द्वापरयुग के धर्म - 06. पारसी धर्म-जरथ्रुष्ट-ईसापूर्व 1700
परिचय -
जरथुस्ट्र धर्म विश्व का एक अत्यन्त प्राचीन धर्म है जिसकी स्थापना आर्यो की ईरानी शाखा के एक संत जरथुस्ट्र ने की थी। इस्लाम के आविर्भाव के पूर्व प्राचीन ईरान में जरथुस्ट्र का ही प्रचलन था। सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान को पराजित कर वहाँ के जरथुस्ट्र धर्मावलम्बियों को जबरन इस्लाम में दीक्षित कर लिया था। ऐसी मान्यता है कि कुछ ईरानीयों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आये और यहाँ गुजरात तट पर नवसारी में आकर बस गये। वर्तमान में भारत में उनकी जनसंख्या एक लाख के लगभग है जिसका 70 प्रतिशत मुम्बई मे ही रहते हैं।
संत जरथुस्ट्र को ऋग्वेद के अंगिरा, बृहस्पति आदि ऋषियों का समकालिन माना जाता है। परन्तु ऋग्वेदिक ऋषियों के विपरीत जरथुस्ट्र ने एक संस्थागत धर्म का प्रतिपादन किया। सम्भवतः किसी संस्थागत धर्म के वे प्रथम पैगम्बर थे। इतिहासकारों का मत है कि वे 1700-1500 ईसापूर्व के बीच सक्रिय थे। वे ईरानी आर्यो के स्पीतमा कुटुम्ब के पौरूषहस्प के पुत्र थे। उनकी माता का नाम दुधधोवा (दोग्दों) था। 30 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी मृत्यु 77 वर्ष 11 दिन की आयु में हुई।
पारसी या जरथुस्ट्र धर्म एकैकाधिदेववादी धर्म है जिसका तात्पर्य यह है कि पारसी लोग एक ईश्वर ”अहुरमज्द“ में आस्था रखते हुए भी अन्य देवताओं की सत्ता को नहीं नकारते हैं। यद्यपि अहुरमज्द उनके सर्वोच्च देवता हैं परन्तु दैनिक जीवन के अनुष्ठानों व कर्मकाण्डों में ”अग्नि“ उनके प्रमुख देवता के रूप में दृष्टिगत होते हैं। इसलिए पारसीयों को अग्निपूजक भी कहा जाता है। पारसियों की शव विसर्जन विधि विलक्षण है। वे शवों को किसी ऊँची मीनार पर खुला छोड़ देते हैं जहाँ गिद्ध-चील उसे नांेच-नोंचकर खा जाते हैं। बाद में उसकी अस्थियाँ एकत्रित कर दफना दी जाती है। परन्तु हाल के वर्षो में इस परम्परा में कमी हो रही है और शव को सीधे दफनाया जा रहा है।
जरथुस्ट्र धर्मावलम्बियों के दो अत्यन्त पवित्र चिन्ह हैं- सदरो (पवित्र कुर्ती) और पवित्र धागा। धर्मदीक्षा संस्कार के रूप में जरथुस्ट्रधर्मी बालक तथा बालिका दोनों को एक विशेष समारोह में ये पवित्र चिन्ह दिये जाते हैं जिन्हें ये आजीवन धारण करते हैं। मान्यता है कि इन्हें धारण करने से व्यक्ति दुष्प्रभावों और दुष्टआत्माओं से सुरक्षित रह सकता है। विशेष आकृति वाली सदरों का निर्माण सफेद सूती कपड़े के 9 टुकड़ों से किया जाता है। इसमें एक जेब होती है जिसे ”किस्म-ए-कर्फ“ कहते हैं। पवित्र धागा जिसे ”कुश्ती“ कहते हैं ऊन के 72 धागों को बटकर बनाते हैं और उसे कमर के चारो ओर बाँध दिया जाता है जिसमें दो गाँठे सामने और दो गाँठे पीछे बाँधी जाती है।
जरथुस्ट्र धर्म में दो शक्तियों की मान्यता है-1. स्पेन्ता मैन्यू, जो विकास और प्रगति की शक्ति है और 2. अंग्र मैन्यू, जो विघटन और विनाशकारी शक्ति है। जरथुस्ट्र धर्मावलम्बी सात देवदूतों (यजत) की कल्पना करते हैं जिनमें से प्रत्येक सूर्य, चन्द्रमा, तारे, पृथ्वी, अग्नि तथा सृष्टि के अन्य तत्वों पर शासन करते हैं। इनकी स्तुति करके लोग अहुरमज्द को भी प्रसन्न कर सकते हैं।
पारसियों का पवित्र धर्मग्रन्थ ”जेन्द अवेस्ता“ है जो ऋग्वेदिक संस्कृत की ही एक पुरातन शाखा अवेस्ता भाषा में लिखी गई है। ईरान के सासानी काल में जेन्द अवेस्ता का पहलवी भाषा में अनुवाद किया गया, जिसे ”पंजंद“ कहा जाता है। परन्तु इस ग्रन्थ का सिर्फ पाँचवां भाग ही आज उपलब्ध है। इस उपलब्ध ग्रन्थ को पाँच भागों में बाँटा गया है। 1. यस्त्र (यज्ञ)-अनुष्ठानों एवं संस्कारों के मंत्रों का संग्रह, 2. विसपराद-राक्षसों एवं पिशाचों को दूर रखने के नियम, 3. यष्ट-पूजा-प्रार्थना, 4. खोरदा अवेस्ता- दैनिक प्रार्थना पुस्तक और 5. अमेष स्पेन्ता-यजतो की स्तुति।
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