी व अधिकारी हैं, कर्मठ हैं, लेकिन इतनी बड़ी गलती। बलन्डर मिस्टेक कैसे हो गई। कैसे भी समझ में नहीं आता और अच्छी सोच ऐसी गलती कर ही नहीं सकता। रेल ही नहीं, हर चीज जनता के लिये है, और जनता को सुविधा देने के लिये, पूरा देश हर समय लगा रहता है, माना ट्रेन डेली पैसेंजर के लिये बनाई, तो क्या डेली पैसेंजर को शौचालय की जरूरत खत्म हो गई। जिनमें नारी, पुरूष सब ही है और कैसे भी टेªन में छोटे, बड़े को बैठने से रोका नहीं जा सकता। नारी, पुरूष भी रहे, तो अचानक किसी की तबीयत भी खराब हो सकती है। ऐसा भी नहीं है कि 20, 25 मिनट या 20-25 कि. मी का सफर हो। ट्रेन हर स्टेशन पर चाहे रूकती हो, लेकिन बीमार या ड्यूटी पर पहुँचने वाला मुमकिन ही नहीं है कि शौचालय की जरूरत महसूस होने पर स्टेशन पर उतरे, उतर भी जाये तो अगली ट्रेन कब है, है भी या नहीं? इसके बावजूद हर ट्रेन में बच्चे, बूढ़े या बीमार जरूर होते है, खासतौर से बच्चों पर तो कैसे भी शौचालय पर कन्ट्रोल किया ही नहीं जा सकता और सच्चाई यह है कि प्रसाधन किसी को भी रोकना ही नहीं चाहिये और रेल विभाग ने प्रसाधन को खत्म ही कर दिया। ट्रेन किसी भी कारण से रूक सकती है क्या प्राणी इतनी देर इन्तजार कर सकता है? आज हमारी डी. एम. यू. जैसी ट्रेन 150 और 200 कि. मी. का सफर करती है, जिससे 5, 6 घंटे और कभी-कभी 10 घंटे तक लगते। यात्री दो चार नहीं हजारों की गिनती में होते है और हर एक किसी न किसी परेशानी से दो, चार हो रहा होता है।
वहाँ पर प्रसाधन जैसी सुविधा खत्म कर देना, सबकी कितनी बड़ी सजा है। जबकि हवाई जहाज जैसी कम से कम समय की सवारी में भी शौचालय जरूरी समझ गया। यह बस या मोटर कार नहीं है, ड्राईवर से कहो, तो वह चाहे जहाँ रोक दे और आपकी जरूरत पूरी कर दे। ऐसी ट्रेनों में सुबह शाम या दोपहर को भी, नई उमर के लड़के या जवान पुरूष को यात्री गेट पर ही चलती ट्रेन में बाहर की तरफ बाथरूम या पेशाब करके मजबूरन अभद्रता फैलानी पड़ती है। इसमें इस यात्री का दोष नजर आता है। लेकिन दोष बिल्कुल नहीं है। इस प्राणी ने घर से जल्दी चलने में स्टेशन पर बाथरूम करने की सोची, लेकिन ट्रेन देखकर देर न हो या ट्रेन न छुट जाये, ड्यूटी या विभाग का नुकसान न हो, ट्रेन में चढ़ गया और अभद्रता करनी पड़ी, यह तो इसकी मजबूरी थी। लेकिन बच्चा हो, बूढ़ा हो या नारी हो, तो कैसे बात बनेगी। सवाल यह पैदा होता है कि रेल विभाग के पास क्या मजबूरी थी कि विभाग ने बाथरूम या शौचालय खत्म कर दिया। आज हमारे नेता, गाँव में जहाँ प्रसाधन के लिये बड़ी जगह खेत, खलियान जो असिमित सीमा में है, वहाँ पर छोटे-छोटे घर में फ्री लेट्रीन बनवा रहे हैं क्या यह गलत है? किसी के यहाँ चाहें कुछ न हो, वह भी प्रसाधन का साधन, आसान साधन जरूर रखता है क्यों? क्योंकि यह जरूरत सबसे ज्यादा जरूरी है। सही मायनों में देखा जाये, तो यह गद्दारी और भ्रष्टता का सबसे बड़ा सबूत है, गुलामी फैलाने का सबूत है। अत्याचार करने और अत्याचार सहने का बड़ा सबूत है। कितना भी ट्रेण्ड, समझदार, बड़ा या कोई भी पूरी जिन्दगी प्रसाधन का समय निश्चित रख ही नहीं सकता। किसी भी समय, कभी भी जरूर प्रसाधन का समय किसी भी कारण से जरूर गड़बड़ता है, वह समय रेल में बैठने पर क्यों नहीं हो सकता? किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं हो सकता? हर हाल में हर डिब्बे में चाहें जैसा शौचालय हो, शौचालय होना ही चाहिये वरना बगावत जरूर होगी। डी. एम. यू. जैसे ट्रेन में यात्री अपनी फैमिली के साथ सफर करता है, तो हर एक प्राणी को इतनी भीड़ में सफर करना पड़े फिर ट्रेन असिमित समय कब चले या कब रूके की चिन्ता और फिर शौचालय की, जरूरत न पड़े नामुमकिन है जबकि नारी, बच्चे और बूढ़े या इनमें से कोई भी साथ हों। वैसे भी शौचालय का होना वहाँ की समृद्धि का सबूत होता है। रेल विभाग जनता के लिये है और असिमित सेवा निश्चित कर रहा है और हर कर्मचारी की निगाह अपनी ड्यूटी पर है या पैसे पर है।
सवारी गाड़ी में जनरल डब्बे में बेहद भीड़ होती है। गार्ड और स्टेशन मास्टर की ड्यूटी है ध्यान दें, बोगी ऐक्सट्रा लगाने पर बेहद राहत मिल सकती है। यात्री और कर्मचारी व अधिकारी को भी। पैसेंजर ट्रेन के डिब्बे में लाइट और पंखों की रिपेयर पर तो ध्यान बेहद कम होता है, शाम को रोशनी होनी ही चाहिये और इस बोगी में डायनमों बैटरी होती भी है, लेकिन कर्मचारी और अधिकारी कर्मठ न होने के कारण से वह ठीक नहीं होती। यह अधिकारी की कोताही निश्चित है। यह अधिकारी ऐक्सप्रेस गाड़ी का ही ध्यान रखते है। कभी स्टाफ कम है, कभी पहले ऐक्सप्रेस गाड़ी देखनी है का बहाना। सारी कर्मठता को निगल जाती है और रेल विभाग की इज्जत कम करती है, और जनता को अत्याचार सहना पड़ता है। इन अधिकारी की कर्मठता यह है कि हर ट्रेन जो वर्कशाप से यात्रा के लिये निकलती है या मेन स्टेशन से निकलती है, वह बिल्कुल न सही लेकिन फिट हो इसके अलावा हर स्टेशन पर गाड़ी रिपेयर के कर्मचारी और अधिकारी मौजूद होते हैं, जो हर कमी को स्टोपेज टाइम में ही ठीक करने में सक्षम होते हैं, केवल कर्मठता से काम लेने वाला अधिकारी होना ही चाहिये और निश्चित ही, हर कमी का सुधार हो सकता है। कम से कम रोशनी जैसी जरूरत का सुधार तो बेहद मामूली है, इस मामूली कमी को छूट देने के कारण बड़े से बड़े हादसे घटित होते हंै और होते रहते हंै। इसलिये हर छोटी से छोटी कमी को सुधारने की आदत डालनी ही चाहिये मशीन हो या प्राणी। हम छोटी कमी को भूलाते नहीं, लेकिन ढील दे देते हंै और समाज में आज, इस ढील से हर मशीन और हर प्राणी अनियमित हो गया है, कर्मचारी, अधिकारी और नेता सब।
अब सवाल यह उठता है कि हर कमी को सुधारने के लिये कौन सी ऐसी युक्ती या सूत्र अपनायें कि, हर कमी अपने आप सुधरने का क्रम शुरू हो और यह क्रम चलता रहे। रेल विभाग के दिग्गज अधिकारीों की बड़ी यूनिटी ने बड़ी मेहनत और गहरी सोच से गलती पर अविलम्ब सजा के अनूठे अनेक नियम बनाये, जो हमेशा कठोरता से पालन होते रहे हैं। इसका ही सबूत है कि मामूली रफ्तार से चलने वाली ट्रेन, आज करोड़ांे टन वजन लेकर 150 कि. मी/घंटे की रफ्तार से सफलता से अपना सफर तय कर रही है। सजा की कठोरता का सबूत है, अगर ट्रेन 5 मिनट भी लेट हो, तो शेड में धुलाई या सफाई कर्मचारी से लेकर फोरमैन तक को एक सप्ताह से पहले सबको चार्जसीट ईसू हो जाती है, माकूल जवाब न मिलने पर, पास छुट्टी, बढ़ोत्तरी सब फौरन बन्द कर दिये जाते हंै। गलती पर अविलम्ब सजा का नियम बखूबी निभाया जाता रहा है। एक की गलती पर, छोटे-बड़े सबको चार्जसीट रिकार्ड टाइम में इसू होती है और सजा भी फौरन मिलती है, लेकिन फिर भी कुछ कमी है, जिसका सबूत यह है कि हादसे होते हैं, कर्मचारी और अधिकारी तक अनियमित हुए हैं, नेता को प्रोत्साहन मिला है रेल से फायदे की बजाय नुकसान के कारण, महँगाई चरमसीमा पर पहँुची हैं। यात्री घर से सफर करने की नीयत से पहुँचता है और कोई कमी नजर भी आये। तो शिकायत कर नहीं पाता या शिकायत पर अमल नहीं होता। कर्मचारी और अधिकारी अपने विभाग या कर्मचारी व अधिकारी की शिकायत, बिरादरी भाई होने के कारण शिकायत करते नहीं। जो सबसे बड़ी कमी या गलती है। इससे खुद वह, उनका विभाग और उनके अपने और खुद अपने आप के साथ-साथ जनता ही नहीं, पूरा देश भुगतता है। हर नेता, राष्ट्रपति तक भुगतते हंै। शिकायत बुक, सब जगह है, हर स्टेशन, हर गार्ड के पास है। शिकायत पेटियाँ हैं, हर जगह हैं, लेकिन इतनी समझ मजबूर और भोले इंसान में होती नहीं या वह सफर की जल्दी में शिकायत कर नहीं पाता, लगभग 100 प्रतिशत इंसान सोचता है, कौन सा दिन सफर करना है? दिन सफर करने वाला सोचना है, सफर ही तो करना है, जैसे भी हो कर लेना चाहिये, क्यों पंगा लिया जाय? जबकि सच्चाई यह है, कि शिकायत करके, पूरे रेल विभाग ही नहीं, पूरे देश पर शिकायतकत्र्ता ने एहसान किया है, इस शिकायत से रेल विभाग सोने का हो सकता है और पूरे देश की, हर समस्या का समाधान अपने आप हो सकता है।
रेल विभाग ने गलती पर अविलम्ब सजा जरूर निश्चित की है अमल भी किया है। लेकिन अब सजा का असर खत्म हो गया है या सजा से आसानी से निपटा जा सकता है, या सजा आसानी से टल जाती है। नेताओं का जमाना और पैसे, पगार, उपरी इनकम इतनी है, कि हर बात बर्दास्त कर ली जाती है या कर्मचारी अधिकारी नेता का खून इतना खराब हो चुका है, कि हर सजा कबूल, हर गलती कबूल, क्योंकि पैसा ही इतना कमाया है, कि गलती होने पर शर्माना या झिझकना या ग्लानी कैसी? हम रेल के कर्मचारी हैं या रेल के अधिकारी हैं या रेल के यात्री या गैर सरकारी प्राणी हैं या कोई नेता हंै, नारी हैं या पुरूष हंै, धर्म कहता है नियम है, कानून है, कि हम कुछ ऐसा सोचे कि रेल समृद्ध हो, अच्छी है तो और ज्यादा अच्छी हो, कमी है तो सुधार हो। हम सब में कम से कम इतने समझदार तो हैं ही, इस काम के लिये सबसे आसान है कि कमी को देखकर अविलम्ब या बाद में शिकायत करना, शिकायत भी ऐसी की किसी की इज्जत कम न हो। संसार के सारे रेल सम्बन्धित प्राणी आमंत्रित हैं कि सब मिल कर या आप में से विशेष व महान सुधारक खुद रेल सम्बन्धी अनिमितता या हर अनियमितता समझ कर सुधारें या युक्ति बता कर सारे संसार को चमकायंे, और खुद को व सबको धन्य करंे। ऐसी सोच वालांे के लिये लेखक नतमस्तक है। आप जानते हैं कि गलती कोई बर्दास्त नहीं करता, सजा भी मिलती है, हमें सोचना है कि गलती करने वाले को सजा भी इस तरीके से मिले कि किसी को नुकसान कम और सबको फायदा ज्यादा हो, इसके लिये खास नियम रेल को अपनाने चाहिये। सबूत अच्छे भी हैं, एक नारी ने इन्टरनेट पर शिकायत की कि मेरे बच्चे को दूध चाहिए। अगले स्टेशन पर पूरी टीम सैल्यूट मारने के लिए खड़ी थी, केवल शिकायत पर। अगले दिन से फिर वैसा ही माहौल हो जाता है। इंसान इतना गिरा है कि पानी जैसी चीज, अगर इंजन फेल हो जाये, एक घंटा भी ट्रेन रोकनी पड़े तो उस स्टेशन पर मोल के पानी के अलावा पानी नहीं मिलता, लोग परेशान हो जाते हैं। गलती हो गई पर आगे तो न हो। उसका सही इलाज है जुर्माना। पूरे स्टाफ ही नहीं, मंत्री और प्रधानमंत्री तक कोई न बचे, राजकोष तो बढ़े, फिर जनता को अत्याचार से कोई पेरशानी नहीं।

सुधार-सफाई के लिए विचार
01. गलती पर नगद जुर्माना वसूल किया जाये, अविलम्ब जुर्माना राजकोष में जमा कराया जाये गलती करने वाले से निश्चित समय में, दूसरी गलती होने पर जुर्माने का कम से कम तीन या पाँच गुना जुर्माना अविलम्ब उसके द्वारा रेलकोष या राजकोष में जमा कराया जाये यह सिलसिला लगातार जारी रहे, जब तक गलती करने वाला खुद हार न माने, उसका फन्ड है इसके बाद, उसकी फैमली है, जिन्हांेने गलती करने वाले की कमाई खायी है, वह केवल कमाई खाने में लगे रहे, गलती न करने की सलाह तक नहीं दी, इसलिये सजा के हकदार हैं। आप देखेंगे कि गलती करने वाले को गलती छोड़नी पड़ेगी, वह कर्मठ बनेगा और दूसरों को गलती न करने की सलाह भी देगा। गलती करने वाले के परिवार वाले उसे गलती करने से रोकंेगे चाहे जैसे रोके। नौकरी से सस्पेंशन, रेल विभाग को नहीं करना है, हाँ गलती करने वाला छोड़ना चाहे तो बात अलग है, सस्पेंशन से कोई फायदा है ही नहीं रेल को कर्मचारी रखना ही पडे़गा फिर इन्हें ही क्यों न सुधारा जाये धर्म के अनुसार भी पेट पर लात मारना पाप है, गलत है।
02. हमें हर कोशिश यह करनी चाहिये कि कोई भी ट्रेन लेट न हों चाहे माल गाड़ी ही क्यों न हो। पूरी यूनिट निश्चित हर कोशिश करतीे है। इसमें आसानी से सुधार हो, इसके लिये गाड़ी लेट होने पर ड्राईवर और गार्ड पर थोड़ा सा जुर्माना करना पडे़गा और हर स्टेशन के कर्मचारी और अधिकारी, जो इस ट्रेन को चलाने में सहयोगी हंै, हर स्टेशन जहाँ से, यह ट्रेन गुजरती है, सबको एक-एक रूपये की सजा मिलनी चाहिये इसके विपरीत सही समय पर चलती ट्रेन के ड्राईवर को माइल एलाउंस तो मिलता ही है, लेकिन गार्ड और ड्राईवर को ऐक्सट्रा चाहंे 5/-ईनाम दिये जाये वैसे हमारा नियम है कि मालगाड़ी से भी निश्चित समय में माल न उतरने पर, उपभोक्ता को जुर्माना देना पड़ता है, यह नियम कमचारी पर भी लागू होना चाहिए, गलती करने वाला। साथ ही इसका सहयोगी। साथ ही इससे छोटा और उसका बड़ा। सब सजा और जुर्माना के हकदार है। आप देखंेगे कि ट्रेन लेट ही नहीं होगी, अगर ट्रेन लेट भी होगी, तो रेल विभाग और देश को मोटा फायदा होगा। मोबाइल का यूज और डी. एम. यू. की तरह टेªन चलाने, रोकने पर लेट होने जैसा रोग खत्म होगा।
03. हमारे रेल विभाग में बूँद-बूँद तेल बचाआंे, पानी बचाओं, बिजली बचाओं नियम लागू हो। हमारेे इंजन पहले कोयला और अब डीजल और बिजली का बेहद मोटा खर्च करते है, रेल विभाग बेहद बड़ा है और निश्चित इसका खर्च भी बेहद बड़ा है। सरकार ने अरबों रुपये केवल एक मामूली विज्ञापन पर खर्च किये है, वह है बूँद-बूँद तेल बचाआंे, पानी बचाओं, बिजली बचाओं यह अरबों रुपये में बहुत तेल बिजली, पानी आ सकता था, लेकिन वह जनता से बचत करने की उम्मीद करती है, जो हर कीमत अदा करते हैं, आजाद हैं, यह काम, सरकारी विभाग व रेल विभाग क्यों नहीं कर सकता या क्यों नहीं करता? क्या सरकारी विभाग होने से या कर्मचारी व अधिकारी सरकारी होने के कारण? यह नियम तो ज्यादा कठोरता से पालन सबसे पहले सरकार या सरकारी प्राणी को ही करना चाहिये हम केवल सरकारी नौकर हंै और बचत करना हमारी वफादारी का सबूत है। बेहद बड़ा विभाग है, तो बचत भी बेहद मोटी ही होगी, यह बचत करना बेहद आसान है, इस समय डीजल इंजन हमेशा चालू रहते हंै चाहे, वह शेड में खड़ा हो, वैज्ञानिक ने डीजल इंजन यह सोचकर बनाया कि जब काम लेना हो, तो चालू करेे, काम पूरा करते ही या जरूरत न होने पर बन्द किया जाये, जिससे कम खर्च में ज्यादा काम हो, हर मोटर कार और डीजल से या तेल, पैट्रोल से चलने वाली मशीन इस नियम का पालन लगातार कर रहे हंै, केवल रेल विभाग के अलावा यह नियम बिजली से चलने वाली मोटर या सारी बिजली आइटम में भी अमल में लाया जा रहा है वह भी रेल विभाग के अलावा, सरकार हर इन्सान को बार-बार बचत की आवाज लगातार सुनवा रही है, सरकार तो एक छोटे बल्ब को भी जरूरत खत्म होते ही बन्द करने की अनमोल सलाह दे रही है और रेल विभाग इन्जन से लेकर छोटे से छोटे आॅफिस में अथाह बेमकसद या बेकार लगातार छूट कर रखी हैं, डी. आर. एम. आॅफिस में तो खाना रखने की अलमारी में बिजली का खर्च इतना हैं कि इस खर्च में कर्मचारी को मँहगा खाना खिलाया जा सकता हैं, रेल पूरे देश का बैलेंस खराब कर रही है। इनके कर्मचारी अधिकारी का कहना है कि डीजल इन्जन को बंद करके चलाने में मोटा खर्च आता है और बेहद मुश्किलें सामने आती है। यह जवाब साबित करता है कि कर्मचारी और अधिकारी, काम चोर हैं। सब जानते हंै। कर्म हमारी पूजा है, करने वाले के लिये कोई काम मुश्किल या नामुमकिन नहीं। हम इन कर्मचारी और अधिकारी से जितना काम लेते हैं, वह ज्यादा एक्सपर्ट बनते हंै और कर्मठता की और बढ़ते हैं, उनका ध्यान रखना हमारा धर्म है लेकिन काम करके और काम करके पगार लेना भी धर्म है, कुछ समय की लगातार मेहनत से हर घंटे करोड़ों लीटर तेल और अरबों यूनिट बिजली बचाने में सक्षम होंगे और इंजन बन्द करने और चालू करने में कोई परेशानी नहीं आयेगी। परेशानी आयेगी भी, तो उसका हल भी निकलेगा। इस नियम की सख्ती से रेल विभाग में पालन किया जाये।
04. आरक्षण जैसे नियम से रेल विभाग को आजाद करना ही सबसे बड़ी उपलब्धि रेल विभाग के लिये होगी। इस विज्ञान के जमाने में, हमें इतना हेवी लोड को सफलता से दोड़ा सके, इसके लिये आरक्षण खत्म होना ही चाहिये या आरक्षण वालों को सबसे छोटी 5 ग्रेड की नौकरी से शुरूआत करनी चाहिये, जिसमंे अधिकारी बनने तक कम पढ़े-लिखे जवान निपुण व कर्मठ कर्मचारी बनकर, रेल की व जनता की सेवा कर सकें। आरक्षण नहीं केवल टेलेन्ट के उपर ही भर्ती होनी ही चाहिये।
05. हमें हमेशा कर्मचारी और अधिकारी की भर्ती के लिये पहले हमें अपने कर्मचारी के परिवार व खानदान को वरीयता देनी ही चाहिये हमें भरती की जरूरत पड़ती रहती है और हमें फार्म भरवाकर उसकी परीक्षा लेनी पड़ती है। हमारे पास कर्मचारी और अधिकारी की बड़ी संख्या है। ”गलती पर अविलम्ब सजा के नियम“ लागू होते ही, हमारे कर्मचारी के बच्चे भी कर्मठ निश्चित होंगे, और उनसे काम लेना आसान होगा। परीक्षा सख्त ही होनी चाहिये, अगर परीक्षा हो, तो आरक्षण की छूट बिल्कुल नहीं होनी चाहिये वैसे आप जानते हैं कि परीक्षा रखकर, हम हर शिक्षा विभाग की बेइज्जती कर रहे हंै, हमारे देश का भविष्य बच्चे और उनके माँ, बाप या संरक्षक बड़ी मेहनत करते हैं और मोटा पैसा खर्च करते हंै, उनके उपर फार्म, फीस, रिश्वत आने जाने का खर्चा एक अलग समस्या पैदा कर देता है, रेल विभाग या सरकार भी मोटा खर्च करती है तथा उनके उपर फार्म, फीस, रिश्वत आने-जाने का खर्चा एक अलग समस्या पैदा कर देता है, रेल विभाग या सरकार मोटा पैसा इकट्ठा जरूर कर लेती है, लेकिन अगर हम ईमानदारी से कर्मठता से काम करें तो रेल विभाग हर इंसान को, गरीब को पेंशन दे सकता है, इसलिये हर बात ध्यान में रखंे, तो परीक्षा टोटल फ्री करना ही मुनासिब होगा, दूसरा केवल पढ़ाई के सार्टीफिकेट और सिरियल नम्बर पर ही भर्ती मुनासिब होगा, हमें टेªनिंग तो देनी ही पड़ती है फिर परीक्षा जैसी प्रक्रिया सिरदर्द के अलावा और क्या है? हमारे यहाँ पर तीन साल में प्रमोशन है ही। इसका समय घटा दिया जाये और रिटायरमेंट 50 साल कर दिया जाये तो सारी समस्या सोल्व हो जाये क्यांेकि 50 साल ही इंसान कर्मठ और तेज रह सकता है। इसके बाद वह सुस्त हो जाता है, नारी कर्मचारी की सर्विस ज्यादा से ज्यादा 45 साल ही रखने में सबका भला है, हमें नवजवान को मौका देना ही चाहिये, जो तेज और कर्मठ होते हैं।
06. रेल का हर प्राणी गर्व से कह सके ”मेरा देश महान“ और या मेरा संसार महान। इसके लिये नियम बनायें। हमारे सब प्राणी किसी किस्म की और किसी भी विभाग की, अगर अनियमितता नजर आती है तो उसकी शिकायत फौरन करें या शिकायत करने की आदत डालें। जिससे पूरे शहर, गाँव व हर विभाग में, हर किस्म का सुधार निश्चित हो और हमारे रेल विभाग के साथ-साथ जहाँ हमारी रेल चलती है या हमारे कर्मचारी अधिकारी रहते हंै, वह जगह, जिला प्रदेश और पूरा देश, भारत व पूरा संसार स्वच्छ, सुन्दर हो, किसी किस्म की कोताही न हो हर अनियमितता जल्द से जल्द खत्म हो। हमारा रेल विभाग बेहद बड़ा विभाग है। लगभग हर जगह पर है क्यांेकि जहाँ हमारा कर्मचारी रहता भी है समझना चाहिये, कि वहाँ भी रेल विभाग है। रेल विभाग का हर प्राणी जिम्मेदार होना ही चाहिये और अपने विभाग के अलावा, दूसरे विभाग का भी ध्यान रखना, रेल की महानता को बढ़ावा देना ही है। अपने अन्दर ऐक्सट्रा खूबी पैदा करनी है। इस समय प्रशासनिक कर्मचारी व अधिकारी, हर सरकारी प्राणी और नेता सब गड़बड़ा रहे हंै, हर तरफ अनियमितता लगातार बढ़ती ही जा रही है, जो धीरे-धीरे रेल विभाग को भी चपेट में ले रही है। इस पर अकुंश लगना ही चाहिये बल्कि अनियमितता खत्म होनी ही चाहिये इसके लिये हर कर्मचारी और अधिकारी को हक दिया जाना चाहिये या सबको सूचित कर दिया जाये, शिकायत इन्टरनेट पर करें, यह बात अपनों के इन्टरनेट पर फैला दें।
07. डी. एम. यू. जैसी ट्रेन ज्यादा से ज्यादा और ज्यादा बोगी वाली चलाई जाये, जो हर स्टेशन पर रूकती, चलती है और ऐक्सप्रेस से जल्द पहुँचती है, इनमें प्रसाधन जरूर हो।
08. स्टेशन मास्टर को हक दिया जाये कि पैसेंजर ज्यादा होने पर ऐक्सट्रा बोगी जोड़ंे और पैसेंजर को कम से कम खड़े होने की सही जगह तो मिलें। भारत अंग्रेजांे का गुलाम रहा है फिर भी अंग्रेजांे के जमाने में रेल ने यात्रियों को ऐश ट्रे तक दी, अब भारत आजाद है, सरकार व नेताओं ने, रेल में शौचालय भी खत्म किये, यही नहीं प्लेटफार्म पर शौचालय के 2 रुपये जैसी छोटी रकम तक लिये जाते हैं, जबकि ट्रेन पैसेंजर हो और कई-कई घंटे लेट चलती है।
09. हमारे पास विजीलेंस है खुफिया विभाग है। लोकल इन्टेलीजेन्ट यूनिटी है फिर भी टिकट घर, टी. टी., कुली, रेल, पुलिस गद्दारी कर रही है, सबको गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन नियम पर अमल करने के लिये प्रोत्साहन दिया जाये, बोर्ड लगाये जायंे, शिकायत पेटियाँ लगाई जायें, शिकायत रजिस्टर रखे जायंे और यह नियम रेल के स्टेशनांे पर, डिब्बों पर, टिकट घर पर, जरूर लिखें जाये, बिजली बचत, डीजल बचत इंजन से ही शुरू की जायें। रेल विभाग से शुरू की जाये।
10. गलती पर चार्जसीट सजा और कठोरता से अमल में लाया जाये, जिसमें नगद जुर्माना अविलम्ब राजकोष में जमा कराया जाये बाधित यात्री की बाधा देखकर, सुधार किया जाये, गाड़ी लेट होना, सबसे बड़ा जुर्म घोषित किया जाये, हर स्टेशन पर, हर माह बोर्ड पर शिकायत की गिनती दर्ज की जाये, ठेके पर काम रोका जाये और अपने कर्मचारी से काम लिया जाये या ठेके पर काम देने से, पहले परमानेंट काम सम्बन्धित कर्मचारी पर जुर्माना किया जाये, हर एक को शिकायत करने पर वरीयता दी जाये आप अनियमितता की शिकायत खुलकर करंे या हम तक डाक खर्च के साथ शिकायत भेजें जिसमें तीन प्राणी के वोटर/आधार नम्बर के साथ व हस्ताक्षर के साथ हम तक पहुँचाएँ। आप की इच्छा से शिकायत गुप्त रखी जायेगी, आज आप अकेले हो सकते है। आने वाले समय में सारा संसार साथ होगा। दोषी प्राणी पर नगद जुर्माना निश्चित होगा, दोषी व्यक्ति को पालने वाला अधिकारी और विभाग तक पर जुर्माना हो सकता है उसके नेता और मंत्री तक को जुर्माना अदा करना पड़ सकता है। रेल विभाग 60 साल के परमानेंट जिम्मेदारी प्राणी को चलानी है न कि नेता या किसी ठेकेदार को, जिसकी उमर ही 5 साल है या 3 माह ही है।
सकल पदारथ है जग माही, कर्महीन नर पावत नाहीं। 
कर्महीन = आचरणहीन



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